अन्य राज्यों में छूट, मप्र सरकार की बड़ी पहल कंपलिशन सर्टिफिकेट वाले ही बचेंगे
इंदौर. विनोद शर्मा ।
आधे-अधूरे प्रोजेक्ट के रूप में बिल्डर की मनमानी और वादाखिलाफी की सजा भुगत रहे उन तमाम लोगों को जल्द राहत मिलेगी जो फ्लैट, प्लॉट, मकान, दुकान और आॅफिस में जीवनभर की पूंजी लगाने के बाद भी किराये का जीवन जी रहे हैं। इसकी व्यवस्था सोमवार यानी 1 मई से लागू हुए मप्र सरकार के रीयल एस्टेट रेग्युलेटरी एक्ट (रेरा) के तहत की गई है। मप्र की शिवराज सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए उन तमाम निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स को एक्ट के दायरे में ला खड़ा किया है जिनका 1 मई तक पूर्णता प्रमाण-पत्र संबंधित विभाग से जारी न हुआ हो। मप्र में ऐसे प्रोजेक्ट्स की संख्या सैकड़ों में और उनकी लागत अरबों में है।
अपना आशियाना लेने वालों को बिल्डरों की मनमानी से बचाने और फ्राड रोकने के लिए केंद्र सरकार ने मार्च 2016 में रियल एस्टेट बिल पास किया था। केंद्र से बिल पास होने के बाद सभी प्रदेश सरकारों को गाइडलाइन तैयार कर अपने यहां लागू करवाना था। इसी के आधार पर नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने 22 अक्टूबर 2016 को गजट नोटिफिकेशन जारी करते हुए मप्र के रीयल एस्टेट कारोबार के लिए रेग्युलेटरी एक्ट बना दिया। इस एक्ट की खासबात यही है कि जहां अन्य प्रदेशों की सरकार निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स को रेरा से छूट दे रही थी वहीं मप्र सरकार ने मौजूदा प्रोजेक्ट्स को एक्ट का हिस्सा बनाकर उन तमाम लोगों को राहत दी है जो अर्से से पजेशन के इंतजार में बैठे हैं।
क्यों जरूरी थे मौजूदा प्रोजेक्ट
यदि इंदौर को ही आधार मानकर बात की जाए तो बायपास, सुपर कॉरिडोर, खंडवा रोड, महू रोड, नेमावर रोड, उज्जैन रोड, देपालपुर रोड के आसपास तकरीबन 1000 से अधिक रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट हैं। इनमें कॉलोनियों से लेकर मार्केटव टाउनशीप तक शामिल हैं। 100 प्रोजेक्ट ही ऐसे होंगे जिन्हें सरकारी कंपलीशन से हटकर कंपलिट प्रोजेक्ट कहा जा सकता है। बाकी ऐसे हैं जिन पर काम शुरू तो हुआ, खत्म नहीं हुआ। कहीं जमीन के मालिकाना हक का विवाद सामने आ गया। कहीं आर्थिक तंगी के कारण बिल्डर ने हाथ खींच लिए। कहीं बुनियादी सुविधाएं आधी-अधूरी हैं तो कहीं बिल्कुल है ही नहीं। कुछ ऐसे प्रोजेक्ट हैं जो वर्षों से बिल्डिंग पर्मिशन के इंतजार में ही अटके हुए हैं। निवेशकों ने इन प्रोजेक्ट्स के भाव तो बढ़ा दिए लेकिन बुनियादी सुविधाओं के इंतजार में लोग घर बनाकर नहीं रह पा रहे हैं। किश्तें जरूर चुकाने लगे हैं। टाउनशीप्स में पजेशन का इंतजार है।
यह है मप्र का एक्ट
- धारा (3) की उपधारा 1 के तहत उन तमाम चलती आ रही परियोजनाओं के लिए भी रेरा में पंजीयन करना जरूरी होगा जिनका 1 मई 2017 तक संबंधित विभाग से पूर्णता प्रमाण-पत्र जारी नहीं हुआ है।
- अधूरी परियोजनाओं वाले बिल्डरों को परियोजना संबंधित कब से प्रोजेक्ट पर काम जारी है से लेकर कंपलिट होने की समयसीमा तक की जानकारी देना होगी।
- किसी भी फ्लैट, आॅफिस या दुकान का क्षेत्रफल कॉर्पेट एरिया के हिसाब से बताना होगा। भले पहले सुपर बिल्टअप एरिया से गणना दिखाई गई हो। ऐसे ही बेचे गए प्लॉट का एरिया भी बताना होगा।
पंजीयन हुआ या निरस्त
- विनियामक प्राधिकरण नियम-3 की धारा 5 के तहत परियोजना का रजिस्ट्रेशन होने पर बिल्डर को प्रारूप ‘ग’ में रजिस्ट्रेशन नंबर के साथ एक रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र जारी होगा।
- इसी तरह धारा 5 के तहत आवेदन निरस्त होने की जानकारी प्रारूप ‘घ’ में दी जाएगी।
कोई अनुबंध रेरा से परे नहीं
अधिनियम की धारा 13 की उपधारा (2) के लिए विक्रय अनुबंध अनुलग्नक ‘क’ में होगा। मतलब अपार्टमेंट, प्लॉट या मकान के संबंध में रेरा रजिस्ट्रेशन से पहले किया गया भी विक्रय अनुबंध रेरा के नियमों और आवंटी या खरीदार के हितों से ऊपर नहीं होंगे।
यह सब जानकारी होगी रेरा की वेबसाइट पर
- विकासकर्ता की प्रोफाइल। रजिस्टर्ड पता।
- विकासकर्ता की शैक्षणिक व व्यावसायिक पृष्ठभूमि।
- विकासकर्ता का ट्रेड रिकार्ड। अनुभव। पूर्व में किए गए काम। मौजूदा प्रोजेक्ट। प्रस्तावित प्रोजेक्ट।
- प्रोजेक्ट को लेकर विचाराधीन या निराकृत हो चुके मुकदमे।
- विकासकर्ता की वेबसाइट लिंक
- प्रोजेक्ट की वेबसाइट लिंक
इनकी जानकारी भी स्पष्ट देना होगी।
- प्रस्तावित प्रोजेक्ट में धारा 4 की उपधारा 2 के तहत फायर फाइटिंग सिस्टम, पेयजल व्यवस्था, आपातकालीन सेवाएं, नवीकरणीय ऊर्जा, बिजली, सड़क, मेले पानी के निस्तारण की व्यवस्था बताना होगी।
ऐसा होगा डिपार्टमेंटल स्ट्रक्चर
प्राधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन या रिक्तियों की पूर्ति का अधिकार राज्य सरकार को होगा।
हर रिक्ती के लिए दो व्यक्ति का चयन होगा। 45 दिन में राज्य सरकार को उनकी अनुसंशा करना होगी। अनुंसशा के 15 दिन भीतर योग्यता के आधार पर अध्यक्ष या सदस्य बनाया जा सकेगा। मुख्य सूचना आयुक्त या आयुक्तों की तनख्वाह के बराबर वेतन व भत्ते होेंगे।
प्राधिकरण के काम...
विनियामक प्राधिकरण का कार्यालय भोपाल में होगा।
प्राधिकरण के काम के दिन और कार्यालय के घंटे वही होंगे जैसे राज्य सरकार के अन्य विभागों के होते हैं। सील या प्रतीक भी वैसे ही होंगे जैसे राज्य सरकार के हैं।
किसी भी मामले में पंजीयन से पूर्व जांच की जा सकेगी। प्रोजेक्ट की प्रस्तावित जमीन पर बिल्डर के अधिकार, जमीन का सीमांकन या क्षेत्र, टीएनसी, प्रोजेक्ट के संबंध में बिल्डर की वित्तीय क्षमता, प्रोजेक्ट से जूड़ी परियोजनाएं।
ऐसे काम करेगा ट्रिब्यूनल
धारा 44 की उपधारा 1 के तहत फाइल की गई हर अपील के साथ अपीलीय प्राधिकरण की फीस का डिमांड ड्राफ्ट लगाना होगा।
अपील करने के लिए जरूरी है उस आदेश की प्रमाणित या सत्यप्रति जिसके विरुद्ध अपील की गई हो। उन दस्तावेजों की सूची जिन पर आवेदक निर्भर हो। अन्य दस्तावेजों की एक सूची।
शहर के प्रोजेक्ट जो सिरदर्द से कम नहीं है
सहारा सिटी होम्स : बिचौली मर्दाना में 89 एकड़ जमीन पर 2686 परिवारों के लिए प्रोजेक्ट प्लान किया गया था जहं 714 से लेकर 4262 वर्गफीट तक का सेलेबल एरिया था। 2017 तक भी प्रोजेक्ट में 600 से ज्यादा परिवार शिफ्ट नहीं हो पाए। पजेशन न देने के कारण कुछ दिनों पहले हर्जाना जरूर खरीदारों को दिया गया था। प्रोजेक्ट की समयसीमा अब भी तय नहीं है।
पिनेकल ड्रीम्स : पीपल्याकुमार की 11.39 एकड़ जमीन पर लक्जीरियस लाइफ स्टाइल के वादे के साथ 17 मंजिला 14 टॉवर बनाए गए थे। इनमें ऊंची कीमतों पर बेचे हैं। कई लोग कर्ज अदायगी के साथ ही मकान का किराया भी चुका रहे हैं।
आईबीडी बेलमोंट पार्क : इस प्रोजेक्ट पर आईबीडी और स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर नाम की कंपनी ने जिस गति से काम शुरू किया था उस गति से अंजाम नहीं दे पाई। दोनों कंपनियां बीच में ही प्रोजेक्ट छोड़कर बेच चुकी हैं। अभी यहां 70 प्रतिशत फ्लैट के पजेशन नहीं हुए हैं। कैलोदहाला गांव की तकरीबन 25 एकड़ जमीन (65 प्रतिशत खुली भूमि) पर यह सात मंजिला प्रोजेक्ट बन रहा है। कुल 1400 फ्लैट के 42 टॉवर बनना है जिसमें से कुछ पर तो काम भी शुरू नहीं हुआ।
होराइजन ग्यांस पार्क : ग्यांसपार्क कॉलोनी (टेलीफोन नगर) स्थित ग्राम खजराना की 39523 वर्गफीट जमीन पर 2009-2010 से बन रही होराइजन प्रीमियम गुलमोहर ग्यांस पार्क टाउनशिप। 2008 में स्वीकृत हुए नक्शे के अनुसार तीन ब्लॉक मंजूर हुए हैं जिनमें 1830 व 1940 वर्गफीट के तीन बीएचके और 2440 से 2475 वर्गफीट के चार बीएचके फ्लैट बने हैं, जिनकी कीमत 64 लाख से लेकर 90 लाख रुपए तक बताई जा रही है। प्रोजेक्ट में अब तक एक भी फ्लैट को पजेशन नहीं दिया गया है।
करूणासागर : ग्राम कनाड़िया 26890 वर्गमीटर जमीन पर हाईवे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. के नाम से टीएनसी व अन्य अनुमतियां हुई थी। कुल इसमें ईडब्ल्यूएस/एलआईजी सहित 6 मंजिला कुल 16 टॉवर मंजूर हुए थे। कुल 42800 वर्गमीटर निर्माण की अनुमति दी गई लेकिन बिल्डर ने भारी अवैध निर्माण किया। बुकिंग पर फ्री कार और स्कूटर के साथ ही फ्री रजिस्ट्री का आॅफर देने के बाद भी विवादों और मंदी के कारण आधे ब्लॉक अधूरे हैं।
प्रशांत सागर : करूणासागर बनाने वाली कंपनी प्रशांत सागर संचारनगर में खजराना की जमीन पर प्रशांतसागर नाम से टाउनशीप बना रही है लेकिन वह भी आज तक पूरी नहीं हो पाई। विगत पांच साल से प्रोजेक्ट निर्माणाधीन है। जमीन के मालिकाना हक के विवाद के बीच एक बार तो अनुमतियां भी रद्द हो चुकी हैं। अर्से तक काम बंद रहा।
प्लाज्जयो पार्क रेसीडेंसी : ग्राम पीपल्याकुमार की तकरीबन दो एकड़ जमीन पर टाउनशीप आकार ले रही है। पहले जी+6 के हिसाब से बिल्डिंग का काम शुरू हुआ था लेकिन आसपास ऊंची इमारतों ने प्रोजेक्ट की पूछपरख कम कर दी थी। इसीलिए कंपनी ने इसे हाइराइज की शक्ल देना शुरू कर दी। प्रोजेक्ट पर पांच साल से काम जारी है। अब तक पजेशन नहीं दिया गया। कुल तीन टॉवर है। 180 यूनिट है।
सुमेर सेफ्फरॉन सिटी : पूर्वी इंदौर की तरह पश्चिमी इंदौर (केसरबाग रोड) में भी चकाचौंध भरी जिंदगी का सपना दिखाकर 2008-09 में प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ था जो आज दिन तक पूरा नहीं हुआ। इंदौर के नरेंद्र गोरानी की जमीन पर प्रोजेक्ट को मुंबई के सुमेर ग्रुप ने शुरू किया था। प्लानिंग थी 11 हाइराइज बिल्डिंग के टॉवर बनना था। 2/3/4 बीएचके के 558 फ्लैट बनना हैं।
यह है फायदा
रेरा के लागू होने से रीयल एस्टेट को नुकसान नहीं हुआ। दुरगामी परिणाम अच्छे होंगे। बिल्डरों और प्रोजेक्ट्स पर उपभोक्ताओं के साथ ही बैंकों का भरौसा भी बढ़ेगा। वित्तीय व्यवस्था के लिए साहुकारों के आगे हाथ नहीं फैलाने होंगे।
विजय मीरचंदानी, शालीमार समूह
स्वस्थ्य प्रतियोगिता होगी। वास्तविक कारोबार बढ़ेगा। अनुशासन के साथ काम होगा। एक समय तक ही कारोबार में गिरावट नजर आएगी, बाकी सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
अखिलेश कोठारी, सिल्वर कॉरिडोर
यह हैं अन्य फायदे..
- 500 वर्ग मीटर या 8 अपार्टमेंट वाले प्रॉजेक्ट के बिल्डर के लिए जरूरी होगा कि वह रेगुलेटरी अथॉरिटी के पास खुद को रजिस्टर करवाए और प्रॉजेक्ट की पूरी जानकारी अथॉरिटी को दे।
- तय समय में प्रॉजेक्ट पूरा न होने पर खरीदारों को उतना ही ब्याज देना होगा, जितना खरीदार के भुगतान में देरी पर लिया जाएगा।
- डेवलेपर जो पैसा उपभोक्ताओं से लेते हैं, उस राशि का 70 फीसदी हिस्सा उन्हें अलग से बैंक में रखना होगा। इसका इस्तेमाल वह केवल और केवल निर्माण कार्यों में ही कर सकता है। शेष बची राशि का इस्तेमाल वह अन्य कामों के लिए कर सकता है। पहले बिल्डर इस पैसे का इस्तेमाल अपने दूसरे कामों या प्रॉजेक्ट्स में कर लेता था जिसके चलते प्रॉजेक्ट विशेष में देरी हो जाती थी।
- अगर बिल्डर प्लान में कोई बदलाव करना चाहता है, तो उसे दो-तिहाई खरीदारों की सहमति लेनी होगी। कब्जा देने के पांच साल बाद तक बिल्डिंग की जिम्मेदारी बिल्डर की ही होगी।
- केस का फैसला रेगुलेटरी अथॉरिटी को 60 दिन में करना होगा। अपीलीय ट्रिब्यूनल के लिए भी 60 दिन का वक्त रहेगा।
- गड़बड़ी करने वाले बिल्डरों के साथ ही रियल एस्टेट एजेंटों के लिए भी इस बिल में सजा का प्रावधान है। बिल्डर को तीन साल तक और एजेंट को एक साल तक कैद हो सकती है।
- बिल्डर यदि ऐसे प्रॉजेक्ट्स को कस्टमर को बेचते हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं तो उनके प्रॉजेक्ट पर पैनल्टी लगेगी।
- यह बिल कमर्शियल और रेजिडेंशल दोनों ही प्रकार के प्रोजेक्ट्स/प्रॉपर्टी पर लागू होगा और पैसे के लेन-देन पर पूरी नजर रखी जाएगी। ऐसे में यदि दुकान आदि के लिए स्पेस ले रहे हैं तो आपके हितों की रक्षा भी इस बिल के दायरे में होगी।
- रियल एस्टेट एजेंट्स भी रेगुलेटरी अथॉरिटी के साथ रजिस्टर होंगे। ऐसे में एजेंट्स के हाथों धोखाधड़ी की संभावना कम से कम होगी। एजेंट्स केवल वे ही प्रॉजेक्ट्स बेच पाएंगे जोकि रजिस्टर्ड होंगे।
- इस बिल के लागू होने के बाद एक फायदा यह होगा कि डेवलेपर की प्रॉजेक्ट संबंधित गतिविधियों में ट्रांसपैरेंसी रहेगी। पहले खरीददार केवल वही जान पाता था जो उसे बिल्डर द्वारा बताया जाता था।
-प्रॉजेक्ट में तब तक कोई बदलाव नहीं किया जा सकता जब तक की खरीददार की अनुमति न हो।
-नियमों का उल्लंघन करने पर पेनल्टी और जेल की सजा तक का प्रावधान है।
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