Friday, April 8, 2016

सिंहस्थ में समयसीमा चुकी सुविधाएं sinhastha 2016

- बड़ी मात्रा में सुविधाघर अब भी अधुरे
इंदौर. विनोद शर्मा ।
2004 को सिंहस्थ संपन्न होने के साथ ही अगले मेले के लिए 2016 मुकरर्र भी हो चुका था बावजूद इसके मेला क्षेत्र का बड़ा हिस्सा अब तक बुनियादी सुविधाओं से महरूम है। फिर मुद्दा बिजली की उपलब्धता का हो या फिर साधु-संतों के लिए की जा रही जल-मल व्यवस्था का। कुछ अन्य काम भी ऐसे हैं जिन पर समयसीमा बीतने के बावजूद काम जारी है। दूसरी तरफ मच्छर अलग मोर्चा खोलकर बैठे हैं उनके खिलाफ तमाम सरकारी तैयारी कागजी नाकाफी ही साबित हुई। भिनभिनाहट जहां सोने नहीं देती वहीं मच्छर के काटने से साधु-सन्यासी बीमार भी होने लगे हैं।
2015 में नासिक कुम्भ था। जहां अपने लबाजमे के साथ मुख्यमंत्री व्यवस्था का जायजा लेने पहुंचे और साधु-संतों का निमंत्रित करते हुए वादा किया था कि यहां से बीसी व्यवस्था करके दूंगा। अब जब साधु संत सिंहस्थ के लिए डेरा डालने पहुंचे तो उन्हें उज्जैन के बुनियादी विकास ने जहां सुुकुन दिया वहीं साधु-संतों के लिए की जाने वाली बुनियादी सुविधाओं में ढिलाई उन्हें कचौटने लगी है। सबसे ज्यादा निराश कर रही है सुविधाघर का संकट। एक तरफ प्रधानमंत्री का खुले में शौचमुक्त भारत का सपना और दूसरी तरफ मुख्यमंत्री का ग्रीन उज्जैन-ग्रीन सिंहस्थ नारा इसके सुबह-सुबह साधु यहां-वहां स्थान तलाशते नजर आते हैं। मंगलनाथ मंदिर के पास ही डेरा डालकर बैठे महंत रामचंद्र  दास ने बताया कि बिजली का कनेक्शन मिल चुका है लेकिन पानी और सुविधाघर का कोई इंतजाम नहीं है।
20 फीसदी सुविधाघर अब तक नहीं बने
दबंग दुनिया की टीम ने सिंहस्थ मेला क्षेत्र का जायजा लिया तो सुविधाघर को लेकर साधु-संतों की नाराजगी जायज मिली। आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो सिंहस्थ के लिए 39000 शौचालय और 10000 मुत्रालय बनाए जाना थे। इसके अलावा पंचकोशी यात्रा क्षेत्र में 28 हजार शौचालय, 920 मुत्रालय और 3500 स्नानगृह बनाना थे। सुविधाघर उपलब्धता की जिम्मेदारी भोपाल की सुलभ इंटरनेशनल प्रा.लि. को दी गई थी लेकिन कंपनी अब तक काम को पूरा नहीं कर पाई। सभी छह जोन में तकरीबन 10 हजार से अधिक सुविधाघर ऐसे हैं जो निर्माणाधीन हैं। कहीं सिर्फ बेस नजर आता है तो कहीं बेस पर टंगा एंगल का जाला। सबसे ज्यादा स्थिति खराब है काल भैरव, मंगलनाथ और महाकाल जोन में। यहां कई जगह प्लॉट आवंटन के बाद साधु डेरा डालकर बैठे हैं और सुविधाघर का काम अब तक शुरू नहीं हुआ। कहीं काम हो रहा है तो मंद गति से। कहीं सिर्फ जाल खड़ा करके शीट लगने का इंतजार है। जबकि कंपनी के कर्ताधर्ता कहते हैं कि 90 फीसदी से अधिक काम हो चुका है। मजदूर संकट और कमोट, कवर शीट आने में हो रही देर के कारण मामला थोड़ा लंबा खिचता जा रहा है।
आगे पाट, पीछे सपाट
सुलभ ने जितने सुविधाघर बनाए हैं उनकी गुणवत्ता कमजोर है। हालत यह है कि इस्तेमाल से पहले ही सुविधाघर की चार दिवारी टूटने लगी है। अभी कंपनी जहां नवनिर्माण में पिछड़ रही है वहीं इन टूटे फूटे सुविधाघर की सुध लेने को कोई तैयार ही नहीं है।
घाट निर्माण भी पिछड़ा
सिंहस्थ के दौरान 5 किलोमीटर से ज्यादा लंबे घाट नए बनाए जाना थे इसमें से कुछ हिस्सा अब भी बाकी है। नर्सिंग घाट और रामघाट पर एक तरफ मिट्टी का ढेर लगा है शिप्रा किनारे पर। रामघाट पर लाल पत्थर का काम भी तय समयसीमा से पिछड़ गया। लाल पुल के पास भी मामला ठंडा है। इसीलिए शिप्रा के बहाव को आगे से रोक दिया गया है ताकि उसकी वजह से कालभैरव, मंगलनाथ और सिद्धवट क्षेत्र में नहाने के लिए साधुओं को नदी में गंदा पानी मिल रहा है।
बिजली के खम्बे भी लग ही रहे हैं...
मेला क्षेत्रों की स्थिति यह है कि अब तक बिजली के खम्बे भी लग ही रहे हैं। कहीं तार का इंतजार है तो कहीं स्ट्रिट लाइट का। कहीं अब तक कनेक्शन ही नहीं जोड़े गए हैं। चिंतामण सेक्टर, चिंतामण रोड, बायपास, काल भैरव और पंचकोशी क्षेत्र का बड़ा हिस्सा ऐसा है जहां रात को अंधेरा रहता है।
चौराहों का विस्तार भी जारी है
चौराहों की साज-सज्जा का काम भी जारी है। मंगलनाथ मंदिर के पास दो नई रोटरी का काम इसी सप्ताह शुरू हुआ है। इसके अलावा शिप्रा नदी से जुड़ने वाली सड़कों का सौंदर्यीकरण भी जारी है।
कान्ह डायवर्शन भी जारी
सिंहस्थ में शिप्रा के पानी की शुद्धता बनाए रखने के लिए कान्ह नदी डायवर्शन हो रहा है। यहां भी सिंहस्थ शुरू होने में 23 दिन बाकी है और अब तक पाइप लाइन डालने का काम ही जारी है।
मच्छरों का बड़ा आतंक
सिंहस्थ में आने वाले साधु-संत मच्छरों के आतंक से परेशान हैं। चूंकि उनका डेरा खुले क्षेत्रों में है लिहाजा वहां मच्छर भी ज्यादा हैं। वजह है झाड़ियां, घांस और खुले नाले। तेरह भाई त्यागी अखाड़े के मोनी बाबा ने बताया कि मच्छर न सोने देते हैं। न बैठने देते हैं। धुआं छोड़ने वाले रोड किनारे से निकल जाते हैं। अंदरूनी क्षेत्रों में नहीं आते। कंडे और लकड़ी का धुआं करके रात काटना पड़ती है। हमारे दो साधु बिमार भी हो चुके हैं जो उपचार के बाद अब स्वस्थ तो हैं लेकिन मच्छरों के आतंक से परेशान हैं।

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