Thursday, August 21, 2025

खेड़ापति को दिखाई आंखे...पांडे को सौंप दी सरकारी जमीन

मेट्रो यार्ड में महाभारत

यार्ड और देपालपुर रोड के बीच की जमीन पर गांधीनगर की प्लाटिंग  
  
इंदौर. विनोद शर्मा ।
प्रदेश की सबसे विवादित गांधीनगर गृह निर्माण सहकारी संस्था के प्रबंधक फुलचंद पांडे ने मेट्रो के डीपो से लगी सरकारी जमीन पर प्लॉट नापकर दे दिए। संस्था के अनुसार जमीन संस्था की है और पुराने कलेक्टर द्वारा मेट्रो प्रोजेक्ट से छोड़ी हुई जमीन है। दूसरी तरफ नेनोद पंचायत की मानें तो जमीन सरकारी है और इसका संस्था से कोई लेना-देना नहीं है। 
 मामला देपालपुर रोड से लगी ग्राम ने नेनोद के सर्वे नंबर 307/5 की जमीन का है। राजस्व रिकार्ड में जमीन शासकीय है। चरनोई की है। नाला भी बहते आया है। इस जमीन पर दो दिन पहले अचानक कुछ लोगों ने एंगल और टिन शेड से एक जैसे कब्जे शुरू कर दिए। कब्जेदारों के निशाने पर मेट्रो यार्ड से लगी हुई एल शेप की तकरीबन 56 हजार वर्गफीट जमीन पर है। कब्जेदार स्वयं को संस्था का सदस्य बताते हैं और कब्जे को 2007 का अलॉटमेंट। इस जमीन की बाजार कीमत 100 करोड़ है। 
सरपंच ने रूकवाया कब्जा
पार्षद के ऑफिस से लगी इस जमीन पर हो रहे कब्जे को अंतत: नैनोद पंचायत के सरपंच सुरेंद्रसिंह सोलंकी ने रूकवाया। सोलंकी ने बताया जमीन नैनोद गांव में आती है। जमीन सरकारी है और इसका संस्था से लेना-देना नहीं है। जबरिया कब्जा हो रहा था जिसे रूकवाया। 
पांड़े को "फूल' देकर खेल गए "सरकार'
सर्वे नंबर 307/5 के बड़े हिस्से और बड़ा बांगड़दा के सर्वे नंबर 103 की जमीन पर मेट्रो का यार्ड बना हुआ है। यार्ड को डिजाइन करने वाले अफसरों ने संस्था के प्रबंधक फुलचंद पांडे पर बड़ी कृपा की। इसीलिए उन्होंने सरकारी जमीन होने के बावजूद सर्वे नंबर 307/5 पर देपालपुर रोड तक बाउंड्री खींचने के बजाय तकरीबन 50 फीट लम्बी जमीन छोड़ दी ताकि उसका फायदा पांडे और क्षेत्र के राजनीतिक रसूखदार उठा सकें। जबकि वहीं पास में खेड़ापति हनुमान मंदिर है, क्षेत्रवासियों के तमाम विरोध के बावजूद मंदिर की जमीन को मेट्रो में शामिल किया लेकिन सरकारी जमीन होने के बावजूद सर्वे नंबर 307/5 की जमीन को पांडे के लिए छोड़कर मेट्रो के डिजाइनरों ने यह भी साबित कर दिया कि जमीन में उनका भी हिस्सा है। 
मंदिर के पीछे कमरे तोड़े 
खेड़ापति हनुमान मंदिर के पुजारी अमित तिवारी ने बताया कि देपालपुर रोड तक बाउंड्रीवाल बनाने के लिए पहले मंदिर भी तोड़े जाना थे। बाद में लोगों ने विरोध किया तो मंदिर के पीछे बने मंदिर समिति के दो कमरे तोड़कर बाउंड्रीवाल बना दी गई। जिसका मुआवजा भी दिया था। 
मंदिर तोड़ रहे थे, ये जमीन क्यों छोड़ दी 
क्षेत्रवासी पांडे और प्रशासनिक अफसरों की मिलीभगत से नाराज हैं। उनकी मानें तो मेट्रो की बाउंड्रीवॉल के लिए जब पहले मंदिर तक तोड़ने पर अफसर आमादा थे तो फिर सर्वे नंबर 307/5 की सरकारी जमीन को क्यों छोड़ा? यदि संस्था के किसी केस का हवाला दिया जाता है तो केस संस्था की उस जमीन पर भी था जहां यार्ड बना हुआ है। प्रशासन ने यार्ड के लिए जमीन ली तो पूरी क्यों नहंी ली? 
पांडे के खिलाफ दर्ज है आपराधिक मामले 
संस्था प्रबंधक फुलचंद पांडे पर सहकारिता विभाग के अफसरों और निरीक्षकों से लेकर एरोड्रम-गांधीनगर थाने क पुलिस तक मेहरबान है। इसीलिए आपराधिक केस दर्ज होने के बावजूद पांडे के खिलाफ न पुलिस ने ठोस कार्रवाई की। न ही सहकारिता विभाग ने।

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