Friday, April 8, 2016

नर की सेवा करके नारायण को खुश रखते हैं sinhastha 2016

या
महाकुंभ में आए मेडिकल माइंडेड महामंडेलश्वर
कैंप में न भागवत, न रामकथा बल्कि बनेगा 72 बेड का हॉस्पिटल, पिलाएंगे रोज केरी का पना
इंदौर. विनोद शर्मा ।
सिंहस्थ में जहां साधु-संतों के बड़े-बड़े पांडाल भागवत कथा, रामकथा और शिव पुराण के साथ ही बड़े-बड़े यज्ञ के लिए तैयार हो चुके हैं वहीं भूखी माता सेक्टर का एक कैंप इन सबसे दूर है। यहां नारायण से ज्यादा नर की सेवा को महत्व देते हुए 72 बेड का सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल बनाया जा रहा है जहां मेडिकल कॉलेजों के एचओडी सहित 27 ख्यात डॉक्टर नि:स्वार्थ भाव से सेवा देते नजर आएंगे। यह कैंप है महामंडलेश्वर प्रखर महाराज और उनके साधकों द्वारा संचालित प्रखर परोपकार मिशन का। महामंडलेश्वर ने बताया कि ओपीडी से लेकर आॅपरेशन थियेटर से सुसज्जित इस हॉस्पिटल में किसी को रेफर करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।   रहन-सहन और पहनावे में प्रखर जी भले आम साधु-संतों की तरह नजर आते हैं लेकिन धर्म को देखने का उनका नजरिया बाकी से काफी अलग है। वे 2010 के हरिद्वार कुम्भ और 2013 के इलाहबाद कुम्भ में 1.80 लाख लोगों का अपने चिकित्सकीय प्रकल्प ईलाज कर चुके हैं।   इसमें 396 आॅपरेशन हुए। 2871 इंडोर पेशेंट थे जबकि 1 लाख 74 हजार लोगों को ओपीडी का लाभ मिला। ऐसे मेडिकल माइंडेड महामंडेलश्वर से दबंग दुनिया की खास बातचीत।
हॉस्पिटल का ख्याल कैसे आया?
मेले में करोड़ों लोग आते हैं। कई बार दुर्घटना होती है, बीमार होते हैं। ज्ञान और खाने की मेले में कमी नहीं रहती लेकिन बीमारों के लिए कोई व्यवस्था नहीं रहती। सरकार उदासीन रहती है। न इन्वेस्टिगेशन, न प्रॉपर दवाई। इसीलिए हॉस्पिटल की व्यवस्था की।
कब से बनाते हैं हॉस्पिटल?
ईलाहबाद और हरिद्वार में भी हॉस्पिटल थे। कुल तीन कुम्भ हो चुके हैं। नासिक कुम्भ चूंकि शहर में रहता है इसीलिए वहां व्यवस्था नहीं करते।
उज्जैन में भी रहा है?
नहीं हॉस्पिटल प्रकल्प पहला है। उज्जैन में कई बार पहले भी आ चुका हूं। पहले रामघाट के पास था। अब भीड़ से बचने के लिए बाहर है।
किस तरह के डॉक्टर रहेंगे यहां?
कानपुर मेडिकल कॉलेज के एचओडी(आर्थो) राजेंद्र नाथ, जोधपुर मेडिकल कॉलेज के एचओडी(आर्थो) ओम शाह के साथ ही गुजरात मेडिकल काउंसिल के डायरेक्टर जयेंद्रसिंह जड़ेजा और उनके बेटे (मेडिसिन प्रोफेसर, अहमदाबाद मेडिकल कॉलेज) सहित 27 बड़े डॉक्टर रहेंगे। इसीलिए यहां पेशेंट रेफर करने की जरूरत नहीं पड़ती।
आॅपरेशन थियेटर भी बन रही है यहां?
जी, बिल्कुल पक्का और नॉमर्स के हिसाब से बन रहा है ताकि कोई अंगुली न उठाए। इन्वेस्टिगेशन के बिना प्रॉपर ईलाज नहीं हो सकता है इसीलिए यहां अत्याधुनिक संसाधनों से लैस पैथालॉजी व अन्य सुविधाएं रहेगी।
दवाइयों के लिए क्या व्यवस्था?
मेडिसिन जो डॉक्टर ने लिखा है वह यहां उपलब्ध हो यह हमारा दायित्व है। कफ सिरप और विटामिन की गोली भी फ्री मिले यहां।
अस्पताल का स्वरूप कैसा होगा?
50 इंडोर बेड है जनरल के लिए। साधु-महंतों और विशिष्ट लोगों के लिए 8 बेड हैं। आईसीयू में 2 बेड। इमरजेंसी में 2 बेड। इन्फेक्शन वार्ड में 10 बेड। कुल 72 बेड का हॉस्पिटल रहेगा।
अस्थाई वार्ड में दिक्कत तो नहीं होगी?
बिल्कुल नहीं। मरीजो ंके साथ कोई खिलवाड़ नहीं होगा। जितने भी वार्ड हैं सब वातानुकुलित हैं। मैं और मेरे साधकों के लिए बांस-घांस की कुटिया है यहां सिर्फ कुलर लगेंगे।
कितने वर्ष हो गए सन्यास लिए को?
चार दशक हो चुके हैं।
आपका एज्युकेशन अच्छा है?
साधु-महात्माओं का क्या एज्युकेश। साधुओं का पड़ा लिखा होना जरूरी है। अशिक्षित साधु स्वयं भटका हुआ होगा। पागल और बुद्धि के पागल ही शांत और सुखी रहते हैं।  बीच की श्रेणी वाले लोग कन्फ्यूज और परेशान रहते हैं। पालग और ज्ञानियों की संख्या भी कम है। इसीलिए सुख कम, दुख ज्यादा नजर आता है।
साधुओं के लिए चमत्कार जरूरी है?
चमत्कार साधुओं का काम नहीं है। पूरा जीवन ही चमत्कार है। सबकुछ छोड़कर बाबाजी बन गए यह किसी चमत्कार से कम है क्या? बाकी चमत्कार दिखाना जादुगरों का काम है। भीड़ से साधुओं के महत्व का आंकलन अज्ञानी करते हैं। हीरे की दुकान पर भीड़ नहीं होती, भीड़ सब्जी की दुकान पर ही होती है। 

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