Thursday, May 12, 2016

आठवां सिंहस्थ करने आए रामदास मौनी बाबा

114 वर्ष की उम्र, 92 साल से सन्यासी, अब तक 40 से अधिक कुंभ-अर्धकुंभ-सिंहस्थ में किया स्नान
- 1982 तक लगातार की पद यात्रा
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
आज के दौर में जहां आदमी की औसत आयू 60 वर्ष मानी जाती है और 60 वर्ष की उम्र में ही व्यक्ति हारा हुआ नजरर आने लगता है। वहीं मंगलनाथ पुल के पास महात्यागी खालसा में वृंदावन से रामदास मौनी बाबा पधारे हैं जिनकी उम्र है 114 साल। बाबा न सिर्फ सिंहस्थ में शिप्रा स्नान करेंगे बल्कि यहां राम नाम का जाप करेंगे और लोगों को करवाएंगे।
बाबा के भक्तों के अनुसार बाबा का जन्म 1902 में आजमगढ़ जनपद के जमीरपुर गांव में हुआ था। 1924 में (22 वर्ष की उम्र) में उन्होंने घर-परिवार छोड़कर सन्यास का रास्ता अपना लिया था। अर्से तक जंगल में तपस्या की। पूरे देश में दिगम्बर यात्रा की। मौन रहे। इसीलिए मौनी बाबा कहलाए। तकरीबन 92 साल में सात सिंहस्थ और दो दर्जन से अधिक कुंभ-अर्धकुंभ करने वाले मौनी बाबा सिंहस्थ 2016 को लेकर भी उत्साहित है। वे तीन दिन पहले मंगलनाथ पहुंचे। यहां वे बाबा टाटम्बरी आश्रम के सामने स्थित महात्यागी खालसा पहुंचे। 1008 महामंडलेश्वर श्री सिताराम दास महाराज महात्यागी यहां के प्रमुख और मौनी बाबा के अजीज हैं।
सीताराम-सीताराम भज प्यारे..
बाबा सुबह-सुबह उठकर स्नान-ध्यान करके बैठ जाते हैं गादी पर जहां वे ध्यान मुद्रा में बैठते हैं और सीताराम-सीताराम जपते रहते हैं। उनके भक्त भी सामने बैठकर रामनाम जपते हैं। दोपहर 1 बजे तक भजन करते हैं। दो-ढाई घंटे आराम करके फिर भजन शुरू कर देते हैं जो शाम-देर रात तक चलते हैं। आहार के नाम पर स्थिति शुन्य है वे 24 घंटे में आधी कटौरी दूध पानी चम्मच से पीते हैं।
गजब का साहस
गुरूजी की त्वचा पूरी तरह मुर्झा सी गई है। सीना लटक चुका है। भौंहों के बाल सफेद और लंबे होकर आंखों के सामने तक आने लगे हैं। फिर भी न तो उनकी दिनचर्या में कभी बदलाव आया। बाबा बोलते हैें, शिषयों को  पहचानते हैं। ज्यादातर साधनारत रहते हैं। वे देखने में दूसरे संतों की तरह नजर नहीं आते। न भगवा कपड़ों से ढकें हैं न ही लंबी जटाए हैं लेकिन अभी दो दर्जन से अधिक जटाधारी साधु उनकी सेवा में लगे हैं। वे जो दान मिलता है, संतों में बांट देते हैं। इसीलिए उनके पास न कोई मंदिर है। न कोई मठ। वे वाराणसी के चौकघाट पर बने एक पुराने मंदिर में रहते हैं। दिल्ली के जंतर-मंतर पर जहां उन्होंने काफी अर्से तक तपस्या की, वहां उनके भ्रमण के दौरान किसी ने कब्जा कर लिया था।
पूर्णिमा स्नान के लिए काशी से ईलाहबाद तक पैदल
बाबा 1934 से 1951 के बीच लगातार माघ मेले में पूर्णिमा स्नान करने काशी से ईलाहबाद पैदल पहुंचे हैं। बाबा ने बताया काशी में सन्यास लेकर 1932 में चौकघाट में कुटिया बनाई। 1934 से त्रिवेणी तट पर आना शुरू किया। कल्पवास नहीं करता हूं। बस पूर्णमा का इंतजार करहता है। 1982 तक बाबा पैदल यात्रा ही करते थे। फिर उम्र ज्यादा होने के कारण उनके शिषयों ने उन्हें गाड़ी से लाना-ले जाना शुरू कर दिया। 

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