Saturday, June 3, 2017

अपनी जमीन पर दूसरे का नक्शा पास कर दिया नगर निगम ने

- विशिष्ट कॉलेज की जांच तक नहीं करना चाहता विभाग
इंदौर. विनोद शर्मा ।
सार्वजनिक उपयोग के लिए सरकारी जमीन ढूंढे नहीं मिल रही है वहीं नगर निगम अपनी ही जमीन पर विशिष्ट कॉलेज वाली बिल्डिंग का नक्शा पास किए हुए बैठा है। हैरानी तो यह है कि मामले का खुलासा होने के बाद भी निगम प्रशासन ने मौका मुआयना तो दूर दराजों में धूल खा रही फाइलों को खंगालना तक वाजिब नहीं समझा।
  संभागायुक्त और निगमायुक्त तक पहुंची शिकायत के अनुसार, भागीरथपुरा के सर्वे नं. 65/5 की 4400 वर्गफीट जमीन असल में म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के खसरा नंबर 8776 का हिस्सा है। इस जमीन के फर्जी दस्तावेजों से बिरदीचंद जैन और मन्नुभाई पिता रणजीतलाल सौमय्या ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जमीन हथियाई और नक्शा मंजूरी के लिए आवेदन कर दिया। अपनी जेबखर्ची लिए बैठे नगर निगम के अधिकारियों ने भी आनन-फानन में 26 मई 1984 को जी+2 बिल्डिंग का औद्योगिक उपयोग के लिए नक्शा पास कर दिया।
अपनी फाइलें खोलकर देखी तक नहीं निगम ने
जमीन नगर निगम के मालिकी की है? यह बात नगर निगम को उस वक्त पता नहीं थी। ऐसा भी नहीं है। 1981-82 में जब मन्नुलाल सौमय्या ने जमीन लीज पर लेने के लिए आवेदन किया था। इसी आवेदन के संदर्भ में  नजूल ने 2 नवंबर 1982 को मामले में आयुक्त नगर पालिक निगम को पत्र (1144) लिखा। बताया कि जमीन नजूल की नहीं है, नगर निगम के मालिकी है। क्या इसे लीज पर दिया जा सकता है? ऐसा ही पत्र नजूल ने आयुक्त को 31 अगस्त 1982 को भी लिखा था।  2 दिसंबर 1982 को नगर निगम आयुक्त ने नजूल को पत्र (5427) लिखा और स्पष्ट कर दिया कि जमीन लीज पर नहीं दी जा सकती।
लीज पर नहीं दी, नक्शा पास कर दिया
आयुक्त के बाद निगम के संपदा अधिकारी ने भी 5 जून 1984 को पत्र लिखा और स्पष्ट कर दिया कि जमीन अब तक लीज पर नहीं दी गई है। न ही दी जा सकती है जबकि 26 मई 1984 को निगम की ही भवन अनुज्ञा शाखा फर्जी तरीके से बिल्डिंग का नक्शा मंजूर कर चुकी थी।
फर्जी तरीके से हथियाई जमीन
1981-82 तक भागीरथपुरा के सर्वे नं. 65/5 की  जमीन को सौमय्या नगर निगम और नजूल से वृक्षारोपण के लिए लीज पर मांगते रहे लेकिन निगम के सख्त रवैये के कारण मिली नहीं। इस बीच सौमय्या ने गैसहाउस रोड निवासी बिरदीचंद जैन के साथ षड़यंत्र रचा। जैन को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर इसी जमीन का मालिक बनाया। उससे सौमय्या ने इसी जमीन को खरीदा। रजिस्ट्री 2 अक्टूबर 1980 में कराई। हालांकि यहां 13 मार्च 1984 के स्टॉम्प का इस्तेमाल करके सुराग छोड़ गए। यह बात अलग है कि ले-देकर बैठे नगर निगम के अधिकारियों ने न सुराग देखा, न ही मालिकाना हक की फाइल।
ऐसे कि जमीन का जायज करने की कोशिश
- सौमय्या ने जी+2 का नक्शा पास कराकर बिल्डिंग बनाई।
- इसी पर मप्र फाइनेंशियल कॉर्पोरेशन(एमपीएफसी) से लोन लिया।
- कंपनी को दिवालिया घोषित किया और बंद कर दी।
- 2004 में एमपीएफसी ने बिल्डिंग को निलाम किया।
- महदी मार्केटिंग प्रा.लि. ने इसे एमपीएफसी से खरीदा।
- महदी मार्केटिंग प्रा.लि. को टेकओवर किया पूण्यपाल सुराना ने।
- बाद में कंपनी ने इसे विशिष्ट कॉलेज प्रबंधन को बेच दिया।
---------
1984 में जो हुआ, मैं उसमें न भी जाऊं तो भी यह सवाल तो उठता ही है कि अब जब  निगम को  मालूम है  कि जमीन उसके मालिकी है तो फिर कब्जा लेने की कोशिश महापौर और निगमायुक्त द्वारा क्यों नहीं की जा रही है। न यह देखा जा रहा है कि इतनी बड़ी बिल्डिंग अवैध रूप से कैसे बन गई। इसीलिए अंदेशा यही होता है कि कहीं न कहीं अपने निजी हितों को आगे रखकर अधिकारी कॉलेज प्रबंधन को बचा रहे हैं।
परमानंद सिसोदिया, शिकायतकर्ता

No comments:

Post a Comment