Thursday, August 21, 2025

इंदौर : जहां अस्त नहीं होता सफाई का सूरज


कितनी कैटेगरी बदल दो..हम रहेंगे नंबर-1
कचरा डस्टबिन में डालना आदत नहीं, कल्चर बना
दूसरे शहर में डस्टबिन में कचरा डालते ही लोग पूछ लेते हैं इंदौर से हो 
इंदौर. विनोद शर्मा ।  
2017-18 में पहली बार इंदौर ने स्वच्छता सर्वेक्षण में टॉप किया था। इसके बाद से नंबर-1 आने की आदत को इंदौर ने आठवीं बार भी बरकरार रखा है। ये बात अलग है कि इस बार कैटेगरी बदली है लेकिन परिणाम वही है इंदौर की आदत के अनुसार। इंदौर वह शहर है जिसकी सफाई के बारे में आप गुगल पर जैसे ही सर्च करेंगे तो विभिन्न शहरों की खबरें सामने आ जाती है जिसमें लिखा होता है कि यहां भी इंदौर की तर्ज पर ही सफाई होगी।  
 वर्ष 2016 में सिर्फ 73 शहर थे। तब भी इंदौर नंबर-1 पर रहा था। अब 4355 शहर इस दौड़ में शामिल थे। फिर भी इंदौर ने नंबर-1 का तमगा हासिल किया। इंदौर वर्ष 2017 से ही देशभर में नंबर-1 पर आ रहा है। स्वच्छता सर्वेक्षण-2020 में मध्यप्रदेश को कुल 27 सम्मान मिले थे। इसमें 18 शहर स्टार रेटिंग और 9 शहर स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए थे। वहीं, 2021 के सर्वेक्षण में कुल 35 अवॉर्ड मिले थे। 
 सर्वे में इंदौर ही हर बार नंबर-1 आ रहा है। ये बात दूसरे शहरों को खटक रही थी। इसीलिए इस बार केटेगरी बदल दी गई लेकिन इससे न इंदौर को फर्क पड़ा न डस्टबिन में कचरा डालने को अपना कल्चर बना चुके इंदौरियों को। इसीलिए इंदौर ने नई केटेगरी में ही सही लेकिन आठवीं बार फिर बाजी मारी।  
दूसरे शहरों को सीखना होगा...
महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने बताया कि स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए हर साल तो गाइडलाइन तय होती है उसी के अनुरूप हमारी प्लानिंग होती है। नगर निगम का अमला ईमानदारी से अपने काम को अंजाम दे रहा है। पार्षदों से लेकर विधायकों तक की सहभागिता रहती है। सबसे बड़ा सहयोग जनता का है। जिसने कचरे को खूले में फेंकने की आदत बदल दी है। अब इंदौर के लोग किसी भी दूसरे शहर में चलें जाएं लेकिन उन्हें कचरा डस्टबिन में ही फेंकना अच्छा लगता है। पूरे साल देश के कई शहरों के प्रतिनिधि इंदौर आते हैं। हमरा कचरा कलेक्शन और कचरा प्रबंधन देखने। सब हैरान है। इतनी आबादी के बावजूद, इतना जबरदस्त मैनेजमेंट।  
इंदौर में सफाई का सूरज नहीं ढलता... 
नगर निगम आयुक्त शिवम वर्मा की मानें तो इंदौर वह शहर है जहां सफाई का सूरज कभी नहीं ढलता है। यहां 24 घंटे सड़कों पर सफाई होती है। कुछ सड़कों पर तीन बार। कुछ पर दो बार। गलियों में एक बार। बड़े से बड़ा आयोजन हो जाते हैं लेकिन एक घंटे बाद सड़कों की चमक देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि यहां इतना बड़ा आयोजन हो चुका है। 
पूरी ताकत लगा रखी है...
पिछले साल सफाई को लेकर पार्षदों की शिकायतें आ रही थी। इसके बाद महापौर ने सफाई की जिम्मेदारी अपने सबसे काबिल अफसर अपर आयुक्त (स्वास्थ्य) अभिलाश मिश्रा को सौंपी। क्रिकेट के मैदान पर बल्ले से अपना जलवा दिखाने वाले मिश्रा सुबह 5 बजे से सड़कों पर निकल जाते हैं। जिससे सिस्टम की खामियां भी पता चला। उन्हें दूर करने का मौका भी मिला। 
पूरा ईको सिस्टम एकजूट होकर काम करता है 
अभिलाष मिश्रा की मानें तो इंदौर में ड्रेनेज और सफाई में मिलाकर 10 हजार से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। सड़कों से कचरा कलेक्शन, ट्रांसपोर्टेशन से लेकर प्रोसेसिंग प्लांट तक बारीकि से नजर रखी जाती है। हमने व्यवस्था को डिजिटलाइजेशन किया है। अब हमारा सफाईकर्मी जहां जिस बीट पर होगा उसकी लाइव लोकेशन सिस्टम पर दिखेगी। इससे मॉनिटरिंग बढ़ी तो काम भी पहले से बेहतर हुए हैं।  
अब ग्रीन वेस्ट से बना रहे हैं "कोयला'
हर साल कुछ नई पहल करके पूरे सिस्टम को मजबूत करते हैं। नए-नए वेस्ट प्लांट लाएं। पिछले साल ग्रीन वेस्ट का प्लांट चालू हो चुका था। जहां ग्रीन वेस्ट से पेलेट बनते हैं। पेलेट जिसे काेयला का विकल्प कहा जाता है। सरकार की गाइडलाइन के अनुसार कोयला इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को कोयले का उपयोग 20 प्रतिशत कम करना है ऐस कंपनियां पेलेट इस्तेमाल करती है। इसके तहत सिटी फॉरेस्ट में लकड़ी का ढेर नहीं लगता। अब लकड़ी को प्रोसेस करके पेलेट बना देते हैं। इससे निगम की आय बढ़ी है। 
दो प्लांट अभी मंजूर हुए हैं
पिछले दिनों दो प्लांट को महापौर परिषद ने मंजूरी दी है। एक तो प्लास्टिक से तेल बनाने का प्लांट। दूसरा कचरे से भी पेलेट बनाने का। दो नए तरीके से वेस्ट प्रोसेसिंग की प्लानिंग है। 
डिजिटलाइज मॉनिटरिंग 
बीट सिस्टम को डिजिटलाइज कर दिया है। पूरा नक्शे पर डाल दिया है। कोई भी अधिकारी और कर्मचारी अपनी लोकेशन को देख सकता है कि वह इस वक्त किस बीट पर खड़ा है। बीट एक एरिया होता है। जहां सफाईकर्मी की नियुक्ति तय है। इससे मॉनटिरंग सुदृड़ हुई। 
सुविधाघरों की थ्री लेअर ट्रेकिंग 
टॉयलेट में आईओटी डिवाइस लगा रहे हैं। ताकि तीन तरह से फीडबैक ले सकें। इसमें टंकी में पानी का लेवल, लोगों को फीडबैक और सीटीपीटी में एअर क्वालिटी। ये तीनों पेरामीटर रियल टाइम मॉनिटर करते हैं। पानी का लेवल कम है तो दरोगा को कंट्रोल रूम से मैसेज जाता है। तत्काल पानी भरा जाता है। पब्लिक का फीडबैक खराब मिला तो तत्काल मौके पर जाकर व्यवस्था की खामी देखना है। कलेक्शन, सेग्रीगेशन, ट्रांसपोर्टेशन में निगम की महारथ है।  
एशिया का सबसे बड़ा बायो सीएनजी प्लांट
एशिया का सबसे बड़ा बायो सीएनजी प्लांट देश में सिर्फ इंदौर के पास है। इसे देखने के लिए न सिर्फ देश बल्कि दुनिया के अन्य देशों से भी प्रतिनिधिमंडल आ चुके हैं। नगरीय आवास व विकास मंत्रालय इसे देशभर में लागू करने के निर्देश भी दे चुका है। 'वेस्ट टू वेल्थ' का ये एक अच्छा उदाहरण है।
बुनियादी ढांचा...
7700 कर्मचारी है जो रोड साफ करते हैं
2500 से अधिक ड्रेनेज कर्मी है। 
1200 टन कचरा संग्रहण रोज है।  
सड़कों की सफाई के लिए मशीनों की संख्या बढ़ाकर 20 से 30 कर रहे हैं। ताकि 1200 किलोमीटर सड़कें साफ हो सके।

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