Thursday, August 10, 2017

पुलिस बल के बहाने निगम के घराने

सालभर में 1100 नोटिस, आधों में बल न मिलने का बहाना बनाकर लौटी टीम
इंदौर. विनोद शर्मा ।
76 पंढरीनाथ स्थित सतराम वाधवानी के मनमाने निर्माण पर 3 अगस्त को जो रिमूवल कार्रवाई होना थी वह हो नहीं पाई। हरसिद्धि जोन के अधिकारियों ने इसका कारण एक बार फिर पुलिस बल का न मिलना ही बताया है। वहीं पंढरीनाथ पुलिस का कहना है कि उनसे बल मांगा ही नहीं गया था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर पुलिस बल न मिलने का बहाना बनाकर नगर निगम द्वारा कार्रवाई से किनारा क्यों किया गया? यह सवाल शहरवासियों के जहन में इसलिए भी ज्यादा कचूटता है क्योंकि सिर्फ 76 पंढरीनाथ ही नहीं बल्कि सालभर में करीब 800 से अधिक मामलों में निगम पुलिस बल न मिलने का बहाना बनाकर कार्रवाई से किनारा कर जाता है।
बतौर नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह सपनों का स्मार्ट इंदौर बनाने के लिए रात दिन एक कर रहे हैं। वहीं उन्हीं के भरौसे की टीम जमीर के साथ इस सपने का सौदा करके भी बैठ गई। प्रेक्टिस इतनी रूटीन हो चुकी है कि अब तो निगम का मैदानी अमला रोज भगवान से प्रार्थना करता है अवैध निर्माण कभी रूके न। रहा सवाल कार्रवाई का तो उसे टालने के लिए बहानों की कमी नहीं है। इन्हीं बहानों में से एक पुलिस बल का न मिलना। जो वहां इस्तेमाल किया जाता है जहां शिकायकर्ताओं के प्रेशर के बाद नोटिस जारी करके रिमूवल की तैयारी करना पड़ जाती है।
12 महीने, 1100 नोटिस और कार्रवाई 25 %
सूचना के अधिकार के तहत स्वयं नगर निगम ने पूर्व पार्षद दिलीप कौशल को दिए लिखित जवाब देते हुए स्वीकारा है कि 1 जनवरी 2016 से 31 दिसंबर 2016 के बीच 1100 से ज्यादा रिमूवल नोटिस जारी हुए हैं। वहीं रिमूवल कार्रवाई हुई है बमुश्किल 300 निर्माणों पर। वह भी उस स्थिति में जब 2016 में गणेशगंज और मालगंज में सड़क के लिए निर्माण तोड़े गए। बचे 800 रिमूवल नोटिस में से 150 राजनीतिक दखलंदाजी की भेट चड़े तो बाकी 50 हजार से लेकर एक लाख की फीस लेकर नजरअंदाज कर दिए गए।
25 हजार रुपए में नहीं मिलता बल
नगर निगम के एक बीआई ने बताया कि जब बिल्डिंग बचाना हमारे बस में नहीं रहता तब हम निर्माणकर्ता को तीन रास्ते बताते हैं। 1- संबंधित थाने पर जाकर टीआई साहब से बात कर लो। 20-25 हजार रुपए लेकर लिख देते हैं कि पुलिस बल उपलब्ध नहीं करवाया जा सकता। हम यह कहकर लौट आते हैं कि बल नहीं मिला, लॉ एंड आॅर्डर बिगड़ने की स्थिति बन सकती है। 2- शिकायतकर्ता को ‘समझा’ लो या महापौर-कमिश्नर से फोन करवा दो। 3- ऐसी जगह तोड़ना जहां नुकसान न हो। बाद में लिखवा लेते हैं कि सात दिन में तोड़ लेंगे। तब तक स्टे ले आना।
नि ‘र्बल’ के उदाहरण...
4 बृजेश्वरी कॉलोनी :  मे.तक्षशिला रियल इस्टेट प्रा.लि. के डायरेक्टर विमलप्रकाश हरिराम मित्तल ने मनमाना निर्माण किया है जिसे हटाने के लिए 14 जनवरी 2016 का दिन मुकर्रर किया गया था। पुलिस बल न मिलने के कारण कार्रवाई हो नहीं पाई। ऐसा यहां दो बार हो चुका है।

9 अशोकनगर :- मौके पर बिल्डर ने स्वीकृत नक्शे के विपरीत निर्माण किया है। पूरा क्षेत्र आवासीय घोषित है लेकिन मौके पर व्यावसायिक निर्माण किया गया है। इस मामले में पूर्व पार्षद दिलीप कौशल ने भी शिकायत की थी। जुलाई और अगस्त 2016 में नोटिस जारी हुए। यहां भी पुलिस बल के अभाव में कार्रवाई नहीं हो पाई।

25 पागनीसपागा :- गिरीश पिता रूपचंद्र खतूरिया को 2387.50 वर्गफीट प्लॉट का नक्शा 3606/आईएमसी/जेड12/डब्ल्यू61/2016  निगम ने 12 अक्टूबर 2016 को मंजूर किया था। जी+2 के इस नक्शे में  कुल 3581.25 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई थी। 42 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज किया जा सकता था।  मौके पर  एमओएस  कवर करके ग्राउंड कवरेज बढ़ाया गया और मौके पर 50 प्रतिशत से ज्यादा अवैध निर्माण किया गया है। शिकायतों की लंबी फेहरिस्त के बाद नगर निगम ने रिमूवल गैंग भेजी लेकिन एक फोन पर थाने से ही लौट आई।

22-23 आड़ा बाजार :=  नियमों के विपरीत प्लॉट नंबर 22 और 23 को जोड़कर विजय पिता राधाकृष्ण गुप्ता, राधाकृष्ण पिता रामचंद्र गुप्ता और मनोरमा पति राधाकृष्ण गुप्ता के नाम 6 जुलाई 2016 को बिल्डिंग परमिशन (2706/आईएमसी/जेड12/डब्ल्यू59/2016) जारी कर दी। 211.77 वर्गमीटर के कुल प्लॉट एरिया पर जी+3 बिल्डिंग का आवासीय/वाणिज्यिक नक्शा मंजूर है।  बेसमेंट का जिक्र नहीं था फिर भी  बेसमेंट बना दिया। 8 जून को रिमूवल होना थी हुई नहीं।  
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अवैध निर्माण से कमाना निगम के मैदानी अमले को तो आता ही था लेकिन अब पुलिस को भी सीखा दिया है। कई मामलों में तो पुलिस को पता भी नहीं होता, और कह दिया जाता है कि बल नहीं मिला।
परमानंद सिसोदिया, पूर्व पार्षद
2016 के 1100 से अधिक रिमूवल नोटिस की सूची दी है नगर निगम ने सूचना के अधिकार में। जबकि कार्रवाई चौथाई मामलों में भी नहीं होती। शिकायत पर नोटिस देकर जेब भरने वाले अधिकारी अपना काम बनने के बाद उन्हीें शिकायकर्ताओं को ब्लैकमेलर कहना शुरू कर देते हैं जिन्होंने शिकायत की थी।
दिलीप कौशल, पूर्व पार्षद

टीएंडसीपी का ले-आउट भी नहीं है मुंडलानायता के कारखानों में

- नगर निगम का पीपल्याहाना जोन मेहरबान
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
पंचायत के फर्जी नक्शे लगाकर मुंडला नायता में नगर निगम की अनुमति के बिना जो कारखाने और गोदाम बने हैं उनका टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (टीएंडसीपी) से ले-आउट भी पास स्वीकृत नहीं है। उधर, 2013 तक मुंडला नायता पंचायत में पदस्थ रहे पंचायत सचिव ने भी स्पष्ट कर दिया है कि जिस सर्वे नं. 8/1 और 8/2 पर कारखाने बने हैं उनकी कोई अनुमति पंचायत से नहीं ली गई।
मामला मुंडलानायता का है। जहां 11 विद्यानगर निवासी पुष्पा पति आनंदराम चौथवानी के नाम दर्ज सर्वे नं.  8/1 और 8/2 की 3.498 एकड़ जमीन पर बिना किसी सूचना के गोदाम और कारखाने तान दिए गए हैं। मनमानी का आलम यह है कि चौथवानी, टेस्टी पोहे वाले कमल नंदवानी और उनके वित्त सहयोगी मित्रों ने न टीएंडसीपी से जमीन की टीएनसी कराई है। न ही नगर निगम से भवन अनुज्ञा ली है। बावजूद इसके निर्माण धड़ल्ले से जारी है।
जब यहां ले-आउट है तो यहां क्यों नहीं
पंचायत से अनुमति तभी मिलती है जब टीएंडसीपी से ले-आउट मंजूर होता है। टीएंडसीपी से प्राप्त सूचना के आधार पर मुंडला नायता में 1997 से 2014 तक 48 ले-आउट मंजूर हुए हैं। इनमें कारखाने, गोदाम, कॉलोनी, टाउनशिप, मल्टी शामिल है। इसी तरह 2014 से 2017 के बीच 18 ले-आउट मंजूर हुए। इनमें कहीं भी सर्वे नं. 8/1 और 8/2 की जमीन पर तने गोदाम-कारखाने का जिक्र नहीं है।
इनके भी तो नक्शे पास हुए..
1- विजयादेवी पति सुरेशचंद्र अग्रवाल को सर्वे नं.4/1/1ख/1 और 4/1/1ग/1 की 0.947 हेक्टेयर जमीन पर अनाज तिलहन गोदाम का ले-आउट (4423/नग्रानि/एसएसटी/2004) 27 अगस्त 2004 को मंजूर हुआ था।
2- सर्वे नं.1, 2/1 से 2/4 और 3/1 से 3/6 की 1.235 हेक्टेयर जमीन पर राजेश्वरी पिता शिवनारायण गुप्ता के नाम मंडी गोदाम का ले-आउट (502/नग्रानि/एसपी758/07) 6 फरवरी 2008 को मंजूर हुआ।
3- ऐसे ही 5 अगस्त 1998 को सर्वे नं. 9/1 व 11/1 , 24 मई 2007 को सर्वे नं. 9/2, 9/3, 9/4, 9/5, 9/6, 4/1/4/1/1,  29 दिसंबर 2006 को सर्वे नं. 19/2, 24, 26/2, 27/2, 22 मई 1998 को 19/1, 26/1 व 27/1 के भी ले-आउट मंजूर हुए हैं। सभी गोदाम और कारखाने हैं।
फर्जी है पंचायती नक्शा
कमल नंदवानी का एक कारखाना सर्वे नं. 5/3 मुंडलानायता में चल रहा है। टीएंडसीपी से अप्रूव ले-आउट की सूची में इस सर्वे नंबर का जिक्र भी नहीं है। मतलब यह भी बिना मंजूरी के बनाया गया है। यदि नंदवानी और उनके वित्तीय सहयोगियों की मान भी लें कि पंचायत ने नक्शा पास किया है तो पंचायत का नक्शा एक साल के लिए वेलिड रहता है जबकि काम शुरू हुआ तीन साल बाद। यदि टीएनसी के आधार पर पंचायत ने नक्शा पास किया था तो भी टीएनसी की वेलिडिटी भी तीन साल है जो कि खत्म हो चुकी थी।

एसडीएम की चिट्ठी बेअसर, बिहाड़िया के भू-माफियाओं पर मेहरबान पुलिस

27 जुलाई की चिट्ठी पर 8 अगस्त तक एफआईआर नहीं
इंदौर. विनोद शर्मा ।
भू-माफियाओं और पुलिस का गठजोड़ मजबूत है। इसीलिए थाना प्रभारियों को न एसडीएम की परवाह है, न ही उनके द्वारा भू-माफियाओं के खिलाफ लिखी गई चिट्ठियों की। इसका ताजा उदाहरण है खुड़ेल थाना प्रभारी अविनाश सिंह। एसडीएम शालिनी श्रीवास्तव की गंभीर चिट्ठी के बावजूद बिहाड़िया में अवैध कॉलोनी काटने वाले विकास सोनकर, कोमल सोनकर और सुंदरलाल मालवीय के खिलाफ सिंह ने एफआईआर दर्ज करने में रुचि नहीं ली। उलटा, कभी जांच के नाम पर टालमटौल करते नजर आ रहे हैं तो कभी कहते हैं एसडीएम कार्यालय से जांच रिपोर्ट नहीं सिर्फ चिट्ठी मिली है।
इंदौर तहसील के ग्राम बिहाड़िया के सर्वे नं. 230/1 की ढ़ाई एकड़ जमीन पर अवैध कॉलोनी कटी है। 160 से अधिक प्लॉट हैं। 16-17 जनवरी 2017 को दबंग दुनिया ने कॉलोनी के रूप में भू-माफियाओं की करतूत उजागर की थी। इसके बाद एसडीएम शालिनी श्रीवास्तव ने जांच करवाई। जांच में शिकायत की पुष्टि हुई जिसके आधार पर 27 जुलाई को एसडीएम ने खुड़ेल थाने को पत्र (480) लिखकर एफआईआर दर्ज करने को कहा गया। 8 अगस्त हो चुके हैं। सोनकर बंधुओं और उन्हें मिले क्षेत्रीय विधायक राजेश सोनकर के संरक्षण के कारण अब तक पुलिस ने इस पत्र को गंभीरता से नहीं लिया।
टीआई बोले चौकी प्रभारी को पता, प्रभारी बोले जानकारी नहीं
खुड़ेल थाना प्रभारी अविनाश सिंह ने बताया कि बिहाड़िया कॉलोनी का मामला संज्ञान में है। चूंकि मामला कंपेल चौकी के अंतर्गत आता है। इसीलिए वहां चौकी प्रभारी जांच कर रहे हैं। प्रशासन से जांच रिपोर्ट और पंचनामा मांगा है। अन्य प्रमाण भी मांगे हैं। वहीं कंपेल चौकी प्रभारी बी.एस.सिकरवार चौकते हुए पूछा बिहाड़िया मामला! मुझे इस मामले की कोई जानकारी नहीं है। न एसडीम की चिट्ठी की जानकारी है।
एसडीएम ने लेटर दिया है जांच रिपोर्ट नहीं...
- आपने कहा कि चौकी प्रभारी जांच कर रहे हैं जबकि उन्हें जानकारी ही नहीं?
शायद उनको लेटर अभी मिला नहीं होगा।
- क्या भू-माफियाओं के खिलाफ एफआईआर होगी भी?
जांच तो कर लें। फिर पता चलेगा, केस दर्ज होगा या नहीं।
- एसडीएम ने मामले में जांच के बाद ही आपको एफआईआर के लिए लिखा था।
खाली चिट्ठी है जिसके आधार पर कैसे केस दर्ज हो सकता है।
- क्या आपने एसडीएम से जांच रिपोर्ट मांगी?
नहीं, अभी लेंगे।
इससे पहले तो एसडीएम की चिट्ठी पर केस दर्ज करने में पुलिस ने देर नहीं की?
मैं कहीं बैठा हूं। थाने पर होता तो पत्र की स्थिति देखकर बता देता।
अविनाश सिंह, टीआई
खुडेÞल
हम टीआई का मातहत नहीं है जो उन्हें जांच रिपोर्ट सौंपे...
एसडीएम टीआई का मातहत नहीं होता जो थाने पर जाकर उन्हें जांच प्रतिवेदन सौंपे। जो शिकायत मिली थी हम उसकी जांच कर चुके हैं। जांच में आरोपों की पुष्टि होने के बाद ही थाना प्रभारी को एफआईआर के लिए पत्र लिखा था। वैसे तो ऐसी अवैध गतिविधियों पर उन्हें स्वसंज्ञान लेकर केस दर्ज कर लेना चाहिए था जो उन्होंने नहीं किया। अब कमसकम जो पत्र उन्हें लिखा गया है उसके आधार पर ही केस दर्ज होना चाहिए।
शालिनी श्रीवास्तव, एसडीएम
संयोगितागंज
तीन करोड़Þ का गणित बचा रहे हैं
कॉलोनी बिहाड़िया के सर्वे नं. 230/1 की 1.080 हेक्टेयर (ढ़ाई एकड़) जमीन पर कटी है जो राजकुमार पिता देवनारायण कुमावत से खरीदी थी। सौदा सवा करोड़ में हुआ था।
यहां 600 वर्गफीट के 168 प्लॉट काटे गए। प्लॉट 2.5 से 3.5 लाख में बेचे गए। 2.5 लाख रुपए/प्लॉट के हिसाब से 4.20 करोड़ रुपए भू-माफिया तिकड़ी ने कमाए। जमीन की कीमत छोड़कर मुनाफा हुआ 3 करोड़। इसमें सुविधा के नाम पर दो लाख की मुरम डालकर सड़क ही बनी है।
कॉलोनी और स्वयं को बचाने के लिए तिकड़ी ने पटवारी-आरआई को पैसा दिया। एसडीएम को साधने की कोशिश नाकाम रही। इसीलिए अब टीआई से गठजोड़ किया। 

बेनामी संपत्तियां पहुंचा सकती है सरैया को जेल

ड्राइवर-नौकर के नाम पर कई संपत्ति इधर-उधर की
कहीं अपनी ही प्रॉपर्टी का खरीदार बताया
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मप्र मध्य क्षेत्र बिजली वितरण कंपनी में रहते सरकारी योजनाओं में सेंधमारी कर करोड़ों रुपया हजम करने वाले प्रदीप सरैया बेनामी प्रॉपर्टी एंड ट्रांजेक्शन एक्ट में जेल भी जा सकते हैं। सरैया ने रमतानी परिवार के साथ मिलकर ड्राइवर और नौकरों के नाम पर करोड़ों रुपए की संपत्ति खरीदी-बिक्री की। जिसका काला चिट्ठा इनकम टैक्स की इन्वेस्टिगेशन विंग के हाथ लग चुका है।
62 वर्ष की उम्र में 36 साल की रौब और कमाईदार नौकरी के दम पर प्रदीप सरैया ने जो किला खड़ा किया था उसे नजदीकियोंं की तथ्य परक शिकायत ने डहा दिया। रिटायरमेंट के बाद किसी भी सरकारी कार्रवाई की आशंका से निश्चिंत सरैया और उसके सहयोगी के घर जब इनकम टैक्स ने सर्च की तो  बड़ी तादाद में ऐसी संपत्तियां सामने आई जो कि नौकरों के नाम थी। बड़ी बात यह है कि जो संपत्तियां नौकरों के नाम है वह कभी सरैया और रमतानी परिवार के नाम ही थी। बाद में फर्जी बिक्री बताकर संपत्ति नौकरों के नाम कर दी। इनमें से कुछ प्रॉपर्टी कंपनियों में मर्ज कर दी गई।
रिटायरमेंट का पैसा चलता रहा
विकास रमतानी के पिता भेल भोपाल में पदस्थ रहे हैं। वीआरएस लिया। एक करोड़ रुपया मिला। बाद में विकास की रकम को अपनी रकम बताकर तीन करोड़ रुपए रोटेट करते रहे। संपत्ति खरीदी-बिक्री करते रहे।
विकास की पत्नी इंटीरियल डिजाइनर है जिन्होंने मेसर्स कॉन्क्रिट कॉन्सेप्ट के नाम से फर्म बना रखी है। फर्म भी विकास का पैसा रोटेट करने के काम आती है।
आदित्य हाउसिंग सोसायटी कनेक्शन
प्रदीप सरैया और रमतानी परिवार की आदित्य गृह निर्माण सहकारी संस्था नाम की संस्था में दखलंदाजी रही है जिसका फायदा उठाकर दोनों ने संस्था की जमीन में भारी हेरफेर की। इसमें भी नौकरों के नाम का सहारा लिया गया। संस्था के प्लॉटों को जोड़कर मौके पर मल्टी बना दी गई। रमतानी परिवार की सुरभी होम्स प्रा.लि. द्वारा बनाई गई सुरभी एवेन्यू और सुरभी होम्स भी इसी संस्था की बड़ी जमीन पर है।
नगर निगम भोपाल का अधिकारी भी साथ
आदित्य गृह निर्माण संस्था में हेरफेर करने में रमतानी और सरैया की नगर निगम के एक अधिकारी ने भी मदद की है जो कि फिलहाल इन्वेस्टिगेशन विंग की कार्रवाई से बाहर है। इस अधिकारी ने हर स्तर पर दोनों की मदद की। इस संस्था का न पंजीकृत पता मिला है। न रजिस्टर है। पूरा फर्जीवाड़ा है।
सरेंडर नहीं होगा
इनकम टैक्स ने रक्षाबंधन, 15 अगस्त और इनकम टैक्स गेजेटेड आॅफिसर्स ऐसोसिएशन (आईटीगोवा) की संभावित मीटिंग के चलते कार्रवाई को पीओ लगाकर अल्प विराम दे दिया है। लेकिन कार्रवाई में प्राप्त दस्तावेजों को बेनामी संपत्ति एक्ट के तहत देखा जा रहा है। इसके डिपार्टमेंट के पास पुख्ता प्रमाण भी है। इसीलिए यहां सरेंडर की संभावना भले कम हो लेकिन जिस तरह से बेनामी संपत्तियां सामने आई है सरैया और रमतानी जेल भी जा सकते हैं। 

रमतानी-शिंदे के धंधों में सरैया के 50 करोड़!

- नई बिजली योजनाओं ने किया एमपीईबी के मैनेजर को पोषित
- इनकम टैक्स ने लगाया पीओ, एन्यूअल रिटर्न और वाजिब संपत्ति में भारी अंतर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
भोपाल में गुरुवार से जारी इनकम टैक्स  इन्वेस्टिगेशन विंग की छापेमार कार्रवाई एमपीईबी के सेवानिवृत अधिकारी प्रदीप सरैया के ईर्द-गिर्द रह गई है। सरैया ही है जिसने सुरभी होम्स और डर्बी होम्स प्रा.लि. को वित्त पोषित किया है। दस्तावेजी आंकलन के अनुसार इन कंपनियों में सरैया का 50 करोड़ से ज्यादा निवेश है जबकि यही सरैया 2014 तक अपनी एन्युअल रिटर्न में स्वयं को कमतर बताता रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि आयकर सरैया मामला प्रवर्तन निदेशालय को भी सौंप सकता है।
भोपाल में रमतानी परिवार की सुरभी होम्स, संजय विजय सिंह शिंदे और प्रदीप सरैया के ठिकानों पर शुक्रवार से जारी छापेमार कार्रवाई को रक्षाबंधन के मद्द्ेनजर पीओ (प्रोबेशरी आॅर्डर) लगाकर विराम दे दिया गया। हालांकि इस दौरान प्रदीप सरैया बड़ा नाम बनकर उभरे। जांच के दौरान जितने भी दस्तावेज प्राप्त हुए हैं उनके अनुसार एमपीईबी से 2015-16 में रिटायर हुए प्रदीप सरैया ने 50 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम रमतानी-शिंदे के प्रोजेक्ट में निवेश कर रखी है। इसमें 20 करोड़ का लेनदेन शिंदे के साथ है। सरैया ने मई 2013 में डर्बी होम्स प्रा.लि. नाम की कंपनी बनाकर उसमें 21 जनवरी 1990 को जन्में अपने बेटे सिद्धार्थ सरैया को डायरेक्टर (06572032) बना दिया।
बड़ा खिलाड़ी
प्रदीप सरैया और रमतानी परिवार का अच्छा ताल्लुक है। विकास रमतानी के चाचा से अच्छी पटती है। रीयल एस्टेट में पैसा लगाना रमतानी चाचा ने ही सरैया को सिखाया है। वहीं विनस बे आॅफशोर लि. के शेयरहोल्डर के रूप में पनामा लिक की सूची में आए गोवा निवासी संजय विजय सिंह शिंदे के साथ कारोबारा शुरू किया। बाद में बेटे को आगे किया।
संपत्ति थी तो फिर एन्यूअल रिटर्न में क्यों नहीं...
नाम-प्रदीप सरैया
पद- जीएम
जन्म-13 मार्च 1956
सेवा में- 1979-80 में
सेवानिवृत- 2015-16
एम्पलॉय कोड- 93325999
जीपीएफ नं.- 22770408
संपत्ति विवरण (2012-13)
- 29 आकांक्षा एनक्लेव भोपाल में 1500 वर्गफीट डुप्लैक्स 2002 में खरीदा। कीमत 40 लाख। स्वयं के नाम। अनुपम बिल्डर से खरीदा। स्टेट बैंक आॅफ इंडिया में गिरवी।
- तालपर (विदिशा) में नौ एकड़ जमीन। कीमत 15 लाख। पत्नी के नाम। पैतृृक संपत्ति। शादी से पहले उपहार मिला था। सालाना कमाई 1 लाख।
- हुजुर में करीब 6403 वर्गफीट आवासीय जमीन। पति-पत्नी के नाम। अलका गौतम और रेणु मिश्रा से सितंबर 2011 में ली।
(इससे पहले 2010-11 में ई-3/111 अरेरा कॉलोनी में 2162 वर्गफीट कमर्शियल फ्लोर भी थी। जो ससुराल पक्ष से देना बताया। यहां जिम चलता है। जिससे 1.5 लाख रुपए साल की कमाई होती है। यह 2012-13 में गायब कर दी।)
संपत्ति विवरण (2013-14)
- ए-2 देवस्थल फेस-2 में 7000 वग्रफीट का घर। कीमत 1.20 करोड़। पति-पत्नी के नाम। जनवरी 2011 में खरीदी। आईडीबीआई में गिरवी।
- तालपर (विदिशा) में नौ एकड़ जमीन। कीमत 20 लाख। पत्नी के नाम। पैतृृक संपत्ति। शादी से पहले उपहार मिला था। सालाना कमाई 1 लाख।
- हीरे और सोने की ज्वैलरी। वजन 90 तोला। कीमत 20 लाख।
कमाई के मिले काम...
नियुक्ति 1979-1980 की है। रिटायर्ड हुए 2015-16 में। इस दौरान रिस्ट्रक्टर्ड एक्सेलरेटेड पॉवर डेवलपमेंट एंड रिफार्म प्रोग्राम (आरएपीडीआरपी) और राजीव गांधी ग्रामीण विद्युत योजना (आरजीजीवीवाय) का दायित्व संभाला जिनमें एक दशक में केंद्र और राज्य सरकार ने भरपूर पैसा दिया।
इसके अलावा सीसीडी सेक्शन में एक्जीक्यूटिव इंजीनियर रहे। डीजीएम रहे। 14 नवंबर 2011 को उन्हें मप्र मध्य क्षेत्र बिजली वितरण कंपनी में कंस्ट्रक्शन डिविजन का एसीई सिटी भी बनाया गया।
17 जुलाई 2014 को उन्हें भारत सरकार के रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आरईसीएल) में भी जगह मिली। 

डीजीसीईआई ने डिटरजेंट कारखाने से पकड़ी 28 लाख की सिगरेट

नागौर से इंदौर आया, इंदौर से भोपाल जाना था
 इंदौर. विनोद शर्मा ।
नागौर से बिना बिल और डॉक्यूमेंट के  सिगरेट लेकर निकले महिंद्रा पिकअप को इंदौर पहुंचते डायरेक्टर जनरल आफ सेंटल एक्साइज इंटेलीजेंस (डीजीसीईआई) ने धर दबौची। गाड़ी में से 30 बोरी सिगरेट बरामद की गई जो कि भोपाल जाना थी। इसके साथ ही सिगरेट के स्थानीय थोक विक्रेता पंजवानी ग्रुप पर भी सर्वे हुआ। जब्त की गई सिगरेट मिडलैंड ब्रांड की बताई जा रही जिसकी शुरूआती कीमत 28 लाख से अधिक आंकी गई है।
नागौर से चली सिगरेट की गाड़ी राजेंद्रनगर थाने के सामने स्थित एक डिटरजेंट कंपनी में अनलोड होने के लिए पहुंची है? विस्वसनीय सूत्रों से मिली इस सूचना के आधार पर डीजीसीईआई की टीम मौके पर पहुंची। मौके की नजाकत ने सूचना की पुष्टि कर दी। इसके बाद डीजीसीईआई की टीम ने महेंद्रा पिकअप गाड़ी और उसमें रखी सिगरेट की 30 बोरियां पकडी। इनमें 60 करटन सिगरेट निकली। सिगरेटके ब्रांड को लेकर अधिकारिक घोषणा नहीं की जा रही है।
कीमत की समीक्षा हो रही है...
बताया जा रहा है कि पकड़ी गई सिगरेट के ब्रांड और सिगरेट स्टिक के आधार पर डीजीसीईआई द्वारा कीमत का आंकलन किया जा रहा है। शुरूआती आंकलन के अनुसार 1 करटन में 1200 पैकेट और 12000 सिगरेट है। करटन 60 पकड़े। 7.20 लाख सिगरेट। एक पैकेट की कीमत 40 रुपए है। मतलब कुल सिगरेट हुई 28.80 लाख की।
सुंदरम इंटरप्राइजेस
अधिकारी गाड़ी लेकर ब्रांड की सिगरेट की ट्रेडिंग करने वाली 30 सियागंज स्थित सुंदरम इंटरप्राइजेस पहुंचे। इसके साथ ही 115 जानकीनगर स्थित कंपनी के सर्वेसर्वा नीरज पंजवानी, कविता पंजवानी, हीरालाल पंजवानी और श्रीचंद पंजवानी के घर भी कार्रवाई हुई। इस समूह के खिलाफ 2002-03 से 2008-09 के असेसमेंट इअर को लेकर असेसमेंट भी हुआ। जिसका निर्णय 28 फरवरी 2013 में हुई।
ऐसे चली, ऐसे पकड़ाई...
बताया जा रहा है कि सिगरेट राजस्थान के नागौर स्थित एक कंपनी द्वारा बनाई गई। कंपनी से सिगरेट बिना बिल-बिल्टी और गेट पास के आधी रात को निकली। सुबह 5.30 बजे रतलाम पहुंची। यहां कुछ देर विश्राम के बाद गाड़ी इंदौर के लिए रवाना हुई। सुबह 8 बजे गाड़ी पहुंची राजेंद्रनगर स्थित डिटरजेंट कारखाने में। यह कारखाना भी उसी समूह का है जिसकी नागौर में सिगरेट कंपनी है। इसीलिए चोरी-छीपे माल अनलोड किया जा रहा था। बाद में गाड़ी बदलकर सिगरेट का जखिरा भोपाल स्थित एक सिगरेट कंपनी पहुंचना था। 

निगम ने पंजीयक से मांगी दो साल में हुई फ्लैट-दुकान की रजिस्ट्री

प्रकोष्ठ पंजीयन घोटाला
- दबंग इम्पैक्ट
- 24 महीनों में हुई आठ हजार रजिस्ट्रियां निशाने पर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
स्वयं के उपयोग का शपथ-पत्र देकर घर का नक्शा मंजूर कराकर उसे मल्टी की शक्ल देने वालों के खिलाफ नगर निगम ने शिकंजा कस दिया है। इसके तहत नगर निगम ने जिला पंजीयक को पत्र लिखकर दो साल में हुई फ्लैट, दुकान और आॅफिसों की रजिस्ट्रियों का रिकार्ड मांगा है। बताया जा रहा है कि दो वर्षों में हुई 20 हजार रजिस्ट्रियों में से आठ हजार निगम के निशाने पर है। प्राप्त दस्तावेजों की समीक्षा केब् बाद स्पष्ट होगा  कितने फ्लैट, दुकान और आॅफिस स्वीकृत नक्शे में थे, कितने नहीं?
जिला पंजीयक कार्यालय की मदद से जारी प्रकोष्ठ रजिस्ट्री के खेल को दबंग दुनिया ने ‘सात साल में कर दी 12 हजार विवादित रजिस्ट्री’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। इस मामले को नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह ने गंभीरता से लिया। उनके निर्देश पर मुख्य नगर निवेशक विष्णु खरे ने जिला पंजीयक को चिट्ठी (2053/भ.अ.शा./2017) लिखी। 1 जुलाई 2015 से 31 जुलाई 2017 के बीच रजिस्टर्ड हुए सभी प्रकोष्ठ की रजिस्ट्री का रिकार्ड मांगा है। चिट्टी में स्पष्ट लिखा है कि भवन निर्माताओं द्वारा नगर निगम से अनुमति लेकर भवन निर्माण किया जाता है। निर्माण के बाद मप्र प्रकोष्ठ अधिनियम के अंतर्गत जिला पंजीयक कार्यालय में प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड कराया जाता है। इसके आधार पर यूनिट की प्रकोष्ठ की रजिस्टियां होती है। नगर निगम को अपने कार्यालयीन काम के लिए इन रजिस्ट्रियों की जरूरत है।
20 हजार से अधिक रजिस्ट्री पर नजर
जिला पंजीयक कार्यालय के अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि एक साल में औसत 10 हजार फ्लैट, दुकान, आॅफिस की रजिस्ट्री होती है। मतलब दो वर्षों में कुल 20 हजार रजिस्ट्री हुई है। इसमें तकरीबन 40 फीसदी (8 हजार) मामले शंकास्पद हैं। यदि एक यूनिट की औसत कीमत 10 लाख है तो भी इनसे 76 करोड़ रुपए स्टॉम्प शुल्क जमा कराया जा चुका है। इसके अलावा ऊपरी फीस अलग।
ऐसे होता है खेल
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग और नगर निगम नियम से नक्शा मंजूर करता है लेकिन बिल्डर या कॉलोनाइजर स्वीकृत नक्शे की सर्जरी कर देता है जैसी कि तुलसीनगर मामले में सामने आई थी। इसी सर्जरी किए हुए नक्शे के आधार पर प्रकोष्ठ पंजीयन कराया जाता है।
सामने आएगी धोखाधड़ी
रजिस्ट्रार से प्राप्त प्रकोष्ठ की रजिस्ट्री और अपने द्वारा स्वीकृत किए गए नक्शों का निगम मिलान करेगा। इससे सामने आएगा कि कितने प्रकोष्ठ ऐसे हैं जो नगर निगम के रिकार्ड में नहीं है लेकिन उनकी रजिस्ट्री हो चुकी है। बताया जा रहा है ऐसे मामले सामने आने पर नगर निगम आर्थिक दंड और रिमूवल के साथ बिल्डरों पर धोखाधड़ी का मुकदमा भी दर्ज करा सकता है।
तो ही रूकेगी धोखाधड़ी
--  जिन बिल्डिंगों का नक्शा नगर निगम ने स्व: उपयोग के शपथ-पत्र के साथ मंजूर किया है वहां घर बना है या मल्टी? इसकी बारीकी से मॉनिटरिंग हो। ऐसे तमाम स्वीकृत नक्शो की सूची जिला पंजीयक में होना चाहिए ताकि जिला पंजीयक इनका प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड न करे।
--ऐसी बिल्डिंग जिनका भू-उपयोग आवासीय है या आवासीय/कमर्शियल है उनकी सूची भी पंजीयक के पास हो ताकि भू-उपयोग के विपरीत किए गए निर्माण की रजिस्ट्री न हो पाए।
-- जिस बिल्डिंग का नक्शा पास हुआ है उसके नक्शे की एक प्रति पंजीयक को भी दी जाए ताकि वह मिलान कर सके कि प्रकोष्ठ पंजीयन कराते वक्त बिल्डर ने कितना निर्माण बताया है और नगर निगम ने कितना मंजूर किया था।
-- बैंकों ने भी आनन-फानन में विवादित प्रकोष्ठों पर करोड़ों रुपयों का लोन दे रखा है। बैंकों को दस्तावेजों की हकीकत जांचने के बाद लोन देना चाहिए।
बिल्डिंग पर्मिशन से पंजीयक तक मनमानी
नगर निगम की बिल्डिंग पर्मिशन घपले की बड़ी जड़ है जहां नक्शा मंजूर करने से लेकर बिना सील किए उसकी एक कॉपी ‘जो संसोधन करके पंजीयक के समक्ष प्रस्तुत की जाती है’, देने तक के दाम तय हो जाते हैं। नक्शों में खिलवाड़ करके फर्जी प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड करवाने वालों को चिह्नित करके उनके खिलाफ धारा-420, 467, 468, 471,  120 बी के तहत मुकदमे कायम कराए जाना चाहिए।
प्रमोद द्विवेदी, एडवोकेट
दस्तावेज लेखक

‘नगर निगम’ पर हरियानी गैंग की हरियाली

एक प्लॉट पर मकान मंजूर कराकर मार्केट बनाया, तो दूसरे को रिनोवेशन के नाम पर मार्केट बना दिया
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एमजी रोड और जेल रोड क्षेत्र में नक्शों को दराज में दफन करके मनमाना निर्माण करते आ रहे भू-माफिया अशोक हरियानी की नजर अब नगर निगम के सामने स्थित नगर निगम रोड पर है। 84 नगर निगम रोड पर घर मंजूर कराकर मार्केट बना रहे हरियानी और उनके सहयोगी इसी रोड पर एक पुराने मकान रिनोवेशन की आड़ में पूरा मार्केट बना चुके हैं। जिसकी भी कई शिकायतें हुई लेकिन सभी को डस्टबीन नसीब हुई।
अशोक हरियानी, जगदीश छाबड़ा, अनिल पिपले व अन्य की करतूतों का ताजा मामला नगर निगम रोड पर ही दिख रहा है। यहां प्लॉट नं. 101 और 102 को जोड़कर यशवंतराव नासिककर ने करीब 1200 वर्गफीट में भवन बनाया था जहां उनका परिवार रहता रहा। उनकी मृत्यु के बाद वारिस हुआ बेटा दिलीप नासिककर जिसने अपनी दो बहनों से मिली सहमति के आधार पर उक्त भवन हरियानी गैंग को दो साल पहले बेच दिया। भवन खरीदते ही हरियानी और उनके भागीदारों ने दिमाग लगाया। जीर्णोद्धार के नाम पर पर्दा डालकर कुछ ही दिन में भवन को मार्केट बना डाला। जी+2 के इस भवन में ग्राउंडफ्लोर पर 4 दुकाने हैं जो 60 से 70 लाख रुपए में बेची गई है। ऊपर की दो फ्लोर पर अभी हॉल जैसे बने हुए हैं लेकिन उन्हें भी जेल रोड के मार्केट की तरह डेवलप करके बेचा जाना है।
क्या देखते रहे अधिकारी
छोटे-बड़े बदलाव को छोड़ किसी भी पुरानी बिल्डिंग के भारी जीर्णोद्धार के लिए नगर निगम से अनुमति लेना जरूरी है। बावजूद इसके हरियानी गैंग ने बिना अनुमति ही जीर्णोद्धार किया। वह भी ऐसा कि पूरे भवन का स्वरूप बदल गया। उधर, जोन-3 से लेकर मुख्यालय में बैठे नगर निगम अधिकारी तमाशा देखते रहे।
जैन-पाटीदार का साथ मिलता रहा..
नगर निगम रोड जोन-3 में आता है जहां अर्से से भवन अधिकारी विवेश जैन और भवन निरीक्षक उमेश पाटीदार पदस्थ है। दोनों के संरक्षण में हरियानी-छाबड़ा की जोड़ी ने पहले 475-476 एमजी रोड पर जयश्री कृष्ण मार्केट बनाया। अच्छी कीमत मिली।
-- इसके समानांतर 101-102 नगर निगम रोड का काम भी जारी रहा जो पूरी तरह तैयार है।
-- 2016 में ही हरियानी ने सोलंकी परिवार के प्लॉट 84 नगर निगम रोड पर काम शुरू किया। मकान बनना था लेकिन अनिल पिपले के वित्तीय सहयोग से मार्केट बना दिया।
-- कुछ दिनों पहले ही एक सौदा और हुआ है 86 नगर निगम रोड का जहां व्यास परिवार का घर था जिसे तोड़ दिया गया है। अब नया निर्माण होगा।
सीएम हैल्पलाइन पर हरियानी गैंग की दर्जनभर इमारते
3/1 जेल रोड निवासी मिलिंद रानाडे ने सीएम हैल्पलाइन पर 28 जून 2017 को शिकायत (4130100) दर्ज कराई थी। शिकायत में हरियानी और उनके भागीदारों द्वारा बनाकर बेची गई दर्जनभर इमारतों का जिक्र है। इनमें गणेश मार्केट,  2.1 जेल रोड, अम्बिका प्लाजा,साई बाबा प्लाजा, स्वामी प्रीतमदास मार्केट, लक्ष्मी नारायण मार्केट, सुंदर प्लाजा, मुंगरे स्टेट, सिद्धि विनायक मार्केट का जिक्र है। शिकायत के अनुसार इन सभी के नक्शे आवासीय मंजूर हुए थे लेकिन मौके पर मार्केट बना दिए गए। पार्किंग और एमओएस हजम करके। 

आज टूटेगा 76 पंढरीनाथ स्थित अवैध निर्माण!

- निगम ने थमाया रिमूवल नोटिस
- एमआईसी सदस्य और महापौर निवास के फोन बड़ा अडंगा
- मार्च में भी रूकवाई थी कार्रवाई
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
एमआईसी सदस्य के फोन पर जिस 76 पंढरीनाथ स्थित सतराम वाधवानी के मनमाने निर्माण को नजरअंदाज करना पड़ा था उसे आखिरकार निगम प्रशासन को रिमूवल नोटिस थमाना पड़ा। यदि दोबारा एमआईसी सदस्य का या महापौर निवास से दबाव नहीं आया तो नोटिस के अनुसार निर्माण पर गुरुवार को रिमूवल कार्रवाई जरूर होगी। उधर, निर्माण के खिलाफ बुधवार को भी शिकायत दर्ज की गई।
42 विनयनगर निवासी सतरामदास पिता सोभामल वाधवानी, राजेश कुमार पिता सतरामदास वाधवानी और विनोद पिता सतरामदास वाधवानी ने कैसे मनमाना निर्माण किया है? इसका खुलासा दबंग दुनिया ने 8 जुलाई के अंक में ‘जहां दुकानें मंजूर की वहां बनने लगे शोरूम’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। मामले पर दबंग दुनिया ने नजर बनाए रखी। हालांकि इस दौरान नगर निगम के हरसिद्धि जोन पर पदस्थ अधिकारियों और निर्माणकर्ता ने मामले को रफा-दफा करने की हर संभव कोशिश की। बावजूद इसके दबंग का अभियान जारी रहा। परिणाम स्वरूप हरसिद्धि जोन पर पदस्थ भवन अधिकारी महेश शर्मा ने 27 जुलाई 2017 को रिमूवल नोटिस (914) जारी कर दिया। इसके तहत निर्माणकर्ता को अपना अवैध निर्माण हटाने के लिए जो समय दिया था वह बुधवार को खत्म हो चुका है। रिमूवल के लिए गुरुवार को दिन मुकरर्र है।
मार्च में ही बराबर हो जाता निर्माण...
निर्माणकर्ताओं को जारी किए गए नोटिस के अनुसार उक्त प्लॉट पर स्वीकृत नक्शे के विपरीत किए जा रहे निर्माण को चिह्नित करके हरसिद्धि जोन द्वारा 23 मार्च 2017 को भी नोटिस (1406) जारी किया गया था। कार्रवाई होना थी लेकिन एन वक्त पर एमआईसी सदस्य सुधीर देड़गे ने फोन करके कार्रवाई टलवा दी।
बुधवार को भी हुई शिकायत
मामले में बुधवार को भी सुदामानगर निवासी सूर्यप्रकाश वर्मा ने निगमायुक्त मनीष सिंह को शिकायत की। शिकायत के अनुसार 12 अक्टूबर 2016 को नक्शा पास करते हुए 1847.28 वर्गफीट के इस प्लॉट में 216.41 वर्गफीट सड़क सेटबेक काटकर नगर निगम ने 1634.62 वर्गफीट पर कुल 2757.38 वर्गफीट की जी+2 बिल्डिंग मंजूर की थी। 365.05 वर्गफीट की दो दुकानें बनाई जा सकती थी। कमर्शियल अनुमति इतनी ही है। वहीं 2392.33 वर्गफीट अनुमति आवासीय है। इसके विपरीत वाधवानी परिवार ने मौके ग्राउंड फ्लोर पर 365.05 वर्गफीट दुकानें बनाने के साथ ही उस हिस्से पर व्यावसायिक उपयोग की मंशा से निर्माण कर दिया है जो कि आवासीय के लिए मंजूर हुआ था। पार्किंग के लिए तय हुई जमीन पर भी बिल्डर ने कैची चला दी है। इसी में लिफ्ट डक्ट बना दिया है।
राजनीतिक प्रेशर कितना है...
जोन पर पदस्थ अधिकारियों का कहना है कि हमने नोटिस तो दे दिया है लेकिन एमआईसी सदस्य, महापौर के परिवार या अन्य किसी बड़े राजनीतिक दखलंदाजी से हम कैसे निपटे। हम भी नहीं चाहते अवैध निर्माण हो लेकिन हमारे कार्रवाई करने से पहले बचाने वाले सामने आ जाते हैं।
कब-कब किया खुलासा
8 जुलाई : जहां दुकानें मंजूर की वहां बनने लगे शोरूम...
14 जुलाई : एमआईसी सदस्य ने फोन करके दी अवैध निर्माण की छूट
18 जुलाई : 76 पंढरीनाथ के खिलाफ सीएम तक पहुंची शिकायत
21 जुलाई : 76 पंढरीनाथ, शिकायतकर्ताओं को धमकाना शुरू

7 साल में 12 हजार विवादित रजिस्ट्री

घर को मल्टी बनाने में निगम के साथ पीछे नहीं है जिला पंजीयक
- नक्शे और भू-उपयोग के विपरीत निर्माण भी नाप डाले
इंदौर. विनोद शर्मा ।
2 पलसीकर...।  हरभजनसिंह, भूपेंद्रसिंह, सतवंतसिंह, चरणजीतसिंह और कमलजीतसिंह ने स्वयं के इस्तेमाल का शपथ-पत्र देकर नक्शा मंजूर करवाया था..। बावजूद इसके यहां न सिर्फ फ्लैट-पेंट हाउस बन गए बल्कि बिक भी गए..। जिला पंजीयक ने रजिस्ट्री भी कर दी। ऐसी एक-दो नहीं बल्कि शहर में 2000 से ज्यादा इमारतें जहां सात साल में 12 हजार से अधिक फ्लैट की  प्रकोष्ठ अधिनियम का उल्लंघन करते  हुए ले-देकर रजिस्ट्री कर दी गई।
1 सितंबर से रेरा पंजीयन जरूरी है। इससे जहां बड़े बिल्डरों पर लगना कसना तय है। वहीं घर बनाने का शपथ-पत्र देकर मल्टियां तानकर बेचने वाले जालसाज मजे में है। नगर निगम ने जहां इन्हें मनमाने निर्माण की छूट दे रखी है वहीं जिला पंजीयक कार्यालय में बैठे अधिकारी मनमानी रजिस्ट्रियां ठोक रहे हैं। इसीलिए ऐसी बिल्डिंगों का ग्राफ आसमान छू रहा है।
यह है प्रकोष्ठ अधिनियम...
फ्लैट मालिकों के हितों का ध्यान रखते हुए विधानसभा में मप्र प्रकोष्ठ स्वामित्व अधिनियम (अपार्टमेंट एक्ट)-2000 पारित किया गया था। एक्ट के अनुसार किसी प्लॉट या किसी खसरे की जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के ले-आउट और नगर निगम द्वारा स्वीकृत नक्शे के आधार पर किसी मल्टी या मार्केट का प्रकोष्ठ पंजीबद्ध होता है। बिना प्रकोष्ठ पंजीयन के फ्लैट्स की बिक्री हो नहीं सकती। प्रकोष्ठ पंजीयन के दौरान बिल्डर फ्लैटवार व मंजिलवार बताता है कि कुल निर्माण कितना मंजूर हुआ है? कितना बनाया है? कितना बिल्टअप है? कितना सुपर बिल्टअप? आने-जाने की व्यवस्था क्या है? अन्य सुविधाओं का समीकरण भी बताते हैं।
फिर कैसे हो जाती है इनकी रजिस्ट्री...
2 पलसीकर, 134-135-136-137 पल्हरनगर जोड़कर बनी बिल्डिंग जैसे कई उदाहरण है जिनका नक्शा स्व:उपयोग के शपथ-पत्र के आधार पर मंजूर हुआ था। जब खुद को ही रहना था तो फिर फ्लैट कैसे बने और बिके।
नक्शे में 10 हजार वर्गफीट निर्माण स्वीकृत है और निर्माण हुआ 15 हजार वर्गफीट। ऐसे में 5 हजार वर्गफीट अतिरिक्त निर्माण कैसे बिका। जिसका उदाहरण पांच साल में बनी हर दूसरी इमारत है।
बड़ी तादाद में ऐसी इमारतें है जिनका नक्शा या भू-उपयोग आवासीय था लेकिन मौके पर मार्केट बनाकर बेच दिया गया।  इंदौर में ऐसी रजिस्ट्रियों की संख्या हजारों में है।
सालाना 10 करोड़ से ज्यादा का लेनदेन...
-- बीते दिनों बैराठी कॉलोनी में स्व: उपयोग का नक्शा मंजूर कराकर एक बिल्डिंग बनी। उसमें दुकानें निकली। फ्लैट निकाले गए। हालांकि प्रकोष्ठ पंजीयन न होने के कारण रजिस्ट्री नहीं हो पाई। सौदा एग्रीमेंट पर हुआ। बाद में जिला पंजीयक कार्यालय के अधिकारियों ने अपनी फीस के रूप में 5 लाख रुपए लिए और प्रकोष्ठ पंजीबद्ध करके यूनिट  रजिस्ट्री कर दी।
-- यह राशि प्रोजेक्ट के कुल निर्माण और विवाद की स्थिति को देखते हुए घटती-बढ़ती है। कमर्शियल प्रोजेक्ट में पैसा ज्यादा मिलता है। यदि औसत एक बिल्डिंग के प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड करने में पंजीयन अधिकारी औसत ढ़ाई लाख रुपए लेता है और सालभर में ऐसी 500 बिल्डिंग बनती है तो इसका मतलब है 10 करोड़ से ज्यादा का लेनदेन होता है।
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टाउन एंड कंट्री प्लानिंग, नगर निगम और जिला पंजीयक की जुगलबंदी से फलफुल रहे हैं बिल्डर। वरना कोई कारण नहीं कि गैरकानूनी निर्माण प्रकोष्ठ के रूप में रजिस्टर्ड होकर बिक भी जाए। प्रकोष्ठ अधिनियम सिर्फ उन्हीं मल्टियों पर लागू होता है जिनका निर्माण स्वीकृत नक्शे के अनुसार हुआ है।
अनुराग बैजल, एडवोकेट
गलत है लेकिन रोक नहीं सकते..
स्व उपयोग के शपथ-पत्र के साथ बनने वाली बिल्डिंग की रजिस्ट्री होना गलत है लेकिन कानूनन घर के किसी हिस्से का सौदा नहीं रोका जा सकता। यह देखना नगर निगम का काम है कि निर्माण वैध है या अवैध। वह क्या देख रहे हैं।
विनय द्विवेदी, एडवोकेट
दस्तावेज लेखक

- अपार्टमेंट, मल्टीस्टोरीज बिल्डिंग की देखरेख के लिए फ्लैट मालिकों द्वारा मिलकर सोसाइटी गठित करना अनिवार्य है, जो कहीं-कहीं दिखती है।
-पार्किंग, पार्क, लॉबी, कॉमन बालकनी के उपयोग में आ रही दिक्कतें आसानी से दूर होंगी।
-अपार्टमेंट में पानी, सीवर, ड्रेनेज सिस्टम, बिजली की बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। 

बिहाड़िया के भू-माफियाओं पर खुड़ैल पुलिस करेगी एफआईआर


- एसडीएम ने लिखी चिट्ठी
- जांच में बीते छह महीनों में आधा दर्जन मकान बन गए..
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
बिहाड़िया में अवैध कॉलोनी काटने वाले कोमल सोनकर, विकास सोनकर और सुंदरलाल मालवीय के खिलाफ प्रकरण दर्ज करने के लिए एसडीएम ने खुड़ैल पुलिस को पत्र लिख दिया है। उधर, जांच के नाम पर बीते छह महीनों में भू-माफियाओं ने शतप्रतिशत प्लॉट बेच डाले। आधा दर्जन मकान मौके पर बन रहे हैं जबकि जनवरी में मामले का खुलासा होते वक्त सिर्फ सुंदरलाल मालवीय का एक ही मकान बन रहा था। ऐसे में जांच में हुई देर का खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ सकता है।
इंदौर तहसील के ग्राम बिहाड़िया के सर्वे नं. 230/1 की ढ़ाई एकड़ जमीन पर अवैध कॉलोनी कटी है। 160 से अधिक प्लॉट हैं। 16-17 जनवरी 2017 को दबंग दुनिया ने कॉलोनी के रूप में भू-माफियाओं की करतूत उजागर की थी। तब तक डेढ़ से तीन लाख रुपए की कीमत पर सौ से अधिक प्लॉट बेचे जा चुके थे। बिना  सड़क, पानी, नाली, बिजली जैसी सुविधाओं के। एसडीएम शालिनी श्रीवास्तव के निर्देश पर जनवरी में ही पटवारी और राजस्व निरीक्षक ने जांच की। फिर भी कार्रवाई नहीं हुई। मामले की शिकायत 20 फरवरी को सीएम हैल्पलाइन पर दर्ज की गई। जिसका निराकरण करने में भी अफसरों को छह महीने लग गए।
खुड़ैल पुलिस दर्ज करेगी केस
सीएम हैल्पलाइन पर की गई शिकायत (3380782 ) और जनसुनवाई में प्राप्त शिकायत 34/बी-121/16-17 की जांच की। शिकायतें सही पाई गई। इसीलिए एसडीएम शालिनी श्रीवास्तव ने 27 जुलाई 2017 को थाना प्रभारी खुड़ैल को पत्र लिखकर कोमल सोनकर, विकास सोनकर और सुंदरलाल मालवीय के खिलाफ केस दर्ज करने को कहा है।
अभी लेटर मिला नहीं, केस दर्ज होगा
एसडीएम द्वारा जो लेटर जारी किया गया है वह अब तक मिला नहीं है। प्राप्त होते ही पत्र के आधार पर संबंधित भू-माफियाओं के खिलाफ केस दर्ज करेंगे।
अविनाश सिह, प्रभारी
खुड़ैल थाना
यूं कटता रहा समय...
20 फरवरी 2017 : शिकायत दर्ज । एल-1 अधिकारी को भेजी।
5 मार्च : एक बार फिर शिकायल एल-1 अधिकारी को भेजी।
13 अपै्रल : नायब तहसीलदार श्रीकांत तिवारी को शिकायत निराकरण के लिए अधिकृत किया।
18 अपै्रल : एल-2 अधिकारी तक पहुंची शिकायत।
22 अपै्रल : तहसीलदार ने मौका रिपोर्ट पेश नहीं की।
27 अपै्रल : एल-3 अधिकारी तक पहुंची शिकायत।
8 मई : निराकरण न होने पर मामला एल-4 अधिकारी को सौंपा।
11 जुलाई : एसडीएम संयोगितागंज के समक्ष प्रकरण दर्ज।
11 जुलाई : पूर्व में किए गए निराकरण को अमान्य माना। शिकायत फिर एल-4 अधिकारी के पास गई।
31 जुलाई : एसडीएम ने टीआई खुड़ैल को लिखा।
हो यह भी सकता था...
16 जनवरी को दबंग दुनिया ने समाचार प्रकाशित करके कॉलोनी का खुलासा किया था? इससे पहले बिहाड़िया सरपंच जगदीश यादव शिकायत कर चुके थे। उसी दौरान मौका निरीक्षण होता तो वहां खेत में डाली गई सड़क दिखती। बनते मकान दिखते। मालिकी दस्तावेज की जांच होती। भू-माफियाओं पर कायमी हो सकती थी।
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बख्शे नहीं जाएंगे भू-माफिया
जांच, पूछताछ और मौका निरीक्षण में थोड़ा वक्त जरूर लगा है लेकिन जांच के बाद अब मामला पूरी तरह साफ है। भू-माफियाओं को बख्शा नहीं जाएगा। थाना प्रभारी को एफआईआर के लिए लिख दिया है।
शालिनी श्रीवास्तव, एसडीएम

पंढरीनाथ रोड पर मनमानी

जहां दुकानें मंजूर की वहां बनने लगे शोरूम
इंदौर.चीफ रिपोर्टर ।
मप्र भूमि विकास अधिनियम और मास्टर प्लान-2021 के साथ ही जारी भवन अनुज्ञा को ठेंगा दिखाकर मनमाना निर्माण करने वालों को निगम प्रशासन लूट की छूट दे चुका है। फिर वह स्मार्ट सिटी के लिए चुना गया शहर का मध्यक्षेत्र ही क्यों न हो। इसका ताजा उदाहरण पंढरीनाथ थाने के सामने बन रही तीन मंजिला इमारत है जिसके खिलाफ लगातार दो जनसुनवाई से एक के बाद एक शिकायतें मिल रही है। शिकायतकर्ताओं की मानें तो बिल्डिंग की हाइट स्वीकृति से ज्यादा कर दी गई। इसके अलावा निर्माण भी मंजूरी से ज्यादा है।
मामला 76 (पुराना 67) पंढरीनाथ रोड का है। 1847.28 वर्गफीट के इस प्लॉट में 216.41 वर्गफीट सड़क सेटबेक काटकर नगर निगम ने 1634.62 वर्गफीट पर कुल 2757.38 वर्गफीट की जी+2 बिल्डिंग मंजूर की थी। सतरामदास पिता सोभामल वाधवानी, राजेश कुमार पिता सतरामदास वाधवानी और विनोद पिता सतरामदास वाधवानी के नाम निगम ने मंजूरी (3801/आईएमसी/जेड12/डब्ल्यू59/2016) 12 अक्टूबर 2016 को जारी की थी। 42 विनयनगर निवासी वाधवानी परिवार के खिलाफ जो शिकायत निगमायुक्त से लेकर मुख्यमंत्री तक को की गई है उसके अनुसार बिल्डिंग पर्मिशन के तहत कुल 365.05 वर्गफीट की दो दुकानें बनाई जा सकती थी। कमर्शियल अनुमति इतनी ही है। वहीं 2392.33 वर्गफीट अनुमति आवासीय है। इसके विपरीत वाधवानी परिवार ने मौके ग्राउंड फ्लोर पर 365.05 वर्गफीट दुकानें बनाने के साथ ही उस हिस्से पर व्यावसायिक उपयोग की मंशा से निर्माण कर दिया है जो कि आवासीय के लिए मंजूर हुआ था। पार्किंग के लिए तय हुई जमीन पर भी बिल्डर ने कैची चला दी है। इसी में लिफ्ट डक्ट बना दिया है।
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हरसिद्धि जोन के अधिकारियों ने लिया पैसा
शिकायतकर्ता का आरोप है कि पंढरीनाथ पर यह जो बिल्डिंग बन रही है उससे पंढरीनाथ थाना 10 कदम की दूरी पर है और तकरीबन 100 कदम की दूरी पर नगर निगम का हरसिद्धि जोन है। यहां पदस्थ जोनल अधिकारी, भवन अधिकारी और भवन निरीक्षक के आने-जाने का रूट ही यही है। फिर भी उन्हें निर्माण में मनमानी नहीं दिखी, यह किसी चुटकुले कम नहीं है। सीधी सी बात है कि निगम अफसर वाधवानी से उपकृत है। उन्हें मनामनी की छूट दे चुके हैं।
ऐसा होना था ग्राउंड कवरेज
दुकान-1 - 142.5 वर्गफीट
दुकान-2 - 192.3 वर्गफीट
लिविंग रूम - 208.08 वर्गफीट
कीचन - 111.6 वर्गफीट
इसके अलावा टॉयलेट और स्टेयर केस के साथ पार्किंग भी।
यह है मंजूरी
मंजूरी - 12 अक्टूबर 2016
कुल प्लॉट - 1847.28 वर्गफीट
सेटबेक - 216.41 वर्गफीट
शेष प्लॉट एरिया - 1634.62 वर्गफीट
ग्राउंड कवरेज - 970.359 वर्गफीट
पार्किंग - 268.5 वर्गफीट
प्रस्तावित निर्माण - 2757.38 वर्गफीट
व्यावसायिक - 365.05 वर्गफीट
आवसीय - 2392 वर्गफीट
स्टेयर - 137.14 वर्गफीट
लिफ्ट - मंजूरी नहीं है।
फ्लोरवाइज स्वीकृत निर्माण
व्यावसायिक आवासीय स्टेयर बालकनी
ग्राउंड फ्लोर 365.05 451.68 45 00
पहली मंजिल 000 970.31 45 435
दूसरी मंजिल 000 970.31 45 435
कुल 365.05   2392.3 135 870
मेरे साइन नहीं है। 

घुंघट में रहकर घर बन गया कॉम्पलेक्स

रिनोवेशन की आड़ में पर्दा डालकर कोठारी ने बना दी मनमानी बिल्डिंग
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नक्शा मंजूर कराना और मनमाना मकान बनाना तो इंदौर में अब चलन हो चुका है लेकिन अब लोग अब पुरानी बिल्डिंगों के रिनोवेशन के नाम पर नगर निगम की आंखों में धूल झौंक रहे हैं। रिनोवेशन की आड़ लेकर बिना नक्शे के आवासीय बिल्डिंग को कॉर्पोरेट बिल्डिंग बनाकर बेचा व किराये पर दिया जा रहा है। लोकेश कोठारी उर्फ लोकू द्वारा 199 जवाहरमार्ग की पुरानी बिल्डिंग का किया गया कायाकल्प इसका बड़ा उदाहरण है। कायाकल्प के नाम पर ‘घुंघट’ की आड़ में पुरी बिल्डिंग को कॉम्पलेक्स बना दिया।
जोन 2 और वार्ड 69 के तहत मालगंज चौराहे के पास है यह बिल्डिंग। पता 199 जवाहरमार्ग जो कि नगर निगम के राजस्व रिकार्ड में मालती पति महादेव जोशी के नाम दर्ज है। उधर, सूत्रों के अनुसार जी+1 मकान को सेठी परिवार से कुख्यात भू-माफिया रणवीरसिंह उर्फ बॉबी छाबड़ा के खासमखास लोकेश कोठारी ने 2015-16 में खरीदा था। मकान खरीदने के बाद कुछ लोगों की भागीदारी से कोठारी ने 2016 में ही भवन का कायापलट शुरू किया। काम अब भी जारी है लेकिन अब भवन कॉम्पलेक्स का रूप अख्तियार कर चुका है। बिल्डिंग का रिनोवेशन नीले रंग की तिरपाल डालकर किया गया ताकि सड़क चलतों को समझ न आए कि अंदर बन क्या रहा है।
बड़ा फायदा है रिनोवेशन का...
चूंकि कोठारी द्वारा खरीदी गई बिल्डिंग आवासीय थी इसीलिए उसे नए सिरे से बनाने के लिए नक्शा मंजूर कराना जरूरी था। इसीलिए कोठारी ने रिनोवेशन की प्लानिंग की। रिनोवेशन के नाम पर ही एक घर को कॉर्पोरेट बिल्डिंग बनाया। नीचे जवाहरमार्ग की ओर तीन दुकानें और गली में एक दुकान बना दी।  पूरी ग्राउंड फ्लोर दुकानों की है। पहली मंजिल पर करीब तीन हजार वर्गफीट का हॉल बना दिया। दूसरी पर भी हॉल है। ऊपर टॉवर भी बना दिए।
बेच भी दी दुकानें...
जवाहरमार्ग की ओर जो तीन दुकानें बनाई है उनमें से एक सत्कार टेंट हाउस को बेची है जो कि बिल्डिंग के पुराने स्वरूप से ही वहीं है। दो दुकानों में से एक अशोक नॉवेल्टी स्टोर्स और एक पर रेडीमेड दुकान है। ऊपर का हॉल किराए से दिया जाना है। जरूरत पड़ी तो बेचा जा सकता है। अभी सौदा हुआ नहीं है। बिल्डिंग में प्रॉपर्टी लेने देने की बात सत्कार टेंट हाउस वाले भी अच्छे से बताते हैं। उनकी मानें तो ऊपर दोनों मंजिल पर हॉल बने हैं जिन्हें किसी बैंक या कोचिंग इंस्टिट्यूट को किराए पर दिया जाना है।
कहते रहे रहने के लिए बनाई..फिर बेच दी
इस पूरे मामले में लोकेश उर्फ लोकू कोठारी का मार्च में कहना था कि वह कॉर्पोरेट बिल्डिंग नहीं बना रहा है। पुराना घर खरीदा था। दीवारें जर्जर हो गई थी इसीलिए नए सिरे से बनाई है। ऊपर आवासीय उपयोग ही होगा।
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आप मिलो, मिलकर बात करते हैं
बिल्डिंग की पर्मिशन और रिनोवेशन के नाम पर हुए निर्माण के संबंध में जब दबंग दुनिया ने कोठारी से बात की तो उसका कहना था कि आप मिल लो। मिलकर बात करते हैं। सारी अनुमतियां है मेरे पास।
(जोन-2 पर पदस्थ अधिकारियों के अनुसार कोई अनुमति नहीं है कोठारी के पास।) 

ांग्रेस नेता कमलेश के भाई दिनेश खंडेलवाल के खिलाफ 420 दर्ज

ईशा एवेन्यू-2 में डायरी पर पैसे लेकर प्लॉट की रजिस्ट्री किसी ओर को कर दी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
डायरी पर सौदा करने और पूरा 70 प्रतिशत पेमेंट लेने के बाद प्लॉट का बालेबाले सौदा करने वाले गिरीराज देवकॉन प्रा.लि. के डायरेक्टर दिनेश पिता प्रेमस्वरूप खंडेलवाल के खिलाफ मल्हारगंज पुलिस ने धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज किया है। प्रकरण एरोड्रम पुलिस को सौंपा जाएगा क्योंकि छोटा बांगड़दा इसी थाना क्षेत्र में आता है। दिनेश कांग्रेस नेता कमलेश खंडेलवाल के भाई हैं और दोनों ने मिलकर कंपनी के बेनर तले छोटा बांगड़दा में ईशा ऐवेन्यू और ईशा ऐवेन्यू-2 के नाम से कॉलोनी काटी है।
522 जनता कॉलोनी निवासी शरद पिता शिवनारायण तिवारी द्वारा डीआईजी हरिनारायण चारी मिश्रा को की गई शिकायत और डीआईजी द्वारा दिए गए निर्देश के बाद प्रकरण दर्ज हुआ। एफआईआर में खंडेलवाल के अलावा राकेश पिता रमेशचंद्र गर्ग, अजय पिता नारायण पारिख और मनीष वर्मा का नाम भी शामिल है जो कि गिरीराज देवकॉन प्रा.लि. के ही अन्य डायरेक्टर हैं। कंपनी ने छोटा बांगड़दा के सर्वे नं. 33/2 की 3.047 हेक्टेयर जमीन पर ईशा ऐवेन्यू-2 के नाम से कॉलोनी काटी थी।
डायरी पर पैसे किसी से लिए, प्लॉट किसी और को दिया...
तिवारी द्वारा की गई शिकायत के अनुसार 2011 में अजय पारिक, दिनेश खंडेलवाल, मनीष गर्ग और मनीष शर्मा ने गिरीराज देवकॉन्स प्रा.लि. कंपनी बनाई जिसका पेन एएईजीजी1302जे है। मैं लक्ष्मीबाई अनाज मंडी में नौकरी करता था इसीलिए प्रेमस्वरूप खंडेलवाल और उनके बेटे दिनेश से संबंध थे। इन्हीं संबंधों के आधार पर मैंने प्लॉट नं. 38 का सौदा किया जो 1100 वर्गफीट का था। सौदा 721 रुपए/वर्गफीट की दर से 793100  रुपए में हुआ था। चार किश्तों में पैसा चुकाना था। डायरी पर तीन किश्तों (2.51, 1.75 व 1.75 लाख) में 6.01 लाख चुका भी दिए। खंडेलवाल ने कहा कि जल्द ही रजिस्ट्री करवा देंगे। जमीन के दाम बढ़ने के बाद ललचाए खंडेलवाल बंधुओं ने प्लॉट की रजिस्ट्री किसी ओर को कर दी।
और भी हुई है शिकायतें...
शरद तिवारी के साथ ही अजय पिता गुलाबचंद अग्रवाल निवासी 84 कसेरा बाजार और राकेश पिता राधाकिशन बागजई के साथ ही संजय पिता ईश्वरदास वीरवानी ने भी की है। मल्हारगंज पुलिस ने इनकी भी शिकायत ले ली है। शरद तिवारी की शिकायत पर दर्ज हुई एफआईआर में ही इनकी शिकायत को भी शामिल करके पुलिस बयान लेगी।
100 प्लॉट की कॉलोनी, आधे में डबल रजिस्ट्री
कांग्रेस नेता कमलेश खंडेलवाल ने अपने राजनीतिक रूतबे का लाभ उठाते हुए कॉलोनी में सुविधा के नाम पर सिर्फ सड़क और सीवरेज डालकर ही प्लॉट बेच डाले। यहां पानी और अप्रोच रोड की व्यवस्था अब तक नहीं है। इतना ही नहीं डायरी पर सौदे किए गए। 25 अगस्त 2011  को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से ले-आउट और 26 मार्च 2012 को डायवर्शन कराकर विकसित की गई करीब सवा सौ प्लॉट की इस कॉलोनी में आधे प्लॉटों की रजिस्ट्री डबल हुई है। मतलब एक-एक प्लॉट के दो-दो मालिक है।
सरकारी जमीन पर बना दी थी अप्रोच रोड
इस कॉलोनी की अप्रोच रोड सर्वे नं. 35 की जमीन पर बना दी थी जो कि छोटा बांगड़दा तालाब की जमीन थी जिसका खुलासा दबंग दुनिया ने 20 सितंबर 2014 को ‘तालाब में कमलेश का अप्रोच रोड’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। 30 सितंबर 2015 को विधायक सुदर्शन गुप्ता की शिकायत पर कलेक्टर पी.नरहरि ने अप्रोच रोड उखड़वा दी थी। बाद में अपनी कॉलर ऊंची रखते हुए खंडेलवाल ने विधायक गुप्ता के खिलाफ सांध्य दैनिक अखबारों में प्रकाशित करवाई जिनके अनुसार उन्होंने छोटा बांगड़दा के सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए सड़क बनवाई थी जिसे शिकायत करके गुप्ता ने उखड़वाया था। 

मालव कन्या में मिलावट और कमीशन की दरारें

2014 में लोकार्पण, 2015 से ही फटने लगी दीवारें
इंदौर. विनोद शर्मा ।
कहीं दीवार में दरार...। कहीं दीवारें बीम-कालम का साथ छोड़ती नजर आ रही हैं...। कहीं दरारों ने दीवार और खिड़की-दरवाजों के बीच का कॉम्बिनेशन बिगाड़ दिया है...। यह दुर्गत है महू नाका स्थित शासकीय मालवा कन्या विद्यालय के उस नवीन भवन की जो तीन साल की अल्प आयू में ही स्कूल का साथ छोड़ने लगी है। हालात यह है कि दरकती दीवारों से नन्हीं छात्राएं दहशतजदा हैं। वे कभी किताबों की तरफ देखती हैं तो कभी दीवारों पर बढ़ती दरारों को। शिक्षा विभाग निगम के माथे ठिकरा फोड़ता है। निगम ठेकेदार पर। और काली मिट्टी के परम्परागत बहाने के साथ ठेकेदार खूद को पाकसाफ बताने में जूटा है।
जहां स्कूल है उसी परिसर में जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ)  कार्यालय भी है। स्कूल परिसर की पुरानी बिल्डिंग और डीईओ आॅफिस के बीच तकरीबन 7920 वर्गफीट जमीन पर बनी जी+1 बिल्डिंग का उद्घाटन 5 सितंबर 2014 को एक सादे समारोह में तत्कालीन महापौर कृष्णमुरारी मोघे ने किया था। बिल्डिंग शिक्षा विभाग को हस्तांतरित हुई 2015-16 में। यदि लोकार्पण दिवस के हिसाब से भी बात करें तो अभी स्कूल की उम्र तीन साल भी नहीं हुई है लेकिन शायद ही ऐसी कोई दीवार बची होगी जिस पर दरार न हो।
करीब 90 लाख में बनी थी बिल्डिंग
नगर निगम के अधिकारिक सूत्रों की मानें तो इस स्कूल भवन को बनाने में 90 लाख रुपए खर्च हुए। इसमें 16 क्लास रूम, प्रिसिंपल रूम, टायलेट युनिट के अलावा परिसर में पेवर ब्लॉक लगाए गए है। जबकि परिसर में पेवर ब्लॉक नहीं है। बिल्डिंग के सामने और डीईओ आॅफिस की ओर वाले हिस्से में जरूर पेव्हर लगे हुए हैं।
ऐसे बनी बिल्डिंग : बिल्डिंग का ठेका 2011 में हुआ था। काम शुरू हुआ था जनवरी-फरवरी 2012 में। 2014 तक काम चला। 5 सितंबर 2014 को लोकार्पण हुआ। स्कूल गौरव दुबे ‘विक्की’ की कंपनी ने बनाया है। कुल करीब 16 हजार वर्गफीट कंस्ट्रक्शन हुआ है।
दानदाता ने दिए थे पैसे बनाने के लिए
वहीं शिक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार स्कूल हाईस्कूल था जिसे हायस् सेकेण्डरी करने के लिए नए कक्षों की आवश्यकता थी। इसके लिए एक उद्योगपति ने रकम दान भी की थी। इस रकम और अपने मद का इस्तेमाल करके नगर निगम ने भवन बनाया लेकिन भवन के निर्माण में जबरदस्त धांधली हुई जो कि तीसरे ही साल में दीवारों की दरारों के रूप में नजर आने लगी है।
यह सब साक्षी थे लोकार्पण के- महापौर कृष्णमुरारी मोघे, सभापति राजेंद्र राठौर, विधायक मालिनी गौड़, आयुक्त राकेश सिंह, शिक्षा समिति प्रभारी गोपाल मालू, जनकार्य समिति प्रभारी  जवाहर मंगवानी, पार्षद सुधीर देड़गे।
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बिल्डिंग दानदाता की मदद से बनी थी। दरारों को लेकर प्रिंसिपल से कोई लिखित शिकायत नहीं मिली है। मिलती है तो रिपेयरिंग करवाते हेैं।
सुधीर कौशल, डीईओ
मैं तो डेढ़ साल पहले ही आई थी। आते वक्त ही दरारें देखी थी, शिकायत की तो ठेकेदार ने रिपेयर किया था। रिपेयरिंग सालभर चली। फिर से दरारें हो चुकी है। खिड़कियां भी निकलने लगी है। पार्षद को लिखकर दे दिया है।
प्रतीभा लाड, प्रिंसिपल
काली मिट्टी से परेशानी
पिछले साल भी दरार थी जो रिपेयर कर दी थी। दरारों की वजह काली मिट्टी है। जहां स्कूल बना है वहां काली मिट्टी ज्यादा है जिसके कारण स्कूल ही नहीं सामने की फीडर रोड भी क्षतिग्रस्त होने लगी है। वह तो मैंने नहीं बनाई है।
गौरव दुबे, ठेकेदार
काम में गड़बड़ तो है
मालवा कन्या की दीवारों में दरारे हैं?
हां, 2015 में जब मैं चुनकर आया था तभी से दरारे हैं तब तो बिल्डिंग को एक साल भी नहीं हुआ था।
पार्षद बनने के बाद क्या किया?
शिकायत की।
निराकरण हुआ क्या?
उस वक्त के अधिकारियों ने लीपापोती कर दी।
स्कूल बनाते वक्त गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा?
हां, काम गलत किया है ठेकेदार ने।
शिक्षा समिति प्रभारी रहते आपने क्या कार्रवाई की?
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में ले लिया है।
ऐसे ठेकेदार ब्लैकलिस्टेड क्यों नहीं होते?
अब क्या करें।
मतलब दीवारें ऐसी ही दरकती रहेगी?
नहीं, मैं एक-दो दिन में रिपेयरिंग करवाता हूं।
शंकर यादव, प्रभारी
शिक्षा समिति

एसवीएल के स्टाफ से लेकर गेस्ट तक की पार्किंग सड़क पर


रघुवंशी परिवार ने बिना पार्किंग बना दी 18 कमरों होटल
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
भू-माफिया भरत रघुवंशी ने तपेश्वरी बाग में दो प्लॉट जोड़कर जो होटल बनाई है उसमें पार्किंग नाम की चीज ही नहीं है। 18 कमरों की इस होटल में गेस्ट तो दूर स्टाफ की पार्किंग के लिए ही जगह नहीं है। सारी पार्किंग एमआर-10 की सर्विस रोड पर हो रही है जिसे रेडीसन चौराहे को प्रयोगशाला बनाकर बैठे नगर निगम और ट्रेफिक पुलिस दोनों नजरअंदाज कर रहे हैं।
तपेश्वरी बाग के प्लॉट नं. 134 और 135 को जोड़कर कैसे बेसमेंट+जी+3 एसवीएल होटल तान दी है इसका खुलासा दबंग दुनिया ने रविवार को ‘रेडिसन चौराहे पर बना अवैध एसवीएल होटल’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। दोनों प्लॉट भरत रघुवंशी के बेटे प्रदीप रघुवंशी और कपिल रघुवंशी उर्फ विक्की के हैं। खुलासे के बाद से तपेश्वरी बाग के रहवासियों ने होटल से जुड़ी शिकायतों से अवगत कराना शुरू कर दिया। रहवासियों की बड़ी दिक्कत है होटल की अवैध पार्किंग जो कि सर्विस रोड पर की जाती है। जिससे कॉलोनी में आना-जाना मुश्किल होता है।
पहले भी हो चुकी है शिकायत
रहवासियों ने बताया कि रघुवंशी परिवार का क्षेत्र में दबदबा है। केबल नेटवर्क का कारोबार करते-करते अब डिश एंटिने के डिस्ट्रीब्यूटर बन चुके हैं। क्षेत्र की अवैध कॉलोनियों में कई प्लॉट हैं। जो होटल बनाई है उसकी शिकायत शुरुआती दौर से विजयनगर जोन पर कर चुके हैं लेकिन मिलीभगत के कारण अधिकारी कार्रवाई नहीं करते।
गुंडागर्दी करते हैं
1 मार्च 2016 को हुई जनसुनवाई के दौरान सुरेश चंदेल ने मिठाई के डिब्बे के साथ विक्की रघुवंशी और उसके साथियों की शिकायत की थी। शिकायत के अनुसार शीतल नगर में 18 साल से उनकी साइकिल की दुकान है। कुछ समय पहले क्षेत्र के ही विक्की रघुवंशी नामक व्यक्ति ने इसके आगे कब्जा करते हुए चार दुकानें बना दी हैं। इसके कारण उनका धंधा ठप हो चुका है। वे इसकी शिकायत निगम, पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों से कर चुके हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद कलेक्टर ने निर्देश पर निगम ने दुकान तोड़ी थी। 

रिपल्स की एडवाइज से सैकड़ों निवेशक औंधे

- फेक कॉल्स और एसएमएस से दी फर्जी टिप्स
- न पुलिस कुछ कर रही है, न सेबी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मैसेज, वॉट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक जैसे अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिये निवेशकों को सलाह देने वालों के खिलाफ सेबी सख्त है। बावजूद इसके संजीव कुमार, राखी राजपूत और सूचित्रा तौमर की रिपल्स एडवायजरी प्रा.लि. जैसी कंपनियां इन्वेस्टमेंट एडवाइज के नाम पर लोगों की जेब काट रही है। कंपलेंट बोर्ड और कन्ज्यूमर कंपलेंट जैसी वेबसाइट पर कंपनी के खिलाफ ढेरो शिकायतें दर्ज है वहीं कंपनी के हाथों लुटाए लोग शिकायतें लेकर पुलिस के चक्कर काट रहे हैं। कोई सुनवाई नहीं होती।
इनवेस्टमेंट एडवायजरी कंपनी के रूप में रिपल्स एडवायजरी प्रा.लि. 30 मई 1989 से पंजीबद्ध है।  2015 से सक्रियता चरम पर। सेबी से पंजीकृत (आईएनए000003049) कंपनी एनएसई, बीएसई स्टॉक केश, एफएंडओ, एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स, ग्लोबल कमोडिटी के साथ ही एग्रो कमोडिटी में इन्वेस्टमेंट के लिए कंपनी हाईस्पीड एसएमएस गेटवे के माध्यम से लाइव इन्वेस्टमेंट टिप्स देती है। ताकि निवेशकों को नुकसान न हो। ज्यादा से ज्यादा फायदा हो। हालांकि कंपनी के ऐसे दावे सिर्फ लोगों को लुभाने के लिए ही हैं। असल में कंपनी की टिप्स ने कई के घर उजाड़ दिए हैं। कई की जमा पूंजी डूबो दी।
फायदे का वादा, नुकसान ज्यादा
कंपनी की लुभावाने वादों का शिकार हुए कुछ लोगों ने दबंग दुनिया के समक्ष अपनी बात रखी। प्रदीप गुप्ता ने बताया कि मुझे कंपनी की ओर से धनंजय का फोन आया था। मैंने भी रजिस्ट्रेशन करवाया। एक लाख रुपए लगाए लेकिन आखिर में हाथ आए दो-चार हजार। बाद में कंपनी के कारिंदे फोन तक नहीं उठाते। 11 मार्च 2017 को की गई विशाल गीते की शिकायत के अनुसार कंपनी रजिस्टेÑशन के लिए बहुत फोन लगाते हैं। मीठी बाते करते हैं। फिर कहते हैं आपकी प्रोफाइल सिलेक्ट हो गई। फिर पैसे मांगते हैं। प्रोफिट तो छोड़ो फर्जी टीप्स देकर मुझे 50 हजार का नुकसान करवाया।
कंपनी को प्रतिबंधित करने की जरूरत
एक अन्य शिकायकर्ता विजय पंडिया का कहना है कि कंपनी को प्रतिबंधित करने की जरूरत है ताकि आगे से किसी को धोखा न दे पाए। यह कंपनी कम गरीबों के पैसे हजम करने वाली गैंग ज्यादा है। सेबी इन पर कार्रवाई भी नहीं करता। कंपनी का पुराना पता 267 बी संगमनगर है जबकि नया कॉर्पोरेट पता है 601-602 शगुन आर्केड विजयनगर दर्ज है। मुझे कंपनी के पीयूष और कृष्णा ने मेम्बर बनाया था।
फेक कॉल्स और एसएमएस भी करती है कंपनी
भोपाल निवासी बसंत ताम्रकर ने भी शिकायत की थी। शिकायत के अनुसार शुरुआत में जो टिप्स दी जाती है वह सटिक बैठती है। ताकि व्यक्ति को मुनाफा दिखे। वह लालच में आए। ज्यादा पैसा लगाए। मैंने भी पैसा लगाया। कंपनी लो एक्यूरेसी, स्लो रिस्पॉन्स, फेक कॉल्स और खराब टिप्स के कारण मुझे 7 लाख रुपए का नुकसान हुआ है। कंपनी टिप्स के लिए पैकेज भी देती है। किसी एक पैकेज से फायदा मिला। आप ललचाए तो आगे महंगा पैकेज। ऐसे ही आगे बड़ी रकम ली जाती है।
लुटाए निवेशकों की पीड़ा
इनकी इन्वेस्टमेंट क्या है। पैसा तो आप लगा रहे हो। यह तो कहते हैं आप पैसा लगाओ, प्रोफिट हो जाएगा। 10 हजार का प्रॉफिट करवाया तो 20 हजार का पेक पकड़ा देंगे। 20 का प्रोफिट दिया तो 40 हजार का पेक। ऐसे आप तक पूंजी वापस आने देते नहीं लेकिन आपसे पूंजी लगवाते जरूर रहते हैं।
नुकसान हुआ और आप घबराए तो कहेंगे कि यह टिप्स मिस हो गई।  पैसा आपका है। रिस्क आॅपकी है। सर्विस चार्ज लेते हैं। फोन पर सर्विस देते हैं। आपका इन्वेस्टमेंट रिफंडेबल तो है नहीं। वह तो कह देंगे अगली कॉल दे देता हूं। स्योर शॉट प्रोफिट होगा। फेल हो गई तो आप क्या करोगे।
इसीलिए निवेशक कुछ बोल नहीं पाते...
पुलिस कंपलेन में दिक्कत : निवेशकों को कंपनी कहीं लिखकर नहीं देती है कि वह आपको प्रॉफिट कराकर देगी ही। मार्केट टू सब्जेक्ट रिस्क है...। यह सभी जानते हैं। पुलिस के पास जाएंगे वह कहेंगे तुम पागल या अनपढ़ हो क्या जो कि खूली चेतावनी नजर नहीं आती।
सेबी में दिक्कत : सेबी इन कंपनियों का पंजीयन करती है लेकिन यह कहीं नहीं कहती कि आप इनके माध्यम से पैसा लगाओ। 

निगम की छाती पर तान दिया घर की जगह मार्केट

पहले मुख्यालय से 100 मीटर दूर बिल्डिंग बनाई, अब 10 मीटर दूर, हरियानी की मनमानी
 इंदौर. विनोद शर्मा ।
पशु पालकों के बाड़े, गरीबों के झौपड़े और गुंडों के घर रौंदकर शहर साफ करने का दम भरने वाले अफसरों की छाती पर भू-माफियाओं ने अवैध बिल्डिंग तान दी। बिल्डिंग निगम प्रशासन के लिए किसी खुली चुनौती से कम नहीं है। बावजूद इसके अपने ऐसी कैबिन की खिड़की से साफ नजर आती इस बिल्डिंग को निगम के सख्ती पसंद अधिकारी नजरअंदाज करते आ रहे हैं।
मामला नगर निगम रोड स्थित प्लॉट नं. 84 का है जो कि नगर निगम मुख्यालय के एमजी रोड वाले गेट से दस कदम की दूरी पर है। यहां दिलीप पिता बालकृष्ण सोलंकी, दिनेश बालकृष्ण सोलंकी, जितेंद्र बालकिशन सोलंकी और प्रीति पति हसमुखलाल राठौर के नाम पर 17 नवंबर 2016 को नगर निगम ने नक्शा (4004/आईएमसी/जेड3/वार्ड57/2016) मंजूर किया था। नक्शे के अनुसार 1214.15 वर्गफीट के इस प्लॉट पर कुल 1646.97 वर्गफीट आवासीय निर्माण किया जा सकता था। इसके मौके पर व्यावसायिक बिल्डिंग तान दी गई है। इस बिल्डिंग में नीचे दुकानें निकाल दी गई। शटर तक लगा दी गई लेकिन निगम के अफसरों की नींद नहीं खूली।
हरियानी की खुली चुनौती
जगदीश छाबड़ा के साथ निगम मुख्यालय से 100 मीटर दूर 475-476 एमजी रोड जोड़कर बिल्डिंग बनाने वाला अशोक हरियानी सोलंकी के इस प्लॉट पर बिल्डिंग बना रहा है। अवैध निर्माण के आदी हो चुके हरियानी ने अबकी बार निगम मुख्यालय से 10 मीटर दूर ही मनमानी बिल्डिंग बना दी। ऐसे में लोग जहां उसकी हिम्मत को सलाम ठोक रहे हैं वहीं महापौर के साथ उन अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं जिनकी सख्ती के कसीदे शहर से लेकर समाचार पत्रों तक में सुर्खियों में रहते हैं।
कैसे बन गई दुकानें...
113.05 वर्गमीटर प्लॉट में से 0.71 वर्गमीटर के रोड सेटबेक छोड़कर 112.34 वर्गमीटर कुल 153.35 वर्गमीटर निर्माण करना था। ग्राउंड फ्लोर पर 51.12, पहली मंजिल पर 51.12 औ दूसरी मंजिल पर 51.12 वर्गमीटर निर्माण होना था।
स्वीकृत नक्शे में ग्राउंड फ्लोर पर फ्रंट में कीचन, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम। पीछे स्टेयर और टॉयलेट। बीच में 193.22 वर्गफीट का ओपन टू स्कॉय (ओटीएस छोड़ा जाना था व रोशनी-वेंटीलेशन के लिए)। पहली मंजिल पर फ्रंट में लाउंज, दो बेडरूम और दूसरी मंजिल पर भी लाउंज, दो बेडरूम। इसके विपरीत सोलंकी और हरियानी की जोड़ी ने ग्राउंड फ्लोर पर दुकानें बना दी। ऊपर भी कमर्शियल बना दिया।
आधा दर्जन शिकायतें दर्ज.. फिर भी बिल्डिंग बरकरार
बिल्डिंग को लेकर अली असगर ने 18 जुलाई को सीएम हैल्पलाइन पर शिकायत (4257332) दर्ज कराई। हैल्पलाइन पर दूसरी शिकायत 19 जुलाई को (4261839) देवीसिंह ने दर्ज कराई। वहीं तीसरी शिकायत (4565) 56 ग्रेटर वैशाली निवासी रवि राव ने नगर निगम आयुक्त कार्यालय में जाकर दर्ज कराई। इसके अलावा जनसुनवाई में भी शिकायतें हो चुकी हैं लेकिन कार्रवाई नहीं होती।
अफसरों की पार्टनरशीप में बनी बिल्डिंग
शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि अशोक हरियानी के प्रोजेक्ट में निगम के अफसरों की भागीदारी है। इसीलिए अशोक हरियानी के किसी प्रोजेक्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। हर प्रोजेक्ट में जबरदस्त अवैध निर्माण है। आवासीय इमारतों को व्यावसायिक बनाकर बेचा जा रहा है। 

निगम को एनेस्थेसिया देकर डॉक्टरों ने कर दी कायदों की सर्जरी

- कानूनी किताबों से कोसों दूर है दर्जनभर हॉस्पिटल की बिल्डिंग
इंदौर. विनोद शर्मा ।
भू-माफियाओं और भूमि भक्तों के कारण इंदौर पहले ही बदनाम था। अब भगवान का दर्जा प्राप्त शहर के डॉक्टर भी इन्हीं भू-माफियाओं के नक्शे कदम पर चल पड़े हैं। नगर निगम को एनेस्थेसिया का डोज देकर डॉक्टरों ने मनमाने अस्पताल तान दिए। राजनीतिक-अधिकारिक संबंधों की ओटी में कायदों की ऐसी सर्जरी की कि शिकायत करते-करते शिकायतकर्ता ही वेंटिलेटर पर आ गए लेकिन इनके मर्ज का आॅपरेशन नहीं हो पाया।
शहर में नक्शे के विपरीत घर बनते थे..। दुकानें बनती थी..। बंगले बने..। मल्टियां बनने लगी..। फिर अस्पताल और नर्सिंग होम कैसे पीछे रहते..। डॉक्टर भी इंसान है..। फिर क्या था डॉक्टरी की किताबें किनारे पटकी...। भू-माफियाओं से सलीखे सीखे...। शुरू कर दिया अस्पताल बनाना...। ईमानदारी को ठेंगा दिखा चुके निगम के अफसर आएं भी...। उनसे ले-देकर वैसे ही निपटा गया जैसे भू-माफिया निपटते आए हैं...। शायद यही वजह है कि अस्पताल के नाम पर बनने वाली हर दूसरी बिल्डिंग कायदों की किताब से मेल नहीं खाती। फिर मामला सुखलिया चौराहे पर दो प्लॉट जोड़कर बनाया गया डॉ. सुनील बारोड़ का हॉस्पिटल हो या 10 गुमाश्तानगर में ओपन टू स्कॉय(ओटीएस) व एमओएस कवर कर बनाया जा रहा हॉस्पिटल। प्लॉटों को जोड़कर फैलाया गया विजयनगर का भंडारी हॉस्पिटल हो या फिर अन्नूपर्णा रोड का यूनिक हॉस्पिटल।
बारोड हॉस्पिटल
पं.दीनदयाल उपाध्यायनगर  के प्लॉट नं. 28 व 29 एएच पर शालीग्राम बारोड और उनके परिवार के नाम दो अलग-अलग नक्शे मंजूर हुए। 10-10 प्रतिशत कमर्शियल यूज मंजूर हुआ। बावजूद इसके हॉस्पिटल बनाकर डॉ. सुनील बारोड ने 100 प्रतिशत कमर्शियल इस्तेमाल किया। दोनों प्लॉटों पर कुल 11599.2 वर्गफीट निर्माण मंजूर हुआ जबकि 44708.2 ने वर्गफीट का हॉस्पिटल तान दिया। मतलब 33109 वर्गफीट निर्माण अवैध। कार्रवाई के नाम पर नगर निगम ने सिर्फ नोटिस दिए।
10 गुमाश्तानगर
डॉ. मून पति भरत कुमार जैन, डॉ. शंकरलाल पिता पन्नालाल गुप्ता और डॉ. प्रमीला पति शंकरलाल गुप्ता के नाम दर्ज प्लॉट नं. 10 गुमाश्तानगर पर नगर निगम ने 21 अक्टूबर 2016 को बिल्डिंग पर्मिशन (3755/आईएमसी/जेड1/डब्ल्यू83/2016) जारी की थी। 5987.22 वर्गफीट के इस प्लॉट पर 1.5 एफएआर के साथ 8980.89 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई। 1975.83 वर्गफीट के स्थान पर 3600 वर्गफीट ग्राउंड कवरेज किया गया है। 4011.39 वर्गफीट का जो हिस्सा एमओएस के लिए छोड़ा जाना था उसके 1624.17 वर्गफीट हिस्से पर भी कब्जा किया जा चुका है।
दादा निर्भयसिंह हॉस्पिटल
भंवरकुआं क्षेत्र स्थित भोलाराम उस्ताद मार्ग पर दादा निर्भय सिंह मेमोरियल हॉस्पिटल चल रहा है। अस्पताल पीपल्याराव गांव की सर्वे नं. 166/1/1 और 166/2 की 0.664 हेक्टेयर जमीन के बड़े हिस्से पर बना है। राजस्व रिकॉर्ड में जमीन शहरी सीलिंग की दर्ज है। बिना किसी नक्शे के जी+2 हॉस्पिटल चल रहा है। 30 बेडेड इस हॉस्पिटल में पार्किंग तक नहीं है। अस्पताल को भी प्लॉट जोड़कर बनाया गया है।
महावीर हॉस्पिटल, फूटीकोठी
महावीर हॉस्पिटल स्कीम-71 के प्लॉट 2-ए पर चल रहा है। नगर निगम के दस्तावेजों की मानें  371.55 वर्गमीटर के इस प्लॉट पर  चेतना सुरेंद्र कुमारी तर्फे मित्र मंडल सार्वजनिक सहकारी चिकित्सालय के नाम  14 जून 1996 को इमारत का दाखला नं. 812  मंजूर हुआ। दाखले के मुताबिक बी+जी+एम+3+पेंट हाउस की बिल्डिंग बनना थी। कुल 802 वर्गमीटर निर्माण मंजूर हुआ था जबकि हुआ 2154.31 वर्गमीटर। 315 वर्गमीटर की पार्किंग अलग। नगर निगम ने 31 मार्च 1993 को (जो कि दाखला मंजूरी से भी तीन साल पहले की तारीख है) नोटिस (नं. 3040) और 5 फरवरी 1997 को नोटिस (नं. 536) और 30 नवंबर 2011 में नोटिस ( नं. 294) थमाया गया था।
भंडारी हॉस्पिटल
मप्र भूमि विकास अधिनियम और मास्टर प्लान 2021 सहित तमाम कानूनी प्रावधान दो या दो से अधिक प्लॉटों को जोड़कर किसी बिल्डिंग को बनाने की इजाजत नहीं देते। बावजूद इसके निगम प्रशासन की मेहरबानी से भंडारी हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर स्कीम-54 के प्लॉट नं. 21, 22 और 23 ‘जीएफ’ को जोड़कर बनाया गया है। अस्पताल पहले एक बिल्डिंग में था। एक से दो में बढ़ा और अब दो से तीन में आ चुका है।
एप्पल हॉस्पिटल
भंवरकुआं मेनरोड स्थित एप्पल कस्बा इंदौर के सर्वे नं. 1618/3/1, 1618/3/2, 1619/1 और 1619/2 की 0.170 हेक्टेयर (18258 वर्गफीट) पर बना हुआ है।  फ्रेंड्स यूनिटी हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर प्रा.लि. के हॉस्पिटल जिस बिल्डिंग में करीब 180 बेड का सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल संचालित कर रहा है किसी भी नक्शे में उसे अस्पताल के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है। 26 फरवरी 2011 को टीएंडसीपी ने वाणिज्यियक प्रयोजन के लिए ले-आउट मंजूर किया था। ले-आउट 18 मीटर(60 फीट) ऊंची बिल्डिंग का मंजूर हुआ था जबकि बिल्डिंग बनी ॅकरीब 27 मीटर (90 फीट) ऊंची। नगर निगम तक ने करीब 30195 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी थी जबकि हॉस्पिटल बना है तकरीबन 73855 वर्गफीट पर। 26 हजार वर्गफीट का अंतर तो निगम भी संपत्तिकर में निकाल चुका है।
सुयश हॉस्पिटल
5/1 रेसीडेंसी एरिया पर सुयश हॉस्पिटल बना हुआ है। 13532.4 वर्गफीट के प्लॉट पर बना यह हॉस्पिटल शहर के प्रमुख हॉस्पिटल्स में से एक है।  बिल्डिंग में पेंटहाउस और केंटिन के साथ पार्किंग का निर्माण भी अवैध है। पेंटहाउस को मंजिल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। बेसमेंट+जी+मेजनाइन+३+पेंट हाउस बनना था। कुल 802 वर्गमीटर का निर्माण बताया गया जो तमाम मंजिलों का क्षेत्रफल जोड़ने के बाद 2154.31 वर्गमीटर होता है। पूर्व पार्षद परमानंद सिसोदिया ने सुप्रीमकोर्ट में जिन 170 इमारतों के खिलाफ केस लगाया था उनमें हॉस्पिटल की बिल्डिंग भी शामिल थी।
क्योरवेल हॉस्पिटल
बीते साल हुए गैस सिलेंडर में विस्फोट के बाद क्योरवेल हॉस्पिटल प्रा.लि. की मनमानी सामने आई। पता चला कि अस्पताल न्यू पलासिया के तीन प्लॉट (19/1 सी, 19/बी और 19/4/1) को जोड़कर बनाया गया है। प्लॉट अभय, दिलीप, विमल पिता गेंदालाल सुराना के नाम है। बेसमेंट में पार्किंग की जगह जनरल वार्ड बना दिया गया है। अस्पताल में पार्किंग नाम की चीज नहीं है।
यूनिक हॉस्पिटल
हॉस्पिटल्स के खिलाफ 6 जुलाई 2017 को सबसे ताजी शिकायत दर्ज हुई। कांग्रेस नेता सन्नी पठारे द्वारा की गई शिकायत के अनुसार जोन-15, वार्ड-71 के तहत आने वाले अन्नपूर्णा रोड के प्लॉट नं. 715 और 716 को गैरकानूनी रूप से जोड़कर 100 बेडेड यूनिक हॉस्पिटल बनाया गया है।  हॉस्पिटल परिसर में पार्किंग के नाम पर जो बेसमेंट बना है उसमें केंटिन चल रही है। चिकित्सा के अन्य विभाग खोल दिए गए हैं। नक्शे के विपरीत भी काफी निर्माण है।
सीएचएल कैंसर हॉस्पिटल
सीएचएल हॉस्पिटल की कैंसर यूनिट जिस प्लॉट पर चल रही है उस प्लॉट पर कभी व्यावसायिक नक्शा पास न तो नगर निगम ने किया है। न ही टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ने। 142 फडनीस कॉलोनी स्थित 11 हजार वर्गफीट जमीन पर नक्शा 2008 में मंजूर हुआ था। सूत्रों के अनुसार नक्शा आवेदन में अस्पताल के एक संचालक ने शपथ-पत्र देकर कहा था कि वे स्वयं के इस्तेमाल के लिए आवासीय निर्माण करेंंगे। बाद में उसे कैंसर हॉस्पिटल बना दिया गया। नगर निगम ने रिमूवल के नोटिस भी दिए लेकिन तोड़Þफोड़ हुई नहीं।
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अधिकारी कसम खा चुके हैं, कार्रवाई नहीं करेंगे...
जो अस्पताल पूर्व में बन चुके हैं मैं उनमें नहीं जाना चाहता कि क्यों और कैसे बने? अब जो बन रहे हैं उन्हें भी नगर निगम के जिम्मेदार अफसर नजरअंदाज किए बैठे हैं। मास्टर प्लान 2021 में अस्पताल बनाने के लिए जो मापदंड दिए गए हैं 2008 के बाद बनने वाले एक भी अस्पताल में उनका पालन नहीं हुआ। 10 गुमाश्तानगर में अभी मामला अंडरकंस्ट्रक्शन है। शिकायत भी की लेकिन डॉक्टरों की मनमानी नजरअंदाज करने की कसम खाकर बैठे अफसरों ने झांककर देखा तक नहीं।
परमानंद सिसोदिया, पूर्व पार्षद

गोधा के हवेली को ‘गांधी’ की फर्जी आड़

सरकारी कार्रवाई से बचने के लिए ली सदस्यता, आवंटन पत्र
जेल तक जा चुके हैं संस्था संचालक
इंंदौर. विनोद शर्मा ।
गोधा इस्टेट और गोधा रियलिटी के नाम से बड़ा बांगड़दा में दो कॉलोनियां काट रहे कुख्यात भू-माफिया मनीष ‘मोनू’ गोधा  या उनके परिवार को पंचायत ने कोई पट्टा नहीं दिया। बल्कि गांधीनगर गृह निर्माण सहकारी संस्था चार प्लॉट आवंटित किए थे। अब जबकि सहकारिता विभाग गोधा परिकार को संस्था से बेदखल कर चुका है तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि सदस्यता समाप्त होने के बाद संस्था ने अपने प्लॉट का कब्जा क्यों नहीं लिया। क्यों मामले में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे संचालक।
28 जून 2016 को नीलेश मिश्रा ने सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत (2261044) दर्ज कराई थी जिसे हातोद के अधिकारियों ने ले-देकर रफा-दफा कर दिया था। सर्वे नं. 305 की सरकारी जमीन पर तनी हवेली के मामले में गोधा परिवार कहता है कि उसे बड़ा बांगड़दा पंचायत ने पट्टे पर उक्त जमीन दी थी। इस संबंध में जब पंचायत के सरपंच रहे मौजूदा पार्षद भगवान सिंह चौहान से बात की तो उन्होंने पंचायत स्तर पर दिए गए किसी भी पट्टे की बात नकार दी। उनका स्पष्ट कहना है कि गोधा का घर शुरू से सरकारी जमीन पर है शिकायतों के सिलसिले के बीच इसे बचाए रखने के लिए गोधा परिवार ने गांधीनगर संस्था की सदस्यता ली और संस्था ने चार आवंटन पत्र जारी कर दिए जो पूरी तरह फर्जी थे।
दो टुकड़ों में दिए चार ‘पट्टे’
संस्था से प्राप्त जानकारी के अनुसार दो हिस्सों में गोधा परिवार के नाम पर संस्था द्वारा तथाकथित पट्टे दिए गए थे। दो पट्टे किशन पुरोहित ने दिए थे और दो पट्टे नरेंद्र उर्फ टिम्मी बक्षी ने दिए थे। चारों पट्टे 30 बाय 60 के प्लॉट (1800 वर्गफीट) के थे। प्रभादेवी, विनोद गोधा, मनीष और सपना गोधा के नाम पर है यह तथाकथित पट्टे।
जेल भी होकर आए बक्षी-पुरोहित
मामले में तमाम दस्तावेजी प्रमाण जुटाकर भगवानसिंह चौहान ने शिकायत की थी। एरोड्रम पुलिस ने मामला दर्ज किया और नरेंद्र बक्षी और किशन पुरोहित को जेल तक हुई। मनीष गोधा भी आरोपी था। पूरा मामला 2009-10 का है।
भगवानसिंह चौहान ने बताया कि मैं सरपंच रहा हूं और पंचायत राज अधिनियम के तहत किसी भी व्यक्ति को रहने के लिए 450 वर्गफीट से अधिक का पट्टा जारी नहीं किया जा सकता। गोधा परिवार ने अपने झूठ पर पर्दा डाले रखने के लिए संस्था की सदस्यता ली और आवंटन पत्र जारी करवाए।
शादी बाद में हुई, सदस्यता पहले मिली
्रफर्जीवाड़े को इस कदर अंजाम दिया गया कि हैदराबाद की रहने वाली सपना से मनीष की शादी जुलाई 2005 में हुई थी जबकि गांधीनगर संस्था उन्हें सदस्यता इससे पहले ही दे चुकी थी। पट्टा आवंटन भी  2005 से पहले ही हो चुका था। नियमानुसार पति या पत्नी में से किसी एक को ही सदस्यता दी जा सकती है जिसके नाम प्रदेश में कोई अचल संपत्ति न हो।
परिवार ने व्यंकटेशनगर में भी बनाया अवैध घर
मोनू के चाचा दिलीप पिता घिसालाल गोधा के नाम पर व्यंकटेशनगर का प्लॉट नं. 193 है जबकि उनकी पत्नी अर्चना देवी गोधा के प्लॉट नं. 192 है। एक-एक हजार वर्गफीट के दोनों प्लॉटों पर 58 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज के साथ 1164.96-1164.96 वर्गफीट निर्माण मंजूर हुआ था। जी+1 घर बनना था। गोधा परिवार ने दोनों प्लॉटों को जोड़ यहां भी हवेली बना दी।
कोई रिकार्ड नहीं है पट्टे का
पंचायत में गोधा परिवार को दिए किसी पट्टे का रिकार्ड नहीं है। न ही गोधा परिवार रिकार्ड दिखा पाया। घर सरकारी  जमीन पर कब्जा है जिसे हाउसिंग सोसायटी के आवंटन की आड़ देने की कोशिश की गई थी लेकिन षड़यंत्र उजागर हो चुका है। अब संस्था प्लॉट का कब्जा ले।
भगवान सिंह चौहान, पार्षद
हमने भी शिकायत कर दी है, कार्रवाई नहीं होती
संस्था द्वारा आवंटन पत्र दिए गए थे जिन्हें लेकर  सवाल भी उठते रहे हैं। वैसे भी जब सहकारिता विभाग इनकी सदस्यता समाप्त कर चुका है। मामले में करीब-करीब सभी संबंधित विभागों को शिकायत कर चुके हैं।
विक्रमसिंह चौहान, अध्यक्ष
गांधीनगर हाउसिंग सोसायटी

‘गांधी’ की गद्दी पर बैठकर पिता का प्लॉट पत्नी के नाम कर दिया गोधा ने

- 2004 में मौत, 2005 में शादी और नामांतरण 2010 में
इंदौर. विनोद शर्मा ।
सरकारी जमीन पर हवेली और अनैतिक कार्य के कारण गांधीनगर हाउसिंग सोसायटी से जिस मनीश उर्फ मोनू गोधा को बेदखल कर दिया था उसने संस्थाध्यक्ष रहते फर्जी तरीके से अपने पिता का प्लॉट अपनी पत्नी के नाम कर दिया। नामांतरण के लिए फाइल में जरूरी दस्तावेज तक नहीं है। इतना ही नहीं संस्था से जो चार प्लॉट आवंटित करवाए थे उनके नक्शे भी पंचायत या टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से नहीं बल्कि संस्था से ही पास करवा दिए।
इंदौर की सबसे बदनाम हाउसिंग सोसायटियों में से एक गांधीनगर सोसायटी इन दिनों पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष मनीश उर्फ मोनू गोधा और सरकारी जमीन पर तनी उनकी हवेली को लेकर चर्चा में है। इस कड़ी में संस्था सूत्रों ने गुरुवार को दबंग दुनिया को कुछ दस्तावेज उपलब्ध कराए जिन्होंने मोनू के कारनामों की कलई खोल दी। दस्तावेजों में एक नामांतरण प्रमाण-पत्र भी है जो कि 18 मई 2010 को हुई संस्था की बैठक के प्रस्ताव क्रमांक 3 और ठहराव क्रमांक 3 के अनुसार सपना गोधा के नाम जारी किया गया था जो कि मोनू की पत्नी है। प्रमाण-पत्र के अनुसार मोनू के पिता सुरेश पिता घीसालाल गोधा  निवासी संत मार्ग गांधीनगर का प्लॉट 56 सी उनकी मृत्यु पश्चात सपना गोधा के नाम किया गया। प्रमाण-पत्र पर मोनू और प्रबंधक फुलचंद पांडे के दस्तखत भी हैं।
संपत्तिकर की चोरी
गांधीनगर 2013-14 से नगर निगम में है। निगम के राजस्व रिकार्ड में  प्लॉट नं. 57-सी का खाता (पिन 40112900302) दर्ज है जो कि साधना पति मनीेष गोधा के नाम दर्ज है। खाते के अनुसार ग्राउंड फ्लोर पर 1000, पहली मंजिल पर 400 और पहली मंजिल-1 पर 1000 वर्गफीट निर्माण है। जबकि मौके पर इससे दोगुना निर्माण है। अभी 5545.0 रुपए/सालाना का संपत्तिकर बनता है जो कि डबल बनना था।
नामांतरण पर ऐसे उठे सवाल
- मनीष के पिता सुरेश गोधा की मृत्यु 2004 में हुई थी जबकि मनीष और सपना की शादी हुई जुलाई 2005 में।
- 2009-10 में मनीष संस्था का उपाध्यक्ष बना लेकिन अध्यक्ष के जेल जाने के बाद उसे कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। मई 2010 की जिस बैठक में नामांतरण प्रस्ताव मंजूर हुआ। मतलब पिता की मृत्यु के सीधे छह साल बाद।
- नियमानुसार ससूर की संपत्ति बहु के नाम वसीयतनामे के आधार पर ही हो सकती है। ऐसे में सवाल यह उठता कि दिवंगत सुरेश गोधा को क्या अपनी मृत्यु के एक साल पहले ही पता था कि मोनू की शादी सपना से ही होगी। जबकि मोनू की सगाई और शादी 2005 में हुई।
- नियमानुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति पर पहला अधिकार उनकी पत्नी का होता है। दूसरा बच्चों का। या सभी का बराबर का। ऐसे में सपना ने मृत्यु पश्चात हवाला देकर जो नामांतरण आवेदन किया था उस पर मोनू की मां प्रभादेवी और मोनाली की सहमति पत्र नहीं है।
संस्था ने प्लॉट दिए चार, दो नक्शे भी पास कर दिए
गांधीनगर हाउसिंग सोसायटी में सहकारिता विभाग के नियम तो लागू होते ही नहीं है? मप्र भूमि विकास अधिनियम भी लागू नहीं होता! इसीलिए किशन पुरोहित और नरेंद्र बक्षी ने बेकडेट में मनीष गोधा, प्रभादेवी गोधा, सपना गोधा और एक अन्य के नाम पर 1800-1800 वर्गफीट के चार प्लॉट आवंटित किए थे। बाद में संस्था ने ही इनमें से दो प्लॉट (मनीष पिता सुरेश गोधा के 56-ए और घिसालाल पिता गट्टूलाल गोधा के 56-सी) के नक्शे भी पास कर दिए। इनमें हर नक्शे पर ग्राउंड फ्लोर पर 1357 और फर्स्ट फ्लोर पर 1357 वर्गफीट निर्माण की मंजूरी दी गई थी। इन प्लॉटों को जोड़कर मनीष गोधा और विनोद गोधा की हवेली बनी है। नक्शों पर तारीख तो दूर वर्ष का भी जिक्र तक नहीं है। 

स्कीम 103 रहवासी संघ की चेतावनी बेअसर थारवानी ने घर की मंजूरी लेकर बना दी बिल्डिंग

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
दो या दो से अधिक प्लॉटों को जोड़कर बिल्डिंग बनाने वालों से स्कीम-103 रहवासी संघ परेशान है लेकिन तमाम नोटिस लगाए जाने और निगम को बार-बार शिकायतें करने के बाद भी क्षेत्र में मनमाने निर्माण रूक नहीं रहे हैं। इसी स्कीम के प्लॉट नं. 219 ‘बी’ पर 1300 वर्गफीट का नक्शा मंजूर कराकर प्लॉट मालिक ने करीब तीन हजार वर्गफीट की बिल्डिंग तान दी। बात यहीं खत्म नहीं हुई। स्वयं के घर का नक्शा मंजूर कराकर इस मल्टी की शक्ल देकर यहां तीन फ्लैट बेचे जा रहे हैं।
किशन पिता चेतनदास थारवानी के इस प्लॉट पर दो अलग-अलग नक्शे मंजूर हुए। 9 दिसंबर 2016 को मिली मंजूरी के अनुसार 884.86 वर्गफीट के इस प्लॉट पर कुल 996.13 वर्गफीट का जी+1 भवन मंजूर किया गय था। दूसरा नक्शा 25 मार्च 2017 को मंजूर हुआ। इस नक्शे में नगर निगम के जोन-13 के भवन अधिकारियों ने मेहरबानी दिखाई। जी+1 की मंजूरी को बढ़ाकर जी+2 की और 996.13 की जगह 1307.48 वर्गफीट निर्माण मंजूर कर दिया।  नक्शे और निर्माण दोनों पर स्कीम-103 रहवासी संघ ने भी आपत्ति ली लेकिन नगर निगम के अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की।
फिर हुआ मनमाना काम
-- 1307.48 वर्गफीट की कुल मंजूरी के तहत थारवानी को ग्राउंड फ्लोर पर डायनिंग-किचन, टॉयलेट, ओटीएस, बेडरूम और लिविंग रूम के साथ स्टेयरकेस मंजूर हुआ था। पहली मंजिल पर स्टरी रूम, टॉयलेट, दो बेडरूम, स्टेयरकेस। दूसरी मंजिल पर स्टरी रूम, एक बेडरूम और टॉयलेट-स्टेयर केस मंजूर हुआ। ऐसे कुल 4 बेडरूम का घर मंजूर हुआ। कुल 3 हजार वर्गफीट से ज्यादा निर्माण है। मतलब 1700 वर्गफीट अवैध।
-- सामने नौ मीटर की रोड है। फिर भी चूंकि बड़ा घर मंजूर हुआ था इसीलिए एमओएस सामने 3 मीटर और पीछे 1.50 मीटर छोड़ा जाना था जो कि शतप्रतिशत कवर कर लिया गया। अब पूरी बिल्डिंग में पार्किंग नाम की जगह नहीं बची है।
-- पार्किंग की पूर्ति करने के लिए थारवानी ने पास की सरकारी सड़क पर कब्जा कर लिया है। इसी सड़क की ओर स्टेयर निकाला है। इसका भी आसपास के लोग विरोध कर रहे हैं।
-- मौके पर थारवानी ने 311.35 वग्रफीट की जगह ग्राउंड कवरेज 800 वर्गफीट तक बढ़ा लिया। ग्राउंड फ्लोर पर तीन बेडरूम, हॉल, किचन, दो टॉयलेट और स्टेयरकेस बनाया। ओटीएस भी कवर किया। पहली और दूसरी मंजिल पर भी इसी तरह का निर्माण किया गया। यानी कुल 4 बेडरूम के घर को 3 बीएचके के तीन फ्लैट के रूप में बनाकर बेचना शुरू कर दिया।
रहवासी संघ भी परेशान है..
स्कीम-103 के जितने प्रमुख प्रवेश द्वार है उन पर नोटिस बोर्ड लगे हुए हैं। नोटिस बोर्ड पर सावधान सूचना के साथ लिखा है कि इस कॉलोनी स्कीम-103 बी में कोई भी व्यक्ति द्वारा भूखंडों पर भवनों का निर्माण कर अलग-अलग मंजिल एवं एक भूखंड को अलग-अलग भागों में अलग-अलग व्यक्तियों को विक्रय करना अवैध माना जाएगा। कोई भी क्रेता किसी भी बिल्डर्स से अलग-अलग मंजिल प्रकोष्ठों के रूप में क्रय नहीं करें। अन्यथा नगर निगम इंदौर और विकास प्राधिकरण द्वारा उन पर तोड़ने की कार्रवाई की जाएगी। इस कॉलोनी में कोई भी व्यक्ति द्वारा कोई भंूखंड क्रय किया जाता है तो स्कीम-103 बी के रहवासी संघ से एनओसी जरूर प्राप्त करें।  

बीजेपी का हाथ, फिर निगम की क्या बिसात

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
475-76 एमजी रोड के बाद 84 नगर निगम रोड पर मंजूरी के विपरीत बिल्डिंग तानने वाले अशोक हरियानी पर भाजपा नेताओं की विशेष छत्रछाया है। उधर, नगर निगम में भी भाजपा सत्ता में है। इसका और केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत से लेकर वरिष्ठ भाजपा नेता प्रभात झा से नजदीकी का फायदा हरियानी को उसकी अवैध बिल्डिंगों में मिल रहा है। आधा-आधा दर्जन शिकायतों के बावजूद निगम मुख्यालय के नजदीक बनी इन अवैध इमारतों पर कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा  रहा है।
नगर निगम द्वार से 10 मीटर दूर दिलीप पिता बालकृष्ण सोलंकी, दिनेश बालकृष्ण सोलंकी, जितेंद्र बालकिशन सोलंकी और प्रीति पति हसमुखलाल राठौर के प्लॉट नं. 84 नगर निगम रोड पर अशोक हरियानी ने आवासीय नक्शा मंजूर कराकर कैसे मार्केट तान दिया? इसका खुलासा गुरुवार को ‘निगम की छाती पर घर के नाम पर ताना मार्केट’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में दबंग दुनिया ने किया था। निर्माण के साथ ही सवाल यह भी उठा कि आखिर अशोक हरियानी की अवैध इमारतों पर निगम कार्रवाई करने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पा रहा है? जब इसका जवाब तलाशने की कोशिश की तो पता चला कि हरियानी की भाजपा नेताओं के साथ अच्छी बैठक है।
फेसबुक पर भी झांकीबाजी
हरियानी के फेसबुक अकाउंट पर केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गेहलोत, वरिष्ठ भाजपा नेता अरविंद मेनन, प्रभात झा के साथ फोटो डाल रखे हैं। इन फोटो में कहीं वे वरिष्ठ नेताओं का मुंह मीठा करा रहे हैं तो कहीं वरिष्ठ नेता उनका मुंह मीठा करा रहे है।
अधिकारी मेहरबान..
भवन अधिकारी : विवेश जैन- कहते हैं मुझे जानकारी ही नहीं है।
भवन निरीक्षक : उमेश पाटीदार - फोन ही नहीं उठाते। 

हम तो ब्लैकमेलर नहीं है, फिर कार्रवाई क्यों नहीं करते अधिकारी

बिल्डरों की मनमानी और निगम-प्राधिकारी की अनदेखी से परेशान 103 के रहवासी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
इंदौर विकास प्राधिकरण या हाउसिंग बोर्ड की स्कीम से लेकर कॉलोनियों में हो रहे अवैध निर्माण पर नकेल कसना नगर निगम का काम है। इसके विपरीत निगम ने बिल्डरों को लूट की खूली छूट दे डाली है। ‘ब्लैकमेलर है’, कहकहर व्यक्तिगत शिकायतों को नजरअंदाज करते आ रहे निगम के आला अफसरान के कानों पर अब रहवासी संघों की शिकायतों से भी जूं नहीं रेंगती। इसका ताजा उदाहरण स्कीम-103 है। जहां रहवासी संघ की शिकायतों और चौतरफा सावधानी की चेतावनी लगाए जाने के बावजूद बिल्डरों की मनमानी बदस्तूर जारी है।
स्कीम-103 के 880 वर्गफीट के प्लॉट नं. 219 ‘बी’ पर किशन पिता चेतनदास थारवानी ने कैसे 1307 वर्गफीट की मंजूरी लेकर 3000 वर्गफीट निर्माण कैसे कर दिया? इसका खुलासा दबंग दुनिया ने शुक्रवार को ‘धरी रह गई स्कीम-103 के रहवासी संघ की चेतावनी’ शीर्षक से प्रकाशित खबर में किया था। इसके बावजूद दो दिन में नगर निगम ने किसी तरह की कार्रवाई नहीं की। उधर, रहवासी संघ ने बताया कि यह पहला मामला नहीं है, क्षेत्र में ऐसे 30 से ज्यादा मकान बन चुके हैं जिन्हें प्रकोष्ठ के रूप में रजिस्टर्ड कराकर बेचा गया है। इनके खिलाफ दो साल से लगातार शिकायतें कर रहे हैं। शुरु में तो निगम अफसर आते भी थे मौका देखने, अब तो बेशर्मी इतनी है कि झांकना तक पसंद नहीं करते।
इन प्लॉटों पर भी मनमाना काम
प्लॉट नं. 7 बी और 8 बी पर बन रही बिल्डिंगों का। इन दोनों बिल्डिंगों में हो रहे निर्माण को रहवासी संघ की आपत्ति पर शुरू से यह कहा जा रहा था कि स्वयं का उपयोग होगा। परिवार बड़ा है, इसीलिए घर भी बड़ा है। अब बिल्डरों ने इन घरों को प्रकोष्ठ के रूप में बेचना शुरू कर दिया है।
शिकायतें करते-करते थक गए...
सबसे ज्यादा दिक्कत सेक्टर बी में है। यहां जमीन के भाव आसमान छू रहे हैं जो बिल्डरों के लालच की बड़ी वजह है। एक के बाद एक मनमाने भवन बनने के बाद हमने सावधानी के चौतरफा नोटिस बोर्ड भी लगाए। कोई असर नहीं। फिर निगम को शिकायतें की। जनसुनवाई में गए। महापौर से मिले। निगमायुक्त से मिले। कलेक्टर से मिले। आईडीए अध्यक्ष-सीईओ से मिले। कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सरोज अग्रवाल, रहवासी संघ
भविष्य तो सुनिश्चित करे निगम
जो मकान बन चुके हैं उन पर कार्रवाई हो न हो लेकिन नगर निगम यह तो सुनिश्चित कर दे कि भविष्य में ऐसे मनमाने भवन नहीं तनेंगे। तनेंगे तो कार्रवाई होगी। नगर निगम, कलेक्टर और आईडीए सभी की भूमिका अभी तक उदासीन रही है। जिला पंजीयक की भूमिका भी संदिग्ध है जो व्यक्तिगत उपयोग के घरों को प्रकोष्ठ के रूप में पंजीकृत कर रहा है।
जी.एस.मल्होत्रा, अध्यक्ष
स्कीम 103 बी रहवासी संघ
नर्क बना देंगे ऐसे तो...
स्कीम-103 पूर्णत: आवासीय स्कीम है। जहां प्लॉटों की संख्या और वहां रहने वाले परिवारों की औसत संख्या के लिहाज से प्राधिकरण ने सुविधाएं विकसित की है। एक प्लॉट पर एक परिवार ‘छोटा हो या बड़ा’ रहे तो भी फर्क नहीं पड़ता लेकिन एक प्लॉट पर दो डुप्लैक्स या फिर चार-छह फ्लैट बेचकर इतने परिवारों को बसा दें तो भविष्य में सुविधाओं का कम पड़ना भी तय है।
इसका असर अभी से दिखने लगा है। लोगों ने पार्किंग मंजूर कराई। छोड़ी नहीं। फ्लैट बेच दिए। अब घर के सामने सड़कों पर पार्किंग हो रही है। पहले ही इस स्कीम की सड़कें सकड़ी है। वाहनों के आने-जाने की जगह बची नहीं। रोक नहीं लगी तो आगे सीवरेज और पेयजल की मारामारी भी बस्तियों सरीकी नजर आएगी। ऐसे में 40 से 70 लाख रुपए लगाकर प्लॉट खरीदने के बाद अब संभ्रांत परिवार के लोग ठगाए हुए महसूस कर रहे हैं।
इन्होंने बिगाड़ा बाड़ा...
शंकर डोडेजा और राजेश जैन के साथ थारवानी व अन्य कुछ बिल्डर क्षेत्र के आदतन अपराधी हैं जो एक के बाद एक मकान को मल्टी बनाकर बेच रहे हैं। इनकी नकल और भी लोग मारने लगे हैं।
क्यों बेचते हैं...
क्षेत्र में प्लॉट का रेट औसत 4000 रुपए वर्गफीट है। मतलब 1000 वर्गफीट प्लॉट 40 लाख का। रजिस्ट्री सहित करीब 45 लाख का।
ज्यादा से ज्यादा 70 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज के साथ एक प्लॉट पर 1400 वर्गफीट निर्माण मंजूर होता है। 1200 रु./वर्गफीट की कंस्ट्रक्शन कॉस्ट से 16.80 लाख में घर तैयार हो जाता।
लोगों ने इसमें ग्राउंड कवरेज बढाÞकर 1400 की जगह 3 हजार वर्गफीट निर्माण किए। तीन-चार-छह फ्लैट बेचे। एक फ्लैट 750 वर्गफीट है मतलब 3500 रु./वर्गफीट के हिसाब से भी 26.25 लाख में बिका। चार फ्लैट 1.05 करोड़। जबकि 3 हजार वर्गफीट की लागत आई 36 लाख। प्लॉट कीमत 45 लाख। विशुद्ध कमाई हुई 24 लाख की। 2-4 लाख की घूस अधिकारियों को देकर यह कमाई का जरिया बन गया।

रेडीसन चौराहे पर अवैध एसवीएल होटल

दो प्लॉट जोड़े, बेसमेंट भी मनमाना
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जिला प्रशासन, नगर निगम और पुलिस प्रशासन जिस रेडीसन चौराहे को संवारने में लगे हैं उसी चौराहे के पास लोगों ने अवैध कॉलोनी में घर बनाते-बनाते चार मंजिला होटलें बनाना शुरू कर दी है। तपेश्वरी बाग के दो प्लॉट जोड़कर तानी गई एसवीएल होटल इसका शुरुआती उदाहरण है। आॅनलाइन बुकिंग कंपनियों और ट्रेवल एजेंसियों की वेबसाइट पर छाई इस होटल के लिए न तो नगर निगम से कोई अनुमति ली गई है और न ही अन्य किसी विभाग से।
मामला जोन-8 के वार्ड-37 की तपेश्वरी बाग कॉलोनी में बनी एसवीएल होटल का है।  होटल की शिकायत नंदानगर निवासी ओमप्रकाश उर्फ पप्पू मालवीय ने की है। शिकायत के अनुसार होटल भू-माफिया भरत रघुवंशी और उनके बेटों की है। इस होटल में मप्र भूमि विकास अधिनियम से लेकर मास्टर प्लान 2021 को सिरे से नकारते हुए मनमाने तरीके से बेसमेंट+जी+3 बिल्डिंग बना दी गई है। बिल्डिंग तपेश्वरी बाग के प्लॉट नं. 134 और 135 पर बनाई गई है। होटल के पास मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) से भी कोई अनुमति नहीं है।
कई बार शिकायतें की, कार्रवाई नहीं हुई
शिकायकर्ता पप्पू मालवीय ने बताया कि जब संयुक्तिकरण प्रतिबंधित है तो फिर दो प्लॉटों को जोड़कर होटल बनाने की अनुमति नगर निगम कैसे दे दी? दोनों प्लॉट के संपत्ति कर के खाते जब खोले गए तब अधिकारियों ने बिल्डिंग की वैधानिकता की जांच क्यों नहीं की? रघुवंशी परिवार ने होटल को अय्याशी का गढ़ बना दिया है। आसपास के लोगों ने शिकायतें कई की लेकिन निगम के मैदानी अमले ने कार्रवाई नहीं की।
18 साल में तीन बार ही भरा संपत्तिकर
नगर निगम राजस्व विभाग के अनुसार दोनो प्लॉट से 43 रुपए/वर्गफीट के वार्षिक भाड़ा दर से संपत्ति कर तय किया गया है। दोनों प्लॉटों पर 2000-01 से 2017-18 के बीच सिर्फ तीन बार संपत्तिकर चुकाया गया है। वह भी 2012-13 के बाद से। 2012-13 में 2570, 2016-17 में इसकी नपती हुई। टैक्स चोरी पकड़ी गई। अचानक 45185-45185 रुपए जमा कराए गए। 2017-18 में 28600 -28600 रुपए का टैक्स जमा कराया गया।
ऐसे बनी है दो प्लॉटों पर होटल
प्रदीप  रघुवंशी कपिल रघुवंशी
134 तपेश्वरी बाग 135 तपेश्वरी बाग
बेसमेंट 800 800
ग्राउंड 800 800
फर्स्ट फ्लोर 800 800
सेकंड फ्लोर 800 800
थर्ड फ्लोर 800 800
(आंकड़े/वर्र्गफीट)

मुख्यालय से 10 कदम दूर ही कार्रवाई नहीं कर पाए अफसर

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
नगर निगम के अधिकारी जिसे बचाए रखने की कसम खा ले उसे कोई नुकसान नहीं पहुंच सकता। फिर जगदीश छाबड़ा और अशोक हरियानी की एमजी रोड पर बिनी बिल्डिंग हो या फिर अशोक हरियानी और अनिल पिपले द्वारा नगर निगम रोड पर घर की मंजूरी लेकर ताना गया मार्केट हो। यही वजह है कि मुख्यालय से 10 कदम की दूरी पर बनी इमारत पर कार्रवाई करना तो दूर नगर निगम मौके पर जाकर जांच करने तक का वक्त नहीं निकाल पाया।
84 नगर निगम रोड पर सोलंकी परिवार के प्लॉट पर आवासीय मंजूरी लेकर अशोक हरियानी और अनिल पिपले ने मार्केट बना दिया है। प्लींथ सर्टिफिकेट से लेकर फिनिशिंग स्तर तक पहुंची इस बिल्डिंग को जोन-3 पर पदस्थ भवन अधिकारी विवेश जैन और उमेश पाटीदार ने मनमाफिक सहयोग दिया। सिर्फ यही बिल्डिंग नहीं इन्हीं की एमजी रोड स्थित बिल्डिंग को भी यही लोग अभयदान दिए हुए बैठे हैं।
‘देखने का वक्त ही नहीं मिला...’
भवन के खिलाफ 18 जुलाई और 19 जुलाई को लगातार सीएम हैल्पलाइन पर शिकायत हुई। जनसुनवाई और निगमायुक्त तक को कंपलेन की गई। अब तक अधिकारियों को मौके पर जाकर बिल्डिंग जांचना तो दूर, अपने एअर कंडिशन कैबिन की खिड़की से बाहर झांककर वस्तु स्थिति जानने की कोशिश नहीं की। बस व्यस्तता का हवाला देकर यही कहते नजर आए कि एक-दो दिन में कार्रवाई करते हैं।
ऐसे ही छोड़ रखी है 474 एमजी रोड
इस बिल्डिंग से दस प्लॉट छोड़कर 474 एमजी रोड पर जो आशय जैन की जो बिल्डिंग बनी है उसे भी पार्किंग के कब्जे और स्वीकृति के विपरीत निर्माण किया है लेकिन वहां भी निगम ने कोई कार्रवाई नहीं की। उसके पास की बिल्डिंग भी गड़बड़ है।
कैसे बन गई दुकानें...
113.05 वर्गमीटर प्लॉट में से 0.71 वर्गमीटर के रोड सेटबेक छोड़कर 112.34 वर्गमीटर कुल 153.35 वर्गमीटर निर्माण करना था। ग्राउंड फ्लोर पर 51.12, पहली मंजिल पर 51.12 औ दूसरी मंजिल पर 51.12 वर्गमीटर निर्माण होना था।
स्वीकृत नक्शे में ग्राउंड फ्लोर पर फ्रंट में कीचन, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम। पीछे स्टेयर और टॉयलेट। बीच में 193.22 वर्गफीट का ओपन टू स्कॉय (ओटीएस छोड़ा जाना था व रोशनी-वेंटीलेशन के लिए)। पहली मंजिल पर फ्रंट में लाउंज, दो बेडरूम और दूसरी मंजिल पर भी लाउंज, दो बेडरूम। इसके विपरीत सोलंकी और हरियानी की जोड़ी ने ग्राउंड फ्लोर पर दुकानें बना दी। ऊपर भी कमर्शियल बना दिया।
आधा दर्जन शिकायतें दर्ज.. फिर भी बिल्डिंग बरकरार
बिल्डिंग को लेकर अली असगर ने 18 जुलाई को सीएम हैल्पलाइन पर शिकायत (4257332) दर्ज कराई। हैल्पलाइन पर दूसरी शिकायत 19 जुलाई को (4261839) देवीसिंह ने दर्ज कराई। वहीं तीसरी शिकायत (4565) 56 ग्रेटर वैशाली निवासी रवि राव ने नगर निगम आयुक्त कार्यालय में जाकर दर्ज कराई। इसके अलावा जनसुनवाई में भी शिकायतें हो चुकी हैं लेकिन कार्रवाई नहीं होती।

सिंह के स्मार्ट शहर में अवैध इमारतों की खेती

- मैदानी अमले ने कर दी निगमायुक्त के भरौसे की सर्जरी
- कमाई का गढ़ बनी अवैध इमारतें
इंदौर. विनोद शर्मा ।
सख्ती पसंद मनीष सिंह निगमायुक्त के रूप में जहां शहर संवारने में जुटे हैं वहीं बिल्डिंग पर्मिशन की टीम शहरभर में अवैध इमारतों की बोहनी में लगी है। यह वही नाम है जिन्हें बड़े विश्वास के साथ सिंह ने जिम्मा सौंपा है। नक्शा मंजूरी, प्लींथ या कंपलीशन सर्टिफिकेट को वसूली का जरिया बना चुके भवन अधिकारी और भवन निरीक्षक कारण बताओ नोटिस और रिमूवल नोटिस थमाकर जेब भर रहे हैं। इसीलिए शहर में रिमूवल कार्रवाई का ग्राफ गिरा और इमारतों में मनमानी आसमान छू रही है। गुंडो के मकान भले गिराए जा रहे हो पर अवैध निर्माण निगम की छाया में ही पल रहे हैं। नोटिस देकर बड़ी-बड़ी इमारतों को छोड़ने का खेल निगम के अफसर सरेआम खेल रहे हैं। शहर में सैकड़ों इमारतें ऐसी हैं जो सिर्फ सेटिंग के दम पर खड़ी है। अफसरों और बिल्डरों की सेटिंग तोड़े बिना सारी कार्रवाई बेकार है। जरूरत है कड़ी नजर और सख्त फैसलों की।
29 मई 2015 को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने एकेवीएन के एमडी के रूप में कार्यरत मनीष सिंह को आयुक्त बनाकर एक दशक से सुस्त पड़े नगर निगम में जान फुंक दी थी। सिंह ने आक्रामक कार्यशैली का उदाहरण देते हुए सबसे पहले हरभजन सिंह और ज्ञानेंद्रसिंह जादौन को चलता करके बिल्डिंग पर्मिशन विभाग की सर्जरी कर दी थी। तब माना जाने लगा था कि अब बिल्डरों की मनामनी नहीं चल पाएगी। हालांकि भवन अधिकारियों और भवन निरीक्षकों के आत्मीय संरक्षण और एक के बाद एक बिल्डिंग पर कार्रवाई में आने वाले राजनीतिक अड़ंगों ने इस उम्मीद पर पानी फेर दिया।
बिल्डिंग पर्मिशन तब भी कमाई का गढ़ था, अब भी
मई 2015 से पहले भी नगर निगम में बिल्डिंग पर्मिशन अफसरों के लिए क्रीम डिपार्टमेंट था और अब भी क्रीम वहीं है। सिंह ने विष्णु खरे, अश्विन जनवदे, वैभव देवलाशे, विवेश जैन, सुरेश चौहान, महेश शर्मा, देवकीनंदन वर्मा, महेश शर्मा, दिनेश शर्मा पर भरौसा किया। शुरुआत में सकारात्मक परिणाम देकर बाद में सभी ने सिंह के भरौसे की ही सर्जरी कर दी। इनकी सबकी चाबी मुख्यालय में बैठे टॉप क्लास अफसरों के पास है। अपनी कमीशन के आधार पर ही इन अधिकारियों को जोन का बंटवारा होता है।
महापौर और एमआईसी बड़ी रोक...
हरसिद्धि जोन और जवाहरमार्ग जोन पर महापौर निवास और विधानसभा-4 के ही एमआईसी सदस्य का कब्जा है। यहां कई मामलों में अधिकारी सिर्फ इसीलिए कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि नोटिस जारी होते ही महापौर हाउस से फोन आना शुरू हो जाते हैं।
सबसे ज्यादा कमाऊ जोन...
हरसिद्धि जोन- जवाहरमार्ग, आड़ा बाजार, रामलक्ष्णबाजार, पलसीकर, सिंधी कॉलोनी, बैराठी कॉलोनी, खातीवाला टैंक जैसे क्षेत्रों में चूंकि जमीन की कीमत ज्यादा है इसीलिए यहां हर दूसरे निर्माण में गड़बड़ झाला हुआ है।
नगर निगम जोन- क्षेत्र में ज्यादातर हिस्सा पुराने शहर का है इसीलिए यहां नए कंस्ट्रक्शन कम होते हैं लेकिन कीमत ज्यादा है इसीलिए उनमें खेल ज्यादा होते हैं। एमजी रोड और जेल रोड के साथ ही इन सड़कों से लगे मोहल्लों में बिल्डरों को मनमानी की पूरी छूट है।
बिलावली जोन- इंद्रपुरी, विष्णपुरी, भंवरकुआं, बिलावली, तेजपुर गड़बड़ी, स्कीम-103 जैसे संपन्न इलाके। जमीन की कीमत ज्यादा इसीलिए कायदों का पालन कम। सबसे बड़ा उदाहरण बॉबी छाबड़ा का सर्वानंदनगर जो 10 साल में पूरा बसा दिया बिना नक्शे के।
स्कीम-54 जोन- स्कीम-114, 114-2, 94, बसंत विहार, पीयू-3, पीयू-4 जैसी स्कीमें जहां जमीन के ऊंचे दामों के कारण बिल्डरों ने मनमानी बिल्डिंगें तानी। आवासीय नक्शे मंजूर। उपयोग व्यावसायिक।
Ñहवा बंगला जोन- फूटीकोठी, द्वारकापुरी, स्कीम-71, ग्रामीण क्षेत्र भी है। इस जोन में बिल्डिंगें ज्यादा बन रही है, दूरी के कारण बिल्डिंगों की मॉनिटरिंग होती है।
आॅनलाइन के बावजूद धोखा...
नक्शा मंजूरी : नक्शा आवेदन भले आॅनलाइन हो। आॅटो डीसीआर से मंजूर होता है लेकिन अफसरों के लिए गली बरकरार है। कभी पुरानी रजिस्ट्री तो कभी चैनल डॉक्यमेंट, कभी 1930 की रजिस्ट्री, पुराने नक्शे मांगकर मामला लटकाया जाता है। फाइल चेक नहीं करते। साइट ओके नहीं करते। आॅनलाइन नक्शा ईमानदारी से सप्ताहभर में पास हो सकता है जो दो-तीन महीने तक लटकाए रखा जाता है। जितना ज्यादा पैसा, उतना जल्दी काम।
प्लींथ सर्टिफिकेट : यह पहला चेकपॉइन्ट है जहां बनने से पहले ही अवैध निर्माण रोका जा सकता है लेकिन दो वर्षों में एक भी प्लींथ सर्टिफिकेट अधिकारियों ने जारी नहीं किए। प्लींथ सर्टिफिकेट जारी करने का मतलब है अधिकारी द्वारा बिल्डिंग की वैधानिकता का प्रमाणिकरण।
नोटिस : अवैध निर्माण की शिकायत पर जांच होती है। जांच के बाद नोटिस दे देते हैं। पहले कारण बताओ। फिर रिमूवल नोटिस। दोनों नोटिस कमाई का जरिया बन गए हैं। नोटिस देकर कार्रवाई नहीं की जाती। सामने वाले से कागज मांगकर वक्त बिताया जाता है। या उसे स्टे के लिए कोर्ट का रास्ता दिखा दिया जाता है।
कंपलीशन सर्टिफिकेट- बिल्डिंग पूरी होने के बाद सक्षम अधिकारी निरीक्षण करता है और सर्टिफिकेट जारी करता है। वहीं इंदौर में बिना कंपलीशन के अधूरी बिल्डिंगों में दुकानें शुरू हो जाती है।
रिमूवल कार्रवाई : बचाने के लिए थाना प्रभारी के पास भेज देते हैं ताकि वह दूसरे दिन बल देने से मना कर दे। गलती से कार्रवाई करना भी पड़े तो तब तक जब तक की फोटो या वीडियो करके मीडिया वाले रवाना न हो। तोड़फोड़ भी वहीं होती है जहां ज्यादा बिल्डर को ज्यादा नुकसान न हो। बाद में लिखवा लिया जाता है कि सात दिन में हम ही तोड़ लेंगे।

सालाना 25 करोड़ की वसूली से अवैध इमारतों का अड्डा बना इंदौर

इंदौर. विनोद शर्मा।
अवैध इमारतों को संरक्षण देने का गठजोड़ नगर निगम के जोनल कार्यालयों से लेकर मुख्यालय तक फैला हुआ है। इसीलिए बिल्डिंग आॅफिसर्स(बीओ) से लेकर बिल्डिंग इंस्पेक्टर्स (बीआई) तक मलाईदार जोन दिए हैं। बशर्ते करें वहीं जो मुख्यालय चाहता है। इन जोनों पर पदस्थ बीओ और बीआई मिलकर 10 से 15 लाख रुपए/महीना कमा रहे हैं। हिस्सेदारी के बटवारे के बाद भी 7-8 लाख रुपए तो घर जाते ही हैं। एक आंकलन के अनुसार अवैध इमारतें बचाकर निगम के नुमाइंदे हर साल  22 से 25 करोड़ रुपए कमाते हैं।
राजनीतिक संरक्षण और पैसे के भूखे अधिकारियों ने इंदौर को अवैध इमारतों का अड्डा बना दिया है। ऐसा कोई जोन ही नहीं बचा जहां अवैध इमारतें न हो। नक्शा मंजूर कराकर उसे किनारे रखना और मनमाफिक निर्माण करना इंदौर में ट्रेंड बन चुका है। इस ट्रेंड का हिस्सा बनने में बिल्डर, डॉक्टर, एज्यूकेशन इंस्टिट्यूट, कोचिंग इंस्टिट्यूट, होटल संचालक भी पीछे नहीं रहे। उधर, नक्शा मंजूरी से लेकर रिमूवल नोटिस देकर बिल्डिंग बचाते तक के लिए बीओ और बीआई अपना रेटकार्ड लिए बैठे हैं।
फिर क्यों नहीं रूकती अवैध मंजिलें...
एक बीओ की तनख्वाह 50 से 60 हजार तक है। उसे गाड़ी, ड्राइवर, वायरलेस सेट, मोबाइल बिल दे रखे हैं ताकि वह फील्ड में घूमकर सुनिश्चित कर सकें कि अपने क्षेत्र में बिल्डिंगे ईमानदारी से बने। इस काम में उसका हाथ बटाने के लिए बीआई और दरोगा-बेलदार नियुक्त है। बीआई का मासिक वेतन 35 से 45 हजार तक है। वायरलेस सेट है। कुछ बीआई को गाड़ियां भी अलॉट है। इतने सबके बाद में न सिर्फ गली, मोहल्ले बल्कि मुख्यमार्ग और निगम मुख्यालय के नजदीक ही अवैध बिल्डिंग बन चुकी है।
पार्षद भी देते हैं मौका, पर 50-50 में
बीओ-बीआई को पार्षद भी मामले बताते हैं। इन मामलों में नोटिस या रिमूवल कार्रवाई के दौरान बचाने के लिए जो पैसा मिलता है उसमें पार्षद के साथ 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी रहती है।
लेन-देन का गणित..
नक्शा मंजूरी : 25 हजार से लेकर... बिल्डिंगे के आकार-प्रकार और नक्शा मंजूर कराने की जल्दबाजी के आधार पर तय होता है। कुछ ज्यादा तिकड़म नहीं करते। फिर भी 10-15 हजार तो मिल जाते हैं।
कारण बताओ नोटिस : किसी की शिकायत या मौका निरीक्षण के बाद कारण बताओ नोटिस देते हैं। कभी मालिकाना हक के प्रमाण मांगते हैं, कभी स्वीकृत नक्शा। जबकि दोनों अधिकारियों के पास ही रहते हैं। इस नोटिस से कमसकम 50 हजार तो मिल जाते हैं।
रिमूवल नोटिस : इस नोटिस के बाद कार्रवाई रूकवाने या कार्रवाई के दौरान निर्माण बचाने के नाम पर 50 हजार से लेकर...। स्वीकृत नक्शे, अवैध निर्माण के साथ ही बिल्डर को होने वाली नुकसानी के आधार पर तय।
(अच्छे जोन पर बीओ को 10-15 लाख और बीआई को 5-7 लाख रुपए महीना मिल जाता है। वहीं पिछड़े से पिछड़े जोन पर भी बीओ को 5-7 लाख रुपए और बीआई को 2-3 लाख रुपए/महीने तक की कमाई हो जाती है। दोनों की औसत कमाई 10 लाख है तो सालाना 22.80 करोड़ की वसूली होती है।)
इनकी बोल रही है तूती...
विष्णु खरे : सिटी प्लानर की पोस्ट क्रिएट करके इन्हें भोपाल से भेजा गया है। 13 नंबर जोन के बीओ रहे। सर्वानंदनगर की अवैध होटलें, होस्टल इन्हीं के राज में फलीभूत। ट्रूबा कॉलेज की गडबड़ बस पकड़ी ही।
महेश शर्मा : सिटी इंजीनियर बिल्डिंग पर्मिशन है। मुख्यालय के साथ 8, 9, 10 और 12 नंबर जोन के बीओ। समय कम दे पाते हैं जोनों पर। इसीलिए बीआई-मुख्यालय दिनेश शर्मा को अपनी डोंगल दे रखी है। किसी भी जोन के नक्शे के मामले में राय दिनेश शर्मा को लेने को कहते हैं। सिंधी बाहुल्य इलाके हैं। इनके पास 8 से 10 लाख रुपए/महीने तक मिलते हैं। यहां बीआई 50 हजार रुपए/रोज तक वसूल चुके हैं। उसमें बीआई की हिस्सेदारी भी थी।
दिनेश शर्मा : बीआई-मुख्यालय हैं। ‘जितना कानून-कायदा, उतना ज्यादा फायदा’ यही इनका सिद्धांत है। कई बीआई के गुरु हैं। मासिक कमाई भी जबरदस्त। 5-7 लाख रुपए/महीने की कमाई।
अश्विन जनवदे : बिल्डिंग पर्मिशन के पुराने खिलाड़ी। एक बार कमिटमेंट कर दे तो फिर अपने आप की भी नहीं सुनते। हरसिद्धि जोन पर रहे। मेट्रो टॉवर को नोटिस दिया था कार्रवाई नहीं की। अभी जोन-14 आर 15 के बीओ हैं। दोनों में जबरदस्त निर्माण और जादूगरी जारी है।
वैभव देवोलासे : पिता जल यंत्रालय में रहे। उनकी मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति। परीक्षा अवधि में होने के बाद भी दूसरे बीआई से तीन गुना महंगे बीआई। पूरी छूट रहती है इनकी तरफ से। अभी शिकायत के बाद निगमायुक्त ने पीपल्याहाना बीआई पोस्ट से हटाया।
चाबी मुख्यालय में...
नगर निगम में बीओ और बीआई की संख्या कम है। जो हैं उनमें से आधे उक्त पोस्ट की योग्यता नहीं रखते। संख्या कम होने के कारण किसी को दो जोन का बीओ या बीआई बना रखा है। या किसी बीओ या बीआई को जोनल अधिकारी बना रखा है। मुख्यालय में बैठे दिग्गज ही इनका भाग्य तय करते हैं। जो मुख्यालय का डमरू बन जाता है उसे मौज करने की आजादी मिल जाती है। वरना प्रतीक चतुर्वेदी और सुधीर गुलवे जैसे लोग भी हैं जो कभी बीओ थे लेकिन उन्हें बीआई बना रखा है।
विवेश जैन : भोली सूरत का फायदा मिलता है। बिल्डिंग पर्मिशन में अर्से से। अवैध इमारतों के पोषक हैं। फिर मामला पल्हरनगर में मेहता की बिल्डिंग बख्शने का हो या फिर  474 एमजी रोड या फिर 84 नगर निगम रोड को नजरअंदाज करने का। जोन में काम भले कम हो लेकिन कमाई ज्यादा है। 

पूरा प्लॉट खाली, एमओएस में ही तान दी दो मंजिला इमारत

- सड़क की जमीन भी हजम
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
स्कीम-31, साधु वासवानीनगर, सिंधी कॉलोनी, बैराठी कॉलोनी में अधिकारियों की शह पर अवैध बिल्डिंगे बन रही है। इस कड़ी में साधुवासवानीनगर में एक उदाहरण सामने आया है जहां प्लॉट नं. 444 तो खाली है लेकिन भविष्य में मिलने वाले एमओएस और सड़क की जमीन पर जी+2 बिल्डिंग जरूर तन चुकी है। लगातार शिकायतों के बावजूद इस बिल्डिंग पर कार्रवाई नहीं हुुई। उलटा, बनकर बिक गई।
वार्ड-65 में सिंधीकॉलोनी की गली नंबर-4 में करमचंद अपार्टमेंट के पास 444 साधूवासवानीनगर  का प्लॉट है। प्लॉट मालिक हकीकत राय पुरस्वानी हैं जो कि मुलत: बिल्डर है। नगर निगम की भवन अनुज्ञा शाखा द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार प्लॉट नं. 444 सी पर आरतलाल वाधुमल के नाम से नक्शा पास है जबकि 444 ई पर दीपक कुमार बालचंदानी का घर बना है। दोनों प्लॉटों के बीच पुरस्वानी का प्लॉट नं. 444 है जिसका अब तक नक्शा मंजूर नहीं हुआ है। मौके पर प्लॉट खाली भी पड़ा है। बावजूद इसके इस प्लॉट के उस पिछले हिस्से में जी+2 बिल्डिंग बन गई है जो नक्शा स्वीकृति के दौरान बेक एमओएस के रूप में खाली छोड़ा जाना चाहिए था। थोड़ा एमओएस और थोड़ी सड़क की जमीन हजम करके बिल्डिंग भी पुरस्वानी ने ही खड़ी की है। बताया जा रहा है कि बिल्डिंग प्रकाश भाटिया को बेच भी दी है।
दूसरी बिल्डिंगों से आगे है
्रबिल्डिंग पुरस्वानी के प्लॉट के पिछले हिस्से में 10 बाय 40 और सड़क की 3 बाय 40 फीट जमीन पर बनी है। ऐसे कुल 13 बाय 40 पर जी+2 कंस्ट्रक्शन है।
पहला मामला है क्षेत्र में ऐसा
शिकायतकर्ता गोपाल कोडवानी ने बताया कि मकान बनाने से पहले ही एमओएस हजम करने का ऐसा यह क्षेत्र का पहला मामला है जिसने सभी को चौका दिया है। हालांकि पुरस्वानी के इस कारनामें को क्षेत्रीय भवन अधिकारी महेश शर्मा नजरअंदाज कर रहे हैं। कई बार शिकायतें की। स्वयं निगम की बिल्डिंग पर्मिशन शाखा लिखकर दे चुकी है कि उक्त बिल्डिंग का कोई नक्शा स्वीकृत नहीं है। ऐसे में समझ नहीं आता कि आखिर इस बिल्डिंग को बख्शा क्यों जा रहा है।
कभी नोटिस देते हैं, कभी झूठी जानकारी
जनसुनवाई में भी तीन बार शिकायतें की है। सात बार सीएम हैल्पलाइन पर शिकायत की। बार-बार महेश शर्मा सीएम हैल्पलाइन पर 444 के स्वीकृत नक्शे और परिवार के रहने की झूठी जानकारी दे देते हैं। वह भी तब जब महेश शर्मा ने ही 20 अक्टूबर 2016 को भवन मालिक हकीकतराय पुरस्वानी को कारण बताओ नोटिस (911/2016) जारी किया था। नोटिस के अनुसार संपूर्ण निर्माण एमओएस में था। 

बिना नक्शे के तन गया गंदवानी वेअरहाउस-चौथवानी कारखाना

- मुंडलानायता में अधिकारियों की अनदेखी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
पंचायती नक्शों की आड़ में नगर निगम सीमा में जुड़ी पंचायतों में भारी खेल हो रहा है। इसका बड़ा उदाहरण ग्राम मुंडला नायता में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (टीएंडसीपी) और नगर निगम की अनुमति के बिना ही चौथवानी और गंगवानी परिवार ने वेअर हाउस और बड़ा सा कन्फेक्शनरी कारखाना तान दिया। इस कारखाने में क्षेत्रीय पार्षद और बिल्डिंग आॅफिसर्स से लेकर बिल्डिंग इंस्पेक्टर्स की भारी रूचि है। पार्षद और अधिकारियों की एक खेप अपना जढ़ावा भी ले चुकी है।
मामला मुंडलानायता का है जो कि 2013-14 में ही नगरसीमा विस्तार के कारण नगर निगम सीमा में आ चुका है। यहां सर्वे नं. 8/1 और 8/2 की 3.498 एकड़ जमीन का है। राजस्व रिकार्ड के अनुसार उक्त जमीन 11 विद्यानगर निवासी पुष्पा पति आनंदराम चौथवानी के नाम दर्ज है। दुग्गल पेंट्स एंड केमिकल्स के सामने इसी जमीन पर जी+2 कारखाना बना है। इसके साथ ही पोहेवाले कमल गंदवानी के पास करीब 6500 वर्गफीट पर जी+1 एक बड़ा गोदाम बना है जिसे गंदवानी वेअर हाउस बताया जा रहा है जो कि कमल गंदवानी का है।
नगर निगम से कोई नक्शा मंजूर नहीं है
नगर निगम के राजस्व रिकार्ड और भवन अनुज्ञा शाखा में उक्त दोनों निर्माण का जिक्र नहीं मिला। जोन पर पदस्थ रहे भवन निरीक्षक वैभव देवलाशे ने भी मौके पर जाकर जांच की थी। मामले में पार्षद पुष्पा बसंत पारगी भी गंदवानी से बात कर चुके हैं। लगातार शिकायतों के बाद देवलाशे दूसरी बार मौका देखने पहुंचे लेकिन उसी दिन उन्हें शिकायतों के आधार पर जोन से हटा दिया। जोन पर पदस्थ अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की कि मौके पर निर्माण बिना नक्शे के हो रहा है।
क्यों अवैध है कारखाना
जिस मुंडला नायता पंचायत से कारखानों का नक्शा मंजूर करना बताया जा रहा है नगर निगम सीमा में गांव के विलय के बाद 2013 से ही उसके अधिकार समाप्त हो चुके हैं। पंचायत राज अधिनियम की धारा-55 के तहत ग्राम पंचायत किसी भी इमारत का नक्शा पास कर सकती है। हालांकि इस स्वीकृति की अवधि सिर्फ एक वर्ष रहती है। यानी जिस साल में मंजूरी ली गई है उसी साल में काम शुरू करना जरूरी है। अन्यथा मंजूरी स्वत: ही निरस्त हो जाती है। चूंकि 2013 में पंचायत के अधिकार समाप्त हो चुके थे लिहाजा यदि मंजूरी दी भी होगी तो 2012 में जो कि 2013 में स्वत: ही रद्द हो गई। क्योंकि बिल्डिंग का काम शुरू हुआ है जुलाई 2016 के बाद।
पैसे मांगने वालों ने परेशान कर दिया
जब अवैध निर्माण के संबंध में क्षेत्रीय पार्षद पुष्पा पति बसंत पारगी से बात की तो उन्होंने कहा कि मुझे वैध-अवैध की जानकारी नहीं है। यह जांचना अधिकारियों का काम है। मुझे तो इतना पता है कि गंदवानी को फोन लगाकर पैसा मांगने वाले आते रहते हैं। कभी पत्रकार तो कभी कौन..।
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मैं मौके पर जांच करता, उससे पहले मेरा ट्रांसफर हो गया
मामला संज्ञान में आया था। शिकायतें भी मिली। मैं मौके पर पहुंचा उसी दिन मेरा जोन से ट्रांसफर हो गया था। आगे क्या हुआ मुझे नहीं मालूम।
वैभव देवलासे, जोन से हटाए गए भवन निरीक्षक
(मौजूदा भवन निरीक्षक सुधीर गुलवे के फोन पर दो दिन तक संपर्क किया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।)

बांगर की ‘श्री’ सुशील-मुकेश के भरौसे

उज्जैन से इंदौर तक फैला है जोड़ी का रीयल कारोबार
इंदौर. विनोद शर्मा ।
उज्जैन के जिन आनंद बांगर और विष्णु जाजू की कंपनियों पर इनकम टैक्स की इन्वेस्टिगेशन विंग गुरुवार से छापेमार कार्रवाई कर रही है उनकी जमीन सुशील जैन ‘गिरिया’ और मुकेश रांका के भरौसे टिकी है। सुशील-मुकेश वैसे तो उज्जैन के रहने वाले हैं लेकिन इंदौर में भी इनका कामकाज अच्छा जमा हुआ है। दोनों बांगर की कंपनियों में डायरेक्टर है। यह भी सामने आया कि बांगर ने स्क्रैप बताकर पेपर खरीदा। बंद बताकर मिल खरीदी।
श्रीजी पॉलिमर इंडिया प्रा.लि. समूह पर इनकम टैक्स ने गुरुवार को छापेमार कार्रवाई की थी तो जो कि लगातार दूसरे दिन भी जारी रही। दूसरे दिन प्रॉपर्टीज के पेपर्स में 4 नयापुरा उज्जैन निवासी सुशील जैन और 18 नयापुरा निवासी मुकेश कुमार रांका का नाम भी सामने आया। सुशील-राका र्पाश्व वीर बिल्डर्स एंड डेवलपर्स प्रा.लि., आरएम विनो एस्टेट डेवलपर्स प्रा.लि. और सिक्योर प्रॉपर्टीज प्रा.लि. जैसी कंपनियों में 2010 से डायरेक्टर है। जमीनी सौंदो में दोनों का नाम इंदौर-उज्जैन तक चर्चा में रहता है। आर्यन वेअर आउस के नाम से दोनों का आॅफिस 102 वरूण टॉवर मीरापथ इंदौर में भी है। दोनों फर्जीवाड़े के डॉक्टर है इसीलिए बच्चों को सीए भी बनाया ताकि वह कागजी मामले संभाल सके।
2003 और 2013 में हो चुका है सर्वे
मुकेश रांका पर इनकम टैक्स की सर्च 25 सितंबर 2003 को हो चुकी है। भारी अनियमितता मिली। मुकेश रांका ने 1.1 करोड़ सरेंडर किए। सुशील जैन ने 14 लाख सरेंडर किए। मामला 2007 में अपील कमिश्नर और 2011 में आईटीएटी पहुंचा। 20 फरवरी 2017 को उज्जैन में जो सरकारी शादी हुई उसमें दोनों ने पायल सेट वितरित किए थे।
प्रॉपर्टी कारोबारी सुशील-मुकेश के ठिकानों पर दिसंबर 2013 में इनकम टैक्स सर्वे की कार्रवाई भी कर चुका है। बिल्डरों ने लाखों रुपए के ट्रांजेक्शन करने के बाद भी टीडीएस जमा नहीं किया था। जांच में यह भी पता चला है कि इन दोनों बिल्डर्स के नाम से कई फर्मों का संचालन किया जा रहा है।
‘अर्थ’ ही नहीं ‘करंट’ भी दिया बांगर को...
नीमच बायोमास एनर्जी प्रा.लि. भी दोनों की है। इसीलिए दोनों ने बांगर और जाजू को न सिर्फ अर्थ (जमीन) के धंधे की बारीकियां सिखाई। वहीं बांगर को करंट (एनर्जी) के क्षेत्र में आगे बढ़ाया। समूह ने विंड एनर्जी में निवेश किया। विंड प्लांट मंदसौर की दलोदा तहसील के नंदवेल गांव में है। बांगर समूह के डायरेक्टर्स भी नीमच बायोमास एनर्जी प्रा.लि. से जुड़े हैं जिनमें प्रमुख अनुराग सोमानी है। दोनों समूह के बीच आजादनगर उज्जैन निवासी कामिनी अग्रवाल भी डायरेक्टर है।
घरेलू रिश्ता..
मुकेश की जेपीजे एक्जिम प्रा.लि. में सूमन रांका भी डायरेक्टर है जो कि श्रीजी उज्जैन पॉवर लि. की डायरेक्टर भी है। इस कंपनी में उनके साथ कामिनी अग्रवाल और मंगला बांगर भी डायरेक्टर है। मंगला क्वालिटी इंडस्ट्री भोपाल लि. सुशेन रेमेडीज प्रा.लि., श्रीजी उज्जैन पॉवर और व्यंकटेश कोरोगेर्ट्स प्रा.लि. में भी आनंद बांगर के साथ भागीदार है।
बंद बताकर कंपनियां खरीदी...
जांच में यह भी सामने आया है कि बांगर 2005 से फार्म में है। उसने सरकारी अधिकारियों द्वारा समूह में लगाई गई अपनी ऊपरी कमाई से  12 वर्षों में जबरदस्त तरक्की की। कई पेपर और कोरेगेट्ड बॉक्स बनाने वाली कंपनियां खरीदी। इन कंपनियों को खरीदने के लिए बंद और मशीनों को स्कै्रप बताकर खरीदता है बांगर ताकि कम कीमत बताई जा सके। टैक्स बचाया जा सके। उधर, कार्रवाई के दौरान बड़ी केश रकम मिली है। ज्वैलरी सामने आई है जिसका वेल्यूवेशन जारी है।