Thursday, August 10, 2017

7 साल में 12 हजार विवादित रजिस्ट्री

घर को मल्टी बनाने में निगम के साथ पीछे नहीं है जिला पंजीयक
- नक्शे और भू-उपयोग के विपरीत निर्माण भी नाप डाले
इंदौर. विनोद शर्मा ।
2 पलसीकर...।  हरभजनसिंह, भूपेंद्रसिंह, सतवंतसिंह, चरणजीतसिंह और कमलजीतसिंह ने स्वयं के इस्तेमाल का शपथ-पत्र देकर नक्शा मंजूर करवाया था..। बावजूद इसके यहां न सिर्फ फ्लैट-पेंट हाउस बन गए बल्कि बिक भी गए..। जिला पंजीयक ने रजिस्ट्री भी कर दी। ऐसी एक-दो नहीं बल्कि शहर में 2000 से ज्यादा इमारतें जहां सात साल में 12 हजार से अधिक फ्लैट की  प्रकोष्ठ अधिनियम का उल्लंघन करते  हुए ले-देकर रजिस्ट्री कर दी गई।
1 सितंबर से रेरा पंजीयन जरूरी है। इससे जहां बड़े बिल्डरों पर लगना कसना तय है। वहीं घर बनाने का शपथ-पत्र देकर मल्टियां तानकर बेचने वाले जालसाज मजे में है। नगर निगम ने जहां इन्हें मनमाने निर्माण की छूट दे रखी है वहीं जिला पंजीयक कार्यालय में बैठे अधिकारी मनमानी रजिस्ट्रियां ठोक रहे हैं। इसीलिए ऐसी बिल्डिंगों का ग्राफ आसमान छू रहा है।
यह है प्रकोष्ठ अधिनियम...
फ्लैट मालिकों के हितों का ध्यान रखते हुए विधानसभा में मप्र प्रकोष्ठ स्वामित्व अधिनियम (अपार्टमेंट एक्ट)-2000 पारित किया गया था। एक्ट के अनुसार किसी प्लॉट या किसी खसरे की जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के ले-आउट और नगर निगम द्वारा स्वीकृत नक्शे के आधार पर किसी मल्टी या मार्केट का प्रकोष्ठ पंजीबद्ध होता है। बिना प्रकोष्ठ पंजीयन के फ्लैट्स की बिक्री हो नहीं सकती। प्रकोष्ठ पंजीयन के दौरान बिल्डर फ्लैटवार व मंजिलवार बताता है कि कुल निर्माण कितना मंजूर हुआ है? कितना बनाया है? कितना बिल्टअप है? कितना सुपर बिल्टअप? आने-जाने की व्यवस्था क्या है? अन्य सुविधाओं का समीकरण भी बताते हैं।
फिर कैसे हो जाती है इनकी रजिस्ट्री...
2 पलसीकर, 134-135-136-137 पल्हरनगर जोड़कर बनी बिल्डिंग जैसे कई उदाहरण है जिनका नक्शा स्व:उपयोग के शपथ-पत्र के आधार पर मंजूर हुआ था। जब खुद को ही रहना था तो फिर फ्लैट कैसे बने और बिके।
नक्शे में 10 हजार वर्गफीट निर्माण स्वीकृत है और निर्माण हुआ 15 हजार वर्गफीट। ऐसे में 5 हजार वर्गफीट अतिरिक्त निर्माण कैसे बिका। जिसका उदाहरण पांच साल में बनी हर दूसरी इमारत है।
बड़ी तादाद में ऐसी इमारतें है जिनका नक्शा या भू-उपयोग आवासीय था लेकिन मौके पर मार्केट बनाकर बेच दिया गया।  इंदौर में ऐसी रजिस्ट्रियों की संख्या हजारों में है।
सालाना 10 करोड़ से ज्यादा का लेनदेन...
-- बीते दिनों बैराठी कॉलोनी में स्व: उपयोग का नक्शा मंजूर कराकर एक बिल्डिंग बनी। उसमें दुकानें निकली। फ्लैट निकाले गए। हालांकि प्रकोष्ठ पंजीयन न होने के कारण रजिस्ट्री नहीं हो पाई। सौदा एग्रीमेंट पर हुआ। बाद में जिला पंजीयक कार्यालय के अधिकारियों ने अपनी फीस के रूप में 5 लाख रुपए लिए और प्रकोष्ठ पंजीबद्ध करके यूनिट  रजिस्ट्री कर दी।
-- यह राशि प्रोजेक्ट के कुल निर्माण और विवाद की स्थिति को देखते हुए घटती-बढ़ती है। कमर्शियल प्रोजेक्ट में पैसा ज्यादा मिलता है। यदि औसत एक बिल्डिंग के प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड करने में पंजीयन अधिकारी औसत ढ़ाई लाख रुपए लेता है और सालभर में ऐसी 500 बिल्डिंग बनती है तो इसका मतलब है 10 करोड़ से ज्यादा का लेनदेन होता है।
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टाउन एंड कंट्री प्लानिंग, नगर निगम और जिला पंजीयक की जुगलबंदी से फलफुल रहे हैं बिल्डर। वरना कोई कारण नहीं कि गैरकानूनी निर्माण प्रकोष्ठ के रूप में रजिस्टर्ड होकर बिक भी जाए। प्रकोष्ठ अधिनियम सिर्फ उन्हीं मल्टियों पर लागू होता है जिनका निर्माण स्वीकृत नक्शे के अनुसार हुआ है।
अनुराग बैजल, एडवोकेट
गलत है लेकिन रोक नहीं सकते..
स्व उपयोग के शपथ-पत्र के साथ बनने वाली बिल्डिंग की रजिस्ट्री होना गलत है लेकिन कानूनन घर के किसी हिस्से का सौदा नहीं रोका जा सकता। यह देखना नगर निगम का काम है कि निर्माण वैध है या अवैध। वह क्या देख रहे हैं।
विनय द्विवेदी, एडवोकेट
दस्तावेज लेखक

- अपार्टमेंट, मल्टीस्टोरीज बिल्डिंग की देखरेख के लिए फ्लैट मालिकों द्वारा मिलकर सोसाइटी गठित करना अनिवार्य है, जो कहीं-कहीं दिखती है।
-पार्किंग, पार्क, लॉबी, कॉमन बालकनी के उपयोग में आ रही दिक्कतें आसानी से दूर होंगी।
-अपार्टमेंट में पानी, सीवर, ड्रेनेज सिस्टम, बिजली की बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। 

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