Friday, June 2, 2017

मदद में मांगी 50% हिस्सेदारी, नहीं मिली तो राशि सरकार को लौटा दी

सिनर्जी हॉस्पिटल का नया कारनामा
दो महीने से 75 हजार जमा है फिर भी नहीं की पप्पू की सर्जरी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जनसेवा के नाम पर इंदौर विकास प्राधिकरण से रियायती जमीन लेकर अस्पताल खड़ा करने वाले सिनर्जी हॉस्पिटल प्रबंधन ने मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान मद से मिलने वाली राशि को कमाई का जरिया बना लिया है। मद से 75 हजार रुपए मिलने के बाद भी रिंगनोदिया के मुक-बधिर विकलांग पप्पू परमार को डेÑेसिंग करके चलता करते आ रहे सिनर्जी पर इससे पहले कमलेश गांधी भी अमानत में खयानत का आरोप मढ़ चुके हैं।  सरकारी जांच में आरोप की पुष्टि होने के बाद भी  स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने सिनर्जी पर कोई कार्रवाई नहीं की।
स्वेच्छानुदान को लेकर सिनर्जी की बदनीयती का खुलासा दबंग दुनिया ने 30 मई को ‘सिनर्जी ने नहीं की सर्जरी’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। खुलासे के बावजूद जहां पप्पू को लेकर हॉस्पिटल मैनेजमेंट का मन नहीं पसीजा वहीं मैनेजमेंट की मनमानी के मारे लोग दबंग दुनिया पहुंचे और आप बीती सुनाई। मामले में सबसे रोचक कहानी सामने आई पश्चिम क्षेत्र में रहने वाले कमलेश गांधी की। 21 जून 2015 को हुए सड़क हादसे में गांधी के पैर और सिर में चोट आई थी। गंभीर अवस्था में पहले एमवायएच ले जाया गया वहां से  कनक हॉस्पिटल। कनक हॉस्पिटल ने सिनर्जी रेफर कर दिया। सिनर्जी में दस दिन ईलाज चला जिस पर तकरीबन 2.64 लाख रुपए खर्च हुए। इसके बदले गांधी परिवार के आवेदन पर मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान मद से डेढ़ लाख रुपए मंजूर हुए। मैंनेजमेंट ने पहले 30 फीसदी हिस्सेदारी मांगी। फिर 50 फीसदी। गांधी परिवार के मना करने  पर यह कहते हुए हाथ खड़े कर कि राशि लौटा दी जबकि राशि ऐसा कहने के महीनेभर बाद तक अस्पताल द्वारा इस्तेमाल की जाती रही।
यूं बढ़ता रहा अस्पताल का बिल
कनक से गांधी को सिनर्जी में सीधे आईसीयू में भर्ती किया गया था। दो दिन तक बेहोश रहा। हर दिन 25 हजार रुपए लगे। आठवें दिन पैर का आॅपरेशन हुआ। शुरू में आॅपरेशन के 35 हजार बताए। बाद में 85 हजार वसूले। सिर और पैर पर कुल 2.64 लाख रुपए खर्च हुए। गांधी को बचाने के लिए परिवार ने 4 प्रतिशत ब्याज का कर्ज लेकर राशि जुटाई और अस्पताल में जमा की।
मदद मिली तो आपकी जमा रकम लौटा देंगे
मैनेजमेंट ने गांधी परिवार से कहा ईलाज के लिए खर्च जरूरी है। अभी आप जोड़तोड़ करके खर्च उठा लो। मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से  मदद मिलेगी तो हम आपको दे देंगे। इसी भरौसे के साथ गांधी परिवार ने खर्च चुकाया। 23 जुलाई 2015 को 1.50 लाख की सहायता राशि मंजूर हुई। 10 अगस्त तक अस्पताल के खाते में पहुंच गई। तब तक गांधी की छूट्टी हो चुकी थी। 13 अगस्त को परिवार पहुंचा तो आश्वासन मिला कि एक-दो दिन में चेक बना देंगे।
फिर काटते रहे चक्कर
13 अगस्त के बाद परिवार  24 अगस्त को फिर अस्पताल पहुंचा उसी आश्वासन के साथ लौट आया। 30 अगस्त को तीसरी बार गए। इस बार मैनेजमेंट ने कहा 30 प्रतिशत राशि हम काटेंगे। परिवार ने हां कर दी। मैनेजमेंट ने कहा दो-तीन बाद आकर चेक ले जाना। बाद में जब परिवार पहुंचा तो मैनेजमेंट ने कहा कि 50-50 बटेगा पैसा। इस बार परिवार ने मना कर दिया। इससे खिसयाये मैनेजमेंट ने राशि सरकार को लौटा दी।
हर जगह हुई शिकायत
मामले की शिकायत गांधी परिवार ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 181, प्रभारी मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह, संभागायुक्त संजय दुबे, कलेक्टर पी.नरहरि, सीएमएचओ रहे डॉ.पोरवाल, डीआईजी और विजयनगर थाने में की।
जांच में हुई आरोपों की पुष्टि
मामले में तीन लोगों की जांच कमेटी बनाई गई। जांच पीसी.सेठी हॉस्पिटल के चिकित्सा अधिकारी डॉ. माधव हासानी, जिला स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण अधिकारी  जी.एल.सोढ़ी और जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. एम.सी.जिनवाल ने की। तीनों ने 18 दिसंबर 2015 को जांच रिपोर्ट सबमिट की जिसमें अस्पताल पर लगाए गए आरोप सत्य पाए गए। रिपोर्ट के अनुसार अस्पताल प्रबंधन द्वारा 12 अक्टूबर 2015 को चेक (क्रमांक 267) के माध्यम से स्वेच्छानुदान की राशि शासन को लौटाना बताया गया लेकिन यह राशि खाते से 21 अक्टूबर 2015 को अस्पताल द्वारा निकाली जाना पाई गई।  दस्तावेजों की जांच में पता चला कि अस्पताल के खाते में यह राशि दो महीने तक पड़ी रही जबकि एक महीने तक ही रख सकता है। शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत में जिस अवधि का उल्लेख किया गया था उस अवधि में यह राशि चिकित्सालय के खाते में ही उपलब्ध थी। यह भी पाया गया कि कमलेश के ईलाज के बाद परिवार द्वारा बिल भुगतान किए जाने के बाद भी मैनेजमेंट दो महीने तक यह राशि अपने खाते में रखकर बैठा रहा जिससे उसकी मंशा पर सवाल उठना लाजमी है। 

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