2008 से 2011 के बीच तीन साल में अधिकारी के साथ बदला आरोपी को लेकर नजरिया
सीएस और लोकायुक्त तक पहुंची सहायक आबकारी आयुक्त की शिकायत
इंदौर. विनोद शर्मा ।
ठेकेदारों को अवैध लाभ पहुंचाने पर लोकायुक्त पुलिस मुख्यालय ने इंदौर के जिन सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे के खिलाफ प्राथमिक जांच दर्ज करके छानबीन शुरू की है उनके खिलाफ लोकायुक्त तक एक मामला और पहुंचा है। मामला ठेकेदारों से 38.47 लाख रुपए कम वसूलकर सरकार को आर्थिक क्षति पहुंचाने का है। मामले में 2008 में आबकारी आयुक्त ने दुबे को दोषी मानते हुए उनका एक इंक्रीमेंट रोक दिया था वहीं सेटिंग के चलते 2011 में आबकारी आयुक्त ने दुबे को दोषमुक्त कर दिया। बहरहाल, मामले की भी लोकायुक्त जांच कर रहा है।
2004-05 में दुबे विदिशा में थे। इस दौरान दुबे ने तोपपुरा क्लब रंगाई, खनैक फाटक क्लब, अम्बानगर क्लब की देशी शराब दुकानों के लिए तय हुई प्रतिभूति राशि से कम राशि वसूली गई। अंटरी खेजड़ा और बासौदा मंडी जैसी देशी दुकानों से तो प्रतिभूति राशि वसूली ही नहीं गई। न लाइसेंस निरस्ती का प्रयास किया। न ही पद पर रहते हुए दुबे ने राशि जमा करवाने की कोशिश की जिससे डिपार्टमेंट को 38 लाख 47 हजार 814 रुपए का नुकसान हुआ। लाइसेंस शर्तों का उल्लंघन कर दुकान चलाने की अप्रत्यक्ष मंजूरी देकर राजस्व चोरी में दुकानदारों का साथ दिया। नवंबर 2006 में जब आरोप पत्र जारी करके दुबे से इस मामले में पूछा गया तो उन्होंने आरोपों को सिरे से नकार दिया। संतोषजनक जवाब न मिलने के कारण दिसंबर 2006 में विभागीय जांच शुरू की गई। जांच रिपोर्ट अगस्त 2007 में पेश हुई। दुबे से जवाब तलब किया जो संतोषजनक नहीं था। इसीलिए दुबे को दोषी माना गया।
दोनों आदेश पहुंचे लोकायुक्त तक
6 मई 2008 को आबकारी आयुक्त टी.धर्माराव ने जांच प्रतिवेदन के आधार पर दिए आदेश में कहा कि दुबे ने जिम्मेदारियों का पालन सही ढंग से नहीं किया। वे मामले में दोषी हैं। इसीलिए सिविल सेवा (वर्गीकरण नियंत्रण तथा अपील) नियम-1966 के नियम-10 (4) के तहत उनकी एक वेतन वृद्धि रोकने का दंड दिया।
इसी मामले में दूसरा जांच आदेश 18 जनवरी 2011 को आबकारी आयुक्त अरूण कुमार भट्ट ने मई 2008 को तत्कालीन आयुक्त आबकारी टी.धर्माराव द्वारा दुके की वेतन वृद्धि रोके जाने संबंधित दिए गए आदेश को निरस्त कर दिया। भट्ट के आदेशानुसार विदिशा में ठेकेदारों से वसूली न कर पाने के कारण हुई 38 लाख रुपए की क्षति की वजह दुबे नहीं थे। उन्होंने 2004-05 में नई आबकारी नीति के तहत लॉटरी से शराब दुकानों के ठेके दिए।
आदेशों की जांच की मांग
मुख्य सचिव बी.पी.सिंह को भी दोनों रिपोर्ट भेज दी गई है और मांग की गई है कि दोनों आदेशों की जांच हो। ताकि यह समझ आए कि संजीव दुबे की मनमानी पकड़ने वाले आयुक्त टी.धर्माराव सही थे या फिर उन्हें दोषमुक्त करने वाले अरूण भट्ट। इतना ही नहीं भट्ट ने दुबे को दोषमुक्त करने के साथ ही जिला आबकारी अधिकारी से पदोन्नत करते हुए सहायक आबकारी आयुक्त बना दिया।
विवादों से पुराना नाता है दुबे का
आबकारी विभाग के दल ने 14 नवंबर 2015 को मालवा मिल स्थित विदेशी शराब दुकान पर कार्रवाई कर पंचनामा बनाया था। इसमें शराब की विक्री न्यूनतम दर से कम पर की गई थी जो अपराध है। नियमानुसार सहायक आयुक्त को दुकान का लाइसेंस रद्द करना था लेकिन उन्होंने 5 फरवरी 2016 को पी-15 नोटिस (आदेश) पारित कर कहा कि निरीक्षण के समय पाए गए उल्लंघनों के लिए कारण बताओ नोटिस का जवाब समय पर नहीं आने से एक पक्षीय निर्णय लेते हुए 10 हजार का जुर्माना ठोका है।
खरगौन, विदिशा, रतलाम, धार तकरीबन सभी जगह विवादित कार्यकाल रहा। फिर भी उन्हें पदोन्नत कर इंदौर भेजा गया। तैनाती के बाद से ही दुबे का अवैध वसूली अभियान शुरू हो गया।
दुबे व्यापमं घोटाले में जेल में बंद खनन कारोबारी सुधीर शर्मा के चहेते ही नहीं अघोषित पार्टनर भी हैं।
सीएस और लोकायुक्त तक पहुंची सहायक आबकारी आयुक्त की शिकायत
इंदौर. विनोद शर्मा ।
ठेकेदारों को अवैध लाभ पहुंचाने पर लोकायुक्त पुलिस मुख्यालय ने इंदौर के जिन सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे के खिलाफ प्राथमिक जांच दर्ज करके छानबीन शुरू की है उनके खिलाफ लोकायुक्त तक एक मामला और पहुंचा है। मामला ठेकेदारों से 38.47 लाख रुपए कम वसूलकर सरकार को आर्थिक क्षति पहुंचाने का है। मामले में 2008 में आबकारी आयुक्त ने दुबे को दोषी मानते हुए उनका एक इंक्रीमेंट रोक दिया था वहीं सेटिंग के चलते 2011 में आबकारी आयुक्त ने दुबे को दोषमुक्त कर दिया। बहरहाल, मामले की भी लोकायुक्त जांच कर रहा है।
2004-05 में दुबे विदिशा में थे। इस दौरान दुबे ने तोपपुरा क्लब रंगाई, खनैक फाटक क्लब, अम्बानगर क्लब की देशी शराब दुकानों के लिए तय हुई प्रतिभूति राशि से कम राशि वसूली गई। अंटरी खेजड़ा और बासौदा मंडी जैसी देशी दुकानों से तो प्रतिभूति राशि वसूली ही नहीं गई। न लाइसेंस निरस्ती का प्रयास किया। न ही पद पर रहते हुए दुबे ने राशि जमा करवाने की कोशिश की जिससे डिपार्टमेंट को 38 लाख 47 हजार 814 रुपए का नुकसान हुआ। लाइसेंस शर्तों का उल्लंघन कर दुकान चलाने की अप्रत्यक्ष मंजूरी देकर राजस्व चोरी में दुकानदारों का साथ दिया। नवंबर 2006 में जब आरोप पत्र जारी करके दुबे से इस मामले में पूछा गया तो उन्होंने आरोपों को सिरे से नकार दिया। संतोषजनक जवाब न मिलने के कारण दिसंबर 2006 में विभागीय जांच शुरू की गई। जांच रिपोर्ट अगस्त 2007 में पेश हुई। दुबे से जवाब तलब किया जो संतोषजनक नहीं था। इसीलिए दुबे को दोषी माना गया।
दोनों आदेश पहुंचे लोकायुक्त तक
6 मई 2008 को आबकारी आयुक्त टी.धर्माराव ने जांच प्रतिवेदन के आधार पर दिए आदेश में कहा कि दुबे ने जिम्मेदारियों का पालन सही ढंग से नहीं किया। वे मामले में दोषी हैं। इसीलिए सिविल सेवा (वर्गीकरण नियंत्रण तथा अपील) नियम-1966 के नियम-10 (4) के तहत उनकी एक वेतन वृद्धि रोकने का दंड दिया।
इसी मामले में दूसरा जांच आदेश 18 जनवरी 2011 को आबकारी आयुक्त अरूण कुमार भट्ट ने मई 2008 को तत्कालीन आयुक्त आबकारी टी.धर्माराव द्वारा दुके की वेतन वृद्धि रोके जाने संबंधित दिए गए आदेश को निरस्त कर दिया। भट्ट के आदेशानुसार विदिशा में ठेकेदारों से वसूली न कर पाने के कारण हुई 38 लाख रुपए की क्षति की वजह दुबे नहीं थे। उन्होंने 2004-05 में नई आबकारी नीति के तहत लॉटरी से शराब दुकानों के ठेके दिए।
आदेशों की जांच की मांग
मुख्य सचिव बी.पी.सिंह को भी दोनों रिपोर्ट भेज दी गई है और मांग की गई है कि दोनों आदेशों की जांच हो। ताकि यह समझ आए कि संजीव दुबे की मनमानी पकड़ने वाले आयुक्त टी.धर्माराव सही थे या फिर उन्हें दोषमुक्त करने वाले अरूण भट्ट। इतना ही नहीं भट्ट ने दुबे को दोषमुक्त करने के साथ ही जिला आबकारी अधिकारी से पदोन्नत करते हुए सहायक आबकारी आयुक्त बना दिया।
विवादों से पुराना नाता है दुबे का
आबकारी विभाग के दल ने 14 नवंबर 2015 को मालवा मिल स्थित विदेशी शराब दुकान पर कार्रवाई कर पंचनामा बनाया था। इसमें शराब की विक्री न्यूनतम दर से कम पर की गई थी जो अपराध है। नियमानुसार सहायक आयुक्त को दुकान का लाइसेंस रद्द करना था लेकिन उन्होंने 5 फरवरी 2016 को पी-15 नोटिस (आदेश) पारित कर कहा कि निरीक्षण के समय पाए गए उल्लंघनों के लिए कारण बताओ नोटिस का जवाब समय पर नहीं आने से एक पक्षीय निर्णय लेते हुए 10 हजार का जुर्माना ठोका है।
खरगौन, विदिशा, रतलाम, धार तकरीबन सभी जगह विवादित कार्यकाल रहा। फिर भी उन्हें पदोन्नत कर इंदौर भेजा गया। तैनाती के बाद से ही दुबे का अवैध वसूली अभियान शुरू हो गया।
दुबे व्यापमं घोटाले में जेल में बंद खनन कारोबारी सुधीर शर्मा के चहेते ही नहीं अघोषित पार्टनर भी हैं।
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