Friday, April 8, 2016

एम्पायर लॉजीपार्क में मनमानी

सरकारी आदेश से गेट तो टूटा नहीं, रोड भी बनने लगी
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
बिना अनुमति के एम्पायर लॉजी पार्क में जारी विकासकार्यों को लेकर जहां जिला प्रशासन नोटिस पर नोटिस थमा रहा है वहीं मनमानी पर आमादा बिल्डर ने काम नहीं रोका। उलटा, अवैध गेट को तोड़े जाने के सरकारी नोटिस के बावजूद लॉजी पार्क में अब सड़कों का काम भी शुरू हो चुका है।
अर्जुन बरौदा की 26.884 हेक्टेयर जमीन पर लॉजीपार्क का मनमाना काम हो रहा है जिसका खुलासा दबंग दुनिया ने रविवार को ‘सख्त सरकार, टुटेगा लॉजी पार्क का द्वार’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। इसके जहां सरकारी गलियारों में हलचल रही वहीं अर्जुन बरौदा साइट पर ऐसे शांति से काम चल रहा था मानों सभी तरह की अनुमतियां ली जा चुकी हो। मौके पर सड़क बन रही है। तकरीबन 20-30 फीट लंबी सड़क बन भी चुकी है। 20 मजदूर काम कर रहे हैं। दो-तीन डम्पर लगे हैं।
पीएनबी के पास गिरवी रखी है जमीन
राजस्व दस्तावेजों के अनुसार तहसीलदार के 1 नवंबर 2012 को जारी आदेश के अनुसार लॉजीपार्क में शामिल तकरीबन 6.187 हेक्टेयर जमीन पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी)  औद्योगिक क्षेत्र, देवास शाखा में बंधक है। फिर भी जमीन का नामांतरण 27 जनवरी 2014 को हुआ। इसी तरह लॉजीपार्क की अन्य कुछ जमीन भी बंधक थी जिसे 1 अपै्रल 2013 में मुक्त कराया।
नजर सरकारी जमीन पर भी..
लॉजीपार्क बनाने वाले एम्पायर समूह की नजर अब राधेश्वरी डेवलपर्स की जमीन से लगी सरकारी जमीन पर भी है। इसका बड़ा उदाहरण है सर्वे नं. 75 की जमीन जो कि नाला है। नाला लॉजीपार्क में घुमते हुए जाएगा। इसके अलावा एबी रोड तक अप्रोच रोड भी सरकारी जमीन पर बनी है। यहां सर्वे नं. 29/2 और 26/2/1 की जमीन पर भी नजर है।
राधेश्वरी के  अलावा अलग लोगों के नाम पर भी है जमीन
सर्वे नं. नाम उपयोग
30/1 अयोध्याबाई सरदार खाती लॉजिस्टिक
119/2 नीनादेवी पति विनोद कुमार लॉजिस्टिक
5/1 भुवानसिंह कोदर लॉजिस्टिक
32/2 भागीरथ भगवान लॉजिस्टिक
कंपनी का बहाना...
एसडीओ के रीडर को आवेदन किया था लेकिन उस वक्त कंपोनेंट अथॉरिटी डिसाइड नहीं थी। एक साल तक मामला टला। बाद में कलेक्टर को सक्षम अधिकारी बनाया लेकिन नियम में कमर्शियल लिखना भूल गई सरकार। हमने कलेक्टर को पत्र लिखा और पूछा कि कमर्शियल के लिए विकास अनुमति की जरूरत नहीं है क्या? जवाब नहीं मिला। तब कोर्ट की शरण ली। कोर्ट की अनुमति के आधार पर विकास शुरू किया। इस बीच एसडीएम ने आपत्ति ली। कहा कि हाईकोर्ट ने कहीं नहीं लिखा कि विकास अनुमति की जरूरत नहीं है। अब जब कोर्ट विकास की अनुमति दे चुकी है तो विकास अनुमति की जरूरत क्या है। गेट तोड़ने का नोटिस हुआ तो हमने कोर्ट की शरण ली। स्टे मिला। डायवर्शन कराकर किसानों को बाहर करना चाहा तो सरकार ने नामांतरण रुकवा दिया। इससे हमारा टाइटल रूकेगा नहीं। बंधक जमीन की जानकारी नहीं है।
बी.डी.दीक्षित, लीगल हेड
एम्पायर

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