Thursday, May 12, 2016

मंदिर की जमीनी जंग ने महंत को बनाया ‘सुप्रीमकोर्ट’

दत्त अखाड़े में चौकाता है नागा साधु का अनौखा नाम
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
कम्प्यूटर, पायलेट, गोल्डनगिरी, एन्वायरमेंट जैसे चित्र-विचित्र नाम वाले बाबाओं के बीच सिंहस्थ 2016 के लिए दत्त अखाड़ा क्षेत्र में एक सन्यासी और है जिनकी पहचान है सुप्रीमकोर्ट बाबा के रूप में।  तराना के तिलभांडेश्वरमहादेव मंदिर की कृषि भूमि को कब्जामुक्त कराने के लिए लड़ी गई न्यायालयीन लड़ाई ने महंत प्रकाशानांद भारती को सुप्रीमकोर्ट बाबा बना दिया। श्री शंभू पंच दशनाम जूना अखाड़े के इस फुर्तीले नागा साधु ने कब्जेदारों को तहसील कोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक चुनौती दी। हर जंग जीती भी। सुप्रीमकोर्ट में केस जीतने के बाद भी सरकार 10 वर्षों में मंदिर से कब्जे नहीं हटा पाई जिसे लेकर बाबा को आज भी मलाल है। हालांकि जंग सतत जारी है। 
    दत्त अखाड़ा क्षेत्र की चार मढ़ी में 20 बाय 10 के तकरीबन दो दर्जन तंबू हैं। इन्हीं में से एक है प्रकाशानंद भारती का तंबू। जहां हल्दी-कुकुम से सजी दर्जनों तेड़ी-मेड़ी लकड़ियों के साथ तंबू की दीवार और वहीं खड़ी कार पर लिखा सेक्शन (नं.32) और कोर्ट नंबर-7 के साथ सुप्रीम कोर्ट नागा बाबा नाम हर आते-जाते व्यक्ति को चौका रहा है। इस नाम के पीछे की कहानी को समझने के लिए दबंग दुनिया ने 1987 में मंदिर के प्रमुख पुजारी बने इन महंत से बात की। भगवान को उनकी जमीन दिलाने के लिए उनके गुरू देवानंद गिरी ने 80 साल पहले जिस जंग का आगाज किया था उसे महंतजी ने तराना के तहसीलदार से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक जारी रखा। इस लड़ाई में पुलिस और प्रशासन की यातनाएं सह चुके प्रकाशानंद का हौंसला आज भी मजबूत है उन्होंने प्रशासन को चेता दिया है कि यदि मंदिर की जमीन खाली नहीं कराई गई तो वे सिंहस्थ बाद समाधि ले लेंगे। हालांकि अब उनकी इस लड़ाई में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी और जूना अखाड़े के प्रमुख हरिगिरी महाराज भी हैं। अखाड़ा परिषद ने इस संबंध में मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक से गुहार लगा दी है। 
पुजारी भी स्वयं और वकील भी
जमीन का मामला इतना उलझा हुआ है कि अब कोई वकील भी उनकी पेरवी नहीं करता। हालांकि चूंकि मंदिर की जमीन सरकारी होती है इसीलिए सरकारी वकील जरूर लगे हुए हैं। बावजूद  इसके कब्जेदारों पर कार्रवाई को लेकर सरकार का रवैया सुस्त है। इसीलिए 14 नवंबर 2005 में सुप्रीमकोर्ट से केस जीतने के बावजूद अब तक उन्हें कब्जा नहीं दिलाया गया। उलटा, 20-25 लाख रुपए लेकर फाइल मुंह बंद रखने की सलाह देते रहे। इसीलिए स्वयं महंत ने अपने केस की पेरवी की। इसीलिए उन्हें जज भी नाम से जानते हैं। 
हमले और पुलिस यातनाएं तक सही
1662 में मंदिर का जीर्णोद्धार इंदौर की लोकमाता अहिल्या ने कराया था। होलकर रियासत ने 1927 में देवानंद भारती को 16.348 हेक्टेयर जमीन पूजा अर्चना के लिए दी थी। इस जमीन पर करीब 10 परिवारों का कब्जा है। इसीलिए जमीन को लेकर लड़ाई सिर्फ कानूनी नहीं रही। यहां हथियार भी चले हैं जिसमें महंत प्रकाशानंद के सिर पर गंभीर चोट आई। हाथ-पैर में भी घाव लगे। कब्जेदारों की शिकायत पर पुलिस ने केस दर्ज करके बाबा को जेल तक पहुंचा दिया लेकिन बाबा के चमत्कारों ने जेलर तक की नींद उड़ा दी। 
लेते हैं समाधि 
सिंहस्थ में भी अपनी कानूनी लड़ाई के सभी दस्तावेजों के साथ पहुंचे प्रकाशानंद ने अपने शिविर में 11 फीट गहरा और तीन फीट चौड़ा गड्ढा खुदवा रखा है। उस पर चौकोर ढक्कन है जिसमें बीच में यज्ञ कुंडी बनी है जो हमेशा जलती रहती है। बाबा गड्डे में जाकर समाधि लगाकर बैठ जाते हैं और ऊपर से ढक्कन लगवा लेते हैं। इसी ढक्कन की कुंडी पर उनके शिष्य यज्ञ करते रहते हैं। कभी तीन घंटे की बैठक तो कभी आठ घंटे की बैठक। 
सरकार जमीन अपनी निगरानी में रखे लेकिन कब्जे में ले तो सही
बाबा ने कहा कि चूंकि मेरे गुरू इस जमीन लड़ाई लड़ते आए हैं इसीलिए मैंने भी इसे आगे बढ़ाया है। कई महंत मंदिर की जमीनें बेच चुके हैं इसीलिए हो सकता है सरकार को मुझ पर भी संदेह हो। इसीलिए मैं तो यही कहता हूं कि मंदिर की जमीन मंदिर के पास रहे भले उसकी निगरानी प्रशासक के रूप में स्वयं कलेक्टर करते रहें। 
प्रकाशानंद भारती, ‘सुप्रीमकोर्ट बाबा’

No comments:

Post a Comment