सालभर में 1100 नोटिस, आधों में बल न मिलने का बहाना बनाकर लौटी टीम
इंदौर. विनोद शर्मा ।
76 पंढरीनाथ स्थित सतराम वाधवानी के मनमाने निर्माण पर 3 अगस्त को जो रिमूवल कार्रवाई होना थी वह हो नहीं पाई। हरसिद्धि जोन के अधिकारियों ने इसका कारण एक बार फिर पुलिस बल का न मिलना ही बताया है। वहीं पंढरीनाथ पुलिस का कहना है कि उनसे बल मांगा ही नहीं गया था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर पुलिस बल न मिलने का बहाना बनाकर नगर निगम द्वारा कार्रवाई से किनारा क्यों किया गया? यह सवाल शहरवासियों के जहन में इसलिए भी ज्यादा कचूटता है क्योंकि सिर्फ 76 पंढरीनाथ ही नहीं बल्कि सालभर में करीब 800 से अधिक मामलों में निगम पुलिस बल न मिलने का बहाना बनाकर कार्रवाई से किनारा कर जाता है।
बतौर नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह सपनों का स्मार्ट इंदौर बनाने के लिए रात दिन एक कर रहे हैं। वहीं उन्हीं के भरौसे की टीम जमीर के साथ इस सपने का सौदा करके भी बैठ गई। प्रेक्टिस इतनी रूटीन हो चुकी है कि अब तो निगम का मैदानी अमला रोज भगवान से प्रार्थना करता है अवैध निर्माण कभी रूके न। रहा सवाल कार्रवाई का तो उसे टालने के लिए बहानों की कमी नहीं है। इन्हीं बहानों में से एक पुलिस बल का न मिलना। जो वहां इस्तेमाल किया जाता है जहां शिकायकर्ताओं के प्रेशर के बाद नोटिस जारी करके रिमूवल की तैयारी करना पड़ जाती है।
12 महीने, 1100 नोटिस और कार्रवाई 25 %
सूचना के अधिकार के तहत स्वयं नगर निगम ने पूर्व पार्षद दिलीप कौशल को दिए लिखित जवाब देते हुए स्वीकारा है कि 1 जनवरी 2016 से 31 दिसंबर 2016 के बीच 1100 से ज्यादा रिमूवल नोटिस जारी हुए हैं। वहीं रिमूवल कार्रवाई हुई है बमुश्किल 300 निर्माणों पर। वह भी उस स्थिति में जब 2016 में गणेशगंज और मालगंज में सड़क के लिए निर्माण तोड़े गए। बचे 800 रिमूवल नोटिस में से 150 राजनीतिक दखलंदाजी की भेट चड़े तो बाकी 50 हजार से लेकर एक लाख की फीस लेकर नजरअंदाज कर दिए गए।
25 हजार रुपए में नहीं मिलता बल
नगर निगम के एक बीआई ने बताया कि जब बिल्डिंग बचाना हमारे बस में नहीं रहता तब हम निर्माणकर्ता को तीन रास्ते बताते हैं। 1- संबंधित थाने पर जाकर टीआई साहब से बात कर लो। 20-25 हजार रुपए लेकर लिख देते हैं कि पुलिस बल उपलब्ध नहीं करवाया जा सकता। हम यह कहकर लौट आते हैं कि बल नहीं मिला, लॉ एंड आॅर्डर बिगड़ने की स्थिति बन सकती है। 2- शिकायतकर्ता को ‘समझा’ लो या महापौर-कमिश्नर से फोन करवा दो। 3- ऐसी जगह तोड़ना जहां नुकसान न हो। बाद में लिखवा लेते हैं कि सात दिन में तोड़ लेंगे। तब तक स्टे ले आना।
नि ‘र्बल’ के उदाहरण...
4 बृजेश्वरी कॉलोनी : मे.तक्षशिला रियल इस्टेट प्रा.लि. के डायरेक्टर विमलप्रकाश हरिराम मित्तल ने मनमाना निर्माण किया है जिसे हटाने के लिए 14 जनवरी 2016 का दिन मुकर्रर किया गया था। पुलिस बल न मिलने के कारण कार्रवाई हो नहीं पाई। ऐसा यहां दो बार हो चुका है।
9 अशोकनगर :- मौके पर बिल्डर ने स्वीकृत नक्शे के विपरीत निर्माण किया है। पूरा क्षेत्र आवासीय घोषित है लेकिन मौके पर व्यावसायिक निर्माण किया गया है। इस मामले में पूर्व पार्षद दिलीप कौशल ने भी शिकायत की थी। जुलाई और अगस्त 2016 में नोटिस जारी हुए। यहां भी पुलिस बल के अभाव में कार्रवाई नहीं हो पाई।
25 पागनीसपागा :- गिरीश पिता रूपचंद्र खतूरिया को 2387.50 वर्गफीट प्लॉट का नक्शा 3606/आईएमसी/जेड12/डब्ल्यू61/2016 निगम ने 12 अक्टूबर 2016 को मंजूर किया था। जी+2 के इस नक्शे में कुल 3581.25 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई थी। 42 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज किया जा सकता था। मौके पर एमओएस कवर करके ग्राउंड कवरेज बढ़ाया गया और मौके पर 50 प्रतिशत से ज्यादा अवैध निर्माण किया गया है। शिकायतों की लंबी फेहरिस्त के बाद नगर निगम ने रिमूवल गैंग भेजी लेकिन एक फोन पर थाने से ही लौट आई।
22-23 आड़ा बाजार := नियमों के विपरीत प्लॉट नंबर 22 और 23 को जोड़कर विजय पिता राधाकृष्ण गुप्ता, राधाकृष्ण पिता रामचंद्र गुप्ता और मनोरमा पति राधाकृष्ण गुप्ता के नाम 6 जुलाई 2016 को बिल्डिंग परमिशन (2706/आईएमसी/जेड12/डब्ल्यू59/2016) जारी कर दी। 211.77 वर्गमीटर के कुल प्लॉट एरिया पर जी+3 बिल्डिंग का आवासीय/वाणिज्यिक नक्शा मंजूर है। बेसमेंट का जिक्र नहीं था फिर भी बेसमेंट बना दिया। 8 जून को रिमूवल होना थी हुई नहीं।
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अवैध निर्माण से कमाना निगम के मैदानी अमले को तो आता ही था लेकिन अब पुलिस को भी सीखा दिया है। कई मामलों में तो पुलिस को पता भी नहीं होता, और कह दिया जाता है कि बल नहीं मिला।
परमानंद सिसोदिया, पूर्व पार्षद
2016 के 1100 से अधिक रिमूवल नोटिस की सूची दी है नगर निगम ने सूचना के अधिकार में। जबकि कार्रवाई चौथाई मामलों में भी नहीं होती। शिकायत पर नोटिस देकर जेब भरने वाले अधिकारी अपना काम बनने के बाद उन्हीें शिकायकर्ताओं को ब्लैकमेलर कहना शुरू कर देते हैं जिन्होंने शिकायत की थी।
दिलीप कौशल, पूर्व पार्षद
इंदौर. विनोद शर्मा ।
76 पंढरीनाथ स्थित सतराम वाधवानी के मनमाने निर्माण पर 3 अगस्त को जो रिमूवल कार्रवाई होना थी वह हो नहीं पाई। हरसिद्धि जोन के अधिकारियों ने इसका कारण एक बार फिर पुलिस बल का न मिलना ही बताया है। वहीं पंढरीनाथ पुलिस का कहना है कि उनसे बल मांगा ही नहीं गया था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर पुलिस बल न मिलने का बहाना बनाकर नगर निगम द्वारा कार्रवाई से किनारा क्यों किया गया? यह सवाल शहरवासियों के जहन में इसलिए भी ज्यादा कचूटता है क्योंकि सिर्फ 76 पंढरीनाथ ही नहीं बल्कि सालभर में करीब 800 से अधिक मामलों में निगम पुलिस बल न मिलने का बहाना बनाकर कार्रवाई से किनारा कर जाता है।
बतौर नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह सपनों का स्मार्ट इंदौर बनाने के लिए रात दिन एक कर रहे हैं। वहीं उन्हीं के भरौसे की टीम जमीर के साथ इस सपने का सौदा करके भी बैठ गई। प्रेक्टिस इतनी रूटीन हो चुकी है कि अब तो निगम का मैदानी अमला रोज भगवान से प्रार्थना करता है अवैध निर्माण कभी रूके न। रहा सवाल कार्रवाई का तो उसे टालने के लिए बहानों की कमी नहीं है। इन्हीं बहानों में से एक पुलिस बल का न मिलना। जो वहां इस्तेमाल किया जाता है जहां शिकायकर्ताओं के प्रेशर के बाद नोटिस जारी करके रिमूवल की तैयारी करना पड़ जाती है।
12 महीने, 1100 नोटिस और कार्रवाई 25 %
सूचना के अधिकार के तहत स्वयं नगर निगम ने पूर्व पार्षद दिलीप कौशल को दिए लिखित जवाब देते हुए स्वीकारा है कि 1 जनवरी 2016 से 31 दिसंबर 2016 के बीच 1100 से ज्यादा रिमूवल नोटिस जारी हुए हैं। वहीं रिमूवल कार्रवाई हुई है बमुश्किल 300 निर्माणों पर। वह भी उस स्थिति में जब 2016 में गणेशगंज और मालगंज में सड़क के लिए निर्माण तोड़े गए। बचे 800 रिमूवल नोटिस में से 150 राजनीतिक दखलंदाजी की भेट चड़े तो बाकी 50 हजार से लेकर एक लाख की फीस लेकर नजरअंदाज कर दिए गए।
25 हजार रुपए में नहीं मिलता बल
नगर निगम के एक बीआई ने बताया कि जब बिल्डिंग बचाना हमारे बस में नहीं रहता तब हम निर्माणकर्ता को तीन रास्ते बताते हैं। 1- संबंधित थाने पर जाकर टीआई साहब से बात कर लो। 20-25 हजार रुपए लेकर लिख देते हैं कि पुलिस बल उपलब्ध नहीं करवाया जा सकता। हम यह कहकर लौट आते हैं कि बल नहीं मिला, लॉ एंड आॅर्डर बिगड़ने की स्थिति बन सकती है। 2- शिकायतकर्ता को ‘समझा’ लो या महापौर-कमिश्नर से फोन करवा दो। 3- ऐसी जगह तोड़ना जहां नुकसान न हो। बाद में लिखवा लेते हैं कि सात दिन में तोड़ लेंगे। तब तक स्टे ले आना।
नि ‘र्बल’ के उदाहरण...
4 बृजेश्वरी कॉलोनी : मे.तक्षशिला रियल इस्टेट प्रा.लि. के डायरेक्टर विमलप्रकाश हरिराम मित्तल ने मनमाना निर्माण किया है जिसे हटाने के लिए 14 जनवरी 2016 का दिन मुकर्रर किया गया था। पुलिस बल न मिलने के कारण कार्रवाई हो नहीं पाई। ऐसा यहां दो बार हो चुका है।
9 अशोकनगर :- मौके पर बिल्डर ने स्वीकृत नक्शे के विपरीत निर्माण किया है। पूरा क्षेत्र आवासीय घोषित है लेकिन मौके पर व्यावसायिक निर्माण किया गया है। इस मामले में पूर्व पार्षद दिलीप कौशल ने भी शिकायत की थी। जुलाई और अगस्त 2016 में नोटिस जारी हुए। यहां भी पुलिस बल के अभाव में कार्रवाई नहीं हो पाई।
25 पागनीसपागा :- गिरीश पिता रूपचंद्र खतूरिया को 2387.50 वर्गफीट प्लॉट का नक्शा 3606/आईएमसी/जेड12/डब्ल्यू61/2016 निगम ने 12 अक्टूबर 2016 को मंजूर किया था। जी+2 के इस नक्शे में कुल 3581.25 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई थी। 42 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज किया जा सकता था। मौके पर एमओएस कवर करके ग्राउंड कवरेज बढ़ाया गया और मौके पर 50 प्रतिशत से ज्यादा अवैध निर्माण किया गया है। शिकायतों की लंबी फेहरिस्त के बाद नगर निगम ने रिमूवल गैंग भेजी लेकिन एक फोन पर थाने से ही लौट आई।
22-23 आड़ा बाजार := नियमों के विपरीत प्लॉट नंबर 22 और 23 को जोड़कर विजय पिता राधाकृष्ण गुप्ता, राधाकृष्ण पिता रामचंद्र गुप्ता और मनोरमा पति राधाकृष्ण गुप्ता के नाम 6 जुलाई 2016 को बिल्डिंग परमिशन (2706/आईएमसी/जेड12/डब्ल्यू59/2016) जारी कर दी। 211.77 वर्गमीटर के कुल प्लॉट एरिया पर जी+3 बिल्डिंग का आवासीय/वाणिज्यिक नक्शा मंजूर है। बेसमेंट का जिक्र नहीं था फिर भी बेसमेंट बना दिया। 8 जून को रिमूवल होना थी हुई नहीं।
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अवैध निर्माण से कमाना निगम के मैदानी अमले को तो आता ही था लेकिन अब पुलिस को भी सीखा दिया है। कई मामलों में तो पुलिस को पता भी नहीं होता, और कह दिया जाता है कि बल नहीं मिला।
परमानंद सिसोदिया, पूर्व पार्षद
2016 के 1100 से अधिक रिमूवल नोटिस की सूची दी है नगर निगम ने सूचना के अधिकार में। जबकि कार्रवाई चौथाई मामलों में भी नहीं होती। शिकायत पर नोटिस देकर जेब भरने वाले अधिकारी अपना काम बनने के बाद उन्हीें शिकायकर्ताओं को ब्लैकमेलर कहना शुरू कर देते हैं जिन्होंने शिकायत की थी।
दिलीप कौशल, पूर्व पार्षद