Friday, December 23, 2016

ाात्रता से 20 फीट ज्यादा ऊंचा बनी प्रीमियम गुलमोहर

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
नौ मीटर चौड़ी सड़क को 12 मीटर चौड़ी बताकर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के अधिकारियों ने जिस होराइजन प्रीमियम गुलमोहर ग्यांस पार्क नाम की टाउनशीप को मंजूरी दी उसमें बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण हुआ है। बावजूद इसके नगर निगम के अधिकारी बिल्डर राजू टेकचंदानी और निखिल कोठारी की मनमानी को नजरअंदाज करते आ रहे हैं। शायद, इसीलिए अब तक किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई।
प्रीमियम गुलमोहर ग्यांस पार्क में हुई मनमानी का खुलासा दबंग दुनिया ने गुरुवार को ‘सड़क फैलाकर मंजूर कर दी छह मंजिला इमारत’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। खबर छपने के बाद नगर निगम तो हरकत में नहीं आई लेकिन टेकचंदानी ने जरूर नगर निगम के आला अधिकारियों व जिम्मेदारों के घर के चक्कर काटना शुरू कर दिए। उधर, लोकायुक्त में पहुंची शिकायत के अनुसार जितनी चौड़ी सड़क मौके पर थी उतनी के हिसाब से बिल्डिंग 40 फीट ऊंची बन सकती थी लेकिन अधिकारियों के खेल ने इसे 60 फीट की ऊंचाई दे दी।
निगम की टीएंडसीपी की मनमानी की पुष्टि
34 मार्च 2008 को टीएंडसीपी ने नियमों को नजरअंदाज करते हुए तीन ब्लॉक वाली इस छह मंजिला इमारत को मंजूरी दी। नगर निगम ने सड़क की चौड़ाई पर कोई आपत्ति नहीं ली। बस व्यक्तिगत लाभ अर्जित करते हुए नगर निगम के अधिकारियों ने बिल्डिंग बनाने वाली सूर्य शक्ति गृह निर्माण सहकारी संस्था को दो अतिरिक्त मंजिल बनाने की अनुमति दे दी। भवन निर्माण समिति की अनुसंशा (130/12 जनवरी 2010) पर भवन अनुज्ञा(25076) 25 जनवरी 2010 को जा की गई जो कि 15 जनवरी 2013 तक ही वैध थी। बावजूद इसके अधिकारियों से मिली खुली छूट के कारण अब तक मौके पर निर्माण किया जा रहा है।
नपती करके करें कार्रवाई
शिकायतकर्ता ने लोकायुक्त से मांग की है कि टीएंडसीपी और नगर निगम द्वारा नियमों को नजरअंदाज करते हुए दी गई अनुमतियों की बारीकी से जांच हो। बिल्डिंग की नपती कराई जाए ताकि अवैध निर्माण भी सामने आए जो कि बड़े पैमाने पर हुआ है। इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी पत्र लिखकर राजू टेकचंदानी व निखिल कोठारी के लाइसेंस रद्द करने व प्रकोष्ठ की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की गई है।
पजेशन में भी परेशानी
टेकचंदानी ने जो बिल्डिंग बनाई उसके लिए लोगों से 24 महीने में पजेशन का वादा करके पैसे लिए गए थे लेकिन बिल्डिंग बनते-बनते छह साल हो चुके हैं। अब तक किसी एक फ्लैट में भी पजेशन नहीं दिया गया। शो-पीस की तरह दिखाने के लिए बनाए गए आधे-अधूरे फ्लैट को छोड़कर बाकी फ्लैट में टाइल्स तक भी नहीं लगी है।

पुखराज पैलेस के नक्शे में बदलाव का प्रस्ताव रद्द

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
मुख्यमंत्री शिवराजरासिंह चौहान के हाथों प्लॉट बटवाने के बावजूद छह साल में सदस्यों को प्लाट नहीं दे पाई बसंत विहार गृह निर्माण सहकारी संस्था के नए नक्शे पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट ने रोक लगा दी है। डिपार्टमेंट ने स्पष्ट कर दिया है कि सहकारिता विभाग से स्पष्ट निर्देश आने और नक्शे को लेकर मिल रही आपत्तियों के निराकरण के बिना नक्शा मंजूर नहीं किया जा सकता।
सबसे विवादित संस्थाओं में से एक जनकल्याण गृह निर्माण संस्था की जैबी संस्था बसंत विहार गृह निर्माण सहकारी संस्था के संचालकों ने कैस 2010 में मुख्यमंत्री के हाथों सदस्यों को प्लॉटों के आवंटन पत्र सौंपे और कैसे आज दिन तक सदस्यों को प्लॉट नहीं दे पाए? इसका खुलासा दबंग दुनिया ने 13 दिसंबर के अंक में ‘छह साल बाद भी प्लॉट नहीं दे पाई बसंत विहार’, शीर्षक से प्रकाशित खबर में किया था। इसके बाद मामले को गंभीरता से लेते हुए टीएंडसीपी के संयुक्त संचालक राजेश नागल ने सहकारिता विभाग से अभिमत मांगा।
सहकारिता विभाग : न मानें अभिमत, स्थगित रखें कार्रवाई
20 दिसंबर 2016 को जारी पत्र में सहकारिता विभाग के उपायुक्त ने कहा कि संस्था को स्वीकृत अभिन्यास के संशोधन के लिए अभिमत दिया था। बाद में शिकायतें मिली। जांच जारी है। वास्तविकता जांच रिपोर्ट में ही सामने आएगी। तब तक विभाग द्वारा दिए गए अभिमत पर टीएंडसीपी अपनी कार्रवाई को स्थगित रखे। जांच रिपोर्ट से डिपार्टमेंट को अवगत करा दिया जाएगा।
टीएंडसीपी : संसोधन स्थगित
संयुक्त संचालक नागल ने सहकारिता उपायुक्त से मिले पत्र के आधार पर 22 दिसंबर 2016 को बसंत विहार गृह निर्माण संस्था को पत्र लिखा और संशोधन स्थगित करने की जानकारी दे दी। नागल ने अपने पत्र में लिखा कि  संस्था की ग्राम निपानिया में 6.533 हेक्टेयर जमीन (सर्वे नं. 78/1, 78/3, 79/2, 77/2, 79/5, 88/2, 79/3 व 80/2) है। 129 इमली बाजार के पते पर पंजीबद्ध इस संस्था द्वारा प्रस्तावित पुखराज एवेन्यू कॉलोनी का ले-आउट 8 जुलाई 2011 को  मंजूर किया था, लेकिन विकास नहीं किया।  अगस्त 2016 में पूर्व स्वीकृत अभिन्यास में संशोधन की मांग करते हुए नया अभिन्यास मंजूरी के लिए लगाया। प्राप्त शिकायतों और सहकारिता विभाग के अभिमत के आधार पर अभिन्यास के संसोशन की कार्रवाई स्थगित की जाती है। सहकारिता विभाग से स्पष्ट जानकारी मिलने के बाद ही आगे की कार्रवाई होगी।

500 जनधन खातों में जमा हुए 100 करोड़

नोटबंदी का असर
औसत हर खाते में पहुंचे 20 लाख
10 लाख से अधिक जमाकरने वाले करीब एक हजार लोग इनकम टैक्स के निशाने पर
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
नोटबंदी की घोषणा के बाद इंदौर में भी गरीबों के खातों में कुबेरों ने जबरदस्त खेल किए। इसका बड़ा उदाहरण है आयकर की राडार पर आए 500 से अधिक जनधन खाते। इन खातों में 100 करोड़ रुपए से ज्यादा केश जमा हुआ है। यानी हर खाते में औसत 20 लाख रुपए। बहरहाल, रकम किसकी है इस संबंध में आयकर ने छानबीन शुरू कर दी है।
नोटबंदी के बाद 17 दिसंबर को शुरू की गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को लेकर पत्रकारों से रुबरू हुए मुख्य आयकर आयुक्त वी.के.माथुर ने यह जानकारी दी। माथुर ने बताया कि जनधन के जो खाते अब तक खाली पड़े थे उनमें यकायक पैसा आया है। किसी में दो लाख रुपए जमा है तो किसी में उससे कहीं ज्यादा। उन्होंने कहा कि एक-एक खाते की बारीकी से जांच की जा रही है। जल्द ही नोटिस की कार्रवाई की जाएगी।
500 से ज्यादा खातों में एक करोड़ से ज्यादा
माथुर ने बताया कि इनकम टैक्स ने चीफ कमिश्नरेट में 768 बैंक खातों को चिह्नित किया है जिनमें 8 नवंबर को हुई नोटबंदी के बाद 10 लाख रुपए से अधिक रकम जमा की गई है। इनमें 350 ऐसे खाते हैं जिनमें एक करोड़ से ज्यादा राशि जमा की गई। के्रेडिट को-आॅपरेटिव बैंक, सहकारी साख संस्था और मल्टी स्टेट को-आॅपरेटिव बैंकों में संचालित हो रहे 150 ऐसे खाते भी सामने आए हैं जिनमें एक करोड़ से 10 करोड़ तक की रकम जमा हुई है। इनमें 50 फीसदी कंपनियों के अकाउंट्स है और 50 फीसदी इंडिविजुअल्स।
60 बैंकें और 300 खातें भी आए सामने
इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग के अधिकारियों के साथ माथुर ने बताया कि हमने 60 को-आॅपरेटिव बैंकों को नोटिस देकर बड़े खातेदारों की सूची मांगी थी। 22 दिसंबर की शाम को ही बैंकों से तकरीबन 300 खातों की सूची मिली है जिनमें 10 लाख से लेकर 10 करोड़ रुपए तक जमा हुए हैं।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना आखिरी मौका
माथुर ने बताया कि नोटबंदी के बाद जिन लोगों ने 500 और 1000 के नोटों में जमा अपना कैश इन हैंड बैंक खातों में जमा कर दिया है या आयकर के डंडे के चक्कर से बचने के लिए जमा कर नहीं पा रहे हैं उनके लिए सरकार ने 17 दिसंबर से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना शुरू की है जो कि 31 मार्च 2017 तक चलेगी। इसके तहत हुए खुलासे पर 50 फीसदी टैक्स और जुमार्ना लगेगा। बाकी की 25 फीसदी रकम 4 साल के लिए बैंक में ही जमा रहेगी जिस पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा। अगर गरीब कल्याण योजना के बाद काले धन का पता चला और आय के स्रोत की जानकारी नहीं मिली तो 77.25 फीसदी पैसा सरकार ले लेगी। अगर आय का स्रोत साबित नहीं कर सके तो 85 फीसदी पैसा भरना होगा। योजना के बाद छापा पड़ने पर काला धन मिलने पर 60 फीसदी पैसा भरना होगा। अगर छापा पड़ा और काले धन होने की बात स्वीकारी तो 90 फीसदी पैसा सरकार को देना पड़ेगा। पहले पेनल्टी सहित टैक्स जमा करना होगा उसके बाद ही योजना का लाभ ले पाएंगे।
ताकि खत्म हो पेंडिंग मामले
1 जून से  डायरेक्ट टैक्स डिस्प्यूट रिजोल्यूशन स्कीम 2016 योजना शुरू की गई थी ताकि टैक्स और पेनल्टी के पेंडिंग केसेस का निराकरण किया जा सके। स्कीम के तहत 10 लाख तक के मामलों में टैक्स और पेनल्टी लगेगी। 10 लाख से अधिक के मामलों टैक्स और ब्याज के साथ 25 फीसदी पेनल्टी लगेगी। पेनल्टी के अपील प्रकरणों में 25 फीसदी राशि देकर 75 फीसदी से छूटकारा मिल सकता है। 31 दिसंबर तक चलने वाली स्कीम उनके लिए है जो सेटलमेंट चाहते हैं। अभी इंदौर परिक्षेत्र में 3000 से ज्यादा प्रकरण पेंडिंग हैं।

Thursday, December 15, 2016

सेंट्रल ब्यूरो आॅफ नार्कोटिक्स में अधिकारियों की मनमानी

वर्दी को बना दिया कमाई का जरिया
इंदौर. विनोद शर्मा ।
रिश्वत के मामले में सीबीआई ने जिस सेंट्रल ब्यूरो आॅफ नॉर्कोटिक्स (सीबीएन) के आॅफिस में रेड की उसे मीणा और खत्री ने कमाई का जरिया बना लिया है। यहां कार्रवाई कम और कमाई ज्यादा होती है। इससे पहले भी सीबीआई डी.एस.मीणा पर एक नहीं बल्कि दो बार रिश्वत मामले को लेकर कार्रवाई कर चुकी है। आखिरी बार 2011 में वे 10 लाख की रिश्वत के साथ गिरफ्तार हुए थे।
सीबीएन का मुख्यालय ग्वालियर है और प्रदेश का सबसे कमाऊ ईलाका नीमच, मंदसौर, जावरा, गरोठ, रतलाम है। क्योंकि यहां अफीम की खेती होती है। इसी तरह इसी क्षेत्र से लगे राजस्थान के कोटा के अधिकारियों का रुतबा भी बरकरार है। जिसका फायदा उठाने में सीबीएन के ये वर्दीधारी किसी भी हद को पार कर जाते हैं। नार्कोटिक्स की बड़ी-बड़ी खेप हाथ से निकल जाती है और छोटी खेप पर की गई कार्रवाई को बड़ा बता दिया जाता है। सोमवार को जिन दोनों अधिकारियों पर सीबीआई ने छापेमार कार्रवाई की है उनमें से एक अधीक्षक डी.एस.मीणा पर सीबीआई अपै्रल 2011 में भी छापेमार कार्रवाई कर चुकी है। मामला ट्रायल पर है।
मांगी थी 10 लाख की रिश्वत, मिले थे 7 लाख
-- 11 अपै्रल 2011 को सीबीआई ने मंदसौर में पदस्थ रहे इंस्पेक्टर डी.एस.मीणा ‘जो अब कोटा सीबीएन में अधीक्षक हैं’, को गिरफ्तार किया था। एक मामले की छानबीन में सीबीआई को पता चला था कि मीणा ने ओमप्रकाश पाटीदार से 10 लाख की रिश्वत मांगी थी। केस को रफादफा करने के लिए। बाद में पाटीदार गिरफ्तार हो गया। ना-नुकुर के बाद पाटीदार ने कबूला कि मीणा ने 10 लाख रुपए मांगे थे जिसमें से वह 7 लाख रुपए दे चुका है। इसी आधार पर मीणा के अड्डे पर रेड हुुई और सात लाख रुपए के साथ 61 ग्राम अफीम भी बरामद की गई। इस अफीम का उपयोग लोगों को झूठे केस में फंसाने का डर बताने के लिए किया जाता था।
-- इसी डी.एस.मीणा पर एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी), राजस्थान ने रिश्वत के आरोप में केस दर्ज किया था। सेंट्रल ब्यूरो आॅफ नार्कोटिक्स की तरफ से अभियोजन की स्वीकृति न मिलने के बाद जांच एजेंसी ने मामले खात्मा पेश कर दिया।
एक आरोपी दे चुका है मीणा की कस्टडी में जान
25 सितंबर 2016 को चंद्रशेखर पाटीदार (34) ने सीबीएन, कोटा के लॉकअप में आत्महत्या कर ली। इस सर्कल के इंचार्ज भी धर्मसिंह मीणा है।  पाटीदार को स्मगलिंग के एक मामले में 20 सितंबर को 5 करोड़ की ड्रग्स के साथ गिरफ्तार किया गया था। पूछताछ के लिए 28 सितंबर तक पाटीदार कस्टडी में रहना था। चंद्रशेखर ओमप्रकाश पाटीदार से ताल्लुक रखता था जिससे सात लाख की रिश्वत लेकर मीणा सलाखों के पीछे तक गए थे।
जून में इंदौर से उज्जैन पहुंचे है खत्री
मीणा के बेहाफ पर अज्ञात शिकायतकर्ता से 25 लाख रुपए की मांग करने वाले खत्री मुलत: इंदौर के वासी हैं। 12 फरवरी 1972 को जन्में खत्री केंद्रीय विद्यालय इंदौर से पढ़ाई की। 10 जनवरी 1997 को वे बतौर इंस्पेक्टर सीबीएन से जुड़े। 12 सितंबर 2012 को वे अधीक्षक बनाए गए। जून 2016 में ही उनका ट्रांसफर बतौर अधीक्षक इंदौर से उज्जैन हुआ है। रिश्वत मामले में उनके खिलाफ शिकायतें तो कई मिली लेकिन सीबीआई की टीम पहली बार उन तक पहुंची।

कैंसर और एड्स पीड़ितों के नाम पर ठग रही है इंदौरी चंदागैंग

- उज्जैन, आगर, झाबुआ, धार, अलीराजपुर, देवास में करोड़ों की ठगी
- झाबुआ में पकड़े जा चुके हैं गैंग के गुर्गे
- सरगना संदीप अब भी पुलिस की पकड़ से दूर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
कैंसर और एड्स के पीड़ितों की मदद के नाम पर लोगों से चंदा वसूली को इंदौर के आधा दर्जन युवाओं ने अपना धंधा बना लिया है। इनमें से तीन युवाओं को जुलाई के महीने में झाबुआ पुलिस कैंसर व एड्स केअर सोसायटी के फर्जी रसीद कट्टों के साथ गिरफ्तार भी कर चुकी है। हालांकि पुलिस इस खेल के मास्टर माइंड तक नहीं पहुंच सकी। संदीप चौधरी नाम का यह शख्स विजयनगर इंदौर में रहता है। यह चंदागैंग न सिर्फ झाबुआ बल्कि इंदौर, धार, अलीराजपुर, उज्जैन, आगर और शाजापुर में भी हजारों रसीदें काटकर 10 करोड़ से ज्यादा की उगाही कर चुकी है।
17 जुलाई को व्यावसायी योगेश सालेचा की शिकायत पर राणापुर (झाबुआ) पुलिस ने कैंसर एड्स क्योर नामक संस्था की रसीदें काटकर चंदा वसूलने वाले तीन लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें सचिन पिता राजवीर मलिक (32), राघव पिता रामसिंह गुर्जर (25) और अमित पिता उत्तमसिंह सिसोदिया (28) शामिल थे। पुलिस की पूछताछ में इन्होंने संदीप का नाम नहीं कबूला क्योंकि वह बाहर रहकर इन्हें छुड़वाने का काम करता है। ऐसे ही एक मामले में वह जुलाई में ही आगर पुलिस स्टेशन से भी इन्हें छुड़वा चुका है। हालांकि तफ्तीश के दौरान दबंग दुनिया के सामने अमित ने संदीप के नाम का खुलासा कर दिया।
ऐसे आए थे पकड़ में
राणापुर के व्यावसायी योगेश सालेचा ने बताया कि तीनों चंदा लेने उनके पास पहुंचे। उन्होंने 500 रुपए का चंदा दिया भी। वे रसीद दे रहे थे तभी चंदा दे चुके वहीं के तीन लोग धर्मेश जैन, राजेश व कैलाश भी पहुंचे। उन्होंने रसीद पर पंजीयन नंबर न होने की बात बताई। चारों ने पंजीयन नंबर के बारे में पूछताछ शुरू की तो तीनों भाग गए। मामले की सूचना तत्काल राणापुर पुलिस को दी। पुलिस ने घेराबंदी के बाद तीनों को उनकी कार (अल्टो 800 जिसका नंबर यूपी17सी8717) के साथ पकड़ा। थाना प्रभारी भीमसिंह सिसोदिया ने तीनों के खिलाफ भादवि की धारा 34 और 420 के तहत धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया। कुछ दिन पहले ही जमानत मिली। 8 और 10 नवंबर को मामले की सुनवाई झाबुआ कोर्ट में भी थी।
ऐसे पहुंचे संदीप तक
मामले की जानकारी मिलने के बाद दबंग दुनिया ने सरगना की तलाश शुरू कर दी। पहली कड़ी हाथ लगी 28 अक्टूबर 2016 को जब अमित सिसोदिया से उसके कबीटखेड़ी स्थित घर पर मुलाकात हुई। बातचीत में अमित ने बताया कि मैं राऊ बायपास पर ईडन गार्डन नाम की निर्माणाधीन टाउनशीप में कंस्ट्रक्शन से जुड़ा काम करता था। जून में नौकरी छोड़ दी। चूंकि संदीप के साथ सात-आठ साल पहले मैं काम कर चुका था। इसीलिए मैंने उनसे नौकरी की बात की। उन्होंने कहा ठीक है देशभक्त सेवा ट्रस्ट के नाम से एनजीओ शुरू कर रहे हैं उससे जोड़ लेंगे। फिलहाल तो कैंसर व एंड्स केअर संस्था का काम करो। सचिन और राधव ‘जो कि पहले से संदीप के लिए काम करते थे’, के साथ मैंने काम शुरू किया ही था कि झाबुआ पुलिस ने पकड़ लिया। मैं इनके चक्कर में फंस गया। पूरा परिवार परेशान हुआ है।
ऐसे चल रही चंदा गैंग
-- संदीप चौधरी मुलत: मेरठ से है। झाबुआ पुलिस द्वारा पकड़ा गया सचिन मलिक उसके रिश्ते में है जो भी मेरठ का रहने वाला है। दोनों ऐसे एनजीओ तलाशते हैं जो कि अर्से से निष्क्रिय है। बाद में उनके रसीद कट्टे छपवाते हैं। एनजीओ में नौकरी के नाम पर लड़कों को कट्टा पकड़ाकर चंदा वसूली के लिए छोड़ देते हैं।
-- लड़के ऐसे ढूंढे जाते हैं जो कि पड़े लिखे हों ताकि चंदा लेते वक्त वे चंदा देने वाले को ट्रस्ट के बारे में ज्यादा अच्छे से समझा सके।
-- जिसे पुलिस रिकार्ड में राघव पिता रामसिंह गुर्जर बताया गया है असल में उसका नाम अक्षय सिंह गुर्जर है। 1 जनवरी 1996 को जन्मा राघव यूं तो ज्ञानशीला डेवलपर्स लिमिटेड में वाइस प्रेसीडेंट सेल्स एंड मार्केटिंग है लेकिन उसके खिलाफ और भी आपराधिक रिकॉर्ड दर्ज हैं। उसके नजदीकी मित्रों के अनुसार वह बड़ा अपराधि बनना चाहता है। 

हृदयेश दीक्षित : आठ साल, दो छापे, 2000 करोड़ का काला कारोबार उजागर

प्रदेश टूडे को बनाया सरकारी नजर से का जरिया
मेडिकल और मिड डे मिल से लेकर व्यापमं और खदानों के खेल तक में है दीक्षित का हाथ
इंदौर. विनोद शर्मा ।
बीते दिनों चिरायू हॉस्पिटल में हुई छापेमार कार्रवाई के दौरान सीबीआई के हाथ लगे दस्तावेजों में जिस हृदयेश दीक्षित का नाम था उसके खिलाफ 2007 से 2016 के बीच दो बार इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग की छापेमार कार्रवाई हुई। 2007 की छापेमारी ने जहां दवा व मेडिकल उपकरण की सप्लाई का गौरखधंधा बंद करवा दिया था वहीं 2016 की छापेमारी ने दीक्षित और उनके वित्तीय आकाओं की जड़े हिला दी। बहरहाल, आयकर की मार से बौखलाया दीक्षित मामले को सेटल करने के लिए अधिकारियों पर दबाव बना रहा है।
1989 में स्पूतनिक में बतौर फ्री लांस रिपोर्टर अपना करियर शुरू करने वाले दीक्षित ने व्यापमं के आरोपी पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, खदान माफिया सुधीर शर्मा और दलिया माफिया सुनील जैन के वित्तीय सहयोग से प्रदेश टूडे की नींव रखी।  मकसद व्यापमं, अवैधानिक खनीज उत्खनन और दलिये के काले कारोबार को अखबार की आड़ देना था ताकि सरकारी नजरों से बचा जा सके। हालांकि ऐसा हुआ नहीं। इनकम टैक्स की इन्वेस्टिगेशन विंग ने तमाम तथ्यों को जानने और दीक्षित बंधुओं को टॉप कनेक्शन को समझने के बाद भी धमाकेदार कार्रवाई की।
2008 : छापे ने उजागर किया दवा सप्लाई रैकेट
30 मई 2008 को इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अजय विश्नोई के भाई अभय विश्नोई,  स्वास्थ्य सचिव  राजेश राजौरा, रिटायर्ड आईएएस यूके सामल और हृदयेश दीक्षित के खिलाफ छापेमार कार्रवाई की। कुल 56 जगह छापे मारे थे। कार्रवाई में लघू उद्योग निगम के माध्यम से किए जा रहे 1000 करोड़ के दवा व मेडिकल उपकरणों की सप्लाई का भंडाफोड़ हुआ। 7 सितंबर 2007 को हैल्थ डायरेक्टर रहे योगीराज शर्मा के घर हुई इनकम टैक्स की कार्रवाई में स्पलाई घोटाले के सुराग डिपार्टमेंट के हाथ लगे थे। इसका जिक्र 1 फरवरी 2008 को विधानसभा में नेताप्रतिपक्ष जमूना देवी ने भी किया था। दीक्षित अशोक शर्मा के रिश्तेदार हैं और उनके भाई अवधेश दीक्षित मेडिकल सप्लायर थे।
2016 : 800 करोड़ का मिड डे मिल घोटाला उजागर
12 जुलाई 2016 को एक बार फिर इनकम टैक्स ने दीक्षित बंधुओं और  एमपी एग्रो के सुनील जैन के खिलाफ छापेमार कार्रवाई की। कार्रवाई मिड डे मिल में दलिये की सप्लाई घोटाले की शिकायतों के बाद हुई। एमपी एग्रो और महिला एवं बाल विकास विभाग के बीच सालाना 800 करोड़ का कांट्रेक्ट था। कार्रवाई में सुनील जैन ने 50 करोड़ की काली कमाई स्वीकारी और पत्रकारिता के तथाकथित पुरौधा दीक्षित ने 5 करोड़ सरेंडर किए।  
पत्रकार से अखबार मालिक तक का सफर...
शिक्षक माता-पिता के घर के जन्में दीक्षित ने 1988-89 में स्पूतनिक से फ्री लांसर के रूप में पत्रकारिता शुरू की। कुछ दिन नवभारत में रहे। जो विवाद के बाद छोड़ा। फिर चेतना व दैनिक भास्कर में रिपोर्टिंग की। बतौर पत्रकार राजनीतिक गलियारों में पकड़ बनाई। इसी दोरान पिता ने बिजासन के पास पुश्तैनी जमीन बेची। करीब एक करोड़ रुपया आया। भाई अवधेश दीक्षित को पहले नगर निगम इंदौर का ठेकेदार बनाया। बाद में खुद ने भोपाल ट्रांसफर लिया। जीन्यूज, सहारा समय और 2008-09 तक राज एक्सप्रेस में भी पत्रकारिता की। 2008 में जिस वक्त छापा पड़ा था उस वक्त वे राज एक्सप्रेस में ही थे।
इस दौरान सरकार में अपने संबंधों और मीडिया में अपनी धाक को भुनाते हुए दीक्षित ने अपने भाई को नगर निगम से निकालकर दवाइयों व मेडिकल उपकरणों का बड़ा सप्लायर बना दिया।
मिलेजुले पैसे से पनपा प्रदेश टूडे
इसी दौरान आईएएस व मंत्रियों से वित्तीय मित्रता भी हो गई। जिसका फायदा उन्हें 2009- 10 में मिला जब प्रदेश टूडे पहले मेग्जीन के रूप में निकाला। सालभर बाद अखबार के रूप में। इसमें पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, खदान माफिया सुधीर शर्मा, चिरायू वाले डॉ. अजय गोयनका, दलिया वाले सुनील जैन व कुछ आईएएस की भूमिका अहम रही। कई के नाम इनकम टैक्स की हालिया सर्च में भी सामने आए हैं। बाद में राज एक्सप्रेस में अपने ही साथ काम करने वाले लोगों को तोड़ा और प्रदेश टूडे में ऊंचे ओहदे पर रखा।
पत्रकारों को बना दिया फर्जी डायरेक्टर
दीक्षित बंधुओं की एक कंपनी डमी डायरेक्टरों में देवेश कल्याणी का नाम भी शामिल है जो अखबार के भोपाल संस्करण के संपादक हैं। कल्याणी ग्लोबल रियलकॉन प्रा.लि. में शांतनु दीक्षित के साथ डायरेक्टर हैं। कंपनी लैंडमार्क बिल्डिंग न्यू लिंक रोड अंधेरी, मुंबई के पते पर पंजीबद्ध है।
ऐसा ही एक नाम है सतीश पुरुषोत्तम पिंपले का जो भी प्रदेश टूडे में डायरेक्टर है। यह भी दीक्षित के साथ राज एक्सप्रेस में रहा है। फिलहाल यह अवधुत मीडिया प्रा.लि. में भी डायरेक्टर हैं। 

टैक्स चोर ह्दयेश दीक्षित अब आयकर को दिखाने लगा आंख

जुलाई में हुई छापेमार कार्रवाई को हाईकोर्ट में दी फर्जी तथ्यों से चुनौती
कहा : मैं आईडीएस में काली कमाई स्वीकारना चाहता था, विंग ने छापा मारकर इज्जत खराब कर दी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एक कहावत है, उलटा चोर, कोतवाल को डांटे, जो कि पत्रकारिता की आड़ में सरकारी दलाली करते आ रहे ह्रदयेश दीक्षित पर सटीक बैठती है। क्योंकि अगस्त में इनकम टैक्स की छापेमार कार्रवाई में दीक्षित ने पांच करोड़ की काली कमाई स्वीकारी और अक्टूबर में उसी कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। मकसद है, कार्रवाई को गलत साबित करके इनकम टैक्स के आला अधिकारियों को कटघरे में खड़ा करना।
12 जुलाई को इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने दलिया माफिया सुनील जैन और पत्रकारिता की आड़ में मिड डे मिल घोटाले को पोषित करते आए प्रदेश टूडे के मालिक ह्रदयेश दीक्षित के 35 ठिकानों पर दबिश दी थी। प्रोबेशरी आॅर्डर (पीओ) के कारण कार्रवाई अगस्त के दूसरे सप्ताह तक चली। पहले जैन ने 50 करोड़ की काली कमाई स्वीकारी। इसके बाद आयकर अधिकारियों को अपने राजनीतिक और प्रशासनिक संबंधों से प्रभावित करने में बूरी तरह नाकाम रहे दीक्षित बंधुओं ने 5 करोड़ की अघोषित आय सरेंडर की।
अब इनकम टैक्स को दिखा रहे हैं आंख...
66 भक्त प्रहलादनगर निवासी अवधेश पिता मोहनलाल दीक्षित ने 26 सितंबर को रीट पिटिशन(डब्ल्यूपी) 6648/2016  फाइल की और इनकम टैक्स की कार्रवाई को चुनौती दी। पिटिशन में दीक्षित बंधुओं ने मिनिस्ट्री आॅफ फाइनेंस, डायरेक्टर इनकम टैक्स (इन्वेस्टिगेशन), भोपाल और प्रिंसिपल कमिश्नर इनकम टैक्स, आयकर भवन इंदौर को पार्टी बनाया।
इनकम टैक्स पर आरोप, अवैध तरीके से मारा छापा
संविधान के आर्टीकल 226 और 227 के तहत फाइल की गई इस याचिका में इनकम टैक्स एक्ट की धारा 132 को चुनौती दी गई जिसके तहत दीक्षित बंधुओं के घर पर छापेमार कार्रवाई की गई थी। 29 सितंबर 2016 को हाईकोर्ट ने याचिका पर मिनिस्ट्री आॅफ फाइनेंस, डायरेक्टर इनकम टैक्स (इन्वेस्टिगेशन), भोपाल और प्रिंसिपल कमिश्नर इनकम टैक्स, आयकर भवन इंदौर को नोटिस जारी कर दिए। सुनवाई के लिए अगली तारीख 20 दिसंबर 2016 मुकरर्र कर दी।
इस याचिका के माध्यम से दीक्षित बंधुओं का यह कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरूण जेटली ने 1 जून से इनकम डिस्क्लोज स्कीम (आईडीएस) लांच की थी ताकि कोई भी व्यक्ति अपनी काली कमाई स्वत: ही स्वीकार ले। हम भी इस योजना का लाभ लेकर अपनी काली कमाई स्वीकारना चाहते थे लेकिन इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने बीच में ही छापेमार कार्रवाई कर दी। कार्रवाई का मकसद सिर्फ और सिर्फ हमें परेशान करना था। ताकि हमारी छवि हो।
हां मैं टैक्स चोर हूं.... दीक्षित
कालेधंधे को बचाए रखने के लिए निकाले जा रहे प्रदेश टूडे में उद्योगपतियों को टैक्स चोर बताते आए दीक्षित बंधुओं ने अगस्त में 5 करोड़ की काली कमाई सरेंडर करके यह स्वीकारा कि उन्होंने टैक्स चोरी करके भारीभरकम काली कमाई संग्रह की। इसके बाद जो याचिका लगाई है उसमें भी साफ लिखा है कि हम तो आईडीएस के तहत अपनी अघोषित आय स्वीकारना चाहते थे। उधर, आयकर विभाग से जुड़े जानकारों की मानें तो  अघोषित आय / काले धन को उजागर करने के लिए आयकर अधिनियम, 1961 की धाराए 132 व 133अ के तहत आयकर प्राधिकारीगण आयकर सर्च व सर्वे की कार्यवाही को अंजाम दिया जाता है। इसमें सरेंडर कराने का कोई प्रावधान नहीं है लेकिन असेसी बड़ी कार्रवाई से बचने के लिए कार्रवाई के दौरान स्वीकार लेता है उसने फला-फला रकम गलत तरीके से अर्जित की। जिसकी जानकारी उसने अकाउंट बुक्स में नहीं दी थी ताकि टैक्स चोरी की जा सके। इसीलिए इसे अघोषित आय कहते हैं जिसे सरेंडर करने के बाद दीक्षित जैसे लोगों को न सिर्फ आयकर बल्कि पेनल्टी भी चुकाना पड़ती है।
अगली तारीख तय नहीं
अवधेश दीक्षित ने इनकम टैक्स की कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। अभी नोटीस जारी हुए हैं। बीच में एक तारीख लगी थी लेकिन नंबर नहीं आया। अगली तारीख तय नहीं हुई है। तब तक विभाग भी अपना रिप्लाय फायल कर देगा। प्रथम दृष्टया ही दीक्षित बंधुओं का केस और तर्क कमजोर हैं।
वीना मांडलिक
इनकम टैक्स की एडवोकेट
दम नहीं है दीक्षित की चुनौती में...
1- सरकार ने आईडीएस की स्कीम घोषित की थी लेकिन ऐसी कोई पाबंदी नहीं लगाई गई कि स्कीम समयसीमा में इनकम टैक्स की टीम सर्च या सर्वे की कार्रवाई नहीं कर सकती।
2- स्कीम 1 जून से लागू हुई। छापा पड़ा 12 जुलाई को। मतलब स्कीम लागू होने के बाद 42 दिन बाद। इन 42 दिनों में दीक्षित बंधुओं ने काली कमाई क्यों नहीं स्वीकारी। किस बात का इंतजार करते रहे?
3- 12 जुलाई को हुई कार्रवाई। 12 अगस्त को सरेंडर किए पांच करोड़। कार्रवाई को चुनौती 77 दिन बाद चुनौती क्यों दी? क्या इस दौरान मजबूत फैक्ट्स नहीं थे?
4- कार्रवाई यदि अवैध थी तो फिर पांच करोड़ की काली कमाई सरेंडर क्यों की?
5- 2008 में भी कार्रवाई हुई थी। मतलब आप आदतन टैक्स चोर हैं। इसीलिए इसीलिए सरकार से राहत के पात्र भी नहीं है। फिर सहानुभूति की उम्मीद क्यों? 

बच्चों के भरौसे दीक्षित का दम्भ

- 90 फीसदी अखबार की बिक्री बच्चों के जिम्में

- बालश्रम कानून बनाने वाले देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं दादागिरी
भोपाल. विनोद शर्मा ।
पत्रकारिता की आड़ में दलाली करते आ रहे ह्रदयेश दीक्षित ने मासूमों के नाजूक कंधों पर प्रदेश टूडे की नींव रख रखी है। कानून-कायदे के कसीदे गढ़ने और सरकार को अपनी अंगुलियों पर नचाते आए दीक्षित ने बाल श्रम की परिभाषा को रौंदते हुए सैकड़ों बच्चों को हॉकर बना डाला। दो वक्त की रोटी के लिए मासूम भी वाहनों से भिड़ते-टकराते सड़क पार करते हैं और प्रदेश टूडे बेच रहे हैं। गुंडागर्दी ऐसी की सरकारी मशीनरी से लेकर नोबल पुरस्कार प्राप्त विदिशा के ही कैलाश सत्यार्थी तक भी दीक्षित की दादागिरी से बच्चों को नहीं बचा पाए।
एक तरफ प्रदेश टूडे सलफता के दावे कर रहा है। इस सफलता ने दीक्षित बंधुओं की अय्याशी तो बढ़ाई लेकिन अखबार वितरण की जिम्मेदारी बच्चों से आगे नहीं बढ़ पाई। आज भी भोपाल व अन्य जगह सैकड़ों बच्चे ऐसे हैं जो दोपहर से शाम तक चौराहे-चौराहे खड़े होकर प्रदेश टूडे बेचते नजर आते हैं। कभी सिग्नल को लेकर वाहनों की जल्दबाजी उनके लिए दुखदाई बन जाती है तो कभी बच्चे चाइल्ड ट्रेफिकिंग का शिकार हो जाते हैं। न बाल श्रम विरोधी होर्डिंग-बैनर से सड़कें सजाने वाले श्रम विभाग को इसकी चिंता है और न ही महिला एवं बाल विकास विभाग को। उलटा, हालात यह है कि जो कार्रवाई करना चाहता है उसे भी दबाव-प्रभाव डालकर ऐसा कुछ करने से रोक दिया जाता है।
ऐसे समझें कितना बड़ा नेटवर्क है बच्चों का...
-- प्रदेश टूडे मीडिया समूह से ही ताल्लुक रखने वाले एक अहम व्यक्ति ने बताया कि आॅन रिकॉर्ड प्रदेश टूडे की सवा लाख कॉपी छपती है। इसमें से एक लाख कॉपी बेचने की जिम्मेदारी बच्चों की है। इसीलिए बच्चों का नेटवर्क मजबूत है और प्रबंधन इसे चाहकर भी नहीं बदल सकता। क्योंकि बच्चों को बड़ो की तरह ज्यादा पैसा नहीं देना पड़ता। बच्चों को डराना और समझाना भी आसान है।
--प्रदेश टूडे समूह ने एजेंटों के नाम पर ऐसे तत्वों को बढ़ावा दे रखा हे जो कि आसपास की गरीब बस्तियों से बच्चों को लाते हैं और उन्हें अखबार थमा देते हैं। एक चौराहे पर यदि 10 बच्चे अखबार बेचते  नजर आते हैं तो दो पहलवान उनकी निगरानी रखते हैं। जब कोई बाल श्रम का हवाला देकर फोटो खींचने या फिर बच्चों द्वारा की जा रही अखबार की बिक्री का विरोध करता है तो उसे पकड़कर प्रदेश टूडे के आॅफिस ले जाते हैं। यहां उसकी देवेश कल्याणी और सतीश पिंपले क्लास लेते हैं। मारपीट और धौंसधपट इनकी पुरानी आदत है।
-- चाइल्ड लाइन या पुलिस जब ऐसे बाल हॉकरों पर पकड़ लेती है तो निगरानी करने वाले दीक्षित के गुर्गे 100-50 लोगों की भीड़ ले जाते हैं और संबंधित विभाग के द्वार पर हंगामेबाजी शुरू कर देते हैं। उधर, प्रदेश टूडे प्रबंधन यह कहते हुए पल्ले झाड़ लेता है कि उसका पेपर बांटने वाले बच्चों से संबंध नहीं है। यह बच्चे एजेंटों के माध्यम से यहां काम करते हैं।
-- भोपाल और विदिशा में बाल श्रम को लेकर बड़े काम करने वाले कैलाश सत्यार्थी को नोबेले पुरस्कार से नवाजा जा चुका है लेकिन उनके ही शहर में बच्चों की हॉकरी किसी को नहीं कसक रही है।
बड़े हादसे का इंतजार..
बच्चे अखबार बेचने के लिए जी-जान लगा देते हैं। हाथ में रखे दो-ढ़ाई किलो अखबार की कॉपी जल्द से जल्द बेचने के लिए बच्चे सड़कों पर सर्कस तक करते नजर आते हैं। कोई गाड़ियों से झुलता दिखता है। कोई सिग्नल पर खड़ी गाड़ी में पेपर देकर ग्रीन सिग्नल होने के बाद आगे बड़ी गाड़ी के पीछे पैसे के लिए दौड़ लगाता नजर आता है। आए दिन गिरते-पड़ते रहते हैं लेकिन सरकार को इंतजार है शायद किसी हादसे जिसके बाद सोये अधिकारी जागे और ताबड़तोड़ कार्रवाई करे।
शर्म की बात : मामा के राज में हासिये पर भानजों का भविष्य
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान मप्र की महिलाओं को अपनी बहन और बच्चों को भानजी-भानजा मानते हुए स्वयं को उनका मामा कहते हैं। श्री चौहान और उनके मंत्रियों के साथ ही आईएएस और आईपीएस का लंबा लबाजमा भोपाल में रहता है। हैरत की बात यह है कि मामा और उनके मातहतों को छह साल में सड़कों पर हैरान-परेशान प्रदेश टूडे बेचते हुए बच्चे नजर नहीं आए। या यूं कहें कि दलाल दीक्षित की दोस्ती ने उनकी आंखों पर ऐसा पर्दा डाला कि उन्हें प्रदेश टूडे तो दिखता है लेकिन उसे बेचते हुए बच्चे नहीं दिखते। ह्यसरकारह्ण को बाल हॉकरों से यह तक पूछने की फुरसत नहीं है कि हम राइट टू एजूकेशन (आरटीई) जैसी कल्याणकारी योजनाएं चला रहे हैं लेकिन तुम पढ़ने जाते भी हो या नहीं?
चाइल्ड लाइन को भी चमकाया...
2015 की शुरूआत में चाइल्ड लाइन ने सड़कों पर अखबार लेकर भागते इन बच्चों को सूध ली। धरपकड़ के लिए अभियान चलाया। भोपाल पुलिस की मदद से कुछ बच्चों को पकड़ा भी गया। बताया जा रहा है कि इसी बीच चाइल्ड लाइन के लोगों को प्रदेश टूडे आमंत्रित किया गया। यहां बातचीत की शुरूआत प्रेम से हुई लेकिन देखते ही देखते मामला धौंसधपट तक पहुंच गया। छह महीने में बाल हॉकर व्यवस्था बदलने का दावा किया गया लेकिन अगले ही दिन प्रदेश टूडे के मुखिया महिला एवं बाल विकास विभाग के सरपरस्तों के पास पहुंच गए। अगले ही दिन महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने कार्रवाई से हाथ खींच लिए और चाइल्ड लाइन से लेकर पुलिस तक को इत्तला कर दी गई कि आगे से ऐसा कोई अभियान न चलाएं। इसके बाद से चाइल्ड लाइन ने भी इस दिशा में सोचना बंद कर दिया।
कौन कहता है कि बच्चे परेशान हैं...
प्रदेश टूडे प्रबंधन हमेशा यही जचाता आया है कि उसकी सरपरस्ती में अखबार बांटने वाले बच्चे खुश हैं। प्रबंधन पहले बाल श्रम की बात नकारता है और बाद में कहता है कि हम बच्चों को बीमा कर चुके हैं। उन्हें कपड़े भी देते हैं। हालांकि बच्चे इस दलील से इत्तेफाक नहीं रखते। उनकी मानें तो कपड़े के नाम पर सिर्फ लाल रंग की टी-शर्ट दी जाती है ताकि हमारी पहचान आसान रहे। निगरानी रखने वालों को निगरानी रखने में फायदा रहे। चौराहों पर किसी से बात करने की आजादी नहीं है। किसी से थोड़ी-बहुत देर किसी को बात करते देख लें तो उसे पकड़कर सवाल किए जाते हैं या फिर हमसे। मारपीट भी करते हैं।
हम प्रयास करते रहते हैं...
बाल श्रम कानून के पालन के लिए हम लगातार प्रयास करते हैं जो भी लोग बच्चों से काम ले रहे हैं उनके खिलाफ अभियान जारी है फिर वह आम घरेलू व्यक्ति हो या फिर कोई अखबार। पुलिस की पहल पर कुछ दिन पहले भी हमने 15 बच्चों को पकड़ा था लेकिन सीमित संसाधनों और सरकारी असहयोग के बीच बच्चों को मुक्त कराना मुश्किल रहता है।
अर्चना सहाय, चाइल्ड लाइन
श्रम विभाग को काम है देखना, हमारा नहीं
अखबार वितरण करने या फिर अन्य किसी बाल श्रम से जुड़े मामले में कार्रवाई करने का अधिकार श्रम विभाग को है। महिला एवं बाल विकास विभाग हो या फिर पुलिस हम तो सिर्फ सहयोग करते हैं। जब कार्रवाई हुई हम साथ थे, होगी तब भी साथ होंगे।
कंसोटिया, प्रमुख सचिव
महिला एवं बाल विकास विभाग

रेडीसन को नोटिस देकर इनकम टैक्स ने मांगी दीक्षित के मेहमानों की सूची

जांच : संबंध के कारण आये या अनुबंध के कारण
- किसने उठाया मेहमाननवाजी का खर्चा
इंदौर. विनोद शर्मा।
पत्रकारिता की आड़ में दलाली करने वाले प्रदेश टूडे के संचालक ह्रदयेश दीक्षित के खिलाफ इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग की कड़ी छानबीन जारी है। इस कड़ी में होटल रेडीसन को नोटिस थमाते हुए इनकम टैक्स ने ह्दयेश की शादी की 25वीं सालगिराह पर आए मेहमानों की लिस्ट मांगी गई है। वहीं मामले की जानकारी इस बात की जांच भी  जा रहे है कि कलाकार संबंधों के चलते आयोजन में शरीक हुए थे या फिर अनुबंध के चलते।
दलिया माफिया सुनील जैन के साथ ही ह्रदयेश दीक्षित के ठिकानों पर इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने 12 जुलाई को छापेमार कार्रवाई की थी। कार्रवाई के दौरान दीक्षित के हवाला कारोबार से लेकर बॉलीवुड कनेक्शन तक सामने आए। 17 फरवरी 2016 का दिन इसका बड़ा उदाहरण है जब ह्रदयेश दीक्षित और प्रतीक्षा दीक्षित की शादी की 25वीं साल गिराह में बॉलीवुड के दो दर्जन से ज्यादा कलाकार शरीक हुए थे। इनके ठहरने की व्यवस्था होटल रेडीसन में की गई थी। इसीलिए इनकम टैक्स ने होटल को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि कुल कितने मेहमान आए थे? उनके लिए रूम किन-किन के नाम पर किसने बुक किए थे? बिलिंग किसके नाम हुई थी?
15 दिन का वक्त मांगा है
इनकम टैक्स से मिले नोटिस के बाद होटल रेडीसन में हड़कंप रहा। हालांकि ह्दयेश एंड कंपनी से ग्रीन सिग्नल न मिलने के कारण अब तक होटल प्रबंधन इनकम टैक्स को मेहमानों की सूची नहीं दे पाया। नोटिस जारी हुए महीनाभर हो चुका है। बताया जा रहा है कि होटल प्रबंधन ने इनकम टैक्स में एक जवाब फाइल किया है लेकिन उसमें मेहमानों की सूची देने के लिए 15 दिन का वक्त मांगा है। इस बात की पुष्टि होटल के अकाउंट विभाग के ही एक कारिंदे ने की है।
यह थे मेहमान...
एक्टर चंकी पांडे, सुनील शेट्टी, रजत रावैल पत्नी भावना, रजा मुराद, अनिल कपूर, संजय कपूर, नीरज वोरा, जैकी श्रृाफ, सिंगर अभिजीत भट्टाचार्य  और पत्नी सुमति।
एक्ट्रेस तबू, आरती छाबड़िया, कायनात अरोरा, हुमा कुरैशी, युविका चौधरी, अंजना सुखानी
खेल- आईपीएल चेयरमैन रहे राजीव शुक्ला और पत्नी अनुराधा। सट्टेबाजी के आरोपों में बेन हुई राजस्थान रॉयल टीम की मालिक शिल्पा शेट्टी और पति राज कुंद्रा। क्रिकेटर अजय जडेजा।
2 से 10 लाख रुपए देकर बुलाये थे कलाकार
छापेमारी के दौरान इनकम टैक्स के हाथ जो दस्तावेज लगे थे उनके अनुसार इन कलाकारों को आयोजन में शरीक होने के लिए 2 से 10 लाख रुपए तक भुगतान किया गया था। मकसद साफ था सालगिराह में दीक्षित परिवार का इम्पे्रेशन बढ़ाना। कलाकारों की उपस्थिति ने ऐसा किया भी। इसीलिए इनकम टैक्स अब इस बात की छानबीन कर रहा है कि जो कलाकार आए थे उन्हें कितने पैसे दिए गए। फ्लाइट से आने-जाने का खर्च किसने वहन किया? यहां होटल में किसके खर्च पर ठहरे? जिस दलाल के माध्यम से कलाकारों की बुकिंग हुई थी उससे भी पूछताछ होना है। जो दस्तावेज मिले हैं उनमें दलाल के नाम का भी जिक्र है।
मुंबई आॅफिस की मदद भी ले सकता है
मुंबई स्थित इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग के आॅफिस से भी इनकम टैक्स मदद लेगा। इस संबंध में आए हुए सभी कलाकारों की सूची वहां अधिकारियों को सौंप दी जाएगी ताकि उनके रिटर्न से इस बात की पुष्टि की जा सके कि उन्होंने अपने रिटर्न में पैसा लेकर आना स्वीकारा है या फिर संबंधों की खातिर आना।
फाइनेंस पर टिका है दीक्षित बंधुओं का बॉलीवुड कनेक्शन
इनकम टैक्स के हाथ जो हिसाब-किताब की डायरियां लगी थी उनके अनुसार दीक्षित बंधु इंदौर के बिल्डरों से पैसा लेकर बॉलीवुड की हस्तियों को फाइनेंस करते हैं। इसमें बड़ा नाम अनिल कपूर के भाई संजय कपूर का है। इसका खुलासा दबंग दुनिया पहले कर भी चुका है। 

पांच महीनें, 10 हजार बच्चों की मौत, फिर भी सलाखों से दूर ह्यडीह्ण कंपनी

- बच्चों का पोषण जीम गई दीक्षित-जैन की जोड़ी
- बचने के लिए ले रहे हैं प्रदेश टूडे की आड़
दिसंबर में भोपाल गैस त्रास्दी को 22 साल पूरे होने को है। अब भी त्रासदी जस की तस है। बस स्वरूप बदला है। 1984 में वॉरेन एंडरसन की गलतियों का खामियाजा 25 हजार मासूमों ने अपनी जान गंवाकर चुकाया था। 2016 में 10 हजार नौनिहाल दलिया माफिया सुनील जैन और ह्रदयेश दीक्षित के लालच का शिकार हुए हैं। दोनों घटनाओं में समानता यह है कि उस वक्त सरकार ने एंडरसन को बचाया। आज सार्वजनिक मंच पर विरोधी बयान देने वाले नेता दीक्षित और उसके गुर्गों के साथ खड़े हैं इसीलिए ये किलकारियों के कातिल सलाखों के पीछे होने के बजाय सड़कों पर सीना ताने घुम रहे हैं।
विनोद शर्मा/उमा प्रजापति.भोपाल।
तीन कंपनी...। 800 करोड़ सालाना का ठेका...। पांच साल में 4000 करोड़ खर्च...। फिर कुपोषण का कहर, जहां का तहां..। हालात यह कि पांच महीने में पोषक आहार की कमी से करीब 10 हजार बच्चों को जान गंवाना पड़ी। विपक्ष से लेकर सत्तापक्ष के विधायक और एनजीओ से लेकर केंद्र सरकार तक ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की कुपोषण को लेकर घेराबंदी कर दी लेकिन फिर भी अधिकारी उन कातिलों को सजा नहीं दे पाए जिनकी मनमानी के कारण बच्चे कुपोषण का शिकार हुए।  ह्रदयेश दीक्षित और सुनील जैन जैसे दलिया माफियाओं की आजादी उन माताओं का मुंह चिढ़ा रही है जिनकी गोद हाल में सुनी हुई है।
कुपोषण के कहर की पुष्टि किसी ऐरे-गेरे व्यक्ति ने नहीं की। बल्कि स्वयं लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री रूस्तम सिंह ने कांग्रेस विधायक रामनिवास के सवालों का जवाब देते हुए की। सिंह द्वारा दिए गए जवाब के अनुसार जनवरी से मई 2016 के बीच 151 दिनों में मप्र में 0-6 से वर्ष तक ्रकी उम्र वाले 9167 बच्चों की मौत हुई। मतलब, हर दिन 60 बच्चों की मौत। इस पूरे मामले में भोपाल सबसे आगे रहा। यहां हर दिन करीब चार के औसत से इस दौरान 587 बच्चों को कुपोषण के कारण जान गंवाना पड़ी। जून में पेश हुई इस रिपोर्ट से अक्टूबर तक विधानसभा से लेकर लोकसभा तक हंगामा मचा रहा लेकिन जिम्मेदारों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। ऐसा लग रहा है मानों दलिया माफियाओं की दोस्ती ने सरकार के देखने और सुनने की शक्ति खत्म कर दी। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा पोषण आहार के विकेंद्रीकरण की घोषणाएं और जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश तक भी गैर जिम्मेदार अधिकारी जीम गए।
हत्या का मामला दर्ज होना चाहिए था, हुआ नहीं?
सरकार ने मुंह मांगे दामों पर एमी एग्रो, एमपी एग्रो न्यूट्री फुड्स और एमपी एग्रोटॉनिक्स प्रा.लि. को पोषण आहार की सप्लाई का ठेका दिया था लेकिन क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों ही जरूरत के हिसाब से नहीं मिली। कहीं आवश्यकतानुसार पोषण आहार नहीं मिला और जिससे पोषण की कमी के कारण बच्चों को जान गंवाना पड़ी। कहीं आहार पहुंचा भी सही तो उसकी क्वालिटी पोषित करने के बजाय बच्चों के लिए धीमे जहर का काम करती रही। ऐसे में छोटे-मोटे हादसे में जिम्मेदारों पर हत्या का मुकदमा दायर करती आ रही शिव सरकार कुपोषण की आड़ में बच्चों को मौत सप्लाई करते आ रहे सुनील जैन और ह्रदयेश दीक्षित के खिलाफ मौन क्यों है? अब तक हत्या का मामला क्यों दर्ज नहीं करा पाई? ऐसे सवाल 11 साल का कार्यकाल पूरा करके मप्र में इतिहास रचने वाले मुख्यमंत्री चौहान की साख पर बट्टा लगा रहे हैं।
 अब तक 4000 करोड़ स्वाहा
महिला एवं बाल विकास विभाग हर साल करीब 800 करोड़ रुपए का कांट्रेक्ट एमपी एग्रो को देता है। पोषण आहार बनाने वाली एमपी एग्रो तीन कंपनियों को इसका काम देता है। इसमें एक कंपनी एमपी एग्रो न्यूट्री फूड है। बाकी दो कंपनियां मप्र एग्रो फूड इंडस्ट्री और एमपी एग्रोटानिक्स लिमिटेड हैं। यनि विभाग इन कंपनियों पर अब तक 4000 करोड़ स्वाहा कर चुका है।
मौत के सरकारी आंकड़े
-प्रदेश में 0-6 वर्ष के बीच कुपोषण से 9167 बच्चे मारे गए।
-नवजात बच्चों की यह मौत जनवरी से मई 2016 के बीच हुई।
-प्रदेश के 51 जिलों में 152 दिनों में सर्वाधिक 587 मौत भोपाल जिले में हुई।
-सतना जिले में बीते साल अप्रैल से नवंबर के बीच 356 नवजात बच्चों की मृत्यु हुई।
-प्रदेश में सबसे ज्यादा 22 प्रतिशत कुपोषित बच्चे नीमच जिले में है।
-श्योपुर में ही 100 के लगभग बच्चे कुपोषण के शिकार, -कराहल में 64 और विजयपुर में 25 बच्चे ।
फैक्ट फाइल
प्रदेश में आंगनबाड़ी केंद्र-80,160
उपआंगनबाड़ी केंद्र-12070
कुपोषित बच्चे व महिलाएं-97 लाख 68 हजार
पोषण आहार पैकिट में क्या- ग्रेहूं सोया बरर्फी मिक्स, खिचड़ी मिक्स,  आटा-बेसन लड्डू मिक्स।
-सरकारी दस्तावेजों पर दावा 97 लाख 68 हजार बच्चों का है, जो 92 हजार केंद्रों पर दर्ज हैं।
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महिला एवं बाल विकास विभाग  के प्रमुख सचिव जेएन कंसोटिया से दबंग दुनिया के कुछ सवाल
सवाल-सीएम के आदेश के बाद अब पोषण आहार कंपनियों को क्या ब्लैक लिस्टेट किया जाएगा?
जबाव-नो कमेंट्स
सवाल-इन कंपनियों से 5 साल का करार किया गया है, क्या इसे तोड़ा जाएगा?
जबाव-नो कमेंट्स
सवाल-आंगनबाड़ियों से पोषण आहार के पैकिट वापस मंगवाए जाएंगे?
मैं सिर्फ एक ही जबाव दे सकता हूं, नो कमेंट्स
जे.एन.कंसोटिया, प्रमुख सचिव
महिला एवं बाल विकास विभाग

पांच लाख देकर आगर थाने से छूटी थी चंदागैंग

पुलिस ने तीन दिन रखा और 420 को धारा 151 में बदल दिया था
इंदौर. विनोद शर्मा ।
कैंसर और एड्स पीड़ितों के नाम पर चंदा वसूली करती आ रही इंदौर की चंदागैंग के खिलाफ जुलाई में ही झाबुआ की तरह ही आगर पुलिस ने भी कार्रवाई की थी लेकिन मामला पांच लाख रुपए के लेनदेन के बाद रफादफा हो गया। तीन दिन तक चंदागैंग के तीन सदस्य लॉकअप में रहे और इधर थाना स्टाफ मास्टर माइंड संदीप से सेटिंग करता रहा। पांच लाख में जैसे ही तोड़बट्टा हुआ पुलिस ने धोखाधड़ी के मामले को 151  व 34 जैसी मामूली धारा लगाकर गैंग को छोड़ दिया।
एनजीओ के नाम पर चंदा वसूली करती आ रही इंदौरी चंदागैंग को व्यापारियों की शिकायत पर आगर मालवा पुलिस ने 7 जुलाई की शाम को गिरफ्तार किया था। इनमें सचिन मलिक, अक्षय गुर्जर उर्फ राघव और अमित सिसोदिया के साथ एसपी तिवारी भी था।  तिवारी झाबुआ में भी था लेकिन पुलिस के पकड़ने से पहले ही फरार हो गया था। रसीद और रसीद कट्टों के साथ ही गैंग द्वारा वसूले गए 70-80 हजार रुपए जब्त करते हुए पुलिस ने आरोपियों को आगर शहर के एक मात्र कोतवाली थाने के लॉकअप में रखा। उस वक्त भी संदीप मौके पर नहीं था। साथियों के पकड़े जाने के बाद उसने अपने घर पीजी-257 स्कीम-54 (राष्ट्रीय विद्या मंदिर) इंदौर से आगर थाने में अपनी गोठ बिठाना शुरू कर दी।
पांच लाख में हुआ सेटलमेंट
बताया जा रहा है कि थाने के एक आरक्षक ने इस मामले में संदीप की मदद की। उसने 50 हजार की बक्शीश के वादे में संदीप को थाने के बड़े अधिकारी से मिलवाया। मामला भाव-ताव के कारण दो दिन तक टलता रहा। तीसरे दिन 9 जुलाई को सौदा पांच लाख में पटा। छूटने के बाद आरक्षक को उसका हिस्सा दिये बिना गैंग ने आगर छोड़ दिया।
धारा 151 में बदल गई 420
चूंकि पैसा मिलने में देर हो रही थी इसीलिए थाना स्टाफ ने गिरफ्तारी दिखाई लेकिन अपराध की धारा नहीं डाली। सेटलेमेंट होने और हाथ में पैसा आने के बाद पुलिस अधिकारियों ने धोखाधड़ी की शिकायत पर पकड़े गए चंदागैंग के सदस्यों के खिलाफ धारा 151 और 34 के तहत कार्रवाई की। 9 जुलाई की शाम को आगर एसडीएम ने जमानत दी।
420 क्यों नहीं, 151 क्यों..
धारा 420 : जब पुलिस ने व्यापारियों की शिकायत पर वसूली गई रकम और रसीद कट्टों के साथ आरोपियों को गिरफ्तार किया था लेकिन बाद में पुलिस ने कह दिया कि हमारे पास किसी व्यापारी ने लिखित शिकायत नहीं की। इसीलिए धोखाधड़ी का मुकदमा नहीं बनता।
धारा 151 व 34 : सवाल यह उठता है कि जब 420 दर्ज नहीं की गई तो फिर आरोपियों को तीन दिन लॉकअप में क्यों रखा गया? दबंग दुनिया द्वारा लिये गए रिकॉर्डेड बयान में थाने के आधे स्टाफ ने इस बात की पुष्टि की। ऐसे में सवाल यह था कि फिर 151 व 34 की कार्रवाई किस आधार पर की गई? जबकि 151 व 34 प्रतिबंधात्मक धाराएं हैं जो कि अशांति फैलाने के मामले में लगाई जाती है।
फिर राणापुर में केस क्यों? जिन चार लोगों में से तीन (अमित सिसोदिया, सचिन मलिक और अक्षय गुर्जर)को पुलिस ने गिरफ्तार किया और धारा 151 लगाकर छोड़ दिया उन्हें 17 जुलाई को (9 जुलाई को आगर थाने से छूटने के 8 दिन बाद ही) झाबुआ की राणापुर पुलिस ने धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया। उस वक्त भी संदीप बाहर था। आगर से छुड़वाने वाले संदीप और उसके साथी राणापुर भी गए थे लेकिन वहां टीआई भीमसिंह मीणा ने कानून का साथ दिया और कार्रवाई की।
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शिकायत नहीं तो कार्रवाई नहीं
सर चंदागैंग के लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी क्यों दर्ज नहीं की?
किसी ने रिपोर्ट नहीं की होगी।
फिर 151 जैसी सामान्य धारा क्यों लगी?
हो सकता है वहां झगड़े जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई हो।
जब्त रुपए और रसीद कट्टों की जांच क्यों नहीं की?
कोई शिकायत मिलेगी तभी तो कार्रवाई होगी।
कहा तो यह जा रहा है कि  पांच लाख रुपए लेकर पुलिस ने इस काम को किया?
आरोप बेबुनियाद है। ऐसा होता तो गिरफ्तारी भी क्यों दिखाते।
आगर से छुटने के बाद झाबुआ में भी तो पकड़े गए?
वहां केस की परिस्थिति अलग होगी।
एस.एस.नागर, थाना प्रभारी
तो टीआई के खिलाफ भी होगी कार्रवाई
मामला मेरे संज्ञान में आज आया है। मैं फाइल खुलवाता हूं। जांच करवाता हूं और आवश्यकता पड़ी तो थाना प्रभारी के खिलाफ भी कार्रवाई करेंगे।
आर.एस.मीणा, एसपी
आगर मालवा

256 करोड़ की एक्साइज चोरी में कानपुर की रिमझिम पर इंदौर में भी छापे

 कानपुर की रिमझिम इस्पात के इंदौरी ठिकानों पर डीजीसीईआई का छापा
256 करोड़ की एक्साइज चोरी निकालने और मालिक को गिरफ्तार करने वाले दिल्ली के दल ने की कार्रवाई
इंदौर. विनोद शर्मा ।
ढाई सौ करोड़ की एक्साइज ड्यूटी चोरी करने वाली कानपूर की रिमझिम इस्पात लिमिटेड के इंदौर स्थित ठिकानों पर गुरुवार को डायरेक्टर जनरल आॅफ सेंट्रल एक्साइज इंटेलीजेंस (डीजीसीईआई) ने छापेमार कार्रवाई की। बड़ी मात्रा में कर  चोरी से संबंधित दस्तावेज बरामद किए गए। इस कार्रवाई को कंपनी के खिलाफ सितंबर में सेंट्रल एक्साइज और अक्टूबर में कानपुर और दिल्ली में हुई डीजीसीईआई की छापेमार कार्रवाई का फॉलोअप बतायाजा रहा है।
डीजीसीईआई दिल्ली की टीम गुरुवार सुबह सीजीओ भवन स्थित डिपार्टमेंट के स्थानीय कार्यालय पर इकट्ठा हुई और करीब 12 बजे छापेमार कार्रवाई शुरू कर दी। बताया जा रहा है कि एमजी रोड सहित आधा दर्जन ठिकानों पर कार्रवाई हुई। रिमझिम इस्पात मुलत: कानपुर की कंपनी है। कॉर्पोरेट आॅफिस एपी-6 शालीमारबाग नई दिल्ली में है। 21 सितंबर को सेंट्रल एक्साइज ने कंपनी के कानपुर, हमीरपुर और उन्नाव सहित एक दर्जन ठिकानों पर छापेमार कार्रवाई की थी। बाद में मामला सीबीआई और डीजीसीईआई को सौंप दिया गया। अक्टूबर से डीजीसीईआई लगातार कार्रवाई कर रही है।
बताया जा रहा है कि जब्त दस्तावेजी प्रमाण को डीजीसीईआई की टीम दिल्ली लेकर जाएगी। वहां उन दस्तावेजों से मिलान होगा जिनमें टैक्स चोरी के मकसद से फर्जी तरीके से इंदौर के पतों पर इंट्री की गई थी।
256 करोड़ की टैक्स चोरी
सालाना 1500 करोड़ का कारोबार करने वाली कंपनी ने कानपुर बेस्ड कंपनियां बनाकर 2,300 करोड़ रुपए के लेन-देन किया लेकिन 256 करोड़ की एक्साइज ड्यूटी नहीं चुकाई। फिर इस पर ब्याज भी वसूला जाएगा। इस हिसाब से सिर्फ एक्साइज की देनदारी ही 600 करोड़ से ज्यादा हो गई है। इसके बाद 120 करोड़ रुपए का वैट भी निकल रहा है। निदेशकों के ऊपर पर्सनल पेनाल्टी अलग से लगाई जा सकती है। बताया जा रहा है कि उन्नाव में 1000 करोड़ का प्लांट डालने वाली इस कंपनी ने 2300 करोड़ का कारोबार आॅउट आॅफ द बुक्स किया है।
मालिक योगेश अग्रवाल सलाखों के पीछे है
जिस वक्त एक्साइज ने छापेमार कार्रवाई की थी कंपनी के उायरेक्टर योगेश अग्रवाल ने चीन में होने की बात कही थी। डिपार्टमेंट बार-बार नोटिस-समन देकर तलब करता रहा लेकिन अग्रवाल नहीं पहुंचे। 19 अक् टूबर को अग्रवाल को दिल्ली एअरपोर्ट पर ही गिरफ्तार किया गया।  कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत पर भेजा था जो कि हर पेशी पर बढ़ती जा रही है।
2012 में एसआईबी ने की थी रेड
रिमझिम और उसकी सहयोगी कंपनी जूही इस्पात के खिलाफ दिसंबर 2012 को वाणिज्यिक कर विभाग की एसआईबी ने हमीरपुर-कानपुर में छापेमार कार्रवाई की थी। दो दिन तक कार्रवाई चली। बड़ी टैक्स की रकम जमा कराई गई।
यह भी हैं कंपनियां
रिमझिम इस्पात लिमिटेड
रिमझिम स्टेनलेस लिमिटेड :
जुही अलॉय लिमिटेड
नोवेल शुगर
बद्रीनाथ मेटल्स प्रा.लि.,
मर्चेंट चेम्बर आॅफ उत्तर प्रदेश
जेएमपी कमर्शियल एंड क्रेडिट लिमिटेड
डायरेक्टर : मनीश मित्तल, मनी, संजीवकुमार अग्रवाल, योगेश अग्रवाल, चेतनप्रकाश आर्य, राजीवकुमार गोयल

आयकर के निशाने पर दीक्षित की डी कंपनी

प्रदेश टूडे के वसूलीबाज सीईओ पिंपले को आयकर का नोटिस
प्रदेश टूडे को पेपर-स्याही भी सप्लाई करती है पिंपले की कंपनी अवधूत
इंदौर. विनोद शर्मा ।
अपने काले साम्राज्य को समाचार पत्र के पर्दे में छिपाने की कोशिश करते आए प्रदेश टूडे के ह्रदयेश दीक्षित की चांडाल चौकड़ी पर इनकम टैक्स की कड़ी नजर है। देवेश कल्याणी, अशोक चौधरी, राजीव दुबे और अनुज अग्रवाल के बाद इनकम टैक्स की इन्वेस्टिगेशन विंग प्रदेश टूडे के सीईओ और दीक्षित के वसूलीलाल सतीश पिंपले को भी नोटिस थमा चुकी है। नोटिस में पिंपले से उनकी कमाई का हिसाब और प्रदेश टूडे से संबंध पूछा गया है।
12 जुलाई को इनकम टैक्स ने एमपी एग्रो और प्रदेश टूडे के ठिकानों पर दबिश दी थी। अगस्त में पत्रकारिता की आड़ में दलाली और गुंडागर्दी करते आ रहे दीक्षित ने पांच करोड़ की काली कमाई स्वीकारी। इसके बाद इनकम टैक्स ने दीक्षित सहित दो दर्जन लोगों को नोटिस थमाए। हिसाब-किताब पूछा। उनके जवाब मिलने के बाद डिपार्टमेंट ने विज्ञापन लेने की आड़ में लोगों को ब्लैकमेल करते आ रहे सतीश पिंपले को नोटिस जारी किया। पिंपले प्रदेश टूडे में सीईओ हैं। अवधुत मीडिया एंड पब्लिकेशन प्रा.लि. पिंपले की कंपनी है। 23 मार्च 2011 को रजिस्टर्ड हुई इस कंपनी में सतीश पुरुषोत्तम पिंपले और उनकी पत्नी स्नेहा डायरेक्टर हैं।
प्रदेश टूडे और अवधूत के संबंध पर नजर
पिंपले जिस प्रदेश टूडे में सीईओ हैं उसी प्रदेश टूडे को अवधूत मीडिया एंड पब्लिकेशन प्रा.लि. के बैनर तलें छपाई के पेपर और स्याही सहित प्रिंटिंग से जुड़े अन्य उपकरण सप्लाई करती है। बी-96 सिद्धार्थ सेक सिटी आनंदनगर रायसेन रोड भोपाल के पते पर पंजीबद्ध यह कंपनी दीक्षित की बताई जाती है। बताया जाता है कि इस कंपनी के फर्जी बिलों के माध्यम से ही दीक्षित अपनी काली कमाई को सफेद करते आए हैं। शुरूआत में कंपनी नागपुर से संचालित होती थी लेकिन अब कोलार रोड से चल रही है। कंपनी को पिंपले ने भाई और साले के हवाले कर दिया है।
अखबार में नौकरी, अखबार का मालिक भी
इनकम टैक्स इस गुत्थी को अब तक नहीं सुलझा पाया है कि जो कंपनी प्रदेश टूडे व एक अन्य दैनिक अखबार को पेपर-स्याही सप्लाई करती है उसका डायरेक्टर प्रदेश टूडे में सीईओ की पोस्ट पर कैसे है। इतना ही नहीं इनकम टैक्स के हाथ लगे सुरागों के अनुसार पिंपले ने 2012 में ही ‘सिटी टूडे’ दैनिक अखबार का पंजीयन (एमपीहिन/2012/43114) भी करा रखा है। आॅन रिकॉर्ड वही पब्लिशर भी है। इसका पता एमजी-15 फॉर्च्यून एस्टेट फेज-2, कोलार रोड है। अखबार प्रदेश टूडे में ही बनता है। क्योंकि प्रदेश टूडे के लिए 2 करोड़ रुपए की वसूली के टार्गेट के साथ ही पिंपले को दीक्षित की तरफ से हर तरह की मनमानी की आजादी प्राप्त है। पहले प्रदेश टूडे में विज्ञापन लगाए जाते हैं और फिर सिर्फ सरकारी टेबलों पर नजर आने वाले इस अखबार में। बाद में विज्ञापन की वसूली की जिम्मेदारी गुंडों को दे दी जाती है। जो आनाकानी करता है उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर देते हैं।
विज्ञापन के नाम पर हड़पे 45 हजार, फिर दिखाई दादागिरी
11 सितम्बर 2011 को भोपाल में आॅल इण्डिया स्मॉल न्यूज पेपर्स एसोसिएशन (एआईएसएनपीए) का राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान समारोह ‘संघर्ष 2011’ था। प्रदेश टुडे को इस कार्यक्रम का विज्ञापन 11 सितम्बर 2011 को प्रकाशित करने के लिए 45 हजार दिए गए थे। 300 प्रतियों का आर्डर भी दे दिया गया। प्रदेश टूडे में विज्ञापन नहीं लगा। आयोजकों ने दूसरे दिन विज्ञापन राशि मांगी। प्रबंधन ने पैसा देने से मना कर दिया। 21 सितंबर 2011 को सीईओ सतीश पिम्पले के कार्यालय बुलाया। आयोजक पैसा लेने पहुंचे।  पिम्पले गंदी-गंदी गालियां देते हुए धमकाया कि विज्ञापन नहीं छापा तो क्या हुआ, हम पैसे वापस नहीं करेंगे। अगले दिन भी पिंपले ने फोन पर यही जवाब दिया। इसकी रिकॉर्डिंग भी आयोजकों के पास है। मामले की शिकायत एमपीनगर थाने में भी हुई।
सतीश पीम्पले के गुण्डे की धमकी
प्रदेश टुडे में पत्रकारिता के साथ ही गुंडागर्दी करते आए नितिन दुबे  ने 1 अक्टूबर 2011 को दोपहर 2.50 मिनिट पर एआईएसएनपीए के महासचिव विनय डेविड के मोबाइल पर फोन न. 0755- 3095500 (जो प्रदेश टुडे का नम्बर है) से फोन किया। गालियां दी। हाथ पैर तोडने, उठा लेने की धमकी दी। सतीश  पिम्पले ने कहा कि तेज चला तो सुपारी दे दूंगा। डेविड ने थाना एमपीनगर को लिखित में दी।
बेइमान और लूटेरी है दीक्षित गैंग
कलिनायक का एड दिया था। 45 हजार नकद देकर। न एड लगा। न पैसे लौटाए। उलटा, धमकी दी। गाली दी। फोन नंबर के साथ वॉइस रिकॉर्डिंग की सीडी एमपीनगर थाने में दी और दोनों की शिकायत की लेकिन पुलिस ने आज दिन तक दीक्षित के दबाव में कार्रवाई नहीं की। पत्रकारिता के सिद्धांत की बात करने वाले दीक्षित और उनकी टीम पत्रकारों और पत्रकार संगठन का ही पैसा खा गई। पूरी टीम ही बेइमान और लूटेरों की है।
विनय जी.डेविड
महासचिव
आल इंडिया स्मॉल न्यूज पेपर्स एसोसिएशन

दिल्ली के देशभक्त सेना ट्रस्ट के रसीद कट्टे से भी की वसूली


इंदौरी चंदागैंग का कारनामा
ट्रस्ट के वास्तविक संचालक मनोज को एनकाउंटर में मार चुकी है दिल्ली पुलिस
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
कैंसर और एड्स के नाम पर चंदा वसूली करती रही इंदौरी चंदागैंग के कनेक्शन मई 2015 में पुलिस एनकाउंटर में मारे गए मनोज वशिष्ठ के एनजीओ देशभक्त सेना ट्रस्ट से भी हैं। मनोज के एनकाउंटर के सालभर बाद संदीप चौधरी और उसके कथित भाई सचिन मलिक ने इस ट्रस्ट को इंदौर में आगे बढ़ाया। इसके लिए दिल्ली और मेरठ के लड़के भी बुलाये गए जो देशभक्त सेना ट्रस्ट से जुड़े रहे हैं।
आगर पुलिस की मेहरबानी से छूटी और झाबुआ पुलिस के हत्थे चढ़ी इंदौरी चंदागैंग के कनेक्शन दिल्ली तक है। बताया जा रहा है कि आदत के अनुसार संदीप चौधरी नस्तीबद्ध हो चुके ट्रस्टों पर नजर रखता था। इसी कड़ी में मेरठ से इंदौर पहुंचे उसके भाई सचिन मलिक ने दिल्ली के देशभक्त सेना ट्रस्ट की जानकारी दी। इस ट्रस्ट को 2007 में बनाने वाले मोस्ट वांटेड मनोज वशिष्ठ को 16 मई 2015 को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने एनकाउंटर में मार गिराया था।
बागपत कनेक्शन...
दिल्ली पुलिस ने जिस मनोज वशिष्ठ का एनकाउंटर किया था वह मुलत: बागपत के पावला गांव् का रहने वाला था। दिल्ली में 10 साल से रह रहे मनोज की पत्नी प्रियंका वशिष्ठ 2010 से 2015 के बीच बागपत जिला पंचायत की अध्यक्ष रही। भाई अनिल वरिष्ठ को बागपत नगर पालिका के चेयरमैन पद पर सपा के बैनर तले चुनाव लड़ा चुका है। दबंग दुनिया के हाथ लगे दस्तावेजों की मानें तो मेरठ होते हुए संदीप के पास इंदौर पहुंचे सचिन पिता राजवीरसिंह मलिक का स्थाई पता 204ब हिसावदा-2 बागपत है। 1984 में जन्में सचिन का मतदाता पहचान पत्र (जीएमएस1928381) भी इसी पते का बना है।
सचिन इंदौर लाया ‘देशभक्त’
मई 2015 में हुए मनोज के एनकाउंटर के बाद अगस्त 2015 में सचिन मेरठ से इंदौर पहुंचा और अपने मामा के लड़के संदीप से मिला। संदीप ने उसे चंदागैंग के कथित धंधे की जानकारी दी। इस पर सचिन ने संदीप को देशभक्त सेवा ट्रस्ट और मनोज के एनकाउंटर की जानकारी दी। इस पर संदीप ने अपना शैतानी दिमाग दौड़ाते हुए पहले इस ट्रस्ट के पंजीयन नंबर हासिल किए। फिर लोगो व अन्य दस्तावेजों की कॉपी।  इस ट्रस्ट को नए कलेवर में आगे बढ़ाने के लिए दोनों निपानिया स्थित एनजीओ भवन भी गए। वहां इसमें आंशिक संसोधन की सलाह दी गई। संदीप ने इसके लिए आरएनटी मार्ग स्थित एक मार्केट में आॅफिस खोलने की तैयारी भी कर ली थी।
सरहद और सेना के नाम का लेना था फायदा
अगस्त से इस नए ट्रस्ट पर ज्यादा से ज्यादा काम किया जाना था। इसके लिए अमित सिसोदिया जैसे बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने के नाम पर ट्रस्ट से जोड़ा जाने लगा। अमित सिसोदिया ने बताया कि जून में जिस वक्त वह संदीप से जुड़ा उस वक्त देशभक्त सेना ट्रस्ट पर काम चल ही रहा था। संंदीप ने कहा था कि जल्द ही आॅफिस भी खोल रहे हैं इस ट्रस्ट का लेकिन एनजीओ भवन से मिली समझाइश और मनोज की हिस्ट्री समझने के बाद मामला थोड़ा आगे बड़ा। तब तक के लिए हमें कहा गया कि तुम कैंसर और एड्स के नाम पर ही चंदा करो।
संदीप के एक अन्य राजदार ने बताया कि ट्रस्ट को लेकर मनोज का मकसद जो भी रहा लेकिन यहां संदीप का मकसद सिर्फ सरहद और सेना के जवानों के नाम पर चंदा वसूली करना ही था।

मदरसे के लिए वक्फ से ली जमीन, काट दी कॉलोनी

खजराना में नाहरशाह वली चेरिटेबल ट्रस्ट  का कारनामा
इंदौर. विनोद शर्मा ।
खजराना में जमीन की कीमतों ने आसमान क्या हुआ नेक मकसद के लिए बने ट्रस्ट भी नेकी छोड़ भू-माफियाओं के नक्शेकदम पर चल दिए। इसका बड़ा उदाहरण वक्फ बोर्ड से मदरसे के लिए ली गई जमीन पर कट रही अवैध कॉलोनी है जिसका अब तक नामकरण नहीं हो पाया है लेकिन प्लॉट बिक चुके हैं। आधे घर भी बन चुके। हालांकि न सड़क के पते है, न ही बिजली के।
कॉलोनी में प्लॉट के नाम पर ठगी का शिकार हुए मोहम्मद अजीम और उनके जैसे अन्य खरीदारों की मानें तो जमीन को सैय्यद नुरुद्दीन नाहरशाह वली चेरिटेबल ट्रस्ट के बैनर तले कॉलोनी बनाया गया है। इस काम को शरीफ खान जैसे दलाल के साथ अंजाम दिया ट्रस्ट के सर्वेसर्वा मकसूद खान ने। शुरूआती दौर में कॉलोनी को रजिस्टर्ड बताया जा रहा था। 3 लाख रुपए छोटे प्लॉट की कीमत ली गई और 50 हजार रुपए रजिस्ट्री शुल्क। बाद में पता चला कि कॉलोनी जिस जमीन पर है वह तो वक्फ बोर्ड ने सैय्यद नुरुद्दीन नाहरशाह वली चेरिटेबल ट्रस्ट को मदरसे के लिए दी थी। यहां लड़कियों के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग की व्यवस्था भी की जाना थी।
मकसद ही बदल दिया ट्रस्ट ने
वक्फ बोर्ड ने 2012-13 में ट्रस्ट को मदरसे और वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाने के लिए जमीन लीज पर दी थी लेकिन ट्रस्ट के संचालकों ने ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की कल्पना को कॉलोनी में बदल दिया। 500-600 वर्गफीट के प्लॉट काट दिए। मुंह देखकर कीमत भी वसूली। लगातार शिकायतों के बाद मप्र वक्फ बोर्ड के 2014-15 में अध्यक्ष शौकत मोहम्मद खान ने लीज निरस्त कर दी।
खरीदने के बाद पता चला अवैध है कॉलोनी
मोहम्मद अजीम ने बताया कि 2012 में जमीन मिलते ही जमीन पर कॉलोनी कटने लगी थी। 600 वर्गफीट का प्लॉट तीन लाख में बेचा जा रहा था। कहा था 15 दिन बाद ही 15 लाख में बिक जाएगा। कॉलोनी रजिस्टर्ड है। 50 हजार रजिस्ट्री के देना पड़ेंगे जो दिए भी। हालांकि रजिस्ट्री के नाम पर तारीख ही आगे बढ़ती रही। इसी बीच जब रजिस्ट्रार में जाकर पूछताछ की तो पता चला कि कॉलोनी अवैध है। पैसे मांगे लेकिन कॉलोनाइजर ने देने से मना कर दिया। उलटा खजराना थाने में झूठी शिकायत कर दी। टीआई को मैंने सच्चाई बताई। तब जनवरी 2016 में पूरे पैसे देने का करार हुआ। दिए सिर्फ 2 लाख। 1.5 लाख मांगे तो घर मु घुसकर जान से मारने की धमकी दी।
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मैं खजराना में ही रहता हूं और आते-जाते जमीन दिखती है। इसीलिए जब लीज निरस्ती के बावजूद निर्माण चलते रहे जिसकी जानकारी मप्र वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को दी। उन्होंने कलेक्टर इंदौर को कार्रवाई के लिए लिखा। निर्माण जारी है। इसीलिए दोबारा अध्यक्ष और कलेक्टर से बात करेंगे। किसी सूरत में वक्फ की जमीन का दुरुपयोग नहीं होने देंगे।
नासिर शाह, पूर्व अध्यक्ष
जिला वक्फ बोर्ड
जमीन मदरसे के लिए दी थी लेकिन मदरसा नहीं बना। कॉलोनी बनने लगी। इसीलिए बोर्ड ने डेढ़ दो साल पहले लीज निरस्त कर दी लेकिन ट्रस्ट हाईकोर्ट चला गया। मामला विचाराधीन है। संबंधित विभागों को लिखने के बाद भी कार्रवाई हो नहीं रही है।
अनवर खान, अध्यक्ष
जिला वक्फ बोर्ड

स्कीम-54 के दो प्लॉटों के मामले में सभी आरोपी बरी, विवाद खत्म


अब प्राधिकरण को करना है नामांतरण
इंदौर. विनोद शर्मा ।
स्कीम 54 के दो बेशकीमती प्लॉटों को गलत तरीके से आवंटित करने के मामले में पूर्व आईडीए अध्यक्ष कृपाशंकर शुक्ला, आईएएस अधिकारी रामकिंकर गुप्ता को बरी किए जाने के बाद हाईकोर्ट ने बचे हुए दो आरोपियों को भी क्लीन चिट दे दी है। सभी आरोपियों को मिली क्लीनचिट ने जहां गड़बड़ी के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है वहीं इन प्लॉटों के नामांतरण का रास्ता भी खोल दिया है। बहरहाल, प्राधिकरण ने नामांतरण की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
21 दिसंबर 2009 को ईओडब्लयू द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)डी, 13(2) और भादवि की धारा 420, 120बी, 468, 467, 471 के तहत दर्ज किए गए मुकदमे (9/2009) की सुनवाई भष्ट्राचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत गठित विशेष न्यायालय में विशेष न्यायाधीश जे.पी.सिंह के समक्ष हुई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने 6 दिसंबर को हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में बरी किए गए अन्य लोगों और उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्यों के आधार पर इंदौर विकास प्राधिकरण के दो अधिकारियों (अजय शर्मा और पी.सी.बापना)  को भी बरी कर दिया।
नौ आरोपी थे, सात पहले ही हो चुके थे बरी
ईओडब्ल्यू द्वारा दायर प्रकरण में 6 अपै्रल 2016 को विशेष न्यायाधीश बीके पालोदा ने आरोपी शुक्ला, गुप्ता के अलावा प्लॉट खरीदने वाली सुनंदा गुप्ता, वंदना गुप्ता, आईडीए अधिकारी पीसी बाफना, टीएंडसीपी के तत्कालीन संयुक्त संचालक वीपी कुलश्रेष्ठ, दिलीप आगासे, अजय शर्मा और राजीव श्रीवास्तव पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)डी, 13(2) और भादवि की धारा 420, 120बी, 468, 467, 471 के तहत आरोप तय किए। इसमें से शर्मा और बाफना को छोड़ बाकी को पहले ही बरी किया जा चुका है।
केस भी खत्म
विशेष न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अब प्रकरण में कोई भी आरोपी नहीं बचा है। उक्त सभी आरोपी हाईकोर्ट के आदेशानुसार आरोप मुक्त किये जा चुके हैं। इसीलिए प्रकरण में कार्रवाई शेष नहीं रहती।
नामांतरण को मिला रास्ता
एससीएस बिल्डर्स एंड डेवलपर्स ने 4 नवंबर 2008 को एमपी रीयल एस्टेट एंड डेवलपर्स की डायरेक्टर सुनंदा गुप्ता और वंदना गुप्ता से  प्लॉट नं. 14 व 16 खरीदे थे। रजिस्ट्री के बाद एससीएस बिल्डर्स ने दोनों प्लॉटों के नामांतरण के लिए 9 जनवरी 2009 को आईडीए में आवेदन किया। प्राधिकरण ने नामांतरण नहीं किया। उल्टा आवेदन खारिज कर दिया। इस फैसले को कंपनी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। कंपनी जीती। कोर्ट के फैसले को प्राधिकरण ने कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने पहले के आदेश को यथावत रखा। फिर भी नामांतरण नहीं हुआ। अंत: कंपनी को अवमानना याचिका लगाना पड़ी। जिसमें कोर्ट प्राधिकरण को फटकार चुका है। माना जा रहा है कि अब चूंकि विवाद निपट चुका है इसीलिए प्राधिकरण को नामांतरण करने में दिक्कत होगी भी नहीं।
इन याचिकाओं में यह हुए बरी
याचिका बरी
709/2016 वीपी कुलश्रेष्ठ
826/2016 दिलीप आगाशे
926/2016 कृपाशंकर शुक्ला
1238/2016 राजीव श्रीवास्तव
585/2016 सुनंदा गुप्ता/वंदना गुप्ता
7183/2016 रामकिंकर गुप्ता
1179/2016 पीसी बाफना
1198/2016 अजय शर्मा
यह था आरोपों का जखिरा
टीएंडसीपी द्वारा स्वीकृत स्कीम 54 के नक्शे में प्लॉट नंबर 14 और 16 मुक्तिधाम की ओर बताए गए थे। अप्रैल 2002 में आईडीए ने टीएंडसीपी से स्कीम का संशोधित नक्शा पास कराया। आरोप था कि उक्त दोनों प्लॉटों को मेन रोड पर लाने के लिए हेराफेरी की गई। भूखंडों के पीछे 20 फीट का नाला गायब कर दिया गया। पहले पार्किंग मेन रोड की ओर थी लेकिन प्लॉटों को मुक्तिधाम से दूर करने के लिए इसे प्लॉटों के पीछे कर दिया गया। पार्किंग तक पहुंचने के लिए प्लॉटों के पास से 20 फीट चौड़ी सड़क भी निकाल दी। आईडीए ने स्कीम के प्लॉट नंबर 19 और 17 गायब कर प्लॉट 14 और 16 में शामिल कर लिया। अक्टूबर 2002 में आईडीए ने दोनों प्लॉटों को बेचने के लिए निविदाएं बुलाईं। बाद में प्लॉट सुनंदा व वंदना गुप्ता को आवंटित कर दिए।  दोनों प्लॉट मेन रोड के होकर कॉर्नर के हैं। इसलिए स्टाम्प ड्यूटी भी इसी के मुताबिक लगना थी, लेकिन ऐसा नहीं करते हुए शासन को 14 लाख 96 हजार 425 रुपए की 

30 दिन में हो स्कीम-54 के दो प्लॉटों का नामांतरण

अवमानना याचिका : हाईकोर्ट ने प्राधिकरण को फटकारा
यदि दस्तावेज जब्त हैं तो ईओडब्ल्यू से लें सत्यापित प्रतिलिपि
इंदौर. विनोद शर्मा ।
स्कीम-54 मैकेनिकनगर स्थित दो प्लॉट के नामांतरण को लेकर लगी मानहानि याचिका का निराकरण करते हुए  हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने इंदौर विकास प्राधिकरण को जमकर लताड़ा। जस्टिस पी.के.जायसवाल की सिंगल बैंच ने दो टूक शब्दों में कह दिया है प्राधिकरण की माफी नाकाफी है। हाईकोर्ट की सिंगल और डबल बैंच द्वारा दिए गए आदेश का पालन करते हुए प्राधिकरण को शपथ-पत्र के साथ अनुपालन रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करना होगी। अन्यथा प्राधिकरण के खिलाफ कोर्ट कार्रवाई करेगा।
जिस कंटेम्ट केस (412/2015) की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्राधिकरण को फटकारा है वह 2015 में वह एससीएस बिल्डर्स एंड डेवलपर्स प्रायवेट लिमिटेड द्वारा दायर किया गया था। 21 नवंबर 2016 को जारी आदेश में कोर्ट ने कहा कि सिर्फ माफी प्राधिकरण के लिए मामले से बचने का हथियार साबित नहीं हो सकती। सिंगल और डिविजनल बैंच के आदेश का पालन करके प्राधिकरण को आदेश जारी होने से 30 दिन के भीतर शपथ-पत्र के साथ अनुपालन रिपोर्ट प्रिंसिपल रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत करना होगी। एससीएस ने 4 नवंबर 2008 को एमपी रीयल एस्टेट एंड डेवलपर्स की डायरेक्टर सुनंदा गुप्ता और वंदना गुप्ता से खरीदा था। रजिस्ट्री के बाद एससीएस बिल्डर्स ने दोनों प्लॉटों के नामांतरण के लिए 9 जनवरी 2009 को आईडीए में आवेदन किया। प्राधिकरण ने नामांतरण नहीं किया। उल्टा आवेदन खारिज कर दिया। इस फैसले को कंपनी ने हाईकोर्ट में चुनौती (डब्ल्यूपी 2195/2012) दी। कंपनी की पेरवी वरिष्ठ अभिभाषक एके सेठी ने की।
आईडीए ने कहा कोर्ट में है मामला
मामले में आईडीए ने अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट को ईओडब्ल्यू द्वारा एमपी रीयल एस्टेट एंड डेवलपर्स और प्राधिकरण पदाधिकारियों के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471, 120बी और पीसीए की धारा 13(1)(डी) और 13 (2) के तहत दर्ज प्रकरण (11/2008) की जानकारी दी। कहा कि प्लॉट और लीज संबंधित सभी दस्तावेज ईओडब्ल्यू 25 मार्च 2008 और 26 अगस्त 2008 को जब्त कर चुका है।
कोर्ट ने कहा दूसरे कागज बनाकर करें नामांतरण
10 सितंबर 2013 को कोर्ट ने कहा कि इसमें प्लॉट खरीदार का क्या कसूर। प्राधिकरण डुप्लीकेट दस्तावेज तैयार करे और कंपनी द्वारा लगाई गए नामांतरण आवेदन का दो महीने में निराकरण करें।
डिविजनल बैंच में भी हारा आईडीए
आईडीए ने 2014 में कोर्ट के इस फैसले को हाईकोर्ट की डिविजनल बैंच में चुनौती (डब्ल्यूए-316/2014) दी। मामले में 10 नवंबर 2014 को कोर्ट ने आईडीए की अपील खारिज करते हुए सिंगल बैंच के आदेश को यथावत रखा। कहा कि प्राधिकरण के पास यदि दस्तावेज नहीं है तो वह ईओडब्ल्यू में अप्लाई करके जब्त दस्तावेजों की सर्टिफाई कॉपी मांगे और नामांतरण करे।
लगाना पड़ी अवमानना याचिका
कंपनी ने 3 मई 2015 को नोटिस जारी किया और सिंगल व डिविजनल बैंच से हुए आदेश के आधार पर नामांतरण करने की अपील की। यदि नामांतरण नहीं हुआ तो इसे कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। कंपनी प्राधिकरण के खिलाफ अवमानना याचिका भी दायर कर सकती है। बावजूद इसके प्राधिकरण की अड़बाजी जारी रही। इसीलिए 14 जुलाई 2015 को कंपनी ने अवमानना याचिका दायर कर दी।
फिर भी आवेदन निरस्त, आईडीए ने बताये यह कारण
प्लॉट नं. 14 और 16 की लीज में अनियमितता की शिकायत हुई जिसके आधार पर ईओडब्ल्यू ने केस दर्ज किया था। इसी लीज के आधार पर गुप्ता परिवार ने प्लॉट एससीएस कंपनी को बेचे थे। जब तक केस का निराकरण नहीं होता नामांतरण कैसे करें?
विवादित भूखंडो की स्थिति और क्षेत्रफल में संसोधित ले-आउट अनुसार परिवर्तन हुआ है। जिसके संबंध में भी न्यायालय में प्रकरण 9/09 दर्ज होकर लंबित है। दोनों मामलों के निराकरण न होने तक नामांतरण नहीं हो सकता।
विवाद परत-दर-परत
प्लॉट नं. 14 व 16 (स्कीम-54)
लीज आवंटित : 21 अक्टूबर 2005
लीज अवधि : 25 साल (2030 तक)
मान्य : हस्तांतरण या नामांतरण
आवंटी : एमपी रीयल एस्टेट प्रा.लि.
सौदा : 4 नवंबर 2008
किनके बीच : एमपी रीयल एस्टेट प्रा.लि.  और एससीएस बिल्डर्स एंड डेवलपर्स।
विक्रेता बरी : ईओडब्ल्यू अब तक जितने लोगों को मामले से बरी कर चुका है उनमें एमपी रीयल एस्टेट प्रा.लि.के डायरेक्टर भी हैं। 

दो दिन पुलिस रिमांड पर रही है चंदागैंग

सरगना तलाश रही है राणापुर पुलिस, दूसरी तरफ सबूत मिटा रही है चंदागैंग
इंदौर. विनोद शर्मा।
कैंसर और एड्स पीड़ितों के नाम पर चंदा वसूली करती आ रही इंदौर की चंदा गैंग झाबुआ के राणापुर थाने में दो दिन की पुलिस रिमांड पर रह चुकी है। हालांकि पुलिस रिमांड में रहते हुए चंदा गैंग के तीन कारिंदों ने सरगना उस संदीप चौधरी का नाम नहीं बताया था जिसने एक वकील के माध्यम से थाने के आला स्टाफ को पैसे देकर गैंग को आगर थाने से छुड़वाया था। बहरहाल, दबंग दुनिया के सामने गैंग के अमित सिसोदिया ने अपना जो पक्ष रखा था उसकी रिकॉर्डिंग मिलने के बाद राणापुर पुलिस ने नए सिरे से तफ्तीश शुरू कर दी है।
7, 8 और 9 जुलाई को आगर थाने में बंद रहने के बाद चंदागैंग को 17 जुलाई 2016 को झाबुआ की राणापुर पुलिस ने पकड़ा था। दोपहर में गिरफ्तार किए गए। पुलिस की मांग पर कोर्ट ने दो दिन का पुलिस रिमांड दिया। थाना प्रभारी भीमसिंह सिसोदिया ने दबंग दुनिया से खास बातचीत में बताया कि गिरफ्तारी के दौरान चंदागैंग से करीब 35 हजार रुपए नकद बरामद किए गए थे। इसके साथ ही तीन रसीद कट्टे भी पकड़े गए। इनमें से कुछ पूरे थे, कुछ से रसीद कट चुकी थी। पुलिस रिमांड के दौरान पूछताछ में तीनों ने कई राज उगले थे जिनमें से कुछ पर जांच हो चुकी है, कुछ पर जांच जारी है।
पते थे मेरठ के...
थाना प्रभारी सिसोदिया ने बताया कि जो रसीद कट्टे पकड़े गए थे। उन पर न पंजीयन नंबर था। न इनके पास कोई लाइसेंस था। न और किसी तरह की जानकारी थी। संस्था का जो नाम और पता रसीदों पर था वह भी जांच के दौरान पूर्णत: फर्जी निकला। इनमें सिर्फ अमित सिसोदिया का पता इंदौर का था, सचिन मलिक और एक अन्य का पता मेरठ का था। अमित सिसोदिया ने आलीराजपुर के किसी रिश्तेदार का पता दर्ज करवाया था।
कॉल रिकॉर्डिंग भी निकाल रहे हैं
सिसोदिया ने बताया कि तीनों शातिर अपराधी हैं। कड़ी पूछताछ के बाद भी कुछ जानकारियां उन्होंने नहीं बताई। सचिन मलिक ने बोस होना स्वीकारा लेकिन फिर भी कॉल रिकॉर्डिंग व अन्य साधनों से जांच जारी है। कैंसर और एड्स पीड़ितों के ईलाज के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वाले ऐसे लोगों को बक्शा नहीं जाना चाहिए।
कहीं फरारी, कहीं सबूत मिटाने की कोशिश
दबंग दुनिया द्वारा लगातार किए जा रहे खुलासों और डीआईजी संतोष सिंह द्वारा जांच को लेकर दिए गए निर्देश के बाद से ही चंदा गैंग इधर-उधर फरारी काट रही है। वहीं संदीप चौधरी की कोशिश है कि कैसे भी करके उसका नाम पुलिस के सामने नहीं आए। इसके लिए वह अन्य सभी साथियों पर भी दबाव डाल रहा है। इतना ही नहीं उन तमाम  लोगों को भी डराया-धमकाया जा रहा है जिनकी मदद से दबंग दुनिया ने चंदा गैंग का खुलासा किया।
आगर पुलिस भी शंका के घेरे में
एक तरफ संदीप और उसकी गैंग अपने दामन को पाकसाफ बताने के लिए जी-जान लगा रही है वहीं ‘पांच लाख देकर आगर थाने से छूटी थी चंदा गैंग’ शीर्षक से 25 नवंबर को प्रकाशित समाचार के बाद आगर एसपी आर. मीणा ने मामले में छानबीन शुरू कर दी है।
बताया जा रहा है कि इस मामले में उन्होंने थाने के उस बड़े अधिकारी की जांच शुरू कर दी जिसने इंदौर के वकील और एक अन्य व्यक्ति से थाने में ही पैसे लिए और चंदागैंग को 151 जैसी सामान्य प्रतिबंधात्मक धारा लगाकर छोड़ा। 

आगर विधायक को भी चपत लगा चूकी है चंदागैंग

बाद में विधायक के नाम की आड़ लेकर ही छूटी गैंग
इंदौर. विनोद शर्मा ।
धार, झाबुआ और आलीराजपुर जैसे शहरों में अपने जौहर दिखा चुकी इंदौर की चंदागैंग आगर के विधायक गोपाल परमार को भी टोपी पहना चुकी है। विधायक ने 501 रुपए का चंदा दिया लेकिन थोड़ी ही देर बाद फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ तो चंदागैंग को पकड़कर आगर पुलिस के हवाले कर दिया था। बाद में संदीप चौधरी ने इंदौर और उज्जैन के वकील के माध्यम से विधायक के ही नाम की आड़ लेकर गैंग को छुड़वाया।
बताया जा रहा है कि 7 जुलाई को चंदागैंग के सदस्य अमित सिसोदिया, सचिन मलिक, अक्षय गुर्जर उर्फ राघव और एस.पी.तिवारी आगर पहुंचे। यहां दिनभर लोगों से वसूली चलती रही। किसी ने 21 रुपए की रसीद कटवाई तो किसी ने 551 रुपए की। रसीद कटवाने वालों में आगर विधायक गोपाल परमार भी शामिल थे जिन्होंने कैंसर और एड्स पीड़ितों की मदद के लिए चंदागैंग को 501 रुपए का चंदा दिया था। इसके बाद गैंग मोटरसाइकिल के एक शो-रूम पहुंची। वहां संचालक ने भी रसीद कटवाई लेकिन रसीद हाथ में लेते ही उसने सामने रखे कम्प्यूटर पर एनजीओ का नाम डाला जो उसे बार-बार सर्च करने के बाद भी नहीं मिला। इस पर उसने कहा एनजीओ और रसीद दोनों फर्जी है। तत्काल इसकी सूचना विधायक परमार को दी गई। परमार ने चंदागैंग की करतूत पर कड़ी नाराजगी जताते हुए चारों सदस्यों को आगर पुलिस के हवाले कर दिया।
कई लोगों ने दी गवाही
चूंकि आगर छोटा शहर है इसीलिए भरे बाजार हुआ हंगामा थोड़ी ही देर में पूरे बाजार में फैल गया। जिन लोगों ने भी रसीद कटवाई थी, सभी थाने पहुंच गए। वहां टीआई ने उनकी शिकायत दर्ज करते हुए गैंग के सदस्यों को लॉकअप में बंद कर दिया।
उधर, दबंग दुनिया द्वारा 5 लाख रुपए के लेनदेन के बाद आरोपियों को छोड़ने का खुलासा किया गया था तब थाना प्रभारी एस.एस.नागर ने कहा था कि हमें किसी ने शिकायत ही नहीं की थी तो कैसे कैसे दर्ज करते।
जोड़-तोड़ से छूटे...
गैंग के बंद होते ही संदीप हैरान-परेशान हुआ। इंदौर में अपने वकील से बात की। फिर उज्जैन के एक वकील से बात हुई। अधिकारियों से संबंध निकाले गए। इसके बाद थाना प्रभारी और एसडीएम से बात हुई। तब जाकर 151 की सामान्य सी धारा लगी और मुचलका भरवाकर छोड़ दिया गया। जमानत का निर्णय 30 जुलाई को हुआ।
मैंने ही पकड़कर बंद करवाया था, छुड़वाया नहीं...
इंदौर के चार लड़के कैंसर-एड्स पीड़ितों की मदद के लिए मेरे पास आए थे। मैंने भी 501 रुपए की रसीद कटवाई तब तक मुझे उनकी वास्तविकता का भान नहीं था। वास्तविकता सामने आई तब मैंने ही बाजार के अन्य लोगों के साथ मिलकर चारों को पुलिस के हवाले किया था। इसके बाद क्या हुआ मुझे जानकारी नहीं थी। मैंने छुड़वाया यह कहना गलत है। आज पता चला कि धोखाधड़ी की जगह पुलिस ने 151 जैसी सामान्य प्रतिबंधात्मक धारा लगाई। मैं इस संबंध में एसपी से बात करके मामले की आगर थाना स्टाफ की भूमिका की जांच करवाऊंगा। ऐसे कैसे धोखाधड़ी दर्ज नहीं हुई। मेरे नाम की आड़ लेकर छोड़ दिया गया। 

संदीप ने ‘कलश’ नहीं मिला तो ‘शांति’ से ही चलाया काम

चंदागैंग का सरगना आठ दिन से घर से है फरार
इंदौर. विनोद शर्मा ।
कैंसर और एड्स पीड़ितों के ईलाज के नाम पर चंदा वसूली करने वाली चंदागैंग के सरगना संदीप चौधरी ने दिल्ली के एनजीओ की फर्जी रसीद कट्टे बनवाने से पहले इंदौर में डेड पड़े एनजीओ से भी संपर्क किया था ताकि उन्हें टेकओवर किया जा सके। हालांकि कोशिश नाकाम रही। इसके बाद ही उसके कथित भाई सचिन मलिक ने दिल्ली के उस एनजीओ का नाम बताया जिसके डायरेक्टर की भी साल-छह महीने पहले ही मौत हुई थी।
वन विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर जंगल की लकड़ियों की हेराफेरी और चीनी इलेक्ट्रॉनिक आईटम की हेराफेरी करते आ रहे संदीप ने दूसरे की घी लगी थाली की तरह एनजीओ के कामकाज को वित्तीय रूप से ज्यादा मजबूत समझा। नया एनजीओ रजिस्टर्ड कराने में चूंकि वक्त और दस्तावेजी प्रक्रिया ज्यादा थी इसीलिए ऐसे एनजीओ की तलाश शुरू हुई जो पहले से रजिस्टर्ड तो हो लेकिन कामकाज नहीं कर रहा हो। उनकी यही तलाश उन्हें नव कलश वेलफेयर सोसायटी तक भी ले गई। सोसायटी के रामगोपाल नामदेव को प्रलोभन और भविष्य के सब्जबाग दिखाए गए लेकिन नामदेव ने दो टूक शब्दों में मना कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं अपने स्तर पर काम कर रहा हूं और करता रहूंगा।
दिल्ली में मिली ‘शांति’
इसके बाद सचिन ने दिल्ली-नाएडा के एक एनजीओ की जानकारी संदीप को दी। संदीप ने देर नहीं की। एनजीओ की तत्काल डिटेल निकाली गई। सचिन ने यह भी बताया कि इसका संचालक मेरा दोस्त था लेकिन अब उसकी मृत्यु हो चुकी है। इसीलिए एनजीओ को यहां आगे बढ़ाया जा सकता है। इस एनजीओ का नाम शांति बताया जा रहा है।
एलोरा कॉम्पलेक्स में खोलना चाहते थे आॅफिस
एनजीओ की जुगाड़ लगने के बाद चौधरी-मलिक ने एलोरा कॉम्पलेक्स स्थित अपने एक मित्र के आॅफिस में अपना डेरा डालने की कोशिश की लेकिन वहां भी दाल नहीं गली।
अब शुरू कर दिया सुपारी का खेल
दबंग दुनिया द्वारा लगातार किए जा रहे चंदागैंग के ख्ुालासे के बाद से ही संदीप चौधरी अपने घर से फरार है। हालांकि है इंदौर में ही। अक्षय गुर्जर और एक अन्य साथी के साथ। मलिक पहले ही इंदौर छोड़ चुका है। इसीलिए अब संदीप की तैयारी यह है कि वह कैसे भी अपनी ही गैंग के साथी अमित सिसोदिया पर दबाव डाले और उसके द्वारा दिए गए बयान पलटवा दे। इसके लिए सिसोदिया के साथ किसी भी तरह से निपटने की साजिश रची जा रही है। इसकी जिम्मेदारी संदीप ने अपने दोस्त सचिन रघूवंशी को दी है। इसके अलावा जितेंद्र नाम के किसी वकील से बात की जा रही है ताकि अपने दुश्मनों के खिलाफ फर्जी मुकदमें दर्ज करवाये जा सके। 

सरकार को सौंपी जमीन पर ‘मारूति’ की नई सार्इंकृपा

इन्फॉर्मल सेक्टर के लिए छोड़ी जमीन पर ही टीएंडसीपी ने मंजूर कर दिया ले-आउट
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एमआर-10 पर सार्इंकृपा कॉलोनी काटने वाली मारूति गृह निर्माण सहकारी संस्था के नाम पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट (टीएंडसीपी) ने 8.30 एकड़ जमीन पर महीनेभर पहले कॉलोनी का नया नक्शा मंजूर कर दिया है। उधर, बताया यह जा रहा है कि जिस  जमीन की टीएनसी हुई है वह कॉलोनी काटते वक्त इन्फॉर्मल सेक्टर के लिए छोड़ी गई थी। संस्था ने जमीन कलेक्टर को सौंपी। कलेक्टर ने श्रम आयुक्त को। श्रमायुक्त ने बीड़ी श्रमिकों को। हाउसिंग बोर्ड ले-आउट मंजूर करवाकर पूर्व मुख्यमंत्री से शिलान्यास भी करवा चुका है।  यह बात अलग है कि मनमानी पर आमादा संस्था संचालकों ने हेराफेरी से पहले जमीन पर लगा शिलालेख ही उखाड़कर फेंक दिया।
मामला खजराना का है। यहां मारूति गृह निर्माण सहकारी संस्था की 58.89 एकड़ जमीन थी। जिस पर टीएडंसीपी ने 22 अगस्त 1988 को सार्इंकृपा कॉलोनी का ले-आउट मंजूर किया। इसमें से नियमानुसार 15 प्रतिशत (करीब 8.80 एकड़) भूमि इन्फॉर्मल सेक्टर के लिए आरक्षित छोड़ना थी। सर्वे नं. 115, 119, 144, 145 और 166 पर 8.80 एकड़ जमीन छोड़ी गई। तत्कालीन नियमों के हिसाब से जमीन मप्र गंदी बस्ती उन्मूलन मंडल को सौंप दी गई। 13 जनवरी 1989 को एसडीएम के हाथ में कब्जा भी सौंप दिया गया। कलेक्टर ने मंडल से जमीन ली और श्रम आयुक्त कार्यालय को आवंटित कर दी। श्रम आयुक्त ने बीडी श्रमिकों को आवास उपलब्ध कराने के लिए जमीन हाउसिंग बोर्ड को दे दी। बोर्ड ने अनुमोदन के लिए नक्शा भी टीएंडसीपी में लगाया था। बावजूद इसके 25 अक्टूबर को टीएंडसीपी ने ले-आउट अनुमोदित कर दिया। संस्था के सर्वेसर्वा राजेंद्रनाथ अग्रवाल हैं जो कि हाउसिंग सोसाइटियों के मास्टर प्रेम गोयल के साले हैं। संस्था में पहले उन्हीं की दखल थी।
संस्था के पास फिर कैसे पहुंची जमीन?
जो जमीन कलेक्टर और श्रम आयुक्त के हाथ से होते हुए बीड़ी श्रमिकों के लिए हाउसिंग बोर्ड पहुंच गई थी उस जमीन पर संस्था ने अपना मालिकाना हक दिखाया क्योंकि सरकार को सौंपे जाने के बावजूद खसरा बी-1 व बी-2 पर संस्था का ही नाम था। इस संबंध में न कलेक्ट्रेट में कोई लिखित प्रमाण है। न श्रम आयुक्त कार्यालय या हाउसिंग बोर्ड में।
खसरा बी-1 व बी-2 पर संस्था का नाम होने के कारण पटवारी, तहसीलदार से लेकर नजूल अधिकारी तक ने इस काम में संचालकों का साथ दिया। हाउसिंग बोर्ड और श्रम आयुक्त कार्यालय से एनओसी लिये बिना ही नजूल अधिकारी ने पुराने तथ्यों पर पर्दा डालते हुए 22 जुलाई 2014 को जमीन की एनओसी (971) जारी कर दी थी।
तीन साल में दूसरा नक्शा मंजूर
संस्था ने 13 जून 2016 को तकरीबन डेढ़ सौ प्लॉटों की कॉलोनी के ले-आउट के लिए आवेदन किया। 25 अक्टूबर 2016 को टीएंडसीपी ने ले-आउट अनुमोदित कर दिया। हालांकि अनुमोदन पत्र के अनुसार संस्था 10 जनवरी 2014 को भी डिपार्टमेंट से उक्त जमीन पर ले-आउट अनुमोदित (333-340/आरएसपी-7/13/नग्रानि/2013) करवा चुकी है। दोनों नक्शों में इन्फॉर्मल सेक्टर के लिए छोड़ी गई जमीन का जिक्र करते हुए सामान्य वर्ग के लिए भूखंड विकास की अनुमति दी गई है। लेकिन डिपार्टमेंट ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि जो जमीन सरकार के पास जा चुकी थी वह संस्था तक दोबारा पहुंची कैसे?
ईडब्ल्यूएस और एलआईजी के हैं प्लॉट
टीएनसीपी में किए गए आवेदन और मिली मंजूरी में संस्था संचालकों ने पेंतरा दिखाते हुए कहा है कि उक्त जमीन पर आरक्षित भूखंडों के स्थान पर ईडब्ल्यूएस और एलआईजी विकसित करेंगे। यह भी बताया गया कि पहले 13 प्रतिशत पार्क के लिए जमीन छोड़ी थी जो नए ले-आउट में नियमानुसार 10 प्रतिशत ही छोड़ी जाएगी। जिस जमीन को नोट इन प्लानिंग एरिये के रूप में छोड़ा था उसे भी प्लानिंग में लिया जाएगा।
आपत्ति लगाई जो खारिज कर दी
ज्वाइंट डायरेक्टर टीएंडसीपी द्वारा 17 अगस्त को प्रकाशित जाहिर सूचना के आधार पर  813/9 नंदानगर निवासी पप्पू मालवीय ने आपत्ति ली। उन्होंने दस्तावेजी प्रमाणों के साथ प्रस्तुत अपने आपत्ति में पूछा कि जमीन शासन के पास थी तो किस विभाग या किस अधिकारी ने जमीन संस्था को सौंपने का आदेश दिया? कलेक्टर ने इसके लिए कौनसा अनुबंध किया? मालवीय ने दबंग दुनिया से बातचीत में बताया कि जिस टीएनसीपी ने ले-आउट अनुमोदित किया है उसी की नोटशीट में जमीन श्रम आयुक्त को सौंपे जाने और हाउसिंग बोर्ड द्वारा अनुमोदन के लिए किए गए आवेदन का जिक्र है फिर अधिकारियों ने पुराने पन्ने क्यों नहीं पलटाए।
ऐसा है पूरा माजरा
संस्था की जमीन : 109/1, 109/2, 110/2, 112, 113, 115, 117/1, 117/2, 117/3, 117/4, 118/1/1, 118/1/2, 118/1/3, 118/1/4, 118/2, 119, 120/2, 116/1, 116/2, 116/1444/1, 116/1444/2, 144, 145 और 166 । कुल 58 एकड़ जमीन।
इन्फॉर्मल सेक्टर : 15 प्रतिशत (8.87 एकड़)
मप्र गंदी बस्ती उन्मुलन मंडल को सौपंी : जावक 1058। तारीख 10 जनवरी 1989
कब्जा रसीद : 24 जनवरी 1989 को जारी शासन के पत्र(226/6426/32-1/88) के अनुसार मंडल के नाम कब्जा रसीद जारी की गई जिसे मंडल के परियोजना अधिकारी रहे मोहन मैथिल ने प्राप्त की।
टीएंडसीपी में उल्लेख : 16 अक्टूबर 1990 को लिखा है मंडल ने संसोधित अभिन्यास के हिसाब से 15 प्रतिशत जमीन का कब्जा प्राप्त किया।
हाउसिंग बोर्ड ने किया आवेदन : 4 दिसंबर 1991 को लिखी टिप के अनुसार जमीन श्रम आयुक्त को आवंटित की जा चुकी है। बीड़ी श्रमिकों के आवास के लिए हाउसिंग बोर्ड ने अनुमोदन आवेदन प्रस्तुत किया लेकिन अभी अनुमोदन नहीं किया।

डीआरआई के निशाने पर चायना फर्नीचर

- 50 फीसदी कारोबार आउट आॅफ द बुक्स
इंदौर. विनोद शर्मा ।
इनकम टैक्स ने जहां ज्वैलर्स, बिल्डर्स और केटरर्स पर शिकंजा कस रखा है वहीं डायरेक्टर जनरल आॅफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) ने निशाना साधा है चायनीज फर्नीचर के बड़े कारोबारियों पर। हिंदुस्तान में ज्यादातर कारोबारी 50-50 के रेशों में चीनी फर्नीचर का कारोबार करते हैं। यानी 50 फीसदी का धंधा एक नंबर में, बाकी दो नंबर में। इन तमाम कारोबारियों के साथ डीआरआई के पास फर्नीचर के चीनी सप्लायर्स की सूची भी तैयार है। बताया जा रहा है कि इस सूची में दो दर्जन से ज्यादा कारोबारी इंदौर के हैं।
अंडर गार्मेंट, गार्मेंट, टीवी कंपोनेंट जैसे उत्पादों का बिल बनवाकर चीनी फर्नीचर की खेप बुलाई जाती है। इनलैंड कंटेनर डिपोर्ट (आईसीडी) पीथमपुर में भी फर्नीचर की ऐसी खेप पकड़ी जा चुकी है। इसे मिस डिक्लेरेशन कहा जाता है जो कि कस्टम एक्ट के तहत न सिर्फ कस्टम चोरी है बल्कि कानूनन अपराध भी है। ऐसी खेप पर अब डीआरआई ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है ताकि फर्नीचर के नाम पर हो रही भारीभरकम कालाबाजारी को रोका जा सके।
कालाधन खपाने का तरीका
सोने और केटरिंग की तरह ही फर्नीचर की बुकिंग भी पूरानी डेट्स में दिखाई गई है। आंकड़ों के अनुसार 8 से 15 नवंबर के बीच पुराने नोटों से फर्नीचर की सेल भी करोड़ों में हुई है। इसके अलावा फर्नीचर के आयात में हवाले के माध्यम से पैसा हिंदुस्तान से चायना जाता है। इसीलिए प्राप्त शिकायतों के आधार पर ही वित्त मंत्रालय ने डीआरआई को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है।
इंदौर में है दो दर्जनर प्लेयर
भरत लाइफ स्टाइल, महिदपुर वाला फर्नीचर, स्टेलर जैसे इंदौर में कई फर्नीचर शौ-रूप में है जहां बड़ी तादाद में आॅफिस व होम फर्नीचर के रूप में चायना के फर्नीचर का इस्तेमाल होता है। शुरूआती दौर में इनकी संख्या भले कम थी लेकिन आज इंदौर में ऐसे शो-रूम की संख्या दो दर्जन से अधिक है।
फर्नीचर की आड़ में भी गौरखधंध
बीते दिनों डीआरआई की टीम ने दिल्ली में एम्पायर सेफ कंपनी पर दबिश दी थी। जांच में पता चला कि फर्नीचर में छिपाकर ओजोन डिप्लिटिंग गैस और आर-22 गैस के साथ ही प्रिंटिंग में काम आने वाली पी.एस.प्लेट लाई गई थी।
ट्रेड बेस्ड मनी लॉन्ड्रिंग
बताया जा रहा है कि फर्नीचर की इन्वॉइस यदि 1 करोड़ की बनी है तो हिंदुस्तानी कंपनियां डबल बिलिंग करवाकर 50 फीसदी पेमेंट आॅन द बुक्स करती हैं और 50 फीसदी पेमेंट आॅउट आॅफ द बुक्स। हवाले के जरिये। इसे डीआरआई की भाषा में ट्रेड बेस्ड मनी लॉन्ड्रिंग (टीबीएमएल) कहा जाता है।  फर्नीचर या अन्य प्रतिबंधित उत्पादों के कारोबार के नाम मनी लॉन्डिंÑंग करने वाले ऐसे कारोबारियों पर डीआरआई ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है।
इन पर है नजर
मिस डिक्लेरेशन : आयात हुआ क्या और बिल बिना किसी और का ताकि कस्टम ड्यूटी, सीवीडी, एंटी डम्पिंग ड्यूटी बचाई जा सके।
अंडर इन्वॉयसिंग : यदि किसी उत्पाद की इन्वॉइस यदि एक करोड़ की है तो उसकी बिलिंग 25 या 50 लाख कराई जाती है तो बाकी के 50 या 75 लाख रुपए पर टैक्स न देना पड़े।
अन्य नोटिफिकेशन : कुछ उत्पाद कस्टम ड्यूटी से मुक्त हैं उनके नाम पर बिलिंंग करवाकर फर्नीचर बुलवाये जाते हैं। 

ध्यानराधा मल्टी स्टेट सोसायटी पर इनकम टैक्स का सर्वे

आरटीजीएस के नाम पर हेराफेरी
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
सेविंग और करंट अकाउंट के नाम पर रूपए की हेराफरी करने की शिकायत पर इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने रविवार को ध्यान मल्टी स्टेट को-आॅपरेटिव क्रेडिट सोसायटी पर सर्वे की कार्रवाई की। कार्रवाई के दौरान बैंक से कई दस्तावेजी प्रमाण भी बरामद किए गए हैं। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि दस्तावेज जांचने के बाद ही समझ आएगा कि बैंक ने गोलमाल कैसे किया।
ज्वैलर्स और केटरर्स के बाद इन्वेस्टिगेशन विंग ने अब मल्टी स्टेट को-आॅपरेटिव क्रेडिट सोसायटियों के खिलाफ हमला बोल दिया है जहां बैंकिंग कम, हवाला ज्यादा होता है। इस कड़ी में फरवरी 2016 में जैसे सुभाषचौक स्थित रेणुकामाता मल्टी स्टेट को-आॅपरेटिव क्रेडिट सोसायटी पर छापेमार कार्रवाई हुई थी, उसी तरह शनिवार-रविवार को ध्यानराधा मल्टी स्टेट को-आॅपरेटिव क्रेडिट सोसायटी पर दबिश दी गई। बताया जा रहा है कि मुलत: महाराष्ट्र के बीड़ के पते पर पंजीबद्ध यह बैंक सेविंग और करंट अकाउंट में आरटीजीएस के नाम पर बड़ा खेल करती है। इसके अलावा हवाला लेनदेन का बड़ा साधन है। इसीलिए यहां जब भी खाता खुलवाने जाओ तो यही पूछा जाता है कि आप क्या काम करते हैं और ज्यादातर लेनदेन महाराष्ट्र के किस शहर से होता है।
लंबे अर्से से थी नजर
फरवरी के महीने इनकम टैक्स ने इंदौर, बड़वानी और रायपुर में छापेमार कार्रवाई की थी रेणुकामाता सोसायटी पर जहां 2000 करोड़ से ज्यादा का घालमेल सामने आया था। उस वक्त बुलडाना अर्बन को-आॅपरेटिंग बैंक पर भी कार्रवाई हुई थी लेकिन ध्यानराधा बच गई थी। इनकम टैक्स की नजर में तभी से सोसायटी जगह बना चुकी थी।
ध्यानराधा मल्टी स्टेट को-आॅपरेटिव क्रेडिट सोसायटी
अध्यक्ष : सुरेश कुटे
पता: हीरालाल चौक, बीड़ महाराष्ट्र
पंजीयन: एमएससीएस/सीआर/329/2010
तारीख : 03 फरवरी 2010
कार्यक्षेत्र : महाराष्ट्र-मप्र
शाखा: बीड़, औरंगाबाद, जालना, परभणी, इंदौर,
इंदौर में पता : 210 एमजी रोड
इन कारोबारों में बड़ा लेन-देन
रेडीमेड कारोबार, किराना कारोबार, ड्राइफ्रुट कारोबार, इलेक्ट्रॉनिक गुड्स के कारोबार में भी टैक्स के साथ ही टैक्सेशन एजेंसियों की संख्ती होने के कारण गुपचुप कारोबार और चोरी छिपे लेनदेन होता है।
फर्जी खातों से खेल
- महाराष्ट्र पर ज्यादा निर्भर रेडीमेड, बर्तन बाजार, इलेक्ट्रॉनिक और मोबाइल एसेसरीज कारोबारियों के खाते।
- हर कारोबारी के कमसकम पांच खाते।
- रेडीमेड कारोबारियों के खाते हैं सेल्समेन, प्यून, कारिगर, कांच-बटन और तुरपई करने वालों से लेकर धागे काटने वालों तक के नाम। - इंदौर में 2000 रेडीमेड कारोबारी हैं। करीब-करीब सभी के खाते रेणुकामाता, बुलडाना, ज्ञानराधा और रत्नेश्वरी माता सोसायटी में हैं।
- यहां पेनकार्ड नहीं लगता। पुलिस वेरिफिकेशन के नाम पर लिए पहचान-पत्रों की कॉपी लगाकर यह खाते खुलवाए गए हैं। इनका संचालन कारोबारी या उनके दलाल करते हैं। कर्मचारियों को तो पता ही नहीं है।

कालाधन खपाने वाले पेट्रोल पंपों पर इनकम टैक्स की पैनी निगाह

भोपाल में हुई पूछताछ, अब इंदौर की बारी, कई पंप है राडार पर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नोटबंदी के दौरान मिली पुराने नोट लेने की छूट का बेजा फायदा उठाते हुए प्रदेश के कई पेट्रोल पंपों ने लोगों के कालेधन को उजला कर दिया है। ऐसे पेट्रोल पंप संचालकों के खिलाफ इनकम टैक्स की इन्वेस्टिगेशन विंग ने छानबीन शुरू कर दी है। इनकम टैक्स को लगातार सूचना मिल रही है कि कुछ पेट्रोल पंप संचालकों ने लोगों के कालेधन को छह गुना तक की एडवांस बुकिंग के रूप में पेट्रोलियम कंपनियों में जमा करवा दिया है। ऐसे में डिपार्टमेंट पेट्रोलियम कंपनियों से पेट्रोल पंपों की एडवांस बुकिंग का रिकार्ड भी मांग सकता है।
3 दिसंबर को कानपूर, 7 दिसंबर को इनकम टैक्स ने जहां रांची में पेट्रोल पंपों पर सर्वे की कार्रवाई की है वहीं भोपाल में भी कुछ पंप संचालकों के बहीखाते खंगाले गए हैं। नोटिस व सूचना पत्रों के माध्यम से पंप संचालकों से आय व्यय का लेखा जोखा मांगा जा रहा है। आशंका जताई जा रही है कि इंदौर में भी आयकर सभी पेट्रोल पंप के कागजात खंगालेगा।  जांच में नए नोट और पुराने नोटों के ट्रांजेक्शन पर भी खास नजर रखी जा रही है। नोटबंदी के शुरूआती 10 दिनों में हुए आय के बारे में भी पूरी जानकारी मांगी जा रही है ताकि कैश फ्लो की स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट की जा सके।
रांची में थमाए जा चुके हैं 100 पेट्रोल पंपों को सख्त नोटिस
रांची में एक पेट्रोल पंप पर हुए सर्वे के बाद सामने आई धांधली को देखते हुए इनकम टैक्स ने शहर के सभी पेट्रोल पंपों को नोटिस थमा दिए हैं। इन नोटिस का जवाब सात दिन में मय दस्तावेजी प्रमाणों के देना है। नोटिस से हड़कंप मची। सभी पेट्रोल पंप संचालक कागजात दुरुस्त करने में जुट गए।
भोपाल में हुई पूछताछ : बताया जा रहा है कि लगातार शिकायतों के चलते भोपाल में इनकम टैक्स की टीम ने चुनिंदा पेट्रोल पंपों के संचालकों से नोटबंदी के बाद का लेखा-जोखा तक मांगा और पूछताछ की। हालांकि इस मामले में अब तक इंदौर में इनकम टैक्स ने मैदानी कार्रवाई नहीं की है।
कंपनियों का रिकार्ड खोलेगा राज
आयकर तक पहुंच रही सूचनाओं के अनुसार पेट्रोल पंप संचालकों ने नियमित खपत के मुकाबले छह-छह गुना ज्यादा स्टॉक कंपनियों में बुक करवाया है। यदि कंपनियों से रिकार्ड बुलाया जाता है तो इनकम टैक्स के सामने दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। क्योंकि पंप के रिकार्ड को व्यवस्थित किया गया है ताकि पहली नजर में गड़बड़ न नजर आए।
ऐसे समझे: एक पेट्रोल पंप की एक दिन की सेल 2 करोड़ की है। मतलब, उस पंप पर एक दिन की सेल के बाद संचालक के हाथ में 2 करोड़ रुपए रहते हैं। आमतौर पर कमीशन व खर्च काटकर करीब इतने ही रूपए के र्इंधन की एडवांस बुकिंग होती है। नोटबंदी के बाद स्थिति उलट है। जिस पंप पर 2 करोड़ का डीजल बिका उसके संचालक ने 12 करोड़ रुपए कंपनी में बतौर एडवांस बुकिंग जमा करवा दिए। ऐसे में इनकम टैक्स को इस बात की तस्दीक करने की जरूरत है कि जब केशइन हैंड ही 2 करोड़ है तो बाकी के 10 करोड़ रुपए जो एडवांस जमा हुए हैं वे किसके हैं।
ऐसे लौटाएंगे पैसा : पंप संचालकों ने बड़े नोटों की बड़ी खेप ली और एडवांस के रूप में कंपनी में जमा कर दी। अब जैसे-जैसे कंपनी से खेप आएगी, माल सेल होगा, वैसे-वैसे अपनी कमीशन काटकर पैसा उन लोगों को लौटाया जाएगा जिनका काले से उजला किया है।
ऐसे किए खेल
-- संचालक अपने यहां आ रहे छोटे नोटों को एकत्र कर 15 लाख रुपये के पुराने नोटों के बदले 10 लाख रुपये के छोटे नोट दे रहे हैैं और पुराने नोटों को अपनी बिक्री में दिखा कर बैैंक में जमा कर दिए।
--  सिटी के पंपों पर छोटे वाहनों की अधिकता के कारण पेट्रोल की बिक्री ज्यादा होती है। ज्यादातर खरीदी 50 से 500 रुपए के बीच होती है। संचालकों ने खुल्ले का संकट बताकर शुरूआत में राउंडफिगर में 500 और 1000 रुपए काटे हैं। खुल्ले पैसों को 20 से 30 फीसदी की कमीशन के साथ बड़े नोटों से रिप्लेस किया गया।
-- कई पेट्रोल पंपों ने ‘जहां डीजल की बिक्री ज्यादा है’, वहां बड़ी गाड़ियों के नंबर डालकर बड़े बिल बनाए हैं जबकि जिन गाड़ियों के नंबरों के नाम पर बल्क बिल बनाए गए हैं वे गाड़ियां वहां से गुजरी ही नहीं है।
हमने तो सेवा की है, नोटिस आएगा तो देंगे जवाब
पेट्रोल पंपों को सरकार ने नोट चलाने की छूट तो दी लेकिन खुल्ले पैसे नहीं दिए थे। अब 500 और 1000 का नोट देने वाला पूरे पैसे का पेट्रोल-डीजल तो डलवाता नहीं है, 300, 700, 800 रुपए का र्इंधन डला तो ऊपर के पैसे हमने दिए ही हैं। जैसे-जैसे पैसा आया, वैसे-वैसे लोगों को दिया भी। फिर हेराफेरी हुई कैसे? हमने पंपों को स्पष्ट कर दिया था कि न उधार दें, न खुल्ले देने से मना करें, हैं तो दें।
पारस जैन, सचिव
इंदौर पेट्रोल डीलर एसोसिएशन

सीएम से आवंटन पत्र दिलाने के छह साल बाद भी प्लॉट नहीं दे पाई ‘बसंत विहार’

-  2011 में हुई पुखराज ऐवेन्यू की टीएनसी में संसोधन का आवेदन, प्लॉटों पर कैसी चलाने की तैयारी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
सात से लगातार जारी सरकारी अभियान के बावजूद हाउसिंग सोसायटी के नाम पर भू-माफियाओं का खेल बदस्तूर जारी है। बसंत विहार गृह निर्माण सहकारी संस्था इसका बड़ा उदाहरण है। सरकारी सख्ती के तहत मई 2010 में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के हाथों आवंटन पत्र बटवाकर वाहवाही लूटने वाली यह संस्था आज दिन तक हकदारों को उनके प्लॉट का कब्जा नहीं दे पाई। उलटा, तथाकथित आवंटन के बाद टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट से 2011 में जो नक्शा पास करवाया था उसमें संसोधन का आवेदन लगाते हुए संस्था ने प्लॉटों की साइज छोटी करने की मांग कर दी।
बसंत विहार गृह निर्माण सहकारी संस्था की ग्राम निपानिया में 6.533 हेक्टेयर जमीन (सर्वे नं. 78/1, 78/3, 79/2, 77/2, 79/5, 88/2, 79/3 व 80/2) है। 129 इमली बाजार के पते पर पंजीबद्ध इस संस्था द्वारा प्रस्तावित पुखराज एवेन्यू कॉलोनी के प्लॉटों को लेकर सदस्य वर्षों तक परेशान रहे। शिकवा-शिकायतों और 2009 में शुरू हुए सरकारी अभियान के बाद सहकारिता विभाग ने जांच की। पूर्व विधायक उमंग श्रृंगार द्वारा पूछे गए सवाल के एवज में 25 फरवरी 2011 को सहकारिता विभाग के उपायुक्त महेंद्र दीक्षित ने विधानसभा में जो जवाब प्रस्तुत किया था उसके अनुसार बसंत विहार के दो सदस्यों को पुखराज ऐवेन्यू कॉलोनी में प्लॉट दिए गए हैं। एक आयोजन में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने प्रतीकस्वरूप दो लोगों को अपने हाथों से आवंटन पत्र दिये थे।
आवंटन मिला, प्लॉट नहीं
-- विधानसभा में जो जवाब गया था उसके अनुसार बसंत विहार की सदस्यता सूची का अंतिम प्रकाशन 25 जनवरी 2011 को हुआ है। जब मुख्यमंत्री ने आवंटन पत्र दिये थे तब तक तो कॉलोनी का विकास शुरू भी नहीं हुआ था। संस्था ने ले-आउट मंजूरी के लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग में आवेदन किया 13 अपै्रल 2011 को। ले-आउट मंजूर (4908/एस/181/11/नग्रानि/2011) 8 जुलाई 2011 को। 65330 वर्गमीटर कुल जमीन में से टीएनसी ने 35747 वर्गमीटर प्लाट एरिया विकसित करने की अनुमति दी।
--  इसमें 1000 वर्गफीट के 36, 1200 वर्गफीट के 40, 1500 वर्गफीट के 128 और 2400 वर्गफीट के करीब 35 प्लॉट विकसित करना थे। 7 जुलाई 2014 तक वेलिड रहने वाले इस नक्शे पर भी संस्था ने काम नहीं किया।
-- नक्शे की तीन साल की वेलिडिटी जुलाई 2014 में खत्म हुए भी दो साल से ज्यादा हो चुके थे। तब जाकर अगस्त 2016 में संस्था ने मप्र नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 की धारा 29(3) के तहत 2011 में स्वीकृत हुए नक्शे का रिवाइज प्लान मंजूर कराने के लिए आवेदन किया।
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग भी मेहरबान
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के अधिकारी भी हाउसिंग सोसायटी के गौरखधंधे पर मेहरबान है। संस्था का नक्शा रिवाइज करने से पहले 28 सितंबर 2016 को  जो विज्ञप्ति जारी की गई थी उसमें अधिकारियों ने नक्शे के रिविजन से कॉलोनी के प्लॉटधारकों के हित प्रभावित होने की आशंका तो जताई लेकिन आवेदन को खारिज नहीं किया। न ही यह जानने की कोशिश की कि 2011 में जो नक्शा मंजूर किया गया था उसके आधार पर कॉलोनी विकसित हुई भी या नहीं।
आपत्ति से अटकी प्लानिंग
संस्था के खसरों पर ले-आउट संसोधन के लिए किए गए आवेदन की जानकारी सदस्यों को टीएंडसीपी द्वारा जारी की गई विज्ञप्ति में मिली। तब आरटीआई कार्यकर्ता और पत्रकार दिलीप जैन ने टीएंडसीपी, कलेक्टर इंदौर, विकास प्राधिकरण, सहकारिता विभाग से लेकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान तक को पत्र लिखकर मय दस्तावेजी प्रमाण के रिविजन पर आपत्ति ली। तब जाकर रिवाइज प्लान अटका। अन्यथा अब तक मंजूर हो चुका होता।
जनकल्याण की ही जागिर है बसंत विहार
मुख्यमंत्री के हाथों प्लॉटों का आवंटन कराने के बावजूद सदस्यों को कब्जा देने में नाकाम रही जनकल्याण गृह निर्माण सहकारी संस्था की जैबी संस्था या यूं कहें कि जागिर है बसंत विहार गृह निर्माण सहकारी संस्था। दोनों संस्थाओं के पते 129 इमली बाजार ही हैं। इतना ही नहीं दोनों संस्थाओं में अग्रवाल बंधुओं का ही एक तरफा कब्जा है। दोनों ही संस्थाओं में एक जैसी स्थिति ही है।
आदतन भू-माफिया : देवी अहिल्या में पिता पर भी केस दर्ज है
बसंत विहार और जनकल्याण गृह निर्माण सहकारी संस्था के सर्वेसर्वा मनीष अग्रवाल व अन्य का देवी अहिल्या गृह निर्माण सहकारी संस्था में भी वास्ता है। संस्था द्वारा काटी गई सार्इं श्रृद्धा पैलेस में जल्द ही प्रशासन कार्रवाई की तैयारी में है। इस संस्था में भी मनमानी हुई। इसीलिए 11 फरवरी 2010 को तुकोगंज पुलिस ने संस्था के जिन लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया था उनमें जनकल्याण के अध्यक्ष निखिलेश अग्रवाल के पिता सुगनलाल अग्रवाल और बसंत विहार के सर्वेसर्वा मनीष अग्रवाल के पिता ओमप्रकाश अग्रवाल का नाम भी शामिल था। 

शिक्षा विभाग को सौंपने के बजाय बेच डाली स्कूल की जमीन

सरकारी जमीन हजम करने वाली मारूति गृह निर्माण संस्था का कारनामा
54 हजार वर्गफीट पर पहले इंडस वर्ल्ड बना, बाद में आईपीएस अकेडमी ने किया टेकओवर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
इन्फॉर्मल सेक्टर के लिए प्रस्तावित जमीन सरकार को देकर फिर उस पर सार्इं कृपा-2 का ले-आउट मंजूर कराने वाली मारूति गृह निर्माण सहकारी संस्था ने सरकारी आदेश के विपरीत शैक्षणिक उपयोग की जमीन भी मनमाने ढंंग से बेच खाई। दस्तावेजों के लिहाज से बात करें तो 1988 में साई कृपा कॉलोनी काटते वक्त कलेक्टर ने जिस जमीन को जिला शिक्षा विभाग या नगर निगम इंदौर को सौंपने के लिए कहा था संस्था ने वही जमीन बाद में निजी स्कूल को बेच डाली। आज उस जमीन पर आईपीएस स्कूल (इर्स्टन कैंपस) संचालित हो रहा है।
संस्था की मनमानी का खुलासा दबंग दुनिया ने ‘सरकार को सौंपी जमीन पर ‘मारुति’ की नई साईकृपा’, शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। इसके बाद लगातार संस्था के खिलाफ शिकायतें मिलने लगी। इसी कड़ी में एक अहम सुराग हाथ लगा तकरीबन 54000 वर्गफीट जमीन की हेराफेरी का। खजराना में संस्था की 58.89 एकड़ जमीन थी। जिस पर टीएडंसीपी ने 22 अगस्त 1988 को ले-आउट मंजूर करते हुए 15 प्रशित (करीब 8.80 एकड़) भूमि इन्फॉर्मल सेक्टर के लिए आरक्षित रखी थी। 13 जनवरी 1989 को एसडीएम ने मप्र गंदी बस्ती उन्मूलन मंडल अधिकारी के रूप में जमीन का कब्जा लिया। वहीं 25 फरवरी 1989 को कलेक्टर की तरफ से डिप्टी कलेक्टर ने अध्यक्ष मारुति गृह निर्माण सहकारी संस्था को पत्र (337/कॉलोनी सेल/89) लिखा और शाला भवन व उद्यान के लिए आरक्षित रखी गई जमीन शिक्षा विभाग व नगर निगम को सौंपने के निर्देश दिए।
संस्था अग्रवाल की
मारूति गृह निर्माण सहकारी संस्था के अध्यक्ष राजेंद्रनाथ अग्रवाल हैं जो कि सार्इं कृपा गृह निर्माण सहकारी संस्था के सर्वेसर्वा प्रेम गोयल के साले हेैं।
यह लिखा था आदेश में
सूचित किया जाता है कि नगर एवं ग्राम निवेश विभाग द्वारा स्वीकृत अभिन्यास में शैक्षणिक प्रयोजन के लिए छोड़ी गई जमीन व बगीचे के लिए छोड़ी गई जमीन का कब्जा क्रमश: जिला शिक्षा अधिकारी(शिक्षा विभाग) और आयुक्त नगर पालिक निगम इंदौर को सौंपकर पालन प्रतिवेदन 3 दिन में कार्यालय को भिजवाने का कष्ट करें। इसकी प्रति नगर निगम, शिक्षा विभाग और टीएंडसीपी को भी भेजी गई।
ऐसे करी अफरा-तफरी
स्कूल के लिए छोड़ा गया प्लॉट करीब 54000 वर्गफीट का है। तीन तरफ 12 मीटर की रोड प्रस्तावित थी। चौथी तरफ 2000 वर्गफीट के नौ प्लॉट (480 से 488) आरक्षित छोड़े गए थे जिनका भू-उपयोग आवासीय/व्यावसायिक था। हालांकि इन प्लॉटों का जिक्र ले-आउट में तो है लेकिन मौके पर प्लॉट है नहीं। इनका समावेश स्कूल की जमीन में किया जा चुका है। एक तरफ 409 से 417, दूसरी तरफ 547 से 560 और तीसरी तरफ 513 से 516 के बीच प्लॉट हैं, जहां मकान बने हैं। 2005-06 में स्कूल की जमीन इंडस स्कूल को बेच दी गई। इसी वित्त वर्ष में स्कूल का काम शुरू हो गया। 2007-08 में स्कूल तैयार हो गया।   2009 में स्कूल आईपीएस अकेडमी को बेच दिया गया। आईपीएस ने इसे इस्टर्न कैंपस के रूप में जुलाई 2009 से शुरू किया।
बच्चों का हक जीमा
उस वक्त कॉलोनी सेल व कलेक्टर की सोच थी कि यदि सार्इं कृपा की करीब 50 हजार वर्गफीट जमीन शिक्षा विभाग को मिल जाती है तो यहां भविष्य में शासकीय स्कूल शुरू किया जा सकता है। अभी सरकारी स्कूल सिर्फ खजराना में है जो कि सार्इंकृपा कॉलोनी से तकरीबन दो से तीन किलोमीटर दूर है। यदि सार्इंकृपा की जमीन पर सरकारी स्कूल बनता तो उसका फायदा निपानिया और पीपल्याकुमार जैसे उन गांवों को भी मिलता जहां अच्छा स्कूल नहीं है।
ताबिज और यंत्रों का गौरखधंधा भी कर चुकी है चंदागैंग
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
कैंसर और एड्स पीड़ितों के नाम पर चंदा वसूली करते आ रही चंदा गैंग का सरगना संदीप चौधरी बीते वर्षों में वन विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर जंगल की लकड़ियों की तस्करी और चायनामेड इलेक्ट्रॉनिक आइटम का गौरखधंधा भी कर चुका है। इधर, इंदौर पुलिस की मेहरबानी के कारण चंदागैंग का सरगना न सिर्फ बेखौफ घुम रहा है बल्कि सबूत भी मिटा रहा है।
लोगों को टोपी पहनाना संदीप चौधरी का पुराना धंधा है। फिर मामला चायनीज इलेक्ट्रॉनिक आइटम के फर्जीवाड़े का हो या फिर जंगल की लकड़ी की अफरा-तफरी का। संदीप के निकटतम दोस्तों की मानें तो डेढ़ साल पहले यंत्र और ताबिजों का गौरखधंधा भी चौधरी कर चुका है। यह सारा काम आरएनटी मार्ग स्थित सिल्वर मॉल के आॅफिस से किया। इस काम में सचिन मलिक पार्टनर नहीं था लेकिन फिर भी भागीदारों की संख्या दो बताई जाती है। तकरीबन तीन महीने तक ताबिज और यंत्र का धंधा चला लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद इन्होंने यह धंधा छोड़कर चंदाखोरी शुरू कर दी।
लोकल माल को ब्रांडेड बनाकर बेचता था
निकतम साथियों की मानें तो संदीप ने लोकल इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स, ताबिज और यंत्रों को ब्रांडेड बताकर बेचा है। इसके लिए व्यवस्थित डिब्बाबंद पैकिंग भी कराई जाती थी ताकि लोकल माल ब्रांडेड दिखे।
अब तक नहीं मिला पुलिस को घर!
संदीप और उसकी चंदागैंग का खुलासा दबंग दुनिया द्वारा लगातार किए जाने के बाद उसके ही अपने वकील ने विजयनगर थाने में शिकायत आवेदन दिया था। इस आवेदन में चौधरी और चंदागैंग का पूरा कालाचिट्ठा बयान किया गया था। बावजूद इसके विजयनगर पुलिस ‘घर नहीं मिल रहा है’, कहकर जांच आगे नहीं बढ़ा पाई। जबकि विजयनगर पुलिस स्टेशन और चौधरी के घर (बीजी 257 स्कीम-74, जो कि राष्ट्रीय विद्यामंदिर स्कूल के ठीक सामने हैं) के बीच की दूरी 1.34 किलोमीटर ही है। दो राइट और एक लेफ्ट टर्न लेकर  चौधरी का घर नहीं ढूंड पा रही पुलिस की भूमिका को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
इंदौर को छोड़ बाकी पुलिस ने दिखाई सक्रीयता
आगर पुलिस : 7,8,9 जुलाई को चंदागैंग के अमित सिसोदिया, सचिन मलिक, एस.एन.तिवारी और अक्षय गुर्जर को पकड़ चुकी है आगर पुलिस।
झाबुआ पुलिस : 17 जुलाई को लोगों की शिकायत पर झाबुआ के राणापुर थाने की पुलिस ने अमित, सचिन और अक्षय को केंसर और एड्स पीड़ितों के नाम पर फर्जी एनजीओ की रसीद काटकर चंदा वसूलते रंगेहाथ पकड़ा था। धोखाधड़ी का मुकदमा भी दर्ज किया था। 

नौ मीटर सड़क को 12 मीटर बताकर पास कर दी छह मंजिला इमारत

टीएंडसीपी के अधिकारियों की मनमानी
टेलीफोननगर में बन रही अवैध प्रीमियम गुलमोहर ग्यांस पार्क
इंदौर. विनोद शर्मा ।
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने नौ मीटर की सड़क को 12 मीटर बताकर सूर्य शक्ति गृह निर्माण सहकारी संस्था की जो छह मंजिला इमारत मंजूर की थी उसमें एक लाख वर्गफीट से ज्यादा अवैध निर्माण हो चुका है। मासिक बंदी के कारण नगर निगम के मैदानी अधिकारी हाउसिंग सोसायटी के नाम पर राजू टेकचंदानी और निखिल कोठारी जैसे भूू-माफियाओं की मनमानी का मुजायरा कर रहे हैं। इसका खुलासा लोकायुक्त तक पहुंची एक शिकायत में हुआ है।
मामला ग्यांसपार्क कॉलोनी (टेलीफोननगर) स्थित ग्राम खजराना की 39523 वर्गफीट जमीन पर 2009-2010 से बन रही होराइजन प्रीमियम गुलमोहर ग्यांस पार्क टाउनशीप का है। जिस जमीन पर टाउनशीप आकार ले रही है वह रिंग रोड से 45 मीटर अंदर है। रिंग रोड और बिल्डिंग के बीच स्कीम-94 है। 35 मीटर लंबी जिस सड़क से जमीन तक पहुंचा जा सकता है उसकी चौड़ाई नौ मीटर है। बावजूद इसके टीएंडसीपी के अधिकारियों ने 24 मार्च 2008 को जादूगरी करते हुए नौ मीटर की इस सड़क को नजरअंदाज करते हुए खसरे पर 12 मीटर चौड़ाई सड़क बताकर छह मंजिला इमारत का नक्शा पास कर डाला।
आधा-अधूरा नक्शा किया पास
टीएंडसीपी ने मार्च 2008 में जो नक्शा मंजूर (1408/नग्रानि/एसडीएम/2008) किया है उसके कवर नोट पर टाइप शब्दों में सिर्फ स्कीम-94 की नौ मीटर चौड़ी सड़क का जिक्र हैं जबकि उसके आगे पेन की हेंडराइटिंग में लिखा है के सामने 12 मीटर सड़क उपलब्ध है।
सामान्यत: कवर नोट या स्वीकृत ले-आउट पर बिल्डिंग की स्वीकृत ऊंचाई लिखी होती है। यहां स्थिति उलट है। बिल्डिंग की ऊंचाई के आगे 12 मीटर लिखा था जिसे काटकर नीचे लिख दिया गया कि ऊंचाई मप्र भूमि विकास अधिनियम के अनुसार।
3 और 4 बीएचके के तीन ब्लॉक बन रहे हैं
मौके पर तीन ब्लॉक मंजूर हुए हैं जिनमें 1830 व 1940 वर्गफीट के 3 बीएचके और 2440 से 2475 वर्गफीट के 4 बीएचके फ्लैट बने हैं जिनकी कीमत 64 लाख से लेकर 90 लाख रुपए तक बताई जा रही है।
बिल्डिंग होराइजन प्रोजेक्ट इंदौर प्रा.लि. नाम की कंपनी बना रही है जिसके डायरेक्टर निखिल कोठारी और सुरभी कोठारी है। इसके अलावा प्रोजेक्ट से राजू टेकचंदानी सहित कई बड़े चेहरे जुड़े हैं।
कौनसी जमीन किसकी
सर्वे नं रकबा मालिक
1276/5 0.078 सूर्यशक्ति हाउसिंग सोसायटी
1276/6 0.067 सूर्यशक्ति हाउसिंग सोसायटी
1276/7 0.014 मीनल प्रफुल्ल गुप्ता
1276/10 0.012 सुशीलादेवी जैन
1292/1/6 0.177 श्याम पिता गुरुमुखदास
1287/8 0.207 श्याम पिता गुरुमुखदास
(जिस वक्त नक्शा पास हुआ उस वक्त जमीन तारादेवी पति मदनलाल राठी, लीला शिवनारायण अवस्थी, होर्डिंग आॅनर के प्रदीप पिता हर्षस्वरूपऔर पायोनियर के राजेंद्रकुमार गिरधारीलाल के नाम थी।)
जमीन भी कम ज्यादा
सर्वे नं रकबा (हेक्टेयर) रकबा नक्शे में
1276/5 0.078 0.078
1276/6 0.067 0.067
1276/7 0.014 0.175
1276/10 0.012 0.012
1292/1/6 0.177 0.021
1287/8 0.207 0.015
कुल 0.555 0.368

झगड़े की जमीन पर मुख्यमंत्री से बटवा डाले 777 प्लॉट

जनकल्याण हाउसिंग सोसायटी और सहकारिता विभाग के अधिकारियों का कारनामा
2010 में हुए आवंटन के बाद अब तक न प्लॉट मिले, न कब्जा
इंदौर. विनोद शर्मा ।
विधानसभा से लेकर हाउसिंग सोसायटियों की मनमानी पर अंकुश के लिए बनी एसआईटी तक जनकल्याण हाउसिंग सोसायटी की मनमानी के चर्चे आम है। संस्था के संचालकों ने सहकारिता विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर उस जमीन पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से 2010 में  777 प्लॉटों का आवंटन पत्र जारी करवा दिया जिसके मालिकाना हक को लेकर मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। आवंटन -पत्र पाने वाले सदस्यों को अब तक प्लॉटों का कब्जा न मिलने की यह भी बड़ी वजह है जिसे सहकारिता विभाग के अधिकारी अब टालते नजर आते हैं।
इस पूरे मामले का खुलासा अपने खिलाफ एक के बाद एक हो रही शिकायतों का जवाब देते हुए जनकल्याण गृह निर्माण सहकारी संस्था के संचालक मंडल ने गलती से कर दिया। 3 अक्टूबर 2016 में नगर निगम की कॉलोनी सेल उपायुक्त को सौंपी गए संस्था के जवाब में संचालकों ने कहा है कि संस्था के स्वामित्व की ग्राम पीपल्याकुमार स्थित सर्वे नं. 248/3/1 का प्रकरण हाईकोर्ट में विचाराधीन है। मूल विक्रेता की की मृत्यु के बाद उनके वारिसों द्वारा निचली अदालत में वाद प्रस्तुत किया था। प्रकरण संस्था के पक्ष में होने के बाद अपील दायर की गई थी। अब तक हाईकोर्ट ने संस्था के खिलाफ कोई आदेश पारित नहीं किया है। न प्रकरण में स्टे है।
झगड़े की जमीन का डायवर्शन हो गया, टीएनसी अटकी
सर्वे नं. 248/3/1 की 0.890 हेक्टेयर जमीन राजस्व रिकार्ड में जनकल्याण गृह निर्माण सहकारी संस्था के नाम है लेकिन पीपल्याकुमार निवासी लीलाधर पिता रामप्रसाद खाती, नरेंद्र पिता रामप्रसाद, उमरावबाई पति रामप्रसाद खाती इस पर अपना मालिकाना हक जताते हैं। इसी को लेकर संस्था और किसानों के बीच मार्च 2007 से केस (सेकंड अपील 322/2007) विचाराधीन है। बावजूद इसके जनकल्याण हाउसिंग सोसायटी के संचालकों ने उक्त जमीन के साथ 364432 वर्गफीट जमीन का डायवर्शन (3/अ-24/12-13) 31 दिसंबर 2013 को कराया गया था। संस्था के आवेदन पर 2 जनवरी 2016 को टीएंडसीपी में नक्शा प्रस्तुत भी हुआ लेकिन मंजूर नहीं हुआ।
सदस्यों की पीड़ा
विवादित जमीन पर कराया आवंटन : योगेश शुक्ला और सानेश शुक्ला के नाम पर महालक्ष्मीनगर के प्लॉट नं. 311 व 312 हैं जो कि उक्त विवादित जमीन पर ही आते हैं। इन प्लॉटों का आवंटन भी मुख्यमंत्री के माध्यम से कराया गया।
पैसे लिए 1500 के, दिया 1000 वर्गफीट : द्वारकाधीश कॉलोनी निवासी बद्रीलाल गुप्ता को महालक्ष्मीनगर में 1982 में 1500 वर्गफीट का प्लॉट (501बी) दिया था संस्था ने। प्लॉट मनी, अंश पूंजी और विकास शुल्क पेटे पूरा पैसा दिया। संस्था ने 2008 में कहा कि अब आपको प्लॉट नं. 327 देंगे। टीएनसीपी से मई 2004 में अनुमोदित नक्शा दिखाते हुए कहा कि प्लॉट 1500 वर्गफीट है। बदनियती के कारण संस्था ने इसमे से 1000 वर्गफीट की ही रजिस्ट्री करके दी। संस्था ने 500 वर्गफीट जमीन दे रही है और न उसके पेटे जमा कराए गए पैसे लौटा रही है।
आवंटन पत्र दिया, प्लॉट नहीं : भगवानदीननगर निवासी डॉ.सुधीर पिता आर.एन.शर्मा ने 1980 में संस्था की सदस्यता ली। प्लॉट कीमत व विकास शुल्क लेकर संस्था ने सितंबर 2011 में प्लॉट नं. 747 का आवंटन पत्र दिया। हालांकि इस प्लॉट का आज दिन तक न कब्जा दिया। न ही रजिस्ट्री करके दी जा रही है।
मुख्यमंत्री से ही करेंगे बात
संस्था की मनमानी और सहकारिता विभाग से लेकर एसआईटी तक के अधिकारियों की मिलीभगत से परेशान सदस्य अब मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रखेंगे जिन्होंने प्लॉट आवंटित किए थे। इस संबंध में जल्द ही प्लॉटधारक आरटीआई कार्यकर्ता दिलीप जैन के साथ भोपाल में प्रेस कॉन्फ्रेंस लेंगे। धरना देंगे।
मई 2010 को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के हाथों सहकारिता विभाग के अधिकारियों और जनकल्याण गृह निर्माण सहकारी संस्था के संचालकों ने सदस्यों को प्लॉट दिलवाकर वाहवाही लूटी उन्हें आज दिन तक
हान ने ही 2010 में इंदौर की जनकल्याण गृहनिर्माण सोसायटी के 350 प्लाट सदस्यों को वितरित किये थे और सर्टिफिकेट भी दिए थे। परंतु उक्त प्लाट का कब्जा अभी तक नहीं दिया गया।
मु?यमंत्री के निर्देश के बावजूद जनकल्याण गृह निर्माण संस्था द्वारा सदस्यों को प्लॉट न देने के मामले में सहकारिता उपायुक्त ने संस्था को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा है। नोटिस में पूछा गया है कि संस्था द्वारा मु?यमंत्री के निर्देश पर भी सदस्यों को भू?ांडों का आवंटन क्यों नहीं किया गया। सदस्यों को भूखंड न देने का क्या कारण है इसकी जानकारी तुरंत प्रस्तुत करें। इस पूरे मामले का खुलासा डीबी स्टार ने २ मार्च को किया था। इसके बाद सहकारिता विभाग ने कार्रवाई शुरू की। उपायुक्त सहकारिता ने डीबी स्टार को बताया हमने संस्था को नोटिस जारी किया है, जवाब आने के बाद अगली कार्रवाई तय होगी।
अब जवाब मांगा है
मु?यमंत्री के निर्देश के बावजूद जनकल्याण सोसायटी ने कई सदस्यों को प्लॉट नहीं दिए। इस सोसायटी के हजारों सदस्यों को प्लॉट मिलना है। बमुश्किल सौ सदस्यों को प्लॉट दिए गए। प्लॉट मांगने वालों को सोसायटी ही औने पौने दाम में प्लॉट सरेंडर करने के लिए कह रही है ताकि ये प्लॉट बाद में दूसरों को बेचकर मुनाफा कमा सकें, क्योंकि अब यह जमीन करोड़ों रुपए की हो गई है। डीबी स्टार ने इस संबंध में पड़ताल की तो सामने आया कि अब भी सैकड़ों लोग सदस्यता होने के बावजूद प्लॉट से वंचित हैं। कई लोग तो ऐसे हैं जिन्हें मु?यमंत्री ने प्लॉट देने का प्रमाण- पत्र दे दिया और पीड़ित ने लाखों रुपए ?ाी जमा कर दिए, लेकिन प्लॉट नहीं मिला। सोसायटी यह कहकर टाल रही है कि जमीन का विवाद चल रहा है। उपायुक्त सहकारिता का कहना है कि सोसायटियों ने फिर गड़बड़ शुरू कर दी है। हम इसकी जांच करवा रहे हैं।
इन्हें मिलाकर गृह निर्माण सहकारी संस्थाओं के 981 सदस्यों को प्लाट आवंटन पत्र देने का काम शुरू किया गया। इनमें विजयश्री गृह निर्माण सहकारी संस्था के 125, इंदौर विकास संस्था के 24, जनकल्याण गृह निर्माण संस्था के 777 तथा पीताम्बरा गृह निर्माण सहकारी संस्था के 55 सदस्य शामिल हैं।
जनकल्याण गृह निर्माण संस्था के राकेश बच्चनलाल जैन, रामनिवास रामसहाय अग्रवाल, एबरेल बडसृजन डॉ. बैराम जंगलवाला, श्रीमती देवीबाई दामोदर दास भाटिया, मनोज जमनादास गणाज्ञा
समारोह में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रतीक स्वरूप चार गृह निर्माण सहकारी संस्थाओं के 20 सदस्यों को आवंटन पत्र सौंपे।