Friday, April 8, 2016

शिप्रा शुद्ध होते ही प्रकट हुए महादेव sinhastha 2016

उज्जैन से विनोद शर्मा ।
सिंहस्थ लिंक परियोजना के तहत नर्मदा के जल से शिप्रा पुनर्जीवित हुई तो वर्षों की जमा गाद हटते ही पहले प्राचीन मंदिर प्रकट हुआ, फिर महादेव। इस बार शिवरात्री नए-नवेले महादेव के साथ मनी। हम बात कर रहे हैं देवास जिले के हवनखेड़ी गांव की जहां शिप्रा और नागदमन नदी संगम पर खुदाई के दौरान निकला महादेव मंदिर इन दिनों चर्चा में है।
शिप्रा नदी की बाढ़ के साथ बहकर आने वाली मिट्टी किनारे पर जमा होती रही। इसी मिट्टी में दबकर रह गया था मंदिर। सिर्फ इसका शिखर ही दिखाई देता था। एक तरफ नागदमन नदी में देवास औद्योगिक क्षेत्र का बदबुदार इंडस्ट्रियल वेस्ट बहकर आता था। दूसरी तरफ 10 महीने शिप्रा सूखी रहती थी। इसीलिए आसपास के लोगों ने शिखर के नीचे क्या है? इसकी चिंता नहीं की। मगर जब नर्मदा के जल से शिप्रा प्रवाहमान हुई और नागदमन का बदबूदार पानी रोक दिया गया तब जिज्ञासा दूर करने के लिए लोगों ने खुदाई की। करीब आठ महीने गेती-फावड़े से खुदाई हुई। धीरे-धीरे मंदिर के अवशेष नजर आने लगे अंतत: पूरा मंदिर मिट्टी से बाहर निकल आया।
शिप्रा तट तक हैं पेड़ियां
खुदाई के बाद शिवरात्री पर ग्रामीणों ने यहां पूजन किया। कलश-यात्रा निकाली गई। अब न सिर्फ मंदिर नजर आता है बल्कि मंदिर के साथ ही शिप्रा नदी तक बनी पेड़ियां भी नजर आती है जिनका इस्तेमाल अब हवनखेड़ी और आसपास के गांव के लोग शिप्रा स्नान के लिए करने लगे हैं। मंदिर, घाट और पेड़ियां काले ऐरन पत्थर की हैं।
प्राचीन है इतिहास...
कथाओं के अनुसार राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के काटने से हुई थी। अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा परीक्षित पुत्र जन्मजय  ने क्रोध में आकर सारी नाग जाति को नष्ट कर देने का बीड़ा उठाया। सर्पसत्र यज्ञ किया। उसके आह्वान पर हजारों नाग आए और अग्नि में गिरे। उनकी मौत हुई। बाद में इंद्र की शरण लेने के कारण तक्षक का कुल बचा। इसीलिए इस नदी को नागदमन कहते हैं।  बाद में जन्मजय ने यहीं शिप्रा तट पर अपने पितृों का मोक्ष करवाया था। इस लिहाज से यह पितृमोक्षेश्वर घाट है। हवनखेड़ी में शिप्रा का श्रंगार हुआ था। इसलिए यह शिवलिंग श्रृंगेश्वर धाम है। देवास के पंवार राजा के वंसज भी इस घांट पर आकर शिप्रा स्नान और शिप्रा पूजन करने आते थे।
गांव में नागदमन का पानी आना हुआ बंद
गांव के रशीद पटेल ने बताया कि पहले गुम्बद दिखती थी। सोचते थे कुछ होगा। बाद में खुदाई की तो मंदिर निकला। यहां शिव की प्रतिमा तो निकली लेकिन नंदी की प्रतीमा नहीं निकली। इस शिवरात्री यहां न सिर्फ हवनखेड़Þी बल्कि गदइश पीपल्या और आसपास के गांव वालों ने भी आकर पूजा की है। पेड़ी निकलने से यहां स्नान करना आसान हो गया है। शिप्रा को मिले नर्मदा के सहारे ने गांव का जल संकट भी दूर कर दिया।

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