Saturday, June 3, 2017

होर्डिंग-झंडे लगाकर ही बिकने लगा इकोनॉमिक कॉरिडोर

आधी कॉलोनी पर बिकने लगे प्लॉट, आधी में खड़े हैं गेहूं
इंदौर. विनोद शर्मा ।
किसानों के एग्रीमेंट और होर्डिंग झंडे लगाकर प्लॉट बेचने वाले बिल्डरों के खिलाफ प्रशासन जहां शिकंजा कसने का दावा कर रहा है वहीं सांवेर तहसील ऐसी कागजी कॉलोनियों का गढ़ बन चुकी है। ताजा उदाहरण है मुरादपुरा गांव में 24 बीघा जमीन पर प्रस्तावित इकोनॉमिक कॉरिडोर। भाग्योदय डेवकॉन प्रा.लि. नाम की कंपनी झंडे गाड़कर ही बीते दो महीने से प्लॉट बेच रही है जबकि मौके पर कॉलोनी का ‘क’ भी नजर नहीं आता।
पालिया जंक्शन (उज्जैन रोड) से अलवासा करीब ढ़ाई किलोमीटर है। अलवासा से दो किलोमीटर दूर है मुरादपुरा गांव जो कि सांवेर तहसील में आता है। यहां 24 बीघा जमीन पर झंडे लगाकर भाग्योदय द्वारा इकोनॉमिक कॉरिडोर की मार्केटिंग की जा रही है। कॉलोनी दो चरणों में बनेगी। पहले चरण में 12 बीघा की प्लानिंग पर काम शुरू हो चुका है जहां सपाट खेत है। दूसरे चरण की प्लानिंग जहां होना है वहां गेहूं की फसल खड़ी है।
दावा डिक्शनरी से ‘बोरिंग’ मिटाने का
कॉलोनी को प्लान किया है प्रीतम बाथम की भाग्योदय और अशोक हटकर-अभिनय हटकर की इकोनॉकि सिविलकॉन प्रा.लि. ने। इकोनॉमिक कॉरिडोर के ब्रोशर और यूट्यूब वीड़ियो के माध्यम से दोनों कंपनियों का दावा है कि यहां रहने वालों की डिक्शनरी में बोरिंग वर्ड नहीं होगा। कॉलोनी को सर्वसुविधायुक्त बनाया जा रहा है।
डेवलपमेंट शुरू नहीं, प्लॉट बिकने लगे
14 एकड़ में प्रस्तावित इस कॉलोनी का ले-आउट प्लान (10025) अक्टूबर 2016 में मंजूर हो चुका है। हालांकि अभी मौके पर बुनियादी सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है, सिर्फ सपाट मैदान है।
मुरादपुरा तालाब पर भी ‘कब्जा’
हालांकि कॉलोनी का जो खांका खींचा गया है उसके अनुसार कॉलोनी के सामने 100 फीट का रोड है। विजिटर्स पार्किंग और बस स्टॉप, इलेक्ट्रॉनिक सिक्यूरिटी सिस्टम, अलीशान इंटेंÑस, चौड़ी सड़कें, स्ट्रीट लाइट्स, वेल अरेंज प्लॉट्स का सब्जबाग दिखाया जा रहा है। इतना ही नहीं सब्जबाग की सूची में सर्वे नं. 288 की 20.880 हेक्टेयर जमीन पर फैले मुरादपुरा के बड़े तालाब को शामिल किया गया है। कहा जा रहा है कि तालाब में कॉलोनीवासियों के लिए वोटिंग और ट्रेकिंग की व्यवस्था होगी।
सरकारी मंदिर भी अपना
कंपनी मुरादपुरा रोड पर चरनोई की जमीन पर बने माताजी के नए मंदिर और गौशाला को भी कॉलोनी का ही हिस्सा बताती है। कंपनी के सेल्स एक्जीक्यूटिव के अनुसार दो बीघा जमीन दान देकर कंपनी ने वहां मंदिर बनवाया है।
टीएनसी दे देती है बुकिंग अधिकार
कंपनी के कारिंदों का कहना है कि कॉलोनी की टीएनसी हो चुकी है और टीएनसी होने के बाद प्लॉटों की बुकिंग की जा सकती है। इसमें कुछ गलत नहीं है। हम अभी पूरा पैसा थोड़ी ले रहे हैं। सिर्फ बुकिंग अमाउंट और डाउन पेमेंट ही ले रहे हैं।
क्या कहते हैं नियम..
टीएनसी के बाद प्लॉट की बुकिंग हो सकती है लेकिन उसके लिए अनुबंध पत्र साइन होगा के्रेता-विक्रेता के बीच। अनुबंध में उल्लेख करना होगा कि कितने महीने में डेवलपमेंट होगा, कैसा डेवलपमेंट होगा, क्या-क्या होगा, डेवलपमेंट न होने की स्थिति में कॉलोनाइजर की जिम्मेदारी क्या होगी? यहां ऐसा कोई एग्रीमेंट साइन नहीं हुआ है।
नियम के अनुसार किसी भी कॉलोनी में रजिस्ट्री तब तक नहीं हो सकती जब तक कि विकासकार्य पूर्ण न हो चुके हों। कॉलोनी का कंपलीशन सर्टिफिकेट जारी न हो चुका हो। इसके बावजूद खेतों में ही रजिस्ट्रियां करके प्लॉट बेचे जा रहे हैं। 

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