- बंदूक और गाड़ियों की शौकीन सन्यासिनी
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
सिंहस्थ 2016 में पधारे साधु-संतों की शान और शौक निराले हैं। इन सबके बीच एक ऐसी नागा संन्यासिनी भी हैं, जो शास्त्रों के साथ ही शस्त्रों में भी महारथ रखती है। इन्हें जितने अच्छे तरीके से श्लोक रटे हैं उसी तरह दो नाली बंदूक से अचूक निशाना भी लगा लेती हैं। गाड़ियों से भी उन्हें प्रेम है वे अपनी गाड़ी स्वयं चलाती हैं।
यहां बात हो रही है दत्त अखाड़े के पास डेरा डालकर बैठी पंच दशनाम जूना अखाड़े की संत दया भारती की। अन्य सन्यासिनियों और कथावाचिकाओं की तरह भारती मेकअप और दिखावे में वक्त जाया नहीं करती। साधुओं जैसी उनकी मोटी-मोटी जटाएं हैं। उन्हें बचपन से ही हथियारों का शौक है। नौ वर्ष की उम्र में सन्यास लेकर भी उन्होंने आश्रम में रहकर निशानेबाजी सीखी। अब तक उन्होंने कई तरह की दोनाली बंदूक, पिस्टल, राइफल चलाई है। उनके पास हथियार का लाइसेंस भी है।
जो साधु अहिंसा की कसम खाते हैं। दुनियादारी त्याग चुके हैं। उन्हें हथियार की क्या जरूरत? इसके जवाब में दया भारती कहती है वह दो उद्देश्य के लिए है। स्वयं की रक्षा और धर्म की रक्षा के लिए। उन्होंने कभी हथियार का दुुरुपयोग नहीं किया। वे अखाड़े को ही अपना घर और साधुजनों को परिवार मानती है।
सन्यास के साथ पढ़ाई भी...
राजस्थान के धौलपुर जिला स्थित राजाखेड़ा हनुमान धाम आश्रम से ताल्लुक रखने वाली भारती की सन्यास लेने के बाद भी पढ़ाई में रुचि रही। उन्होंने हाईस्कूल तक की पढ़ाई आश्रम में रहकर ही की। यहीं निशानेबाजी भी सीखी। जब भी मौका मिलता है निशानेबाजी में हाथ आजमा लेती हैं। कुछ निशाने की प्रतियोगिताएं भी जीती।
गुरु ने दी शस्त्र की दीक्षा
दया भारती बताती हैं कि शस्त्र चलाना गुरु महंत दिगंबरराम भारती ने सीखाया। उनकी आज्ञा से ही निशानेबाजी प्रतियोगियाताओं में भाग लिया। 10 वर्ष की उम्र में पहली बार प्रशिक्षण लिया।
गाड़ी चलाने का भी शौक
दया भारती को हथियार के साथ गाड़ी चलाने का भी शौक है। उनके पास दो एसयूवी गाड़ियां हैं, जिसे वह स्वयं चलाती हैं। 2013 में वे स्वयं गाड़ी ड्राइव कर महाकुंभ पहुंची थी। इससे पहले हरिद्वार, नासिक, कुंभ में भी शामिल हो चुकी हैं। सभी जगह राजस्थान स्थित आश्रम से स्वयं ही गाड़ी चलाकर पहुंची। चारों धाम की यात्रा भी उन्होंने की है और लगभग सभी यात्राओं में वह गाड़ी खुद चलाती हैं।
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
सिंहस्थ 2016 में पधारे साधु-संतों की शान और शौक निराले हैं। इन सबके बीच एक ऐसी नागा संन्यासिनी भी हैं, जो शास्त्रों के साथ ही शस्त्रों में भी महारथ रखती है। इन्हें जितने अच्छे तरीके से श्लोक रटे हैं उसी तरह दो नाली बंदूक से अचूक निशाना भी लगा लेती हैं। गाड़ियों से भी उन्हें प्रेम है वे अपनी गाड़ी स्वयं चलाती हैं।
यहां बात हो रही है दत्त अखाड़े के पास डेरा डालकर बैठी पंच दशनाम जूना अखाड़े की संत दया भारती की। अन्य सन्यासिनियों और कथावाचिकाओं की तरह भारती मेकअप और दिखावे में वक्त जाया नहीं करती। साधुओं जैसी उनकी मोटी-मोटी जटाएं हैं। उन्हें बचपन से ही हथियारों का शौक है। नौ वर्ष की उम्र में सन्यास लेकर भी उन्होंने आश्रम में रहकर निशानेबाजी सीखी। अब तक उन्होंने कई तरह की दोनाली बंदूक, पिस्टल, राइफल चलाई है। उनके पास हथियार का लाइसेंस भी है।
जो साधु अहिंसा की कसम खाते हैं। दुनियादारी त्याग चुके हैं। उन्हें हथियार की क्या जरूरत? इसके जवाब में दया भारती कहती है वह दो उद्देश्य के लिए है। स्वयं की रक्षा और धर्म की रक्षा के लिए। उन्होंने कभी हथियार का दुुरुपयोग नहीं किया। वे अखाड़े को ही अपना घर और साधुजनों को परिवार मानती है।
सन्यास के साथ पढ़ाई भी...
राजस्थान के धौलपुर जिला स्थित राजाखेड़ा हनुमान धाम आश्रम से ताल्लुक रखने वाली भारती की सन्यास लेने के बाद भी पढ़ाई में रुचि रही। उन्होंने हाईस्कूल तक की पढ़ाई आश्रम में रहकर ही की। यहीं निशानेबाजी भी सीखी। जब भी मौका मिलता है निशानेबाजी में हाथ आजमा लेती हैं। कुछ निशाने की प्रतियोगिताएं भी जीती।
गुरु ने दी शस्त्र की दीक्षा
दया भारती बताती हैं कि शस्त्र चलाना गुरु महंत दिगंबरराम भारती ने सीखाया। उनकी आज्ञा से ही निशानेबाजी प्रतियोगियाताओं में भाग लिया। 10 वर्ष की उम्र में पहली बार प्रशिक्षण लिया।
गाड़ी चलाने का भी शौक
दया भारती को हथियार के साथ गाड़ी चलाने का भी शौक है। उनके पास दो एसयूवी गाड़ियां हैं, जिसे वह स्वयं चलाती हैं। 2013 में वे स्वयं गाड़ी ड्राइव कर महाकुंभ पहुंची थी। इससे पहले हरिद्वार, नासिक, कुंभ में भी शामिल हो चुकी हैं। सभी जगह राजस्थान स्थित आश्रम से स्वयं ही गाड़ी चलाकर पहुंची। चारों धाम की यात्रा भी उन्होंने की है और लगभग सभी यात्राओं में वह गाड़ी खुद चलाती हैं।
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