Friday, April 8, 2016

जूना अखाड़े की सेना में जर्मनी sinhastha 2016

जूना अखाड़े की सेना में जर्मनी की शिवानी 
होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद लिया सन्यास, 16 साल हो गए
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
बड़े कलाकारों की बड़ी फिल्में जहां लोगों के मन में धर्म और धार्मिक परम्पराओं के प्रति संकोच पैदा कर रही है वहीं कई विदेशी लोग निसंकोच न सिर्फ धर्म से जुड़े बल्कि सन्यास भी लिया। ऐसी ही संत है पंच दशनाम जूना अखाड़े की साधवी शिवानी गिरी जो कि मुलत: जर्मनी की है और वहीं होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की लेकिन पढ़ाई के इतर 16 साल से वे सन्यासी जीवन जी रही हैं।
दत्त जोन अखाड़ा में हजारों साधुओं के सैकड़ों डेरों के बीच बांस, बल्ली और टट्टर से तना भगवा वस्त्रधारी शिवानी गिरी का अस्थाई आश्रम भी है। जहां गोबर की लिपाई जारी है। आश्रम में उनके साथ और भी साधु हैं। सभी बिना भेदभाव के साथ रहते हैं। शिवानी मुलत: जर्मनी की है। वहां उनकी मां है और भाई भी है। वे ज्यादातर हिंदुस्तान में रहती है। यहां जम्मू आश्रम में उनके गुरु की समाधि है। बर्फबारी होने के बाद वे जर्मनी चली जाती है वहां मां की सेवा करती है।
सन्यास भी होटल मैनेजमेंट ही है..
होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद यकायक सन्यास? इस सवाल के जवाब में हंसते हुए शिवानी ने कहा कि सन्यास भी होटल मैनेजमेंट से कम थोड़ी है। यहां भी अपना आश्रम बनाओ। लोगों से मिलो-मिलाव। खाना बनाओ। खुद भी खाओ और उन्हें भी खिलाओ।
लहसून-प्याज-मसाला नहीं खाती
संगी साधुओं ने बताया कि शिवानी खाना अच्छा बनाती है। जो खाये याद करे। इस पर शिवानी गिरी ने कहा कि वे लहसून-प्याज और मसाले से परहेज करती है। खाना सात्विक हो और सनातनी परम्परा के अनुसार हो तभी मजा आता है। मसाले तामसी होते हैं जो तन के साथ मन में भी विकार पैदा करते हैं।
हर दिन शिकायत, फिर भी हल नहीं
शिवानी और अन्य संत कैंप में फैली सरकारी अव्यवस्था से परेशान है। जहां पीने के पानी का नल है उसके पास ही मल की निकासी है। गड्डे खुदे हुए हैं। पानी भरा हुआ है। मच्छर पनप रहे हैं। शिवानी कहती है 11 मार्च से है यहां लगातार हर दिन शिकायत कर रहे हैं।
मां भी पूछने लगी है ऐसा कैसा सिंहस्थ
स्कूल और कॉलेज दोस्तों से दूर शिवानी गिरी सिर्फ जर्मनी में अपनी मां से बात करती है। वे हर दिन की दिनचर्या उन्हें बताती हैं। इसमें शिकायत और कैंप की परेशानी भी है। उधर, से एक बार मां न पूछ ही लिया कि ऐसा कैसा सिंहस्थ है जिसमें इतना परेशान होना पड़ रहा है। कैंप बनाने में इतने दिन लगते हैं? कैसे बनाया? दिक्कत तो नहीं है? जैसे कई सवाल करती हैं। 

No comments:

Post a Comment