एक साधु, जिनके लिए सोना इष्ट, सोना ही साधना
सुविधाओं से संतुष्ट, सुरक्षा व्यवस्था से नाराज
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
बड़ी दाढ़ी। भगवा लिबाज। आधा दर्जन देवी-देवताओं के बड़े-बड़े पेंडल से सजी दर्जनभर से ज्यादा सोने की मोटी-मोटी चैन। दोनों हाथ की हर अंगुली में मोटी-मोटी सोने की अंगुठी। दोनों कलाइयों पर कपड़े की तरह महीन कारीगरी वाले बे्रेसलेट। यह पहचान है उत्तराखंड से आए गोल्डनपुरी बाबा की जो अपने शरीर पर 11.5 किलोग्राम से ज्यादा सोना धारण किए हुए हैं। वे सोने का सोना कम अपने ईश्ट का मंदिर ज्यादा मानते हैं जो हर वक्त उनके साथ होता है और चलते-फिरते लोग दर्शन करते हों।
उज्जैन में चार दिन से आए गोल्डन बाबा रविवार की दोपहर जब रामघाट पहुंचे तो उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई। न सिर्फ सहज भाव से आशीर्वाद दिया बल्कि इच्छुक लोगों के साथ फोटो भी खींचवाई। इसी दौरान उन्होंने दबंग दुनिया से भी बातचीत की। उन्होंने बताया कि दत्त अखाड़े में उनका कैंप लगना है जो सिंहस्थ में उनका पहला कैंप है। तैयारियां चल रही है। वे सिंहस्थ के मद्देनजर उज्जैन में हुए बुनियादी कामों से संतुष्ट हैं हालांकि सरकारी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर नाराज हैं। उनका कहना है कि वे जहां जाते हैं वहां उन्हें एक-चार का पुलिस बल मिलता है। चार दिन से उज्जैन में हैं। शासन स्तर पर सूचना दे चुके हैं। अब तक कोई व्यवस्था नहीं की। उत्तराखंड सरकार द्वारा भेजा गया एक ही जवान है। दो सुरक्षाकर्मी निजी हैं।
हर काम के लिए सरकार को दोष देना गलत
सिंहस्थ में सहुलियतों का संकट जताकर सरकार को कोस रहे लोगों से इतर गोल्डनपुरी बाबा ने कहा कि सरकार को कोसते रहना गलत है। जितनी सुविधाएं जुटाई गई है, कम नहीं है। कम सुविधाओं का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करते भी आना चाहिए।
270 रुपए तोला था तब पहली बार पहना था सोना
पहले दिल्ली से हरिद्वार के बीच कावड़ यात्रा निकालने और फिर नासिक कुम्भ से चर्चा में आए गोल्डनपुरी बाबा के शरीर पर 11.5 किलोग्राम के सोने के गहने सजे हैं, जिसकी कीमत साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा है। हीरे से जड़ी 27 लाख की घड़ी भी है। इसके अलावा सोने का जैकेट भी है जो वे खास मौकों पर पहनते हैं जिसका वजन 200 ग्राम बताया जा रहा है। आभूषण देवी-देवताओं के पूजन का माध्यम है। इसीलिए मन तो रोज सोने के नए आभूषण पहनने को करता है। जब संभव होता है, तब वह देवी-देवताओं के नाम नया आभूषण पहन लेते हैं। शुरूआत 1972-73 में भगवान शिव के लॉकेट से हुई। तब सोना 270 रुपए तोला था। अब 21 लॉकेट हैं। जो मां लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, हनुमानजी, दत्त भगवान के नाम के हैं। वे कहते हैं आभुषण ही उनके भगवान हैं और उन्हें धारण किए रखना ही उनकी भक्ति है। सुबह स्नान के बाद आभुषण की पूजा करते हैं फिर धारण करते हैें।
दान भी कर चुके हैं
15 जून 2013 को उत्तराखंड के कैदारनाथ में आई बाढ़ के दौरान शरीर पर पहना पूरा सोना सहायता कोष के लिए दान कर दिया था।
सफर सुधीर कुमार से गोल्डनपुरी बाबा तक का
गोल्डन बाबा का असली नाम सुधीर पिता जीवनदास मक्कड़ है जिनका जन्म 1962 में दिल्ली के गांधीनगर में हुआ था। संन्यासी बनने से पहले वो दिल्ली में कपड़े के व्यापारी थे। ईश्वर आराधना के लिए उन्होंने बिजनेस छोड़ दिया। वर्ष 2012 में गुरु श्रीमहंत मछंदरपुरी महाराज ने इलाहाबाद में दीक्षा दी और तब से वह गोल्डन बाबा बन गए। बाद में जूना अखाड़े से जुड़कर वह गोल्डनपुरी बाबा बने। अभी उनका हरिद्वार में आश्रम भी हैं।
सुविधाओं से संतुष्ट, सुरक्षा व्यवस्था से नाराज
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
बड़ी दाढ़ी। भगवा लिबाज। आधा दर्जन देवी-देवताओं के बड़े-बड़े पेंडल से सजी दर्जनभर से ज्यादा सोने की मोटी-मोटी चैन। दोनों हाथ की हर अंगुली में मोटी-मोटी सोने की अंगुठी। दोनों कलाइयों पर कपड़े की तरह महीन कारीगरी वाले बे्रेसलेट। यह पहचान है उत्तराखंड से आए गोल्डनपुरी बाबा की जो अपने शरीर पर 11.5 किलोग्राम से ज्यादा सोना धारण किए हुए हैं। वे सोने का सोना कम अपने ईश्ट का मंदिर ज्यादा मानते हैं जो हर वक्त उनके साथ होता है और चलते-फिरते लोग दर्शन करते हों।
उज्जैन में चार दिन से आए गोल्डन बाबा रविवार की दोपहर जब रामघाट पहुंचे तो उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई। न सिर्फ सहज भाव से आशीर्वाद दिया बल्कि इच्छुक लोगों के साथ फोटो भी खींचवाई। इसी दौरान उन्होंने दबंग दुनिया से भी बातचीत की। उन्होंने बताया कि दत्त अखाड़े में उनका कैंप लगना है जो सिंहस्थ में उनका पहला कैंप है। तैयारियां चल रही है। वे सिंहस्थ के मद्देनजर उज्जैन में हुए बुनियादी कामों से संतुष्ट हैं हालांकि सरकारी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर नाराज हैं। उनका कहना है कि वे जहां जाते हैं वहां उन्हें एक-चार का पुलिस बल मिलता है। चार दिन से उज्जैन में हैं। शासन स्तर पर सूचना दे चुके हैं। अब तक कोई व्यवस्था नहीं की। उत्तराखंड सरकार द्वारा भेजा गया एक ही जवान है। दो सुरक्षाकर्मी निजी हैं।
हर काम के लिए सरकार को दोष देना गलत
सिंहस्थ में सहुलियतों का संकट जताकर सरकार को कोस रहे लोगों से इतर गोल्डनपुरी बाबा ने कहा कि सरकार को कोसते रहना गलत है। जितनी सुविधाएं जुटाई गई है, कम नहीं है। कम सुविधाओं का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करते भी आना चाहिए।
270 रुपए तोला था तब पहली बार पहना था सोना
पहले दिल्ली से हरिद्वार के बीच कावड़ यात्रा निकालने और फिर नासिक कुम्भ से चर्चा में आए गोल्डनपुरी बाबा के शरीर पर 11.5 किलोग्राम के सोने के गहने सजे हैं, जिसकी कीमत साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा है। हीरे से जड़ी 27 लाख की घड़ी भी है। इसके अलावा सोने का जैकेट भी है जो वे खास मौकों पर पहनते हैं जिसका वजन 200 ग्राम बताया जा रहा है। आभूषण देवी-देवताओं के पूजन का माध्यम है। इसीलिए मन तो रोज सोने के नए आभूषण पहनने को करता है। जब संभव होता है, तब वह देवी-देवताओं के नाम नया आभूषण पहन लेते हैं। शुरूआत 1972-73 में भगवान शिव के लॉकेट से हुई। तब सोना 270 रुपए तोला था। अब 21 लॉकेट हैं। जो मां लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, हनुमानजी, दत्त भगवान के नाम के हैं। वे कहते हैं आभुषण ही उनके भगवान हैं और उन्हें धारण किए रखना ही उनकी भक्ति है। सुबह स्नान के बाद आभुषण की पूजा करते हैं फिर धारण करते हैें।
दान भी कर चुके हैं
15 जून 2013 को उत्तराखंड के कैदारनाथ में आई बाढ़ के दौरान शरीर पर पहना पूरा सोना सहायता कोष के लिए दान कर दिया था।
सफर सुधीर कुमार से गोल्डनपुरी बाबा तक का
गोल्डन बाबा का असली नाम सुधीर पिता जीवनदास मक्कड़ है जिनका जन्म 1962 में दिल्ली के गांधीनगर में हुआ था। संन्यासी बनने से पहले वो दिल्ली में कपड़े के व्यापारी थे। ईश्वर आराधना के लिए उन्होंने बिजनेस छोड़ दिया। वर्ष 2012 में गुरु श्रीमहंत मछंदरपुरी महाराज ने इलाहाबाद में दीक्षा दी और तब से वह गोल्डन बाबा बन गए। बाद में जूना अखाड़े से जुड़कर वह गोल्डनपुरी बाबा बने। अभी उनका हरिद्वार में आश्रम भी हैं।
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