Monday, July 18, 2016

60 हजार नए आयकर दाता बने, 4 लाख शंका के घेरे में

- हर लेन-देन और खरीदी-बिक्री पर नजर
- विशेषज्ञों के तर्कों पर भी तफ्तीश
इंदौर. विनोद शर्मा ।
आयकर से परहेज करने वालों के खिलाफ मोदी सरकार का अभियान रंग लाया। एक करोड़ नए करदाताओं के टार्गेट के मुकाबले 40 लाख नए करतदाता बने हैं। इसमें करीब 60 हजार इंदौर मुख्य आयकर आयुक्तालय के करदाता हैं। हालांकि विभाग और विभागीय विशेषज्ञों के अनुसार आयुक्तालय क्षेत्र में अब भी चार लाख लोग ऐसे हैं जो आयकर के दायरे में आ सकते हैं। इसीलिए सबंधित ठिकानों से लोगों के लेन-देन और खरीदी-बिक्री की जानकारी जुटाई जा रही है।
इंदौर सीसी क्षेत्र को 2015-16 में 1.5 लाख नए करदाता बनाने का लक्ष्य मिला था। उस वक्त करदाताओं की संख्या थी 4.63 लाख। अधिकारी-कर्मचारियों की हड़ताल व अन्य व्यस्तताओं के बावजूद करदाता बढ़ाओ  अभियान जारी रहा। इसीलिए करीब 60 हजार करदाता बढ़े और कुल करदाताओं की संख्या 5.20 लाख हो गई। हालांकि विशेषज्ञीय अनुमान के हिसाब से सीसी क्षेत्र के 16 जिलों में करीब 4 लाख लोग और आयकर की पहुंच से दूर है।
ऐसे की जा रही है तलाश
विभाग ने रीजन के लोगों की संपत्ति, जिला पंजीयक कार्यालयों से संपत्ति की खरीदी-बिक्री, स्टॉम्प शुल्क, सोने-चांदी व अन्य महंगी ज्वैलरी की खरीदी, बैंकों में जमा एफडी, पूंजी के साथ ही ब्याज व काटे जा रहे टीडीएस के रिकार्ड खंगाले जा रहे हैं। प्रॉपर्टी ब्रोकर्स व अन्य ब्रोकर्स पर भी नजर है जो दलाली से लाखों रुपया कमाते हैं। स्थानीय प्रशासन से हायर रेट जोन वाले संपत्ति करदाताओं की लिस्ट के साथ स्वीकृत होने वाले बंगलों के साथ कॉलोनी-मॉल-मार्केट-मल्टियों के नक्शे की जानकारी भी ली जा रही है ताकि वहां बिकने वाले फ्लैट, दुकान व आॅफिसों की सही गणना की जा सके।
संयुक्त प्रयास...
फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआईयू) और सरकारी-गैरसरकारी बैंकों का सेंट्रलाइज डाटा सेंटर भी इस काम में आयकर की मदद कर रहा है। रीजनल इकानॉमिक इंटेलीजेंस कमेटी (आरईआईसी) में पुलिस, लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू, सीबीआई, वाणिज्यिक कर, सेंट्रल एक्साइज, डीआरआई, डीजीसीईआई व इनकम टैक्स एक दूसरे से इन्फॉर्मेशन एक्सचेंज कर रहे हैं जिसका फायदा भी आयकर व अन्य कर विभागों को मिला है।
फिर क्यों दूर है आयकर से
सिर्फ इंदौर में वाहनों की कुल संख्या 16 लाख से अधिक है। इसमें चार पहिया चार लाख और कमर्शियल वाहन दो लाख से अधिक है। मतलब 6 लाख। अब यदि 1 लाख घरों में दो-दो कार है तो भी फोरव्हीलर रखने वाले ही 3 लाख लोग होते हैं। कमर्शियल वाहन वाले अलग। बाकी 15 जिलों के वाहनों की संख्या अलग।
नगर निगम में सालाना 25 हजार से ज्यादा नक्शे पास होते हैं। नक्शे सिर्फ वैध कॉलोनियों में ही पास होते हैं जहां प्लॉट की कीमत औसत 2000 रुपए/वर्गफीट है। कंस्ट्रक्शन कॉस्ट 1000 रुपए/वर्गफीट। इस मान से प्लॉट सहित 1000 वर्गफीट का एक ही घर 30 लाख में तैयार होता है।
इंदौर में 350 से अधिक नई कॉलोनियां और टाउनशीप कटी है जहां प्लॉट और फ्लैट की औसत कीमत ही 10 लाख है। कुल प्लॉट और फ्लैट करीब 7 लाख हैं।
दो हजार से अधिक प्रॉपर्टी ब्रोकर है। इनमें से टैक्सपेयर हैं करीब 350 ही। बाकी लोग अपनी कमीशन पर टीडीएस भी नहीं कटवाते।
500 से ज्यादा होस्टल हैं, रजिस्टर्ड आधे भी नहीं है। यही स्थिति होटल, प्राइवेट स्कूल, हॉस्पिटल, नर्सिंग होम की है।
अभी 5.20 लाख करदाता
आय करदाता
2.5 लाख से कम 3.5 लाख
2.5 से 5.5 लाख 1 लाख
5.5 से 9.9 लाख 35 हजार
10 लाख से अधिक 25 हजार

फर्जी कंपनियों से सफेद करते थे काली कमाई

एमपी एग्रो के खिलाफ इन्वेस्टिगेशन में खुलासा
 इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
इंदौर बेस जिस दलिया किंग कंपनी एमपी एग्रो न्यूट्री फुड्स प्रा.लि. और एमपी टूडे मीडिया गु्रुप के संचालकों ने दर्जनभर से ज्यादा फर्जी कंपनियां बना रखी है। इन कंपनियों का इस्तेमाल दो नंबर की कमाई को एक नंबर में रोटेट करने के लिए किया जाता है। एमपी एग्रो के खिलाफ लगातार तीन दिन तक चली इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग की छापेमार कार्रवाई के दौरान यह बात सामने आई है। कार्रवाई गुरुवार देर रात तक जारी रही। कार्रवाई के दौरान 100 करोड़ की बेनामी संपत्ति का आंकलन किया जा रहा है।
मीडिया की आड़ और नेता-अफसरों से ‘बेहतर’ संबंध के कारण आयकर की छापेमार कार्रवाई को कभी एमपी एग्रो ने दिमाग में जगह नहीं दी थी। हालांकि बीते दिनों हुई रेड ने उनकी खुशफहमी दूर कर दी। विंग ने जबरदस्त कार्रवाई की। फेक्ट जुटाए। पता चला कि सुनील जैन और शांतनु दीक्षित व उनके भागीदारों के नाम पर दर्जनभर से अधिक ऐसी कंपनियां हैं जो कि सिर्फ लिस्टेड हैं। उनका मैदानी काम कुछ नहीं है। मूल कंपनियों की काली कमाई को निवेश व खर्च के रास्ते एक नंबर करने  के लिए इन कंपनियों के नाम का इस्तेमाल किया जाता है।
करीब-करीब संपन्न
गुरुवार दिन तक कार्रवाई 5-6 स्थानों पर रह गई थी। डायरेक्टरों के घर कार्रवाई संंपन्न हो गई थी। जहां जारी थी वहां कम्प्यूटर और लेपटॉप का डाटा रिकवर किया जा रहा था। हालांकि बीच-बीच में समूह सरेंडर के प्रस्ताव देता रहा लेकिन अधिकारियों ने नकार दिए।
खर्चे किए कम, बताए ज्यादा
बताया जा रहा है कि जैन, दीक्षित और उनके भागीदारों ने अपने अकाउंट्स डॉक्यूमेंट में बोगस खर्च दिखा रखे हैं ताकि खर्चे की ऊपरी रकम के नाम पर अपनी इनकम को एक नंबर किया जा सके। फर्जी कंपनियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग की है। इन्वेस्टमेंट के फर्जी प्रपोजल दिखाए हैं।
‘‘‘‘ करीब-करीब सौ करोड़ की बेनामी संपत्ति के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। इसीलिए यह बीते दिनों हुई कार्रवाइयों में बड़ी कार्रवाई है। हमारा दबाव सरेंडर को लेकर नहीं है, टैक्स ज्यादा से ज्यादा कलेक्ट हो इस  पर है।
आर.के.पालीवाल, पीडीआईटी


एनएचएआई सौ करोड़ में पूरा करेगा इंदौर-अहमदाबाद रोड

आईवीआरसीएल और बैंकों के हाथ टेकने के बाद
बैंकों की अनापत्ति का इंतजार
इंदौर. विनोद शर्मा ।
हैदराबाद की आईवीआरसीएल और उसको वित्त पोषित करने वाली बैंकों द्वारा घुटने टेके जाने के बाद आखिरकार नेशनल हाइवे अथॉरिटी आॅफ इंडिया (एनएचएआई) ने इंदौर-अहमदाबाद रोड को पूरा करने का मन बना लिया है। इसके लिए सौ करोड़ रुपए का प्रस्ताव बनाकर अथॉरिटी ने उन बैंकों को सौंप दिया है जिन्होंने प्रोजेक्ट फाइनेंस किया था। इंतजार है सिर्फ बैंकों की सहमति का। उम्मीद जताई जा रही है कि नवरात्रि तक काम शुरू हो जाएगा।
इंदौर-अहमदाबाद फोरलेन कब पूरा होगा? यह सवाल उठते ही इंदौर, धार, झाबुआ और अलीराजपुर से लेकर अहमदाबाद तक के लोग अथॉरिटी को कोसना शुरू कर देते हैं। वजह है निर्माण की कड़वी यादें। 2010 में 2013 तक समयसीमा के साथ 155 किलोमीटर लंबे इस हाइवे का काम 2016 तक भी पूरा नहीं हुआ। ठेका लेने वाली आईवीआरसीएल और उसकी सहयोगी बैंकों ने प्रोजेक्ट को पूरा करने के नाम पर घुटने टेक दिए हैं। अथॉरिटी के पास अब विकल्प नहीं बचा। जन जरूरत के मद्देनजर अथॉरिटी प्रोजेक्ट  की कमान अपने हाथ में लेने का मन बनाया है।
बैंक आॅफ इंडिया को भेजा 100 करोड़ का प्रस्ताव
नावदापंथ से पिटोल बार्डर तक 155.15 किलोमीटर लंबे एनएच-59 को फोरलेन करने का ठेका आईवीआरसीएल ने 2010 में 1175 करोड़ में लिया था। बताया जा रहा है कि बैंकों के कंसोर्टियम ने प्रोजेक्ट पर अब तक करीब 1300 करोड़ का कर्ज दिया। फिर भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ। कंसोर्टियम में लीड बैंक है बैंक आॅफ इंडिया, मुंबई। इसीलिए एनएचएआई ने बैंक आॅफ इंडिया को ही पत्र लिखकर कहा है कि अथॉरिटी 100 करोड़ रुपए लगाकर प्रोजेक्ट पूरा करना चाहता है। प्रस्ताव पर बैंक आॅफ इंडिया बाकी बैंकों से रायशुमारी करके अपना अनापत्ति देगा।
90 फीसदी काम हुआ
अथॉरिटी का आंकलन यह है कि प्रोजेक्ट पर अब तक बर्ड सेंच्यूरी वाला हिस्सा छोड़कर 145 किलोमीटर लंबे हिस्से में से 125 किलोमीटर लंबे हिस्से में डामरीकरण हो चुका है। इसके अलावा फ्लाईओवर और व्हीकल अंडर पास अधूरे हैं जो कि यातायात के लिहाज से बेहद जरूरी है। जिस राशि का प्रपोजल दिया गया है उसमें 10 फीसदी सड़क बनाने के साथ ही आधे-अधूरे पुल-पुलिया और फ्लाईओवर्स भी पूरे किए जाएंगे।
रोड दुरुस्त करेंगे
झाबुआ से पिटोल के बीच रोड की स्थिति खराब है। वहां बरसात के दौरान लोगों को दिक्कत का सामना न करना पड़े इसीलिए रिनुअल का टेंडर निकाला है। प्रारंभिक रूप से रिनुअल की लागत एक करोड़ आंकी गई है। इसके अलावा जरूरत के अनुसार बाकी हिस्सा भी सही करेंगे। इसके लिए बीते दिनों अथॉरिटी को 9.87 करोड़ का बजट  भी मिला है।
प्रोजेक्ट पूरा करना प्राथमिकता
‘‘‘प्रोजेक्ट काफी लेट है। लोगों की परेशानी को देखते हुए प्रोजेक्ट की पूर्णता ही हमारी प्राथमिकता है। इसीलिए सौ करोड़ का प्रस्ताव दिया है। इंतजार है बैंक की अनापत्ति का जो जल्दी मिलने की उम्मीद है। अनापत्ति मिलने के बाद महीनेभर में काम शुरू कर देंगे।
सुमित कुमार, प्रोजेक्ट आॅफिसर
एनएचएआई

एमपी एग्रो पर इनकम टैक्स कार्रवाई

भोपाल में एक  पीओ, इंदौर में एक जगह कार्रवाई जारी
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
दलिया बनाने वाली एमपी एग्रो न्यूट्री फुड्स और उसकी सहयोगी कंपनियों के खिलाफ इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग की सर्च तकरीबन संपन्न हो चुकी है। भोपाल में एक स्पॉट पर पीओ की कार्रवाई की गई वहीं इंदौर में वायएन रोड स्थित जैन बंधुओं के ठिकाने पर कार्रवाई जारी रही। हालांकि इस दौरान 50 करोड़ रुपए की काली कमाई सरेंडर करने की सूचना भी आती रही।
गुरुवार की शाम से ही माना जा रहा था कि सर्च शुक्रवार सुबह तक या दोपहर तक संपन्न हो जाएगी लेकिन ग्लोबल समूह के संचालक शांतनु दीक्षित आखिर तक अड़े रहे। वे काली कमाई की बात के साथ इनकम टैक्स अधिकारियों द्वारा रखे गए तथ्यों को सिरे से नकारते रहे। इस दौरान सुनील जैन और उनके सहयोगी जरूर कमजोर दिखे। उन्होंने 50 करोड़ तक की काली कमाई सरेंडर करने का प्रस्ताव भी दिया। हालांकि प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय क्या हुआ? इसकी अधिकृत पुष्टि नहीं हो पाई। अधिकारियों ने बताया कि समूह की कंपनियों के पास से तकरीबन सौ करोड़ की बेनामी संपत्ति के दस्तावेज मिले हैं। यदि राशि सरेंडर होती भी है तो असेसमेंट के दौरान अघोषित राशि सामने आएगी।
एक पीओ, एक जगह जारी कार्रवाई
कुल 35 स्थानों पर कार्रवाई हुई थी। इसमें से शुक्रवार शाम तक तकरीबन 32 ठिकानों पर कार्रवाई संपन्न हो गई। इसमें भोपाल में एक स्थान पर कार्रवाई को अल्प विराम देते हुए प्रोबेसरी आॅर्डर (पीओ) लगा दिया।

सिर्फ पीपल्यहाना ही क्यों, बचे हर तालाब har 3 km me 1 talab

1956 के राजस्व रिकॉर्ड से सीमांकन कराने की मांग
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जनता और जनप्रतिनिधियों के संयुक्त प्रयास से बचे पीपल्याहाना तालाब ने बेफिके्र शहरवासियों को बाकी तालाबों के लिए फिकरमंद बना दिया है। अब 1956 के राजस्व रिकॉर्ड और ज्योग्राफिकल सर्वे आॅफ इंडिया की टोपोशीट के आधार पर बाकी तालाबों के सीमांकन की भी मांग उठने लगी है। यदि सर्वे होता है तो न सिर्फ मौजूदा तालाबों का वाजिब सीमांकन होगा बल्कि कई ऐसे तालाब भी सामने आएंगे जिनका अस्तित्व सिर्फ राजस्व दस्तावेजों में ही नजर आता है।
जलस्रोतों को लेकर इंदौर की स्थिति मजबूत है। आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो यहां शहरसीमा में हर तीसरे-चौथे गांव में तालाब है। इनका जिक्र राजस्व रिकॉर्ड में भी है। यह बात अलग है कि सरकारी अनदेखी से खजराना, छोटा बांगड़दा, पीपल्याकुमार, छोटा सिरपुर जैसे तालाब सिकुड़ गए। वहीं खजराना के तीन और कस्बा इंदौर के एक तालाब सहित आधा दर्जन तालाबों का अस्तित्व राजस्व रिकॉर्ड में ही है।
चोरी हो गए तालाब
खजराना : राजस्व रिकार्ड और क्षेत्रवासियों की मानें तो खजराना में  किसी वक्त चार तालाब हुआ करते थे। आज अस्तित्व में सिर्फ एक ही तालाब है, मटमेला। तीन तालाब चोरी हो गए। सर्वे नं. 435/1/1 (खजराना थाने के पास) की जमीन में से पांच एकड़ पर तालाब था। बाद में जमीन एक गृह निर्माण संस्था को सरकार ने दे दी। बाकी दो जगह कॉलोनी कट चुकी है।
नैनोद : यहां तालाब सर्वे नं. 314 पर उल्लेखित है जबकि यह पाल की तरह की जमीन है जो कब्जाग्रस्त है। खसरा नक्शे में सर्वे नं. 313 की जमीन तालाब की तरह नजर आती है जो कई टुकड़ों में बिक चुकी है। गांव के लोग कहते हैं यही तालाब था।
पीपल्याकुमार : यहां सर्वे नं. 138 में तालाब साफ नजर आता। पाल भी बनी है लेकिन जमीन को तालाब की नहीं माना जाता। बड़े हिस्से में लोगों ने कब्जे किए।
सिरपुर : यहां सर्वे नंबर-2 पर गांव का पुराना तालाब है जो सिर्फ भू-माफियाओं के कब्जों तले दफन हो चुका है।  छोटा सिरपुर तालाब राजस्व रिकॉर्ड में करीब 160 एकड़ का तालाब है लेकिन मौके पर तालाब आधा भी नजर नहीं आता। बड़े हिस्से पर नगर निगम ने कॉलोनी बसा दी।
्रफतनखेड़ी : सर्वे नं. 30/1/3 से 30/2/1, 35/1 और 40 नंबर की जमीन के साथ ही सर्वे नं. 139 की बड़ी जमीन पर भी किसानों ने कब्जा कर रखा है।
1956 के दस्तावेजों से सीमांकन कर दे, हम सहेज लेंगे
पीपल्याहाना तालाब ने जनता और जनप्रतिनिधियों को एक कर दिया है। पर यह लड़ाई सिर्फ पीपल्याहाना तक ही सीमित न रहे। कलेक्टर और निगमायुक्त 1956 के दस्तावेज से शहरसीमा के सभी तालाबों का सीमांकन कर दे। इससे तालाबों की वास्तविक स्थिति तो सामने आएगी ही, जो खत्म हो चुके हैं वे तालाब भी सामने आ सकते हैं। सीमांकन के बाद लोगों के क्षेत्रवासियों के सहयोग से तालाब सहेजेंगे। पाल पर पौधारोपण करेंगे। इससे भू-जलसंवर्धन के साथ पर्यावरण भी मजबूत होगा। लोगों को नए पिकनिक स्पॉट भी मिल सकते हैं।
उषा ठाकुर, विधायक
यह है शहरसीमा के तालाब
गांव सर्वे नं. रकबा
मुंडला नायता 425 1.966
अरंडिया 126/1 1.721
मायाखेड़ी 185 0.918
लसूड़िया 87 7.486
तलावली 146 13.688
निरंजनपुर 326 4.000
निपानिया 184 3.560
212 0.293
खजराना 251 0.421
425 0.344
902 3.137
कस्बा इंदौर 193 0.781
पीपल्याराव 234/3, 236/3,262   26.061
लिम्बोदी 17/1,117,127,131 13.963
रालामंडल 26/27/1,26/27/2 33.28
असरावद खुर्द 155 व अन्य 26.904
छोटा बांगड़दा 35, 127/1, 127/2 7.097
नैनोद 314 3.496
सिंहासा 27/258 0.866
136/1/मिन-1 8.565
बांक(बड़ा सिरपुर) 184/1 27.891
अहिरखेड़ी 182 0.522
बिसनावदा 75 5.860
68 5.237
नावदापंथ 253, 256/1, 256/4 5.241
Ñझलारिया 139 3.153
सिरपुर 2 0.466
(बड़ा सिरपुर) 427,  428 22.500
(छोटा सिरपुर) 429, 430 64.794
बिलावली(छोटा) 138/5/मिन-2 16.772
फतनखेड़ी(बड़ा बिलावली) 1/1, 1/2/1 216.41


326 करोड़ के कर्जे ने निकाला ‘कैलाश’ का दिवाला

अम्बिका सॉल्वेक्स के प्लांट, गोदाम और जमीन के साथ गर्ग परिवार के घर भी बैंकों के निशाने पर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
सोयाबीन और सोया आॅइल के बड़े कारोबारियों में से एक कैलाशंचद्र गर्ग दिवालियेपन की दहलीज पर है। अम्बिका सॉलवेक्स और लक्ष्मी आॅइल्स को ऊंचाई देने वाले गर्ग आज बैंकों के कर्जे के बोझ से दब चुके हैं। सेटेलाइट हिल्स की जमीन गिरवी रखकर कर्जा देने वाली तीन बैंके जहां 123.56 करोड़ की लेनदारी निकालकर बैठी है वहीं गर्ग पहले से ही स्टेट बैंक आॅफ इंडिया के बड़े कर्जेदारों की लिस्ट में शामिल है।
फरवरी 2016 में बैंकों ने विलफुल डिफॉल्टरों (जानबुझकर कर्जा चुकाने से बचते आ रहे लोग) की सूची जारी की थी। इस सूची में स्टेट बैंक आॅफ इंडिया के डिफाल्टर कैलाशचंद्र गर्ग का भी नाम है। गर्ग ने बैंक से बड़ा लोन लिया था जो 30 सितंबर 2012 तक बढ़कर 202 करोड़ 67 लाख  36 हजार 052 रुपए हो गया था। 3 जनवरी 2015 को कंपनी की तमाम संपत्ति बेचने के लिए एसबीआई आॅक्शन विज्ञप्ति भी जारी कर चुकी है। इधर, पिछले तीन साल से यूको बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक भी परेशान हैं जिन्होंने नायता मुंडला स्थित सेटेलाइट हिल्स की जमीन गिरवी रखकर गर्ग को 2010 में 110.5 करोड़ का कर्जा दे दिया था जो गर्ग के आॅफिस, विद्यानगर के दो प्लॉट बेचकर रिकवरी करने के बावजूद 123.56 करोड़ रुपए बाकी है।
इनकम टैक्स ने 2011 में समूह पर छापा मारा था। छापेमारी के दौरान फर्जी कर्जे के किस्से दस्तावेजी प्रमाण के साथ उजागर हुए।  दस्तावेजों से यह भी पता चला था कि कंपनी ने संभवत: 1000 करोड़ की हेराफेरी की है।
एसबीआई ने निकाली विज्ञप्ति पीएनबी ने बेच दिया आॅफिस
90/47 स्नेहनगर(सपना-संगीता) में सत्यगीता अपार्टमेंट बिल्डिंग है इस बिल्डिंग में आॅफिस नंबर 304 अम्बिका सॉलवेक्स प्रा.लि. और नारायण निर्यात इंडिया प्रा.लि. का पंजीकृत पता है। इसका क्षेत्रफल 500 वर्गफीट है। जनवरी 2015 में एसबीआई ने इसकी विज्ञप्ति निकाली थी लेकिन नहीं बिका लेकिन बीते दिनों पीएनबी ने इसे कुर्क करके बेच दिया।
एक ही जगह पर चार बैंकों की नजर
गर्ग से कर्ज वसूली के मामले में नाकाम रही पीएनबी, यूको और कॉर्पोरेशन बैंक नायता मुंडला की जमीन 123.56 करोड़ की डिमांड के मुकाबले 18 करोड़ में भी नहीं बेच पा रही है। बैंकों की निगाह बाकी रकम के लिए कंपनी की फेक्टरियों व अन्य संपत्तियों पर थी लेकिन एसबीआई पहले ही उनके लिए आॅक्शन नोटिस जारी कर चुकी है। उधर, एसबीआई को उम्मीद नायता मुंडला की जमीन से थी लेकिन तीनों बैंकें पहले ही वहां नजर घड़ाकर बैठी है।
एसबीआई ने संपत्ति जो लगाई दाव पर...
17.32 करोड़ : अकोला महाराष्ट्र में 24.111 एकड़ पर फैली फेक्टरी।
16.46 करोड़ : चाकरोद, कालापीपल(शाजापुर) की 2.853 हेक्टेयर जमीन पर स्थित प्लांट।
12.03 करोड़ : पठारिया, दमोह में 10.48 हेक्टेयर जमीन पर स्थित कंपनी।
11.80 करोड़ : प्लॉट नं. 32, महू-नीमच रोड जावरा( रतलाम) में 3.5 एकड़  पर बना प्लांट। जमीन डीआईसी से अम्बिका सॉल्वेक्स ने लीज पर ले रखी है।
29 लाख : सपना-संगीता रोड स्थित कंपनी का आॅफिस।
23.32 करोड़ : पूणे में 6.48 हेक्टेयर गैर कृषि भूमि। यह जमीन नारायण अम्बिका इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम है जिसे 2008 में सेटेलाइट हिल्स के डेवलपमेंट की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। तब कंपनी के डायरेक्टर रितेश उर्फ चंपू अजमेरा भी थे।
पीएनबी-यूको-कॉर्पोरेशन बैंक का दाव
अम्बिका सॉलवेक्स की 7.12 एकड़ जमीन
एवलांचा रिएल्टिी  की 9.02 एकड़ जमीन
दौलतवाला एक्जिम की 12 एकड़ जमीन
मंदसौर में डेढ़ एकड़ जमीन है।
जावरा में एक मकान भी।
(कुल 123.56 करोड़ की लागत। नहीं बिक रही 18 करोड़ में )

भाजपा नेता मंगवानी के रिश्तेदार ने तानी तीन मंजिला अवैध बिल्डिंग

खातीवाला टैंक में मनमानी
मंजूरी से ज्यादा निर्माण, संपत्ति के खाते में अब भी ग्राउंड फ्लोर ही
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मनमाना निर्माण खातीवाला टैंक की पहचान बन चुका है। इसका बड़ा उदाहरण है प्लॉट नं. 557 जहां नगर निगम के राजस्व दस्तावेजों के अनुसार अब भी प्लॉट है लेकिन मौके पर तीन मंजिला इमारत नजर आती है। कृष्णाज बिल्डकॉम तर्फे श्री रितेश पिता श्री गणेशलाल मंघरानी के नाम पर प्लॉट का नक्शा पास है लेकिन मौके पर जो निर्माण है वह नक्शे से मेल नहीं खाता। मंघरानी पूर्व जनकार्य समिति प्रभारी और वार्ड-65 की मौजूदा पार्षद सरीता मंघवानी के पति जवाहर मंघवानी के रिश्तेदार हैं। नक्शा उन्हीं के जनकार्य समिति प्रभारी रहते मंजूर हुआ था।
मामले का खुलासा 15वें  अपर जिला न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किए गए वाद के बाद हुआ। शिकायत के अनुसार प्लॉट नं. 557 खातीवाला टैंक का क्षेत्रफल 2992 वर्गफीट है। मंघरानी के आवेदन पर 14 नवंबर 2014 को जी+3 की बिल्डिंग पर्मिशन जारी की गई। उस वक्त बिल्डिंग पर्मिशन शाखा के इंचार्ज मंगवानी ही थे। बिल्डिंग की अधिकतम ऊंचाई 12.45 मीटर तय की गई जबकि मौके पर जी+3 और पेंटहाउस का निर्माण किया गया है।
यह थी मंजूरी
नक्शे के अनुसार 2992 वर्गफीट प्लॉट एरिया पर निर्माण के दौरान 34.45 प्रतिशत यानी 1031 वर्गफीट (95.82 वर्गमीटर ) ग्राउंड कवरेज किया जा सकता था।
ग्राउंड फ्लोर पर 270 वर्गफीट निर्माण होना था लेकिन हुआ एक हजार वर्गफीट के लगभग। इसी तरह पहली, दूसरी और तीसरी मंजिल पर औसत 95.81 वर्गमीटर यानी 1031 वर्गफीट निर्माण होना था। कुल निर्माण मंजूर हुआ था 312.75 वर्गमीटर (3366 वर्गफीट) ही।
बनी ऐसी...
-- 60 फीसदी ग्राउंड कवरेज करीब 1795.2 वर्गफीट। सीवरेज के चेम्बर पर बाउंड्रीवाल बना दी। मेन रोड का स्लोप में बिजली के खम्बे भी समाहित कर लिए।
-- ऊपरी मंजिलों का क्षेत्रफल दो-दो हजार वर्गफीट है जो मंजूरी से दोगुना है। तीसरी मंंजिल के बाद कोई निर्माण मंजूर नहीं है जबकि ऊपर 1000 वर्गफीट का पेंट हाउस भी बना दिया है।
संपत्ति कर में भी हेरफेर...
संपत्ति करदाताओं की सूची में मंघरानी का भी नाम है लेकिन जिस प्लॉट का नक्शा नगर निगम ने नवंबर 2014 में मंजूर किया था और जहां बिल्डिंग बने छह महीने हो चुके हैं उस प्लॉट के संपत्ति कर खाते में सिर्फ ग्राउंड फ्लोर का जिक्र ही है। यहां प्लॉट का एरिया 2991 वर्गफीट दर्ज है।
राजनीतिक संरक्षण की स्थिति यह है कि संपत्ति कर में भी निगम के मैदानी अमले के साथ मिलकर हेरफेर की गई है। प्लॉट नं. 557 के संपत्ति कर की गणना 15 रुपए/वर्गफीट की दर से की गई है जबकि  ललित शर्मा के प्लॉट नं. 556 और कांता सेवाराम लालवानी के प्लॉट नं. 558 की गणना 26 रुपए/वर्गफीट से हुई। पूरी कॉलोनी का रेट जोन एक ही होता है। प्लॉट नंबर वार नहीं रहता।

ईडी में हवा हो गया 400 करोड़ का हवाला

छह वर्षों में निलेश को नहीं पकड़कर बयान तक नहीं ले पाया डिपार्टमेंट
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जमीनी धोखाधड़ी के मामले में क्राइम ब्रांच से लेकर तेजाजीनगर पुलिस तक जिन अजमेरा बंधुओं के खिलाफ धमाकेदार कार्रवाई कर रही है उनका 400 करोड़ का अंतरराष्ट्रीय हवाला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की फाइलों के बोझ तले पांच साल से दबा हुआ है। फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत उन 11 टॉप क्लास बिल्डरों को जून 2010 में नोटिस थमाए गए थे जिन्होंने अजमेरा बंधुओं के साथ दुबई में पैसा लगाया था।
 18 से 21 नवंबर 2015 के बीच इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने सेटेलाइट, चिराग रियल एम्प्रेस, चौधरी एस्टेट, मयूरी हिना हर्बल प्रा.लि., और फोनिक्स ग्रुप के 20 ठिकानों पर दबिश दी। कार्रवाई आॅर्बिट मॉल स्थित फोनिक्स के आॅफिस, न्यू पलासिया स्थित चौधरी एस्टेट, पालीवालनगर स्थित अजमेरा बंधुओं के घर, चिराग शाह, वीरेंद्र चौधरी और अरुण डागरिया के घर पर हुई थी। अजमेरा बंधुओं द्वारा 20 करोड़ की काली कमाई स्वीकारी। जांच में  400 करोड़ रुपया हवाला के माध्यम से इंदौर से दुबई पहुंचाने की पुष्टि हुई।  एक हजार पन्नों की अप्राइजल रिपोर्ट आईटी  ईडी को सौंप दी।
नोटिस जारी हुए, पूछताछ हुई, कार्रवाई नहीं...
आईटी की रिपोर्ट के आधार पर ईडी ने फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत अजमेरा बंधुओं सहित 13 लोगों के खिलाफ इन्फोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज की। जून 2010 में पहली दफा नोटिस थमाए गए। पूछताछ का दौर 2012 तक चलता रहा। आखिरी बार अगस्त 2012 में ईडी ने मुख्य आरोपी निलेश अजमेरा और चिराग शाह को समन देकर बयान के लिए बुलाया था लेकिन निलेश ने बयान नहीं दिए।
निलेश के जवाब के इंतजार में अटकी फाइल
निलेश ने अगस्त 1996 में पासपोर्ट बनवाया था जिसकी वैधता अगस्त 2006 में खत्म हो गई। 2005 में निलेश ने ब्रिटिश नागरिकता ली। इसके बाद निलेश की पूछपरख बढ़ी। उसका भारत व यूएई आना-जाना नहा। 2006-07 में दुबई में जमीन के भाव सातवें आसमान पर थे। तब निलेश ने एक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट तैयार किया।  इंदौर के ख्यात बिल्डरों से फंड जुटाया और दुबई की अलग-अलग कंपनियों के नाम पर ट्रांसफर किया। इस काम में दुबई के पार्टनरों ने भी मदद की। इसीलिए ईडी ने निलेश को मूल आरोपी माना लेकिन बार-बार समन देने के बाद भी निलेश ईडी के सामने पेश नहीं हुआ। हालांकि ईडी का जवाब हजम नहीं होता क्योंकि छह वर्षों में अर्से तक निलेश इंदौर में ही रहा।
 घेरे में थे कई बड़े नाम
आरोपियों में सैटेलाइट समूह के कर्ताधर्ता रितेश अजमेरा उर्फ चंपू, उसका भाई निलेश अजमेरा, हैप्पी धवन, संजय, अरूण डागरिया, चिराग शाह, वीरेंद्र चौधरी, विनोद गुप्ता, मोहन चुघ, अतुल सुराना, अश्विन मेहता, संजय जैन के अलावा जमीन के बड़े खिलाड़ी शरद डोसी व अन्य हैं।
25 प्रतिशत दिया नकद, बाकी पीडीसी
दुबई म लैंड डिपार्टमेंट से जमीन खरीदी। इसीलिए स्थानीय पार्टनर बनाया।   25 प्रतिशत राशि इंदौरी बिल्डरों से फंड जुटाकर दी। बाकी 75 फीसदी राशि के पोस्ट डेटेड चेक (पीडीसी) चेक दे दिए।   2008-09 में  मंदी ने जमीन की कीमत 80 फीसदी गिरा दी।  ऐसे में उस पूरी जमीन की कीमत अजमेरा द्वारा दी गई पहली किस्त से भी कम हो गई। राशि ज्यादा दी जा चुकी थी, पीडीसी अलग। इसीलिए भारी आर्थिक नुकसान से बचने के लिए अजमेरा बंधु आधे-अधूरे प्रोजेक्ट से जितनी रिकवरी हो सकती थी उतनी करके दुबई से फरार हो गए। इसीलिए वहां दुबई में दो केस दर्ज है।

अवैध नव आदर्श स्कूल में मनमानी की तालीम

चंपू और चतूर की जोड़ी ने फिनिक्स कॉलोनी के आवासीय प्लॉटों पर बनाया स्कूल
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जमीनी हेराफेरी का गढ़ बन चुकी कैलोदहाला की फिनिक्स टाउन कॉलोनी के बच्चों को तालीम भी चंपू-चिराग चौकड़ी से बना अवैध स्कूल दे रहा है। तीन प्लॉटों को जोड़कर स्कूल बना और प्रस्तावित सड़क सहित अन्य दो प्लॉटों पर कब्जा करके स्कूल बसों की पार्किंग बना दी गई। पीछे के प्लॉट कब्जाकर मैदान बना दिया। स्वीकृत नक्शे से ज्यादा निर्माण किया। अब पड़ौसियों को परेशान किया जा रहा है ताकि वे ओनेपोने दाम पर मकान बेचकर चलते बने।
30 अक्टूबर 2010 को कैलोद हाला की 41.575 हेक्टेयर जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट से कॉलोनी के तीन अलग-अलग नक्शे मंजूर हुए थे। तीनों नक्शों में स्कूल के लिए तीन अलग-अलग जमीन आरक्षित है जबकि कॉलोनी में एक मात्र स्कूल बना प्लॉट नं. 1211, 1212 और 1213 को जोड़कर। इसके बाद स्कूल संचालक ने 1213 और 1214 के बीच से निकलने वाली 12 मीटर चौड़ी रोड पर कब्जा किया और गेट लगा दिया। 1214, 1215, 1248 और 1249 नंबर के प्लॉट व रास्ते पर स्कूल की बसों की पार्किंग बना दी है। लोगों ने आपत्ति ली तो स्कूल संचालक ने कहा कि जाकर कॉलोनाइजर से बात करो, मेरे आड़े आने की कोशिश मत करना।
धोखाधड़ी का आरोपी रह चुका है चंपू का ‘चतुर’
स्कूल का संचालक चतुरसिंह यादव है जो कि चंपू अजमेरा का खास है। यादव नव आदर्श विद्या निकेतन के नाम से वीणानगर में स्कूल चलाता था लेकिन वहां मकान मालिक की रजिस्ट्री पर लोन ले लिया था। मामले का खुलासा होने के बाद हीरानगर में केस दर्ज हुआ। जेल भी जाना पड़ा।
स्वीकृत के विपरीत निर्माण
‘युक्तियुक्तकरण’ से यादव ने प्लॉटों का संयुक्तिकरण करके स्कूल का नक्शा मंजूर करवाया। नक्शा जी+2 मंजूर हुआ था लेकिन मौके पर निर्माण हुआ जी+3 का । एमओएस भी हजम किया गया।
पीछे के प्लॉट को मैदान बना दिया
यादव ने तीन प्लॉट जोड़कर स्कूल बनाया और पीछे जो तीन प्लॉट थे प्लॉट नं. 1250 और 1251 पर भी कब्जा किया। इन दोनों प्लॉट को बच्चों के खेल मैदान के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
एक ने तो बेच दिया घर, दूसरा बेचने की तैयारी में
स्कूल बनने के बाद सड़क और चार प्लॉट जोड़कर जो पार्किंग बनाई गई वहां सिर्फ बसें खड़ी होती है जबकि स्कूल आने वाले टीचर्स और स्टूडेंट्स के वाहन खड़े होते हैं सामने वाले प्लॉट(1157) पर या बने हुए मकानों (1158 व 1159) के सामने। इससे लोगों को आने-जाने में दिक्कत होती है। लोग अपने वाहन नहीं खड़े कर पाते। इसीलिए एक मकान मालिक ने तो मकान का सौदा कर भी दिया है। उनका साफ कहना है कि अपना घर, अपना नहीं रहा। हम स्कूल मालिक के बंधक बनकर रह गए हैं। कुछ ही दिन हुए थे मकान बनाकर रहते हुए लेकिन जीना मुश्किल कर दिया। छह महीने से बेचने की फिराक में था लेकिन स्कूल देखकर कोई खरीदार भी नहीं मिल रहा था। जैसे-तैसे सौदा हुआ है। वहीं दूसरे पर स्कूल संचालक द्वारा दबाव बनाया जा रहा है ताकि वह भी बेचकर चला जाए।

पोषण आहार वाले एमपी एग्रो समूह पर आयकर का छापा

4000 करोड़ के घपले के आरोपों के बीच इन्वेस्टिगेशन विंग की बड़ी कार्रवाई
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
पोषण आहार और रीयल एस्टेट के साथ मीडिया से जुड़े तीन समूहों के खिलाफ इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने मंगलवार को छापेमार कार्रवाई की। कार्रवाई इंदौर, भोपाल और मुंबई सहित कुल 35 ठिकानों पर हुई। मंगलवार शाम तक इंदौर में 11 लॉकर, 35 लाख नकद और करीब आधा किलोग्राम ज्वैलरी के साथ 25 सिस्टम-लेपटॉप का डाटा जब्त किया गया।
विंग ने मध्यप्रदेश न्यूट्रीशन फूड और श्री कृष्ण देवकान लिमिटेड की करीब एक दर्जन सहयोगी कंपनियों पर कार्रवाई की। इसमें एक मीडिया समूह भी है। कार्रवाई इंदौर में 23, भोपाल में 5 और मुंबई के सात स्थानों पर हुई। सूत्रों के अनुसार 800 करोड़ के दलिया घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से फटकार लगने के बाद आयकर विभाग ने छापे की कार्रवाई की है। हाल ही में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी कंपनी का एक प्लांट खोले जाने की बात कही गई थी। कार्यवाही को 60 से अधिक आयकर अधिकारियों और 100 से अधिक पुलिसकर्मियों ने अंजाम दिया। अधिकारियों ने बताया कि अघोषित आय से संबंधित बड़ी तादाद में दस्तावेज बरामद किए गए हैं।
इंदौर में कार्रवाई यहां हुई
भक्त प्रहलादनगर, 31 जीवनदीप कॉलोनी, 38 जीवनदीप कॉलोनी, 95/96 सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र सेक्टर ई, स्टारलिट टॉवर, 7/1 वायएन रोड स्थित बंगला और आॅर्बिट मॉल स्थित सीए के आफिस।
यह थी शिकायत
पिछले 5 साल के दौरान एमपी एग्रो जैसी एजेंसी को पोषण आहार का ठेका देकर आंगनबाड़ियों के जरिए होने वाले पोषण-आहार वितरण के नाम पर जमकर गोलमाल किया गया। आलम यह रहा कि एमपी एग्रो को साढ़े 4000 करोड़ का भुगतान कर दिया गया, जिसके मुकाबले जमीनी स्तर पर काम नजर नहीं आया। इसकी शिकायत बालाघाट लांजी से समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीतेन् ने की है। आरोप है कि एमपी एग्रो ने अपनी ही भागीदारी वाली फर्मों से ढाई फीसदी कमीशन वसूली जो करीब 30 करोड़ होती है। सुप्रीम कोर्ट का भी मानना है कि ठेका पद्धति से पोषण आहार की गुणवत्ता सुनिश्चित करना टेढ़ी खीर है। इसीलिए स्वसहायता समूहों व आंगनबाड़ियों को इस सिलसिले में प्राथमिकता दी गई बावजूद इसके यहां एमपी एग्रो जैसी कंपनियां काम कर रही है।
कौनसी कंपनी किसकी
एमपी एग्रो न्यूट्री फुड्स लि. सांवेर रोड, इंदौर- नरेंद्र जैन, रवींद्र चतुर्वेदी, व्यंकटेश्वर राव धवल, हेमेंद्रसिंह नाबेडा, सखाराम पंडित, लखपतकुमार जैन, अनिल जैन, जय पेरुलिया
एमपी एग्रो फुड्स इंडस्ट्री, मंडीदीप- बृजेशकुमार गुप्ता, ऋृषि गोयल, रवींद्र चतुर्वेदी, व्यंकटेश्वर राव धवल, अंशुकुमार जिंदल, गिरजाशंकर अवस्थी, कृष्णकुमार श्रीवास्तव, आनंदप्रकाश नेमा
एमपी एग्रोटोनिक लि. मंडीदीप- रवींद्र चतुर्वेदी, व्यंकटेश्वर राव धवल, अंशुल जैन, प्रमोदचंद्र महनोत, अजय कपूर, समकित हिरावत, निशा सिंह
श्री कृष्ण देवकॉन लिमिटेड -  शैलेषकुमार जैन, दिनेश जोशी, अशोक सेठी, पुरुषोत्तमदास बैरागी, मुकेश कुमार जैन, सुनील कुमार जैन, नवीनकुमार जैन और प्रकशाली जैन। इस कंपनी का पंजीबद्ध पता मुंबई है।
श्री कृष्ण देवकॉन, मप्र टू-डे मीडिया प्रा.लि., नवकार फिनवेस्ट लि.श्री वृजराज डेवलपर्स प्रा.लि., श्रृद्धी डेवलपर्स प्रा.लि., एसकेडीएल डेवलपर्स, श्रीधर मीडिया, गोल्ड शेपियर्स डेवलपर्स प्रा.लि जैसी कंपनियों में भी सुनील जैन डायरेक्टर हैं।

पीड़ितों ने रोका गर्ग का ‘खात्मा’

पांच साल पुराने धोखाधड़ी के मामले में भंवरकुआं पुलिस लगा रही थी खात्मा रिपोर्ट
पीड़ितों की कड़ी आपत्ति, बिना पैसा, क्यों हुआ ऐसा
 इंदौर. विनोद शर्मा ।
कर्जे के नाम पर तीन बैंकों को सवा सौ करोड़ की चपत लगाने वाले अम्बिका सॉलवेक्स के सर्वेसर्वा कैलाश गर्ग पर तेजाजीनगर पुलिस का शिकंजा कसता जा रहा है वहीं भंवरकुआं पुलिस उसे बचाने के प्रयास में लगी है। शायद इसीलिए 75 लाख की धोखाधड़ी के मामले में पहले हाईकोर्ट के निर्देश पर एफआईआर की और अब 40 लाख चुकाते ही गर्ग खात्मा लगाने की तैयारी शुरू कर दी। सही वक्त पर पीड़ित ने पुलिस की साजिश भांप ली और आपत्ति ली तब जाकर खात्मा रूका है।
मामला भंवरकुआं थाने का है। तेजाजीनगर थाना बनने से पहले मुंडला नायता इसी थाना क्षेत्र का हिस्सा था। इसी मुंडला नायता में एवलांचा रीयलिटी की जमीन पर जो सेटेलाइट हिल्स कॉलोनी कटी है उसमें मुनाफे का सब्जबाग दिखाकर गर्ग ने बलराम सचदेव और नागरानी वेयर हाउसिंग को दो दर्जन प्लॉट बेचे थे जिनका कुल क्षेत्रफल था 55 हजार वर्गफीट। बाद में समाचार पत्रों से दोनों को पता चला कि जो प्लॉट उन्हें बेचे गए है उनका सौदा पहले भी किसी को किया जा चुका है। इतना ही नहीं जमीन को गिरवी रखकर लोन भी लिया जा चुका है। विवादों में कौन पढ़े? यही सोचकर दोनों ने गर्ग से पैसे मांगे। नहीं मिले। दोनों ने 2013 में कोर्ट की शरण ली। कोर्ट के आदेश के पर 19 दिसंबर 2013 को भंवरकुआं पुलिस ने गर्ग के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा 923/2013 दर्ज कर लिया।
ठगी की रकम दो, तभी जमानत
केस दर्ज होने के बाद गर्ग ने अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में आवेदन किया। कोर्ट ने कहा दोनों से जितने पैसे की ठगी की है, लौटा दो तभी जमानत मिलेगी। इस पर गर्ग ने बलराम सचदेव के 40 लाख रुपए लौटा दिए। जमानत भी मिल गई।
पुलिस ने गर्ग के सुर में मिलाया सुर
ठगी की रकम लौटाए जाने के बाद  पुलिस ने गर्ग के सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया। इन्वेस्टिगेशन करने के बजाय पुलिस ने खात्मा पेश करने की तैयारी कर ली। पुलिस का कहना है कि जब रकम लौटा दी तो ठगी का केस भी खत्म हो गया। हालांकि अब तक न सचदेव ने शिकायत वापस ली, न ही नागरानी को 35 लाख रुपए मिले हैं।
ऐसे की धोखाधड़ी
सेटेलाइट हिल्स की जमीन एवलांचा रिएल्टी की थी। डायरेक्टरों ने नारायण अम्बिका इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पॉवर आॅफ अटर्नी की 21 अक्टूबर 2011 को जबकि बलराम और नागरानी के डायरेक्टरों के साथ गर्ग ने 55000 वर्गफीट जमीन का एग्रीमेंट कर दिया था 30 अगस्त 2011 को।
गर्ग ने पीएनबी, कॉपर्रेशन और यूको बैंक से अगस्त 2010 में 110.50 करोड़ का लोन लिया था जबकि एवालांचा ने उसके नाम पॉवर आॅफ अटर्नी 14 महीने बाद की थी। फिर कौनसे एग्रीमेंट से बैंकों ने लोन दिया?
जब वे एवलांचा की जमीन गिरवी रख चुके थे तो उन्होंने सचदेव और नागरानी को अगस्त 2011 में प्लॉट क्यों बेचे? जबकि इन प्लॉटों को पहले भी बेचा जा चुका था।
गर्ग न एवलांचा में डायरेक्टर थे उस वक्त न ही नारायण अम्बिका इन्फ्रास्ट्रक्चर के डायरेक्टर थे। फिर भी रजिस्ट्री उन्होंने की। दस्तावेजों पर उनके दस्तखत हैं।
ब्याज सहित पैसा दे या प्लॉट दे
525 रुपए/वर्गफीट के हिसाब से कुल सौदा 2 करोड़ 88 लाख 75 हजार में हुआ था। 75 लाख दे चुके थे। 40 लाख वापस कर दिए। 35 लाख अब भी जमा है।  बचते है 2 करोड़ 53 लाचा 75 हजार। गर्ग जब चाहे हम उसे पैसा दे सकते हैं। या फिर गर्ग हमें हमारा पैसा ब्याज सहित लौटा दे। हम तो यही चाहते हैं जबकि पैसा मांगने पर वह मारपीट और धक्कामुक्की भी कर चुका है।

मुकेश तिवारी,  संचालक
नागरानी वेयरहाउसिंग
हमने कभी शिकायत वापस नहीं ली है। गर्ग ने जो पैसा लौटाया है वह भी जमानत के लिए कोर्ट द्वारा तय की गई शर्त के अनुसार लौटाया। वह भी सिर्फ मूलधन जो गर्ग ने चार साल इस्तेमाल किए। खात्मे का सवाल नहीं उठता। इसीलिए खात्में पर आपत्ति ली।
बलराम सचदेव, पीड़ित

आसमान छुएगी 20 मंजिला स्काई लक्जिरिया

शालीमार के सामने जहां राजभवन जमींदोज हुआ था, अब वहां
शहर की सबसे ऊंची इमारत
इंदौर. विनोद शर्मा ।
शालीमार टाउनशीप के सामने जिस जमीन पर सालभर पहले तक ‘राजभवन’ नजर आता था अब जल्द ही वहां 60 मीटर ऊंची 20 मंजिला इमारत नजर आएगी। उपयोग आवासीय/व्यावसायिक होगा। इसे स्काई लक्जिरिया एक्लेट एंड  स्काई कॉर्पोरेट पार्क के नाम से पहचाना जाएगा। इमारत को हाईराइज कमेटी से मंजूरी और केद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग से पर्यावरणीय अनुमति भी मिल चुकी है। जी.एम. इंटरप्राइजेस अपने इस प्रोजेक्ट पर जल्द ही काम शुरू करेगी।
निरंजनपुर के सर्वे नं. 385/2 से लेकर 385/10 तक 128960 वर्गफीट जमीन कंपनी की है। सामने एबी रोड की चौड़ाई 60 मीटर है जिस पर 90 मीटर तक ऊंची बिल्डिंग को पर्मिशन दी जा सकती है।     प्लॉट का न्यूनतम 40 मीटर फ्रंट रोड साइड होना चाहिए जबकि यहां फ्रंट 71.64 मीटर चौड़ा है। इसीलिए कंपनी 60 मीटर ऊंची बिल्डिंग का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव को 16 जून को हाईराइज कमेटी ने मंजूरी दी थी। 1 जुलाई को वन एवं पर्यावरण विभाग ने भी ईसी जारी कर दी।30 प्रतिशत ग्राउंड कवरेज और 1.20 एफएआर के साथ कुल 518508 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई।
तीन हजार को मिलेगा रोजगार
पर्यावरणीय अनुमति के अनुसार स्काई बिजनेस पार्क की दुकानों और आॅफिसेस में तकरीबन 3000 हजार लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। बिल्डिंग बनाने वाली कंपनी के सर्वेसर्वा गोविंद जेठानंद चावला, निम्मीदेवी पति गोविंद चावला, जी.एस.इंटरप्राइजेस,  सागर पिता गोविंद चावला।
अब तक सिर्फ मंजूर हुई, बनी नहीं
60 मीटर ऊंची बिल्डिंग की अनुमति पहली बार नहीं हुई। इससे पहले भी हुई लेकिन उन पर काम भी शुरू नहीं हुआ। अपै्रल 2014 में निपानिया में एनआरके होम्स प्रा.लि. को बायपास के पास 60 मीटर ऊंची बिल्डिंग की अनुमति दी गई थी लेकिन मंदी के कारण कंपनी ने प्रोजेक्ट होल्ड कर दिया। दोनों को छोड़ अब तक 45 मीटर ऊंची बिल्डिंगों को ही अनुमति मिली है।
हम जल्द काम शुरू करेंगे
ईसी मिल चुकी है। हाईराइज कमेटी भी अनुमोदन कर चुकी है। ले-आउट मंजूर होने के बाद जल्द ही काम शुरू कर देंगे। प्रोजेक्ट महत्वकांक्षी है, शहर को पसंद भी आएगा।
गोविंद चावला
ऐसी होगी इमारत
ब्लॉक ए- कमर्शियल
ऊंचाई : जी+15
दुकानें : 10
आॅफिस : 248
ब्लॉक बी रेसीडेंशियल
ऊंचाई- जी+20
यूनिट
4 बीएचके(हर फ्लोर पर 2) : 40
एलआईजी : 3
ईडब्ल्यूएस : 4
पार्किंग : 13977 वर्गमीटर। 459 कारें।
ग्रीन बेल्ट : 647 वर्गमीटर
एमओएस : फ्रंट - 18 मीटर, तीनों तरफ 9-9 मीटर।
अभी यह बिल्डिंगे हैं ऊंची
बिल्डिंग मंजिला
मेपल वुड 15
पिनेकल 15
ओशियन पार्क 15
बीसीएम निपानिया 15

आगे भी मिलेगी हाईराइज की अनुमति- निगमायुक्त

बशर्ते सरकार मापदंड जल्दी क्लीयर कर दे
 इंदौर, दबंग रिपोर्टर।
तीन इमारतों की मंजूरी के साथ ही इंदौर में हाईराइज  बिल्डिंंगों का सफर थम जाएगा। रविवार को यह चर्चा इंदौर से लेकर राजनीति तक रही लेकिन नगर निगम आयुक्त ने दो टूक शब्दों में स्पष्ट कर दिया कि हाइराइज की अनुमतियां आगे भी जारी रहेगी। बस डेंसिटी को लेकर शासन विचाराधीन प्रकरण का निराकरण कर दे। हालांकि इस संबंध में शासन को पत्र लिखकर शीर्घ निर्णय की मांग की है तब तक हाईराइज कमेटी की बैठक नहीं होगी।
  22 जुलाई 2015 के बाद हाईराइज कमेटी की बैठक बीते दिनों हुई। बैठक में 42 से लेकर 60 मीटर तक के प्रकरण पर चर्चा हुई। अनुमोदन के लिए लिखा गया। बैठक में मप्र भूमि विकास अधिनियम के नियम 60 में जो सकल आवासीय घनत्व व्यक्ति/हेक्टेयर के मान से तल और आच्छादित क्षेत्र का प्रस्ताव है उस पर भी चर्चा हुई। बताया गया कि प्लॉटों का आकार कम है। नियम 60 के पालन के लिए आवासीय इकाइयों का आकार बड़ा रखना जरूरी है। यदि इकाइयां बड़ी करते हैं तो उनकी कीमत ज्यादा होगी जो आम लोगों की पहुंच से दूर रहेगी। न बिल्डर को सही से एफएआर का फायदा मिलेगा। न आच्छादित क्षेत्र का। मामले में शासन स्तर पर विचार मंथन जारी है। इसीलिए तय हुआ कि शासन को शीर्घ निर्णय के लिए चिट्ठी लिखें। यह भी स्पष्ट कर दें कि जब तक सरकार ठोस निर्णय नहीं लेती तब तक कमेटी की अगली बैठक नहीं होगी। इसीलिए अफवाह यह फैल गई कि अब हाईराइज बिल्डिंगों का अनुमति मिलेगी ही नहीं।
जरूरी है हाईराइज
हाईराइज बिल्डिंगों में रोड और फायर सेफ्टी के नियमों की लगातार अनदेखी को देखते हुए बार-बार ऐसी इमारतों पर रोक की मांग उठती रहती है। हालांकि शहर में कम पड़ती जमीन को देखते हुए वर्टिकल डेवलपमेंट जरूरी माना जाता है। यह हर स्मार्ट शहर की जरूरत भी है।
शासन को लिखा पत्र
निगमायुक्त मनीष सिंह ने नगरीय प्रशासन विभाग और आवास एवं पर्यावरण विभाग को पत्र भी लिखे। शीर्घ निराकरण की मांग की है। उन्होंने कहा कि जितनी जल्दी इस मामले का निराकरण शासन स्तर से हो जाए, अच्छा है। जो प्रकरण बीते दिनों बैठक में रखे गए थे उनका भी इसी आधार पर अनुमोदन किया है। टीएंडसीपी स्थल अनुमोदन के बाद  प्रावधानों के आधार पर जो सिफारिश करेगा उसी के आधार पर कमेटी प्रोजेक्ट पर फैसला लेगी।
प्रोजेक्ट जो मंजूर हुए
रमेशचंद्र अग्रवाल : तलावली की 7.506 हेक्टेयर जमीन पर 42 मीटर ऊंची आवासीय इमारत। नियमानुसार 30 मीटर चौड़ी रोड जरूरी है सामने। मौके पर 12 मीटर चौड़ी रोड है। पहले सड़क बनेगी, फिर बिल्डिंग।
15वीं वाहिनी विशेष सशस्त्र पुलिस बल: गाडराखेड़ी 6.128 हेक्टेयर जमीन पर 45 मीटर ऊंची आवासीय बिल्डिंग। सामने 30 मीटर चौड़ी सड़क है।
जी.एस.इंटरप्राइजेस : निरंजनपुर की 630648 वर्गमीटर जमीन पर 60 मीटर ऊची बिल्डिंग। पहले 30 मीटर के लिए आवेदन किया था। अनुमोदन भी हो चुका था।

लालवानी ने ताना आलोकनगर में अवैध मार्केट

पत्नी और पार्टनरों के आवासी प्लॉटों को जोड़कर बनाया कॉम्पलेक्स
इंदौर. विनोद शर्मा।
कलेक्टर और निगमायुक्त की सख्ती के बावजूद भू-माफियाओं की मनमानी जारी है। विकास अपार्टमेंट गृह निर्माण सहकारी संस्था द्वारा विकसित आलोकनगर में तीन प्लॉट जोड़कर बन रहा मार्केट इसका बड़ा उदाहरण है। मार्केट के लिए जिन तीन प्लॉटों को जोड़ा गया है उनमें से एक प्रकाश लालवानी का है जो इंदौर विकास प्राधिकरण अध्यक्ष शंकर लालवानी के भाई हैं।
बेलगाम सदस्यता देने, जमीन बेचने और प्लॉटों को जोड़कर मल्टियां तानने तक के मामले में पहले ही विवादों से जुझती आ रही विकास अपार्टमेंट संस्था इन दिनों लालवानी के मार्केट को लेकर खासी चर्चा में है। राजनीति में लालवानी के संबंधों को देखते हुए मार्केट की शिकायत मुख्यमंत्री को की गई है। शिकायत के अनुसार दो या उससे अधिक प्लॉटों को जोड़कर किसी भी तरह का निर्माण करना गैरकानूनी है बावजूद  मार्केट के लिए आलोकनगर के प्लॉट नं. 345 (मनीष पिता प्रकाशचंद्र जैन), 346 (प्रदीप पिता प्रकाशचंद्र जैन) और 347 (नेहा पति प्रकाश लालवानी) को जोड़ा गया है।
इसीलिए जोड़े प्लॉट
ग्रीन वेली वाली रोड पर प्लॉट नं. 345 और 346 हैं। हर प्लॉट का साइज 20 बाय 80 है यानी 1600 वर्गफीट। 347 तिकोना प्लॉट है जिसका साइज 2000 वर्गफीट है। फोरलेन बनने के बाद कमर्शियल वेल्यू 9000 से 11000 रुपए/वर्गफीट तक हो चुकी है। तिकोने प्लॉट पर कमर्शियल कंस्ट्रक्शन हो जाता लेकिन बाकी दोनों प्लॉट पर मकान ही बन सकते थे। चूंकि जैन बंधू और लालवानी अच्छे मित्र हैं इसीलिए उन्होंने संयुक्त रूप से काम करने का निर्णय लेते हुए तीनों प्लॉटों का संयुक्तिकरण कर दिया।
दुकानें-आॅफिस दर्जनभर, पार्किंग रत्तीभर भी नहीं
सिर्फ लालवानी के प्लॉट पर ही जी+2 कंस्ट्रक्शन है। ग्राउंड पर  5 दुकानें हैं। ऊपरी मंजिलों पर इतने-इतने ही आॅफिस हैं। 345 और 346 पर जी+2 कंस्ट्रक्शन है। नीचे कुल नौ दुकाने हैं। बीच में रास्ता है। चढ़ाव है जो तीनों प्लॉट को एक-दूसरे से जोड़ता है। ऊपरी फ्लोर दर्जनभर से ज्यादा आॅफिस है। तीनों प्लॉट की कुल 14 दुकानें और दो दर्जन आॅफिस हैं। ग्राहक को छोड़ें तो भी इतने दुकानदार और आॅफिस वालों के लिए 25 कारों और 15 दोपहिया वाहनों की पार्किंग की जरूरत थी जो नहीं है।
14 करोड़ की कमाई का खेल
कुल 5200 वर्गफीट प्लॉट पर जी+3 के हिसाब से करीब 15000 वर्गफीट निर्माण हुआ है। 3000 रुपए वर्गफीट जमीन की कीमत और 1200 रुपए वर्गफीट कंस्ट्रक्शन कास्ट के साथ छह करोड़ के घर-फ्लैट बनते। मार्केट बनने के बाद फ्रंट आॅफिस और दुकानों की कीमत 11000 रुपए/वर्गफीट है जबकि अंदर की नौ से 10 हजार। औसत 9500 रुपए वर्गफीट के हिसाब से भी कीमत आंके तो लालवानी एंड कंपनी 14.25 करोड़ कमाएगी। जो आवासीय उपयोग से 8.25 करोड़ ज्यादा है।
एमओएस भी हजम
यदि एक-एक प्लॉट का अलग-अलग नक्शा पास होता तो इन्हें एमओएस भी छोड़ना पड़ता जो संयुक्तिकरण के साथ ही हजम कर लिया गया है। तीनों तरफ से मार्केट को सड़क से टिकाकर बनाया जा रहा है। 346-347 पर पेंट हाउस भी बन रहा है जो सामने से नजर नहीं आता लेकिन पीछे से देखो तो कंस्ट्रक्शन जी+3 साफ दिखता है।
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सामने का हिस्सा मेरा है पीछे का मेरे पार्टनर प्रदीप जैन का। आॅफिस बंगाली चौराहे पर है। मार्केट में नीचे दुकाने हैं, ऊपर आॅफिस। 347 वाला पार्ट करीब-करीब तैयार है। एक दुकान बड़ी, कुछ छोटी। ऊपर आॅफिस है। कीमत है 9 से 11 हजार/वर्गफीट है।
प्रकाश लालवानी
(बतौर खरीदार बात करने पर उन्होंने बताया)

Tuesday, July 12, 2016

20 साल बाद आई स्कीम, लोग ज्यादा ले लाभ

आयकर मुख्य आयुक्त ने गिनाए आईडीएस के फायदे
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
इनकम डिस्क्लोज स्कीम (आईडीएस) के तहत 45 प्रतिशत टैक्स देकर अपनी काली कमाई को किताबों में दर्ज कराया जा सकता है। टैक्स 30 नवंबर जमा कराया जा सकता है। आयकर आयुक्त के सामने जो डिक्लेरशन फाइल किया जाएगा उसकी जानकारी गुप्त रखी जाएगी। शुक्रवार को पत्रकारों से मुखातिब होते हुए यह जानकारी मुख्य आयकर आयुक्त वी.के.माथुर ने दी। शाम को यशवंत क्लब में भी आयकर अधिकारियों ने सदस्यों को स्कीम की जानकारी दी।
श्री माथुर ने बताया कि  केंद्र सरकार की आईडीएस में जिन लोगों ने अपने पास ब्लैक मनी रखी है और उसे सरेंडर करना चाहते हैं तो वो इस स्कीम के तहत कर सकते हैं। इसमें लोग अपना काला धन सफेद कर सकते हैं। इसके लिए संबंधित व्यक्ति को डिपार्टमेंट में आॅनलाइन या मेन्युअल फॉर्म-1 भरकर जमा कराना है। 45 फीसदी (30 प्रतिशत टैक्स, 7.5 प्रतिशत कृषि उपकर और 7.5 प्रतिशत पेनल्टी) टैक्स भरकर सारी रकम सफेद हो जाएगी। व्यक्ति द्वारा भरे फॉर्म को सिर्फ प्रिंसिपल कमिश्नर ही देखेंगे। उस व्यक्ति को कमिश्नर खुद ही संपर्क करेंगे। इसके साथ ही उसकी पहचान गुप्त रखी जाएगी।  श्री माथुर ने बताया कि अब तक स्कीम में कुछ लोगों ने आवेदन किए भी हैं लेकिन उम्मीद है जैसे-जैसे दिन 30 सितंबर पास आ रहा है वैसे-वैसे लाभार्थी बढ़ेंगे। यदि किसी कारण डिस्क्लोजर स्वीकार नहीं होता है तो भी किसी तरह की कार्रवाई नहीं होगी। न जानकारी शेयर होगी। बस सामान्य आयकर नियमों के तहत टैक्स जमा कराया जाएगा।
ऐसे समझें स्कीम का फायदा
मानलें कि किसी की एक करोड़ रुपए ब्लैक मनी है। उसे 45 फीसदी टैक्स भरना है, यानि 45 लाख रुपए टैक्स बाकी सारी मनी व्हाइट में कनवर्ट हो जाएगी। अगर किसी ने 5-6 साल पहले इनवेस्ट किया है, पर आय नहीं दिखाई। वो भी इस स्कीम में इनकम शो करके बच सकता है। इसके अलावा जिसके पास कैश पड़ा है, इसे भी डिक्लेयर कर सकता है। अगर अब भी लोग इस स्कीम का फायदा नहीं उठाते तो डिपार्टमेंट के सर्वे के बाद उन्हें 300 फीसदी पेनल्टी चुकानी होगी। यानि 5 साल के लिए 35 फीसदी टैक्स, 300 फीसदी पेनल्टी और 5 साल का ब्याज 18 फीसदी। अवेयरनेस के लिए क्लबों, मॉल, अस्पतालों और बाजार वगैरह में बैनर लगाकर इस स्कीम के बारे में अवेयर किया जाएगा।
20 साल बाद आई है स्कीम
कर चोरों को छूट से ईमानदार करदाताओं में नाराजगी के मामले पर प्रिंसिपल कमिश्नर श्री चांदोरकर ने बताया कि इससे पहले वीडीआईएस स्कीम 1996-1997 में आई थी। 20 साल बाद आईडीएस आई है। दोनों में अंतर है। आईडीएस में करंट वेल्युएशन  मान्य है। 

क्लासिक के न्यू इंदौर पर फिनिक्स के प्लॉट

चंपू-चिराग और मेहता की जोड़ी का कमाल
प्लॉट होल्डरों के साथ संस्था के सदस्यों से भी छलावा
इंदौर. विनोद शर्मा ।
चंपू और चिराग की जोड़ी के चमत्कारों की जितनी बात करें कम है। दोनों ने फिनिक्स टाउन के तीन ले-आउट जोड़कर चौथा नक्शा बनाया और इसमें क्लासिक गृह निर्माण सहकारी संस्था की विवादित जमीन जोड़कर उस पर 281 प्लॉट काट दिए। न्यू इंदौर टाउनशीप का खांका खींचकर बैठी क्लासिक खामौश रही क्योंकि यह संस्था भी चंपू-चिराग और विवादित बिल्डर अश्वीन मेहता की है। संस्था के अंतिम अध्यक्ष संजय जैन है जो कि फिनिक्स डेवकॉन प्रा.लि. में भी डायरेक्टर हैं।
फिनिक्स में हुई प्लॉटों की हेराफेरी के मामले में क्राइम ब्रांच के हत्थे चढ़े चंपू अजमेरा ने पांच दलालों के साथ अश्विन मेहता के नाम का खुलासा भी किया है। मेहता अजमेरा के साथ संतोषीमाता गृह निर्माण सहकारी संस्था और क्लासिक गृह निर्माण सहकारी संस्था के साथ ही सेटेलाइट हाउसिंग प्रा.लि. में भी सहभागी है। भागीदारों की लिस्ट में अतूल सुराणा, संजय जैन और रजत बोहरा का नाम भी शामिल है। इसीलिए सदस्यों की आपत्तियों में उलझी क्लासिक संस्था  की न्यू इंदौर टाउन अटकी तो चौकड़ी ने नया रास्ता निकाला। पहले एक ही दिन में फिनिक्स टाउन के तीन नक्शे मंजूर करवाए। बाद में इन तीनों को जोड़ा चौथा नक्शा बनाया। उसमें क्लासिक की जमीन जोड़ी और 281 प्लॉट का खांका खींच दिया।
संस्था की इन जमीनों पर कब्जा
सर्वे नं. 253/2, 254/1, 254/2/2, 255/1/1/मिन-1,  256/1, 256/2/1 और 256/5 की कुल साढ़े आठ एकड़ जमीन जबकि 29 मार्च 2007 को संस्था और कुम्हेर सिंह पिता कुन्हेरे के बीच  हुई एक रजिस्ट्री में संस्था ने अपनी 12.48 एकड़ जमीन गिनवाई थी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि नौ साल में बिना प्लॉट कटे संस्था की साढ़े चार एकड़ जमीन गई कहां?
रजिस्ट्री में यह थी जमीन
खसरा रकबा फिनिक्स का कब्जा
253   0.975 कब्जा
254/1 0.332 कब्जा
254/2 1.433 कब्जा
255 1.106 ---
256/1 0.645 कब्जा
256/2 0.265 कब्जा
256/5 0.299 कब्जा
निराले है खेल..
फिनिक्स डेवकॉन प्रा.लि. के बैनर तले फिनिक्स टाउन नाम की कॉलोनी डेवलप करने वाले चिराग पिता विपिन शाह का नाम 8 दिसंबर 1997 को पंजीबद्ध हुई क्लासिक संस्था की सदस्यता सूची में पहले नंबर पर है। 15 शांतिनगर में रहने वाले शाह ने दिसंबर 1997 को सदस्यता ली थी। सदस्यों में इसी पते पर रहने वाले सरला पति विपिन शाह और डॉली पति अरूण शाह का नाम भी है।
 सूची में 30 शिवशक्तिनगर निवासी सीमा मेहता का सदस्यता क्रमांक 114 है जो कि सिंगापुर समूह के मालिक अश्विन मेहता की पत्नी है। सिंगापुर समूह की शहर की चारों दिशाओं में दो दर्जन से अधिक कॉलोनियां हैं।
सदस्यता क्रमांक 118 है सीमा जैन का जो कि 317 एमजी रोड निवासी धर्मेंद्र जैन उर्फ धर्मेंद्र बाबा हैं। बाबा इंदौर के कुख्यात भू-माफिया योगेंद्र बाबा के भाई हैं और विकास अपार्टमेंट संस्था में भी चंपू चौकड़ी के सहभागी हैं।
संस्था में प्लॉट कम, सदस्य ज्यादा
न्यू इंदौर टाउनशीप की कल्पना करने वाली संस्था के पास जमीन 12 एकड़ ही है। सदस्यों की संख्या 371 हैं जबकि कॉलोनी में चाहक भी 200 से अधिक प्लॉट नहीं काटे  जा सकते हैं। इसीलिए क्लब हाउस, गेट और पानी की टंकी के अलावा यहां कोई काम नहीं दिखता। सीवरेज लाइन भी आधी-अधूरी ही डली है।

ईडी में ‘हवा’ हो गया 400 करोड़ का हवाला

निलेश के बयान के इंतजार में बीत गए छह साल
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जमीनी धोखाधड़ी के मामले में क्राइम ब्रांच से लेकर तेजाजीनगर पुलिस तक जिन अजमेरा बंधुओं के खिलाफ धमाकेदार कार्रवाई कर रही है उनका 400 करोड़ का अंतरराष्ट्रीय हवाला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की फाइलों के बोझ तले पांच साल से दबा हुआ है। फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत उन 11 टॉप क्लास बिल्डरों को जून 2010 में नोटिस थमाए गए थे जिन्होंने अजमेरा बंधुओं के साथ दुबई में पैसा लगाया था।
 18 से 21 नवंबर 2015 के बीच इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने सेटेलाइट, चिराग रियल एम्प्रेस, चौधरी एस्टेट, मयूरी हिना हर्बल प्रा.लि., और फोनिक्स ग्रुप के 20 ठिकानों पर दबिश दी। कार्रवाई आॅर्बिट मॉल स्थित फोनिक्स के आॅफिस, न्यू पलासिया स्थित चौधरी एस्टेट, पालीवालनगर स्थित अजमेरा बंधुओं के घर, चिराग शाह, वीरेंद्र चौधरी और अरुण डागरिया के घर पर हुई थी। अजमेरा बंधुओं द्वारा 20 करोड़ की काली कमाई स्वीकारी। जांच में  400 करोड़ रुपया हवाला के माध्यम से इंदौर से दुबई पहुंचाने की पुष्टि हुई।  एक हजार पन्नों की अप्राइजल रिपोर्ट आईटी  ईडी को सौंप दी।
नोटिस जारी हुए, पूछताछ हुई, कार्रवाई नहीं...
आईटी की रिपोर्ट के आधार पर ईडी ने फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत अजमेरा बंधुओं सहित 13 लोगों के खिलाफ इन्फोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज की। जून 2010 में पहली दफा नोटिस थमाए गए। पूछताछ का दौर 2012 तक चलता रहा। आखिरी बार अगस्त 2012 में ईडी ने मुख्य आरोपी निलेश अजमेरा और चिराग शाह को समन देकर बयान के लिए बुलाया था लेकिन निलेश ने बयान नहीं दिए।
निलेश के जवाब के इंतजार में अटकी फाइल
निलेश ने अगस्त 1996 में पासपोर्ट बनवाया था जिसकी वैधता अगस्त 2006 में खत्म हो गई। 2005 में निलेश ने ब्रिटिश नागरिकता ली। इसके बाद निलेश की पूछपरख बढ़ी। उसका भारत व यूएई आना-जाना नहा। 2006-07 में दुबई में जमीन के भाव सातवें आसमान पर थे। तब निलेश ने एक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट तैयार किया।  इंदौर के ख्यात बिल्डरों से फंड जुटाया और दुबई की अलग-अलग कंपनियों के नाम पर ट्रांसफर किया। इस काम में दुबई के पार्टनरों ने भी मदद की। इसीलिए ईडी ने निलेश को मूल आरोपी माना लेकिन बार-बार समन देने के बाद भी निलेश ईडी के सामने पेश नहीं हुआ। हालांकि ईडी का जवाब हजम नहीं होता क्योंकि छह वर्षों में अर्से तक निलेश इंदौर में ही रहा।
 घेरे में थे कई बड़े नाम
आरोपियों में सैटेलाइट समूह के कर्ताधर्ता रितेश अजमेरा उर्फ चंपू, उसका भाई निलेश अजमेरा, हैप्पी धवन, संजय, अरूण डागरिया, चिराग शाह, वीरेंद्र चौधरी, विनोद गुप्ता, मोहन चुघ, अतुल सुराना, अश्विन मेहता, संजय जैन के अलावा जमीन के बड़े खिलाड़ी शरद डोसी व अन्य हैं।
25 प्रतिशत दिया नकद, बाकी पीडीसी
दुबई म लैंड डिपार्टमेंट से जमीन खरीदी। इसीलिए स्थानीय पार्टनर बनाया।   25 प्रतिशत राशि इंदौरी बिल्डरों से फंड जुटाकर दी। बाकी 75 फीसदी राशि के पोस्ट डेटेड चेक (पीडीसी) चेक दे दिए।   2008-09 में  मंदी ने जमीन की कीमत 80 फीसदी गिरा दी।  ऐसे में उस पूरी जमीन की कीमत अजमेरा द्वारा दी गई पहली किस्त से भी कम हो गई। राशि ज्यादा दी जा चुकी थी, पीडीसी अलग। इसीलिए भारी आर्थिक नुकसान से बचने के लिए अजमेरा बंधु आधे-अधूरे प्रोजेक्ट से जितनी रिकवरी हो सकती थी उतनी करके दुबई से फरार हो गए। इसीलिए वहां दुबई में दो केस दर्ज है।

पोषण आहार वाले एमपी एग्रो समूह पर आयकर का छापा

4000 करोड़ के घपले के आरोपों के बीच इन्वेस्टिगेशन विंग की बड़ी कार्रवाई
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
पोषण आहार और रीयल एस्टेट के साथ मीडिया से जुड़े तीन समूहों के खिलाफ इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने मंगलवार को छापेमार कार्रवाई की। कार्रवाई इंदौर, भोपाल और मुंबई सहित कुल 35 ठिकानों पर हुई। मंगलवार शाम तक इंदौर में 11 लॉकर, 35 लाख नकद और करीब आधा किलोग्राम ज्वैलरी के साथ 25 सिस्टम-लेपटॉप का डाटा जब्त किया गया।
विंग ने मध्यप्रदेश न्यूट्रीशन फूड और श्री कृष्ण देवकान लिमिटेड की करीब एक दर्जन सहयोगी कंपनियों पर कार्रवाई की। इसमें एक मीडिया समूह भी है। कार्रवाई इंदौर में 23, भोपाल में 5 और मुंबई के सात स्थानों पर हुई। सूत्रों के अनुसार 800 करोड़ के दलिया घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से फटकार लगने के बाद आयकर विभाग ने छापे की कार्रवाई की है। हाल ही में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी कंपनी का एक प्लांट खोले जाने की बात कही गई थी। कार्यवाही को 60 से अधिक आयकर अधिकारियों और 100 से अधिक पुलिसकर्मियों ने अंजाम दिया। अधिकारियों ने बताया कि अघोषित आय से संबंधित बड़ी तादाद में दस्तावेज बरामद किए गए हैं।
इंदौर में कार्रवाई यहां हुई
भक्त प्रहलादनगर, 31 जीवनदीप कॉलोनी, 38 जीवनदीप कॉलोनी, 95/96 सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र सेक्टर ई, स्टारलिट टॉवर, 7/1 वायएन रोड स्थित बंगला और आॅर्बिट मॉल स्थित सीए के आफिस।
यह थी शिकायत
पिछले 5 साल के दौरान एमपी एग्रो जैसी एजेंसी को पोषण आहार का ठेका देकर आंगनबाड़ियों के जरिए होने वाले पोषण-आहार वितरण के नाम पर जमकर गोलमाल किया गया। आलम यह रहा कि एमपी एग्रो को साढ़े 4000 करोड़ का भुगतान कर दिया गया, जिसके मुकाबले जमीनी स्तर पर काम नजर नहीं आया। इसकी शिकायत बालाघाट लांजी से समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीतेन् ने की है। आरोप है कि एमपी एग्रो ने अपनी ही भागीदारी वाली फर्मों से ढाई फीसदी कमीशन वसूली जो करीब 30 करोड़ होती है। सुप्रीम कोर्ट का भी मानना है कि ठेका पद्धति से पोषण आहार की गुणवत्ता सुनिश्चित करना टेढ़ी खीर है। इसीलिए स्वसहायता समूहों व आंगनबाड़ियों को इस सिलसिले में प्राथमिकता दी गई बावजूद इसके यहां एमपी एग्रो जैसी कंपनियां काम कर रही है।
कौनसी कंपनी किसकी
एमपी एग्रो न्यूट्री फुड्स लि. सांवेर रोड, इंदौर- नरेंद्र जैन, रवींद्र चतुर्वेदी, व्यंकटेश्वर राव धवल, हेमेंद्रसिंह नाबेडा, सखाराम पंडित, लखपतकुमार जैन, अनिल जैन, जय पेरुलिया
एमपी एग्रो फुड्स इंडस्ट्री, मंडीदीप- बृजेशकुमार गुप्ता, ऋृषि गोयल, रवींद्र चतुर्वेदी, व्यंकटेश्वर राव धवल, अंशुकुमार जिंदल, गिरजाशंकर अवस्थी, कृष्णकुमार श्रीवास्तव, आनंदप्रकाश नेमा
एमपी एग्रोटोनिक लि. मंडीदीप- रवींद्र चतुर्वेदी, व्यंकटेश्वर राव धवल, अंशुल जैन, प्रमोदचंद्र महनोत, अजय कपूर, समकित हिरावत, निशा सिंह
श्री कृष्ण देवकॉन लिमिटेड -  शैलेषकुमार जैन, दिनेश जोशी, अशोक सेठी, पुरुषोत्तमदास बैरागी, मुकेश कुमार जैन, सुनील कुमार जैन, नवीनकुमार जैन और प्रकशाली जैन। इस कंपनी का पंजीबद्ध पता मुंबई है।
श्री कृष्ण देवकॉन, मप्र टू-डे मीडिया प्रा.लि., नवकार फिनवेस्ट लि.श्री वृजराज डेवलपर्स प्रा.लि., श्रृद्धी डेवलपर्स प्रा.लि., एसकेडीएल डेवलपर्स, श्रीधर मीडिया, गोल्ड शेपियर्स डेवलपर्स प्रा.लि जैसी कंपनियों में भी सुनील जैन डायरेक्टर हैं।

60 हजार नए आयकर दाता बने, 4 लाख शंका के घेरे में

- हर लेन-देन और खरीदी-बिक्री पर नजर
- विशेषज्ञों के तर्कों पर भी तफ्तीश
इंदौर. विनोद शर्मा ।
आयकर से परहेज करने वालों के खिलाफ मोदी सरकार का अभियान रंग लाया। एक करोड़ नए करदाताओं के टार्गेट के मुकाबले 40 लाख नए करतदाता बने हैं। इसमें करीब 60 हजार इंदौर मुख्य आयकर आयुक्तालय के करदाता हैं। हालांकि विभाग और विभागीय विशेषज्ञों के अनुसार आयुक्तालय क्षेत्र में अब भी चार लाख लोग ऐसे हैं जो आयकर के दायरे में आ सकते हैं। इसीलिए सबंधित ठिकानों से लोगों के लेन-देन और खरीदी-बिक्री की जानकारी जुटाई जा रही है।
इंदौर सीसी क्षेत्र को 2015-16 में 1.5 लाख नए करदाता बनाने का लक्ष्य मिला था। उस वक्त करदाताओं की संख्या थी 4.63 लाख। अधिकारी-कर्मचारियों की हड़ताल व अन्य व्यस्तताओं के बावजूद करदाता बढ़ाओ  अभियान जारी रहा। इसीलिए करीब 60 हजार करदाता बढ़े और कुल करदाताओं की संख्या 5.20 लाख हो गई। हालांकि विशेषज्ञीय अनुमान के हिसाब से सीसी क्षेत्र के 16 जिलों में करीब 4 लाख लोग और आयकर की पहुंच से दूर है।
ऐसे की जा रही है तलाश
विभाग ने रीजन के लोगों की संपत्ति, जिला पंजीयक कार्यालयों से संपत्ति की खरीदी-बिक्री, स्टॉम्प शुल्क, सोने-चांदी व अन्य महंगी ज्वैलरी की खरीदी, बैंकों में जमा एफडी, पूंजी के साथ ही ब्याज व काटे जा रहे टीडीएस के रिकार्ड खंगाले जा रहे हैं। प्रॉपर्टी ब्रोकर्स व अन्य ब्रोकर्स पर भी नजर है जो दलाली से लाखों रुपया कमाते हैं। स्थानीय प्रशासन से हायर रेट जोन वाले संपत्ति करदाताओं की लिस्ट के साथ स्वीकृत होने वाले बंगलों के साथ कॉलोनी-मॉल-मार्केट-मल्टियों के नक्शे की जानकारी भी ली जा रही है ताकि वहां बिकने वाले फ्लैट, दुकान व आॅफिसों की सही गणना की जा सके।
संयुक्त प्रयास...
फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआईयू) और सरकारी-गैरसरकारी बैंकों का सेंट्रलाइज डाटा सेंटर भी इस काम में आयकर की मदद कर रहा है। रीजनल इकानॉमिक इंटेलीजेंस कमेटी (आरईआईसी) में पुलिस, लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू, सीबीआई, वाणिज्यिक कर, सेंट्रल एक्साइज, डीआरआई, डीजीसीईआई व इनकम टैक्स एक दूसरे से इन्फॉर्मेशन एक्सचेंज कर रहे हैं जिसका फायदा भी आयकर व अन्य कर विभागों को मिला है।
फिर क्यों दूर है आयकर से
सिर्फ इंदौर में वाहनों की कुल संख्या 16 लाख से अधिक है। इसमें चार पहिया चार लाख और कमर्शियल वाहन दो लाख से अधिक है। मतलब 6 लाख। अब यदि 1 लाख घरों में दो-दो कार है तो भी फोरव्हीलर रखने वाले ही 3 लाख लोग होते हैं। कमर्शियल वाहन वाले अलग। बाकी 15 जिलों के वाहनों की संख्या अलग।
नगर निगम में सालाना 25 हजार से ज्यादा नक्शे पास होते हैं। नक्शे सिर्फ वैध कॉलोनियों में ही पास होते हैं जहां प्लॉट की कीमत औसत 2000 रुपए/वर्गफीट है। कंस्ट्रक्शन कॉस्ट 1000 रुपए/वर्गफीट। इस मान से प्लॉट सहित 1000 वर्गफीट का एक ही घर 30 लाख में तैयार होता है।
इंदौर में 350 से अधिक नई कॉलोनियां और टाउनशीप कटी है जहां प्लॉट और फ्लैट की औसत कीमत ही 10 लाख है। कुल प्लॉट और फ्लैट करीब 7 लाख हैं।
दो हजार से अधिक प्रॉपर्टी ब्रोकर है। इनमें से टैक्सपेयर हैं करीब 350 ही। बाकी लोग अपनी कमीशन पर टीडीएस भी नहीं कटवाते।
500 से ज्यादा होस्टल हैं, रजिस्टर्ड आधे भी नहीं है। यही स्थिति होटल, प्राइवेट स्कूल, हॉस्पिटल, नर्सिंग होम की है।
अभी 5.20 लाख करदाता
आय करदाता
2.5 लाख से कम 3.5 लाख
2.5 से 5.5 लाख 1 लाख
5.5 से 9.9 लाख 35 हजार
10 लाख से अधिक 25 हजार


भाजपा नेता मंगवानी के रिश्तेदार ने तानी तीन मंजिला अवैध बिल्डिंग

खातीवाला टैंक में मनमानी
मंजूरी से ज्यादा निर्माण, संपत्ति के खाते में अब भी ग्राउंड फ्लोर ही
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मनमाना निर्माण खातीवाला टैंक की पहचान बन चुका है। इसका बड़ा उदाहरण है प्लॉट नं. 557 जहां नगर निगम के राजस्व दस्तावेजों के अनुसार अब भी प्लॉट है लेकिन मौके पर तीन मंजिला इमारत नजर आती है। कृष्णाज बिल्डकॉम तर्फे श्री रितेश पिता श्री गणेशलाल मंघरानी के नाम पर प्लॉट का नक्शा पास है लेकिन मौके पर जो निर्माण है वह नक्शे से मेल नहीं खाता। मंघरानी पूर्व जनकार्य समिति प्रभारी और वार्ड-65 की मौजूदा पार्षद सरीता मंघवानी के पति जवाहर मंघवानी के रिश्तेदार हैं। नक्शा उन्हीं के जनकार्य समिति प्रभारी रहते मंजूर हुआ था।
मामले का खुलासा 15वें  अपर जिला न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किए गए वाद के बाद हुआ। शिकायत के अनुसार प्लॉट नं. 557 खातीवाला टैंक का क्षेत्रफल 2992 वर्गफीट है। मंघरानी के आवेदन पर 14 नवंबर 2014 को जी+3 की बिल्डिंग पर्मिशन जारी की गई। उस वक्त बिल्डिंग पर्मिशन शाखा के इंचार्ज मंगवानी ही थे। बिल्डिंग की अधिकतम ऊंचाई 12.45 मीटर तय की गई जबकि मौके पर जी+3 और पेंटहाउस का निर्माण किया गया है।
यह थी मंजूरी
नक्शे के अनुसार 2992 वर्गफीट प्लॉट एरिया पर निर्माण के दौरान 34.45 प्रतिशत यानी 1031 वर्गफीट (95.82 वर्गमीटर ) ग्राउंड कवरेज किया जा सकता था।
ग्राउंड फ्लोर पर 270 वर्गफीट निर्माण होना था लेकिन हुआ एक हजार वर्गफीट के लगभग। इसी तरह पहली, दूसरी और तीसरी मंजिल पर औसत 95.81 वर्गमीटर यानी 1031 वर्गफीट निर्माण होना था। कुल निर्माण मंजूर हुआ था 312.75 वर्गमीटर (3366 वर्गफीट) ही।
बनी ऐसी...
-- 60 फीसदी ग्राउंड कवरेज करीब 1795.2 वर्गफीट। सीवरेज के चेम्बर पर बाउंड्रीवाल बना दी। मेन रोड का स्लोप में बिजली के खम्बे भी समाहित कर लिए।
-- ऊपरी मंजिलों का क्षेत्रफल दो-दो हजार वर्गफीट है जो मंजूरी से दोगुना है। तीसरी मंंजिल के बाद कोई निर्माण मंजूर नहीं है जबकि ऊपर 1000 वर्गफीट का पेंट हाउस भी बना दिया है।
संपत्ति कर में भी हेरफेर...
संपत्ति करदाताओं की सूची में मंघरानी का भी नाम है लेकिन जिस प्लॉट का नक्शा नगर निगम ने नवंबर 2014 में मंजूर किया था और जहां बिल्डिंग बने छह महीने हो चुके हैं उस प्लॉट के संपत्ति कर खाते में सिर्फ ग्राउंड फ्लोर का जिक्र ही है। यहां प्लॉट का एरिया 2991 वर्गफीट दर्ज है।
राजनीतिक संरक्षण की स्थिति यह है कि संपत्ति कर में भी निगम के मैदानी अमले के साथ मिलकर हेरफेर की गई है। प्लॉट नं. 557 के संपत्ति कर की गणना 15 रुपए/वर्गफीट की दर से की गई है जबकि  ललित शर्मा के प्लॉट नं. 556 और कांता सेवाराम लालवानी के प्लॉट नं. 558 की गणना 26 रुपए/वर्गफीट से हुई। पूरी कॉलोनी का रेट जोन एक ही होता है। प्लॉट नंबर वार नहीं रहता।


छह महीने पिछड़ी नर्मदा-गंभीर, एनवीडीए परेशान

नवयुग पर ठोकी 10 करोड़ की एक पेनल्टी, दूसरी की तैयारी
इंदौर. विनोद शर्मा।
मुख्यमंत्री की मॉनिटरिंग में नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना रिकार्ड टाइम में पूरा करने वाला नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) नर्मदा-गंभीर के काम में समय नहीं साध पाया। वजह है निर्माणकर्ता नवयुग इंजीनियरिंग का मिस मैनेजमेंट। दर्जनों नोटिस के बावजूद कंपनी काम की गति नहीं बढ़ा पाई। इसीलिए कंपनी पर 10 करोड़ की पेनल्टी ठोककर भुगतान रोक दिया है।
प्रोजेक्ट की लागत 2146 करोड़ आंकी गई थी। 1842 करोड़ में ठेका मिला था मेसर्स नवयुग इंजीनियरिंग को। 25 फरवरी 2015 को वर्कआॅर्डर के साथ कंपनी को काम सौंप दिया था। काम शुरू से ही ठंडा रहा है। कभी न्यायालयीन मामले तो कभी भू-अर्जन में देर जैसे कारण गिनाती आई कंपनी अनुबंध में तय समयसीमा से छह महीने पीछे काम कर रही है। कंपनी को अब तक 40 प्रतिशत काम कर देना था, वहीं काम हुआ है महज 20 फीसदी। 36 महीने की तय समयसीमा के अनुसार 24 फरवरी 2018 तक प्रोजेक्ट पूरा होना है लेकिन कंपनी की मौजूदा वर्किंग स्टाइल से काम फरवरी 2019 तक ही पूरा होगा। सिर्फ काम में ढ़िलाई ही नहीं बल्कि ढिलाई को लेकर बार-बार विधानसभा में उठते सवाल एनवीडीए से लेकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की चिंता का विषय भी है।
एक बार पेनल्टी लगा दी, दूसरी बार की तैयारी
ढिलाई को लेकर कंपनी पर 10 करोड़ की पेनल्टी लगाई गई है। वहीं पेनल्टी के बाद भी काम की गति जस की तस है। लगातार नोटिस दिए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि अगस्त के महीने में एनवीडीए दोबारा पेनल्टी ठोक सकता है।
आर्थिक स्तर पर भी पिछड़ा
मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में दिए गए जवाब के अनुसार 1842 करोड़ के प्रोजेक्ट पर काम करती आ रही कंपनी ने फरवरी 2016 तक 182 करोड़ (9.88 प्रतिशत) का ही काम किया था। चार महीनों में बमुश्किल 50 करोड़ के काम हुआ। कुल काम हुआ 232 करोड़ के 12.99 प्रतिशत ही काम हुए।
क्यों पिछड़ा काम
डिजाइन और डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) ही देर से बनाकर दी गई।
प्रोजेक्ट पर 15 दिसंबर 2014 से काम शुरू होना था, शुरू हुआ 25 फरवरी 2015 से।
भू-अर्जन और न्यायालयीन प्रकरणों में उलझे रहने के दौरान कंपनी को दूसरे फ्रंट खोलकर काम करना था जो नहीं हुआ।
पर्यावरणीय अनुमति मिलने के बाद भी अब तक सिर्फ पंपिंग स्टेशन एक-दो पर ही काम चल रहा है जबकि तीन-चार पर भी काम शुरू हो जाना था।
कंपनी को गंभीर तक नर्मदा लाने के बाद में 600 किलोमीटर लंबी डिस्ट्रीब्यूशन लाइन भी डालना है जिन पर काम शुरू नहीं।
प्रोजेक्ट की भव्यता को देखते हुए जितने मैदानी अमले की जरूरत है कंपनी के पास उतना अमला है नहीं।
कंपनी के प्रोजेक्ट इंचार्ज वाय.रमेश की बायपास सर्जरी हुई।
कटेंगे 5 हजार पेड़
प्रोजेक्ट के लिए 21 हेक्टेयर वनभूमि की जरूरत है। यहां से सागवान, अंजन, पलाश समेत कई प्रजातियों के करीब 5 हजार पेड़ों को बाधक के रूप में चिह्नित किया गया है जिन्हें जल्द हटाया जाएगा। बदले में एनवीडीए को 3 लाख पौधे रोपना होंगे। ये पौधे लैंड कंवर्जन के तहत मिलने वाली जमीन पर रोपे जाएंगे, वन विभाग की मदद से।

Thursday, July 7, 2016

किसानों का रास्ता बंद मामले में

राजस्व मंडल ने खारिज कर दी ज्योति की अपील
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
स्थानीय अधिकारियों को साधकर आईडीए की सड़क उखाड़ने के बाद भी बच निकले ज्योतिनगर गृह निर्माण सहकारी संस्था को राजस्व मंडल ग्वालियर ने जमीन दिखा दी। समीपवर्ती किसानों का खेत तक पहुंचने का रास्ता बंद करने पर तहसीलदार द्वारा ली गई आपत्ति को जायज करार देते हुए मंडल ने संस्था का आवदेन रद्द कर दिया है।
  ग्राम तेजपुर गड़बड़ी में ज्योतिनगर हाउसिंग सोसायटी की जमीन है। बीच से पुराना सरकारी रास्ता था। इस रास्ते से जुड़ा एक रास्ता और था जो बलजीतसिंह साहनी और एक अन्य किसान की जमीन  तक पहुंचने का रास्ता था। संस्था ने पहले आईडीए द्वार बनाई गई सड़क उखाड़कर फेंक दी और बाद में सीमांकन कराकर बाउंड्रीवाल का काम शुरू कर दिया था। बाउंड्रीवाल के साथ ही अपनी जमीन तक पहुंचने का रास्ता बंद होता देख किसानों ने आपत्ति ली। इस आपत्ति को 27 अपै्रल 2013 अपर तहसीलदार ने अपने आदेश में जायज माना था। इस आदेश के खिलाफ 2013 में ही संस्था ने राजस्व मंडल में निगरानी आवेदन लगाया जिसे बीते दिनों मंडल ने खारिज खारिज कर दिया। कहा कि किसानों को उनकी जमीन तक पहुंचने का रास्ता तो देना पड़ेगा।
किसान खेती नहीं कर रहे हैं, टाउनशीप बना रहे हैं
संस्था ने बाउंड्रीवाल बनाने के लिए आवेदन में कहानियां गढ़ी। कहा संस्था की जमीन से लगी बलजीतसिंह साहनी की सवा एकड़ जमीन है। साहनी अपनी जमीन पर खेती नहीं कर रहे हैं बल्कि वे वहां  टाउनशीप खड़ी करने की तैयारी में है। इस संबंध में टाउन एंड कंट्री विभाग में प्रारंभिक ले-आउट भी पास हो चुका है। इसीलिए व्यवहार प्रक्रिया सहिता की धारा 131 लागू नहीं होती।
नहीं पेश कर पाए सबूत
संस्था की झूठी कहानियों को भांपकर मंडल ने उनसे साहनी द्वारा स्वीकृत कराए गए ले-आउट प्लान की कॉपी सहित ऐसे प्रमाण मांगे थे जिनसे यह साबित हो कि मौके पर जमीन का गैर कृषि उपयोग हो रहा हो। मंडल ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया कि किसानों द्वारा उपलब्ध कराए गए फोटोग्राफ से स्पष्ट है कि जमीन पर खेती ही हो रही है। 

चंपू और चतूर की जोड़ी ने फिनिक्स कॉलोनी के आवासीय प्लॉटों पर बनाया स्कूल

अवैध नव आदर्श स्कूल में मनमानी की तालीम
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जमीनी हेराफेरी का गढ़ बन चुकी कैलोदहाला की फिनिक्स टाउन कॉलोनी के बच्चों को तालीम भी चंपू-चिराग चौकड़ी से बना अवैध स्कूल दे रहा है। तीन प्लॉटों को जोड़कर स्कूल बना और प्रस्तावित सड़क सहित अन्य दो प्लॉटों पर कब्जा करके स्कूल बसों की पार्किंग बना दी गई। पीछे के प्लॉट कब्जाकर मैदान बना दिया। स्वीकृत नक्शे से ज्यादा निर्माण किया। अब पड़ौसियों को परेशान किया जा रहा है ताकि वे ओनेपोने दाम पर मकान बेचकर चलते बने।
30 अक्टूबर 2010 को कैलोद हाला की 41.575 हेक्टेयर जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट से कॉलोनी के तीन अलग-अलग नक्शे मंजूर हुए थे। तीनों नक्शों में स्कूल के लिए तीन अलग-अलग जमीन आरक्षित है जबकि कॉलोनी में एक मात्र स्कूल बना प्लॉट नं. 1211, 1212 और 1213 को जोड़कर। इसके बाद स्कूल संचालक ने 1213 और 1214 के बीच से निकलने वाली 12 मीटर चौड़ी रोड पर कब्जा किया और गेट लगा दिया। 1214, 1215, 1248 और 1249 नंबर के प्लॉट व रास्ते पर स्कूल की बसों की पार्किंग बना दी है। लोगों ने आपत्ति ली तो स्कूल संचालक ने कहा कि जाकर कॉलोनाइजर से बात करो, मेरे आड़े आने की कोशिश मत करना।
धोखाधड़ी का आरोपी रह चुका है चंपू का ‘चतुर’
स्कूल का संचालक चतुरसिंह यादव है जो कि चंपू अजमेरा का खास है। यादव नव आदर्श विद्या निकेतन के नाम से वीणानगर में स्कूल चलाता था लेकिन वहां मकान मालिक की रजिस्ट्री पर लोन ले लिया था। मामले का खुलासा होने के बाद हीरानगर में केस दर्ज हुआ। जेल भी जाना पड़ा।
स्वीकृत के विपरीत निर्माण
‘युक्तियुक्तकरण’ से यादव ने प्लॉटों का संयुक्तिकरण करके स्कूल का नक्शा मंजूर करवाया। नक्शा जी+2 मंजूर हुआ था लेकिन मौके पर निर्माण हुआ जी+3 का । एमओएस भी हजम किया गया।
पीछे के प्लॉट को मैदान बना दिया
यादव ने तीन प्लॉट जोड़कर स्कूल बनाया और पीछे जो तीन प्लॉट थे प्लॉट नं. 1250 और 1251 पर भी कब्जा किया। इन दोनों प्लॉट को बच्चों के खेल मैदान के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
एक ने तो बेच दिया घर, दूसरा बेचने की तैयारी में
स्कूल बनने के बाद सड़क और चार प्लॉट जोड़कर जो पार्किंग बनाई गई वहां सिर्फ बसें खड़ी होती है जबकि स्कूल आने वाले टीचर्स और स्टूडेंट्स के वाहन खड़े होते हैं सामने वाले प्लॉट(1157) पर या बने हुए मकानों (1158 व 1159) के सामने। इससे लोगों को आने-जाने में दिक्कत होती है। लोग अपने वाहन नहीं खड़े कर पाते। इसीलिए एक मकान मालिक ने तो मकान का सौदा कर भी दिया है। उनका साफ कहना है कि अपना घर, अपना नहीं रहा। हम स्कूल मालिक के बंधक बनकर रह गए हैं। कुछ ही दिन हुए थे मकान बनाकर रहते हुए लेकिन जीना मुश्किल कर दिया। छह महीने से बेचने की फिराक में था लेकिन स्कूल देखकर कोई खरीदार भी नहीं मिल रहा था। जैसे-तैसे सौदा हुआ है। वहीं दूसरे पर स्कूल संचालक द्वारा दबाव बनाया जा रहा है ताकि वह भी बेचकर चला जाए।

हमें नहीं बताना काली कमाई, मार लो छापा

इनकम टैक्स की आईडीएस में लोगों की रुचि कम
45 प्रतिशत से घटकर 31 प्रतिशत हो सकती है स्कीम की टैक्स स्लैब
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मोदी सरकार के तमाम प्रयास और विभागीय प्रलोभन के बावजूद लोग आयकर के सामने अपनी काली कमाई की जानकारी नहीं देना चाहते। इनकम डिस्क्लोस्ड स्कीम (आईडीएस) में काली कमाई को सफेद करने के लिए 45 प्रतिशत की जो टैक्स स्लैब तय है वही लोगों को स्कीम से दूर कर रही है। लोग 45 प्रतिशत टैक्स चुकाने के बजाय सर्च के दौरान सरेंडर करके 33 प्रतिशत टैक्स चुकाना ज्यादा मुनासिब समझ रहे हैं। करदाताओं के इसी रवैये को देखते हुए सरकार भी आईडीएस को सफल बनाने के लिए टैक्स स्लैब कम कर सकती है।
आईडीए 1 जून से शुरू की। 30 सितंबर तक चलेगी। स्कीम के तहत 45 प्रतिशत टैक्स देकर अपनी काली कमाई को किताबों में दर्ज कराया जा सकता है। टैक्स 30 नवंबर जमा कराया जा सकता है। आयकर आयुक्त के सामने जो डिक्लेरशन फाइल किया जाएगा उसकी जानकारी गुप्त रखी जाएगी। लांचिंग के एक महीने बाद भी परिणाम संतोषजनक नहीं थे। इसीलिए मन की बात में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मोर्चा संभालना पड़ा। उन्होंने चेताया लेकिन उनकी चेतावनी का भी लोगों पर असर नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि इसीलिए इनकम टैक्स ने स्कीम के तहत जो 45 प्रतिशत की टैक्स स्लैब तय की है उसे जल्द ही घटाकर 31 प्रतिशत किया जा सकता है। इस संबंध में सभी आयकर मुख्य आयुक्तालयों से राय ली जा रही है।
मार लो छापा मारना है तो...
स्कीम के तहत टैक्स स्लैब 45 प्रतिशत है। राहत है सिर्फ सर्च या सर्वे की कार्रवाई से मुक्ति की। इन दोनों कार्रवाइयों के दौरान यदि व्यक्ति मौके पर ही सरेंडर कर दे तो 33 प्रतिशत टैक्स में ही काली कमाई की कम्पाउंडिंग हो जाती है। दोनों के बीच का अंतर है 12 प्रतिशत जो बहुत बड़ा है। इसीलिए इनकम डिसक्लोज करने से बेहतर विकल्प लोग सर्च और सर्वे की कार्रवाई को मानते है जो जरूरी नहीं कि साल-दो साल में ही हो। तब तक टैक्स की एवज में जो रकम आज जमा करवाई जाना है उस पर ब्याज ही अच्छा कमाया जा सकता है।
जटिल है प्रक्रिया...
10-15 साल पहले खरीदी गई किसी भी चल/अचल संपत्ति को यदि व्यक्ति बुक्स में लाना चाहता है तो डिक्लेरेश्न में उसकी जानकारी देना होगी। दिक्कत यह है कि 10-15 साल पहले जमीन की कीमत भले एक लाख रुपए रही हो लेकिन डिक्लेरेशन में वेल्युएशन आज की मार्केट वेल्यु के हिसाब से करना होगा। यदि मार्केट वेल्यु आज 1 करोड़ रुपए है तो आप पर 45 लाख रुपए की डिमांड निकाल दी जाएगी। जो बड़ा झटका है, किसी भी व्यक्ति के लिए। स्कीम में ऐसे कई इश्यू हैं जिन्हें टैक्स पेयर के हित में क्लीयर नहीं किया गया है।
ब्लैमेलिंग का खतरा भी..
डिसक्लोजर में व्यक्ति सभी जरूरी दस्तावेज लगा देता है। इसके बाद  भी यदि कोई दस्तावेज रह जाता है तो आयकर अधिकारी उसे ब्लैकमेल भी कर सकते हैं क्योंकि एक बार डिसक्लोजर फाइल करने के बाद वापस नहीं होता। अधिकारियों को आपकी काली कमाई के दस्तावेजी प्रमाण आप स्वयं दे देते हो।
मार्केट की खराब स्थिति
स्कीम के पर्याप्त परिणाम न मिलने की बड़ी वजह मार्केट में छाई मंदी भी है। मेन्युफेक्चरर, ट्रेडर, डिस्ट्रीब्यूटर, सेलर सभी मंदी की मार झेल रहे हैं। अभी रकम की उपलब्धता उतनी नहीं है जितनी की कुछ वर्षों पहले थी। इसीलिए लोग डिस्क्लोज करे भी तो क्या। कर भी दे तो जमा करने के लिए टैक्स की रकम भी तो हो।
33 प्रतिशत भी स्लैब तो परिणाम बेहतर होते
सर्च और सर्वे की कम्पाउंडिंग प्रक्रिया के आगे 45 प्रतिशत टैक्स स्लैब अट्रेक्टिव नहीं है। यदि इसे घटाकर 33 प्रतिशत भी किया जाता है तो डिसक्लोजर की संख्या बढ़ना तय है। स्कीम सोच-समझकर बनाई जाना चाहिए ताकि विफल न हो। स्कीम में कई इश्यू क्लीयर नहीं है। मंदी के मारे बाजार की स्थिति खराब है। स्कीम यदि दो-एक साल पहले आती तो ज्यादा बेहतर परिणाम देती।
अजीत जैन, सीए

फर्जी नक्शे से बिके फोनिक्स के 281 प्लॉट

तीन मंजूर नक्शों को जोड़ा और चौथा नक्शा बना दिया चंपू चौकड़ी ने
इंदौर. विनोद शर्मा ।
जैसे तुलसीनगर में प्लॉट कॉलोनी का फर्जी नक्शा दिखाकर बेचे गए हैं उसी तरह का फर्जी नक्शा रितेश उर्फ चंपू अजमेरा की कैलोदहाला स्थित फिनिक्स टाउन में भी बना है। इसी फर्जी नक्शे से चंपू चौकड़ी ने 281 प्लॉट बेचे। करोड़ों कमाए और प्लॉट होल्डरों की आंख में धूल झौंकी। ले-आउट मंजूर करने वाले टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से लेकर डावर्शन करने वाले जिला प्रशासन तक तमाशा देखते रहे।
30 अक्टूबर 2010 को कैलोद हाला की 41.575 हेक्टेयर जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट से कॉलोनी के तीन अलग-अलग नक्शे मंजूर हुए थे। तीन नक्शों को जोड़कर एक कॉलोनी बनी जिसमें कुल प्लॉट मंजूर हुए थे 2188 प्लॉट। 11.792 हेक्टेयर जमीन के पहले नक्शे में 497 प्लॉट थे, 17.625 हेक्टेयर जमीन के दूसरे नक्शे में 941 प्लॉट थे जबकि 12.158 हेक्टेयर जमीन के तीसरे नक्शे में 750 प्लॉट थे। बाद में भू-माफियाओं ने जो फाइनल नक्शा प्लॉट बेचने के लिए बनाया उसमें प्लॉट की संख्या बढ़ गई।
कैसे पकड़ में आई गड़बड़
विगत दिनों कॉलोनी के रहवासियों ने क्राइम ब्रांच को तीन अलग-अलग नक्शे दिए साथ ही वह नक्शा दिया जिससे प्लॉट बेचे गए। इस नक्शे में 11.792 हेक्टेयर जमीन के पहले नक्शे में उत्तर की तरफ प्रस्तावित एमआर-12 तक कॉलोनी की मेन रोड के दोनों तरफ बड़ी जमीन और जोड़कर प्लॉट काट दिए। तीनों नक्शों का मिलना जब चौथे नक्शे से किया तो पता चला कि इस फर्जी नक्शे में 281 प्लॉट बिना ले-आउट प्लान के ही सर्वे नं. 251,  254/3, 254/1,  256, 253/3, 252, 254/2 पर काट दिए।
खेल करोड़ों का
जो 281 प्लॉट बेचे गए है उन सबका औसत क्षेत्रफल 1250 वर्गफीट है। मतलब कुल 351250 वर्गफीट जमीन का सौदा किया। सौदा 500 रुपए वर्गफीट से भी हुआ है तो इसका मतलब यह है कि चंपू चौकड़ी ने 17.56 करोड़ का सौदा किया।
बड़ी बात यह है कि सार्वजनिक उपयोग की जमीन पर 150 से अधिक प्लॉटों की रजिस्ट्री क्षेत्रवासियों की आपत्ति के बावजूद करने वाले जिला पंजीयक कार्यालय ने बिना टीएंडसीपी और डायवर्शन देखे इन प्लॉटों की रजिस्ट्री कर दी।
क्यों गैरकानूनी
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ने जितनी जमीन का ले-आउट मंजूर किया है वही मान्य होगा। यदि कोई जमीन जोड़ना है तो उसके लिए जमीन जोड़कर नए सिरे से नक्शा मंजूर करना होता है। टीएंडसीपी होने के बाद डाइवर्शन शाखा से डाइवर्शन होता है। इसके बाद विकास शुल्क मंजूर कराना होता है। तब जाकर प्लॉट काटने और विकास करने की अनुमति मिलती है। यहां हर विभागीय प्रक्रिया का निर्धारित शुल्क जमीन के आकार के हिसाब से तय है।
मामला फिनिक्स टाउन का है।
प्लॉट नं. कुल
1, 2, 2
3 से 18 16
19 से 31 13
153 से 165 13
208 से 220 13
166 से 186 21
187 से 207 21
221 से 251 31
281 से 286 31
252 से 266 15
267 से 280 14
320 से 346 27
347 से 356 10
307 से 328 22
357 से 378 22
379 से 389 11

Tuesday, July 5, 2016

ड्रग्स के खिलाफ हर तीसरी बड़ी कार्रवाई मप्र में

मंदिरों से लेकर एज्यूकेशनल इंस्टिट्यूट तक फैला नशे का कारोबार
इंदौर. विनोद शर्मा।
पंजाब में फैली नशाखोरी की लत को बयां करती फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ की सफलता के बाद प्रदेश में लगातार बढ़ रहे नशे के कारोबार को देखते हुए ‘उड़ते मप्र’ के शुटिंग की जरूरत भी जताई जा रही है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार नार्कोटिक कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), डायरेक्टोरेट रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) और कस्टम ने तीन वर्षों में जितनी बड़ी कार्रवाई की है उनमें हर तीसरी कार्रवाई मप्र में हुई है। 600 करोड़ से ज्यादा की ड्रग्स पकड़ी गई। बड़ी बात यह है कि सभी कार्रवाई इंदौर, उज्जैन, नीमच और मंदसौर में ही हुई।
नशे ने यदि पंजाब की हालत बिगाड़ रखी है तो मप्र भी मजे में नहीं है। यहां भी नशाखोरी लगातार बढ़ रही है। आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी कॉलोनी-बस्तियों से लेकर इंडियन इंस्टिट्यूट आॅफ मैनेजमेंट (आईआईएम) जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थान तक भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। आईआईएम में तीन वर्षों में तीन नशे के मामले सामने आ चुके हैं जिनमें दर्जनभर स्टूडेंट्स के खिलाफ कार्रवाई हुई। बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन तो दूर एमवाय हॉस्पिटल, खजराना गणेश मंदिर और नीमच का भादवा माता मंदिर भी नशीले कारोबार से दूर नहीं है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में जिन कार्रवाइयों का जिक्र है उनमें से कुछ को यहीं अंजाम देकर हेरोइन और अफीम जब्त की गई है।
अपै्रल में ही पकड़ी 48 करोड़ की ड्रग्स
डायरेक्टोरेट आॅफ रैवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) ने पीथमपुर की एक बंद पड़ी निजी लैब में किराए पर चल रही ड्रग्स फैक्टरी से 200 किलो ड्रग्स और राऊ के सिलीकॉन सिटी के एक मकान से 36 किलो ड्रग्स पकड़ी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 48 करोड़ रुपए से ज्यादा है। इससे पहले 30 मार्च को रतलाम से 377.800 किलोग्राम अफीम का चूरा जब्त किया गया था।
मप्र में अलग-अलग पकड़ी गई ड्रग्स
पदार्थ मात्रा केस गिरफ्तारी
कोकिन 0 0 0
गांजा 3431.24 294 396
हशिश 8.91 9 14
हेरोइन 21.35 136 193
अफीम 506.84 41 71
2013- (41 प्रकरण में से 13 मप्र)
3 फरवरी- इंदौर 130 ग्राम हेरोइन जब्त की। दो गिरफ्तार।
20 सितंबर- 400 ग्राम चरस जब्त। तीन गिरफ्तार। मोटरसाइकिल जब्त।
20 दिसंबर- मोटरसाइकिल पर ले जाई जा रही 340 ग्राम हेरोइन जब्त।
7 अगस्त- नीमच-मंदसौर रोड से 7 किग्रा अफीम जब्त। एक गिरफ्तार।
17 अगस्त- नीमच से 141 किग्रा एसिटिक एन्हाइड्राइड जब्त। चार गिरफ्तार।
25 अगस्त- मंदसौर से 4.350 किग्र्रा अफीम जब्त। दो गिरफ्तार।
26 अगस्त- रतलाम से 115 ग्राम हेरोइन जब्त। एक गिरफ्तार।
29 अगस्त- मंदसौर से 17 किग्रा एसिटिक एनहाइड्राइड जब्त। दो पकड़ाए।
2 अक्टूबर- नीमच से 9.400 किग्रा अफीम जब्त। बाइक जब्त। एक गिरफ्तार।
13 अक्टूबर- मंदसौर से 22 किग्रा एसिटिक एन्हाइड्राइड जब्त। एक गिरफ्तार।
28 दिसंबर - दालोदा रोड से एक टवेरा से 443 किलोग्राम पोस्त भूस जब्त।
2014 (37 में से 9)
2 फरवरी- एमवायएच इंदौर से 200 ग्राम हेरोइन जब्त। एक गिरफ्तार।
11 सितंबर-रेलवे स्टेशन सियागंज रोड के बाहर से 100 हेरोइन जब्त। दो गिरफ्तार।
23 सितंबर- खजराना मंदिर से 400 ग्राम हेरोइन जब्त। एक गिरफ्तार।
14 सितंबर-नीमच से 9.500 किग्रा अफीम जब्त। 4 गिरफ्तार।
29 मार्च- सुआसरा बस स्टैंड से 21.500 किग्रा एसिटिक एन्हाइड्राइड जब्त। एक गिरफ्तार।
1 जनवरी- नीमच-चित्तौड़ा हाइवे स्थित केसरपुरा गांव से 3770.170 किलोग्राम पोस्त पाउडर से भरा एक ट्रक (आरजे32जी2070) पकड़ा था।
10 जनवरी-नीमच रेलवे स्टेशन से 500 ग्राम हेरोइन जब्त। एक गिरफ्तार।
21 जनवरी-नानाखेड़ा बस स्टैंड से 2.075 किग्रा हेरोइन जब्त। एक गिरफ्तार।
25 जनवरी- भादवा माता मंदिर से 7.350 किलोग्राम अफीम जब्त। जांच टीम पर ही हमला बोला। कोई गिरफ्तार नहीं हुआ।
17 फरवरी- भटखेड़ा फंटा नीमच से 4 किग्रा अफीम जब्त। एक गिरफ्तार।
2 जुलाई-नृसिंहपुर के श्रेष्ठ पेट्रोल पंप से एनसीबी इंदौर ने 284 किलोग्राम गांजा जब्त किया था।
2015 (32 मामलों में 11 मप्र से।)
31 अक्टूबर- इंदौर से फेन्सेडाइल कफ सिरप की 10 हजार बोतलें जब्त।
22 दिसंबर- इंदौर से 200 ग्राम हेरोइन जब्त। दो गिरफ्तार।
18 जनवरी- नीमच से 5.11 किलोग्राम अफीम पकड़ी। दो गिरफ्तार।
26 जनवरी-मंदसौर से 6.2 किलोग्राम अफीम पकड़ी। एक गिरफ्तार।
12 मई- रतलाम से 4.430 किलोग्राम अफीम पकड़ी। दो गिरफ्तार।
27 मई- मंदसौर से 2.700 किलोग्राम अफीम पकड़ी। चार गिरफ्तार।
27 अगस्त- उज्जैन से 820 ग्राम हेरोइन जब्त। दो गिरफ्तार।
24 सितंबर- मंदसौर से 350 ग्राम अप्लाराजोलर जब्त। एक गिरफ्तार।
25 सितंबर- नीमच से 1 किग्राम अफीम/हुंडई कार जब्त। दो गिरफ्तार।
27 सितंबर- गरोठ से 206 ग्राम हेरोइन जब्त। दो गिरफ्तार।
30 अक्टूबर- मंदसौर से 1.55 किग्रा अफीम जब्त। सिर्फ अल्टोकार पकड़ाई।



तालाब ने ‘कोर्ट’ को दिखा दी ताकत


चार र्इंच पानी में डूबो दी विवादित जमीन, बताई अपनी जद
इंदौर. विनोद शर्मा ।
अब तक हुई चार इंच बारीश ने शहरवासियों को सूरज के तल्ख तेवर से राहत दी है वहीं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे पीपल्याहाना तालाब की ताकत भी बढ़ा दी है। लोकसभा अध्यक्ष से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता सड़क से लेकर कोर्ट तक में लड़ाई लड़ रहे हैं। बात नहीं बनी। वहीं कागजी किस्से कहानियों को पीछे छोड़ सिर्फ चार इंच पानी के दम पर अपनी जद दिखाते हुए तालाब ने कोर्ट के निर्माण की वैधानिकता को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
राजस्व दस्तावेजों में पीपल्याहाना तालाब पीपल्याहाना गांव की सर्वे नं. 525 की  3.674 हेक्टेयर जमीन पर है। कोर्ट का निर्माण 526/1/1 और 526/1/2 पर हो रहा है। रिकार्ड के आधार पर पीडब्ल्यूडी को स्टेट लेवल एक्सपर्ट अप्राइजल कमेटी (एसईएसी) ने 20 शर्तों के साथ 11.161 हेक्टेयर जमीन पर कुल 144492 वर्गमीटर निर्माण की अनुमति दी थी। 18 मार्च 2016 को एनजीटी अपने आर्डर में भी शर्तों का जिक्र कर चुका है। इन शर्तों और तमाम आंदोलनों का दरकिनार करके भी देखें तो बुधवार की शाम तक सूखे नजर आ रहे तालाब ने गुरुवार की शाम को निर्माण और निर्माण के हिमाइतियों को अपनी ताकत और जमीन दिखा दी।
कैसे हो अब निर्माण...
एसईएसी के निर्देश और एनजीटी के आदेश के मुताबिक प्रोजेक्ट प्लानर (पीपी) को तालाब के फुल टैंक लेवल (एफटीएल) से 30 मीटर दूर तक ग्रीन बेल्ट छोड़ना होगा। किसी तरह का निर्माण नहीं कर सकता।
इंदौर विकास योजना 2021 की कंडिका 6.15.3 अनुसार बड़े तालाबों से हाई फ्लड लेवल (एचएफएल) से 60 मीटर और छोटे तालाब से 30 मीटर की दूरी तक किसी भी तरह का निर्माण नहीं हो सकता।
तेजी से बढ़ रहा है पानी...
बुधवार शाम हुई बरसात ने तालाब और तालाब से लगी उस जमीन को भी पानी से लबालब कर दिया है जहां जिला कोर्ट बनना है। गुरुवार की शाम भी अच्छी बरसात हुई जिससे आसपास के क्षेत्र का बरसाती पानी तेजी से तालाब का जलस्तर बढ़ा रहा है। अब एक तरफ क्षेत्रवासी एक साथ चार इंच बरसात के लिए दुआ कर रहे हैं तो दूसरी तरफ कंपनी प्रबंधन मिलीमीटर बरसात के नाम से भी कांपने लगी है।
तो काम बंद होना तय...
गुरुवार शाम तक मौसम की कुल 4 इंच बरसात हुई है जबकि बीते वर्षों के औसत से 40 से 45 इंच बरसात अभी बाकी है। यही पीडब्ल्यूडी और निर्माणकर्ता दिलीप बिल्डकॉन की बड़ी चिंता है। क्योंकि यदि एक बार काम बंद हुआ तो छह महीने से पहले शुरू होना नहीं है। इसमें चार महीने तो बरसात के हैं और दो महीने लेवल कम होने के।
खुले आसमान में बंद, बरसात होते ही काम शुरू
गुरुवार की शाम 4 बजे तक बाउंड्रीवाल का काम सुस्त था। कोई मशीन नहीं लगी थी। सभी की चिंता पानी के बढ़ते लेवल की थी। इसी बीच अचानक तेज बरसात शुरू हो गई जो 5.30 बजे तक जारी रही। बरसात थमते ही निर्माणकर्ता कंपनी ने पहले गिट्टी चूरी डालकर बाउंड्रीवाल तक पहुंचने के लिए अस्थाई सड़क बनाई और फिर मिक्सर, डम्पर और पोकलेन लगा दी ताकि जल्द से जल्द बाउंड्रीवाल  को पानी के लेवल से ऊंचा कर दिया जाए।

होना थी फेंसिंग, बनने लगी 525 मीटर लंबी वॉल

पानी के बाद प्रस्तावित जिला कोर्ट की वैधानिकता का पेंच
30 मीटर दूर होना था निर्माण, बीच तालाब में जारी काम
इंदौर. विनोद शर्मा ।
पीपल्याहाना तालाब से लगी विवादित जमीन के जलमग्न होने के बाद अब निर्माणाधीन जिला कोर्ट की वैधानिकता पर सवाल उठने लगे है। बीच तालाब में बाड और फेंसिंग के नाम पर 17220 वर्गफीट लंबी-चौड़ी रिटेनिंग वॉल बनाई जा रही है जबकि मास्टर प्लान 2021, मप्र स्टेट इन्वायरमेंट इम्पेक्टस असेसमेंट अथॉरिटी (एमपीएसईआईएए) से लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) तक तालाब की जमीन से 30 मीटर दूर तक किसी तरह के निर्माण की इजाजत नहीं देते।
स्टेट एक्सपर्ट अप्राइजल कमेटी (एसईएसी) ने 20 फरवरी 2016 को पीपल्याहाना तालाब से लगी जमीन पर जिला कोर्ट निर्माण को इन्वायरमेंट क्लीयरेंस (ईसी) दी थी। 11.161 हेक्टेयर जमीन पर कुल 144492 वर्गमीटर निर्माण की सशर्त अनुमति दी थी। 18 मार्च 2016 को एक आदेश में एनजीटी ने 20 शर्तों का स्पष्ट उल्लेख किया और उन्हीं शर्तों के पालन के साथ निर्माण को स्वीकारा। पहली शर्त थी कि तालाब के फुल टैंक लेवल (एफटीएल) से 30 मीटर की दूरी तक निर्माण नहीं हो सकता। ग्रीन बेल्ट विकसित करना होगा जबकि मौके पर जिस जगह निर्माण हो रहा है वह बीते कई वर्षों से एफटीएल का हिस्सा रही है। इसकी पुष्टि गुगल अर्थ से निकाली गई सेटेलाइट इमेज भी करती है।
लगाना थी बाड़ और बना दी रिटेनिंग वॉल
एसईएसी और एनजीटी की शर्तों के अनुसार निर्माण ऐजेंसी पश्चिम की ओर (तालाब की तरफ) सुरक्षा की दृष्टि से फेंसिंग कर बांध क्षेत्र में विकास कर सकती है। यहां न 525 मीटर (1722 फीट) लंबी और 10 फीट चौड़ी रिटेनिंग वॉल का जिक्र है और न ही विकास का मतलब रिटेनिंग वॉल के रूप में परिभाषित है। विकास का मतलब बांध क्षेत्र में पेड़ लगाना, ग्रीनरी विकसित करना है।
बोरिंग भी कर लिए...
शर्तों के अनुसार पानी की जरूरत नगर निगम के माध्यम से पूरी होगी। उत्खनन करके भू-जल का दोहन नहीं होगा जबकि अब तक निर्माण एजेंसी और कंपनी दो बोरिंग करवा चुकी है। नगर निगम के रिकॉर्ड के अनुसार अब तक निर्माणाधीन कोर्ट के लिए पानी नहीं दिया गया है।
अब तालाब का पानी गंदा करेगा
गुरूवार तक तालाब खाली था। निर्माण जब शुरू हुआ था तब भी तालाब सूखा था। अब एक तरफ जहां बरसात के साथ तालाब में पानी का स्तर बढ़ रहा है वहीं रिटेनिंग वॉल के निर्माण के कारण पानी दुषित भी हो रहा है। इसकी दो वजह है। पहली मटेरियल मिक्सर का गंदा पानी। दूसरा तरी में इस्तेमाल होने वाला पानी।
शर्तें जो बचाएगी तालाब
1- टाउन एंड कंट्री प्लानिंग द्वारा 11 फरवरी 2016 को दी गई अनुमति के अनुसार किसी भी तरह का निर्माण तालाब के हाई फ्लड लेवल(एचएफएल) से 30 मीटर की दूरी तक नहीं होगा।
2-निर्माण और संचालन के दौरान जीरो वेस्ट वॉटर डिस्चार्ज की व्यवस्था करना होगी। इतना ही नहीं किसी भी सूरत में ट्रीट किया हुआ पानी भी तालाब में नहीं छोड़ा जाएगा।
3-नगर निगम की सीवरेज लाइन से सीवर सिस्टम मिलाना होगा। किसी भी सूरत में गंदा पानी तालाब में नहीं छोड़ा जाएगा। नियमित रूप से पानी की गुणवत्ता की जांच होगी।
4-निर्माण एजेंसी को तालाब में एरेशन सिस्टम विकसित करना होगा ताकि पानी में आॅक्सीजन की मात्रा और पानी की गुणवत्ता न सिर्फ बनी रहे बल्कि सुधरे भी।
5-निर्माण एजेंसी को तालाब की मरम्मत और संरक्षण का काम पूरे तरीके से सुनिश्चित करना होगा और इसे लागू करने के लिए बजट में पर्याप्त प्रावधान करने होंगे। इसके साथ ही वर्षा जल पुनर्भरण भी सुनिश्चित करना होंगे। जिन खाइयों से पानी की आवक है उनके तल को कच्चा रखना है ताकि  पानी की निर्बाध आवक बनी रहे।
6-मौजूदा कॉलोनियों की मौजूदा सीवरेज व्यवस्था दक्षीण तरफ नहीं की गई है जिससे सीवेज उस नाले में बह रहा है जो सीधे तालाब से जुड़ा है। नगर निगम मेन लाइन में इस सीवेज की निकासी सनिश्चित करे।
7-प्रस्तावित भवन तालाब के केचमेंट एरिया में आ रहा है इसीलिए निर्माण एजेंसी पानी के बहाव को आसान बनाने के लिए स्कीम 140 की ओर से तालाब तक पानी पहुंचाने वाले चैनल को अपनी संपत्ति में से निकालना होगा। निर्बाध प्रवाह के लिए अंडरग्राउंड ग्रीट चेम्बर बनाए जिसमें मलबा न मिले।
8-तालाब और आसपास के क्षेत्र के साथ ही आसपास के वातावरण (पेड़-पौधे और जीव-जंतु) में छेड़छाड़ न हो।

होटल व रेस्टोरेंट से हर दिन बर्बाद हो रहा है 15 टन भोजन

 तो मिट सकती है छह हजार लोगों की भूख
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एक तरफ कई लोगों को एक वक्त का खाना नसीब नहीं हो रहा है वहीं इंदौर के होटल और रेस्टारेंट से ही हर दिन 15 टन खाना जाया हो रहा है। जिला प्रशासन द्वारा होटलों पर लगातार की जा रही कार्रवाई के दौरान यह बात सामने आई है। मन को दुखाने वाला यह आंकड़ा विडम्बनापूर्ण स्थिति को मानवतापूर्ण भावना के साथ तत्काल समाधान की जरूरत जता रहा है क्योंकि इस खाने का सदउपयोग 6000 जरूरतमंदों की भूख मिटा सकता है। बहरहाल, इंदौर के एक रेस्टारेंट कारोबारी ने ही भोजन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कराने के लिए सुप्रीमकोर्ट में जनहित याचिका लगाने की तैयारी शुरू कर दी है।
होटल, रेस्टोरेंट, ढाबे और पब के खिलाफ सरकारी अभियान सालभर से जारी है। कार्रवाई के दौरान यहां संचालित गैरकानूनी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है वहीं सामाजिक सरोकार रखते हुए अधिकारी यह भी जांचते रहे कि ऐसा कितना खाना वेस्ट हो रहा है जो होटल, रेस्टोरेंट, ढाबे या पब में ग्राहकों की प्लेट में नहीं जाता, सर्विंग बॉउल में ही रह जाता है। जिसे झूठन भी नहीं कह सकते। बावजूद इसके इस खाने को फेंक दिया जाता है। बीच में कुछ सामाजिक संस्थाओं ने भोजन संग्रहित करके जरूरतमंदों तक पहुंचाया भी लेकिन मीडिया की सुर्खियां मिलते ही अभियान बंद हो गए। बाद में होटलों के असहयोग की आड़ ले ली गई। ऐसे में जरूरत है प्रशासन की अगुवाई में भोजन संग्रहण की।
कैसे मिटेगी हजारों की भूख...
इंदौर शहर में होटल, रेस्टारेंट, पब, ढाबे तकरीबन 300 से ज्यादा हैं। इनमें से 150 ऐसे हैं जो देर रात तक ग्राहकों से गुलजार रहते हैं। सरकारी अनुमान के अनुसार दिनभर में औसत 5 किलोग्राम खाना भी सर्विंग बाउल में बचता है तो हर दिन का औसत 1500 किलोग्राम पहुंच जाता है। एक सामान्य व्यक्ति की डाइट 250 ग्राम है। इस हिसाब से 1500 किलोग्राम खाने का यदि सही उपयोग हो तो इससे उन 6000 जरूरत लोगों की भूख मिटाई जा सकती है जिन्हें एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता। 40 रुपए प्लेट से ही आंकलन करें  रोज 2.5 लाख और सालाना 8.76 करोड़ का खाना खराब हो रहा है।
अब शादी-पार्टियों का भी सर्वे होगा
होटल और रेस्टोरेंट से फिकने वाले खाने की बड़ी मात्रा सामने आने के बाद अब शादी, जन्मदिन की पार्टी, कॉर्पोरेट पार्टी और भंडारों में बचने वाले भोजन के आंकड़े का अनुमान भी लगाया जाने लगा है। एक अनुमान के अनुसार शादी के सीजन में बचने वाले भोजन की क्वांटिटी 30 टन से ज्यादा है।
क्यों बचता है भोजन
1- बड़ी तादाद में होटल-रेस्टारेंट ने हाफ प्लेट सिस्टम बंद कर दिया है। ऐसे में व्यक्ति को भूख भले हाफ प्लेट की हो लेकिन उसे दाल, चावल व सब्जी फूल प्लेट ही बुलाना पड़ेंगे।
2- बड़ी व चर्चित होटल-रेस्टारेंट में खाना महंगा रखकर क्वांटिटी ज्यादा रखी जाती है। जरूरत पूरी होने के बाद भी खाना बचता है।
3- शादी-पार्टियों में बनने वाले भोजन की वैराइटियां इतनी बढ़ गई है कि मैनकोर्स का 70 फीसदी भोजन भी लोग नहीं खा पाते। कई ऐसे तरह के पकवान होते हैं कि उन्हें एक दिन बाद भी नहीं खाया जा सकता है।
4- कुछ नए की चाह में नए पकवान व्यक्ति बुला तो लेता है लेकिन कई बार स्वाद समझ नहीं आता।
राष्ट्रीय संपत्ति घोषित हो भोजन
रेस्टारेंट की चेन संचालित करने वाले प्रकाश राठौर ‘पप्पू’ ने भोजन की बर्बादी के खिलाफ कमर कसी है। उन्होंने कुपोषित बच्चों के बारे में छपने वाले समाचारों के साथ ही होटल-रेस्टारेंट से बचने वाले भोजन के आंकड़ों का सर्वे करके जनहित याचिका की तैयारी की है। सुप्रीमकोर्ट में लगने वाली इस याचिका के माध्यम से भोजन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कराने की मांग की जाना है ताकि भोजन का दुरुपयोग कम से कम हो। इस सप्ताह केस फाइल हो जाएगा। राठौर का कहना है कि कीमत के साथ भोजन की क्वांटिटी कम रखी जाए तो ज्यादा खाना नहीं बचेगा। लोग जरूरत के हिसाब से खाएंगे। शादी-पार्टियों में विकल्प कम या फिर मेनकोर्स कम हो। दोनों बराबर होंगे तो 70 प्रतिशत भोजन बचना ही है।

15 करोड़ का विकास शुल्क लिया और कर गए हजम

चम्पू चौकड़ी का कारनामा
हर प्लॉट पेटे वसूले 62 हजार, न बिजली दी, न पानी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
2450 प्लॉट की कॉलोनी और ट्रांसफार्मर सिर्फ एक...। 250 से अधिक मकान बन चुके हैं। कोई 100 मीटर लंबी केबल टांगकर बिजली ले रहा है तो किसी को एक से डेढ़ किलोमीटर दूर तक केबल टांगना पड़ी है। यह हकीकत है मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा शिलन्यासित हुई फिनिक्स टाउन की जहां कागजों पर सुविधाओं  का सब्जबाग दिखाकर चंपू चौकड़ी विकास शुल्क पेटे 15 करोड़ रुपए वसूलकर हजम कर चुकी है।
अक्टूबर 2007 में हुई इन्वेस्टर्स समिट के दौरान फिनिक्स देवकॉन से एमओयू करने के बाद मुख्यमंत्री ने कॉलोनी का शिलान्यास किया था।  सुविधाओं के वादे के साथ बड़े-बड़े ब्रोशर दिखाकर लोगों को प्लॉट बेचे गए। आठ साल हो चुके हैं लेकिन कॉलोनी में अब तक न पेयजल के पते हैं। न सीवरेज के। न ही बिजली के। पूरी कॉलोनी में सिर्फ एक ट्रांसफार्मर और हाइटेंशन (एचटी) के खम्बों पर झूलते तार ही नजर आते हैं जिन में उलझकर कई मवैशी जान गवां चुके हैं। हवा के साथ बिजली की आवाजाही लगी रहती है। तारों के जंजाल के बीच अपने तार पहचानकर दुरुस्त करना बिना इलेक्ट्रीशियन की मदद के संभव नहीं है।
62000 रुपए/घर वसूला गया विकास शुल्क
जमीन की कीमत के साथ कॉलोनी के विकास शुल्क भी लिया गया है। 1000 वर्गफीट के प्लॉट पर 50 हजार और 1500 वर्गफीट के प्लॉट पर 75 हजार रुपए। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से स्वीकृत ले-आउट के अनुसार यहां 2303 प्लॉट थे जबकि बिल्डर ने बेचे हैं 2450 प्लॉट। यदि औसत 62000 रुपए/घर के हिसाब से भी वसूली हुई तो इसका मतलब यह है कि कुल 15.19 करोड़ रुपए वसूले गए।
टेम्प्रेरी कनेक्शन से ही कट गए चार साल
तकरीबन दो हजार तारों से जूझता जो एक ट्रांसफार्मर कॉलोनी में नजर आता है उस पर भी बिजली कंपनी ने टेम्प्रेरी कनेक्शन ही दिया था। कनेक्शन की वैधता सिर्फ एक साल होती है। जरूरत पड़ने पर इसकी अवधि बढ़वाई जा सकती है। यहां चार साल हो गए हैं इसी टेम्प्रेरी कनेक्शन से। मजे की बात यह है कि अब तक किसी ने समयसीमा बढ़ाने का आवदेन भी नहीं दिया है।
दो करोड़ में स्थाई होगा कनेक्शन
अस्थाई कनेक्शन को स्थाई कराने के लिए क्षेत्रवासियों ने बिजली कंपनी से भी संपर्क किया लेकिन अधिकारियों ने यह कहते हुए मना कर दिया कि कॉलोनी बड़ी है और ग्रीन बनाना पड़ेगा जिस पर दो करोड़ रुपए खर्च होंगे। कॉलोनाइजर यह पैसा चुका दे और कनेक्शन ले ले। खम्बे भी लगाना होंगे। उधर, 15.19 करोड़ वसूलकर बैठी चम्पू चौकड़ी दो रुपए खर्च करने को तैयार नहीं है। अब प्लॉटहोल्डर 2 करोड़ लाएं भी तो कहां से। वह भी तब जब विकास शुल्क पहले ही दिया जा चुका हो।
यह है सुविधाओं की कहानी
पानी :: चूंकि कॉलोनी में कॉलोनाइजर की तरफ से पानी की व्यवस्था नहीं है इसीलिए प्लॉट पर पहले बोरिंग होता है फिर मकान बनता है। बिना बिजली के बोरिंग भी नहीं चलते। एक टंकी बनी तो थी लेकिन कभी इस्तेमाल में आई ही नहीं।
गार्डन :: कॉलोनी में दो दर्जन गार्डन विकसित होना थे, एक भी गार्डन नहीं बना। क्षेत्रवासियों के प्रयास से कुछ बगीचे बचे हैं।
स्कूल :: पिछले हिस्से में टीएंडसीपी के ले-आउट के अनुसार स्कूल बनना था लेकिन नहीं बना।
सीवरेज :: 2450 प्लॉटों की इस कॉलोनी में आधा फीट डाया के पाइप की सीवरेज लाइन और डेढ़ फीट गहरे चेम्बर किसी मजाक से कम नहीं है।
सड़क :: बड़ा नाला पाइप में दबाकर मेन रोड बनाई गई है इसीलिए दो इंच बरसात में पानी ओवर फ्लो होकर पूरी सड़क पर डेढ़-दो फीट तक भर जाता है। सिर्फ एक सड़क होने के कारण लोग घर में कैद होकर रह जाते हैं।
(न सीवरेज ट्रीटमेँट प्लांट बना। न ट्रांसफर स्टेशन बना। न क्लब हाउस।)

‘मजाक बनाकर रख दिया मामले को’

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
क्राइम ब्रांच- सरकारी जमीन कहां है..? आरआई- देखते हैं, यहीं कहीं है..। क्राइम ब्रांच-जिस नाले पर कब्जा किया वह कहां है..? आरआई- यहीं है, छोटा था...। क्राइम ब्रांच- ऐसा लग रहा है आप लोग तैयारी करके नहीं आए हो। पूरे मामले को मजाक बना रखा है। गुरुवार को फिनिक्स टाउन पहुंची क्राइम ब्रांच और राजस्व अधिकारियों के बीच कॉलोनी को लेकर कुछ इसी अंदाज में तीखी बातचीत हुई। अंतत: क्राइम ब्रांच ने कह दिया कि दो दिन बाद यहीं मुलाकात होगी, तैयारी करके आना।
तय कार्यक्रम के तहत गुरुवार दोपहर एक तरफ क्राइम ब्रांच की टीम चिराग शाह और मनीषसिंह पंवार को फिनिक्स टाउन पहुंची तो दूसरी तरफ आरआई और पटवारी दस्तावेज लेकर पहुंचे। आरोपियों और उनके पीड़ितों के सामने क्राइम ब्रांच की टीम ने दस्तावेजों के आधार पर आरआई योगेंद्र राठौर और पटवारी अनिता कुंभकर से जानकारी चाही। दस्तावेज हाथ में होने के बाद भी दोनों अधिकारी सही तरीके से जवाब नहीं दे पाए। इस पर क्राइम ब्रांच के अधिकारी बिफर पड़े। उन्होंने कहा कि इन भुमाफियाओं को जो करना थे ये कर गए लोगों को हमसे उम्मीद है कमसकम हम तो सही से काम कर लें। आप लोगों का रवैया देखकर तो लगता ही नहीं कि आप केस में मदद कर रहे हैं। इस पर दोनों अधिकारियों ने कहा कि ऐसा नहीं है लेकिन दस्तावेज और मौका स्थिति समझना पड़ेगी। जवाब में क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने कहा कि ठीक है जो तैयारी करना है कर लो, दो दिन बाद फिर यहीं मुलाकात होगी। तब ऐसे मत करना।
आधे घंटे की जांच, नतीजा सिफर
दोनों टीम आधे घंटे तक कॉलोनी में रही। इस दौरान जांच के नाम पर सिर्फ आधी-अधूरी जानकारियां ही परौसी गई जिसे लेकर बार-बार बहस हुई। रहवासियों ने भी राजस्व अधिकारियों पर आरोप लगाया कि इन सबकी मिलीभगत से ही भू-माफियाओं ने मनमानी की है।