Thursday, August 10, 2017

व्यापारियों को टैक्स-टेंशन कम, उपभोक्ताओं को राहत ज्यादा

जीएसटी : 23 दिन बाकी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लागू होने में 23 दिन बाकी है। एमपी कमर्शियल टैक्स डिपार्टमेंट से लेकर कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट में जहां डिपार्टमेंटल सेटअप बदले जा रहे हैं वहीं जीएसटी को लेकर व्यापारी वर्ग अब तक आशंकित है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे संदेशों से छोटे-मझोले व्यापारी खौफजदा हैं। इसीलिए दबंग दुनिया ने पड़ताल की। पता चला कि जीएसटी से व्यापारियों को डरने की जरूरत नहीं है। इससे व्यापारियों को टैक्स की दरों में राहत मिलेगी। उपभोक्ताओं को सामान सस्ता मिलेगा। सरकार को भी ज्यादा टैक्स मिलेगा।
जीएसटी को लेकर इंदौर में भी तैयारियां पूरी है। वरिष्ठ कर सलाहकार अभय शर्मा ने बताया कि अभी कोई भी फॉरेन इन्वेस्टमेंट होता है तो उसके सामने टैक्स क्लीयरिटी नहीं है। बांबे में यूनिट लगाई तो महाराष्ट्र का टैक्स रेट अलग। माल इंदौर भेजा तो मप्र का टैक्स रेट अलग। रेट दर नहीं निकल पाती। जीएसटी से पूरे भारत में एक टैक्स रेट होगा। बड़ी बात यह है कि अधिकारियों के लिए वसूली का जरिया बन चुकी जांच चौकियां खत्म हो जाएगी। व्यापार स्मूथ होगा। सेंट्रल एक्साइज जुड़ने से कास्ट कम होगी। सेंट्रल एक्साइज का रिबेट भी मिलेगा।

अभी टैक्स व्यवस्था
मेन्यूफेक्चरर ने 100 रुपए का प्रोडक्ट बनाया। 20 रुपए सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी चुकाई। प्रोडक्ट हुआ 120 रुपए का।
मेन्यूफेक्चरर ने 120 में होलसेलर को माल बेचा। 10 प्रतिशत सेल टैक्स लगा। कीमत हुई 120+12=132 रुपए।
होलसेलर ने रिटेलर को 5% मार्जिन (132 का 5% याने 6.60 रुपए)  जोड़कर कीमत हुई 138.60 रुपए। इस पर 10 प्रतिशत (13.86 रुपए) सेल टैक्स चुकाया। कीमत हो गई 152.46 रुपए।
रीटेलर ने अंतिम उपभोक्ता को 5 % मार्जिन (152.46 पर 7.62 रुपए)  जोड़ा। कीमत हुई 160.08 रुपए। इस पर 10 प्रतिशत (16 रुपए) सेल टैक्स दिया। कीमत हो गई 176.08 रुपए।
यहां पूर्व में चुकाया हुआ सेंट्रल एक्साइज का रिबेट नहीं मिलता था। व्यापारी को सिर्फ सेल टैक्स का रिबेट मिलता था। याने रीटेलर ने उपभोक्ता से जो 16 रुपए सेल्स टैक्स वसूला है उसमें उसे 13.86 रुपए का रिबेट मिल जाएगा क्योंकि यह राशि होलसेलर ने सेल टैक्स के रूप में चुका दी थी। मतलब रिटेलर को जेब से देना होंगे 2.14 रुपए ही।
कुल टैक्स का भार  जो की अंतिम उपभोक्ता पर आया वो 16 सेल्स टैक्स + 20 सेंट्रल इक्साइज मिलाकर कुल हुआ 36 रुपए।
नई व्यवस्था
मेन्यूफेक्चरर ने 100 रुपए का प्रोडक्ट बनाया। 20 प्रतिशत जीएसटी लगा कीमत हुई 120 रुपए।
मेन्यूफेक्चरर होलसेलर को बेचेगा तो सेल टैक्स लगेगा नहीं। 5 प्रतिशत मार्जिन जोड़कर होलसेलर ने रिटेलर बेचा। 20 प्रतिशत (25.20) टैक्स लगा। कीमत हो गई 151.20 रुपए।  इसमें पहले चुका चुके 20 प्रतिशत जीएसटी पर रिबेट मिल जाएगा। याने नेट टैक्स लगेगा 5.20 रुपए।
रिटेलर जब 5 % मार्जिन के साथ अंतिम उपभोक्ता को माल बेचेगा तो उसे 26.20 रुपए की छूट मिल जाएगी।
भ्रम को ऐसे करें दूर
 ई-वे बिल : 50 हजार रुपए से कम की बिक्री आप अपनी बिल बुक पर कर सकते हैं। इससे ऊपर की बिक्री के लिए आॅनलाइन बिलिंग जरूरी है।  हालांकि शुरूआती दौर में यह लागू नहीं होगी। ई-वे बिल के समाधान और उद्योग की मांग के अनुरूप दरों में बदलाव की समीक्षा के लिए परिषद की 11 जून को फिर बैठक होगी। सरकार सीमा बढ़ाकर और अंतरराज्यीय आपूर्ति को अपने दायरे से हटाकर ई-वे बिल के प्रावधानों में छूट देने पर विचार कर रही है।
ट्रांजिट : जांच चौकियां खत्म होगी तो ट्रांजिट का खतरा बढ़ेगा। इसे लेकर भी भ्रम ज्यादा है। क्योंकि सेंट्रल एक्साइज और वाणिज्यिक कर के पास इतना मैदानी अमला नहीं है जो ट्रांजिट की संख्या बढ़ाई जा सके।
सेंट्रल एक्साइज : ट्रेडरों को सेंट्रल एक्साइज की भूमिका से भय है क्योंकि अब तक ट्रेडरों का पाला विभाग से नहीं पड़ा जबकि ऐसा नहीं है वक्त पर रिटर्न दाखिल करके विभागीय कार्रवाई से बचा जा सकता है।
रेवेन्यू न्यूट्रल रेट : जीएसटी से ज्यादातार कारोबार एक नंबर में होगा जिससे सरकार को टैक्स भी ज्यादा मिलेगा। इससे रेवेन्यू न्यूट्रल रेट सिद्धांत के तहत टैक्स की दरों में आगामी वर्षों में कभी भी आएगी। इसका फायदा ट्रेडरों से लेकर उपभोक्ताओं तक को मिलेगा।
सस्ती होगी चीजें : लागू होने से केंद्रीय सेल्स टैक्स (सीएसटी ), जीएसटी में समाहित हो जाएगा जिससे वस्तुओं की कीमतों में कमी आएगी । पूरे भारत में एक ही रेट से टैक्स लगेगा जिससे सभी राज्यों में वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक जैसी होगी।
ऐसी होगी रिटर्न व्यवस्था
अभी ज्यादातर छोटे कारोबारी अपनी खरीद और बिक्री का आकलन कर एक दिन में रिटर्न तैयार कर लेते हैं।  अब जीएसटी रिटर्न साइकल पूरे महीने चलेगा। कारोबारियों को आॅफलाइन की जगह आॅनलाइन आंकड़े सुरक्षित करने होंगे। पूरी प्रक्रिया में टेक्नॉलजी की महत्वूर्ण भूमिका होगी।
हर 10 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-1
फॉर्म जीएसटीआर-1 में  बेचे गए सामान या दी गई सेवाओं का जिक्र करना होगा। रजिस्टर्ड डीलरों को सप्लाइज के हरेक इनवॉइस और  ग्राहकों को बेचे गए सामान या दी गई सेवा की कर योग्य कीमत बताना होगी। दूसरे राज्य में बेचे गए माल या सेवा की कर कर योग्य कीमत 2.5 लाख है तो हर बिल लगेगा।
11 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-1 :- इसमें की घोषणा के आधार पर महीने की 11वीं तारीख को प्राप्तकर्ता के लिए जीएसटीआर-2ए फॉर्म तैयार हो जाएगा।
15 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-2ए :- इसमें दी गई जानकारी के अतिरिक्त कोई दावा करने के लिए 15 तारीख तक जीएसटीआर-2 फॉर्म जमा कर देना होगा।
16 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-2 :- इसमें आप जो सुधार करेंगे, उन्हें आपके सप्लायर को फॉर्म जीएसटीआर-1ए के जरिए मुहैया कराया जाएगा।
120 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-1ए : -  जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर-2 के आधार पर 20 तारीख को आॅटो-पॉप्युलेटेड रिटर्न जीएसटीआर-3 उपलब्ध हो जाएगा जिसे आप पेमेंट के साथ जमा कर सकते हैं।
मिलान से होगी चोरी की संभावना दूर
फॉर्म जीएसटीआर-3 में मंथली रिटर्न फाइल करने की सही तारीख के बाद आंतरिक आपूर्ति और बाह्य आपूर्ति में मिलान होगा। तब इनपुट टैक्स क्रेडिट को आखिरी स्वीकृति मिलेगी। ऐसे होगा मिलान--
- सप्लायर का जीएसटीआईएन
- रिसीपिअंट का जीएसटीआईएन
- इनवॉइस या डेबिट नोट नंबर
- इनवॉइस या डेबिट नोट डेट
- टैक्सेबल वैल्यू
- टैक्स अमाउंट

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