जलती चिता, ...और ‘मिर्ची यज्ञ’
चक्रतीर्थ महाश्मशान से विनोद शर्मा ।
शिप्रा के तट पर स्थित चक्रतीर्थ महाश्मशान में बुधवार रात नौ बजे जहां छह चिताएं जल रही थीं, वहीं तैयारी चल रही थी तांत्रिक यज्ञ की। मां बगुलामुखी के लिए पीले फूल और भगवान भैरव के लिए लाल गुलाब का त्रिकोण बनाया गया। त्रिकोण के बीच कुंकुम से श्रीयंत्र बनाया गया। फिर लकड़ी और कंडे जमाए गए। रात 10 बजे लाल मिर्च-महुए, पीली सरसों, गूगल, लौंग, नमक, नीबू, सरसों के तेल की आहुति के साथ यज्ञ शुरू हुआ। मंत्रों के साथ आहुतियां रात 11.25 बजे तक चलती रहीं। सिंहस्थ पर मंडराए चांडाल योग और श्रद्धालुओं की बलाएं दूर करने के मकसद से यह यज्ञ किया गया। खास बात यह थी कि मिर्ची जलती रही, लेकिन उसकी धांस ने किसी को परेशान नहीं किया।
यज्ञ की तैयारियां रात 8 बजे से शुरू हो गई थीं। 9 बजे तक श्रीयंत्र-त्रिकोण बन गए थे। नींबू, लौंग और सिंदुर से पहले त्रिकोण का बंधन किया गया। माथे पर काली पगड़ी, काले कपड़े, गले में रुद्राक्ष-मुंड मालाएं और हाथ में भैरव दंड लिए गुरु अचलनाथ और आंध्रप्रदेश से आए शिव बाबा जिस सिंदूर से बंधन किया था, उसी से तिलक लगा रहे थे। वहीं महाकाल तिलकधारी बाबा उड़द के आटे, इत्र, ब्रांडेड शराब, गंगा जल और लौंग से पुतला (मानव तत्व के रूप में) बना रहे थे ताकि सभी की बला पुतले पर उतारी जा सके। इसके बाद अचलनाथजी ने एक चिता से जलती लकड़ी उठाई और अग्नि प्रवाहित की। फिर पीली सरसों उठाई और मंत्रों के साथ उसे चारों दिशाओं में फेंका गया। इधर, तिलकधारीजी कभी स्वयं चीलम पीते, कभी अपने भैरव दंड को शराब पिलाते, कभी सिगरेट।
अब शुरू हुई आहुतियां
रात 10.10 बजे आहुतियों का दौर शुरू हुआ। लकड़ी पर भैरव दंड रखा गया। फिर उठाया, शराब पिलाई। आहुतियां शुरू हुर्इं। तिलकधारी और शिव बाबा मिर्ची की आहुति देते रहे। अचलनाथजी ने राल-नमक-महुए और लौंग की आहुति दी। तिलकधारीजी भैरवदंड को सिगरेट और शराब पिलाते रहे मिर्ची के साथ शराब-नीबू की आहुति भी देते रहे। साथ-साथ शराब-सिगरेट भी पीते रहे। कभी धीरे-धीरे मंत्र बोलते हुए भैरव दंड घुमाते। कभी जोर-जोर से मिर्ची डालते। सरसों के तेल की सात बोतलें (एक-एक किलोग्राम) थीं, उनसे भी आहुति दी गई।
इंजीनियरिंग छोड़ शवसाधना कर रही
इंजीनियरिंग छोड़कर शवसाधना सीखने आई रश्मि (योगिनी कालीनाथ) ‘जो आंध्रप्रदेश की हैं’, भी त्रिकोण के तिकोने पर बैठी थीं। अचलनाथजी ने उन्हें भी मिर्ची का बोरा थमा दिया और जितनी आहुति दे सकती हों, उतनी दो यह कहते हुए उन्हें अग्निकुंड के पास खड़ा कर दिया। इसके बाद आसपास खड़े लोगों को भी आहुति डालने दी गई। जोर-जोर से मिर्ची और नमक के साथ सरसों के तेल की आहुतियों का दौर चलता रहा, जो रात 11.10 बजे संपन्न हुआ। पूर्णाहुति शराब और सरसों के तेल के साथ नीबू से दी गई।
चिता में मिर्ची-नमक की आहुति
यज्ञ में आहुति देने के साथ ही तीनों साधु एक जलती चिता के पास पहुंचे। पहले तिलकधारीजी ने डंड घुमाकर मिर्ची और शराब की आहुति दी। फिर शिव बाबा ने। इसके बाद अचलनाथजी ने नमक की आहुति दी।
दिन में सलाइन चढ़ी, रात को आहुति देने पहुंच गए
राजस्थान के बारां जिले से भी सिंहस्थ के लिए रमन गिरी अघोरी आए हुए हैं, जो हर्निया की बीमारी से ग्रस्त हैं। दिन में अस्पताल में भर्ती थे, जहां उन्हें बोतलें चड़ रही थीं। इसी दौरान उन्होंने यज्ञ का सुना और रात को आहुति देने पहुंच गए। उनके हाथ में पट्टी तक बंधी हुई थी। उन्होंने नीबू और सरसों के तेल की आहुति दी।
...ताकि नजर उतरे सिंहस्थ की
40 दिन से नंगे पैर साधना कर रहे हैं। हर दिन 11 किलोग्राम मिर्ची की आहुति देंगे। 30 दिन तक नियमित यज्ञ चलेगा। कुल तीन क्विंटल मिर्ची और 210 किलोग्राम सरसों के तेल की आहुति दी जाएगी। बाकी तत्व अलग हैं। कुल मिलाकर मकसद एक ही है सिंहस्थ सुखद हो।
महाकाल तिलकधारी
चक्रतीर्थ महाश्मशान से विनोद शर्मा ।
शिप्रा के तट पर स्थित चक्रतीर्थ महाश्मशान में बुधवार रात नौ बजे जहां छह चिताएं जल रही थीं, वहीं तैयारी चल रही थी तांत्रिक यज्ञ की। मां बगुलामुखी के लिए पीले फूल और भगवान भैरव के लिए लाल गुलाब का त्रिकोण बनाया गया। त्रिकोण के बीच कुंकुम से श्रीयंत्र बनाया गया। फिर लकड़ी और कंडे जमाए गए। रात 10 बजे लाल मिर्च-महुए, पीली सरसों, गूगल, लौंग, नमक, नीबू, सरसों के तेल की आहुति के साथ यज्ञ शुरू हुआ। मंत्रों के साथ आहुतियां रात 11.25 बजे तक चलती रहीं। सिंहस्थ पर मंडराए चांडाल योग और श्रद्धालुओं की बलाएं दूर करने के मकसद से यह यज्ञ किया गया। खास बात यह थी कि मिर्ची जलती रही, लेकिन उसकी धांस ने किसी को परेशान नहीं किया।
यज्ञ की तैयारियां रात 8 बजे से शुरू हो गई थीं। 9 बजे तक श्रीयंत्र-त्रिकोण बन गए थे। नींबू, लौंग और सिंदुर से पहले त्रिकोण का बंधन किया गया। माथे पर काली पगड़ी, काले कपड़े, गले में रुद्राक्ष-मुंड मालाएं और हाथ में भैरव दंड लिए गुरु अचलनाथ और आंध्रप्रदेश से आए शिव बाबा जिस सिंदूर से बंधन किया था, उसी से तिलक लगा रहे थे। वहीं महाकाल तिलकधारी बाबा उड़द के आटे, इत्र, ब्रांडेड शराब, गंगा जल और लौंग से पुतला (मानव तत्व के रूप में) बना रहे थे ताकि सभी की बला पुतले पर उतारी जा सके। इसके बाद अचलनाथजी ने एक चिता से जलती लकड़ी उठाई और अग्नि प्रवाहित की। फिर पीली सरसों उठाई और मंत्रों के साथ उसे चारों दिशाओं में फेंका गया। इधर, तिलकधारीजी कभी स्वयं चीलम पीते, कभी अपने भैरव दंड को शराब पिलाते, कभी सिगरेट।
अब शुरू हुई आहुतियां
रात 10.10 बजे आहुतियों का दौर शुरू हुआ। लकड़ी पर भैरव दंड रखा गया। फिर उठाया, शराब पिलाई। आहुतियां शुरू हुर्इं। तिलकधारी और शिव बाबा मिर्ची की आहुति देते रहे। अचलनाथजी ने राल-नमक-महुए और लौंग की आहुति दी। तिलकधारीजी भैरवदंड को सिगरेट और शराब पिलाते रहे मिर्ची के साथ शराब-नीबू की आहुति भी देते रहे। साथ-साथ शराब-सिगरेट भी पीते रहे। कभी धीरे-धीरे मंत्र बोलते हुए भैरव दंड घुमाते। कभी जोर-जोर से मिर्ची डालते। सरसों के तेल की सात बोतलें (एक-एक किलोग्राम) थीं, उनसे भी आहुति दी गई।
इंजीनियरिंग छोड़ शवसाधना कर रही
इंजीनियरिंग छोड़कर शवसाधना सीखने आई रश्मि (योगिनी कालीनाथ) ‘जो आंध्रप्रदेश की हैं’, भी त्रिकोण के तिकोने पर बैठी थीं। अचलनाथजी ने उन्हें भी मिर्ची का बोरा थमा दिया और जितनी आहुति दे सकती हों, उतनी दो यह कहते हुए उन्हें अग्निकुंड के पास खड़ा कर दिया। इसके बाद आसपास खड़े लोगों को भी आहुति डालने दी गई। जोर-जोर से मिर्ची और नमक के साथ सरसों के तेल की आहुतियों का दौर चलता रहा, जो रात 11.10 बजे संपन्न हुआ। पूर्णाहुति शराब और सरसों के तेल के साथ नीबू से दी गई।
चिता में मिर्ची-नमक की आहुति
यज्ञ में आहुति देने के साथ ही तीनों साधु एक जलती चिता के पास पहुंचे। पहले तिलकधारीजी ने डंड घुमाकर मिर्ची और शराब की आहुति दी। फिर शिव बाबा ने। इसके बाद अचलनाथजी ने नमक की आहुति दी।
दिन में सलाइन चढ़ी, रात को आहुति देने पहुंच गए
राजस्थान के बारां जिले से भी सिंहस्थ के लिए रमन गिरी अघोरी आए हुए हैं, जो हर्निया की बीमारी से ग्रस्त हैं। दिन में अस्पताल में भर्ती थे, जहां उन्हें बोतलें चड़ रही थीं। इसी दौरान उन्होंने यज्ञ का सुना और रात को आहुति देने पहुंच गए। उनके हाथ में पट्टी तक बंधी हुई थी। उन्होंने नीबू और सरसों के तेल की आहुति दी।
...ताकि नजर उतरे सिंहस्थ की
40 दिन से नंगे पैर साधना कर रहे हैं। हर दिन 11 किलोग्राम मिर्ची की आहुति देंगे। 30 दिन तक नियमित यज्ञ चलेगा। कुल तीन क्विंटल मिर्ची और 210 किलोग्राम सरसों के तेल की आहुति दी जाएगी। बाकी तत्व अलग हैं। कुल मिलाकर मकसद एक ही है सिंहस्थ सुखद हो।
महाकाल तिलकधारी
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