उज्जैन में 127 मंदिरों का जीर्णोद्धार अंतिम चरण में
महाकाल और मंगलनाथ में व्यापक काम, हरसिद्धि व नवगृह मंदिर भी बदले
उज्जैन से विनोद शर्मा।
सिंहस्थ 2016 को देखते हुए उज्जैन में जहां बुनियादी सुविधाओं पर व्यापक स्तर पर काम हो रहा है वहीं सवा सौ से अधिक बड़े-छोटे मंदिरों के स्वरूप को भी संवारा जा रहा है। निखारा जा रहा है। फिर बात महाकालेश्वर मंदिर परिसर की हो या फिर उत्तर दिशा में स्थित मंगलनाथ मंदिर की। हरसिद्धि मंदिर, काल भेरू और नवगृह मंदिर सहित अन्य सभी मंदिरों में जीर्णोद्धार के काम तकरीबन फाइनल स्टेज पर है। सीविल वर्क पूरा हो चुका है। फिनिशिंग जारी है।
उज्जैन में इन दिनों हर गली और हर प्रमुख सड़क पर सिंहस्थ की तैयारियों पर जोरो पर हैं। शिप्रा नदी के किनारे घाट का विस्तार किया जा रहा है। पुराने घाटों को राजस्थान के लाल व गुलाबी पत्थरों से सजाया जा रहा है। इतना ही नहीं शहर और शहर के आसपास के तकरीबन 127 मंदिरों में जीर्णोद्धार व कायाकल्प जारी है। इसमें 84 महादेव मंदिर हैं जबकि 43 अन्य शासकीय मंदिर हैं। इनमें हरसिद्धि मंदिर, चिंतामन, मंगलनाथ, कालभैरव, सिद्धवट, गढ़कालिका, भर्तृहरि गुफा, शनि मंदिर, श्रीराम मंदिर व महाकाल मंदिर भी शामिल हैं। बड़े मंदिरों को छोड़कर बाकी मंदिरों को तकरीबन 10 करोड़ रुपए की लागत से संवारा जा रहा है। 100 से अधिक मंदिरों का कायापलट पूरा हो चुका है। बाकी जगह फिनिशिंग टच जारी है। मंदिरों का रंग-रोगन, बाउंड्रीवाल, परिसर की फ्लोरिंग, गर्भगृह मार्बल व सभा मंडप की छत की रिपेयरिंग व वॉटरप्रुफिंग की जा रही है। इसके अलावा प्रमुख मंदिरों की अप्रोच रोड भी नई बनाई गई जबकि कुछ की अप्रोच रोड सुधारी गई है। पत्थरों ने उज्जैन के मंदिरों को भी गुलाबी रंग में रंग दिया है। राजस्थानी कलाकारों द्वारा पत्थरों पर उकेरी गई नक्कासी देखते ही बनती है।
300 साल बाद फिर संवरा महाकाल मंदिर
राजा भोज द्वारा1050 ईस्वी में बनवाए गए ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार मराठा काल में करीब 300 साल पहले हुआ था। जीर्णोद्धार 1740 में राणोजीराव सिंधिया के दीवान बाबा रामचंद शेणवी ने करवाया था। उस वक्त मंदिर में काले पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। अब सिंहस्थ के मद्देनजर इसी मंदिर को स्वर्ण मंदिर की तरह सजाया जा रहा है। इसके लिए मंदिर में न सिर्फ स्वर्ण मंडित शिखरों का रिनोवेशन कर उन्हें चमकाया जा रहा बल्कि गर्भगृह को भी रजत(चांदी)मंडित किया जा रहा है। नंदीगृह के स्तंभों पर पीतल की नक्काशीदार परत चढाई जा रही है। करीब एक दर्जन कारीगर दिन-रात स्तंभों पर पीतल चढाने के काम में लगे हैं। कोशिश की जा रही कि स्वर्ण शिखरों की तरह नंदीगृह सोने की आभा से दमके। इसके साथ श्रद्धालुओं की प्रवेश और निकासी की भी अलग-अलग व्यवस्था की जा रही है ताकि सिंहस्थ में आने वाले लोग सहूलियत के साथ भोलेनाथ महाकाल के दर्शन कर सके। इसीलिए दर्शन के लिए टनल मार्ग बनाया है जिसकी तारीफ स्वयं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी कर चुके हैं। मंदिर परिसर में ही एक म्यूजियम भी बनाया गया है। जहा ंभगवान महाकाल के विभिन्न मुखौटे, रथ, और अन्य वो सामग्री रखी जाएगी, जो अभी आम लोगों को देखने को नहीं मिलती थी। फेसिलिटी सेंटर बना है। 10 बेड का हॉस्पिटल बना है।
गर्भगृह को छोड़ बाकी सब बदला...
उज्जैन में महाकाल मंदिर के बाद यदि इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में है तो वह है मंगलनाथ मंदिर। इस प्राचीन मंदिर में तीन साल से जीर्णोद्धार जारी है। तीन वर्षों में गर्भगृह को छोड़ मंदिर का तकरीबन पूरा हिस्सा गुलाबी पत्थरों से गुलाबी और दर्शनीय हो चुका है। पहले मंदिर का प्रवेश द्वार दक्षीण दिशा की ओर था जिसे तोड़ दिया गया है। नया प्रवेश द्वारा पूर्व दिशा की ओर बना है जो कि पूरी तरह नक्काशीदार लाल पत्थरों से बना हुआ है। मंदिर परिसर का क्षेत्रफल भी बढ़ गया है। परिसर में ही अव्यवस्थित दुकानों को व्यवस्थित करने के मकसद से मार्केट बन रहा है जहां हार-फूल और प्रसादी की दुकानें होगी। मंदिर में भीड़ मैनेजमेंट को देखते हुए जहां मुख्य द्वार पर दो तरफा सीढ़िया बनाई गई है वहीं विकलांग व बुजुर्गों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए रैम्प भी बनाया गया है।
मंदिर के मुख्य पूजारी दिप्तेश दुबे ने बताया कि तकरीबन 9 करोड़ की लागत से मंदिर का जीर्णोद्धार तकरीबन तीन साल पहले शुरू हुआ था। सिंहस्थ से पहले-पहले काम पूरा हो जाएगा। मंदिर का मौजूदा स्वरूप देखते ही बनता है। दर्शनार्थी भी इसकी तारीफ करते हैं। पहुंच मार्ग भी अच्छा हो गया है। सिद्धनाथ की ओर जाने के लिए नया पुल भी बना है।
नंदी भी बैठेंगे
पूर्व दिशा की ओर बने मंदिर के नवीनतम प्रवेशद्वार के दोनों ओर नंदी की आकर्षक प्रतिमाएं लगाई जाएंगी। धोलपुरी राजस्थानी पत्थरों से बनी नंदी की प्रतिमाओं का वजन एक-एक टन है।
बाल हनुमान मंदिर भी नया...
गढ़कालिका से काल भैरव की ओर जाते वक्त बायीं ओर बाल हनुमान मंदिर में जारी जीर्णोद्धार नजर आता है। मंदिर प्राचीन था जो अब तकरीबन पूरी तरह से नया और गुलाबी पत्थरों से लैस हो चुका है। काम जारी है। यहां हनुमानजी की प्रतीमा भी प्राचीन है। इंदौर से आकर अपनी आंखों के सामने मंदिर बनवा रही नीतू अग्रवाल ‘दीदी’ ने बताया कि मंदिर निर्माण तकरीबन 5 साल से जारी है। यहां किसी तरह के लोहे का इस्तेमाल नहीं किया है। बिम कालम की जगह यहां अलंगे इस्तेमाल किए गए हैं। सिंहस्थ से पहले-पहले मंदिर का काम पूरा हो जाएगा।
हरसिद्धि मंदिर
यहां भी रंग-रोगन हो चुका है। द्वार व्यवस्थित किया है। सामने की दुकानों को हटाकर सड़क पार रूद्रसागर की ओर शिफ्ट कर दिया है। चौराहे का सौंदर्यीकरण भी हुआ है।
चिंतामण गणेश...
सिंहस्थ की तैयारियां चिंतामण गणेश मंदिर तक भी पहुंची है यहां बीते वर्षों में शेड लगाया गया है ताकि श्रृद्धालू धूप या बरसात से बच सकें। इसके अलावा पश्चिम की ओर नया द्वार बनाया गया है जो कि मंदिर को नई सड़क से जोड़ता है।
काल भैरव
मंदिर का रंग-रोगन किया गया है। अंदर लाल पत्थर का काम भी जारी है। बाहर पार्किंग और मार्केट को व्यवस्थित किया गया है। वहीं एक सड़क काल भैरव से गढ़कालिका की ओर जाने के लिए निकाली गई है तो दूसरी काल भैरव से उन्हेल रोड पहुंचने के लिए।
संदिपनी आश्रम
अंकपात और मंगलनाथ रोड पर संदिपनी आश्रम है जिसका जीर्णोद्धार भी जारी है। यहां कुण्ड का सौंदयीकरण हुआ है। वहीं अंदर मंदिर परिसर का रंग-रोंगन भी हुआ है।
रामघाट के मंदिर
रामघाट को मंदिरों का क्लस्टर भी कहा जाता है यहां दर्जनभर से अधिक मंदिर हैं। शिप्रा नदी के दोनों ओर घांटों का जो निर्माण जारी है उन्हें गुलाबी रंग से रंगा गया है। इसीलिए शिप्रा के मंदिरों को भी साफ करके उनकी गुंबद गुलाबी कर दी गई है।
नवगृह मंदिर
इंदौर से उज्जैन की ओर आने पर डेंडिया गांव में नवगृह मंदिर है। सिंहस्थ ने इस मंदिर की काया भी पूरी तरह पलट दी। मंदिर के प्राचीन स्वरूप को यथावत रखा गया है। नौ रंगों में पूती मंदिर की गुम्बद नवरंगी हो गई हैं। सामने के मार्केट को दूर करके व्यवस्थित कर दिया गया है। पार्किंग भी व्यवस्थित कर दी है। घाटों का सौंदर्यीकरण हो चुका है। नदी और मार्केट के बीच पार्क भी बनाया जा रहा है ताकि श्रृद्धालु यहां बैठकर सुकुन की थोड़ी सांस ले सके। पेयजल और सुविधाघर की व्यवस्था भी दुरुस्त कर दी है। मंदिर परिसर में ही पूजा भवन भी बनाया जहां से एक तरफ कान्ह नदी का किनारा नजर आता है तो दूसरी तरफ से शिप्रा का किनारा।
महाकाल और मंगलनाथ में व्यापक काम, हरसिद्धि व नवगृह मंदिर भी बदले
उज्जैन से विनोद शर्मा।
सिंहस्थ 2016 को देखते हुए उज्जैन में जहां बुनियादी सुविधाओं पर व्यापक स्तर पर काम हो रहा है वहीं सवा सौ से अधिक बड़े-छोटे मंदिरों के स्वरूप को भी संवारा जा रहा है। निखारा जा रहा है। फिर बात महाकालेश्वर मंदिर परिसर की हो या फिर उत्तर दिशा में स्थित मंगलनाथ मंदिर की। हरसिद्धि मंदिर, काल भेरू और नवगृह मंदिर सहित अन्य सभी मंदिरों में जीर्णोद्धार के काम तकरीबन फाइनल स्टेज पर है। सीविल वर्क पूरा हो चुका है। फिनिशिंग जारी है।
उज्जैन में इन दिनों हर गली और हर प्रमुख सड़क पर सिंहस्थ की तैयारियों पर जोरो पर हैं। शिप्रा नदी के किनारे घाट का विस्तार किया जा रहा है। पुराने घाटों को राजस्थान के लाल व गुलाबी पत्थरों से सजाया जा रहा है। इतना ही नहीं शहर और शहर के आसपास के तकरीबन 127 मंदिरों में जीर्णोद्धार व कायाकल्प जारी है। इसमें 84 महादेव मंदिर हैं जबकि 43 अन्य शासकीय मंदिर हैं। इनमें हरसिद्धि मंदिर, चिंतामन, मंगलनाथ, कालभैरव, सिद्धवट, गढ़कालिका, भर्तृहरि गुफा, शनि मंदिर, श्रीराम मंदिर व महाकाल मंदिर भी शामिल हैं। बड़े मंदिरों को छोड़कर बाकी मंदिरों को तकरीबन 10 करोड़ रुपए की लागत से संवारा जा रहा है। 100 से अधिक मंदिरों का कायापलट पूरा हो चुका है। बाकी जगह फिनिशिंग टच जारी है। मंदिरों का रंग-रोगन, बाउंड्रीवाल, परिसर की फ्लोरिंग, गर्भगृह मार्बल व सभा मंडप की छत की रिपेयरिंग व वॉटरप्रुफिंग की जा रही है। इसके अलावा प्रमुख मंदिरों की अप्रोच रोड भी नई बनाई गई जबकि कुछ की अप्रोच रोड सुधारी गई है। पत्थरों ने उज्जैन के मंदिरों को भी गुलाबी रंग में रंग दिया है। राजस्थानी कलाकारों द्वारा पत्थरों पर उकेरी गई नक्कासी देखते ही बनती है।
300 साल बाद फिर संवरा महाकाल मंदिर
राजा भोज द्वारा1050 ईस्वी में बनवाए गए ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार मराठा काल में करीब 300 साल पहले हुआ था। जीर्णोद्धार 1740 में राणोजीराव सिंधिया के दीवान बाबा रामचंद शेणवी ने करवाया था। उस वक्त मंदिर में काले पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। अब सिंहस्थ के मद्देनजर इसी मंदिर को स्वर्ण मंदिर की तरह सजाया जा रहा है। इसके लिए मंदिर में न सिर्फ स्वर्ण मंडित शिखरों का रिनोवेशन कर उन्हें चमकाया जा रहा बल्कि गर्भगृह को भी रजत(चांदी)मंडित किया जा रहा है। नंदीगृह के स्तंभों पर पीतल की नक्काशीदार परत चढाई जा रही है। करीब एक दर्जन कारीगर दिन-रात स्तंभों पर पीतल चढाने के काम में लगे हैं। कोशिश की जा रही कि स्वर्ण शिखरों की तरह नंदीगृह सोने की आभा से दमके। इसके साथ श्रद्धालुओं की प्रवेश और निकासी की भी अलग-अलग व्यवस्था की जा रही है ताकि सिंहस्थ में आने वाले लोग सहूलियत के साथ भोलेनाथ महाकाल के दर्शन कर सके। इसीलिए दर्शन के लिए टनल मार्ग बनाया है जिसकी तारीफ स्वयं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी कर चुके हैं। मंदिर परिसर में ही एक म्यूजियम भी बनाया गया है। जहा ंभगवान महाकाल के विभिन्न मुखौटे, रथ, और अन्य वो सामग्री रखी जाएगी, जो अभी आम लोगों को देखने को नहीं मिलती थी। फेसिलिटी सेंटर बना है। 10 बेड का हॉस्पिटल बना है।
गर्भगृह को छोड़ बाकी सब बदला...
उज्जैन में महाकाल मंदिर के बाद यदि इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में है तो वह है मंगलनाथ मंदिर। इस प्राचीन मंदिर में तीन साल से जीर्णोद्धार जारी है। तीन वर्षों में गर्भगृह को छोड़ मंदिर का तकरीबन पूरा हिस्सा गुलाबी पत्थरों से गुलाबी और दर्शनीय हो चुका है। पहले मंदिर का प्रवेश द्वार दक्षीण दिशा की ओर था जिसे तोड़ दिया गया है। नया प्रवेश द्वारा पूर्व दिशा की ओर बना है जो कि पूरी तरह नक्काशीदार लाल पत्थरों से बना हुआ है। मंदिर परिसर का क्षेत्रफल भी बढ़ गया है। परिसर में ही अव्यवस्थित दुकानों को व्यवस्थित करने के मकसद से मार्केट बन रहा है जहां हार-फूल और प्रसादी की दुकानें होगी। मंदिर में भीड़ मैनेजमेंट को देखते हुए जहां मुख्य द्वार पर दो तरफा सीढ़िया बनाई गई है वहीं विकलांग व बुजुर्गों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए रैम्प भी बनाया गया है।
मंदिर के मुख्य पूजारी दिप्तेश दुबे ने बताया कि तकरीबन 9 करोड़ की लागत से मंदिर का जीर्णोद्धार तकरीबन तीन साल पहले शुरू हुआ था। सिंहस्थ से पहले-पहले काम पूरा हो जाएगा। मंदिर का मौजूदा स्वरूप देखते ही बनता है। दर्शनार्थी भी इसकी तारीफ करते हैं। पहुंच मार्ग भी अच्छा हो गया है। सिद्धनाथ की ओर जाने के लिए नया पुल भी बना है।
नंदी भी बैठेंगे
पूर्व दिशा की ओर बने मंदिर के नवीनतम प्रवेशद्वार के दोनों ओर नंदी की आकर्षक प्रतिमाएं लगाई जाएंगी। धोलपुरी राजस्थानी पत्थरों से बनी नंदी की प्रतिमाओं का वजन एक-एक टन है।
बाल हनुमान मंदिर भी नया...
गढ़कालिका से काल भैरव की ओर जाते वक्त बायीं ओर बाल हनुमान मंदिर में जारी जीर्णोद्धार नजर आता है। मंदिर प्राचीन था जो अब तकरीबन पूरी तरह से नया और गुलाबी पत्थरों से लैस हो चुका है। काम जारी है। यहां हनुमानजी की प्रतीमा भी प्राचीन है। इंदौर से आकर अपनी आंखों के सामने मंदिर बनवा रही नीतू अग्रवाल ‘दीदी’ ने बताया कि मंदिर निर्माण तकरीबन 5 साल से जारी है। यहां किसी तरह के लोहे का इस्तेमाल नहीं किया है। बिम कालम की जगह यहां अलंगे इस्तेमाल किए गए हैं। सिंहस्थ से पहले-पहले मंदिर का काम पूरा हो जाएगा।
हरसिद्धि मंदिर
यहां भी रंग-रोगन हो चुका है। द्वार व्यवस्थित किया है। सामने की दुकानों को हटाकर सड़क पार रूद्रसागर की ओर शिफ्ट कर दिया है। चौराहे का सौंदर्यीकरण भी हुआ है।
चिंतामण गणेश...
सिंहस्थ की तैयारियां चिंतामण गणेश मंदिर तक भी पहुंची है यहां बीते वर्षों में शेड लगाया गया है ताकि श्रृद्धालू धूप या बरसात से बच सकें। इसके अलावा पश्चिम की ओर नया द्वार बनाया गया है जो कि मंदिर को नई सड़क से जोड़ता है।
काल भैरव
मंदिर का रंग-रोगन किया गया है। अंदर लाल पत्थर का काम भी जारी है। बाहर पार्किंग और मार्केट को व्यवस्थित किया गया है। वहीं एक सड़क काल भैरव से गढ़कालिका की ओर जाने के लिए निकाली गई है तो दूसरी काल भैरव से उन्हेल रोड पहुंचने के लिए।
संदिपनी आश्रम
अंकपात और मंगलनाथ रोड पर संदिपनी आश्रम है जिसका जीर्णोद्धार भी जारी है। यहां कुण्ड का सौंदयीकरण हुआ है। वहीं अंदर मंदिर परिसर का रंग-रोंगन भी हुआ है।
रामघाट के मंदिर
रामघाट को मंदिरों का क्लस्टर भी कहा जाता है यहां दर्जनभर से अधिक मंदिर हैं। शिप्रा नदी के दोनों ओर घांटों का जो निर्माण जारी है उन्हें गुलाबी रंग से रंगा गया है। इसीलिए शिप्रा के मंदिरों को भी साफ करके उनकी गुंबद गुलाबी कर दी गई है।
नवगृह मंदिर
इंदौर से उज्जैन की ओर आने पर डेंडिया गांव में नवगृह मंदिर है। सिंहस्थ ने इस मंदिर की काया भी पूरी तरह पलट दी। मंदिर के प्राचीन स्वरूप को यथावत रखा गया है। नौ रंगों में पूती मंदिर की गुम्बद नवरंगी हो गई हैं। सामने के मार्केट को दूर करके व्यवस्थित कर दिया गया है। पार्किंग भी व्यवस्थित कर दी है। घाटों का सौंदर्यीकरण हो चुका है। नदी और मार्केट के बीच पार्क भी बनाया जा रहा है ताकि श्रृद्धालु यहां बैठकर सुकुन की थोड़ी सांस ले सके। पेयजल और सुविधाघर की व्यवस्था भी दुरुस्त कर दी है। मंदिर परिसर में ही पूजा भवन भी बनाया जहां से एक तरफ कान्ह नदी का किनारा नजर आता है तो दूसरी तरफ से शिप्रा का किनारा।
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