Thursday, June 15, 2017

एनडीपीएस एक्ट और डोडा चूरा बेन से नाराज किसानों की आड़ में अफीम माफियाओं ने खेली बाजी


अफीम के लिए दुनियाभर में मशहूर मंदसौर में प्याज से ज्यादा किसानों की चिंता कुछ और है...

इंदौर. विनोद शर्मा ।

‘‘मंदसौर और नीमच मे खेती तो अफीम की होती है और आन्दोलन प्याज और आलू को लेकर हो रहा है ...कुछ तो गडबड है दया....’’। यदि मंदसौर के किसानों के हितों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है तो देश के बड़े अखबार में जिले के किसान आंदोलन की खबर पर किए गए इस कमेंट को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता।  आंकड़ों की मानें तो प्याज व अन्य फसलों के समर्थन मुल्य से ज्यादा जिले के किसानों की नाराजगी की वजह अफीम की खेती पर आने वाले आए दिन के कानून, डोडा चूरा पर लगाया गया सरकारी प्रतिबंध और पुलिस के लिए कमाई का जरिया बन चुका एनडीपीएस एक्ट ज्यादा है।

मंदसौर किसान आंदोलन और आंदोलन को दबाने के लिए चलाई गई गोली से गई सात किसानों की जान के मामले को दबंग दुनिया ने दमदारी से उठाया है। पूरे मामले में दबंग दुनिया किसानों की आवाज बना। हालांकि अब आंदोलन की परतें खुलने लगी हैं जो चौकाती हैं। आंदोलन के बाद से ही मंदसौर चर्चा में है। देशभर में जिले के किसानों की बातें तो हो रही है लेकिन ये बात सामने नहीं आ रही कि यहां किस-किस चीज की खेती होती है। कृषि विभाग, नार्कोटिक कंट्रोल ब्यूरो आॅफ इंडिया (एनसीबी),  सेंट्रल ब्यूरो आॅफ नार्कोटिक(सीबीएन), सेंटर इन्फॉर्मेशन फॉर नार्कोटिक कंट्रोल ब्यूरो (सीईआईबी), ब्यूरो आॅफ इंटरनेशनल नार्कोटिक्स एंड लॉ इन्फोर्समेंट अफेयर (बीआईएनएल) और एक्साइज एंड नार्कोटिक डिपार्टमेंट के आंकड़ों की मानें तो  मंदसौर में यूं तो कई तरह की खेती की जाती है। लेकिन आपको शायद ही ये पता हो कि अफीम की खेती के लिए मन्दसौर पूरे भारत में मशहूर है। यहां दुनिया में सबसे ज्यादा अफीम की खेती होती है। इसके अलावा, स्लेट-पैंसिल उद्योग जिले का महत्वपूर्ण उद्योग है। ऐसे में किसानों का सिर्फ प्याज या अन्य फसल के समर्थन मुल्य के लिए यूं उत्पात मचाना थोड़ा गले कम उतरता है।

पूरी राजनीति अफीम के ईर्द-गिर्द

मंदसौर और नीमच जिलों में अफीम उत्पादन होता है। इसमें चूंकि मंदसौर बड़ा जिला है इसीलिए यहां अफीम की खेती और खेती करने वाले किसानों का ग्राफ अन्य नीमच के मुकाबले ज्यादा है। यही वजह है कि यहां दुनियाभर के ड्रग माफिया के लोग सक्रिय हैं। इलाके की पूरी राजनीति किसानों को अफीम की कीमत दिलाने के ईर्द-गिर्द घूमती है। कभी डोडा चूरा की लड़ाई तो कभी एनडीपीएस एक्ट के तहत किसी किसान पर की गई कार्रवाई के खिलाफ आवाज उठाने का मुद्दा। बात इससे ज्यादा कभी बढ़ी नहीं। पहला मौका है जब प्याज व अन्य फसलों को लेकर किसान आंदोलित हैं।

फायदा किसको-किसको

मंदसौर की घटना के बाद पार्टी में जहां उनके विरोधियों को सक्रिय होने का मौका मिल गया है, वहीं विपक्षी दल कांग्रेस के हाथ एक ऐसा मुद्दा लग गया है जो अगले साल होने वाले विधानसभा के चुनाव में संजीवनी बूटी का काम कर सकता है। राजीवगांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की हलचल बढ़ी है वहीं दिग्गज नेता आप के लिए जमीन तलाशने में जूट गए हैं। पीछे से इसका फायदा उन अफीम तस्करों को भी मिलेगा जिनके खिलाफ सरकार ने बीते वक्त में कार्रवाई की है या डोडा चूरा पर लगाए गए प्रतिबंध से जिन किसानों की अवैध कमाई खत्म हो गई है।

डोडा चूरा पर सरकारी बेन

केंद्र और राज्य सरकार ने पिछले दो साल से मंदसौर और नीमच जिले के किसानों के डोडा चूरा बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसने हजारों किसानों विशेष रूप से मजबूत माने जाने वाले पाटीदार समुदाय के लोगों को बेरोजगार बना दिया है। उनका कहना है कि प्रतिबंध लगाने से पहले प्रदेश सरकार डोडा चूरा की खेती और बिक्री को अवैध नहीं मानती थी, लेकिन अब सरकार इस मादक पदार्थ को अवैध मानकर नष्ट कर रही है।

एनडीपीएस को लेकर पुलिस से नाराजगी

किसानों से बातचीत के दौरान यह भी पता चला है कि उनकी नाराजगी की बड़ी वजह मंदसौर-नीमच में पुलिस की भूमिका है। पुलिस अफीम पकड़े जाने पर एनडीपीएस एक्ट की धारा 5/18 के तहत किसान के खिलाफ केस दर्ज करती है। उससे पूछताछ होती है। पूछताछ में आसपास के जितने किसानों और सौदागरों के नाम बताता है कि उन्हें एनडीपीएस की धारा 8/29 के तहत नोटिस देकर उन्हें भी संदेही बनाया जाता है। सौदेबाजी के बाद उनका नाम हटाया जाता है। इसीलिए पुलिस के खिलाफ किसानों में आक्रोश ज्यादा है जिसका फायदा अफीम माफिया उठाते रहते हैं। एनडीपीएस एक्ट के तहत गिरफ्तार होने पर छह महीने से सालभर तक जमानत नहीं मिलती। एक किलो अफीम के साथ पकड़े गए तो 10 साल की सजा और एक लाख का जुर्माना होता है। इसीलिए व्यक्ति बचने के लिए सौदेबाजी करता है। पहले एक आदमी की सौदबाजी 5 से 10 लाख रुपए की होती थी अब कई मामलों में सौदेबाजी का यह ग्राफ एक करोड़ तक पहुंच गया है। माने एनडीपीएस का एक केस दर्ज करके पुलिस अपनी सालभर की कमाई की जुगाड़ कर लेती है। इस पूरे मसले से किसान पुलिस से खुन्नस खाए बैठे हैं जिसका फायदा अफीम तस्करों ने आंदोलन के दौरान उठाया। इसीलिए चुनचुनकर पुलिस वालों को निशाना बनाया गया। चुनचुनकर दुकानें जलाई गई।                         

सीसटेट ने रद्द किया सेंट्रल एक्साइज कमिश्नर का आदेश

एमएमएस पर थोपी गई 21 करोड़ की डिमांड खारिज
इंदौर. विनोद शर्मा ।
कस्टम एक्साइज एंड सर्विस टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (सीसटेट) ने एमएसएस फुड्स को बड़ी राहत देते हुए प्रिंसिपल कमिश्नर, सेंट्रल एक्साइज के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें कंपनी को 21 करोड़ का डिमांड नोटिस थमाया गया था। सीसटेट ने कहा कि जिस अवधि में मशीनें चली ही नहीं उस अवधि की ड्यूटी कैसे चार्ज की जा सकती है। जो भी थोड़ी-बहुत खामियां थी उसके लिए कंपनी 20 लाख का ब्याज भर चुकी है जो कि काफी है।
मामला पान मसाला बनाने वाली इंदौर की एमएसएस फुड्स प्रोसेसर्स का है। कंपनी की ओर से अमरचंद उपाध्याय ने कस्टम, सेंट्रल  एक्साइज एंड सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट इंदौर के खिलाफ एक्साइज अपील (50554 व 50555/2017 ) दर्ज कर रखी थी जिसकी सुनवाई माननीय अनील चौधरी और बी.रविचंद्रन की डबल बैंच में हुई। डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल कमिश्नर एसएल मीणा द्वारा 30 दिसंबर 2016 को दिए आदेश के खिलाफ दर्ज की गई इस अपील को सीसटेट ने जायज माना और पीसी के आदेश को सेटेसाइड कर दिया।
यह था आॅर्डर
दिसंबर 2016 को एसएल मीणा ने पास मसाला पैकिंग मशीन (क्षमा निर्धारण और ड्यूटी वसूली) नियम-2008 का हवाला देकर जिस अवधि में मशीन बंद रही उस अवधि को भी ड्यूटी योग्य मानते हुए 14 करोड़ 58 लाख 04 हजार 420 रुपए की एक्साइज ड्यूटी की चोरी निकाल दी। इतना ही नहीं निकाली गई ड्यूटी चोरी पर 50 प्रतिशत यानी करीब 7 करोड़ 29 लाख 02 हजार 210 रुपए की पेनल्टी लगाते हुए कुल 21 करोड़ 87 लाख 06 हजार 630 रुपए की डिमांड निकाल दी। इसके अलावा 20 लाख की पेनल्टी उपाध्याय और उनके भागीदारों पर भी लगा दी थी। कंपनी ने डिमांड का ब्याज चुकाने के बाद डिमांड को सीसटेट में चुनौती दी थी।
अमान्य है प्रिंसिपल कमिश्नर का आदेश
इस मामले में सीसटेट ने गुजरात हाईकोर्ट द्वारा ठक्कर टोबेको प्रोडक्ट प्रा.लि. के फैसले, दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा शक्ति फ्रेग्नेंस प्रा.लि. के पक्ष में दिए फैसले और सोम पान प्रोडक्ट प्रा.लि1 के पक्ष में 11 सितंबर 2015 को ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए आदेश का हवाला देते हुए फैसला दिया गया है। अपने आदेश में सीसटेट ने कहा कि  ‘उक्त निर्णयों में जिस अनुपात के बारे में चर्चा की गई है और वर्तमान मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हमें यह प्रतीत होता है कि विवादित आदेश महत्वहीन है। जिसके तहत यह पुष्टि की गई है कि अपीलार्थी को संपूर्ण ड्यूटी चुकाने का आदेश दे दिया गया था। इस प्रकार हमने यह पाया कि विवादित आदेश कानूनी तौर पर ग्राहय नहीं है। इसीलिए मंजूर अपील की जाती है।’
उत्पादन नहीं तो ड्यूटी नहीं
पास मसाला पैकिंग मशीन (क्षमा निर्धारण और ड्यूटी वसूली) नियम-2008 के अनुसार पान मसाला बनाने वाली मशीन पर उसकी क्षमता के अनुसार ड्यूटी तय है। जितने दिन मशीन चलेगी उतने दिन ड्यूटी चुकाना होगी। नियम के अनुसार यह भी है कि यदि 1 से लेकर 15 तारीख के बीच ही मशीन चली है तो भी कंपनी को 30 दिन के हिसाब से ड्यूटी चुकाना होती है। जो 15 दिन मशीन नहीं चली है उसकी ड्यूटी अगले महीने रीफंड हो जाती है। पहले इसमें यह उल्लेख नहीं था कि यदि व्यक्ति 5 से 20 तारीख या 10 से 25 तारीख के बीच मशीन चलाता है तो ड्यूटी निर्धारण कैसे होगा? इसके लिए कंपनी ने प्रयास किए। बाद में तय हुआ कि मशीन चलाने से तीन दिन पहले विभागीय अनुमति लेना होगी। जब बंद होगी तो विभागीय अधिकारी की उपस्थिति में कारखाना सील किया जाएगा। मतलब इस दौरान किसी भी सूरत में उत्पादन नहीं हो सकता। ऐसे में जब उत्पादन ही नहीं होगा तो फिर ड्यूटी किस बात की दी जाए।

आड़ा बाजार में दो प्लॉट जोड़ बन रही है बिल्डिंग

नेता और निगम अधिकारियों की शह पर बिल्डर ने बिना मंजूरी बेसमेंट भी बना दिया
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नगर निगम मध्यक्षेत्र को स्मार्ट बनाने की तैयारी में है वहीं राजनीतिक-अधिकारिक संरक्षण के कारण राजबाड़ा और आसपास के क्षेत्रों में ही मनमाना निर्माण हो रहा है। इसकी ताजी मिसाल आड़ा बाजार के प्लॉट नं. 22 व 23 को जोड़कर बनाई जा रही इमारत है जिसमें बिल्डर ने नक्शे के विपरीत बेसमेंट बना डाला। तमाम शिकवा-शिकायतों के बावजूद नगर निगम बिल्डिंग पर कार्रवाई करने को तैयार नहीं है। नोटिस से बिल्डर को चमकाकर अधिकारी अपनी जेब भर रहे हैं।
मप्र भूमि विकास अधिनियम और मास्टर प्लान 2021 के प्रावधानों के अनुसार दो या दो से अधिक प्लॉटों को जोड़कर निर्माण नहीं किया जा सकता। बावजूद निगम के जादूगर अधिकारियों ने आड़ा बाजार के प्लॉट नं. 22 और 23 को जोड़कर विजय पिता राधाकृष्ण गुप्ता, राधाकृष्ण पिता रामचंद्र गुप्ता और मनोरमा पति राधाकृष्ण गुप्ता के नाम 6 जुलाई 2016 को बिल्डिंग पर्मिशन (2706/आईएमसी/जेड12/डब्ल्यू59/2016) जारी कर दी। 211.77 वर्गमीटर के कुल प्लॉट एरिया पर जी+3 बिल्डिंग का आवासीय/वाणिज्यिक नक्शा मंजूर है। इसमें कहीं भी बेसमेंट का जिक्र नहीं था फिर भी गुप्ता परिवार ने मौके पर बेसमेंट बना दिया।
अवैध क्या-क्या
- संयुक्तिकरण प्रतिबंधित होने के बाद भी दो प्लॉटों को जोड़ा गया है। - स्वीकृत नक्शे के विपरीत बेसमेंट बनाया गया है। - आसपास का एमओएस हजम करके ग्राउंड कवरेज बढ़ाया गया है।
ऐसी दी गई थी अनुमति
प्लॉट एरिया : 2274.40 वर्गफीट
सेटबेक : 176.67 वर्गफीट
प्लानिंग प्लॉट : 2097.73 वर्गफीट
एफएआर : 1.5
ग्राउंड कवरेज : 1336.48 वर्गफीट
कुल बिल्टअप : 3676.73 वर्गफीट
(624 वर्गफीट कमर्शियल/2768.55 वर्गफीट आवासीय)
पार्किंग : 966.6 वर्गफीट
मनमाने निर्माण को खुली छूट
शिकायतकर्ता अजय यादव ने दबंग दुनिया से बातचीत में बताया कि जब प्लॉट पर बेसमेंट की खुदाई शुरू हुई थी तभी अवैध निर्माण को लेकर गुप्ता परिवार की मंशा स्पष्ट हो गई थी। हमने अपै्रल में भी शिकायत की थी लेकिन अधिकारियों ने कार्रवाई करना तो दूर मौके पर जाकर देखा तक नहीं। बिल्डिंग को क्षेत्र के कद्दावर कांग्रेस व भाजपा नेताओ का संरक्षण प्राप्त है। इसीलिए नगर निगम के औपचारिक नोटिसों के बावजूद बिल्डिंग पर ब्रेक नहीं लगा।
बार-बार जारी होते हैं रिमूवल नोटिस
यादव ने नोटिस की कॉपी दिखाते हुए बताया कि लगातार ऐसे सूचना पत्र, कारण बताओ नोटिस और रिमूवल नोटिस देकर नगर निगम के हरसिद्धि जोन पर पदस्थ भवन अधिकारी समय और चांदी दोनों काट रहे हैं। उधर, रिमूवल विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कार्रवाई की तैयारी जब भी हुई गुप्ता परिवार के समर्थन में किसी न किसी बड़े नेता ने फोन बजाना शुरू कर दिया। उनको न करके नौकरी संकट में डालने से तो रहे। 

किसान आंदोलन की आड़ में पुलिस से लिया बदला

--कड़वी है नेवरी फाटा आंदोलन की हकीकत
 --  मंदसौर गोलीकांड का शिकार लोगों की मौत से थी नाराजगी
हाटपिपलिया से विनोद शर्मा ।
मंदसौर के किसान आंदोलन में सामने आ रही अफीम तस्करों की भूमिका के बाद अब देवास पुलिस ने दी आंदोलन की आड़ में उत्पात मचाने वालों की छानबीन शुरू कर दी है। अब तक की छानबीन मैं उस एक जाति समूह की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है जिस से ताल्लुक रखने वाले प्रदर्शनकारियों की मंदसौर में पुलिस की गोलियों से  मौत हुई थी। जाति विशेष के लोगों ने किसानों के कंधे इस्तेमाल कर बागली, हाटपीपल्या, कमलापुर, चापड़ा और नेवरी में पुलिसिया ठिकानों को निशाना बनाया। सीधे-सीधे कहें तो किसानों की आड़ में जाति विशेष के लोग मंदसौर में हुई मौतों का पुलिस से बदला लेना चाहते थे।
         मंदसौर गोलीकांड के बाद 7 जून को भौरासा थाना क्षेत्र के नेवरी फाटा पर हुई आगजनी की घटना 5 दिन बाद भी न पुलिस को समझ आ रही है। न ही आसपास रहने वालों को। वजह है अंजाने आंदोलनकारी और उनके आंदोलन का अजीब तरीका। दोनों का क्षेत्रीय किसानों के मिजाज से मेल नहीं है। नेवरी फाटा चौराहे पर दुकान चलाने वालों का कहना है कि आंदोलन करने आए लोगों में आस-पास के गांव के किसान नहीं थे। 70% प्रदर्शनकारी हाटपीपल्या की ओर से आए थे। 30% सोनकच्छ  की तरफ से। प्रदर्शनकारियों में ज्यादातर पाटीदार थे जो मंदसौर में समाज के लोगों पर गोली चलाने वाले पुलिसकर्मियों से नाराज थे। इसीलिए उनकी मंशा सिर्फ पुलिस को सबक सिखाना थी। किसानों की आड़ लेकर इसीलिए बागली और हाटपीपल्या थाने में तोड़फोड़ करने के साथ ही उन्होंने नेवरी, चापड़ा और कमलापुर चौकियो में आग लगाई। सरकारी परिसर में खड़े वाहन जलाए।
जांच पूरी होने पर ही उठेगी उंगली
7 जून से लेकर 10 जून तक आतिशी आंदोलन को पुलिस भी किसानों की नाराजगी का ही परिणाम समझती रही। इसी बीच मंदसौर आंदोलन में सामने आई अफीम तस्करों की भूमिका के बाद देवास पुलिस ने छानबीन शुरू की। हाटपीपल्या पुलिस अब तक 20 लोगों के खिलाफ नामजद कायमी कर चुकी है। वहीं भौरासा पुलिस ने वीडियो फुटेज  की बिनाह पर छह और एविंडेंस के आधार पर 10 के खिलाफ केस दर्ज किया।
ज्यादातर पाटीदार
सुरक्षा का हवाला देते हुए पुलिस ने आरोपियों के नाम बताने से मना कर दिया लेकिन इतना इशारा जरूर दिया कि दानों थानों में अब तक जितने भी लोगों के खिलाफ कायमी हुई है उनमें ज्यादातर पाटीदार समाज के लोग हैं। वीडियो फुटेज और फोटो मैं भी जो चेहरे सामने आ रहे हैं वह पाटीदारों के हैं।
ऐसे अंजाम दिया गया कथित आंदोलन को
6 जून को किसान आंदोलन में उपद्रव बढ़ने पर पीपल्यामंडी थाने की पुलिस ने फायरिंग की थी जिस से 6 लोगों की मौत हो गई थी। कुछ गंभीर घायल भी हुए। मीडिया में इस खबर के चलते ही 7 जून की सुबह किसानों न हाटपीपल्या में नारेबाजी शुरू कर दी। ढाई से 3000 लोग इकट्ठा हुए। अलग-अलग टुकड़ियां बनी। टीआई केसी चौहान सहित ज्यादातर पुलिस बल इनके पीछे चलने लगा। प्रदर्शनकारी पहले चापड़ा पहुंचे। यहां चौकी में उत्पात मचाया। पुलिस के मैदान संभालने से पहले वे बागली रवाना हो गए। वहां भी थाने पर हल्ला बोला। यहां पुलिस ने जैसे-तैसे खदेड़कर सांस ली तो पता चला सभी कमलापुर पहुंचकर चौकी पर हल्ला बोल चुके हैं। पुलिस बल के कमलापुर पहुंचने से पहले ही प्रदर्शनकारी हाटपीपल्या थाने पहुंचे जहां का बल बीते स्थलों पर ही गया हुआ था। सिर्फ चार जवान ही थे थाने में।  इसीलिए यहां उत्पात जमकर मचा। एक घंटे में 50 दोपहिया और करीब 10 चार पहिया व अन्य वाहन जलाए। देवास पुलिस बल और पीछे से आ रहे पुलिस बल के पहुंचते ही प्रदर्शनकारी नेवरी रवाना हो गए। उस वक्त नेवरी के जवान भी हाटपीपल्या टीआई के साथ ही लगे थे। सिर्फ दो जवान (अनिल पटेल और भगवान सिंह) चौकी पर थे जिन्हें बाहर निकालकर प्रर्शनकारियों ने चौकी और चौकी से सटकर रखे जब्ती के वाहनों में आग लगा दी। इसके बाद प्रदर्शनकारी नेवरी फाटा रवाना हो गए। नेवरी के लोगों ने चौकी की आग बुझाने में जवानों की मदद की। इसी बीच प्रदर्शनकारियों ने नारायणा पुल के पास गाड़ी रखी और करीब आधा किलोमीटर पैदल चलकर नेवरी फाटा पहुंचे। यहां पहले से मौजूद लोग नारेबाजी कर रहे थे वहीं प्रदर्शनकारियों ने पहुंचते ही वाहनों में तोड़फोड़ शुरू कर दी।
चौकी पर बैठे जवान ने कहा निकल लो और हम ने बंद कर दी दुकान
नेवरी फाटा पर करीब दो दर्जन दुकाने हैं जो 7 जून को आंदोलन से ठीक पहले चालू थी। काम धंधा सामान्य चल रहा था। दुकानदारों ने बताया इस बीच कुछ लोग पहुंचे और मुख्यमंत्री विरोधी नारे लगाने लगे। तब तक भी हालात नहीं बिगड़े थे। हम भी आंदोलन को एंजॉय कर रहे थे। सभी फाटा चौकी पर बैठे पुलिस जवान ने नेवरी चौकी पर आग लगा कर आ रहे प्रदर्शनकारियों की जानकारी दी और कहा कि सभी दुकानदार फटाफट यहां से निकल ले। फिर क्या था सामान समेट कर दुकानें बंद कर दी। तभी नेवरी की ओर से आए प्रदर्शनकारियों के हुजूम ने सड़क पर पहुंचते ही  वाहनों में तोड़फोड़ शुरू कर दी। सबके मुंह ढके हुए थे और वह बसों को रोकते यात्री उतारते और तोड़फोड़ शुरू कर देते हैं कुछ बसों में आग भी लगाई। घटना को जो भी मोबाइल में रिकॉर्ड करता दिखा उसका मोबाइल छीना और तोड़ दिया। मारपीट भी की।
पुलिस से तो नहीं समझे पानी ने जरूर खदेड़ा
जिस वक्त नेवली फाटा पर तोड़फोड़ हो रही थी तब मौके पर पुलिस वालों की संख्या गिनती की थी। इसीलिये वे प्रदर्शनकारियों के सामने मूकदर्शक बने बैठे रहे। दो दर्जन वाहनों में आग लगाकर भी प्रदर्शनकारियों का मन नहीं भरा लेकिन इसी बीच बारिश शुरू होते ही वे भाग खड़े हुए। तब पता चला वे अपनी गाडियां भी नारायणा पुल के पार रखकर आये थे।
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वीडियो फुटेज और एडिवेंस के माध्यम से 16 लोगों पर केस दर्ज किया जा चुका है। अभी जांच जारी है। इसीलिए जाति विशेष के लोगों का नाम लेना जल्दबाजी होगी। प्रदर्शनकारियों में कुछ सोनकच्छ की ओर से भी आए थे।
एन.के.सूर्यवंशी, टीआई
भौरासा थाना
नामजद प्रकरण दर्ज करके 20 गिरफ्तारी की है। संभव है कि किसानों की आड़ में दूसरे लोगों ने उत्पात मचाया। शुरू से किसान आंदोलन शांत था लेकिन मंदसौर मामले के बाद पाटीदार समाज के लोगों में पुलिस को लेकर नाराजगी ज्यादा थी। इसीलिए बदला लेने के लिए पुलिस के ठिकानों पर हल्ला बोला।
के.सी.चौहान, टीआई
हाटपीपल्या थाना
मामले में इन्वेस्टिगेशन जारी है। अब तक वीडियो फुटेज में जितने चेहरे आईडेंटिफाई किए हैं उनमें भी ज्यादातर जाति विशेष के लोग हैं। वैसे भी किसान ऐसे आंदोलन नहीं करते।
दिलीप जोशी, एसडीओपी
बागली
उत्पातियों के खिलाफ दर्ज हो केस
सोमवार को एडीजी वी.मधूकुमार बाबू, डीआईजी राकेश गुप्ता, कलेक्टर आशुतोष अवस्थी, एसपी अंशुमान सिंह और अन्य आला अधिकारियों के काफिले ने भौरासा थाना क्षेत्र स्थित नेवरी फाटा में हुई घटना के साथ ही घटना का शिकार हुए नेवरी, हाटपीपल्या, चापड़ा, कमलापुर, बागली के पुलिस थाने-चौकियों का जायजा लिया। इस दौरान एडीजी ने सभी थानों को निर्देशित करते हुए कहा कि हर उपद्रवी की शिनाख्त हो। उनके आपराधिक प्रकरण तलाशे जाएं। उत्पात मचानें वालों के खिलाफ केस दर्ज हो। गिरफ्तार करके उन्हें जेल भेजें।
उपद्रवियों के थाना घेरते ही थम गई थी धड़कने
हाटपीपल्या थाने में जिस वक्त प्रदर्शनकारियों ने हल्ला बोला उस वक्त  थाने में एक मुंशी सहित चार जवान मौजूद थे। उत्पातियों ने पहले थाने के पास खड़े जेल वाहन में आग लगाई। फिर एक खड़े हुए ट्रक में। इसके बाद थाने पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। हम अंदर थे और प्रदर्शनकारियों के उग्र तेवर देखकर सांसे थमने लगी थी। हलक सूख चूका था। हालांकि उन्होंने हमें कुछ नहीं कहा। उपद्रवियों ने थाना परिसर में खड़े जब्ती के दो-चार पहिया वाहनों के साथ टीआई साहब की गाड़ी और डायल 100 की गाड़ी में भी आग लगा दी। धीरे-धीरे वे थाने में घुसने लगे। तब हिम्मत करके हमने राइफल निकाल ली। हवाई फायर शुरू कर दी। फिर भी प्रदर्शनकारी नहीं डरे। उलटा, कहते रहे कि लो हमें भी गोली मार दो। तब हमारी स्थिति और खराब हो गई थी। भगवान का शुक्र है तब तक एसडीओपी और टीआई साहब बल के साथ पहुंच गए और उनके साथ देवास से भी बल आ गया था जिसे देखकर वे भाग निकले।
जैसा सैनिक नरबत सिंह ने दबंग दुनिया को बताया

पागनीसपागा में रिमूवल के लिए गई गैंग ने रावजीबाजार थाने से लिया यूटर्न

बिल्डिंग नहीं टूटी, मुख्यालय से आए फोन से टूटा गैंग का मनोबल
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
पागनीसपागा में स्वीकृत नक्शे के विपरीत बनाए जा रही गिरीध खतुरिया की बिल्डिंग राजनीतिक दबाव के कारण गुरुवार को रिमूवल कार्रवाई से बच गई। सप्ताहभर में दूसरी बार हरसिद्धि जोन के अधिकारियों ने पुलिस बल न मिलने का बहाना करते हुए कार्रवाई से हाथ खींच लिए। इससे पहले 22-23 आड़ा बाजार में तन रही बिल्डिंग को रिमूवल नोटिस देकर भी निगम का मैदानी अमला नहीं तोड़ पाया।
गिरीश पिता रूपचंद्र खतूरिया, सीमा पति रूपचंद्र खतूरिया को 2387.50 वर्गफीट प्लॉट का नक्शा 3606/आईएमसी/जेड12/डब्ल्यू61/2016 नगर निगम ने 12 अक्टूबर 2016 को मंजूर किया था। खतुरिया परिवार ने यहां स्वीकृती के विपरीत कैसे निर्माण किया है? इसका खुलासा दबंग दुनिया ने गुरुवार को ‘50 फीसदी अवैध बिल्डिंग बना दी, अब कार्रवाई रोकने के लिए पार्षद बना रहीं दबाव’, शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। इसके बाद रिमूवल गैंग पूर्व में दिए गए रिमूवल नोटिस के अनुसार गुरुवार को रावजीबाजार थाने पहुंची। यहां तकरीबन एक घंटे तक टीम खड़ी रही इसी बीच रिमूवल गैंग के पास निगम मुख्यालय के आला अधिकारी का फोन आया और गैंग बिना कार्रवाई के लौट गई।
यदि कार्रवाई करना ही नहीं थी तो गैंग भेजी क्यों?
नगर निगम के जिस सर्वेसर्वा अधिकारी के फोन पर कार्रवाई को ब्रेक लगाकर रिमूवल गैंग ने यूटर्न ले लिया था रिमूवल नोटिस उनकी बिना जानकारी के तो जारी हुआ नहीं होगा। यदि रिमूवल नोटिस उनकी जानकारी में था और यदि किसी राजनीतिक प्रेशर या निजी हित के कारण कार्रवाई रोकी ही जाना थी तो फिर गैंग को रावजीबाजार थाने तक भी क्यों पहुंचाया गया।
राजनीतिक संरक्षण है बड़ा कारण
मामले में वार्ड-66 की पार्षद कंचन गिदवानी की भूमिका भी सामने आई हैं जिन्होंने भी निगम के अधिकारियों को फोन करके कार्रवाई रोकने को कहा था। हालांकि दबंग दुनिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि मैंने दबाव-वबाव नहीं बनाया। बस यही कहा था कि तोड़ने से पहले एक बार इतमिनान से शिकायत की तस्दीक कर लें। इधर, मामले में एक बार फिर महापौर पूत्र का नाम भी सामने आ रहा है जिसने क्षेत्र के भाजपा नेताओं के दबाव में कार्रवाई पर ब्रेक लगवाया।
स्वीकृति से 50 फीसदी है निर्माण
शिकायतकर्ता रवि गुरनानी ने बताया कि जी+2 के नक्शे में खतुरिया परिवार को कुल 3581.25 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई थी। 42 प्रतिशत (1002.79 वर्गफीट) ग्राउंड कवरेज किया जा सकता था लेकिन मौके पर चौतरफा छोड़े जाने वाले एमओएस को कवर करके ग्राउंड कवरेज बढ़ाया गया और मौके पर 50 प्रतिशत से ज्यादा अवैध निर्माण किया गया है। नगर निगम के आला अधिकारी जानबुझकर बिल्डिंग को बचा रहे हैं। क्षेत्र के भाजपा नेताओं के संरक्षण में अवैध इमारतें पोषित हो रही है। अधिकारी शिकायतों को नजरअंदाज करते हैं और शिकायतकर्ता और खुलासे करने वाले पत्रकारों को ब्लैकमेलर की उपाधि देकर हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते हैं।
फिर वही बहाना ‘पुलिस बल नहीं मिला’
बीते शुक्र्रवार को 22-23 आड़ा बाजार की निर्माणाधीन बिल्डिंग को भी पुलिस बल नहीं मिला कहकर निगम ने छोड़ दिया था। गुरुवार को यूटर्न लेकर निकली गैंग ने फिर इसी बहाने को दोहराया। वहीं हकीकत इससे अलग है। राजवीबाजार थाना प्रभारी आर.डी.कानवा ने दबंग दुनिया को बताया कि निगम ने पुलिस बल मांगा था। हम दे रहे थे लेकिन बाद में उन्होंने ही मना कर दिया।


50 फीसदी अवैध बिल्डिंग बना दी, अब पार्षद प्रेशर से रोक रहे हैं कार्रवाई

पागनीसपागा में खतुरिया परिवार की मनमानी इमारत, आज कार्रवाई संभावित
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एक के बाद एक रिमूवल की कार्रवाई के बावजूद मध्यक्षेत्र में बिल्डरों की मनमानी जारी है। इसका ताजा उदाहरण 25 (पुराना 37) पागनीसपागा में निर्माणाधीन दो मंजिला मकान है जिसे स्वीकृति से 50 फीसदी ज्यादा बनाया गया है। नगर निगम के नोटिसों के बाद भी न बिल्डर रूका, न बिल्डिंग का काम। क्षेत्र की एक सिंधी पार्षद भी निर्माणकर्ता के समर्थन में खुलकर मैदान संभाल चुकी है।
गिरीश पिता रूपचंद्र खतूरिया, सीमा पति रूपचंद्र खतूरिया को 2387.50 वर्गफीट प्लॉट का नक्शा 3606/आईएमसी/जेड12/डब्ल्यू61/2016 नगर निगम ने 12 अक्टूबर 2016 को मंजूर किया था। जी+2 के इस नक्शे में खतुरिया परिवार को कुल 3581.25 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई थी। 42 प्रतिशत (1002.79 वर्गफीट) ग्राउंड कवरेज किया जा सकता था लेकिन मौके पर चौतरफा छोड़े जाने वाले एमओएस को कवर करके ग्राउंड कवरेज बढ़ाया गया और मौके पर 50 प्रतिशत से ज्यादा अवैध निर्माण किया गया है।
दुकानों को बना दिया शोरूम
शिकायतकर्ता की मानें तो ग्राउंड फ्लोर पर दो दुकानों (1-268 वर्गफीट, 2-162 वर्गफीट) की अनुमति दी गई है। एमओएस कवर करके इन दुकानों को शोरूम की तरह बढ़ा बना दिया गया है। नगर निगम ने मेजनाइन की अनुमति भी दे दी जो गलत है। नक्शा स्वीकृत कराते वक्त शपथ-पत्र देकर कहा गया था कि निर्माण का उपयोग निजी हित में होगा जबकि मौके पर दुकानें बेची जा रही है।
जातिगत समीकरण में सामने आई पार्षद
भवन मालिक खतूरिया सिंधी समाज से हैं इसीलिए उन्होंने नगर निगम के नोटिस मिलने के बाद क्षेत्र की सबसे वजनदार पार्षद की मदद ली जो भी सिंधी समाज से हैं। पार्षद महोदया अड़ चुकी हैं ताकि बिल्डिंग पर कार्रवाई न हो।
आज कार्रवाई संभव
शिकायतों की लंबी फेहरिस्त के बाद नगर निगम मुख्यालय को दखल देना पड़ी। मुख्यालय ने बिल्डर को रिमूवल नोटिस थमाकर बिल्डिंग का अवैध हिस्सा हटाने के लिए गुरुवार का वक्त मुकरर्र कर दिया। हालांकि बिल्डर पार्षद से लेकर पुलिस अधिकारियों तक के चक्कर लगाता रहा ताकि कार्रवाई टल जाए। पार्षद के प्रेशर से कार्रवाई न रूके तो भी थाना प्रभारी बल देने से मना कर दे और गैंग यह कहकर कार्रवाई टाल दे कि पुलिस बल नहीं मिलने से कार्रवाई नहीं हुई।
ऐसी थी मंजूरी
प्लॉट एरिया : 222.30 वर्गमीटर
बिल्टअप एरिया : 333.45 वर्गमीटर
एफएआर : 1.5
रेसीडेंशियल : 191.66 वर्गमीटर
कमर्शियल : 43.94 वर्गमीटर
पार्किंग एरिया : 25 वर्गमीटर
ऐसे छोड़ना था एमओएस
फ्रंट : 3.65 मीटर
एक तरफ : 1.52 मीटर
दूसरी तरफ : 3.35 मीटर
पीछे : 2.44 मीट

Tuesday, June 6, 2017

व्यापारियों को टैक्स-टेंशन कम, उपभोक्ताओं को राहत ज्यादा

जीएसटी : 23 दिन बाकी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लागू होने में 23 दिन बाकी है। एमपी कमर्शियल टैक्स डिपार्टमेंट से लेकर कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट में जहां डिपार्टमेंटल सेटअप बदले जा रहे हैं वहीं जीएसटी को लेकर व्यापारी वर्ग अब तक आशंकित है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे संदेशों से छोटे-मझोले व्यापारी खौफजदा हैं। इसीलिए दबंग दुनिया ने पड़ताल की। पता चला कि जीएसटी से व्यापारियों को डरने की जरूरत नहीं है। इससे व्यापारियों को टैक्स की दरों में राहत मिलेगी। उपभोक्ताओं को सामान सस्ता मिलेगा। सरकार को भी ज्यादा टैक्स मिलेगा।
जीएसटी को लेकर इंदौर में भी तैयारियां पूरी है। वरिष्ठ कर सलाहकार अभय शर्मा ने बताया कि अभी कोई भी फॉरेन इन्वेस्टमेंट होता है तो उसके सामने टैक्स क्लीयरिटी नहीं है। बांबे में यूनिट लगाई तो महाराष्ट्र का टैक्स रेट अलग। माल इंदौर भेजा तो मप्र का टैक्स रेट अलग। रेट दर नहीं निकल पाती। जीएसटी से पूरे भारत में एक टैक्स रेट होगा। बड़ी बात यह है कि अधिकारियों के लिए वसूली का जरिया बन चुकी जांच चौकियां खत्म हो जाएगी। व्यापार स्मूथ होगा। सेंट्रल एक्साइज जुड़ने से कास्ट कम होगी। सेंट्रल एक्साइज का रिबेट भी मिलेगा।

अभी टैक्स व्यवस्था
मेन्यूफेक्चरर ने 100 रुपए का प्रोडक्ट बनाया। 20 रुपए सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी चुकाई। प्रोडक्ट हुआ 120 रुपए का।
मेन्यूफेक्चरर ने 120 में होलसेलर को माल बेचा। 10 प्रतिशत सेल टैक्स लगा। कीमत हुई 120+12=132 रुपए।
होलसेलर ने रिटेलर को 5% मार्जिन (132 का 5% याने 6.60 रुपए)  जोड़कर कीमत हुई 138.60 रुपए। इस पर 10 प्रतिशत (13.86 रुपए) सेल टैक्स चुकाया। कीमत हो गई 152.46 रुपए।
रीटेलर ने अंतिम उपभोक्ता को 5 % मार्जिन (152.46 पर 7.62 रुपए)  जोड़ा। कीमत हुई 160.08 रुपए। इस पर 10 प्रतिशत (16 रुपए) सेल टैक्स दिया। कीमत हो गई 176.08 रुपए।
यहां पूर्व में चुकाया हुआ सेंट्रल एक्साइज का रिबेट नहीं मिलता था। व्यापारी को सिर्फ सेल टैक्स का रिबेट मिलता था। याने रीटेलर ने उपभोक्ता से जो 16 रुपए सेल्स टैक्स वसूला है उसमें उसे 13.86 रुपए का रिबेट मिल जाएगा क्योंकि यह राशि होलसेलर ने सेल टैक्स के रूप में चुका दी थी। मतलब रिटेलर को जेब से देना होंगे 2.14 रुपए ही।
कुल टैक्स का भार  जो की अंतिम उपभोक्ता पर आया वो 16 सेल्स टैक्स + 20 सेंट्रल इक्साइज मिलाकर कुल हुआ 36 रुपए।
नई व्यवस्था
मेन्यूफेक्चरर ने 100 रुपए का प्रोडक्ट बनाया। 20 प्रतिशत जीएसटी लगा कीमत हुई 120 रुपए।
मेन्यूफेक्चरर होलसेलर को बेचेगा तो सेल टैक्स लगेगा नहीं। 5 प्रतिशत मार्जिन जोड़कर होलसेलर ने रिटेलर बेचा। 20 प्रतिशत (25.20) टैक्स लगा। कीमत हो गई 151.20 रुपए।  इसमें पहले चुका चुके 20 प्रतिशत जीएसटी पर रिबेट मिल जाएगा। याने नेट टैक्स लगेगा 5.20 रुपए।
रिटेलर जब 5 % मार्जिन के साथ अंतिम उपभोक्ता को माल बेचेगा तो उसे 26.20 रुपए की छूट मिल जाएगी।
भ्रम को ऐसे करें दूर
 ई-वे बिल : 50 हजार रुपए से कम की बिक्री आप अपनी बिल बुक पर कर सकते हैं। इससे ऊपर की बिक्री के लिए आॅनलाइन बिलिंग जरूरी है।  हालांकि शुरूआती दौर में यह लागू नहीं होगी। ई-वे बिल के समाधान और उद्योग की मांग के अनुरूप दरों में बदलाव की समीक्षा के लिए परिषद की 11 जून को फिर बैठक होगी। सरकार सीमा बढ़ाकर और अंतरराज्यीय आपूर्ति को अपने दायरे से हटाकर ई-वे बिल के प्रावधानों में छूट देने पर विचार कर रही है।
ट्रांजिट : जांच चौकियां खत्म होगी तो ट्रांजिट का खतरा बढ़ेगा। इसे लेकर भी भ्रम ज्यादा है। क्योंकि सेंट्रल एक्साइज और वाणिज्यिक कर के पास इतना मैदानी अमला नहीं है जो ट्रांजिट की संख्या बढ़ाई जा सके।
सेंट्रल एक्साइज : ट्रेडरों को सेंट्रल एक्साइज की भूमिका से भय है क्योंकि अब तक ट्रेडरों का पाला विभाग से नहीं पड़ा जबकि ऐसा नहीं है वक्त पर रिटर्न दाखिल करके विभागीय कार्रवाई से बचा जा सकता है।
रेवेन्यू न्यूट्रल रेट : जीएसटी से ज्यादातार कारोबार एक नंबर में होगा जिससे सरकार को टैक्स भी ज्यादा मिलेगा। इससे रेवेन्यू न्यूट्रल रेट सिद्धांत के तहत टैक्स की दरों में आगामी वर्षों में कभी भी आएगी। इसका फायदा ट्रेडरों से लेकर उपभोक्ताओं तक को मिलेगा।
सस्ती होगी चीजें : लागू होने से केंद्रीय सेल्स टैक्स (सीएसटी ), जीएसटी में समाहित हो जाएगा जिससे वस्तुओं की कीमतों में कमी आएगी । पूरे भारत में एक ही रेट से टैक्स लगेगा जिससे सभी राज्यों में वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक जैसी होगी।
ऐसी होगी रिटर्न व्यवस्था
अभी ज्यादातर छोटे कारोबारी अपनी खरीद और बिक्री का आकलन कर एक दिन में रिटर्न तैयार कर लेते हैं।  अब जीएसटी रिटर्न साइकल पूरे महीने चलेगा। कारोबारियों को आॅफलाइन की जगह आॅनलाइन आंकड़े सुरक्षित करने होंगे। पूरी प्रक्रिया में टेक्नॉलजी की महत्वूर्ण भूमिका होगी।
हर 10 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-1
फॉर्म जीएसटीआर-1 में  बेचे गए सामान या दी गई सेवाओं का जिक्र करना होगा। रजिस्टर्ड डीलरों को सप्लाइज के हरेक इनवॉइस और  ग्राहकों को बेचे गए सामान या दी गई सेवा की कर योग्य कीमत बताना होगी। दूसरे राज्य में बेचे गए माल या सेवा की कर कर योग्य कीमत 2.5 लाख है तो हर बिल लगेगा।
11 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-1 :- इसमें की घोषणा के आधार पर महीने की 11वीं तारीख को प्राप्तकर्ता के लिए जीएसटीआर-2ए फॉर्म तैयार हो जाएगा।
15 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-2ए :- इसमें दी गई जानकारी के अतिरिक्त कोई दावा करने के लिए 15 तारीख तक जीएसटीआर-2 फॉर्म जमा कर देना होगा।
16 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-2 :- इसमें आप जो सुधार करेंगे, उन्हें आपके सप्लायर को फॉर्म जीएसटीआर-1ए के जरिए मुहैया कराया जाएगा।
120 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-1ए : -  जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर-2 के आधार पर 20 तारीख को आॅटो-पॉप्युलेटेड रिटर्न जीएसटीआर-3 उपलब्ध हो जाएगा जिसे आप पेमेंट के साथ जमा कर सकते हैं।
मिलान से होगी चोरी की संभावना दूर
फॉर्म जीएसटीआर-3 में मंथली रिटर्न फाइल करने की सही तारीख के बाद आंतरिक आपूर्ति और बाह्य आपूर्ति में मिलान होगा। तब इनपुट टैक्स क्रेडिट को आखिरी स्वीकृति मिलेगी। ऐसे होगा मिलान--
- सप्लायर का जीएसटीआईएन
- रिसीपिअंट का जीएसटीआईएन
- इनवॉइस या डेबिट नोट नंबर
- इनवॉइस या डेबिट नोट डेट
- टैक्सेबल वैल्यू
- टैक्स अमाउंट

Saturday, June 3, 2017

संचालक और प्रबंधक ही जीम गए किसानों का ‘क्रेडिट’

कांकरिया पाल सेवा समिति में बंदरबांट
सहकारिता विभाग और आईपीसी प्रबंधन पर भारी सहायक समिति की दादागिरी
इंदौर. विनोद शर्मा।
एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान कृषि और किसान प्रेम के कसीदें पढ़ रहे हैं वहीं किसानों के लिए बनाई गई सेवा सहकारी समितियां भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकी है। इसका ताजा उदाहरण है कांकरिया पाल में संचालित कांकरिया पाल सेवा सहकारी समिति मर्यादित है जो कि इंदौर प्रीमियर को-आॅपरेटिव बैंक की सहयोगी संस्था है। शिकायत के बाद हुई जांच में आरोपों की पुष्टि होने के बाद भी समिति के अध्यक्ष बहादुरसिंह यादव और समिति प्रबंधक शिवनारायण सिंह उर्फ विक्रम यादव को सहकारिता विभाग पद से अलग नहीं कर पाया। इसमें सहकारिता विभाग के अधिकारियों के साथ आईपीसी बैंक के पदाधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध है।
2015 से लगातार होती आ रही शिकायत के अनुसार संस्थाध्यक्ष और सह प्रबंधक ने पद का दुरुपयोग करके समिति के खजाने में सेंधमारी की है। आंकड़ों के लिहाज से बात की जाए तो अध्यक्ष ने 3.300 हेक्टेयर जमीन पर कर्ज की तय लिमिट 1.25 लाख के मुकाबले 3.47 लाख रुपए का कर्ज लिया। ओवरड्यू होने पर भी ब्याज नहीं दिया। ऐसे ही अध्यक्ष ने अपनी मां की जमीन पर भी लिमिट से ज्यादा लोन लिया जबकि मां समिति की सदस्य ही नहीं थी। पत्नी लीलाबाई के पास नाममात्र की जमीन है जिन्हें पात्रता के विपरीत एक लाख का बिना ब्याज लोन दे दिया। इन्हीं जमीनों पर लिए कर्ज का नोड्यूज न होने के बाद भी एसबीआई से लोन लिया। इतना ही नहीं पद का दुरुपयोग करते हुई कई खातेदारों को रेवड़ी की तरह लोन बांटा और समिति को आर्थिक क्षति पहुंचाई। शिकायत के आधार पर सहकारिता विभाग ने प्रभारी सहायक मुख्य पर्यवेक्षक प्रशासकीय कार्यालय जे.एल.मरमट से जांच कराई गई। मरमट ने जांच रिपोर्ट में आरोपों की पुष्टि की। रिपोर्ट के आधार पर सहकारिता उपायुक्त ने अध्यक्ष और सह प्रबंधक को दोषी मानते हुए उन्हें पद से प्रथक करने के आदेश जारी कर दिए।
छह महीने से वहीं जमे हुए हैं यादव
सहकारिता उपायुक्त ने 26 दिसंबर 2016 को पत्र (5093) लिखकर गंभीर आर्थिक अनियमितताओं के आधार पर सहायक प्रबंधक विक्रम यादव को सेवा से अलग करने के आदेश जारी कर दिए। आदेश के अनुसार अनियमितताओं के लिए सहायक प्रबंधक जिम्मेदार है।
इसी मामले में 10 अपै्रल 2017 को उपायुक्त ने अध्यक्ष बहादुरसिंह यादव व अन्य संचालकों (भगवानसिंह पिता प्रहलादसिंह, सुमित्राबाई पति रामधर, गणेश पिता भगवान, वासूदेव पिता हेमसिंह, जगदीश पिता पीराजी, गजानंद पिता राजाराम, कौशल्या पति अंतरसिंह, मीराबाई पत्नी भेरूसिंह, प्रेमबाई पति कल्याणसिंह,  और शामूबाई पति जसवंत) को कारण बताओ नोटिस (1418) जारी किया।  नोटिस में 10 दिन का वक्त दिया गया था लेकिन अधिकारियों द्वारा बताए गए रस्ते पर चलते हुए बहादुर नोटिस के विरुद्ध कोर्ट चला गया।
मामला मुख्यमंत्री तक भी पहुंचा
मामले की शिकायत नरेंद्र शर्मा ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी की। इस शिकायत में दोनों यादवों द्वारा अपने पद के दुरुपयोग कर बैंक के खजाने में की गई सेंधमारी की विस्तृत जानकारी है। शिकायत के अनुसार आईपीसी बैंक के पदाधिकारियों और सहकारिता विभाग के अधिकारियों द्वारा अध्यक्ष व प्रबंधक को बचाया जा रहा है।
किसान के्रडिट कार्ड से किए खेल
वासूदेव हेमसिंह जो कि संचालक मंडल में है ने लोन लिया लेकिन ब्याज नहीं भरा। इन्हें लिमिट से अधिक कर्ज दिया। संचालक शामूबाई जसवंत, कौशल्याबाई और प्रेमबाई को भी लिमिट से अधिक लोन दिया।
रतनसिंह लक्ष्मणसिंह 15 जून 2014 को 3.72 लाख का लोन दिया जबकि इनका खाता 31 मार्च 2014 को ओवरड्यू हो गया था। तीन लाख से अधिक राशि पर 40 हजार ब्याज नहीं वसूला।
पुनीबाई बापूसिंह सांवेर मार्केटिंग प्रतिनिधि हैं इन्हें 3.73 लाख का कर्ज दिया जबकि इनका खाता तीन साल से ओवरड्यूज है। लिमिट से अधिक लोन दिया।
बापूसिंह पिराजी को 5.29 लाख का लोन दिया जो लिमिट से ज्यादा है।





ट्रेवल्स कारोबारी और ड्राइवर के साथ चोइथराम मंडी में व्यापारी ने की मारपीट

- धन-बल के आगे जांच तो दूर पुलिस ने कायमी तक नहीं की
इंदौर. दबंग रिपोर्टर ।
राजनीतिक रसूख और आर्थिक दबाव हो तो पुलिस किसी भी मामले को कितनी आसानी से रफादफा कर सकती है। इसका उदाहरण चोइथराम मंडी में गुरुवार को देखने को मिला जय अम्बे ट्रेव्लस के मालिक और ड्राइवर के साथ मारपीट करने और स्कॉर्पियो गाड़ी फोड़ने वाले मंडी व्यापारी और मुनीम के खिलाफ केस तक दर्ज नहीं किया। हां, मंडी व्यापारी की मदद करने पहुंचे कुख्यात गुंडे युवराज उस्ताद के तीन गुर्गों को जरूर पकड़ा।
मामला गुरुवार दोपहर का है। जय अम्बे ट्रेवल्स की एक आइशर ककड़ी लेकर चोइथराम मंडी स्थित राजेश बागड़ी की दुकान पहुंची। राजेश बागड़ी मौके पर नहीं थे। दुकान में उनके भाई नितिन और बेटा ऋृषभ बागड़ी के साथ मुनीम दीपक भाऊ थे। आइशर ड्राइवर ने कहा कि जल्दी गाड़ी खाली करवा लो, मुझे जाना है। इस पर बागड़ी चाचा-भतीजे और मुनीम की ड्राइवर के बीच कहासूनी हो गई। विवाद बढ़ा और तीनों ने ड्राइवर के साथ मारपीट की। ड्राइवर ने मामले की सूचना मालिक को दी। इधर, युवराज उस्ताद से जुड़े दीपक के फोन करने पर परदेशीपुरा निवासी गणेश पिता बजरंग ताम्बे, विशाल पिता आनंद और मालवा मिल निवासी राहुल पिता दिलीपसिंह चौहान भी मौके पर पहुंचे। ड्राइवर की सूचना पर स्कॉर्पियो लेकर मालिक मंडी पहुंचा तो सभी ने उसके साथ भी मारपीट की और स्कॉर्पियों में तोड़फोड़ की।
रिपोर्ट नहीं लिखी, चलता कर दिया
ट्रेवल्स मालिक और ड्राइवर राजेंद्रनगर थाने पहुंचे। मामले की शिकायत की लेकिन पुलिस ने केस दर्ज नहीं किया। पुलिस के जवान मंडी जरूर पहुंचे। गणेश, विशाल और राहुल को मौके पर पकड़ा। तीनों की तलाशी ली। गणेश के पास रिवाल्वर निकली। इसीलिए पुलिस ने उसके खिलाफ 25 आर्म्स एक्ट के तहत कार्रवाई की जबकि अन्य दो के खिलाफ धारा 151 की मामूली धारा के तहत कार्रवाई की।
विधायक की दया से दर्ज नहीं हुआ केस
बताया जा रहा है कि बागड़ी परिवार की राजनीतिक पकड़ अच्छी है जिसकी वजह से टीआई वी.पी.सिंह का फोन भी गुरुवार-शुक्रवार को बजता रहा। मामले में शहर के दबंग विधायक के दयालू स्वभाव के कारण पुलिस बागड़ी चाचा-भतीजे और मुनीम के खिलाफ केस दर्ज नहीं कर पाई।
युवराज का राजकुमार है दीपक
बताया जा रहा है कि मुनीम दीपक भाऊ युवराज उस्ताद गैंग का खास राजकुमार है। आए दिन मंडी में युवराज का नाम लेकर कभी किसानों से तो कभी गाड़ी वालों से दादागिरी करता रहता है। 

खनीज माफिया लगा रहे हैं ‘गंभीर’ में सेंध

बिना अनुमति होेती रही खुदाई
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) जहां नदियों की सेहत सुधारने के लिए एक के बाद एक गाइडलाइन जारी किए जा रहे हैं वहीं खनन माफिया मुरम के लिए गंभीर नदी में सेंध लगाकर बैठ गए हैं। खनीज विभाग की अनुमति के बिना दोपहर की चिलचिलाती धूप में चोरी-छीपे मुरम खोदने और डम्परों से ले जाने का खेल बदस्तूर जारी है। इस काम में क्षेत्रीय सरपंच और सचिव खनन माफियाओं के साथ हैं जो किसी के विरोध करने पर कहते हैं कि सड़क में इस्तेमाल करेंगे मुरम इसमें क्या दिक्कत है।
मामला इंदौर-अहमदाबाद रोड (एनएच-59) पर गंभीर नदी के किनारे बसे गांव कलारिया का है। यहां नेशनल हाईवे से 350 मीटर दूर र्इंट भट्टों के पास चोरी-छीपे मुरम की खुदाई जारी है। बड़ा हिस्सा खोदा जा चुका है। इस मामले में क्षेत्र के कुछ लोगों ने सप्रमाण खनीज विभाग को शिकायत की। कार्रवाई तो हुई नहीं लेकिन सरपंच-सचिव तक सूचना जरूर पहुंच गई। उनकी तरफ से जवाब मिला गांव में सड़क बन रही है, यह मुरम वहां इस्तेमाल होगी। जब शिकायतकर्ता ने इस संबंध में खनीज विभाग की लिखित अनुमति मांगी तो दोनों कोई जवाब नहीं दे पाए हैं।
जानलेवा है खुदाई
नदी पत्थरीली है। पत्थर की चट्टानों को तोड़कर 10 फीट गहरा गड्डा करके मुरम निकाली जा रही है। 70 डम्पर से ज्यादा मुरम निकाली जा चुकी है। मौके पर गहरा गड्डा हो गया है जो कि कभी भी जानलेवा साबित होगा। इससे पहले जवाहर टेकरी और बड़ा बांगड़दा में खदान के खोदे गड्डे कई की जान ले चुके हैं।
तूम होते कौन हो ज्ञान देने वाले?
इस मामले की शिकायत जितेंद्र सिंह नाम के व्यक्ति ने कलारिया के सरपंच किरण भरत पटेल को शिकायत की थी। पूरा काम भरत पटेल देखते हैं जिन्होंने जितेंद्र को यह कहते भगा दिया कि तुम ज्ञान बाटने वाले होते कौन हो? नदी का वह हिस्सा पंचायत का आधिपत्य है जहां खुदाई की गई है। खोदी गई मुरम पंचायत विकास कार्यों में इस्तेमाल हो रही है। जब उनसे अनुमति का पूछा तो उन्होंने कहा है या नहीं तुझे क्या लेना-देना है।
शिकायत पर सक्रीय हुआ खनीज विभाग
पंचायत द्वारा हकाले जाने के बाद मामले की शिकायत खनीज विभाग को की गई। खनीज विभाग की टीम तक मामला पहुंचने की सूचना के बाद से चोरी-छीपे खुदाई बंद कर दी गई है। शिकायत में खुदाई में  इस्तेमाल हुए नावदापंथ के दो डम्पर और विसनावदा वाले की जेसीबी का जिक्र भी है।
खुदाई हुई है इसके प्रमाण मिले हैं
शिकायत मिलने के बाद मौका मुआयना किया है। मौके पर खुदाई होती तो नहीं मिली लेकिन खुदाई हुई है इसके पुख्ता प्रमाण जरूर मिले हैं। छानबीन जारी है। जल्द ही खुदाई करने वालों को आईडेंटीफाई करके कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
नेहा मीणा, खनीज विभाग

प्लॉट जोड़कर बनाया एक प्लॉट, तानी मल्टी

कैंसर फाउंडेशन ने बेचा है झवेरी कॉलोनी का प्लॉट
इंदौर. विनोद शर्मा ।
झवेरी कॉलोनीमें जिस प्लॉट पर राजेश राणा ने जी+4 बिल्डिंग तानी है वह कैंसर फाउंडेशन पब्लिक चेरेटेबल ट्रस्ट के नाम दर्ज था। नगर निगम के राजस्व रिकार्ड में जहां इस प्लॉट का एरिया बमुश्किल 4500 वर्गफीट दर्ज है वहीं बिल्डिंग पर्मिशन जारी हुई है 6500 वर्गफीट प्लॉट पर। अंतर सीधे 2000 वर्गफीट का। मतलब साफ है बिल्डर ने युक्तियुक्तकरण कर प्लॉट का एरिया बढ़वाया और पर्मिशन ली ताकि उसे पी+4 की पर्मिशन मिल सके।
मामला 5 झवेरी कॉलोनी का है। गुरमुख पिता परसराम छाबरिया, मोनिका अमरलाल मंधवानी, गिरीश पिता टिकमदास सचदेव, संजीत पिता चंदनलाल गेही, विजय पिता श्रीचंद वाधवानी और राजेश पिता श्रीचंद प्रथयानी के नाम 14 सितंबर 2015 को बिल्डिंग पर्मिशन जारी हुई थी। पर्मिशन में प्लॉट का कुल क्षेत्रफल 6562 वर्गफीट बताया गया है। चौतरफा एमओएस कवर और हेंगिंग कर बिल्डिंग में 50 फीसदी अवैध निर्माण किया गया है।
प्लॉटों को जोड़कर बनाया प्लॉट
राजस्व रिकार्ड में प्लॉट नं. 5 के पांच खाते हैं। एक-जेकबआबाद पंचायत, दूसरा पब्लिक चेरीटेबल ट्रस्ट, तीसरा एकनाथ पंढरीनाथ, चौथा उमाशंकर शर्मा और पांचवा राजेश पिता गेंदालाल राठौर। इसमें जेकबआबाद पंचायत और पब्लिक चेरीटेबल ट्रस्ट को प्लॉट नं. 5 के रूप में परिभाषित किया है। वहीं अन्य तीन प्लॉटों को ए, बी और सी के रूप में। एक पर जेकबआबाद पंचायत बनी है और दूसरे पर राणा की बिल्डिंग। 250 से 300 वर्गफीट के बाकी प्लॉट गायब हैं?
जिम भी जीमे, खूली भूमि भी कवर
प्लॉट ट्रस्ट से कैंसर के कारण जान गवाने वाली शालिनी भोरास्कर के भोरास्कर ट्रस्ट के नाम था। ट्रस्ट का विलय कैंसर फाउंडेशन में हुआ था। शलिनी जी के निधन के बाद वित्तीय संकट के कारण उनके ट्रस्ट की संपत्ति बेचना पड़ी। जिसका क्षेत्रफल 4500 वर्गफीट था इस पर 2060 वर्गफीट पर कंस्ट्रक्शन था। जेकबआबाद पंचायत और इस प्लॉट के बीच एक ओलंपिया जिम भी था। एक कोने में 500 वर्गफीट जमीन अतिरिक्त थी। इन सबको जोड़ने के बाद राणा ने 6562.14 वर्गफीट कराया। संयुक्तिकरण पकड़ में न आए इसके लिए पूरे की मार्किंग 5 झवेरी कॉलोनी के रूम में की गई।
क्यों किया एरिये का खेल
मप्र भूमि विकास अधिनियम और मास्टर प्लान 2021 में तय मापदंडों के अनुरूप 4500 वर्गफीट प्लॉट पर पी+4 की अनुमति नहीं मिलती है। इसीलिए इन प्लॉटों को जोड़कर एक प्लॉट बनाया और कुल  9843.22 वर्गफीट बिल्टअप एरिया के साथ पी+4 की पर्मिशन मिली।


शिकायतकर्ता को साधकर रिमूवल से बचने की कोशिश

आलापुरा प्लॉट नं. 24/2 में मनमानी का मार्केट
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
नक्शे के विपरीत 24/2 आलापुरा में बनाये गए जिस निर्माण को नगर निगम ने एक एमआईसी सदस्य की सिफारिश के बाद बख्श दिया था उसे बचाने के लिए निर्माणकर्ता ने शिकायतकर्ता को साधा है ताकि वह अपनी शिकायत वापस ले सके। इस संबंध  में निर्माणकर्ता और शिकायतकर्ता की ‘बात’ भी हो चुकी है। हालाकि उधर, नगर निगम ने नए सिरे से कार्रवाई की जो तैयारी शुरू की थी उसमें भी नेताओं की नेतागिरी आड़े आ रही है।
  प्लॉट है जरिना पति मजहर हुसैन मेहरीन और मजहर हुसैन  पिता नोमान अली मेहरीन निवासी 1121 खातीवाला टैंक सेफीनगर के नाम दर्ज है। प्लॉट पर जी+1 बिल्डिंग बनी है। इसमें नीचे शोरूम है और ऊपर रहवासी। मामले की एक शिकायत किसी महिला ने की थी। इसी शिकायत के बाद जांच हुई। जांच रिपोर्ट में आरोपों की पुष्टि हुई। निगम ने 4 मई का वक्त तय किया था रिमूवल के लिए लेकिन कार्रवाई हुई नहीं। बाद में पता चला कि कार्रवाई को एमआईसी सदस्य ने रूकवाया है। हालांकि मामले का खुलासा होने के बाद दबाव में आए निगम के मैदानी अमले ने दोबारा कार्रवाई की तैयारी की। इधर, मेहरीन परिवार ने अपनी बिल्डिंग बचाने के लिए महिला शिकायतकर्ता जो कि पेशे से वकील है के साथ कोर्ट परिसर स्थित इंडियन कॉफी हाउस (आईसीएच) में मीटिंग की।
डेढ़ लाख रुपए में रुकी शिकायत
कॉफी हाउस में हुई इस बैठक के एक चश्मदीद ने बताया कि मेहरीन परिवार और शिकायतकर्ता के बीच काफी देर तक चले नेगोसिएशन के बाद मामला डेढ़ लाख पर खत्म हुआ।
यह है गड़बड़
- शिकायत के बाद जो जांच हुई थी उसकी रिपोर्ट के अनुसार 3100 वर्गफीट प्लॉट पर 1769 वर्गफीट के ग्राउंड कवरेज के साथ 4768 वर्गफीट निर्माण की मंजूर किया गया था। पीछे 3.05 मीटर एमओएस छोड़ा जाना था।
- सामने करीब फ्रंट एमओएस और पार्किंग के रूप में 15 फीट (537 वर्गफीट) जमीन छोड़ी जाना थी जो नहीं छोड़ी गई।
- बिल्डिंग के बीच में 6 बाय 6.63 मीटर (427 वर्गफीट) का ओपन टू स्काय (ओटीएस) छोड़ा जाना था जो नहीं छोड़ा गया।
- कमर्शियल निर्माण 250.88 वर्गफीट मंजूर किया गया है लेकिन मौके पर बनाए गए शोरूम का आकार इससे 50 फीसदी अधिक है।
- कुल 4402.00 वर्गफीट आवासीय निर्माण होना था जो 5 हजार वर्गफीट से ज्यादा है। 

चेन्नई से इंदौर तक छापे की छाया

कालीसुवरी कनेक्शन, एथेना पर छापा
इंदौर. विनोद शर्मा ।
चेन्नई में गोल्ड विनर ब्रांड तेल बनाने वाली कालीसुवरी रिफाइनरी प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ बुधवार को हुई इनकम टैक्स की छापेमारी की असर छापेमारी के छीटे इंदौर तक भी पहुंचे। चेन्नई इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग की एक टुकड़ी इंदौर पहुंची और यहां स्थानीय अधिकारियों के साथ एथेना ट्रेडविंग प्रा.लि. के ठिकानों पर आधी रात को छापेमार कार्रवाई की गई। कार्रवाई के दौरान कर चोरी से संबंधित कई अहम दस्तावेज हाथ लगे हैं।
चेन्नई विंग के अधिकारी स्थानीय अधिकारियों और पुलिस बल के साथ रात 3 बजे 806 शेखर सेंट्रल स्थित एथेना ट्रेडविंग के कॉर्पोरेट आॅफिस पहुंचे। एक टीम ने 13 संवादनगर स्थित कंपनी के डायरेक्टर अशोक पाठक और विनय पाठक के निवास पर भी दबिश दी। बताया जा रहा है कि एथेना ट्रेडविंग मुलत: ट्रेडिंग कंपनी है जो कि कालीसुवरी रिफाइनरी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा बनाए जा रहे गोल्ड विनर रिफाइंड सनफ्लावर आॅइल, गोल्ड विनर वनस्पित, गोल्ड विनर मुमफली तेल की ट्रेडिंग करती है। आरूशी सोया और आरूशी गोल्ड ब्रांड आॅइल एथेना के हैं। एथेना इसके अलावा चावल और चना प्रोडक्ट भी बनाती है। कार्रवाई बुधवार को देर रात तक जारी रही।
कई अहम दस्तावेज मिले हैं
्रकार्रवाई के दौरान अधिकारियों के हाथ कई ऐसे द्स्तावेज लगे हैं जो बड़ी तादाद में कर चोरी की पुष्टि करते हैं। चेन्नई से आई टीम के अनुसार एथेना कालीसुवरी के आॅइल की ट्रेडिंग करती है वहीं काली सुवरी रिफायनरी में कंपनी के ब्रांड का आॅइल भी तैयार होता है। जब्त दस्तावेजों व अन्य सामग्री को चेन्नई ले जाया जाएगा।
चेन्नई में ब्रांच आॅफिस भी है
एथेना का ब्रांच आॅफिस मुंबई और काकीनाड़ा के साथ चेन्नई में भी मयलापुर में ब्रांच आॅफिस है। कच्चे और रिफायन खाद्य तेल में अच्छा नाम है। यूक्रेन से  सनफ्लावर क्रुड आॅइल का कारोबार भारत के साथ मिडिल इस्ट तक में करती है कंपनी 2010 से। कंपनी 2013 से 2016 के बीच सेंट्रल बैंक आॅफ इंडिया और एचडीएफसी से 32.77 करोड़ का लोन ले चुकी है।
बुधवार को चेन्नई में हुई मुख्य कार्रवाई
आयकर विभाग ने कथित कर चोरी की शिकायत के मामले में चेन्नई स्थित कालीसुवरी रिफाइनरी प्राइवेट लिमिटेड में आज छापेमारी की। सूत्रों ने बताया कि कंपनी के तमिलनाडु में 46 स्थानों समेत दक्षिण भारत के 50 से अधिक स्थानों में आयकर विभाग ने छापे मारे। इसमें कंपनी के मालिक के मयलापुर आवास समेत चेन्नई के 35 से अधिक स्थान शामिल हैं। पुराना 21 और नया 53 राजशेखरन स्ट्रीट मयलापुर चेन्नई के पते पर पंजीबद्ध इस कंपनी के डायरेक्टर कलावती, करूनयनंदनम, कालीस्वरी मुुनुसामी, मुनुसामी अरूण, गुरुसामी मुनुसोमी और शोक कुमार हैं। छापेमार कार्रवाई में कई चेन्नई के कई राजनीतिज्ञों के नाम भी सामने आए हैं जिनसे कंपनी का लेनदेन है।
28 मार्च 1984 से चल रही इस कंपनी को 2008 से 2016 के बीच यस बैंक, स्टेट बैंक आॅफ इंडिया, यूनियन बैंक, आरबीएल बैंक, आईसीआईसीआई, एक्सीस और स्टेंडर्ड चार्टर्ड जैसी बैंकें 1089.42 करोड़ का लोन दे चुकी है। इसमें 500 करोड़ से ज्यादा की देनदारी बाकी है। 

शैलबी के फरेब से सात बाल हृदयरोगियों की सांसे सासंत में

एनएबीएच मान्यता जबलपुर शैलबी को, सर्जरी का वादा इंदौर में, बाद में दिखाया जबलपुर का रास्ता
आरबीएसके की दखल से दूसरे अस्पतालों में हुआ आॅपरेशन, कुछ को अब भी इंतजार
इंदौर. विनोद शर्मा ।
अपने डीजीएम के पिता के ईलाज में लापरवाही करने और लापरवाही के खिलाफ आवाज उठाने पर डीजीएम को टर्मिनेट करने वाले शैलबी हॉस्पिटल के गोलमाल की सजा हृदयरोग से जूझ रहे मासूम भी भुगत रहे हैं। मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना के तहत नेशनल एक्रिडिएशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हैल्थकेअर (एनएबीएच) से एक्रिडिएशन के बिना ही शैलबी इंदौर ने मालवा-निमाड़ के बाल हृदयरोगियों के उपचार की हामी भर दी, जब बारी सर्जरी की आई तो उन्हें शैलबी जबलपुर का रास्ता दिखा दिया, जो रोगियों के लिए मुश्किल था। अंतत:  राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम (आरबीएसके) के अधिकारियों को रोगियों का आॅपरेशन दूसरे अस्पतालों में करवाना पड़ा।
आरबीएसके के तहत मप्र सरकार ने मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना शुरू की थी। योजना के तहत गांव, कस्बों और शहरों में शिविर लगाकर बाल हृदय रोगियों को चिह्नित किया जाना था ताकि बाद में उनका ईलाज एनएबीएच से एक्रिडेटेड किसी अस्पताल में कराया जा सके। शैलबी ने इंदौर और जबलपुर दोनों  हॉस्पिटल के एनएबीएच एक्रिडेशन का आवेदन किया लेकिन एक्रिडेशन हुआ सिर्फ जबलपुर हॉस्पिटल का। इस एक्रिडेशन के दम पर  शैलबी ने शिविर में भाग लेकिन मालवा-निमाड़ के पेशेंट्स को कहा कि आपका आॅपरेशन इंदौर में ही कर देंगे। मैनेजमेंट से मोटी कमीशन लेकर बैठे आरबीएसके के जिम्मेदार अधिकारी मामले में यह कहते हुए चुप्पी साधे बैठे रहे कि शैलबी इंदौर का एक्रिडेशन भी जल्द हो जाएगा जो कि अब तक नहीं आया।
झाबुआ सीएमएचओ की चिट्ठी ने फोड़ा भांडा
शिविर में झाबुआ जिले के हार्ट पेशेंट भी चिह्नित किए गए थे। जिसका जिक्र सीएमएचओ झाबुआ द्वारा 7 फरवरी 2017 को  विजयनगर जबलपुर स्थित शैलबी हॉस्पिटल के संचालक को लिखे पत्र (एनएचएम/आरबीएसके/2017/1569) में भी था। पत्र में सीएमएचओ ने लिखा कि आरबीएसके प्रोसिजर कोट के अनुसार आपके द्वारा आवश्यक जांच उपरांत बाल हृदयरोगियों का पाकलन प्रस्तुत किया गया था। आपको निर्देशित किया जाता है वर्णित हितग्राहियों की सर्जरी या उपचार कर उपयोगिता प्रमाण-पत्र, डिस्चार्ज टिकट, आईपीडी बिल इस कार्यालय में भेजें ताकि योजना के तहत स्वीकृत राशि का भुगतान आपके खाते में किया जा सके।
यह भेजी मरीजों की सूची
मरीज का नमा निवासी स्वीकृत राशि
सपना पिता मांगीलाल धतुरिया पेटलावद 1,70,000
यादेश पिता कालिया देवझिरी, झाबुआ 1,00,000
पूर्वा पिता धर्मेंद्र ऋृतुराजल कॉलोनी थांदला 1,85,000
कटू पिता तानसिंह काकनवानी, थांदला 1,80,000
भावना पिता मांगीलाल करड़ावद झाबुआ 95,000
नेहा पिता मनोज खालखंडवी, मेघनगर 1,55,000
अश्विन पिता राजेश थांदला 95,000
(इनमें 6 पेशेंट 1 से 6 वर्ष के है जबकि एक 17 साल की है।)
मरीज पूरब के ईलाज पश्चिम में
एनएबीएच के तहत मप्र में कुल 14 और इंदौर में पांच हॉस्पिटल एक्रिडेटेड हैं। बॉम्बे हॉस्पिटल, ग्रेटर कैलाश, सीएचएल हॉस्पिटल, मेदांता और चोइथराम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के नाम सूची में हैं। सभी अस्पताल आरबीएसके के अभियान में शामिल हैं। बावजूद इसके शैलबी की फरेब में शामिल अधिकारियों ने झाबुआ के बाल हृदयरोगियों को जबलपुर का रास्ता दिखा दिया जो कि झबुआ से 708 किलोमीटर दूर है। झाबुआ मप्र का एक कोना है तो जबलपुर दूसरा कोना। ऐसे सिर्फ झाबुआ ही नहीं उज्जैन, धार, बड़वानी, खंडवा, देवास सभी जगह किया गया।
बच्चों की जान पर ही बन आई
जबलपुर अस्पताल के लिए चिह्नित किए गए बच्चों के शैलबी इंदौर में ईलाज की तैयारियों की भनक लगते ही स्वास्थ्य विभाग ने कड़ी आपत्ति ली। घबराए शैलबी इंदौर ने बच्चों के आॅपरेशन या उपचार से मना कर दिया। कहा कि  उपचार/आॅपरेशन जबलपुर में होगा। इससे मरीज और परिजनों की हालत खराब हो गई। मामला आरबीएसके पहुंचा। इस बीच यादेश और कटू की हालत ज्यादा बिगड़ी। अधिकारियों ने यादेश का केस ग्रेटर कैलाश ट्रांसफर किया लेकिन अस्पताल ने मना दिया। फिर भंडारी में सर्जरी हुई। ऐसे ही कटू की सर्जरी अरविंदो में हुई।
अब भी नहीं माना शैलबी
अनबेलेंस्ड एविसेनल से पीड़ित सपना पिता मांगीलाल की सर्जरी अब भी नहीं हुई है जबकि फरवरी में ही 1.70 लाख रुपया स्वीकृत हो चुका है। फरवरी में दो महीने का वक्त देकर अस्पताल ने टाल दिया था। आठ दिन पहले परिवार ने बात हुई लेकिन परिवार के बुजुर्ग के पैर पर बेलगाड़ी चढ़ जाने से सपना को इंदौर नहीं लाया जा सका। सर्जरी इंदौर में ही करने पर अड़ा है शैलबी।
जबलपुर को भी ले-देकर किया था शामिल
दस्तावेजों के लिहाज से बात करें तो एनएबीएच में शैलबी जबलपुर का एक्रिडेशन हुआ 22 दिसंबर 2016 में। मान्यता 22 दिसंबर 2016 से 21 दिसंबर 2019 तक के लिए दी गई है। इस बीच अस्पताल का नी-रिप्लेसमेंट सर्टिफिकेट एक्सपायर हो गया था जिसके रिनुअल के लिए आवेदन किया गया था वहीं कार्डियक सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया गया। विधिवत मंजूरी मिले बिना ही शैलबी जबलपुर को अभियान में भागीदार बनाया गया। 22 दिसंबर को मान्यता मिलने के साथ ही अस्पताल ने जनवरी में मरीज चिह्नित कर लिए कि उन्हें फरवरी के पहले सप्ताह में ही सर्जरी के लिए भेजना पड़ा।
मामले की तफ्तीश के लिए दबंग टीम ने बतौर मरीज झाबुआ के आरबीएसके कॉर्डिनेटर सुभाष से बात की।
साहब शैलबी हमारा ईलाज नहीं कर रहा है?
-- कौन बोल रहे हैं?
यादेश डामोर का चाचा बोल रहे हैं?
-- हमने यादेश को भंडारी तो भेजा था।
हां, लेकिन ईलाज तो शैलबी में होना था?
-- आप समझते नहीं है, इंदौर शैलबी ने कहा था कि एक्रिडेटेड हो जाएगा लेकिन हुआ नहीं है।
तो मरीज झाबुआ से जबलपुर क्यों जाएं?
-- हम समझते हैं न इसीलिए तो यादेश को ग्रेटर कैलाश पहुंचाया था वहां मना किया तो भंडारी पहुंचाया।
मना क्यों कर रहे हैं, सब?
केस जब ज्यादा क्रिटीकल हो जाता है तो हर कोई हाथ लगाने से डरता है। वैसे भी यादेश सालभर का बच्चा तो है, कितना मुश्किल है उसके लिए सर्जरी कराना।
अभी भी कई लोग परेशान हैं?
पता है लेकिन जैसे-जैसे हमारे सामने मामले आ रहे हैं, निपटा रहे हैं। क्या करें।

एमआईसी सदस्य और महापौर ‘पुत्र’ ने बचाई अवैध बिल्डिंग

 - नोटिस जारी होने के बाद रूकवाई रिमूवल
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एक तरफ निगमायुक्त की सख्ती ने अच्छे-अच्छे बिल्डरों की नींद उड़ा रखी है वहीं तथाकथित महापौर पुत्र और कुछ नेताओं की मेहरबानी सख्ती पसंद अधिकारियों के लिए अडंगा और भू-माफियाओं के लिए कवच साबित हो रही है। इसका उदाहरण है आलापुर में तीथरथबाई कलाचंद स्कूल के पास स्वीकृत नक्शे के विपरीत बनाई गई दो इमारते हैं जिन्हें रिमूवल नोटिस मिलने के बाद कार्रवाई रूकवाई गई।
मामला मोहनलाल पिता हरचमल बुलानी के प्लॉट नं. 25/1/2 आलापुरा और जरीना पति मजहर हुसैन महरीन के प्लॉट नं. 24/2 पर बन रही बिल्डिंगों का है। नक्शे के विपरीत किए गए अवैध निर्माण की शिकायत और जांच में पुष्टि के बाद भवन अधिकारी महेश शर्मा और भवन निरीक्षक जे.पी.सिंह ने भवन निर्माताओं को नोटिस थमाया था लेकिन संतोषजनक जवाब नहीं मिली। इसीलिए 5 मई रिमूवल की तारीख मुकरर्र की गई थी लेकिन कार्रवाई हुई नहीं। कारण जानने के लिए जब दबंग दुनिया ने पड़ताल की तो पता चला कि 24/2 पर आकार ले रही बिल्डिंग की रिमूवल एक एमआईसी सदस्य  के फोन पर रोकी गई। वहीं दूसरी 25/1/2 पर तन रही बिल्डिंग को किसी व्यक्ति ने महापौर मालिनी गौड़ का बेटा बनकर फोन किया और रिमूवल रूकवाई।
कार्रवाई पर लगे ब्रेक पर उठे सवाल
-- रिमूवल का नोटिस जांच में निर्माण की गड़बड़ पाये जाने के बाद दिया जाता है ऐसे में फिर नोटिस जारी होने के बाद कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
-- नगर निगम की जांच रिपोर्ट गलत थी या रिमूवल नोटिस?
-- यदि किसी के फोन पर कार्रवाई रूकी तो फिर उनके नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए जो बिल्डरों के मसीहा बनकर सामने आए? नाम को लेकर भवन अधिकारी और भवन निरीक्षक चूप्पी क्यों साध गए?
ऐसी है मंजूर हुई थी बिल्डिंगे
प्लॉट नं. 25/1/2
मालिक : मोहनलाल हरचमल बुलानी, रेशमा मोहनलाल बुलानी, दिनेश मोहनलाल बुलानी, कमलेश मोहनलाल बुलानी, हितेश मोहनलाल बुलानी और पलक कमलेश बुलानी।
नक्शा स्वीकृत : 3030/आईएमसी/जेड-12/डब्ल्यू-61/2016
दिनांक : 17 अगस्त 2016
पूरा मामला : 3491 वर्गफीट प्लॉट पर 1242 वर्गफीट के ग्राउंड कवरेज के साथ 4817 वर्गफीट निर्माण की मंजूर किया गया था। सामने 6 मीटर और पीछे 6.93 मीटर एमओएस छोड़ा जाना था। मंजूरी के विपरीत बुलानी परिवार ने एमओएस हजम कर लिया। पार्किंग भी नहीं बख्शी। बीच में भी मनमाना निर्माण किया। बिल्डिंग निर्माणाधीन है।
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प्लॉट नं. 24/2
मालिक :  जरिना पति मजहर हुसैन मेहरीन, मजहर हुसैन  पिता नोमान अली मेहरीन निवासी 1121 खातीवाला टैंक सेफीनगर
नक्शा स्वीकृत : 2938/आईएमसी/जेड-12/डब्ल्यू-61/2016
दिनांक : 27 जुलाई 2016
पूरा मामला : 3100 वर्गफीट प्लॉट पर 1769 वर्गफीट के ग्राउंड कवरेज के साथ 4768 वर्गफीट निर्माण की मंजूर किया गया था।  पीछे 3.05 मीटर एमओएस छोड़ा जाना था। मंजूरी के विपरीत बेहरीन ने भी मनमाना निर्माण किया।

इंदौर में हर दिन बिकती है 630 किलो मिलावटी चांदी

- नक्कालों का सालाना कारोबार करीब हजार करोड़ का
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जिस शहर के ज्वेलर मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत होने वाली सरकारी शादी में नकली चांदी सप्लाई कर रहे हैं वह इंदौर मप्र में असली और मिलावटी चांदी के कारोबार की राजधानी बन चुका है। आंकड़ों के अनुसार  इंदौर में हर दिन करीब 1800 किलो चांदी के बर्तन, ज्वेलरी और सिक्के बिकते हैं इसमें 35 फीसदी यानी 630 किलोग्राम मिलावटी चांदी खपाई जाती है। 40 हजार रुपए/किलोग्राम की कीमत के हिसाब से खपाई गई नकली चांदी की कीमत 2.52 करोड़ रुपए आंकी जा रही है। मतलब सालाना 919.80 करोड़ का फर्जी करोबार।
चकाचौंध रोशनी से जगमगाते करीने में चमक बिखेरती चांदी दिखाकर इंदौर में कई ज्वेलर खरीदारों की आंख में धूल झौंक रहे हैं। इसका बड़ा उदाहरण है जनसुनवाई के दौरान भोपाल कलेक्टर के सामने प्रस्तुत की पायजेब और बिछिया हैं जो इंदौर के ज्वेलर वायबर डायमंड ने मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत सप्लाई की थी। जांच के दौरान इसमें भारी मिलावट मिली। इसके बाद से ही इंदौर के चांदी कारोबार को लेकर सवाल उठने लगे हैं। वहीं चांदी के सिक्कों और मुर्तियों या फिर धर्मस्थलों पर चढ़ने वाली चांदी सबसे ज्यादा मिलावट की संभावना यही रहती है। क्योंकि  आस्था के कारण व्यक्ति इन्हें गलाकर नहीं देखता।
टंच के नाम पर टांका
- इंदौर में जो चांदी का कारोबार हो रहा है उसमें 90 फीसदी 10 से लेकर 80 टंच की चांदी है। मिलावटी चांदी के आॅर्नामेंट (पायजेब, कमरबंद, बिछिया, बाजूबंद, चुड़ियां, कड़े, झुमके और पैर की कड़ी) ज्यादातर राजकोट और कोल्हापुर से आती है।
- इंदौर में हर दिन 1000-1200 किलोग्राम चांदी के आॅर्नामेंट बिकते हैं। सबसे ज्यादा खरीदार आसपास के शहर, कस्बों और गांवों के लोग हैं। यहां हर दिन पांच से सात राजकोट ओर कोल्हापुर के लोग रहते ही हैं।
- चांदी का सिक्का 98 टंच का रहता है तो उसे 100 टंच का बता दिया जाता है। इतना ही नहीं 10 से 30 टंच की चांदी को 60 से 70 टंच की बताकर बेचा जा रहा है।
- नकली चांदी के सिक्कों में अन्य धातु के अलावा जर्मन सिल्वर की भी मिलावट की जाती है। यह भी चांदी के रंग का ही होता है। इसलिए मिलावट आसानी से पकड़ में नहीं आती है। म्
इंदौर में भी है चांदी के सिक्के-बर्तन कारखाने
सूत्रों के अनुसार इंदौर में ही तीन कारखाने चल रहे हैं जहां चांदी से सिक्के या बर्तन बनाए जाते हैं। तीनों कारखाने इंदौर के सराफा कारोबारियों के ही हैं।
मानक सेंटर ही नहीं:  चांदी में मिलावट का धंधा बढ़ने की खास वजह है कि मार्केट में आपको मानक सेंटर या मानक ब्यौरा के सेंटर नहीं मिलेंगे। यही वजह है चांदी के ज्वैलरी, बर्तन और सिक्कों में बड़े स्तर पर मिलावट की जाती है।
शुद्धता का पैमाना : चांदीसिल्ली 30 किलो वजनी होती है। जिसकी खरीद बैंक से की जाती है। चांदी सिल्ली में 99.99 प्रतिशत शुद्धता होती है। सिक्का 22 कैरेट 91.60 प्रतिशत शुद्ध चांदी से बना होता है। हालांकि कई विक्रेता 20 से 80 प्रतिशत मिलावटी चांदी के सिक्का, बर्तन और ज्वैलरी तैयार कर बेच रहे हैं।
यह है जांचने के उपाय
शुद्धता की स्टैप : सोने की तरह चांदी की भी हालमार्किंग होती है। सोने में जहां शुद्धता के लिए कैरेट बताया जाता है वहीं चांदी में शुद्धता के लिए फीसदी को आधार माना जाता है। चांदी के बार पर शुद्धता लिखी होती है। जैसे 99.9 फीसदी या 95 फीसदी।
खनक पर ध्यान देना है जरूरी :- असली और नकली सिक्कों की पहचान उसकी खनक से भी की जाती है। मेटल पर असली चांदी का सिक्का गिराने पर भारी आवाज आती है, जबकि नकली सिक्का लोहे की तरह खनकता है। प्राचीन और विक्टोरियन सिक्के गोल व घिसे रहते हैं, जबकि नकली सिक्कों के किनारे कोर खुरदुरी रहती है।
थर्मल कंडक्टिविटी टेस्ट :- चांदी थर्मल एनर्जी की सबसे अच्छी सुचालक होती है। चांदी असली है या नकली, इसके लिए आप एक बर्फ का टुकड़ा चांदी पर रखें। किसी दूसरे मेटल के मुकाबले चांदी पर रखी बर्फ ज्यादा तेजी से पिघलेगी, क्योंकि थर्मल एनर्जी तेजी से बर्फ में ट्रांसफर होती है।
मैग्नेट टेस्ट :- सिल्वर मैग्नेटिक धातु नहीं होती। इस टेस्ट के लिए आपको सामान्य से ज्यादा पावर वाले मैग्नेट की जरूरत होगी, जो आपको हार्डवेयर की दुकान से मिल जाएगा। नकली सिल्वर मैग्नेट की ओर अट्रैक्ट होगा। जबकि असली सिल्वर मैग्नेट की ओर अट्रैक्ट नहीं होता है।
केमिकल टेस्ट :- अगर चांदी पर शुद्धता की कोई स्टैंप नहीं लगी है तो आप केमिकल टेस्ट कर सकते हैं। आप आॅनलाइन सिल्वर केमिकल टेस्ट किट खरीद सकते हैं। केमिकल टेस्ट किट में ही टेस्ट की सारी प्रक्रिया लिखी रहती है। इस टेस्ट से आपकी चांदी को नुकसान पहुंच सकता है, अगर आपके पास ज्यादा वैल्यू की चांदी है या आप अपने चांदी के प्रोडक्ट पर निशान नहीं आने देना चाहते तो दूसरे तरीके आजमा सकते हैं।
खनक :- किसी मेटल पर असली चांदी का सिक्का गिराने पर भारी आवाज होती है जबकि नकली सिक्का लोहे की तरह आवाज करता है।

निगम की शह पर तन रही है अवैध राधे समृद्धि

अवैध बेसमेंट, एमओएस हजम
इंदौर. चीफ रिपोर्टर।
मनमाने निर्माण के साथ तन चुकी इमारतों को वहां रहने वाले लोगों के लगे हुए पैसों का हवाला देकर बख्शने वाले नगर निगम के अधिकारियों की शह पर स्कीम-71 और गुमाश्तानगर में कुकुरमुत्तों की तरह अवैध इमारतें खड़ी हो रही है। न मैदानी स्तर पर निगम की मॉनिटरिंग हो रही है। न ही प्लींथ सर्टिफिकेट जारी हो रहे हैं। जहां जारी हुए हैं वहां भी ले-देकर अवैध निर्माण को दबा दिया गया है।  इसका बड़ा व ताजा उदाहरण स्कीम-71 में आकार ले रही राधे समृद्धि मल्टी है।
स्कीम-71 सेक्टर सी के प्लॉट नं. 15 ए का है। 4254 वर्गफीट के इस प्लॉट पर प्रतीक पिता कमल सियाल और मेसर्स समृद्धि कंस्ट्रक्शन मिलकर राधे समृद्धि नाम की मल्टी बना रहे हैं। 1 और 2 बीएचके वाली इस मल्टी में शुरूआती स्तर पर बिल्डर ने मप्र भूमि विकास अधिनियम, मास्टर प्लान 2021 और नगर निगम द्वारा नक्शा स्वीकृति के साथ तय की गई शर्तों का उल्लंघन कर दिया। बिल्डर ने नियमों को नजरअंदाज करते हुए पहले मार्जिनल ओपन स्पेस(एमओएस) कवर किया और फिर 30 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज की मंजूरी को एक तरफ करके 100 प्रतिशत प्लॉट पर बेसमेंट बना दिया। बिना कंपलीशन सर्टिफिकेट जारी हुए बिल्डिंग में फ्लैट की बुकिंग भी शुरू हो चुकी है।
ऐसी दी गई है अनुमति
नगर निगम ने 17 जून 2016 को आवासीय उपयोग के लिए बिल्डिंग पर्मिशन (आईएमसी/2359/जेड-15/डब्ल्यू-83/2016) जारी की थी। करीब 30 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज के साथ 1323 वग्रफीट निर्माण किया जा सकता था। मप्र भूमि विकास अधिनियम के नियम 76 के तहत बेसमेंट में पार्किंग होना है। 1.25 एफएआर के मान से 12 मीटर तक की ऊंचाई में 10 प्रतिशत बालकनी कवरेज सहित कुल 5849 वर्गफीट निर्माण किया जा सकता है।
अभी नहीं रोका तो 168 प्रतिशत अवैध बनेगी मल्टी
पूर्व पार्षद परमानंद सिसोदिया की शिकायत से मामले का खुलासा हुआ है। शिकायत के अनुसार मप्र भूमि विकास अधिनियम के नियम 76 के खिलाफ लगभग 85 प्रशित में यानी 3600 वर्गफीट में बेसमेंट बना दिया गया है। 90 प्रतिशत एमओएस की जमीन में 2500 वर्गफीट अवैध बेसमेंट बना दिया है। ग्राउंड फ्लोर के स्वीकृत 1323 वर्गफीट के स्थान पर लगभग 3 हजार वर्गफीट निर्माण किया जा रहा है जो कि स्वीकृति से 1677 वग्रफीट ज्यादा है। इन दोनों बिंदुओं के आधार पर कहा जा सकता है कि यदि तीन फ्लोर पर 1500 वर्गफीट की जगह 3400 वर्गफीट निर्माण होगा तो कुल निर्माण 10200 वर्गफीट हो जाएगा जो कि स्वीकृत निर्माण से 5700 वग्रफीट ज्यादा है। एमओएस और ग्राउंड फ्लोर के 4177 वर्गफीट कब्जे के साथ यह आंकड़ा 9877 वर्गफीट होता है। मतलब 168 प्रतिशत अवैध निर्माण।
एमओएस कवर करना जानलेवा
मप्र भूमि विकास अधिनियम के तहत हर प्लॉट एरिये पर स्वीकृत होने वाली मल्टी के लिए चौतरफा मार्जिनल ओपन स्पेस(एमओएस) छोड़ा जाना जरूरी है। इसका उपयोग आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने के लिए होता है।
भ्रष्ट तंत्र बना रहा है भू-माफिया
नियमानुसार किसी भी किसी भी बिल्डिंग में शुरूआती दौर में मॉनिटरिंग के बाद नगर निगम प्लींथ सर्टिफिकेट जारी करता है जो यह तय करता है कि उक्त निर्माण नियमानुसार हो रहा है। यहां भवन अधिकारी और भवन निरीक्षक ने प्लींथ सर्टिफिकेट जारी ही नहीं किया और बिल्डर ने ऊपरी मंजिलें तान दी। यदि सर्टिफिकेट जारी हुआ तो फिर 30 प्रतिशत से ज्यादा ग्राउंड कवरेज करके बेसमेंट कैसे बनाया गया? अधिकारी इस बात का जवाब दें।
परमानंद सिसोदिया, पूर्व पार्षद

‘कन्यादान’ में कमीशनबाजी

कन्यादान की चांदी में खोट, खरीदी से पहले जांच तक नहीं होती
- मिलावटखोरों के आगे मुख्यमंत्री की मेहनत मटियामेट
इंदौर. विनोद शर्मा ।
भोपाल में कन्यादान योजना के तहत वधू को नकली चांदी के जेवर थमाकर इंदौर के वाइबर डायमंड ज्वैलर ने जहां मुख्यमंत्री के सपनों पर पानी फेरा है वहीं दिए जाने वाले जेवर की गुणवत्ता को लेकर बरती जा रही लापरवाही भी उजागर कर दी है। मामले ने सरकार ने ज्वैलरी की गुणवत्ता के लिए तय मापदंड या उन्हें परखने के लिए जिस जिला स्तरीय समिति को जिम्मेदारी सौंपी हैं उसके गैरजिम्मेदाराना रवैये की हकीकत बयां कर दी। खुलासे के बाद दबंग दुनिया ने पड़ताल की तो पता चला कि जिस इंदौर के ज्वैलर भोपाल में नकली चांदी टिका रहे हैं उस शहर में कभी ज्वैलरी की जांच नहीं हुई।
मप्र में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना 2006 से चल रही है। इन 11 वर्षों में वर-वधू को दी जाने वाली सामग्रियों को लेकर समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं। मौजूदा मापदंडों के अनुसार वधू को चांदी की पायजेब-बिछिया और कपड़ों के साथ सात बर्तन भी दिए जाते हैं। इन सभी सामान की खरीदी टेंडर से होती है। 29 अपै्रल को भोपाल में हुई शादी के लिए भी इन तमाम प्रक्रियाओं का पालन करके ज्वैलरी खरीदी गई जो सप्ताहभर में ही काली पड़ गई। मामले में दबंग दुनिया ने इंदौर में हकीकत जानी। पता चला कि यहां जनपद और नगर निगम स्तर पर ज्वैलरी की खरीदी होती है।  65 टंच चांदी जरूरी है, हालांकि कभी इस बात की तस्दीक नहीं की गई कि जिस ज्वैलर को ठेका दिया है उसने जो चांदी दी है वह मापदंड के अनुरूप है भी या नहीं?
टंच को लेकर शहरवार बदलते हैं नियम
बड़ी बात यह है कि चांदी की गुणवत्ता को लेकर एकसूत्रीय मापदंड नहीं है। समाज कल्याण विभाग, जनपद और नगर निगम ने खरीदी के लिए इंदौर में 65 टंच की चांदी अनिवार्य कर रखी है वहीं अन्य शहरों में कहीं 70 टंच, तो कहीं 80 टंच चांदी की डिमांड की जाती है। नजदीकी शहर धार में 3 अपै्रल 2017 में पायजेब के लिए 75 टंच और बिछिया के लिए 60 टंच चांदी अनिवार्य की गई।
जनपद में खरीदी
पहले काम समाज कल्याण विभाग के पास था अब जनपद खरीदी करती है। कई बार बिना ई-टेंडर के खरीदी हो जाती है। गुणवत्ता को लेकर मापदंड तय नहीं है। गुणवत्ता जांचने की जिम्मेदारी जिलास्तरीय समिति की है लेकिन गुणवत्ता को लेकर कभी कोई बैठक नहीं हुई।
नगर निगम की खरीदी ऐसे
नगर निगम में चांदी व अन्य सामान की खरीदी करने वाले विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि चांदी की केटेगरी 60 से 65 टंच तय है जो सामान्यत: बाजार में भी तय है। ई-टेंडर से खरीदते हैं। शुरूआत में एक-दो बार गुणवत्ता जांची, सही निकली। फिर कभी चेक नहीं की। बीते दिनों ज्वैलरी खरीदी के लिए तीन-चार बार टेंडर निकाले गए लेकिन किसी ने रुचि नहीं ली। नए सिरे से टेंडर जारी कर रहे हैं।
ऐसे भी करते हैं खेल...
अपै्रल में धार में हुई टेंडर प्रक्रिया सवालों के घेरे में रही। पायजेब के लिए 75 टंच ओर बिछिया के लिए 60 टंच चांदी तय हुई। 5 कंपनियों ने रुचि ली।   आभूषण के लिए इन्दौर की एक फर्म की दरें न्युनतम रही। औसत के हिसाब से बात करें तो  70 टंच चांदी 1 ग्राम वजन की लागत  35 रुपये आंकी गई जबकि इन्दौर की एक फर्म ने 1% वेट टेक्स व 2.5% टीडीएस के साथ इसकी न्युनतम दर 32.75 पैसे/ग्राम का टेंडर डाला। टैक्स काटकर करीब 31.62रुपए/ग्राम जो कि औसत मुल्य से 3.38 रुपए/ग्राम कम है। इतनी कम दरों पर दिए जाने वाले आभूषण की गुणवत्ता जांचना जरूरी थी जो मोटी कमीशन लेकर नहीं जांची जाती।
पहले भी खूली कान्यादान की पोल
2014 में छतरपुर के लवकुशनगर में दर्ज हुई शिकायत के अनुसार जहां सोने का मंगलसूत्र का वजन 1 ग्राम देना था वहां जांच में 700 मिलीग्राम दिया गया। शुद्धता की बात करें तो 50 से 55 प्रतिशत ही थी जबकि 80 प्रतिशत प्रस्तावित थी। वहीं चांदी में पायल व बिछिया में 44.20 टंच ही चांदी ही दी गई।
जर्मन सिल्वर को बता देते हैं चांदी
चांदी की कीमत 40 हजार रुपए किलोग्राम है। बनवाई 500-600 रुपए/किलोग्राम पड़ती है। वहीं जर्मन सिल्वर 1000-1500 रुपए/किलोग्राम आता है जो दिखता चांदी जैसा ही है। इसीलिए मुनाफाखोरी करने वाले ज्वैलर जर्मन सिल्वर से बनाकर उस पर चांदी की पॉलिश कर देते हैं। मतलब जर्मन सिल्वर को चांदी की कीमत 40500 या 40600 रुपए/किलोग्राम पर बेचकर ऐसे ज्वैलर 37 से 38 हजार रुपए/किलोग्राम तक का मुनाफा कमा जाते हैं।
(सराफे के एक बड़े कारोबारी ने जैसा बताया)

बैंकों ने लगा रखे हैं चौधरी के खिलाफ 2246 करोड़ के सूट

2009 के बाद नहीं चुकाया कर्जा, माल्या के बाद विलफुल डिफाल्टर्स की सूची में दूसरा नाम जूम
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मल्हारगंज से निकलकर हिंदुस्तान का माल्या-2 बन बैठे जूम डेवलपर्स के संचालक विजय चौधरी के खिलाफ 2012 से लेकर 2016 के बीच विभिन्न बैंकों और डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल 20 सिविल सूट दायर कर चुके हैं। चौधरी को 2246.47 करोड़ के कर्ज की अदायगी न करने का आरोपी मानते हुए यह सूट दायर किए गए हैं। करीब इतने ही सूट जूम डेवलपर्स और उसके विभिन्न संचालकों के नाम दर्ज हैं। संचालकों में विजय की पत्नी मंजरी और ससूर बिहारीलाल केजरीवाल तक शामिल हैं।
जूम के विजय चौधरी पर 1994 से लेकर 2009 तक बैंके जमकर मेहरबान रही। इसका उदाहरण है इन 15 वर्षों में अलग-अलग बैंकों से जारी हुआ 6701 करोड़ का कर्ज जिसका जिक्र मिनिस्ट्री आॅफ कॉर्पोरेट अफेयर्स में दर्ज कंपनी की प्रोफाइल में भी है। हालांकि जूम ने 2009 तक कर्जे की अदायगी का सिलसिला भी जारी रखा लेकिन इसके बाद बैंकों की तरफ पलट कर देखा तक नहीं। विजय माल्या की फरारी के बाद जारी एक रिपोर्ट के अनुसार विलफुल डिफॉल्टर्स की लिस्ट में दूसरा नाम जूम डेवलपर्स का है। ग्रुप पर बैंकों का करीब 1911 करोड़ रुपए बकाया है। बैंकों ने इस ग्रुप के प्रमोटर्स और कंपनी के खिलाफ करीब दर्जनभर से ज्यादा मुकदमें दायर किए हैं। इस समूह ने देश के 26 सरकारी बैंकों से करीब 3002 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। इसमें से 1911 करोड़ रुपए का विलफुल डिफॉल्ट है। इस समूह के प्रमोटर्स और अन्य लोग भारत और विदेश में हैं। इसकी भरपाई के लिए किसी बैंक ने कंपनी या चौधरी की प्रॉपर्टी कुर्क करके निलाम कर दी तो कुछ ने डिफाल्टर करार देते हुए सिविल सूट दायर कर दिया।
कंपनी के साथ व्यक्तिगत भी सूट
बड़ी चीज यह है कि करीब दर्जनभर बैंकों ने जूम डेवलपर्स के खिलाफ 30 सितंबर 2016 को एक साथ सिविल सूट फाइल किए। इसके अलावा जबलपुर से लेकर दिल्ली तक के डेप्थ रिकवरी ट्रिब्यूनल तक भी चौधरी और उसकी कंपनी के खिलाफ रिकवरी के आदेश दे चुके हैं लेकिन राशि जमा नहीं हुई।
2016 में बैंकों की डिफा्ल्टर लिस्ट में जूम
पीएनबी ने फरवरी 2016 में 11000 करोड़ के जिन स्वघोषित डिफाल्टर के रूप में जिन 900 कंपनियों की लिस्ट जारी की थी उसमें भी जूम डेवलपर्स का नाम शामिल था। इस कंपनी पर पीएनबी का 400 करोड़ से ज्यादा बकाया है। इसी तरह अक्टूबर 2016 में यूको बैंक ने इरादतन पैसा न चूकाने वालों की जो लिस्ट डाली थी उसमें जूम पहले नंबर पर था जो 300 करोड़ का देनदार है।
क्या होता है विलफुल डिफॉल्टर
 कोई भी व्यक्ति या कंपनी जिसके पास लोन चुकाने लायक रकम हो, लेकिन वह बैंक की किश्त अदा नहीं करे और बैंक उसके खिलाफ अदालत में चला जाए। ऐसा व्यक्ति या कंपनी विलफुल डिफॉल्टर कहलाता है।
जारी है पूछताछ
इधर, विशेष न्यायालय से मिली 13 मई तक की रिमांड के बाद प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने विजय चौधरी को 24 घंटे अपनी कस्टडी में रखने का निर्णय लिया। इसीलिए चौधरी ने बुधवार की रात ईडी आॅफिस में ही गुजारी। गुरुवार दिनभर भी उससे पूछताछ होती रही। चौधरी ने कुछ सवालों के जवाब में उसने बैंक गारंटी घपले की बात स्वीकारी वहीं कुछ आरोप सिरे से नकार दिए। कुछ मामले ऐसे थे जिस पर वह चुप्पी साधे बैठा रहा। उलटा, ईडी की कार्रवाई को नजायज बताता रहा।

इन्वेस्टिग्ेशन विंग की कमान सिलवामनी को

झा पहुंचे भोपाल, इटारसी का अतिरिक्त प्रभार
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग को एक के बाद एक सर्च के साथ जबरदस्त पहचान देने वाले एडिशनल डायरेक्टर इनकम टैक्स प्रशांत झा अब भोपाल में एडिशनल कमिश्नर इनकम टैक्स रेंज-1 की कमान संभालेंगे। विंग की जिम्मेदारी दी गई है के.सी.सिल्वामनी को जो विंग में डिप्टी डायरेक्टर रहने के साथ ही इंदौर में ही ज्वाइंट कमिश्नर इनकम टैक्स की भूमिका निभाते आ रहे हैं।
नई व्यवस्था प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर इनकम टैक्स द्वारा 2 अपै्रल को जारी हुए आदेश (09/2017-18) के अनुसार की गई है। आदेश के तहत एडिशनल कमिश्नर इनकम टैक्स और ज्वाइंट  कमिश्नर इनकम टैक्स रेंज के 10 अधिकारियों के तबादले किए गए हैं। वहीं 10 अधिकारियों को उनके पद के साथ अतिरिक्त जिम्मेदारी भी दी गई है। इंदौर से जाने वालों में झा का नाम शामिल हैं जिन्हें इटारसी रेंज की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। वहीं भोपाल मुख्यालय के जेसीआईटी पुनीत कुमार को इंदौर रेंज-2 की जिम्मेदारी दी गई है। कुमार सिलवामनी की जगह मुख्यालय का दायित्व भी संभालेंगे। सिलवामनी इनकम टैक्स इंदौर में विभिन्न पदों पर रहने के साथ ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) इंदौर में डिप्टी डायरेक्टर पद भी रह चुके हैं।
प्रशांत के. झा
सर्विस नंबर - 03014
नियुक्ति - 22 दिसंबर 2003
जन्म - 11/09/1976 बिहार
शिक्षा - एमए (इकोनॉमिक)
2003 से 2007 : असिसटेंट कमिश्नर इनकम टैक्स
2008 से 2012 : डिप्टी कमिश्नर इनकम टैक्स दिल्ली
2012 से : ज्वाइंट कमिश्नर इनकम टैक्स इंदौर
2013-14 से : जेडीआईटी इनकम टैक्स विंग
के.सी. सिलवामनी
सर्विस नंबर - 04064
नियुक्ति - 27 दिसंबर 2004
जन्म - 04/04/1976 तमिलनाडू
शिक्षा - एएससी (एग्रीकल्चर)
2009-10 : डिप्टी डायरेक्टर  इन्वेस्टिगेशन विंग
2012-14 : डीडी, ईडी
2014-17 : जेसीआईटी इनकम टैक्स मुख्यालय
कौन अधिकारी कहां गए
नाम कहां से कहां
ए.आर.रेवार रेंज-4 भोपाल रेंज-3 भोपाल
डी.के.जैन रेंज-2 रायपुर रेंज-1 भिलाई
डी.आर.लथोरिया रेंज सागर रेंज-1 ग्वालियर
आई खंडेलवाल यूओपी एमपी-सीजी रेंज-1 जबलपुर
नीरज प्रधान रेंज-1 भोपाल मुख्यालय भोपाल
पी.के.मीणा यूओपी एमपी-सीजी जेडीआईटी-जबलपुर
शीतल के.वर्मा रेंज-1 भिलाई रेंज-2 रायपुर
अरिरिक्त जिम्मेदारी
नाम अभी अतिरिक्त चार्ज
मोहम्मद जावेद आईटीएटी इंदौर रेंज-4 इंदौर
आर.पी.मौर्या रेंज-5 इंदौर रेंज-2 उज्जैन
एस.एच.सोलंकी रेंज-1 उज्जैन रेंज रतलाम

अब ताला तोड़कर भी दस्तावेज जब्त कर सकेंगे अधिकारी

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
अभी तक वाणिज्यिक कर विभाग के जो अधिकारी सिर्फ कारोबारियों के खिलाफ छापेमार कार्रवाई करते थे अब वे कारोबारियों के साथ ट्रांसपोर्टर्स के गोदाम और वेयरहाउस की जांच भी कर सकेंगे। यहां  टैक्स चोरी में मदद की मकसद से संग्रहित किए गए उत्पाद को जांच के बाद जब्त भी किया जा सकेगा। एसोसिएशन आॅफ पार्सल ट्रान्सपोर्ट एंड फ्लीट ओनर्स द्वारा आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए यह जानकारी वरिष्ठ कर सलाहकार आर.एस.गोयल ने दी।
जीएसटी लागू होने पर ट्रान्सपोर्ट व्यवसाय पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी देते हुए गोयल ने बताया कि व्यावसाई के विरोध के बावजूद जांचकर्ता अधिकारी उन कमरों के ताले तोड़ सकेंगे जिनमें व्यवसायी ने दस्तावेज और हिसाबात रख रखें हैं जो जांच के लिए जरूरी है। टैक्स व पेनल्टी के साथ बांड या सिक्यूरिटी प्राप्त होने के बाद ही जब्त माल को रिलीज किया जा सकेगा। 6 महीने में जिस माल को लेकर नोटिस जारी नहीं हुआ है उसे भी रिलीज करना होगा। मौके पर मौजूद वरिष्ठ कर सलाहकार विजय बंसल ने आयकर के प्रावधानों की जानकारी दी।
यह भी बताया
जिस जब्त प्रोडक्ट के जल्दी खराब होने की संभावना हो, जो खतरनाक हो, या ज्यादा जगह घेरता हो उसे नियमानुार बेचकर विभाग प्राप्त कीमत से टैक्स और पेनल्टी की पूर्ति कर सकता है। बिक्री से पहले जब्त माल की सूची बनाना होगी।
दस्तावेजों की जब्ती और हिसाब की खोज के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता के तहत मजिस्ट्रेट को दिए गए सभी अधिकार कमिश्नर को भी रहेंगे।
50 हजार से अधिक के माल परिवन की स्थिति में ट्रांसपोर्टर के पास ईबिल होना चाहिए। या वाहन पर रेडियो फ्रिक्वेन्सी आयडेन्टिफिकेशन डिवाईस (आरएफआईडी) लगाकर उसे ई-वे बिल से मेपिंग करना होगी।
ट्रांसपोर्टर से संबंधित कड़े प्रावधान
यदि कोई रजिस्टर्ड ट्रांसपोर्टर बिना कागजात के माल परिवहन करता है तो उस पर 10 हजार की पेनल्टी लगाई जा सकेगी। या परिवहन माल के देयक के बराबर ड्यूटी देना होगी।
अनरजिस्टर्ड ट्रांसपोर्टर के कब्जे में कोई माल है और उसका परिवहन किया जा रहा है तो उस पर 25 हजार की पेनल्टी होगी।
तब जाकर रिलीज होगा जब्त माल
- यदि माल का मालिक टैक्स एवं पेनल्टी की राशि स्वेच्छा से भरने  को तैयार हो।
- यदि उस माल पर देयकर और देयकर के 100 प्रतिशत के बराबर पेनल्टी का भुगतान कर दिया गया हो।
- यदि करमुक्त माल है तो माल की कीमत के 2 प्रतिशत के बराबर की राशि या 25000 रुपए की राशि का भुगतान कर दिया गया हो।
- जिन मामलों में माल मालिक स्वेच्छा से टैक्स चुकाने को तैयार न हो उनमें माल पर देयकर एवं ऐसे माल के मूल्य के 50 प्रतिशत के बराबर पेनल्टी की राशि  का भुगतान कर दिया गया हो तभी माल छूटेगा।
- करमुक्त माल है, तो माल की कीमत के 5 प्रतिशत के बराबर की राशि या 25000 रुपए का भुगतान कर दिया गया हो।
- माल के मालिक  द्वारा देयकर एवं पेनाल्टी के बराबर की प्रतिभूति जमा करने पर माल रिलीज हो जाएगा।
यह भी समझ लें ट्रांसपोर्टर
- कोई भी वाहन या माल तब तक रोका नही जाएगा या जप्त नहीं किया जाएगा, जब तक कि माल के परिवहनकर्ता को इस संबंध मे समुचित नोटिस जारी करते हुए, ऐसे नोटिस को तामील नहीं कर दिया गया हो।
- माल मालिक द्वारा देयकर एवं पेनल्टी की राशि जमा करा दिए जाने के बाद माल को रोके जाने एवं जब्ती से संबंधित समस्त कार्यवाहियों को समाप्त होना माना जायेगा।
- किसी ट्रांसपोर्टर या माल मालिक  द्वारा देयकर एवं पेनल्टी की राशि का भुगतान, माल को रोके जाने या जप्त किए जाने के 7 दिन की अवधि में जमा नही किया जाता है तो ऐसी स्थिती में ट्रांसपोर्टर या माल के मालिक को जब्त माल के एवज में फाइन जमा करने  के लिए तीन महीने की सुनवाई का अवसर देना होगा।
अपराधिक कार्यवाहियों के लिए दण्ड
किसी व्यक्ति  द्वारा किसी माल का कब्जा लिया जाता है। उस माल के ट्रांसपोर्टेशन करने या हटाने की कोशिश की जाती है। संग्रहण करने या छिपाने का प्रयास किया जाता है तो ऐसी कार्रवाई होगी-
टैक्स चोरी कारावास एवं फाईन
5 करोड़ से अधिक 5 वर्ष
2.5 से 5 करोड़   3 वर्ष
1 से 2.5 करोड़ 1 वर्ष
(अन्य अपराधों के लिए 6 महीने तक का कारावास एवं फाईन लगाए जाने तक के प्रावधान है)
- ऐसा व्यक्ति जिसे जीएसटी के अंतर्गत पूर्व मे अपराधी ठहराया जा चुका हो, दोबारा अपराध करता है तो दूसरी या जितनी बार अपराधी ठहराया गया हो उसे उतनी ही बार 5 साल तक की सजा होगी।

मोदी के फरमान ने भर दी सरकार की झोली

हर विभाग में टार्गेट से ज्यादा मिला राजस्व
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नोटबंदी के जिस फरमान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के लिए आलोचना का कारण बन गया था उसी फरमान ने सरकारी खजाने लबालब कर दिए। फिर मुद्दा नगर निगम के राजस्व में बढ़ोत्तरी को हो या फिर आयकर, सेंट्रल एक्साइज या वाणिज्यिक कर विभाग में हुए लक्ष्य से ज्यादा कलेक्शन का। हर विभाग में 2016-17 के लिए तय हुए टार्गेट से अधिक राजस्व जमा हुआ है।
2007-08 में आई विश्वव्यापी मंदी भले साल-दो साल में दूर हो गई थी या जिसका असर हिंदुस्तानी अर्थव्यवस्था पर ज्यादा नहीं पड़ा था लेकिन फिर भी उसकी आड़ लेकर कारोबारी टैक्स चुकाने से बचते रहे। नुकसान बताते रहे। कारोबारियों की बहानेबाजी की पोल खुली 2016-17 में। जब नोटबंदी और मंदी के तमाम दावों के बावजूद मप्र के वाणिज्यिक कर विभाग ने 26500 करोड़ के लक्ष्य के मुकाबले 27300 करोड़ रुपए का राजस्व अर्जित किया। वह भी तब जब बीते कुछ वर्षों से कम कलेक्शन के कारण टार्गेट रिवाइज करके कम करना पड़ते थे। ऐसे में टार्गेट का पूरा होना और उससे 800 करोड़ ज्यादा मिलना बहुत-कुछ कहानी बयां कर गए।
86 करोड़ ज्यादा मिले निगम को
इंदौर नगर निगम में 2015-16 में 353 करोड़ का राजस्व मिला था जो 2016-17 में बढ़कर 439 करोड़ प्राप्त हुआ। सीधे 86 करोड़ की बढ़त। इसमें संपत्तिकर 2015-16 में 175 करोड़ था जो 34 प्रतिशत की बढ़त के साथ 235 करोड़ के पार हो गया। सबसे ज्यादा राजस्व नवंबर और दिसंबर में जमा हुआ। मतलब न सिर्फ टैक्स चुकाने के लिए लोगों ने 1000-500 के पुराने नोट जमकर खपाए बल्कि वर्षों से बकाया संपत्तिकर भी फुर्ति के साथ चुकाया। आयुक्त मनीष सिंह की सख्ती और बढाई गई राजस्व अधिकारियों की तकनीकी क्षमता भी राजस्व बढ़ोत्तरी का बड़ा कारण साबित हुई।
आयकर भी 19 हजार करोड़ पार
आयकर विभाग द्वारा मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ रीजन को वर्ष 2016-17 के लिए दिया गया लक्ष्य पूरा करके उससे ज्यादा टैक्स वसूला गया।  केंद्र सरकार की कालेधन को लेकर की गई चार बड़ी योजनाओं में भी रीजन ने काफी सराहनीय काम किया। जानकारी के अनुसार मप्र- छग रीजन को बीते साल 17,850 करोड़ का लक्ष्य दिया गया था जबकि आयकर प्राप्त हुआ करीब 19500 करोड़। सिर्फ नवंबर और दिसंबर में ही 19 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई। 2007-08 के बाद यह पहला मौका था जब इनकम टैक्स को टार्गेट से ज्यादा पैसा मिला है। बीते वर्षों में दिसंबर तक इनकम टैक्स कम मिलता था इसीलिए सेंट्रल बोर्ड आॅफ डायरेक्टर टैक्स (सीबीडीटी) को जनवरी में टार्गेट रिविजन के बाद कम करके नया टार्गेट तय करना पड़ता था। होता यह था कि रिवाइज टार्गेट के बराबर भी टैक्स नहीं मिलता था।
कस्टम, सेंट्रल एक्साइज और सर्विस टैक्स भी बढ़ा
पांच वर्षों से लगातार कस्टम और सेंट्रल एक्साइज लक्ष्य से कम मिलता रहा है। सर्विस टैक्स के आंकड़े जरूर संतोषजनक रहे। 2016-17 में सिर्फ इंदौर प्रिंसिपल कमिश्नरेट ने ही कुल 1810 करोड़ के टार्गेट के मुकाबले 1880 करोड़ रुपए का राजस्व मिला है। बताया जा रहा है कि नोटबंदी के कारण नवंबर-दिसंबर में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से लेकर आॅटोमोबाइल इंडस्ट्री तक में डिमांड अच्छी रही। इसीलिए कंपनियों में उत्पादन ज्यादा हुआ और ड्यूटी ज्यादा मिली।
किस मद से कितना
मद टार्गेट प्राप्ती
कस्टम 440 445
सर्विस 820 825
एक्साइज 550 610

सिगरेट कंपनियों में सरकार का फिजिकल कंट्रोल खत्म

2008 से हर कंपनी में 24 घंटे ड्यूटी देना पड़ रही थी अधिकारियों को
इंदौर. विनोद शर्मा ।
देशभर की तमाम सिगरेट कंपनियों में कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स विभाग ने अधिकारियों की राउड द क्लॉक जो ड्यूटी लगा रखी थी उसे सोमवार को वित्त मंत्रालय ने रद्द कर दिया है। 1 मई यानी श्रमिक दिवस पर निकाले गए एक नोटिफिकेशन में सरकार ने साफ कर दिया है कि सिगरेट कंपनियों में फिजिकल अटेंडेंस की जरूरत नहीं है। कंपनी से सिगरेट की क्लीयरिंग के दौरान असेसी द्वारा असेस की गई ड्यूटी का असेसमेंट ही अधिकारी करेंगे। शंका के आधार पर प्रिवेंटिव टीम छापेमार कार्रवाई कर सकती है।
भारत सरकार, वित्त मंत्रालय, राजस्व विभाग और सेंट्रल बोर्ड आॅफ एक्साइज एंड कस्टम (सीबीईसी) ने 1 मई 2017 को सर्कुलर (1055/04/2017-सेंट्रल एक्साइज) जारी किया। सभी प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर, चीफ कमिश्नर, प्रिंसिपल कमिश्नर को भेजे गए इस सर्कुलर में सीबीईसी ने सिगरेट कंपनियों में अधिकारियों के फिजिकल कंट्रोल को खत्म कर दिया है। अभी डिपार्टमेंट ने 8-8 घंटे की तीन शिफ्टों में सिगरेट कंपनियों के लिए अधिकारियों की ड्यूटी लगा रखी है। रॉ मटेरियल लाने, सिगरेट बनाने और बिल-इन्वॉयस बनने के बाद कंपनी से सिगरेट रवाना होने तक अधिकारियों का नियंत्रण रहता था। उन्हें हर चीज की रिपोर्ट देना होती थी। फिर भी प्रिवेंटिव टीम कार्रवाई करती थी।
नया सर्कुलर ऐसा होगा
नए सर्कुलर के अनुसार अधिकारियों के दायित्व को दो तरह से बांटा गया है। पहला- कंपनी द्वारा बनाई गई सिगरेट के कंपनी से निकलते वक्त ड्यूटी का अससेमेंट करना ताकि यह समझा जा सके कि पार्टी ने कहीं ड्यूटी का आंकलन गलत तो नहीं किया है। दूसरा- बिल व इन्वॉयस पर काउंटर साइन करना।
सकुर्लर में यह भी दो टूक शब्दों में स्पष्ट कर दिया गया है कि फिजिकल कंट्रोल के संबंध में पूर्व में जितने भी सर्कुलर या आदेश जारी किए गए हैं वे नये सर्कुलर के जारी होते ही अमान्य हो जाएंगे। यह भी तय कर दिया गया है कि फिजिकल कंट्रोल का उपयोग आवश्यकतानुसार किया जा सकेगा।
प्रिवेंटिव टीम संभाले मैदान
फिजिकल कंट्रोल को खत्म करने के साथ ही केंद्र सरकार ने मुख्यालय में तैनात प्रिवेंटिव टीम की ड्यूटी बढ़ा दी है। यह तय कर दिया गया है कि जिन सिगरेट कंपनियों पर ड्यूटी चोरी की शंका होगी उन पर प्रिवेंटिव की टीम के साथ अधिकारी छापेमार कार्रवाई कर सकेंगे।
क्यों की गई थी व्यवस्था
सिगरेट के कम्यूनिटी मेन्युअल को ध्यान रखते हुए सीबीईसी ने 24 दिसंबर 2008 को सर्कुलर (224/37/2005-सेंट्रल एक्साइज) जारी करके सिगरेट कंपनियों में फिजिकल कंट्रोल की व्यवस्था की थी। व्यवस्था का मकसद था सिगरेट कंपनियों में सिगरेट के उत्पादन पर बारीकी से नजर रखना। ताकि सिगरेट कंपनियों में हो रहे सिगरेट के मनमाने उत्पादन और एक्साइज ड्यूटी चोरी पर अंकुश लगाया जा सके।
क्यों बंद करना पड़ा फिजिकल कंट्रोल
-- हर कंपनी में तीन-तीन अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई। ड्यूटी 15 दिन के रोटेशन के हिसाब से लगाई गई। यानी हर महीने एक कंपनी के लिए छह अधिकारी नियुक्त करना पड़ते थे। अतिरिक्त जिम्मेदारी अलग। ऐसे सालाना 72 अधिकारी एक ही कंपनी की जिम्मेदारी संभालते थे।
-- इधर, डिपार्टमेंट में सुप्रीटेंडेंट और इंस्पेक्टर्स की संख्या पर्याप्त नहीं है जिसकी वजह से कामकाज प्रभावित हो रहा है।
-- कंपनियों की मनमानी और ड्यूटी चोरी के लिए तय हुआ फिजिकल कंट्रोल अधिकारियों के लिए कमाई का जरिया बन गया। हर अधिकारी ने अपने तरीके से अपनी बोली लगाई और पैसा कमाया। जिसका नुकसान विभाग को ड्यूटी के रूप में भी हुआ।
-- पुरुष अधिकारियों के साथ ही महिला अधिकारियों की ड्यूटी भी सिगरेट कंपनियों में लगा दी गई। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में सुंघने की क्षमता ज्यादा होती है जिसका खामियाजा महिला अधिकारियों को सिगरेट कंपनियों में बीमार होकर चुकाना पड़ा। प्रिंसिपल कमिश्नर डॉ. एस.एल.मीणा ने इंदौर में भी महिला अधिकारी नियुक्त की थी।
फायदा
फिजिकल कंट्रोल खत्म होने से सिगरेट कंपनियों का उत्पादन बढ़ेगा।
बड़ी कंपनियों और छोटी कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्घा बढ़ेगी।
सिगरेट उत्पादन के साथ ही ड्यूटी के रूप में मिलने वाला राजस्व भी बढ़ेगा।

निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स पर भी कसेगा रेरा का शिकंजा


अन्य राज्यों में छूट, मप्र सरकार की बड़ी पहल कंपलिशन सर्टिफिकेट वाले ही बचेंगे
इंदौर. विनोद शर्मा ।
आधे-अधूरे प्रोजेक्ट के रूप में बिल्डर की मनमानी और वादाखिलाफी की सजा भुगत रहे उन तमाम लोगों को जल्द राहत मिलेगी जो फ्लैट, प्लॉट, मकान, दुकान और आॅफिस में जीवनभर की पूंजी लगाने के बाद भी किराये का जीवन जी रहे हैं। इसकी व्यवस्था सोमवार यानी 1 मई से लागू हुए मप्र सरकार के रीयल एस्टेट रेग्युलेटरी एक्ट (रेरा) के तहत की गई है। मप्र की शिवराज सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए उन तमाम निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स को एक्ट के दायरे में ला खड़ा किया है जिनका 1 मई तक पूर्णता प्रमाण-पत्र संबंधित विभाग से जारी न हुआ हो। मप्र में ऐसे प्रोजेक्ट्स की संख्या सैकड़ों में और उनकी लागत अरबों में है।
अपना आशियाना लेने वालों को बिल्डरों की मनमानी से बचाने और फ्राड रोकने के लिए केंद्र सरकार ने मार्च 2016 में रियल एस्टेट बिल पास किया था। केंद्र से बिल पास होने के बाद सभी प्रदेश सरकारों को गाइडलाइन तैयार कर अपने यहां लागू करवाना था। इसी के आधार पर नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने 22 अक्टूबर 2016 को गजट नोटिफिकेशन जारी करते हुए मप्र के रीयल एस्टेट कारोबार के लिए रेग्युलेटरी एक्ट बना दिया। इस एक्ट की खासबात यही है कि जहां अन्य प्रदेशों की सरकार निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स को रेरा से छूट दे रही थी वहीं मप्र सरकार ने मौजूदा प्रोजेक्ट्स को एक्ट का हिस्सा बनाकर उन तमाम लोगों को राहत दी है जो अर्से से पजेशन के इंतजार में बैठे हैं।
क्यों जरूरी थे मौजूदा प्रोजेक्ट
यदि इंदौर को ही आधार मानकर बात की जाए तो बायपास, सुपर कॉरिडोर, खंडवा रोड, महू रोड, नेमावर रोड, उज्जैन रोड, देपालपुर रोड के आसपास तकरीबन 1000 से अधिक रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट हैं। इनमें कॉलोनियों से लेकर मार्केटव टाउनशीप तक शामिल हैं। 100 प्रोजेक्ट ही ऐसे होंगे जिन्हें सरकारी कंपलीशन से हटकर कंपलिट प्रोजेक्ट कहा जा सकता है। बाकी ऐसे हैं जिन पर काम शुरू तो हुआ, खत्म नहीं हुआ। कहीं जमीन के मालिकाना हक का विवाद सामने आ गया। कहीं आर्थिक तंगी के कारण बिल्डर ने हाथ खींच लिए। कहीं बुनियादी सुविधाएं आधी-अधूरी हैं तो कहीं बिल्कुल है ही नहीं। कुछ ऐसे प्रोजेक्ट हैं जो वर्षों से बिल्डिंग पर्मिशन के इंतजार में ही अटके हुए हैं। निवेशकों ने इन प्रोजेक्ट्स के भाव तो बढ़ा दिए लेकिन बुनियादी सुविधाओं के इंतजार में लोग घर बनाकर नहीं रह पा रहे हैं। किश्तें जरूर चुकाने लगे हैं। टाउनशीप्स में पजेशन का इंतजार है।
यह है मप्र का एक्ट
- धारा (3) की उपधारा 1 के तहत उन तमाम चलती आ रही परियोजनाओं के लिए भी रेरा में पंजीयन करना जरूरी होगा जिनका 1 मई 2017 तक संबंधित विभाग से पूर्णता प्रमाण-पत्र जारी नहीं हुआ है।
- अधूरी परियोजनाओं वाले बिल्डरों को परियोजना संबंधित कब से प्रोजेक्ट पर काम जारी है से लेकर कंपलिट होने की समयसीमा तक की जानकारी देना होगी।
- किसी भी फ्लैट, आॅफिस या दुकान का क्षेत्रफल कॉर्पेट एरिया के हिसाब से बताना होगा। भले पहले सुपर बिल्टअप एरिया से गणना दिखाई गई हो। ऐसे ही बेचे गए प्लॉट का एरिया भी बताना होगा।
पंजीयन हुआ या निरस्त
- विनियामक प्राधिकरण नियम-3 की धारा 5 के तहत परियोजना का रजिस्ट्रेशन होने पर बिल्डर को प्रारूप  ‘ग’ में रजिस्ट्रेशन नंबर के साथ एक रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र जारी होगा।
- इसी तरह धारा 5 के तहत आवेदन निरस्त होने की जानकारी प्रारूप ‘घ’ में दी जाएगी।
कोई अनुबंध रेरा से परे नहीं
अधिनियम की धारा 13 की उपधारा (2) के लिए विक्रय अनुबंध अनुलग्नक ‘क’ में होगा। मतलब अपार्टमेंट, प्लॉट या मकान के संबंध में रेरा रजिस्ट्रेशन से पहले किया गया भी विक्रय अनुबंध रेरा के नियमों और आवंटी या खरीदार के हितों से ऊपर नहीं होंगे।
यह सब जानकारी होगी रेरा की वेबसाइट पर
- विकासकर्ता की प्रोफाइल। रजिस्टर्ड पता।
- विकासकर्ता की शैक्षणिक व व्यावसायिक पृष्ठभूमि।
- विकासकर्ता का ट्रेड रिकार्ड। अनुभव। पूर्व में किए गए काम। मौजूदा प्रोजेक्ट। प्रस्तावित प्रोजेक्ट।
- प्रोजेक्ट को लेकर विचाराधीन या निराकृत हो चुके मुकदमे।
- विकासकर्ता की वेबसाइट लिंक
- प्रोजेक्ट की वेबसाइट लिंक
इनकी जानकारी भी स्पष्ट देना होगी।
- प्रस्तावित प्रोजेक्ट में धारा 4 की उपधारा 2 के तहत फायर फाइटिंग सिस्टम, पेयजल व्यवस्था, आपातकालीन सेवाएं, नवीकरणीय ऊर्जा, बिजली, सड़क, मेले पानी के निस्तारण की व्यवस्था बताना होगी।
ऐसा होगा डिपार्टमेंटल स्ट्रक्चर
प्राधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन या रिक्तियों की पूर्ति का अधिकार राज्य सरकार को होगा।
हर रिक्ती के लिए दो व्यक्ति का चयन होगा। 45 दिन में राज्य सरकार को उनकी अनुसंशा करना होगी। अनुंसशा के 15 दिन भीतर योग्यता के आधार पर अध्यक्ष या सदस्य बनाया जा सकेगा।  मुख्य सूचना आयुक्त या आयुक्तों की तनख्वाह के बराबर वेतन व भत्ते होेंगे।
प्राधिकरण के काम...
विनियामक प्राधिकरण का कार्यालय भोपाल में होगा।
प्राधिकरण के काम के दिन और कार्यालय के घंटे वही होंगे जैसे राज्य सरकार के अन्य विभागों के होते हैं। सील या प्रतीक भी वैसे ही होंगे जैसे राज्य सरकार के हैं।
किसी भी मामले में पंजीयन से पूर्व जांच की जा सकेगी। प्रोजेक्ट की प्रस्तावित जमीन पर बिल्डर के अधिकार, जमीन का सीमांकन या क्षेत्र, टीएनसी, प्रोजेक्ट के संबंध में बिल्डर की वित्तीय क्षमता, प्रोजेक्ट से जूड़ी परियोजनाएं।


ऐसे काम करेगा ट्रिब्यूनल
धारा 44 की उपधारा 1 के तहत फाइल की गई हर अपील के साथ अपीलीय प्राधिकरण की फीस का डिमांड ड्राफ्ट लगाना होगा।
अपील करने के लिए जरूरी है उस आदेश की प्रमाणित या सत्यप्रति जिसके विरुद्ध अपील की गई हो। उन दस्तावेजों की सूची जिन पर आवेदक निर्भर हो। अन्य दस्तावेजों की एक सूची।
शहर के प्रोजेक्ट जो सिरदर्द से कम नहीं है
सहारा सिटी होम्स : बिचौली मर्दाना में 89 एकड़ जमीन पर 2686 परिवारों के लिए प्रोजेक्ट प्लान किया गया था जहं 714 से लेकर 4262 वर्गफीट तक का सेलेबल एरिया था। 2017 तक भी प्रोजेक्ट में 600 से ज्यादा परिवार शिफ्ट नहीं हो पाए। पजेशन न देने के कारण कुछ दिनों पहले हर्जाना जरूर खरीदारों को दिया गया था। प्रोजेक्ट की समयसीमा अब भी तय नहीं है।
पिनेकल ड्रीम्स : पीपल्याकुमार की 11.39 एकड़ जमीन पर लक्जीरियस लाइफ स्टाइल के वादे के साथ 17 मंजिला 14 टॉवर बनाए गए थे। इनमें ऊंची कीमतों पर बेचे हैं। कई लोग कर्ज अदायगी के साथ ही मकान का किराया भी चुका रहे हैं।
आईबीडी बेलमोंट पार्क : इस प्रोजेक्ट पर आईबीडी और स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर नाम की कंपनी ने जिस गति से काम शुरू किया था उस गति से अंजाम नहीं दे पाई। दोनों कंपनियां बीच में ही प्रोजेक्ट छोड़कर बेच चुकी हैं। अभी यहां 70 प्रतिशत फ्लैट के पजेशन नहीं हुए हैं। कैलोदहाला गांव की तकरीबन 25 एकड़ जमीन (65 प्रतिशत खुली भूमि) पर यह सात मंजिला प्रोजेक्ट बन रहा है। कुल 1400 फ्लैट के 42 टॉवर बनना है जिसमें से कुछ पर तो काम भी शुरू नहीं हुआ।
होराइजन ग्यांस पार्क : ग्यांसपार्क कॉलोनी (टेलीफोन नगर) स्थित ग्राम खजराना की 39523 वर्गफीट जमीन पर 2009-2010 से बन रही होराइजन प्रीमियम गुलमोहर ग्यांस पार्क टाउनशिप। 2008 में स्वीकृत हुए नक्शे के अनुसार तीन ब्लॉक मंजूर हुए हैं जिनमें 1830 व 1940 वर्गफीट के तीन बीएचके और 2440 से 2475 वर्गफीट के चार बीएचके फ्लैट बने हैं, जिनकी कीमत 64 लाख से लेकर 90 लाख रुपए तक बताई जा रही है। प्रोजेक्ट में अब तक एक भी फ्लैट को पजेशन नहीं दिया गया है।
करूणासागर : ग्राम कनाड़िया 26890 वर्गमीटर जमीन पर हाईवे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. के नाम से टीएनसी व अन्य अनुमतियां हुई थी। कुल इसमें ईडब्ल्यूएस/एलआईजी सहित 6 मंजिला कुल 16 टॉवर मंजूर हुए थे। कुल 42800 वर्गमीटर निर्माण की अनुमति दी गई लेकिन बिल्डर ने भारी अवैध निर्माण किया। बुकिंग पर फ्री कार और स्कूटर के साथ ही फ्री रजिस्ट्री का आॅफर देने के बाद भी विवादों और मंदी के कारण आधे ब्लॉक अधूरे हैं।
प्रशांत सागर : करूणासागर बनाने वाली कंपनी प्रशांत सागर संचारनगर में खजराना की जमीन पर प्रशांतसागर नाम से टाउनशीप बना रही है लेकिन वह भी आज तक पूरी नहीं हो पाई। विगत पांच साल से प्रोजेक्ट निर्माणाधीन है। जमीन के मालिकाना हक के विवाद के बीच एक बार तो अनुमतियां भी रद्द हो चुकी हैं। अर्से तक काम बंद रहा।
प्लाज्जयो पार्क रेसीडेंसी : ग्राम पीपल्याकुमार की तकरीबन दो एकड़ जमीन पर टाउनशीप आकार ले रही है। पहले जी+6 के हिसाब से बिल्डिंग का काम शुरू हुआ था लेकिन आसपास ऊंची इमारतों ने प्रोजेक्ट की पूछपरख कम कर दी थी। इसीलिए कंपनी ने इसे हाइराइज की शक्ल देना शुरू कर दी। प्रोजेक्ट पर पांच साल से काम जारी है। अब तक पजेशन नहीं दिया गया। कुल तीन टॉवर है। 180 यूनिट है।
सुमेर सेफ्फरॉन सिटी : पूर्वी इंदौर की तरह पश्चिमी इंदौर (केसरबाग रोड) में भी चकाचौंध भरी जिंदगी का सपना दिखाकर 2008-09 में प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ था जो आज दिन तक पूरा नहीं हुआ। इंदौर के नरेंद्र गोरानी की जमीन पर प्रोजेक्ट को मुंबई के सुमेर ग्रुप ने शुरू किया था। प्लानिंग थी 11 हाइराइज बिल्डिंग के टॉवर बनना था। 2/3/4 बीएचके के 558 फ्लैट बनना हैं।
यह है फायदा
रेरा के लागू होने से रीयल एस्टेट को नुकसान नहीं हुआ। दुरगामी परिणाम अच्छे होंगे। बिल्डरों और प्रोजेक्ट्स पर उपभोक्ताओं के साथ ही बैंकों का भरौसा भी बढ़ेगा। वित्तीय व्यवस्था के लिए साहुकारों के आगे हाथ नहीं फैलाने होंगे।
विजय मीरचंदानी, शालीमार समूह
स्वस्थ्य प्रतियोगिता होगी। वास्तविक कारोबार बढ़ेगा। अनुशासन के साथ काम होगा। एक समय तक ही कारोबार में गिरावट नजर आएगी, बाकी सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
अखिलेश कोठारी, सिल्वर कॉरिडोर
यह हैं अन्य फायदे..
-  500 वर्ग मीटर या 8 अपार्टमेंट वाले प्रॉजेक्ट के बिल्डर के लिए जरूरी होगा कि वह रेगुलेटरी अथॉरिटी के पास खुद को रजिस्टर करवाए और प्रॉजेक्ट की पूरी जानकारी अथॉरिटी को दे।
- तय समय में प्रॉजेक्ट पूरा न होने पर खरीदारों को उतना ही ब्याज देना होगा, जितना खरीदार के भुगतान में देरी पर लिया जाएगा।
- डेवलेपर जो पैसा उपभोक्ताओं से लेते हैं, उस राशि का 70 फीसदी हिस्सा उन्हें अलग से बैंक में रखना होगा। इसका इस्तेमाल वह केवल और केवल निर्माण कार्यों में ही कर सकता है। शेष बची राशि का इस्तेमाल वह अन्य कामों के लिए कर सकता है। पहले बिल्डर इस पैसे का इस्तेमाल अपने दूसरे कामों या प्रॉजेक्ट्स में कर लेता था जिसके चलते प्रॉजेक्ट विशेष में देरी हो जाती थी।
- अगर बिल्डर प्लान में कोई बदलाव करना चाहता है, तो उसे दो-तिहाई खरीदारों की सहमति लेनी होगी। कब्जा देने के पांच साल बाद तक बिल्डिंग की जिम्मेदारी बिल्डर की ही होगी।
- केस का फैसला रेगुलेटरी अथॉरिटी को 60 दिन में करना होगा। अपीलीय ट्रिब्यूनल के लिए भी 60 दिन का वक्त रहेगा।
- गड़बड़ी करने वाले बिल्डरों के साथ ही रियल एस्टेट एजेंटों के लिए भी इस बिल में सजा का प्रावधान है। बिल्डर को तीन साल तक और एजेंट को एक साल तक कैद हो सकती है।
- बिल्डर यदि ऐसे प्रॉजेक्ट्स को कस्टमर को बेचते हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं तो उनके प्रॉजेक्ट पर पैनल्टी लगेगी।
- यह बिल कमर्शियल और रेजिडेंशल दोनों ही प्रकार के प्रोजेक्ट्स/प्रॉपर्टी पर लागू होगा और पैसे के लेन-देन पर पूरी नजर रखी जाएगी। ऐसे में यदि दुकान आदि के लिए स्पेस ले रहे हैं तो आपके हितों की रक्षा भी इस बिल के दायरे में होगी।
- रियल एस्टेट एजेंट्स भी रेगुलेटरी अथॉरिटी के साथ रजिस्टर होंगे। ऐसे में एजेंट्स के हाथों धोखाधड़ी की संभावना कम से कम होगी। एजेंट्स केवल वे ही प्रॉजेक्ट्स बेच पाएंगे जोकि रजिस्टर्ड होंगे।
- इस बिल के लागू होने के बाद एक फायदा यह होगा कि डेवलेपर की प्रॉजेक्ट संबंधित गतिविधियों में ट्रांसपैरेंसी रहेगी। पहले खरीददार केवल वही जान पाता था जो उसे बिल्डर द्वारा बताया जाता था।
-प्रॉजेक्ट में तब तक कोई बदलाव नहीं किया जा सकता जब तक की खरीददार की अनुमति न हो।
-नियमों का उल्लंघन करने पर पेनल्टी और जेल की सजा तक का प्रावधान है।


दिवालिया की दहलीज पर ‘पिनेकल ड्रीम्स’

टाउनशीप बनाने वाली कंपनी जेएसएम की माली हालत खराब, नहीं चुका पा रही है कर्जा
बैंकों और इन्वेस्टर्स के साथ प्रचार-प्रसार करते रहा मीडिया भी परेशान
इंदौर. विनोद शर्मा ।
बॉलीवुड के हीरो नंबर-1 गोविंदा और दबंग गर्ल सोनाक्षी सिन्हा के फ्लैट की बुकिंग के साथ ही देशभर में चर्चा का केंद्र बनी पिनेकल ड्रीम्स दिवालिया होने की कगार पर है। बनाने के साथ ही टाउनशीप की ब्रांडिंग करने वाले जेएसएम समूह की माली हराब है। हालात यह है कि बैंकों और भागीदारों का कर्ज चुकाना तो दूर कंपनी अखबारों में प्रकाशित विज्ञापन तक का पैसा नहीं चुका पा रही है। जो चेक दिए भी हैं तो वह बाउंस हो गए।
पिपल्याकुमार के सर्वे नं. 56 पैकी, 61/1 पैकी और 61/2 की की 4.610 हेक्टेयर जमीन जो कि अशोका हाईटेक बिल्डर्स के नाम है उस पर रेशो डील के साथ आशीष दास की कंपनी जेएसएम डेवकॉन प्रा.लि. ने 2010-11 में 51 मीटर ऊंची पिनेकल ड्रीम्स का काम शुरू किया था। कंपनी को 1200 फ्लैट्स बनाने थे। आर्थिक मंदी और संचालकों के खराब लेन-देन ने कंपनी को करीब करीब दिवालिया कर दिया है। यही वजह है कि कंपनी 600 फ्लैट ही बना पाई। इसमें भी पजेशन मिला सिर्फ आधों को। फ्लैट खरीदार, इन्वेस्टर्स, बैंक और भागीदार सब कंपनी के चक्कर काट रहे हैं लेकिन उन्हें वक्त पर पैसा नहीं मिल पा रहा है।
विज्ञापन के लगे दर्जनभर केस
पिनेकल ड्रिम्स के प्रचार-प्रसार के लिए जेएसएम समूह ने समाचार पत्रों से लेकर समाचार चैनलों तक पर विज्ञापन किए। हालांकि दो साल में आर्थिक स्थिति की खराबी के कारण इन विज्ञापनों का पेमेंट तक नहीं कर पाई कंपनी। बात सिर्फ दबंग दुनिया की करें तो कुल 21 लाख के विज्ञापन लगे। इनमें से 18 लाख रुपए के चेक बाउंस होने के कारण अब तक कंपनी के खिलाफ नोटिस निगोशिअबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत सात विभिन्न केस फाइल किए जा चुके हैं। इन सभी में कंपनी की तरफ से यही जवाब मिला है कि हमें पैसा देना है और जरूर देंगे। फिलहाल कंपनी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, इसीलिए राशि लौटाना संभव नहीं है।
हाईराइज दिखाकर लिया हाई लोन
दास ने 2010-11 में पिनेकल का काम शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट को दिखाकर यूको बैंक, मप्र फाइनेंशियल कॉर्पोरेशन, स्टेट बैंक आॅफ इंडिया, एलएंडटी हाउसिंग फाइनेंस लि जैसी बैंकों से भारीभरकम कर्ज लिया गया। कंपनी ने प्रोजेक्ट की सफलता की जिन उम्मीदों के साथ कर्जा लिया था वह पूरी नहीं हो सकी।
जेएसएम ने किससे लिया कितना कर्ज
बैंक कब लिया कितना
यूको बैंक 28 मई 2010 15 करोड़
एमपीएफसी 6 जनवरी 2011 15 करोड़
एसबीआई 9 मार्च 2012 22.75 करोड़
एलएंडटी 31 नवंबर 2015 38 करोड़
यूनियन बैंक 24 नवंबर 2012 30 करोड़
एसबीआई 22 नवंबर 2013 12 लाख
कुल 120.87 करोड़
ऐसा प्रस्तावित था प्रोजेक्ट
लांचिंग डेट अक्टूबर 2009
कुल एरिया 46100 वर्गमीटर
प्लानिंग एरिया 42967 वर्गमीटर
पर्मिसेबल बिल्टअप एरिया 110774.26 वर्गमीटर
टॉवर 11
फ्लैट 1250
फ्लैट प्रकार 2, 2.5, 3 और 4 बीएचके
सुविधाएं - बास्केट बॉल कोर्ट, फिटनेस कॉर्नर, एसटीपी, एम्फी थियेटर, विकलांगों के लिए रैंप, चिल्ड्रन प्ले एरिया, कम्यूनिटी हॉल, जॉगिंग ट्रेक, जिम्मेनिशयम, लैंडस्केपिंग गार्डन, स्वीमिंग पुल, क्लब।