Thursday, August 21, 2025

विंध्यांचल' के लिए नाला बन गई कनाड़ नदी

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रेवेन्यू और टीएनसीपी के अफसरों की 16 साल पुरानी जादूगरी अब बनी सिरदर्द 
इंदौर. विनोद शर्मा ।  
एक तरफ तमाम प्रयासों के बावजूद सरकार नाले में तब्दील हो चुकी कान्ह नदी को संवार नहीं पा रही है तो दूसरी तरफ 'गांधीजी' के दम पर जिले की दूसरी नदियों को नाला बनाने का सरकारी अभियान जारी है। इसका बड़ा उदाहरण है कनाड़ नदी। जिसे नाला मानकर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट ने मुहाने पर ही 'विंध्यांचल' टाउनशीप मंजूर कर दी। दतोदा और गोकन्या के लोगों की तमाम शिकायतों को नजरअंदाज करते हुए सरकारी सह पर कॉलोनी न सिर्फ विकसित हुई बल्कि बिक भी गई। 
 मामला खंडवा रोड का है। जहां दतोदा की ओर से बहते हुए गोकन्या होते हुए कनाड नदी बहती है। ये चोरल की सहयोगी नदी है। दतोदा में इस नदी पर घाट बने हैं। मंदिर भी है। खंडवा रोड से लेकर तकरीबन पूर्व की ओर एक किलोमीटर की दूरी में तकरीबन चार स्टाप डेम भी बने हैं। स्टाप डेम नदी पर बनते हैं, नाले पर नहीं। शायद ये बात राजस्व का अमला नहीं जानता। न टीएनसीपी में 2009-10 में पदस्थ रहे अफसरों ने जानने की कोशीश की। मप्र भूमि विकास अधिनियम 2012 और इंदौर विकास योजना 2021 के प्रावधानों के तहत नदी से 30 मीटर और नाले से नौ मीटर की दूरी तक निर्माण की अनुमति नहीं दी जा सकती। बावजूद इसके कॉलोनाइजर को फायदा पहुंचाने के लिए कनाड़ को नाला मानते हुए अफसरों ने 9 मीटर दूरी तक निर्माण पर रोक लगाते हुए 'विंध्यांचल' की अनुमति दे दी थी।  
 'विंध्यांचल' गोकन्या की तकरीबन 24 हेक्टेयर जमीन पर विकसित है। कॉलोनी वास्तु लैंड रियलेटर्स प्रा.लि. की है। जिसके सर्वेसर्वा नागपुर निवासी योगेश बाबूराव केकाड़े, संजय बाबूराव केकाड़े, कृष्णा केशवराव केकाड़े ओर संतोष केशवराव केकाड़े हैं। कंपनी ने लोन लिया था लेकिन जमा नहीं कर सकी। मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में गया। जहां से कमल परियानी और उनकी कंपनी जी-9 इन्फ्रा ने वास्तु लैंड की 4.18 लाख वर्गफीट जमीन खरीद ली। अब परियानी और उनकी कंपनी ही कॉलोनी को डेवलप कर रही है। वही मार्केटिंग-ब्रांडिंग करके प्लॉट खरीद-बेच रहे हैं। 
ऐसे किया खेल...
रेवेन्यू रिकार्ड में सर्वे नं. 202 'जो खंडवा रोड से पूर्व की ओर जाता है', की 0.999 हेक्टेयर जमीन पर स्पष्ट रूप से नदी लिखा है। इसी नदी के किनारे पर कॉलोनी है। इससे आगे वाला सर्वे नंबर 188 है। जिसकी 1.619 हेक्टेयर जमीन को रिकार्ड में नाला लिख रखा है। इसी का फायदा उठाते हुए कॉलोनाइजरों ने सर्वे नंबर 202 की जमीन को भी नाला लिखकर टीएनसी करा ली। टीएनसी ने सर्वे नं. 202 का रेवेन्यू रिकार्ड नहीं देखा, देखता तो वहां नदी लिखा दिख जाता।  
टीएनसीपी के नक्शे में नदी गायब
लोकायुक्त से लेकर एनजीटी तक की अपनी शिकायत में शिकायतकर्ता शरद जैन ने बताया कि कॉलोनी की जो टीएनसी हुई है उसके मैप में दक्षिण दिशा की ओर कहीं भी नदी का उल्लेख है ही नहीं सर्वे नंबर 202 की जमीन को भी नाला ही लिख रखा है। इसी जमीन के बड़े हिस्से पर एनएचएआई द्वारा बड़ा पुल बनाया जा रहा है जो कि नदी पर बनता है, नाले पर नहीं। 
धार्मिक महत्व रखती है कनाड़
दतोदा निवासी किसान पुनमंचद मंडलोई और सतीश पटेल ने बताया कि जन्मजिंदगी बीत गई। ये पवित्र कनाड़ नदी है जो कि कुरभान की पहाड़ी से बहकर चोरल नदी तक जाती है। दतोदा में नदी किनारे घाट बने हैं। गणेश मंदिर बना है। तीज-त्यौहार पर नर्मदा का पानी छोड़ा जाता है ताकि लोग स्नान कर सके। इसके बाद भी यदि कोई इसे नाला कहता है तो वह अंधा है या फिर बहुत बड़ा भ्रष्ट।  
कनाड़ को नदी बनाए रखने के लिए बने 51 डेम
दतोदा की 250 मीटर ऊंची भमटी पहाड़ी से निकली कनाड़ नदी में पहले बारिश में पानी भरता और दिसंबर में नदी सूख जाती थी। 2016 से 2021 के बीच जनपद पंचायत महू के आईडब्ल्यूएमपी (इंटीग्रेटेड वॉटर मैनेजमेंट प्रोग्राम) के तहत दतोदा से घोसीखेड़ा के बीच(जिले की सीमा तक) 16 किलोमीटर लम्बी नदी पर हर 100 से 200 मीटर के बीच कुल 51 चेक डेम बनाए। चेक डेम में पानी रूकने लगा। भमटी पहाड़ी पर से नीचे तक चारों तरफ के हिस्से में ढाई फीट चौड़े, 5 फीट लंबे और 3 फीट गहरे कंटूर बनाए।
जो रेवेन्यू रिकार्ड में होगा
टीएनसीपी के अधिकारियों के अनुसार अनुमति पुरानी है। हम रेवेन्यू रिकार्ड देखकर ही तय करते हैं कि नाला है या नदी। रेवेन्यू के रिकार्ड में गड़बड़ होगी, फिर भी फाइल देखकर ही कुछ बता पाएंगे।

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