इंदौर. विनोद शर्मा।
अवैध इमारतों को संरक्षण देने का गठजोड़ नगर निगम के जोनल कार्यालयों से लेकर मुख्यालय तक फैला हुआ है। इसीलिए बिल्डिंग आॅफिसर्स(बीओ) से लेकर बिल्डिंग इंस्पेक्टर्स (बीआई) तक मलाईदार जोन दिए हैं। बशर्ते करें वहीं जो मुख्यालय चाहता है। इन जोनों पर पदस्थ बीओ और बीआई मिलकर 10 से 15 लाख रुपए/महीना कमा रहे हैं। हिस्सेदारी के बटवारे के बाद भी 7-8 लाख रुपए तो घर जाते ही हैं। एक आंकलन के अनुसार अवैध इमारतें बचाकर निगम के नुमाइंदे हर साल 22 से 25 करोड़ रुपए कमाते हैं।
राजनीतिक संरक्षण और पैसे के भूखे अधिकारियों ने इंदौर को अवैध इमारतों का अड्डा बना दिया है। ऐसा कोई जोन ही नहीं बचा जहां अवैध इमारतें न हो। नक्शा मंजूर कराकर उसे किनारे रखना और मनमाफिक निर्माण करना इंदौर में ट्रेंड बन चुका है। इस ट्रेंड का हिस्सा बनने में बिल्डर, डॉक्टर, एज्यूकेशन इंस्टिट्यूट, कोचिंग इंस्टिट्यूट, होटल संचालक भी पीछे नहीं रहे। उधर, नक्शा मंजूरी से लेकर रिमूवल नोटिस देकर बिल्डिंग बचाते तक के लिए बीओ और बीआई अपना रेटकार्ड लिए बैठे हैं।
फिर क्यों नहीं रूकती अवैध मंजिलें...
एक बीओ की तनख्वाह 50 से 60 हजार तक है। उसे गाड़ी, ड्राइवर, वायरलेस सेट, मोबाइल बिल दे रखे हैं ताकि वह फील्ड में घूमकर सुनिश्चित कर सकें कि अपने क्षेत्र में बिल्डिंगे ईमानदारी से बने। इस काम में उसका हाथ बटाने के लिए बीआई और दरोगा-बेलदार नियुक्त है। बीआई का मासिक वेतन 35 से 45 हजार तक है। वायरलेस सेट है। कुछ बीआई को गाड़ियां भी अलॉट है। इतने सबके बाद में न सिर्फ गली, मोहल्ले बल्कि मुख्यमार्ग और निगम मुख्यालय के नजदीक ही अवैध बिल्डिंग बन चुकी है।
पार्षद भी देते हैं मौका, पर 50-50 में
बीओ-बीआई को पार्षद भी मामले बताते हैं। इन मामलों में नोटिस या रिमूवल कार्रवाई के दौरान बचाने के लिए जो पैसा मिलता है उसमें पार्षद के साथ 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी रहती है।
लेन-देन का गणित..
नक्शा मंजूरी : 25 हजार से लेकर... बिल्डिंगे के आकार-प्रकार और नक्शा मंजूर कराने की जल्दबाजी के आधार पर तय होता है। कुछ ज्यादा तिकड़म नहीं करते। फिर भी 10-15 हजार तो मिल जाते हैं।
कारण बताओ नोटिस : किसी की शिकायत या मौका निरीक्षण के बाद कारण बताओ नोटिस देते हैं। कभी मालिकाना हक के प्रमाण मांगते हैं, कभी स्वीकृत नक्शा। जबकि दोनों अधिकारियों के पास ही रहते हैं। इस नोटिस से कमसकम 50 हजार तो मिल जाते हैं।
रिमूवल नोटिस : इस नोटिस के बाद कार्रवाई रूकवाने या कार्रवाई के दौरान निर्माण बचाने के नाम पर 50 हजार से लेकर...। स्वीकृत नक्शे, अवैध निर्माण के साथ ही बिल्डर को होने वाली नुकसानी के आधार पर तय।
(अच्छे जोन पर बीओ को 10-15 लाख और बीआई को 5-7 लाख रुपए महीना मिल जाता है। वहीं पिछड़े से पिछड़े जोन पर भी बीओ को 5-7 लाख रुपए और बीआई को 2-3 लाख रुपए/महीने तक की कमाई हो जाती है। दोनों की औसत कमाई 10 लाख है तो सालाना 22.80 करोड़ की वसूली होती है।)
इनकी बोल रही है तूती...
विष्णु खरे : सिटी प्लानर की पोस्ट क्रिएट करके इन्हें भोपाल से भेजा गया है। 13 नंबर जोन के बीओ रहे। सर्वानंदनगर की अवैध होटलें, होस्टल इन्हीं के राज में फलीभूत। ट्रूबा कॉलेज की गडबड़ बस पकड़ी ही।
महेश शर्मा : सिटी इंजीनियर बिल्डिंग पर्मिशन है। मुख्यालय के साथ 8, 9, 10 और 12 नंबर जोन के बीओ। समय कम दे पाते हैं जोनों पर। इसीलिए बीआई-मुख्यालय दिनेश शर्मा को अपनी डोंगल दे रखी है। किसी भी जोन के नक्शे के मामले में राय दिनेश शर्मा को लेने को कहते हैं। सिंधी बाहुल्य इलाके हैं। इनके पास 8 से 10 लाख रुपए/महीने तक मिलते हैं। यहां बीआई 50 हजार रुपए/रोज तक वसूल चुके हैं। उसमें बीआई की हिस्सेदारी भी थी।
दिनेश शर्मा : बीआई-मुख्यालय हैं। ‘जितना कानून-कायदा, उतना ज्यादा फायदा’ यही इनका सिद्धांत है। कई बीआई के गुरु हैं। मासिक कमाई भी जबरदस्त। 5-7 लाख रुपए/महीने की कमाई।
अश्विन जनवदे : बिल्डिंग पर्मिशन के पुराने खिलाड़ी। एक बार कमिटमेंट कर दे तो फिर अपने आप की भी नहीं सुनते। हरसिद्धि जोन पर रहे। मेट्रो टॉवर को नोटिस दिया था कार्रवाई नहीं की। अभी जोन-14 आर 15 के बीओ हैं। दोनों में जबरदस्त निर्माण और जादूगरी जारी है।
वैभव देवोलासे : पिता जल यंत्रालय में रहे। उनकी मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति। परीक्षा अवधि में होने के बाद भी दूसरे बीआई से तीन गुना महंगे बीआई। पूरी छूट रहती है इनकी तरफ से। अभी शिकायत के बाद निगमायुक्त ने पीपल्याहाना बीआई पोस्ट से हटाया।
चाबी मुख्यालय में...
नगर निगम में बीओ और बीआई की संख्या कम है। जो हैं उनमें से आधे उक्त पोस्ट की योग्यता नहीं रखते। संख्या कम होने के कारण किसी को दो जोन का बीओ या बीआई बना रखा है। या किसी बीओ या बीआई को जोनल अधिकारी बना रखा है। मुख्यालय में बैठे दिग्गज ही इनका भाग्य तय करते हैं। जो मुख्यालय का डमरू बन जाता है उसे मौज करने की आजादी मिल जाती है। वरना प्रतीक चतुर्वेदी और सुधीर गुलवे जैसे लोग भी हैं जो कभी बीओ थे लेकिन उन्हें बीआई बना रखा है।
विवेश जैन : भोली सूरत का फायदा मिलता है। बिल्डिंग पर्मिशन में अर्से से। अवैध इमारतों के पोषक हैं। फिर मामला पल्हरनगर में मेहता की बिल्डिंग बख्शने का हो या फिर 474 एमजी रोड या फिर 84 नगर निगम रोड को नजरअंदाज करने का। जोन में काम भले कम हो लेकिन कमाई ज्यादा है।
अवैध इमारतों को संरक्षण देने का गठजोड़ नगर निगम के जोनल कार्यालयों से लेकर मुख्यालय तक फैला हुआ है। इसीलिए बिल्डिंग आॅफिसर्स(बीओ) से लेकर बिल्डिंग इंस्पेक्टर्स (बीआई) तक मलाईदार जोन दिए हैं। बशर्ते करें वहीं जो मुख्यालय चाहता है। इन जोनों पर पदस्थ बीओ और बीआई मिलकर 10 से 15 लाख रुपए/महीना कमा रहे हैं। हिस्सेदारी के बटवारे के बाद भी 7-8 लाख रुपए तो घर जाते ही हैं। एक आंकलन के अनुसार अवैध इमारतें बचाकर निगम के नुमाइंदे हर साल 22 से 25 करोड़ रुपए कमाते हैं।
राजनीतिक संरक्षण और पैसे के भूखे अधिकारियों ने इंदौर को अवैध इमारतों का अड्डा बना दिया है। ऐसा कोई जोन ही नहीं बचा जहां अवैध इमारतें न हो। नक्शा मंजूर कराकर उसे किनारे रखना और मनमाफिक निर्माण करना इंदौर में ट्रेंड बन चुका है। इस ट्रेंड का हिस्सा बनने में बिल्डर, डॉक्टर, एज्यूकेशन इंस्टिट्यूट, कोचिंग इंस्टिट्यूट, होटल संचालक भी पीछे नहीं रहे। उधर, नक्शा मंजूरी से लेकर रिमूवल नोटिस देकर बिल्डिंग बचाते तक के लिए बीओ और बीआई अपना रेटकार्ड लिए बैठे हैं।
फिर क्यों नहीं रूकती अवैध मंजिलें...
एक बीओ की तनख्वाह 50 से 60 हजार तक है। उसे गाड़ी, ड्राइवर, वायरलेस सेट, मोबाइल बिल दे रखे हैं ताकि वह फील्ड में घूमकर सुनिश्चित कर सकें कि अपने क्षेत्र में बिल्डिंगे ईमानदारी से बने। इस काम में उसका हाथ बटाने के लिए बीआई और दरोगा-बेलदार नियुक्त है। बीआई का मासिक वेतन 35 से 45 हजार तक है। वायरलेस सेट है। कुछ बीआई को गाड़ियां भी अलॉट है। इतने सबके बाद में न सिर्फ गली, मोहल्ले बल्कि मुख्यमार्ग और निगम मुख्यालय के नजदीक ही अवैध बिल्डिंग बन चुकी है।
पार्षद भी देते हैं मौका, पर 50-50 में
बीओ-बीआई को पार्षद भी मामले बताते हैं। इन मामलों में नोटिस या रिमूवल कार्रवाई के दौरान बचाने के लिए जो पैसा मिलता है उसमें पार्षद के साथ 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी रहती है।
लेन-देन का गणित..
नक्शा मंजूरी : 25 हजार से लेकर... बिल्डिंगे के आकार-प्रकार और नक्शा मंजूर कराने की जल्दबाजी के आधार पर तय होता है। कुछ ज्यादा तिकड़म नहीं करते। फिर भी 10-15 हजार तो मिल जाते हैं।
कारण बताओ नोटिस : किसी की शिकायत या मौका निरीक्षण के बाद कारण बताओ नोटिस देते हैं। कभी मालिकाना हक के प्रमाण मांगते हैं, कभी स्वीकृत नक्शा। जबकि दोनों अधिकारियों के पास ही रहते हैं। इस नोटिस से कमसकम 50 हजार तो मिल जाते हैं।
रिमूवल नोटिस : इस नोटिस के बाद कार्रवाई रूकवाने या कार्रवाई के दौरान निर्माण बचाने के नाम पर 50 हजार से लेकर...। स्वीकृत नक्शे, अवैध निर्माण के साथ ही बिल्डर को होने वाली नुकसानी के आधार पर तय।
(अच्छे जोन पर बीओ को 10-15 लाख और बीआई को 5-7 लाख रुपए महीना मिल जाता है। वहीं पिछड़े से पिछड़े जोन पर भी बीओ को 5-7 लाख रुपए और बीआई को 2-3 लाख रुपए/महीने तक की कमाई हो जाती है। दोनों की औसत कमाई 10 लाख है तो सालाना 22.80 करोड़ की वसूली होती है।)
इनकी बोल रही है तूती...
विष्णु खरे : सिटी प्लानर की पोस्ट क्रिएट करके इन्हें भोपाल से भेजा गया है। 13 नंबर जोन के बीओ रहे। सर्वानंदनगर की अवैध होटलें, होस्टल इन्हीं के राज में फलीभूत। ट्रूबा कॉलेज की गडबड़ बस पकड़ी ही।
महेश शर्मा : सिटी इंजीनियर बिल्डिंग पर्मिशन है। मुख्यालय के साथ 8, 9, 10 और 12 नंबर जोन के बीओ। समय कम दे पाते हैं जोनों पर। इसीलिए बीआई-मुख्यालय दिनेश शर्मा को अपनी डोंगल दे रखी है। किसी भी जोन के नक्शे के मामले में राय दिनेश शर्मा को लेने को कहते हैं। सिंधी बाहुल्य इलाके हैं। इनके पास 8 से 10 लाख रुपए/महीने तक मिलते हैं। यहां बीआई 50 हजार रुपए/रोज तक वसूल चुके हैं। उसमें बीआई की हिस्सेदारी भी थी।
दिनेश शर्मा : बीआई-मुख्यालय हैं। ‘जितना कानून-कायदा, उतना ज्यादा फायदा’ यही इनका सिद्धांत है। कई बीआई के गुरु हैं। मासिक कमाई भी जबरदस्त। 5-7 लाख रुपए/महीने की कमाई।
अश्विन जनवदे : बिल्डिंग पर्मिशन के पुराने खिलाड़ी। एक बार कमिटमेंट कर दे तो फिर अपने आप की भी नहीं सुनते। हरसिद्धि जोन पर रहे। मेट्रो टॉवर को नोटिस दिया था कार्रवाई नहीं की। अभी जोन-14 आर 15 के बीओ हैं। दोनों में जबरदस्त निर्माण और जादूगरी जारी है।
वैभव देवोलासे : पिता जल यंत्रालय में रहे। उनकी मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति। परीक्षा अवधि में होने के बाद भी दूसरे बीआई से तीन गुना महंगे बीआई। पूरी छूट रहती है इनकी तरफ से। अभी शिकायत के बाद निगमायुक्त ने पीपल्याहाना बीआई पोस्ट से हटाया।
चाबी मुख्यालय में...
नगर निगम में बीओ और बीआई की संख्या कम है। जो हैं उनमें से आधे उक्त पोस्ट की योग्यता नहीं रखते। संख्या कम होने के कारण किसी को दो जोन का बीओ या बीआई बना रखा है। या किसी बीओ या बीआई को जोनल अधिकारी बना रखा है। मुख्यालय में बैठे दिग्गज ही इनका भाग्य तय करते हैं। जो मुख्यालय का डमरू बन जाता है उसे मौज करने की आजादी मिल जाती है। वरना प्रतीक चतुर्वेदी और सुधीर गुलवे जैसे लोग भी हैं जो कभी बीओ थे लेकिन उन्हें बीआई बना रखा है।
विवेश जैन : भोली सूरत का फायदा मिलता है। बिल्डिंग पर्मिशन में अर्से से। अवैध इमारतों के पोषक हैं। फिर मामला पल्हरनगर में मेहता की बिल्डिंग बख्शने का हो या फिर 474 एमजी रोड या फिर 84 नगर निगम रोड को नजरअंदाज करने का। जोन में काम भले कम हो लेकिन कमाई ज्यादा है।
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