एनएबीएच मान्यता जबलपुर शैलबी को, सर्जरी का वादा इंदौर में, बाद में दिखाया जबलपुर का रास्ता
आरबीएसके की दखल से दूसरे अस्पतालों में हुआ आॅपरेशन, कुछ को अब भी इंतजार
इंदौर. विनोद शर्मा ।
अपने डीजीएम के पिता के ईलाज में लापरवाही करने और लापरवाही के खिलाफ आवाज उठाने पर डीजीएम को टर्मिनेट करने वाले शैलबी हॉस्पिटल के गोलमाल की सजा हृदयरोग से जूझ रहे मासूम भी भुगत रहे हैं। मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना के तहत नेशनल एक्रिडिएशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हैल्थकेअर (एनएबीएच) से एक्रिडिएशन के बिना ही शैलबी इंदौर ने मालवा-निमाड़ के बाल हृदयरोगियों के उपचार की हामी भर दी, जब बारी सर्जरी की आई तो उन्हें शैलबी जबलपुर का रास्ता दिखा दिया, जो रोगियों के लिए मुश्किल था। अंतत: राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम (आरबीएसके) के अधिकारियों को रोगियों का आॅपरेशन दूसरे अस्पतालों में करवाना पड़ा।
आरबीएसके के तहत मप्र सरकार ने मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना शुरू की थी। योजना के तहत गांव, कस्बों और शहरों में शिविर लगाकर बाल हृदय रोगियों को चिह्नित किया जाना था ताकि बाद में उनका ईलाज एनएबीएच से एक्रिडेटेड किसी अस्पताल में कराया जा सके। शैलबी ने इंदौर और जबलपुर दोनों हॉस्पिटल के एनएबीएच एक्रिडेशन का आवेदन किया लेकिन एक्रिडेशन हुआ सिर्फ जबलपुर हॉस्पिटल का। इस एक्रिडेशन के दम पर शैलबी ने शिविर में भाग लेकिन मालवा-निमाड़ के पेशेंट्स को कहा कि आपका आॅपरेशन इंदौर में ही कर देंगे। मैनेजमेंट से मोटी कमीशन लेकर बैठे आरबीएसके के जिम्मेदार अधिकारी मामले में यह कहते हुए चुप्पी साधे बैठे रहे कि शैलबी इंदौर का एक्रिडेशन भी जल्द हो जाएगा जो कि अब तक नहीं आया।
झाबुआ सीएमएचओ की चिट्ठी ने फोड़ा भांडा
शिविर में झाबुआ जिले के हार्ट पेशेंट भी चिह्नित किए गए थे। जिसका जिक्र सीएमएचओ झाबुआ द्वारा 7 फरवरी 2017 को विजयनगर जबलपुर स्थित शैलबी हॉस्पिटल के संचालक को लिखे पत्र (एनएचएम/आरबीएसके/2017/1569) में भी था। पत्र में सीएमएचओ ने लिखा कि आरबीएसके प्रोसिजर कोट के अनुसार आपके द्वारा आवश्यक जांच उपरांत बाल हृदयरोगियों का पाकलन प्रस्तुत किया गया था। आपको निर्देशित किया जाता है वर्णित हितग्राहियों की सर्जरी या उपचार कर उपयोगिता प्रमाण-पत्र, डिस्चार्ज टिकट, आईपीडी बिल इस कार्यालय में भेजें ताकि योजना के तहत स्वीकृत राशि का भुगतान आपके खाते में किया जा सके।
यह भेजी मरीजों की सूची
मरीज का नमा निवासी स्वीकृत राशि
सपना पिता मांगीलाल धतुरिया पेटलावद 1,70,000
यादेश पिता कालिया देवझिरी, झाबुआ 1,00,000
पूर्वा पिता धर्मेंद्र ऋृतुराजल कॉलोनी थांदला 1,85,000
कटू पिता तानसिंह काकनवानी, थांदला 1,80,000
भावना पिता मांगीलाल करड़ावद झाबुआ 95,000
नेहा पिता मनोज खालखंडवी, मेघनगर 1,55,000
अश्विन पिता राजेश थांदला 95,000
(इनमें 6 पेशेंट 1 से 6 वर्ष के है जबकि एक 17 साल की है।)
मरीज पूरब के ईलाज पश्चिम में
एनएबीएच के तहत मप्र में कुल 14 और इंदौर में पांच हॉस्पिटल एक्रिडेटेड हैं। बॉम्बे हॉस्पिटल, ग्रेटर कैलाश, सीएचएल हॉस्पिटल, मेदांता और चोइथराम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के नाम सूची में हैं। सभी अस्पताल आरबीएसके के अभियान में शामिल हैं। बावजूद इसके शैलबी की फरेब में शामिल अधिकारियों ने झाबुआ के बाल हृदयरोगियों को जबलपुर का रास्ता दिखा दिया जो कि झबुआ से 708 किलोमीटर दूर है। झाबुआ मप्र का एक कोना है तो जबलपुर दूसरा कोना। ऐसे सिर्फ झाबुआ ही नहीं उज्जैन, धार, बड़वानी, खंडवा, देवास सभी जगह किया गया।
बच्चों की जान पर ही बन आई
जबलपुर अस्पताल के लिए चिह्नित किए गए बच्चों के शैलबी इंदौर में ईलाज की तैयारियों की भनक लगते ही स्वास्थ्य विभाग ने कड़ी आपत्ति ली। घबराए शैलबी इंदौर ने बच्चों के आॅपरेशन या उपचार से मना कर दिया। कहा कि उपचार/आॅपरेशन जबलपुर में होगा। इससे मरीज और परिजनों की हालत खराब हो गई। मामला आरबीएसके पहुंचा। इस बीच यादेश और कटू की हालत ज्यादा बिगड़ी। अधिकारियों ने यादेश का केस ग्रेटर कैलाश ट्रांसफर किया लेकिन अस्पताल ने मना दिया। फिर भंडारी में सर्जरी हुई। ऐसे ही कटू की सर्जरी अरविंदो में हुई।
अब भी नहीं माना शैलबी
अनबेलेंस्ड एविसेनल से पीड़ित सपना पिता मांगीलाल की सर्जरी अब भी नहीं हुई है जबकि फरवरी में ही 1.70 लाख रुपया स्वीकृत हो चुका है। फरवरी में दो महीने का वक्त देकर अस्पताल ने टाल दिया था। आठ दिन पहले परिवार ने बात हुई लेकिन परिवार के बुजुर्ग के पैर पर बेलगाड़ी चढ़ जाने से सपना को इंदौर नहीं लाया जा सका। सर्जरी इंदौर में ही करने पर अड़ा है शैलबी।
जबलपुर को भी ले-देकर किया था शामिल
दस्तावेजों के लिहाज से बात करें तो एनएबीएच में शैलबी जबलपुर का एक्रिडेशन हुआ 22 दिसंबर 2016 में। मान्यता 22 दिसंबर 2016 से 21 दिसंबर 2019 तक के लिए दी गई है। इस बीच अस्पताल का नी-रिप्लेसमेंट सर्टिफिकेट एक्सपायर हो गया था जिसके रिनुअल के लिए आवेदन किया गया था वहीं कार्डियक सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया गया। विधिवत मंजूरी मिले बिना ही शैलबी जबलपुर को अभियान में भागीदार बनाया गया। 22 दिसंबर को मान्यता मिलने के साथ ही अस्पताल ने जनवरी में मरीज चिह्नित कर लिए कि उन्हें फरवरी के पहले सप्ताह में ही सर्जरी के लिए भेजना पड़ा।
मामले की तफ्तीश के लिए दबंग टीम ने बतौर मरीज झाबुआ के आरबीएसके कॉर्डिनेटर सुभाष से बात की।
साहब शैलबी हमारा ईलाज नहीं कर रहा है?
-- कौन बोल रहे हैं?
यादेश डामोर का चाचा बोल रहे हैं?
-- हमने यादेश को भंडारी तो भेजा था।
हां, लेकिन ईलाज तो शैलबी में होना था?
-- आप समझते नहीं है, इंदौर शैलबी ने कहा था कि एक्रिडेटेड हो जाएगा लेकिन हुआ नहीं है।
तो मरीज झाबुआ से जबलपुर क्यों जाएं?
-- हम समझते हैं न इसीलिए तो यादेश को ग्रेटर कैलाश पहुंचाया था वहां मना किया तो भंडारी पहुंचाया।
मना क्यों कर रहे हैं, सब?
केस जब ज्यादा क्रिटीकल हो जाता है तो हर कोई हाथ लगाने से डरता है। वैसे भी यादेश सालभर का बच्चा तो है, कितना मुश्किल है उसके लिए सर्जरी कराना।
अभी भी कई लोग परेशान हैं?
पता है लेकिन जैसे-जैसे हमारे सामने मामले आ रहे हैं, निपटा रहे हैं। क्या करें।
आरबीएसके की दखल से दूसरे अस्पतालों में हुआ आॅपरेशन, कुछ को अब भी इंतजार
इंदौर. विनोद शर्मा ।
अपने डीजीएम के पिता के ईलाज में लापरवाही करने और लापरवाही के खिलाफ आवाज उठाने पर डीजीएम को टर्मिनेट करने वाले शैलबी हॉस्पिटल के गोलमाल की सजा हृदयरोग से जूझ रहे मासूम भी भुगत रहे हैं। मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना के तहत नेशनल एक्रिडिएशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हैल्थकेअर (एनएबीएच) से एक्रिडिएशन के बिना ही शैलबी इंदौर ने मालवा-निमाड़ के बाल हृदयरोगियों के उपचार की हामी भर दी, जब बारी सर्जरी की आई तो उन्हें शैलबी जबलपुर का रास्ता दिखा दिया, जो रोगियों के लिए मुश्किल था। अंतत: राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम (आरबीएसके) के अधिकारियों को रोगियों का आॅपरेशन दूसरे अस्पतालों में करवाना पड़ा।
आरबीएसके के तहत मप्र सरकार ने मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना शुरू की थी। योजना के तहत गांव, कस्बों और शहरों में शिविर लगाकर बाल हृदय रोगियों को चिह्नित किया जाना था ताकि बाद में उनका ईलाज एनएबीएच से एक्रिडेटेड किसी अस्पताल में कराया जा सके। शैलबी ने इंदौर और जबलपुर दोनों हॉस्पिटल के एनएबीएच एक्रिडेशन का आवेदन किया लेकिन एक्रिडेशन हुआ सिर्फ जबलपुर हॉस्पिटल का। इस एक्रिडेशन के दम पर शैलबी ने शिविर में भाग लेकिन मालवा-निमाड़ के पेशेंट्स को कहा कि आपका आॅपरेशन इंदौर में ही कर देंगे। मैनेजमेंट से मोटी कमीशन लेकर बैठे आरबीएसके के जिम्मेदार अधिकारी मामले में यह कहते हुए चुप्पी साधे बैठे रहे कि शैलबी इंदौर का एक्रिडेशन भी जल्द हो जाएगा जो कि अब तक नहीं आया।
झाबुआ सीएमएचओ की चिट्ठी ने फोड़ा भांडा
शिविर में झाबुआ जिले के हार्ट पेशेंट भी चिह्नित किए गए थे। जिसका जिक्र सीएमएचओ झाबुआ द्वारा 7 फरवरी 2017 को विजयनगर जबलपुर स्थित शैलबी हॉस्पिटल के संचालक को लिखे पत्र (एनएचएम/आरबीएसके/2017/1569) में भी था। पत्र में सीएमएचओ ने लिखा कि आरबीएसके प्रोसिजर कोट के अनुसार आपके द्वारा आवश्यक जांच उपरांत बाल हृदयरोगियों का पाकलन प्रस्तुत किया गया था। आपको निर्देशित किया जाता है वर्णित हितग्राहियों की सर्जरी या उपचार कर उपयोगिता प्रमाण-पत्र, डिस्चार्ज टिकट, आईपीडी बिल इस कार्यालय में भेजें ताकि योजना के तहत स्वीकृत राशि का भुगतान आपके खाते में किया जा सके।
यह भेजी मरीजों की सूची
मरीज का नमा निवासी स्वीकृत राशि
सपना पिता मांगीलाल धतुरिया पेटलावद 1,70,000
यादेश पिता कालिया देवझिरी, झाबुआ 1,00,000
पूर्वा पिता धर्मेंद्र ऋृतुराजल कॉलोनी थांदला 1,85,000
कटू पिता तानसिंह काकनवानी, थांदला 1,80,000
भावना पिता मांगीलाल करड़ावद झाबुआ 95,000
नेहा पिता मनोज खालखंडवी, मेघनगर 1,55,000
अश्विन पिता राजेश थांदला 95,000
(इनमें 6 पेशेंट 1 से 6 वर्ष के है जबकि एक 17 साल की है।)
मरीज पूरब के ईलाज पश्चिम में
एनएबीएच के तहत मप्र में कुल 14 और इंदौर में पांच हॉस्पिटल एक्रिडेटेड हैं। बॉम्बे हॉस्पिटल, ग्रेटर कैलाश, सीएचएल हॉस्पिटल, मेदांता और चोइथराम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के नाम सूची में हैं। सभी अस्पताल आरबीएसके के अभियान में शामिल हैं। बावजूद इसके शैलबी की फरेब में शामिल अधिकारियों ने झाबुआ के बाल हृदयरोगियों को जबलपुर का रास्ता दिखा दिया जो कि झबुआ से 708 किलोमीटर दूर है। झाबुआ मप्र का एक कोना है तो जबलपुर दूसरा कोना। ऐसे सिर्फ झाबुआ ही नहीं उज्जैन, धार, बड़वानी, खंडवा, देवास सभी जगह किया गया।
बच्चों की जान पर ही बन आई
जबलपुर अस्पताल के लिए चिह्नित किए गए बच्चों के शैलबी इंदौर में ईलाज की तैयारियों की भनक लगते ही स्वास्थ्य विभाग ने कड़ी आपत्ति ली। घबराए शैलबी इंदौर ने बच्चों के आॅपरेशन या उपचार से मना कर दिया। कहा कि उपचार/आॅपरेशन जबलपुर में होगा। इससे मरीज और परिजनों की हालत खराब हो गई। मामला आरबीएसके पहुंचा। इस बीच यादेश और कटू की हालत ज्यादा बिगड़ी। अधिकारियों ने यादेश का केस ग्रेटर कैलाश ट्रांसफर किया लेकिन अस्पताल ने मना दिया। फिर भंडारी में सर्जरी हुई। ऐसे ही कटू की सर्जरी अरविंदो में हुई।
अब भी नहीं माना शैलबी
अनबेलेंस्ड एविसेनल से पीड़ित सपना पिता मांगीलाल की सर्जरी अब भी नहीं हुई है जबकि फरवरी में ही 1.70 लाख रुपया स्वीकृत हो चुका है। फरवरी में दो महीने का वक्त देकर अस्पताल ने टाल दिया था। आठ दिन पहले परिवार ने बात हुई लेकिन परिवार के बुजुर्ग के पैर पर बेलगाड़ी चढ़ जाने से सपना को इंदौर नहीं लाया जा सका। सर्जरी इंदौर में ही करने पर अड़ा है शैलबी।
जबलपुर को भी ले-देकर किया था शामिल
दस्तावेजों के लिहाज से बात करें तो एनएबीएच में शैलबी जबलपुर का एक्रिडेशन हुआ 22 दिसंबर 2016 में। मान्यता 22 दिसंबर 2016 से 21 दिसंबर 2019 तक के लिए दी गई है। इस बीच अस्पताल का नी-रिप्लेसमेंट सर्टिफिकेट एक्सपायर हो गया था जिसके रिनुअल के लिए आवेदन किया गया था वहीं कार्डियक सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया गया। विधिवत मंजूरी मिले बिना ही शैलबी जबलपुर को अभियान में भागीदार बनाया गया। 22 दिसंबर को मान्यता मिलने के साथ ही अस्पताल ने जनवरी में मरीज चिह्नित कर लिए कि उन्हें फरवरी के पहले सप्ताह में ही सर्जरी के लिए भेजना पड़ा।
मामले की तफ्तीश के लिए दबंग टीम ने बतौर मरीज झाबुआ के आरबीएसके कॉर्डिनेटर सुभाष से बात की।
साहब शैलबी हमारा ईलाज नहीं कर रहा है?
-- कौन बोल रहे हैं?
यादेश डामोर का चाचा बोल रहे हैं?
-- हमने यादेश को भंडारी तो भेजा था।
हां, लेकिन ईलाज तो शैलबी में होना था?
-- आप समझते नहीं है, इंदौर शैलबी ने कहा था कि एक्रिडेटेड हो जाएगा लेकिन हुआ नहीं है।
तो मरीज झाबुआ से जबलपुर क्यों जाएं?
-- हम समझते हैं न इसीलिए तो यादेश को ग्रेटर कैलाश पहुंचाया था वहां मना किया तो भंडारी पहुंचाया।
मना क्यों कर रहे हैं, सब?
केस जब ज्यादा क्रिटीकल हो जाता है तो हर कोई हाथ लगाने से डरता है। वैसे भी यादेश सालभर का बच्चा तो है, कितना मुश्किल है उसके लिए सर्जरी कराना।
अभी भी कई लोग परेशान हैं?
पता है लेकिन जैसे-जैसे हमारे सामने मामले आ रहे हैं, निपटा रहे हैं। क्या करें।
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