Wednesday, May 11, 2016

महामेले में छाये काले-कपड़े वाला बिंदु बाबा

कहते हैं-बाबा बनते हो गए डबल ग्रेज्यूएट, यानी बीए-बीए= बाबा
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
आत्मा गुनाहगार, महात्मा वकील और परमात्मा जज है। हम केस लेते हैं। लड़ते हैं। मुअक्किल का पक्ष मजबूती से रखते हैं। जिरह करते हैं लेकिन जजमेंट परमात्मा ही देते हैं। उनका सकारात्मक जजमेंट ही हमारा चमत्कार है। जो तत्काल नहीं दिखता। यह कहना है बड़ा उदासीन अखाड़े के मल्टीटेलेंटेड महंत डॉ. बिंदु महाराज का।  वे भक्ति-साधना के लिए पढ़ाई से ज्यादा सेवा-समपर्ण को महत्व देते हैं। उनकी मानें तो जिस दिन गुरू का हाथ पकड़कर बाबा बने थे उसी दिन डबल ग्रेज्यूएट (बीए-बीए=बाबा) हो गए थे। 
महाकुंभ में कई साधु ऐसे हैं जो परंपरा से हटकर हैं। उनके आभूषण और वस्त्र ही उन की पहचान हैं। इन्हीं में से एक है डॉ.बिंदु महाराज। भगवा-सफेद कपड़े वाले सन्यासियों व बैरागियों के बीच काले रंग के अनोखे चोले, दांत-नाखून और रुद्राक्ष से बने आभूषणों के साथ ही हाथ में दो फीट लंबे रत्न जड़ित चांदी के फरसे (कपालदंड) के साथ तकरीबन आठ फीट लंबी जटाएं उनकी पहचान और लोकप्रियता का कारण है। वे कहते हैं तंत्र चमत्कार करता है। दिखाता नहीं है। तंत्र वह विज्ञान है जो व्यक्ति का शारीरिक रूप से, मानसिक रूप से, भौतिक और पराभौतिक रूप से कल्याण होता है इसीलिए इसे पराविज्ञान भी कहते हैं। यह भ्रम और भय की वस्तु नहीं है। कल्याण और निर्भयता देता है।  महामंडेलश्वरों की तरह कभी तंत्र सम्राट और साधकों को मंडलिक मणी कहा जाता था। मुगलों की दी गलत परिभाषा और अंग्रेजों की आधुनिक शिक्षा से गुरूकुल खत्म नहीं  होते तो तंत्र विज्ञान आधुनिक विज्ञान से लाखों गुना आगे रहता।
गले में एक से बढ़ मालाएं 
गले में  बाबा रुद्राक्ष, शेर दांत की मालाएं, चांदी से जड़ित मोतियों की माला, एक से 21 मुखी 108 रुद्राक्षों की माला, लामा पद्धति के यंत्र सहित स्फटिक की माला, हाथी दांत, शेर के नाखून वाली महाशंख की मुंड माल, गौरीशंकर, गणपति सहित चौदह मुखी रुद्राक्ष की माला, सिंह, बराह, मगर के दांत सहित 54 पंचमुखी रुद्राक्ष की मालाएं हैं। हाथ में भी मुंडमाल पहनते हैं। अजब वेषभूषा का कारण बताते हुए महाराज ने कहा ये आम लोगों के शरीर के अंदर से नकारात्मक ऊर्जा लेती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। 
10 उंगलियों में अंगूठियां
महाराज ने दोनों हाथ की सभी अंगुलियों में रत्नों से जड़ित अंगुठियां पहन रखी हैं। दाएं हाथ की उंगुलियों में सोने, चांदी में मढ़ा म्यांमार का 35 कैरेट का माणिक, 350 कैरेट का नेपाली मूंगा, 65 कैरेट का गोमेद, 40 कैरेट का पुखराज, 45 कैरेट की तीन मोतियों की अंगूठियां। बाएं हाथ में 40 कैरेट का पन्ना, 12-12 कैरेट के दो माणिक के बीच 15 कैरेट का मूंगा, 80 कैरेट का कश्मीरी नीलम, लहसुनिया, कपाल यंत्र की अंगूठियां की धारण की हुई हैं। इसीलिए उन्हें अंगुठी बाबा भी कहते हैं। 
दस विद्याओं के धनी 
1958 में रामपुर-खंदेवरा (कौशाम्बी, यूपी) में जन्में डॉ. बिंदु महाराज वे तंत्र सम्राट होने के साथ एक कुशल चिकित्सक, जाने माने इतिहास वेत्ता, धार्मिक तथा तांत्रिक सिधान्तों को विज्ञान की कशोटी पर सिद्ध करने वाले सफल वैज्ञानिक, क्वाइन्स कलेक्टर ( मुद्रा संग्राहक ), शायर, कवि, साहित्यकार, आयुर्वेदाचार्य और लेखक भी हैं। उनकी ‘कुम्भ महापर्व और अखाड़े एक विवेचन’, ‘बचपन से पचपन तक’ , ‘जीवन गंगा प्रवाह’ और ‘राजिम कुम्भ की प्राचीनता एवं प्रमाणिकता’ पुस्तक काफी लोकप्रिय हुई है।
प्रचार की जिम्मेदारी
करीब 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने चालीस साल पहले इलाहाबाद के एक छोटे-से गांव से निकले और अध्यात्म की तलाश में वह बड़ा उदासीन अखाड़े की जमात में शामिल हो गए। कई जिम्मेदारियां निभाई। हैदराबाद की मुख्य गद्दी के महंत बने। अभी वे प्रवक्ता के रूप में अखाड़े के प्रचार-प्रसार का काम करते हैं।  
क्या है तंत्र, मंत्र, यंत्र
तंत्र- जो तन के कष्टों से मुक्ति दिलाए वहीं तंत्र है। इसमें तमाम वनोषधियां, रत्न-उपरत्न, मेवे, सुगंध शामिल है।
मंत्र - स्वर-व्यंजन और उनकी ध्वनी से मंत्र बने। मंत्र की तीव्रता से क्षणिक मंत्र (बीज मंत्र) बने। मानसिक कष्टों से प्राण, मुक्ति, शांति देकर संकल्प पूरा करने की क्षमता दें वही मंत्र है। 
यंत्र-- कठिन काम को सरल करने के साधन को यंत्र कहते हैं। यंत्र ही हमारा साधना को सरल बनाते हैं। 

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