Saturday, June 3, 2017

‘कन्यादान’ में कमीशनबाजी

कन्यादान की चांदी में खोट, खरीदी से पहले जांच तक नहीं होती
- मिलावटखोरों के आगे मुख्यमंत्री की मेहनत मटियामेट
इंदौर. विनोद शर्मा ।
भोपाल में कन्यादान योजना के तहत वधू को नकली चांदी के जेवर थमाकर इंदौर के वाइबर डायमंड ज्वैलर ने जहां मुख्यमंत्री के सपनों पर पानी फेरा है वहीं दिए जाने वाले जेवर की गुणवत्ता को लेकर बरती जा रही लापरवाही भी उजागर कर दी है। मामले ने सरकार ने ज्वैलरी की गुणवत्ता के लिए तय मापदंड या उन्हें परखने के लिए जिस जिला स्तरीय समिति को जिम्मेदारी सौंपी हैं उसके गैरजिम्मेदाराना रवैये की हकीकत बयां कर दी। खुलासे के बाद दबंग दुनिया ने पड़ताल की तो पता चला कि जिस इंदौर के ज्वैलर भोपाल में नकली चांदी टिका रहे हैं उस शहर में कभी ज्वैलरी की जांच नहीं हुई।
मप्र में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना 2006 से चल रही है। इन 11 वर्षों में वर-वधू को दी जाने वाली सामग्रियों को लेकर समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं। मौजूदा मापदंडों के अनुसार वधू को चांदी की पायजेब-बिछिया और कपड़ों के साथ सात बर्तन भी दिए जाते हैं। इन सभी सामान की खरीदी टेंडर से होती है। 29 अपै्रल को भोपाल में हुई शादी के लिए भी इन तमाम प्रक्रियाओं का पालन करके ज्वैलरी खरीदी गई जो सप्ताहभर में ही काली पड़ गई। मामले में दबंग दुनिया ने इंदौर में हकीकत जानी। पता चला कि यहां जनपद और नगर निगम स्तर पर ज्वैलरी की खरीदी होती है।  65 टंच चांदी जरूरी है, हालांकि कभी इस बात की तस्दीक नहीं की गई कि जिस ज्वैलर को ठेका दिया है उसने जो चांदी दी है वह मापदंड के अनुरूप है भी या नहीं?
टंच को लेकर शहरवार बदलते हैं नियम
बड़ी बात यह है कि चांदी की गुणवत्ता को लेकर एकसूत्रीय मापदंड नहीं है। समाज कल्याण विभाग, जनपद और नगर निगम ने खरीदी के लिए इंदौर में 65 टंच की चांदी अनिवार्य कर रखी है वहीं अन्य शहरों में कहीं 70 टंच, तो कहीं 80 टंच चांदी की डिमांड की जाती है। नजदीकी शहर धार में 3 अपै्रल 2017 में पायजेब के लिए 75 टंच और बिछिया के लिए 60 टंच चांदी अनिवार्य की गई।
जनपद में खरीदी
पहले काम समाज कल्याण विभाग के पास था अब जनपद खरीदी करती है। कई बार बिना ई-टेंडर के खरीदी हो जाती है। गुणवत्ता को लेकर मापदंड तय नहीं है। गुणवत्ता जांचने की जिम्मेदारी जिलास्तरीय समिति की है लेकिन गुणवत्ता को लेकर कभी कोई बैठक नहीं हुई।
नगर निगम की खरीदी ऐसे
नगर निगम में चांदी व अन्य सामान की खरीदी करने वाले विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि चांदी की केटेगरी 60 से 65 टंच तय है जो सामान्यत: बाजार में भी तय है। ई-टेंडर से खरीदते हैं। शुरूआत में एक-दो बार गुणवत्ता जांची, सही निकली। फिर कभी चेक नहीं की। बीते दिनों ज्वैलरी खरीदी के लिए तीन-चार बार टेंडर निकाले गए लेकिन किसी ने रुचि नहीं ली। नए सिरे से टेंडर जारी कर रहे हैं।
ऐसे भी करते हैं खेल...
अपै्रल में धार में हुई टेंडर प्रक्रिया सवालों के घेरे में रही। पायजेब के लिए 75 टंच ओर बिछिया के लिए 60 टंच चांदी तय हुई। 5 कंपनियों ने रुचि ली।   आभूषण के लिए इन्दौर की एक फर्म की दरें न्युनतम रही। औसत के हिसाब से बात करें तो  70 टंच चांदी 1 ग्राम वजन की लागत  35 रुपये आंकी गई जबकि इन्दौर की एक फर्म ने 1% वेट टेक्स व 2.5% टीडीएस के साथ इसकी न्युनतम दर 32.75 पैसे/ग्राम का टेंडर डाला। टैक्स काटकर करीब 31.62रुपए/ग्राम जो कि औसत मुल्य से 3.38 रुपए/ग्राम कम है। इतनी कम दरों पर दिए जाने वाले आभूषण की गुणवत्ता जांचना जरूरी थी जो मोटी कमीशन लेकर नहीं जांची जाती।
पहले भी खूली कान्यादान की पोल
2014 में छतरपुर के लवकुशनगर में दर्ज हुई शिकायत के अनुसार जहां सोने का मंगलसूत्र का वजन 1 ग्राम देना था वहां जांच में 700 मिलीग्राम दिया गया। शुद्धता की बात करें तो 50 से 55 प्रतिशत ही थी जबकि 80 प्रतिशत प्रस्तावित थी। वहीं चांदी में पायल व बिछिया में 44.20 टंच ही चांदी ही दी गई।
जर्मन सिल्वर को बता देते हैं चांदी
चांदी की कीमत 40 हजार रुपए किलोग्राम है। बनवाई 500-600 रुपए/किलोग्राम पड़ती है। वहीं जर्मन सिल्वर 1000-1500 रुपए/किलोग्राम आता है जो दिखता चांदी जैसा ही है। इसीलिए मुनाफाखोरी करने वाले ज्वैलर जर्मन सिल्वर से बनाकर उस पर चांदी की पॉलिश कर देते हैं। मतलब जर्मन सिल्वर को चांदी की कीमत 40500 या 40600 रुपए/किलोग्राम पर बेचकर ऐसे ज्वैलर 37 से 38 हजार रुपए/किलोग्राम तक का मुनाफा कमा जाते हैं।
(सराफे के एक बड़े कारोबारी ने जैसा बताया)

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