उज्जैन से विनोद शर्मा ।
जुबां पर ओम त्रीम, त्रीम, त्रीम...। काला लिबाज...। गले में रूद्राक्ष की मालाएं...। हाथ में आधी खोपड़ी (कपाल)...। जब प्यास लगती है इसी खोपड़ी में पानी डलवाते हैं, पीते हैं। कुछ दिन पहले तक खाना भी इसी में खाते थे। ऐसे हैं कामाख्या माता के भक्त श्रीश्री 1008 कापालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती जो गढ़कालिका क्षेत्र में अपना कैंप लगाकर न सिर्फ लोगों की भ्रांतियां दूर कर रहे हैं बल्कि तंत्र-मंत्र का महत्व भी बता रहे हैं। हालांकि वे तंत्र के माध्यम से मनोरथ सिद्ध करने का दम भरने वालों को गिद्ध कहते हैं।
अमूमन नरमुंड व काला चोगा पहनने वाले कथित तांत्रिक टोने-टोटके की बात करते हैं तो कभी लोगों की झोली धन-धान्य और औलाद से भरने की। नोटों की बारीश कराने का दम्भ भर बरते हैं। कपालिक बाबा इनसे अलग है। वह तंत्र साधना के नाम पर फैले अंधविश्वास को खारिज करते हैं। कहते हैं लोगों में इन सब चीजों के लिए जागरूकता जरूरी है। उन्होंने बताया कि ईश्वर की आराधना तीन तरह से होती है। वैदिक रीति, वैष्णव पद्धति, तांत्रिक और वैदिक तांत्रिक मिश्रित पद्धति। परमात्मा की आराधना जो संस्कृत में की जाती है और उन मंत्रों को जो क्रियात्मक स्वरूप दिया जाता है, वही तंत्र है।
मूल रूप से पंजाब निवासी कापालिक बाबा का दिल्ली के रोहिणी में आश्रम है। पिछले 53 वर्षों से वह तंत्र साधना में लगे हैं। शुरूआत उन्होंने 30 वर्ष के थे। जिस कपाल क्रिया के नाम से ही सामान्यत: रोंगड़े खड़े हो जाते हैं, उसी कपाल में वह चाय पीते हैं। पानी पीते हैं। बातचीत के दौरान वे अंग्रेजी शब्दों का भी इस्तेमाल करते हैं। उनकी वेबसाइट अमृतेश्वरीसरस्वती.कॉम भी अंग्रेजी में ही है। इसके अलावा बाबा के पास दूर देशों से भक्त आते हैं जो न सिर्फ कपाल क्रिया में उनके साथ बैठते हैं क्रिया पर रिसर्च भी करते हैं। 2012 में इडियन यूरोपियन यूनियन ने उन्हें नींदरलैंड में ग्लोबस पीस एंड फ्रेंडशिप अवार्ड से सम्मानित भी कर चुकी है। पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।
अजब बाबा के गजब जवाब
क्या तंत्र जादू या चमत्कार है?
तंत्र न तो कोई जादू है, न कोई टोना टोटका, न ही कोई चमत्कार है। यह परमात्मा की अराधाना का मार्ग। इससे महानिर्वाण की प्राप्ति होती है। इसे गहराई से समझा जा सकता है।
श्मशान में साधना क्यों ?
दुनिया में श्मशान से पवित्र कोई स्थान नहीं है। वहां न छल्ल है। न कपट है। पूर्ण शांति होती है। यहां पहुंचने के बाद मनुष्य को कुछ पल के लिए ही सही लेकिन लगता जरूर है कि अंतिम सत्य यही है। यही अंत है। तंत्र की साधना रात में होती है। शंखिनी-डाकिनी-पिशाचिनी, तेलिया मशान आदि तंत्र से जुड़ी बातों को कापालिक बाबा किवदंती मानते हैं।
पहनावा काला क्यों?
इसके जवाब में स्वामी जी ने बताया कि काला रंग वैराग्य का प्रतीक होता है। कापालिक सिर्फ वही बन सकता है, जिसके मन में संसार के लिए कोई अनुराग न हो। यही ऐसा रंग है जिस पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता।
मांस, मंदिरा, आदि पंच मकार की भी तंत्र में चर्चा होती है?
ऐसा कुछ नहीं है। मैं पान, बीड़ी, तंबाकू, कुछ नहीं लेता।
खोपड़ी में खाना-पीना क्यों?
कथा है एक बार ब्रह्मा ने झूठ बोला तो शिव ने उनकी गर्दन काट दी। शिव के इसी स्वरूप से कापालिक बना। इस स्वरूप को मानने वाले कापालिक कहलाए। जहां यह घटना घटी वहां बद्रीनाथ में कापालीकेश्वर मंदिर है। शिव के कापालीकेश्वर स्वरूप को मानने वाले शिव को प्रसन्न करने के लिए कपाल में खाते हैं और इसी में पानी पीते हैं
तंत्र साधना के लिए उज्जैन का महत्व क्यों?
महाकाल का अर्थ है जो काल के परे है। जहां सब कुछ शून्य यानि अनादि-अनंत हो जाता है। यही कारण है कि उज्जैन सिद्ध भूमि है। यहां साधना जल्दी सफल होती है। सिंहस्थ के दौरान साधना बाकी दिनों के मुकाबले जल्दी सफल होती है।
सिंहस्थ में शवों से साधना होती है ?
तीन साधना है। श्मशान साधना, चिता साधना और शव साधना। शव साधना अति विशिष्ट है। साधना एकांत में होती है। सिंहस्थ में शव साधना नहीं होती। ऐसा कार्य करना समाज हित में नहीं है।
महिलाओं के शव का मान खंडन भी करते हैं?
जो अघोरी महिलाओं की लाश निकालकर उनके साथ तथाकथित विवाह करने की बात करते हैं वे मनोरोगी है। कोई भी देवी-देवता इसे नहीं स्वीकारता।
जुबां पर ओम त्रीम, त्रीम, त्रीम...। काला लिबाज...। गले में रूद्राक्ष की मालाएं...। हाथ में आधी खोपड़ी (कपाल)...। जब प्यास लगती है इसी खोपड़ी में पानी डलवाते हैं, पीते हैं। कुछ दिन पहले तक खाना भी इसी में खाते थे। ऐसे हैं कामाख्या माता के भक्त श्रीश्री 1008 कापालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती जो गढ़कालिका क्षेत्र में अपना कैंप लगाकर न सिर्फ लोगों की भ्रांतियां दूर कर रहे हैं बल्कि तंत्र-मंत्र का महत्व भी बता रहे हैं। हालांकि वे तंत्र के माध्यम से मनोरथ सिद्ध करने का दम भरने वालों को गिद्ध कहते हैं।
अमूमन नरमुंड व काला चोगा पहनने वाले कथित तांत्रिक टोने-टोटके की बात करते हैं तो कभी लोगों की झोली धन-धान्य और औलाद से भरने की। नोटों की बारीश कराने का दम्भ भर बरते हैं। कपालिक बाबा इनसे अलग है। वह तंत्र साधना के नाम पर फैले अंधविश्वास को खारिज करते हैं। कहते हैं लोगों में इन सब चीजों के लिए जागरूकता जरूरी है। उन्होंने बताया कि ईश्वर की आराधना तीन तरह से होती है। वैदिक रीति, वैष्णव पद्धति, तांत्रिक और वैदिक तांत्रिक मिश्रित पद्धति। परमात्मा की आराधना जो संस्कृत में की जाती है और उन मंत्रों को जो क्रियात्मक स्वरूप दिया जाता है, वही तंत्र है।
मूल रूप से पंजाब निवासी कापालिक बाबा का दिल्ली के रोहिणी में आश्रम है। पिछले 53 वर्षों से वह तंत्र साधना में लगे हैं। शुरूआत उन्होंने 30 वर्ष के थे। जिस कपाल क्रिया के नाम से ही सामान्यत: रोंगड़े खड़े हो जाते हैं, उसी कपाल में वह चाय पीते हैं। पानी पीते हैं। बातचीत के दौरान वे अंग्रेजी शब्दों का भी इस्तेमाल करते हैं। उनकी वेबसाइट अमृतेश्वरीसरस्वती.कॉम भी अंग्रेजी में ही है। इसके अलावा बाबा के पास दूर देशों से भक्त आते हैं जो न सिर्फ कपाल क्रिया में उनके साथ बैठते हैं क्रिया पर रिसर्च भी करते हैं। 2012 में इडियन यूरोपियन यूनियन ने उन्हें नींदरलैंड में ग्लोबस पीस एंड फ्रेंडशिप अवार्ड से सम्मानित भी कर चुकी है। पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।
अजब बाबा के गजब जवाब
क्या तंत्र जादू या चमत्कार है?
तंत्र न तो कोई जादू है, न कोई टोना टोटका, न ही कोई चमत्कार है। यह परमात्मा की अराधाना का मार्ग। इससे महानिर्वाण की प्राप्ति होती है। इसे गहराई से समझा जा सकता है।
श्मशान में साधना क्यों ?
दुनिया में श्मशान से पवित्र कोई स्थान नहीं है। वहां न छल्ल है। न कपट है। पूर्ण शांति होती है। यहां पहुंचने के बाद मनुष्य को कुछ पल के लिए ही सही लेकिन लगता जरूर है कि अंतिम सत्य यही है। यही अंत है। तंत्र की साधना रात में होती है। शंखिनी-डाकिनी-पिशाचिनी, तेलिया मशान आदि तंत्र से जुड़ी बातों को कापालिक बाबा किवदंती मानते हैं।
पहनावा काला क्यों?
इसके जवाब में स्वामी जी ने बताया कि काला रंग वैराग्य का प्रतीक होता है। कापालिक सिर्फ वही बन सकता है, जिसके मन में संसार के लिए कोई अनुराग न हो। यही ऐसा रंग है जिस पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता।
मांस, मंदिरा, आदि पंच मकार की भी तंत्र में चर्चा होती है?
ऐसा कुछ नहीं है। मैं पान, बीड़ी, तंबाकू, कुछ नहीं लेता।
खोपड़ी में खाना-पीना क्यों?
कथा है एक बार ब्रह्मा ने झूठ बोला तो शिव ने उनकी गर्दन काट दी। शिव के इसी स्वरूप से कापालिक बना। इस स्वरूप को मानने वाले कापालिक कहलाए। जहां यह घटना घटी वहां बद्रीनाथ में कापालीकेश्वर मंदिर है। शिव के कापालीकेश्वर स्वरूप को मानने वाले शिव को प्रसन्न करने के लिए कपाल में खाते हैं और इसी में पानी पीते हैं
तंत्र साधना के लिए उज्जैन का महत्व क्यों?
महाकाल का अर्थ है जो काल के परे है। जहां सब कुछ शून्य यानि अनादि-अनंत हो जाता है। यही कारण है कि उज्जैन सिद्ध भूमि है। यहां साधना जल्दी सफल होती है। सिंहस्थ के दौरान साधना बाकी दिनों के मुकाबले जल्दी सफल होती है।
सिंहस्थ में शवों से साधना होती है ?
तीन साधना है। श्मशान साधना, चिता साधना और शव साधना। शव साधना अति विशिष्ट है। साधना एकांत में होती है। सिंहस्थ में शव साधना नहीं होती। ऐसा कार्य करना समाज हित में नहीं है।
महिलाओं के शव का मान खंडन भी करते हैं?
जो अघोरी महिलाओं की लाश निकालकर उनके साथ तथाकथित विवाह करने की बात करते हैं वे मनोरोगी है। कोई भी देवी-देवता इसे नहीं स्वीकारता।
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