Wednesday, May 11, 2016

स्नान शुक्रवार दोपहर 2 बजे, लोग घाट पर जम गए गुरुवार 7 बजे से

- बिना बिछौने घाट पर ही सो गए श्रृद्धालू 
- दूर की पार्किंग ने लंबा चलाया लेकिन पांडालों की भव्यता और साधुओं के स्वांग ने थकने नहीं दिया 
इंदौर. विनोद शर्मा । 
सिंहस्थ 2016 के पहले शाही स्नान के लिए भले प्रशासन ने आम नागरिकों को दोपहर 2 बजे बाद का समय दिया हो लेकिन श्रृद्धालुओं ने गुरुवार शाम से ही रामघाट, नर्सिंग घाट, दत्त अखाड़ा घाट, भूखीमाता घाट और कैदारनाथ घाट पर डेरा डाल दिया था। अखाड़ों को लेकर की गई प्रशासनिक प्लानिंग से परे कई लोग कंकर-पत्थर और कीड़े-कांटे की चिंता किए बिना बिछौने के सौ गए तो कुछ  ने रात 10 बजे से ही सूरज के इंतजार में आसमान तांकना शुरू कर दिया था। 
शहरसीमा में लोगों का हुजुम कम देखकर लोग सिंहस्थ की सफलता पर टिका-टिप्पणी करते हुए आगे बढ़े तो मेला क्षेत्र की सड़कों पर पानी तरह फैले जन सैलाब ने उन्हें झूठा साबित कर दिया। मेला क्षेत्र को जोड़ने और परम्परागत घाटों की ओर जाने वाला शायद ही ऐसा कोई रास्ता था जहां पैर रखने की जगह आसानी से मिल रही हो। बिना धक्का-मुक्की के लोग चल रहे हों। घाट से पार्किंग तकरीबन 5 से 7 किलोमीटर दूर थी। फिर भी  रास्तेभर फैले पांडालों की भव्यता, साधु-संतों के सतरंगी रूप और भजन भाव का आनंद लेते ‘हर-हर महादेव’, ‘जय महाकाल’ और ‘नमामी शिप्रे’  का नारा लगाते लोगों का कारवां चलता रहा। मंजिल की ओर बढ़ता रहा। 
पूरे घाट पर सोये थे लोग 
प्रशासन जगह-जगह रात-2 बजे तक घाट खाली करने का अनुरोध कर रहा था। दूसरी तरफ लोग छह बजे से ही बोरिया-बिस्तरा और कपड़े का झोला माथे के नीचे दबाकर घाट पर आराम फरमा रहे थे। सिर्फ रामघाट और दत्त अखाड़ा घाट को छोड़ बाकी घाट सोने और बैठने वालों से भरे पड़े थे। कैदारानाथ घाट जो कि दत्त अखाड़ा मुख्य द्वार के सामने आता है वहां रात 12 बजे पैर रखने की जगह नहीं थी। 
घाट पर ही शुरू हुआ भोजन-भंडारा
दूर से आए ग्रामीण घर से ही पूड़ी-सब्जी-अचार के पैकेट बनाकर लाए थे। लंबी पदयात्रा के बाद जब घाट पर पहुंचे और जगह मिली तब लंबी सांस ली। इसके बाद पहले शिप्रा को प्रणाम किया। हाथ-पैर धोये, आचमन किया और भोजन शुरू कर दिया। भोजन करने के बाद सब आराम में लग गए ताकि सुबह जल्दी उठे और जल्दी स्नान करें। 
कुछ नागा साधु भी इस घाट पर डेरा डालकर बैठे थे।  अमरकंटक से आए चार नागाओं की एक मंडली ने मिट्टी के तीन बड़े-बड़े पत्थर उठाए। जमाए। अंदर कंडा और लकड़ी डाली। आग लगाई। चुल्हा बनाया। एक वक्त के अंगारों को बाहर निकाला और उस पर रोटी-बाटी सेक ली। फिर कंडे लगाए और पहले से उबाल कर रखे बैंगन-आलू को छोटी कड़ाई में डालकर री-फ्राई कर दिया। छोटी-छोटी मस्त अंगारे पर सिकी रोटियों पर घी लगाया और परोसगारी शुरू कर दी। 
आधी रात को लगी झाडू, धूले घाट 
चूंकि दत्त अखाड़े पर सन्यासी और रामघाट पर वैष्णव बैरागी स्नान करना है और उनके स्नान से पहले कोई यहां स्नान नहीं कर सकता। इसीलिए रात 11 बजते ही इन दोनों घाट से लोगों को पुलिस ने बिदा करना शुरू कर दिया। उधर, उज्जैन नगर निगम और ठेकेदार लल्लूजी एंड संस के सफाईकर्मियों ने घाट की झाडू लगाना शुरू कर दी। इसके बाद घाट को पानी से धोना शुरू कर दिया। हवा और लोगों के जुते-चप्पल के साथ चिपकी धूल जैसे ही पानी से साफ हुई दोनों ही घाट पर लगे धोलपुरी लाल पत्थरों से घाट की लालिमा बढ़ गई। 
आने-जाने के  अलग रास्ते
भीड़ मैनेजमेंट के लिए रामघाट पर आने-जाने की व्यवस्था अलग-अलग कर दी गई। दत्त अखाड़ा द्वार के पास से रामघाट की ओर से आने का रास्ता था। घाट तरफ जाने के लिए छोटी रपट का इस्तेमाल किया जा रहा था। 
रास्तों पर लगी वाहनों की भीड़ 
पार्किंग को लेकर पुलिस की प्लानिंग गुरूवार को जबरदस्त गड़बड़ाई। चिंतामण रोड, बड़नगर रोड, सादलपुर रोड, गोनसा रोड, भैरवगढ़,  उन्हेल रोड, आगर रोड की ओर सहित जितनी सड़कें थी वहां शुरूआत में लोगों को नहीं रोका गया। बाद में उन्हें अंदर भी जाने नहीं दिया। लोग कभी विकल्प तलाशते तो कभी  ऐसे रास्ते जहां पुलिस रोके टोके नहीं। इन सब चक्कर में मेला क्षेत्र में आने वाले हर मार्ग पर लोगों की भीड़ लग गई। 

No comments:

Post a Comment