अफीम के लिए दुनियाभर में मशहूर मंदसौर में प्याज से ज्यादा किसानों की चिंता कुछ और है...
इंदौर. विनोद शर्मा ।
‘‘मंदसौर और नीमच मे खेती तो अफीम की होती है और आन्दोलन प्याज और आलू को लेकर हो रहा है ...कुछ तो गडबड है दया....’’। यदि मंदसौर के किसानों के हितों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है तो देश के बड़े अखबार में जिले के किसान आंदोलन की खबर पर किए गए इस कमेंट को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता। आंकड़ों की मानें तो प्याज व अन्य फसलों के समर्थन मुल्य से ज्यादा जिले के किसानों की नाराजगी की वजह अफीम की खेती पर आने वाले आए दिन के कानून, डोडा चूरा पर लगाया गया सरकारी प्रतिबंध और पुलिस के लिए कमाई का जरिया बन चुका एनडीपीएस एक्ट ज्यादा है।
मंदसौर किसान आंदोलन और आंदोलन को दबाने के लिए चलाई गई गोली से गई सात किसानों की जान के मामले को दबंग दुनिया ने दमदारी से उठाया है। पूरे मामले में दबंग दुनिया किसानों की आवाज बना। हालांकि अब आंदोलन की परतें खुलने लगी हैं जो चौकाती हैं। आंदोलन के बाद से ही मंदसौर चर्चा में है। देशभर में जिले के किसानों की बातें तो हो रही है लेकिन ये बात सामने नहीं आ रही कि यहां किस-किस चीज की खेती होती है। कृषि विभाग, नार्कोटिक कंट्रोल ब्यूरो आॅफ इंडिया (एनसीबी), सेंट्रल ब्यूरो आॅफ नार्कोटिक(सीबीएन), सेंटर इन्फॉर्मेशन फॉर नार्कोटिक कंट्रोल ब्यूरो (सीईआईबी), ब्यूरो आॅफ इंटरनेशनल नार्कोटिक्स एंड लॉ इन्फोर्समेंट अफेयर (बीआईएनएल) और एक्साइज एंड नार्कोटिक डिपार्टमेंट के आंकड़ों की मानें तो मंदसौर में यूं तो कई तरह की खेती की जाती है। लेकिन आपको शायद ही ये पता हो कि अफीम की खेती के लिए मन्दसौर पूरे भारत में मशहूर है। यहां दुनिया में सबसे ज्यादा अफीम की खेती होती है। इसके अलावा, स्लेट-पैंसिल उद्योग जिले का महत्वपूर्ण उद्योग है। ऐसे में किसानों का सिर्फ प्याज या अन्य फसल के समर्थन मुल्य के लिए यूं उत्पात मचाना थोड़ा गले कम उतरता है।
पूरी राजनीति अफीम के ईर्द-गिर्द
मंदसौर और नीमच जिलों में अफीम उत्पादन होता है। इसमें चूंकि मंदसौर बड़ा जिला है इसीलिए यहां अफीम की खेती और खेती करने वाले किसानों का ग्राफ अन्य नीमच के मुकाबले ज्यादा है। यही वजह है कि यहां दुनियाभर के ड्रग माफिया के लोग सक्रिय हैं। इलाके की पूरी राजनीति किसानों को अफीम की कीमत दिलाने के ईर्द-गिर्द घूमती है। कभी डोडा चूरा की लड़ाई तो कभी एनडीपीएस एक्ट के तहत किसी किसान पर की गई कार्रवाई के खिलाफ आवाज उठाने का मुद्दा। बात इससे ज्यादा कभी बढ़ी नहीं। पहला मौका है जब प्याज व अन्य फसलों को लेकर किसान आंदोलित हैं।
फायदा किसको-किसको
मंदसौर की घटना के बाद पार्टी में जहां उनके विरोधियों को सक्रिय होने का मौका मिल गया है, वहीं विपक्षी दल कांग्रेस के हाथ एक ऐसा मुद्दा लग गया है जो अगले साल होने वाले विधानसभा के चुनाव में संजीवनी बूटी का काम कर सकता है। राजीवगांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की हलचल बढ़ी है वहीं दिग्गज नेता आप के लिए जमीन तलाशने में जूट गए हैं। पीछे से इसका फायदा उन अफीम तस्करों को भी मिलेगा जिनके खिलाफ सरकार ने बीते वक्त में कार्रवाई की है या डोडा चूरा पर लगाए गए प्रतिबंध से जिन किसानों की अवैध कमाई खत्म हो गई है।
डोडा चूरा पर सरकारी बेन
केंद्र और राज्य सरकार ने पिछले दो साल से मंदसौर और नीमच जिले के किसानों के डोडा चूरा बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसने हजारों किसानों विशेष रूप से मजबूत माने जाने वाले पाटीदार समुदाय के लोगों को बेरोजगार बना दिया है। उनका कहना है कि प्रतिबंध लगाने से पहले प्रदेश सरकार डोडा चूरा की खेती और बिक्री को अवैध नहीं मानती थी, लेकिन अब सरकार इस मादक पदार्थ को अवैध मानकर नष्ट कर रही है।
एनडीपीएस को लेकर पुलिस से नाराजगी
किसानों से बातचीत के दौरान यह भी पता चला है कि उनकी नाराजगी की बड़ी वजह मंदसौर-नीमच में पुलिस की भूमिका है। पुलिस अफीम पकड़े जाने पर एनडीपीएस एक्ट की धारा 5/18 के तहत किसान के खिलाफ केस दर्ज करती है। उससे पूछताछ होती है। पूछताछ में आसपास के जितने किसानों और सौदागरों के नाम बताता है कि उन्हें एनडीपीएस की धारा 8/29 के तहत नोटिस देकर उन्हें भी संदेही बनाया जाता है। सौदेबाजी के बाद उनका नाम हटाया जाता है। इसीलिए पुलिस के खिलाफ किसानों में आक्रोश ज्यादा है जिसका फायदा अफीम माफिया उठाते रहते हैं। एनडीपीएस एक्ट के तहत गिरफ्तार होने पर छह महीने से सालभर तक जमानत नहीं मिलती। एक किलो अफीम के साथ पकड़े गए तो 10 साल की सजा और एक लाख का जुर्माना होता है। इसीलिए व्यक्ति बचने के लिए सौदेबाजी करता है। पहले एक आदमी की सौदबाजी 5 से 10 लाख रुपए की होती थी अब कई मामलों में सौदेबाजी का यह ग्राफ एक करोड़ तक पहुंच गया है। माने एनडीपीएस का एक केस दर्ज करके पुलिस अपनी सालभर की कमाई की जुगाड़ कर लेती है। इस पूरे मसले से किसान पुलिस से खुन्नस खाए बैठे हैं जिसका फायदा अफीम तस्करों ने आंदोलन के दौरान उठाया। इसीलिए चुनचुनकर पुलिस वालों को निशाना बनाया गया। चुनचुनकर दुकानें जलाई गई।
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