प्रकोष्ठ पंजीयन घोटाला
- दबंग इम्पैक्ट
- 24 महीनों में हुई आठ हजार रजिस्ट्रियां निशाने पर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
स्वयं के उपयोग का शपथ-पत्र देकर घर का नक्शा मंजूर कराकर उसे मल्टी की शक्ल देने वालों के खिलाफ नगर निगम ने शिकंजा कस दिया है। इसके तहत नगर निगम ने जिला पंजीयक को पत्र लिखकर दो साल में हुई फ्लैट, दुकान और आॅफिसों की रजिस्ट्रियों का रिकार्ड मांगा है। बताया जा रहा है कि दो वर्षों में हुई 20 हजार रजिस्ट्रियों में से आठ हजार निगम के निशाने पर है। प्राप्त दस्तावेजों की समीक्षा केब् बाद स्पष्ट होगा कितने फ्लैट, दुकान और आॅफिस स्वीकृत नक्शे में थे, कितने नहीं?
जिला पंजीयक कार्यालय की मदद से जारी प्रकोष्ठ रजिस्ट्री के खेल को दबंग दुनिया ने ‘सात साल में कर दी 12 हजार विवादित रजिस्ट्री’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। इस मामले को नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह ने गंभीरता से लिया। उनके निर्देश पर मुख्य नगर निवेशक विष्णु खरे ने जिला पंजीयक को चिट्ठी (2053/भ.अ.शा./2017) लिखी। 1 जुलाई 2015 से 31 जुलाई 2017 के बीच रजिस्टर्ड हुए सभी प्रकोष्ठ की रजिस्ट्री का रिकार्ड मांगा है। चिट्टी में स्पष्ट लिखा है कि भवन निर्माताओं द्वारा नगर निगम से अनुमति लेकर भवन निर्माण किया जाता है। निर्माण के बाद मप्र प्रकोष्ठ अधिनियम के अंतर्गत जिला पंजीयक कार्यालय में प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड कराया जाता है। इसके आधार पर यूनिट की प्रकोष्ठ की रजिस्टियां होती है। नगर निगम को अपने कार्यालयीन काम के लिए इन रजिस्ट्रियों की जरूरत है।
20 हजार से अधिक रजिस्ट्री पर नजर
जिला पंजीयक कार्यालय के अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि एक साल में औसत 10 हजार फ्लैट, दुकान, आॅफिस की रजिस्ट्री होती है। मतलब दो वर्षों में कुल 20 हजार रजिस्ट्री हुई है। इसमें तकरीबन 40 फीसदी (8 हजार) मामले शंकास्पद हैं। यदि एक यूनिट की औसत कीमत 10 लाख है तो भी इनसे 76 करोड़ रुपए स्टॉम्प शुल्क जमा कराया जा चुका है। इसके अलावा ऊपरी फीस अलग।
ऐसे होता है खेल
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग और नगर निगम नियम से नक्शा मंजूर करता है लेकिन बिल्डर या कॉलोनाइजर स्वीकृत नक्शे की सर्जरी कर देता है जैसी कि तुलसीनगर मामले में सामने आई थी। इसी सर्जरी किए हुए नक्शे के आधार पर प्रकोष्ठ पंजीयन कराया जाता है।
सामने आएगी धोखाधड़ी
रजिस्ट्रार से प्राप्त प्रकोष्ठ की रजिस्ट्री और अपने द्वारा स्वीकृत किए गए नक्शों का निगम मिलान करेगा। इससे सामने आएगा कि कितने प्रकोष्ठ ऐसे हैं जो नगर निगम के रिकार्ड में नहीं है लेकिन उनकी रजिस्ट्री हो चुकी है। बताया जा रहा है ऐसे मामले सामने आने पर नगर निगम आर्थिक दंड और रिमूवल के साथ बिल्डरों पर धोखाधड़ी का मुकदमा भी दर्ज करा सकता है।
तो ही रूकेगी धोखाधड़ी
-- जिन बिल्डिंगों का नक्शा नगर निगम ने स्व: उपयोग के शपथ-पत्र के साथ मंजूर किया है वहां घर बना है या मल्टी? इसकी बारीकी से मॉनिटरिंग हो। ऐसे तमाम स्वीकृत नक्शो की सूची जिला पंजीयक में होना चाहिए ताकि जिला पंजीयक इनका प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड न करे।
--ऐसी बिल्डिंग जिनका भू-उपयोग आवासीय है या आवासीय/कमर्शियल है उनकी सूची भी पंजीयक के पास हो ताकि भू-उपयोग के विपरीत किए गए निर्माण की रजिस्ट्री न हो पाए।
-- जिस बिल्डिंग का नक्शा पास हुआ है उसके नक्शे की एक प्रति पंजीयक को भी दी जाए ताकि वह मिलान कर सके कि प्रकोष्ठ पंजीयन कराते वक्त बिल्डर ने कितना निर्माण बताया है और नगर निगम ने कितना मंजूर किया था।
-- बैंकों ने भी आनन-फानन में विवादित प्रकोष्ठों पर करोड़ों रुपयों का लोन दे रखा है। बैंकों को दस्तावेजों की हकीकत जांचने के बाद लोन देना चाहिए।
बिल्डिंग पर्मिशन से पंजीयक तक मनमानी
नगर निगम की बिल्डिंग पर्मिशन घपले की बड़ी जड़ है जहां नक्शा मंजूर करने से लेकर बिना सील किए उसकी एक कॉपी ‘जो संसोधन करके पंजीयक के समक्ष प्रस्तुत की जाती है’, देने तक के दाम तय हो जाते हैं। नक्शों में खिलवाड़ करके फर्जी प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड करवाने वालों को चिह्नित करके उनके खिलाफ धारा-420, 467, 468, 471, 120 बी के तहत मुकदमे कायम कराए जाना चाहिए।
प्रमोद द्विवेदी, एडवोकेट
दस्तावेज लेखक
- दबंग इम्पैक्ट
- 24 महीनों में हुई आठ हजार रजिस्ट्रियां निशाने पर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
स्वयं के उपयोग का शपथ-पत्र देकर घर का नक्शा मंजूर कराकर उसे मल्टी की शक्ल देने वालों के खिलाफ नगर निगम ने शिकंजा कस दिया है। इसके तहत नगर निगम ने जिला पंजीयक को पत्र लिखकर दो साल में हुई फ्लैट, दुकान और आॅफिसों की रजिस्ट्रियों का रिकार्ड मांगा है। बताया जा रहा है कि दो वर्षों में हुई 20 हजार रजिस्ट्रियों में से आठ हजार निगम के निशाने पर है। प्राप्त दस्तावेजों की समीक्षा केब् बाद स्पष्ट होगा कितने फ्लैट, दुकान और आॅफिस स्वीकृत नक्शे में थे, कितने नहीं?
जिला पंजीयक कार्यालय की मदद से जारी प्रकोष्ठ रजिस्ट्री के खेल को दबंग दुनिया ने ‘सात साल में कर दी 12 हजार विवादित रजिस्ट्री’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। इस मामले को नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह ने गंभीरता से लिया। उनके निर्देश पर मुख्य नगर निवेशक विष्णु खरे ने जिला पंजीयक को चिट्ठी (2053/भ.अ.शा./2017) लिखी। 1 जुलाई 2015 से 31 जुलाई 2017 के बीच रजिस्टर्ड हुए सभी प्रकोष्ठ की रजिस्ट्री का रिकार्ड मांगा है। चिट्टी में स्पष्ट लिखा है कि भवन निर्माताओं द्वारा नगर निगम से अनुमति लेकर भवन निर्माण किया जाता है। निर्माण के बाद मप्र प्रकोष्ठ अधिनियम के अंतर्गत जिला पंजीयक कार्यालय में प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड कराया जाता है। इसके आधार पर यूनिट की प्रकोष्ठ की रजिस्टियां होती है। नगर निगम को अपने कार्यालयीन काम के लिए इन रजिस्ट्रियों की जरूरत है।
20 हजार से अधिक रजिस्ट्री पर नजर
जिला पंजीयक कार्यालय के अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि एक साल में औसत 10 हजार फ्लैट, दुकान, आॅफिस की रजिस्ट्री होती है। मतलब दो वर्षों में कुल 20 हजार रजिस्ट्री हुई है। इसमें तकरीबन 40 फीसदी (8 हजार) मामले शंकास्पद हैं। यदि एक यूनिट की औसत कीमत 10 लाख है तो भी इनसे 76 करोड़ रुपए स्टॉम्प शुल्क जमा कराया जा चुका है। इसके अलावा ऊपरी फीस अलग।
ऐसे होता है खेल
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग और नगर निगम नियम से नक्शा मंजूर करता है लेकिन बिल्डर या कॉलोनाइजर स्वीकृत नक्शे की सर्जरी कर देता है जैसी कि तुलसीनगर मामले में सामने आई थी। इसी सर्जरी किए हुए नक्शे के आधार पर प्रकोष्ठ पंजीयन कराया जाता है।
सामने आएगी धोखाधड़ी
रजिस्ट्रार से प्राप्त प्रकोष्ठ की रजिस्ट्री और अपने द्वारा स्वीकृत किए गए नक्शों का निगम मिलान करेगा। इससे सामने आएगा कि कितने प्रकोष्ठ ऐसे हैं जो नगर निगम के रिकार्ड में नहीं है लेकिन उनकी रजिस्ट्री हो चुकी है। बताया जा रहा है ऐसे मामले सामने आने पर नगर निगम आर्थिक दंड और रिमूवल के साथ बिल्डरों पर धोखाधड़ी का मुकदमा भी दर्ज करा सकता है।
तो ही रूकेगी धोखाधड़ी
-- जिन बिल्डिंगों का नक्शा नगर निगम ने स्व: उपयोग के शपथ-पत्र के साथ मंजूर किया है वहां घर बना है या मल्टी? इसकी बारीकी से मॉनिटरिंग हो। ऐसे तमाम स्वीकृत नक्शो की सूची जिला पंजीयक में होना चाहिए ताकि जिला पंजीयक इनका प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड न करे।
--ऐसी बिल्डिंग जिनका भू-उपयोग आवासीय है या आवासीय/कमर्शियल है उनकी सूची भी पंजीयक के पास हो ताकि भू-उपयोग के विपरीत किए गए निर्माण की रजिस्ट्री न हो पाए।
-- जिस बिल्डिंग का नक्शा पास हुआ है उसके नक्शे की एक प्रति पंजीयक को भी दी जाए ताकि वह मिलान कर सके कि प्रकोष्ठ पंजीयन कराते वक्त बिल्डर ने कितना निर्माण बताया है और नगर निगम ने कितना मंजूर किया था।
-- बैंकों ने भी आनन-फानन में विवादित प्रकोष्ठों पर करोड़ों रुपयों का लोन दे रखा है। बैंकों को दस्तावेजों की हकीकत जांचने के बाद लोन देना चाहिए।
बिल्डिंग पर्मिशन से पंजीयक तक मनमानी
नगर निगम की बिल्डिंग पर्मिशन घपले की बड़ी जड़ है जहां नक्शा मंजूर करने से लेकर बिना सील किए उसकी एक कॉपी ‘जो संसोधन करके पंजीयक के समक्ष प्रस्तुत की जाती है’, देने तक के दाम तय हो जाते हैं। नक्शों में खिलवाड़ करके फर्जी प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड करवाने वालों को चिह्नित करके उनके खिलाफ धारा-420, 467, 468, 471, 120 बी के तहत मुकदमे कायम कराए जाना चाहिए।
प्रमोद द्विवेदी, एडवोकेट
दस्तावेज लेखक
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