Saturday, June 3, 2017

लक्ष्मीबाई मंडी में खंडेलवाल ने किया करोड़ों का खेल

व्यापारियों का सीधा आरोप
- अनाज का जावक शुल्क, सोरन के अनाज, सदस्यता शुल्क और प्रवेश शुल्क का 25 साल से कोई हिसाब नहीं
इंदौर. विनोद शर्मा ।
लक्ष्मीबाई अनाज मंडी की व्यापारी एसोसिएशन में 25 साल से अध्यक्ष पद पर काबिज प्रेमस्वरूप खंडेलवाल को लेकर मुखर हुए व्यापारियों ने अब उन पर करोड़ों की हेराफेरी का आरोप लगाया है। व्यापारियों का साफ कहना है कि व्यापारियों की एफडी पर मिलने वाले ब्याज के साथ ही अध्यक्ष महोदय अब तक चार करोड़ से ज्यादा का सोरन का अनाज हजम कर चुके हैं। हालांकि अध्यक्ष का कहना है कि वे अनाज से एसोसिएशन में काम करने वाले मजदूरों को तनख्वाह बांट रहे हैं।
लक्ष्मीबाई अनाज मंडी 55 साल पुरानी मंडी है। इसमें कांग्रेस नेता कमलेश खंडेलवाल के पिता प्रेमस्वरूप खंडेलवाल व्यापार न होने के बाद भी व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष बने बैठे हैं। खंडेलवाल की मुखालफत करने वाले व्यापारियों के बीच बैठकों का दौर सप्ताहभर से शुरू हुआ है। सोमवार को हुए हंगामे के बाद मंगलवार को एक बार फिर व्यापारियों ने खंडेलवाल के खिलाफ मोर्चा खोला। बताया कि खंडेलवाल 50 रुपए से 251 रुपए/वार्षिक तक हो चुके सदस्यता शुल्क और 1000 रुपए के प्रवेश शुल्क का हिसाब नहीं दे रहे हैं। इतना ही नहीं मंडी में आने वाले माल की जावक पर लगने वाले शुल्क (25 पैसे/बोरी) का लेखाजोखा भी अध्यक्ष के पास नहीं है।
ऐसे समझें घपला
गेहूं/सोयाबीन के सीजन में हर दिन 18 से 20 हजार बोरी गेहूं, 3-4 हजार बोरी चना, 3-5 हजार बोरी सोयाबीन की आवाक रहती है। ऐसे हर दिन करीब 25 हजार बोरी अनाज आता-जाता है। एक महीने में मंडी 20 दिन चलती ही है। एक बोरी पर जावक शुल्क 25 पैसे है इस मान से हर दिन का शुल्क हुआ 6250 रुपए। मंडी 20 दिन तो चालू रहती ही है। 6250रुपए/रोज के हिसाब से महीने में शुल्क मिला 1.25 लाख। गेहूं/सोयाबीन दोनों के सीजन यदि तीन-तीन महीने के भी रहे तो कुल शुल्क मिला 7.5 लाख रुपए। बाकी छह महीने आॅफ सीजन रहता है। इस दौरान हर दिन औसत 7000 बोरी अनाज आता है जिससे महीने में 35000 रुपए का जावक शुल्क मिलता है।  पूरे आॅफ सीजन में मिले 2.10 लाख। कुल शुल्क मिलाना 9.6 लाख रुपए। 25 साल में यह राशि हुई। इस पूरी अवधि में 2.40 करोड़ रुपए का शुल्क मिला जिसका कोई हिसाब आज तक पेश नहीं किया अध्यक्ष ने।
बिखरे अनाज में भी खेल
निलामी और माल तुलाई के साथ ही व्यापारी द्वारा किए जाने वाले ढेर पाले के बाद जो अनाज बिखरता है उसे एसोसिएशन इकट्ठा करता है। व्यापारियों के अनुसार सीजन में दो और आॅफ सीजन में एक बोरी सोरन का अनाज इकट्ठा होता है। औसतन डेढ़ बोरी रोज। इस अनाज की औसत कीमत 2000 रुपए/बोरी होती है जिसे एसोसिएशन बेचता है। संस्था सालाना 10 लाख से ज्यादा की 547 बोरी अनाज बिकता है। 25 साल में इसका भी हिसाब नहीं मिला।
दान की आड़ में खेल
व्यापारियों का आरोप है खंडेलवाल ने सोरन के अनाज और जावक शुल्क से मिलने वाले रकम की अफरा-तफरी दान-धर्म के नाम पर की। स्वयं की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए खंडेलवाल यदि कहीं दान करते भी हैं तो अपने नाम से करते हैं जबकि रसीद बताई जाती है एसोसिएशन के खाते में।
15 दिन में हिसाब दे दूंगा
सोरन में इतना अनाज नहीं निकलता जितना की व्यापारी आरोप लगा रहे हैं। जितना अनाज निकलता है उसे साफ करवाकर बेचते हैं और एसोसिएशन में काम कर रहे कर्मचारियों की तनख्वाह निकालते हैं। हमने एसोसिएशन की बिल्डिंग भी पैसा इकट्ठा करके बनाई है, किसी व्यापारी से मदद नहीं ली। 16 साल से कोषाध्यक्ष न होने के कारण हिसाब में देर हो रही है। मैं 15 दिन में हिसाब दे दूंगा।
प्रेमस्वरूप खंडेलवाल, अध्यक्ष

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