Thursday, May 12, 2016

गुरूभाई को हुई सोराइसिस, दवा खोज वेद बन गए महामंडलेश्वर

अब तक 10 हजार लोगों का कर चुके हैं ईलाज 
 उज्जैन से विनोद शर्मा ।  
अपने गुरू भाई को सोराइसिस से तड़पता देख दुनियाभर के हकीमों और आयुर्वेदाचार्यों की किताबें पढ़ डाली। दवा खोजी और ईलाज कर दिया। गुरू भाई के स्वस्थ्य होने के बाद न दवा रूकी, न ही इस दवा को खोजने वाले सहस्त्रधारा देहरादून से आए महामंडलेश्वर महेशानंद गिरी का हाथ रूका। स्वामीजी सोराइसिस के 10 हजार से अधिक  गंभीर रोगियों को अब तक ठीक कर चुके हैं जबकि 5 हजार लोगों का ईलाज जारी है। 
सदावल मार्ग पर बाइसा के आश्रम के ठीक सामने सोमेश्वर धाम। यहां मुख्य द्वार पर सोराइसिस पीड़ितों के फोटो लगे हैं। एक तरफ भागवत कथा चल रही है तो दूसरी तरफ एक कक्ष में महामंडेलश्वर महेशानंद जी पीड़ितों को देखते नजर आते हैं। स्वामी जी ने बताया कि हमारे बड़े गुरुभाई थे जो कि अब ब्रह्मलीन हो गए। शिक्षा-दीक्षा के बाद मैंने शास्त्री की आयुर्वेद से। आश्रम पद्धति से आचार्य किया। उसके बाद तपस्या करने चला गया। लौटा तब तक उन्हें सोराइसिस हो चुका था। बहुत पीड़ित थे। उनकी पीड़ा ने ही मुझे सोराइसिस की भयावहता से परिचित करा दिया। युनानी वेद लुकमान हकीम की उर्दु किताबों को अनुवाद करवाकर पढ़ा। पतंजली, धनवंतरी और च्यवन ऋृषि की किताबें पढ़ी। आयुर्वेद के नुस्के पढ़े। इसके बाद बीमारी का निदान मिला। 
सोराइसिस साधना और पीड़ित हो गए भगवान
गुरुभाई ठीक हो गए। इसके बाद से ही मैंने इस बीमारी से लड़ाई को ही साधना और पीड़ितों को ही भगवान माना है। मैं उनकी सेवा करता हूं वे ठीक होते हैं तो लगता है कि ईश्वर प्रसन्न हो गए। ज्ञान की गंगा सभी पांडालों में बह रही है। हमारे यहां भी कथा जारी है लेकिन मैं अपना ज्यादातर वक्त पीड़ितों की सेवा के लिए ही देता हूं।  दिव्यांग, गरीब, अनाथ, असाय, साधू, संत और फकीर को नि:शुल्क दवा दी जाती है। यूं एक महीने के डोज की कीमत 3 हजार रुपए है। सिंहस्थ में सभी के लिए निशुल्क है। 
यहां पानी गंदा और लोगों की व्यस्तता ज्यादा
अब तक वे 250 से अधिक मरीज देख चुके हैं। पीड़ितों की संख्या देख वे भी हैरान हैं। उन्होंने 25-50 का ही अनुमान लगाया था। उनकी मानें तो प्रकल््प 20 अपै्रल से शुरू हुआ है। अब तक इतने पीड़ित। प्रकल्प 25 मई तक रहेगा। तब तक इनकी संख्या 500 तक जा सकती है। वे दो टूक शब्दों में कहते हैं कि पीड़ितों की इस संख्या से साफ है कि यहां पानी की गुणवत्ता गड़बड़ है। यह बीमारी ज्यादातर दुषित जल, केमिकल युक्त फल-सब्जियों के इस्तेमाल और नियम समय के विपरीत भोजन करने से होती है। 
मां के गर्भ से मिल जाती है बीमारी 
पीड़ित को रोग मां के गर्भ से मिल सकता है। गर्भ के दौरान पाचन क्रिया या हाजमा खराब होने की स्थिति में  महिलाओं को खटाई भाती है या फिर मिट्टी। गांव में महिलाएं बीड़ी तक पीती हैं। जिससे उनके पेट में पित्त उत्पन्न हो जाता है जिसका असर भ्रूण पर पड़ता है। जो जन्म के बाद आगे चलकर चर्म रोग और बाद में सोरायसिस से पीड़ित हो जाता है। 
क्या है सोराइसिस
सोरायसिस एक प्रकार का चर्म रोग है जो पित्त से उत्पन्न होता है। वैसे तो चर्म रोग 64 प्रकार के होते हैं लेकिन इनमें सोरायसिस का मुख्य लक्षण चर्म रोगियों को शरीर पर हल्के दाने तथा उसमें सतत खुजली चलना होता है। खुजली से परेशान व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेता है। 
सबसे बड़ा है परहेज व सावधानी
रोटी : गेहूं की रोटी, अंकुरित चने, दलिया, मिस्सी रोटी ही लें। 
सब्जी : गाजर, मटर, पत््तेदार सब्जियां, आलू, लौकी, तुराई, व बंद गोबी। 
दाल : सिर्फ मुंग की दाल। 
तड़का : देश घी या रिफाइंड आॅइल। हरी मिर्च, प्याज, हल््दी, नमक, जीरा
फल : सेब, चिकू, पपीता, अमरूद ही। 
चाय: गाय का दूध शुद्ध फिल्टर पानी भैंस के दूध में चाय की हल्की पत्ती। 
मीठा : मिठा खंड, चीनी बूरा, पेठे

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