सन्यासी से लेकर बैरागी तक के डेरों की रौनक हैं छोटे संत-महंत
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
उज्जैन में सिंहस्थ के लिए साधुओं की संख्या बढ़ती जा रही है। इन्हीं में शामिल है नन्हें साधु जो सिंहस्थ 2016 का मुख्य आकर्षण है। अपने आश्रमों में व्यवस्था संभाल रहे इन नन्हें संत-महंतों ने अपने गुरु के साथ ही आने-जाने वालों का दिल भी जीत रखा है। जो भी आता है यही पूछता है कि इतनी कम उम्र में सन्यास? जवाब एक ही मिलता है जो ईश्वर ने चाहा वही हुआ। अब आश्रम हमारा घर और गुरु ही परिवार है।
राजेश्वरी भारती : 3 वर्ष की उम्र में ही बनी सन्यासी
दत्त अखाड़ा क्ष्ेत्र में 13 साल की नन्हीं साध्वी राजेश्वरी भारती जो कि श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं। महज 3 साल की उम्र से सन्यासी जीवन बिता रही इस साध्वी को जूना अखाड़े और मढ़ियों सहित तमाम विषयों की गहन जानकारी है। वे दादी गुरु (धौलपुर से आई साध्वी दया भारती) के साथ रहती हैं जिन्होंने महज 9 साल की उम्र में सन्यास लिया था।
भगवा कपड़ा, सिर पर छोटे बाल, माथे पर टिका, गले में तुलसी मालाएं और हाथ में एक झोला..। यही है राजेश्वरी भारती की पहचान। वे दत्त अखाड़ा में जिस शिविर में हैं उसके महंत चंदेश्वरानंद भारती (जिन्हें दादा गुरू कहती है) भवनात तलाही, (जूनागढ़, गुजरात) में रहते हैं। इसी डेरे के अन्य संतों ने बताया कि लगभग 3 वर्ष की उम्र में इसके माता-पिता ने महंत जी को सौंप दिया था। 2010 के हरिद्वार कुंभ में इसका विधिवत संस्कार हुआ। राजेश्वरी भारती बहुत कुशाग्र बुद्धि की हैं, छोटी-सी उम्र में ही तमाम चीजें सीख ली हैं।
दबंग दुनिया से खास बातचीत में राजेश्वरी भारती ने बताया कि माता-पिता ने भले गुरूजी को सौंपा था लेकिन अब मुझे आश्रम में ही अच्छा लगता है। संतों के आर्शीवचन, ज्ञान की बातें और भजन ही भाते हैं। सबसे बहुत प्रेम मिलता है। कभी नहीं लगा कि मैं परिवार से दूर हूं। अब तो यही मेरा संसार है। उज्जैन में यह मेरा पहला सिंहस्थ है लेकिन मैं अब तक हरिद्वार और नासिक कुम्भ भी कर चुकी हूं।
जो मजा यह वहां कहां- सियाराम दास
्नराजेश्वरी भारती की तरह ही सिंहस्थ में एक और नन्हें संत है जिनका नाम है महंत सियाराम दास जो मंगलनाथ मंदिर के पास शिप्रा किनारे अखिल भारतीय श्री पंच तेरह भाई त्यागी अखाड़े के साकेतवासी बाबा परमेश्वरास फलहारी व टाटम्बरी बाबा के आश्रम की शान है। लंबे बाल, माथे पर पगड़ी, कपाल पर चंदन का लंबा तिलक, गले में तुलसी माला और मुंज की जनेऊ धारण किए हुए सियाराम दास कभी भगवान का मंदिर सजाते नजर आते हैं तो कभी अपने गुरु टाटम्बरी बाबा के हाथ-पैर दबाते। अभी उनकी उम्र 12 साल है और उन्होंने 10 साल की उम्र में ही सन्यास ले लिया था। छठवीं तक पढ़ाई कर चुके सियाराम दास ने बताया कि उनके माता-पिता ने गुरु को सौंपा था। गुरुजी ने बताया कि सियाराम दास बहुत महंती और कुषाग्र बुद्धि है। पूजा पाठ और कथाएं सीख चुका है। सियाराम दास कहते हैं कि उन्हें अब घर की याद नहीं आती। अब तो यहीं मजा आता है।
समुंद्रगिरी : नागा विद्याओं का नन्हां सिपाही
शिप्रा किनारे पंच दशनाम जूना अखाड़े के महंत नारायण गिरी का कैंप है जहां आधा दर्जन से अधिक साधू हैं। इनमें से एक है 15 वर्षीय समुंद्र गिरी महाराज जो 3 साल की उम्र में ही सन्यास ले चुके थे। उज्जैन में उनका पहला सिंहस्थ है। वे अपने गुरू गौतमबुद्धनगर (यूपी) से आए महंत कन्हैया गुरु के साथ आए हें। इससे पहले वे इलाहबाद, हरिद्वार और नासिक का कुम्भ कर चुके हैं। उनके साथी संतजन बताते हैं कि समुंद्रगिरी दिमाग से पक्के हैं और वे पूजापाठ व साधना में ज्यादा वक्त बिताते हैं। नागा साधुओं के हर कर्म सीख लिए हैं। बड़े साधुओं के साथ मस्ती से चिलम खींचते हुए समुंद्रगिरी ने बताया कि गुरु ही मेरा परिवार है और आश्रम ही घर।
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
उज्जैन में सिंहस्थ के लिए साधुओं की संख्या बढ़ती जा रही है। इन्हीं में शामिल है नन्हें साधु जो सिंहस्थ 2016 का मुख्य आकर्षण है। अपने आश्रमों में व्यवस्था संभाल रहे इन नन्हें संत-महंतों ने अपने गुरु के साथ ही आने-जाने वालों का दिल भी जीत रखा है। जो भी आता है यही पूछता है कि इतनी कम उम्र में सन्यास? जवाब एक ही मिलता है जो ईश्वर ने चाहा वही हुआ। अब आश्रम हमारा घर और गुरु ही परिवार है।
राजेश्वरी भारती : 3 वर्ष की उम्र में ही बनी सन्यासी
दत्त अखाड़ा क्ष्ेत्र में 13 साल की नन्हीं साध्वी राजेश्वरी भारती जो कि श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं। महज 3 साल की उम्र से सन्यासी जीवन बिता रही इस साध्वी को जूना अखाड़े और मढ़ियों सहित तमाम विषयों की गहन जानकारी है। वे दादी गुरु (धौलपुर से आई साध्वी दया भारती) के साथ रहती हैं जिन्होंने महज 9 साल की उम्र में सन्यास लिया था।
भगवा कपड़ा, सिर पर छोटे बाल, माथे पर टिका, गले में तुलसी मालाएं और हाथ में एक झोला..। यही है राजेश्वरी भारती की पहचान। वे दत्त अखाड़ा में जिस शिविर में हैं उसके महंत चंदेश्वरानंद भारती (जिन्हें दादा गुरू कहती है) भवनात तलाही, (जूनागढ़, गुजरात) में रहते हैं। इसी डेरे के अन्य संतों ने बताया कि लगभग 3 वर्ष की उम्र में इसके माता-पिता ने महंत जी को सौंप दिया था। 2010 के हरिद्वार कुंभ में इसका विधिवत संस्कार हुआ। राजेश्वरी भारती बहुत कुशाग्र बुद्धि की हैं, छोटी-सी उम्र में ही तमाम चीजें सीख ली हैं।
दबंग दुनिया से खास बातचीत में राजेश्वरी भारती ने बताया कि माता-पिता ने भले गुरूजी को सौंपा था लेकिन अब मुझे आश्रम में ही अच्छा लगता है। संतों के आर्शीवचन, ज्ञान की बातें और भजन ही भाते हैं। सबसे बहुत प्रेम मिलता है। कभी नहीं लगा कि मैं परिवार से दूर हूं। अब तो यही मेरा संसार है। उज्जैन में यह मेरा पहला सिंहस्थ है लेकिन मैं अब तक हरिद्वार और नासिक कुम्भ भी कर चुकी हूं।
जो मजा यह वहां कहां- सियाराम दास
्नराजेश्वरी भारती की तरह ही सिंहस्थ में एक और नन्हें संत है जिनका नाम है महंत सियाराम दास जो मंगलनाथ मंदिर के पास शिप्रा किनारे अखिल भारतीय श्री पंच तेरह भाई त्यागी अखाड़े के साकेतवासी बाबा परमेश्वरास फलहारी व टाटम्बरी बाबा के आश्रम की शान है। लंबे बाल, माथे पर पगड़ी, कपाल पर चंदन का लंबा तिलक, गले में तुलसी माला और मुंज की जनेऊ धारण किए हुए सियाराम दास कभी भगवान का मंदिर सजाते नजर आते हैं तो कभी अपने गुरु टाटम्बरी बाबा के हाथ-पैर दबाते। अभी उनकी उम्र 12 साल है और उन्होंने 10 साल की उम्र में ही सन्यास ले लिया था। छठवीं तक पढ़ाई कर चुके सियाराम दास ने बताया कि उनके माता-पिता ने गुरु को सौंपा था। गुरुजी ने बताया कि सियाराम दास बहुत महंती और कुषाग्र बुद्धि है। पूजा पाठ और कथाएं सीख चुका है। सियाराम दास कहते हैं कि उन्हें अब घर की याद नहीं आती। अब तो यहीं मजा आता है।
समुंद्रगिरी : नागा विद्याओं का नन्हां सिपाही
शिप्रा किनारे पंच दशनाम जूना अखाड़े के महंत नारायण गिरी का कैंप है जहां आधा दर्जन से अधिक साधू हैं। इनमें से एक है 15 वर्षीय समुंद्र गिरी महाराज जो 3 साल की उम्र में ही सन्यास ले चुके थे। उज्जैन में उनका पहला सिंहस्थ है। वे अपने गुरू गौतमबुद्धनगर (यूपी) से आए महंत कन्हैया गुरु के साथ आए हें। इससे पहले वे इलाहबाद, हरिद्वार और नासिक का कुम्भ कर चुके हैं। उनके साथी संतजन बताते हैं कि समुंद्रगिरी दिमाग से पक्के हैं और वे पूजापाठ व साधना में ज्यादा वक्त बिताते हैं। नागा साधुओं के हर कर्म सीख लिए हैं। बड़े साधुओं के साथ मस्ती से चिलम खींचते हुए समुंद्रगिरी ने बताया कि गुरु ही मेरा परिवार है और आश्रम ही घर।
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