उज्जैन से विनोद शर्मा ।
पेड़ के नीचे 10 बाय 10 का एक ओटला...। ओटले पर जमा देवी-देवताओं की प्रतिमाएं...। भगवा वेश...। गले में रूद्राक्ष की आधा मालाएं...। फर्राटेदार अंग्रेजी और संस्कृत...। वे प्रवचन नहीं देती...। लेक्चर देती हैं...। उनके आश्रम में भागवत नहीं होती, क्वेशन-आंसर सेशन होता है...। जहां हर दिन दर्जनों लोगों के मन से तंत्र साधना की भ्रांतियां दूर की जा रही हैं। हम बात कर रहे हैं मुंबई में सर्वेश्वर शक्ति इंटरनेशनल वूमन अखाड़ा के नाम से संस्था संचालित करने वाली शिवानी दुर्गा की जो इंडियन और वेस्टर्न तंत्र को जोड़कर तंत्र में नए प्रयोग कर रही है। वे अघोर साइकिक नामक नया तंत्र भी विकसित कर चुकी हैं।
तीन महीने से उज्जैन में तंत्र साधना कर रही शिवानी दुर्गा का अस्थाई आश्रम उजड़खेड़ा मेला क्षेत्र में बन रहा है। शिवानी ज्यादातर यहीं बैठती हैं। सुबह और शाम पूजा। दिन में आगंतुकों से मुलाकात कर उनकी जिज्ञासाएं शांत करती हैं। शिवानी हर शाम अपने आश्रम में महिलाओं और बच्चों को वेद और संस्कृत की शिक्षा दे रही हैं। उनका कहना है तंत्र और तांत्रिक को लेकर समाज में भ्रांतियां हैं जिसे दूर करने की कोशिश कर रही हूं। असल में जो मन को कंट्रोल करे वही मंत्र है जो उसका विस्तार करे वही तंत्र हैं। तांत्रिक और अघोरी सहज, शांत और आडम्बर रहित हैं। कुछ लोगों ने डर पैदा कर दिया है ताकि वे जताते रहें कि सर्वशक्तिमान हैं।
इसीलिए किरकिरी बन गई मैं..
शिवानी कहती है कि साधु-संतों का पढ़ा-लिखा होना जरूरी है। आज के दौर में अब जो बातें लोगों को बता रहें है उनका तार्किक प्रमाण आपके पास होना जरूरी है। प्रमाण देकर नहीं समझाएंगे तब तक लोग फिल्में बनाकर आपके धर्म पर प्रहार करते रहेंगे। सिर्फ भगवा कपड़े पहन लेने से कोई साधु नहीं बन जाता। सुरक्षा की दृष्टि से साधुओं के पहचान-पत्र बनें। पुलिस वेरिफिकेशन भी हो। मेरा यह बोलना ही साधुओं को अखरता है। हालात यह है कि वे मुझे आंख की किरकिरी समझने लगे हैं। सब किसी न किसी तरह से मुझे सबक सीखना चाहते हैं।
पे्रेक्टिकल देखेंगे तब समझेंगे लोग..
ट्राइबल एरिया और ट्राइब्स पर रिसर्च कर रही हूं। क्योंकि उनके पास थ्योरिटिकल नॉलेज भले कम हो लेकिन उनकी प्रेक्टिकल पकड़ मजबूत है। तंत्र का स्वरूप शास्त्रों में अलग है। उसे प्रेक्टिकल करके जैसा था, वैसा दिखाएंगे तभी लोग समझेंगे। उन्होंने कहा कि तांत्रिक क्रिया मात्र भारत में ही नहीं विदेशों में भी होती है। अमेरिका और अफ्रीकी देशों के लोग भी तंत्र में विश्वास करते हैं। वहां के देवी-देवताओं के नाम अलग हैं लेकिन उसका महत्व कम नहीं।
जादू सिर्फ एनर्जी है, काला-सफेद कुछ नहीं होता...
तांत्रिक काला जादू करते हैं? इसके जवाब में शिवानी ने बताया कि जादू सिर्फ एनर्जी है। एनर्जी नेगेटिव या पॉजिटिव हो सकती है। यह निर्भर करता है उसका इस्तेमाल करने वाले पर। ठीक वैसे ही जैसे चाकू से सब्जी भी काटी जा सकती है और शरीर भी।
महाराष्ट्र में प्रतिबंधित है तंत्र, उज्जैन में खुले विवि
चूंकि उज्जैन मंत्र की नगरी है इसीलिए यहां एक युनिवर्सिटी स्थापित करना चाहती हूं जहां तंत्र और साधना का बारीकी से अध्ययन किया जा सके। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में तंत्र तो दूर तंत्र शब्द का इस्तेमाल भी प्रतिबंधित है। इसीलिए हमने संस्था भी इंडियन विक्कन कम्यूनिटी वुडु टेम्पल के नाम से रजिस्टर्ड कराई है।
साधुओं का स्टिंग आॅपरेशन भी कर चुकी हैं शिवानी
लोगों को तंत्र के प्रति अवेअर करने के मकसद से शिवानी दुर्गा नासिक कुम्भ के दौरान साध्वी त्रिकाल भंवता का स्टिंग आॅपरेशन करके ये बता चुकी हैं कि कुम्भ को साधुओं ने कैसे कमाई का जरिया बना लिया है। तब उन्होंने एक कविता भी लिखी थी जिसका शीर्षक था ‘सोचा था इतने वर्षों में कि साधु कितने पावन है’, ‘आज भरम यह टूटा कि जब देखा आधे रावन है’।
बचपन से अच्छा लगता था चिता के पास बैठना
चक्रतीर्थ में चिता स्थल के पास मसानी काली पूजा कर चुकी शिवानी ने अलवर ‘वहां पिता नौकरी करते थे’, में स्कूली पढ़ाई की। उच्च शिक्षा मुंबई और दिल्ली में हासिल की। शिकागो युनिवर्सिटी से आॅकल्ट साइंस में पीएचडी कर चुकी हैं। भारत में नागनाथ योगेश्वर गुरु से अघोर तंत्र की दीक्षा ली। उन्हें बचपन से तंत्र-मंत्र में रुचि थी। दादी के साथ श्मशान भी जाती थी। वहां चिता के पास बैठना अच्छा लगता था। पिता भी आध्यत्म के करीब थे। इसीलिए उन्होंने अपना जीवन तंत्र को समर्पित किया। वे टेरो कार्ड रीडर, क्रिस्टल हिलर और फार्चून टेलर भी हैं।
पेड़ के नीचे 10 बाय 10 का एक ओटला...। ओटले पर जमा देवी-देवताओं की प्रतिमाएं...। भगवा वेश...। गले में रूद्राक्ष की आधा मालाएं...। फर्राटेदार अंग्रेजी और संस्कृत...। वे प्रवचन नहीं देती...। लेक्चर देती हैं...। उनके आश्रम में भागवत नहीं होती, क्वेशन-आंसर सेशन होता है...। जहां हर दिन दर्जनों लोगों के मन से तंत्र साधना की भ्रांतियां दूर की जा रही हैं। हम बात कर रहे हैं मुंबई में सर्वेश्वर शक्ति इंटरनेशनल वूमन अखाड़ा के नाम से संस्था संचालित करने वाली शिवानी दुर्गा की जो इंडियन और वेस्टर्न तंत्र को जोड़कर तंत्र में नए प्रयोग कर रही है। वे अघोर साइकिक नामक नया तंत्र भी विकसित कर चुकी हैं।
तीन महीने से उज्जैन में तंत्र साधना कर रही शिवानी दुर्गा का अस्थाई आश्रम उजड़खेड़ा मेला क्षेत्र में बन रहा है। शिवानी ज्यादातर यहीं बैठती हैं। सुबह और शाम पूजा। दिन में आगंतुकों से मुलाकात कर उनकी जिज्ञासाएं शांत करती हैं। शिवानी हर शाम अपने आश्रम में महिलाओं और बच्चों को वेद और संस्कृत की शिक्षा दे रही हैं। उनका कहना है तंत्र और तांत्रिक को लेकर समाज में भ्रांतियां हैं जिसे दूर करने की कोशिश कर रही हूं। असल में जो मन को कंट्रोल करे वही मंत्र है जो उसका विस्तार करे वही तंत्र हैं। तांत्रिक और अघोरी सहज, शांत और आडम्बर रहित हैं। कुछ लोगों ने डर पैदा कर दिया है ताकि वे जताते रहें कि सर्वशक्तिमान हैं।
इसीलिए किरकिरी बन गई मैं..
शिवानी कहती है कि साधु-संतों का पढ़ा-लिखा होना जरूरी है। आज के दौर में अब जो बातें लोगों को बता रहें है उनका तार्किक प्रमाण आपके पास होना जरूरी है। प्रमाण देकर नहीं समझाएंगे तब तक लोग फिल्में बनाकर आपके धर्म पर प्रहार करते रहेंगे। सिर्फ भगवा कपड़े पहन लेने से कोई साधु नहीं बन जाता। सुरक्षा की दृष्टि से साधुओं के पहचान-पत्र बनें। पुलिस वेरिफिकेशन भी हो। मेरा यह बोलना ही साधुओं को अखरता है। हालात यह है कि वे मुझे आंख की किरकिरी समझने लगे हैं। सब किसी न किसी तरह से मुझे सबक सीखना चाहते हैं।
पे्रेक्टिकल देखेंगे तब समझेंगे लोग..
ट्राइबल एरिया और ट्राइब्स पर रिसर्च कर रही हूं। क्योंकि उनके पास थ्योरिटिकल नॉलेज भले कम हो लेकिन उनकी प्रेक्टिकल पकड़ मजबूत है। तंत्र का स्वरूप शास्त्रों में अलग है। उसे प्रेक्टिकल करके जैसा था, वैसा दिखाएंगे तभी लोग समझेंगे। उन्होंने कहा कि तांत्रिक क्रिया मात्र भारत में ही नहीं विदेशों में भी होती है। अमेरिका और अफ्रीकी देशों के लोग भी तंत्र में विश्वास करते हैं। वहां के देवी-देवताओं के नाम अलग हैं लेकिन उसका महत्व कम नहीं।
जादू सिर्फ एनर्जी है, काला-सफेद कुछ नहीं होता...
तांत्रिक काला जादू करते हैं? इसके जवाब में शिवानी ने बताया कि जादू सिर्फ एनर्जी है। एनर्जी नेगेटिव या पॉजिटिव हो सकती है। यह निर्भर करता है उसका इस्तेमाल करने वाले पर। ठीक वैसे ही जैसे चाकू से सब्जी भी काटी जा सकती है और शरीर भी।
महाराष्ट्र में प्रतिबंधित है तंत्र, उज्जैन में खुले विवि
चूंकि उज्जैन मंत्र की नगरी है इसीलिए यहां एक युनिवर्सिटी स्थापित करना चाहती हूं जहां तंत्र और साधना का बारीकी से अध्ययन किया जा सके। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में तंत्र तो दूर तंत्र शब्द का इस्तेमाल भी प्रतिबंधित है। इसीलिए हमने संस्था भी इंडियन विक्कन कम्यूनिटी वुडु टेम्पल के नाम से रजिस्टर्ड कराई है।
साधुओं का स्टिंग आॅपरेशन भी कर चुकी हैं शिवानी
लोगों को तंत्र के प्रति अवेअर करने के मकसद से शिवानी दुर्गा नासिक कुम्भ के दौरान साध्वी त्रिकाल भंवता का स्टिंग आॅपरेशन करके ये बता चुकी हैं कि कुम्भ को साधुओं ने कैसे कमाई का जरिया बना लिया है। तब उन्होंने एक कविता भी लिखी थी जिसका शीर्षक था ‘सोचा था इतने वर्षों में कि साधु कितने पावन है’, ‘आज भरम यह टूटा कि जब देखा आधे रावन है’।
बचपन से अच्छा लगता था चिता के पास बैठना
चक्रतीर्थ में चिता स्थल के पास मसानी काली पूजा कर चुकी शिवानी ने अलवर ‘वहां पिता नौकरी करते थे’, में स्कूली पढ़ाई की। उच्च शिक्षा मुंबई और दिल्ली में हासिल की। शिकागो युनिवर्सिटी से आॅकल्ट साइंस में पीएचडी कर चुकी हैं। भारत में नागनाथ योगेश्वर गुरु से अघोर तंत्र की दीक्षा ली। उन्हें बचपन से तंत्र-मंत्र में रुचि थी। दादी के साथ श्मशान भी जाती थी। वहां चिता के पास बैठना अच्छा लगता था। पिता भी आध्यत्म के करीब थे। इसीलिए उन्होंने अपना जीवन तंत्र को समर्पित किया। वे टेरो कार्ड रीडर, क्रिस्टल हिलर और फार्चून टेलर भी हैं।
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