Thursday, August 10, 2017

हम तो ब्लैकमेलर नहीं है, फिर कार्रवाई क्यों नहीं करते अधिकारी

बिल्डरों की मनमानी और निगम-प्राधिकारी की अनदेखी से परेशान 103 के रहवासी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
इंदौर विकास प्राधिकरण या हाउसिंग बोर्ड की स्कीम से लेकर कॉलोनियों में हो रहे अवैध निर्माण पर नकेल कसना नगर निगम का काम है। इसके विपरीत निगम ने बिल्डरों को लूट की खूली छूट दे डाली है। ‘ब्लैकमेलर है’, कहकहर व्यक्तिगत शिकायतों को नजरअंदाज करते आ रहे निगम के आला अफसरान के कानों पर अब रहवासी संघों की शिकायतों से भी जूं नहीं रेंगती। इसका ताजा उदाहरण स्कीम-103 है। जहां रहवासी संघ की शिकायतों और चौतरफा सावधानी की चेतावनी लगाए जाने के बावजूद बिल्डरों की मनमानी बदस्तूर जारी है।
स्कीम-103 के 880 वर्गफीट के प्लॉट नं. 219 ‘बी’ पर किशन पिता चेतनदास थारवानी ने कैसे 1307 वर्गफीट की मंजूरी लेकर 3000 वर्गफीट निर्माण कैसे कर दिया? इसका खुलासा दबंग दुनिया ने शुक्रवार को ‘धरी रह गई स्कीम-103 के रहवासी संघ की चेतावनी’ शीर्षक से प्रकाशित खबर में किया था। इसके बावजूद दो दिन में नगर निगम ने किसी तरह की कार्रवाई नहीं की। उधर, रहवासी संघ ने बताया कि यह पहला मामला नहीं है, क्षेत्र में ऐसे 30 से ज्यादा मकान बन चुके हैं जिन्हें प्रकोष्ठ के रूप में रजिस्टर्ड कराकर बेचा गया है। इनके खिलाफ दो साल से लगातार शिकायतें कर रहे हैं। शुरु में तो निगम अफसर आते भी थे मौका देखने, अब तो बेशर्मी इतनी है कि झांकना तक पसंद नहीं करते।
इन प्लॉटों पर भी मनमाना काम
प्लॉट नं. 7 बी और 8 बी पर बन रही बिल्डिंगों का। इन दोनों बिल्डिंगों में हो रहे निर्माण को रहवासी संघ की आपत्ति पर शुरू से यह कहा जा रहा था कि स्वयं का उपयोग होगा। परिवार बड़ा है, इसीलिए घर भी बड़ा है। अब बिल्डरों ने इन घरों को प्रकोष्ठ के रूप में बेचना शुरू कर दिया है।
शिकायतें करते-करते थक गए...
सबसे ज्यादा दिक्कत सेक्टर बी में है। यहां जमीन के भाव आसमान छू रहे हैं जो बिल्डरों के लालच की बड़ी वजह है। एक के बाद एक मनमाने भवन बनने के बाद हमने सावधानी के चौतरफा नोटिस बोर्ड भी लगाए। कोई असर नहीं। फिर निगम को शिकायतें की। जनसुनवाई में गए। महापौर से मिले। निगमायुक्त से मिले। कलेक्टर से मिले। आईडीए अध्यक्ष-सीईओ से मिले। कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सरोज अग्रवाल, रहवासी संघ
भविष्य तो सुनिश्चित करे निगम
जो मकान बन चुके हैं उन पर कार्रवाई हो न हो लेकिन नगर निगम यह तो सुनिश्चित कर दे कि भविष्य में ऐसे मनमाने भवन नहीं तनेंगे। तनेंगे तो कार्रवाई होगी। नगर निगम, कलेक्टर और आईडीए सभी की भूमिका अभी तक उदासीन रही है। जिला पंजीयक की भूमिका भी संदिग्ध है जो व्यक्तिगत उपयोग के घरों को प्रकोष्ठ के रूप में पंजीकृत कर रहा है।
जी.एस.मल्होत्रा, अध्यक्ष
स्कीम 103 बी रहवासी संघ
नर्क बना देंगे ऐसे तो...
स्कीम-103 पूर्णत: आवासीय स्कीम है। जहां प्लॉटों की संख्या और वहां रहने वाले परिवारों की औसत संख्या के लिहाज से प्राधिकरण ने सुविधाएं विकसित की है। एक प्लॉट पर एक परिवार ‘छोटा हो या बड़ा’ रहे तो भी फर्क नहीं पड़ता लेकिन एक प्लॉट पर दो डुप्लैक्स या फिर चार-छह फ्लैट बेचकर इतने परिवारों को बसा दें तो भविष्य में सुविधाओं का कम पड़ना भी तय है।
इसका असर अभी से दिखने लगा है। लोगों ने पार्किंग मंजूर कराई। छोड़ी नहीं। फ्लैट बेच दिए। अब घर के सामने सड़कों पर पार्किंग हो रही है। पहले ही इस स्कीम की सड़कें सकड़ी है। वाहनों के आने-जाने की जगह बची नहीं। रोक नहीं लगी तो आगे सीवरेज और पेयजल की मारामारी भी बस्तियों सरीकी नजर आएगी। ऐसे में 40 से 70 लाख रुपए लगाकर प्लॉट खरीदने के बाद अब संभ्रांत परिवार के लोग ठगाए हुए महसूस कर रहे हैं।
इन्होंने बिगाड़ा बाड़ा...
शंकर डोडेजा और राजेश जैन के साथ थारवानी व अन्य कुछ बिल्डर क्षेत्र के आदतन अपराधी हैं जो एक के बाद एक मकान को मल्टी बनाकर बेच रहे हैं। इनकी नकल और भी लोग मारने लगे हैं।
क्यों बेचते हैं...
क्षेत्र में प्लॉट का रेट औसत 4000 रुपए वर्गफीट है। मतलब 1000 वर्गफीट प्लॉट 40 लाख का। रजिस्ट्री सहित करीब 45 लाख का।
ज्यादा से ज्यादा 70 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज के साथ एक प्लॉट पर 1400 वर्गफीट निर्माण मंजूर होता है। 1200 रु./वर्गफीट की कंस्ट्रक्शन कॉस्ट से 16.80 लाख में घर तैयार हो जाता।
लोगों ने इसमें ग्राउंड कवरेज बढाÞकर 1400 की जगह 3 हजार वर्गफीट निर्माण किए। तीन-चार-छह फ्लैट बेचे। एक फ्लैट 750 वर्गफीट है मतलब 3500 रु./वर्गफीट के हिसाब से भी 26.25 लाख में बिका। चार फ्लैट 1.05 करोड़। जबकि 3 हजार वर्गफीट की लागत आई 36 लाख। प्लॉट कीमत 45 लाख। विशुद्ध कमाई हुई 24 लाख की। 2-4 लाख की घूस अधिकारियों को देकर यह कमाई का जरिया बन गया।

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