Thursday, May 12, 2016

नेपाल की हेमानंद गिरी उज्जैन में बनी महामंडलेश्वर

बुधवार को जूना अखाड़े के आठ श्रीमहंतों का हुआ पट्टाभिषेक महामंडलेश्वर
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
आठ सन्यासी एक जजमान की तरह पूजा वेदी पर बैठे...। चांदी का दंड और छतरी लेकर सेवक खड़े रहे..। पहले छोर कर्म (मुंडन) संस्कार करवाया...। फिर विधि स्नान पंचगव्य...। सात तरह की मिट्टी और अष्ठ औषधि से स्नान कराया..। विद्वान ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के साथ रुद्र अष्टाध्यायी (अभिषेक) किया...। फिर आचार्य महामंडलेश्वर और पंचों ने शाल ओढ़ाकर जूना अखाड़े के आठ श्री महंतों का  पट्टाभिषेक किया। इनमें जूना अखाड़े के नेपाल मंडल की श्री महंत साध्वी हेमानंद गिरी भी महामंडलेश्वर बनी जिन्होंने छह वर्ष की उम्र में ही सन्यास ले लिया था। 
    दातार अखाड़े में शाम 6 से 7.30 बजे के बीच पट्टाभिषेक संपन्न हुआ। इसके साथ ही अखाड़े के मुख्य संरक्षक हरिगिरि महाराज की शिष्य साध्वी हेमानंदगिरि भी महामंडलेश्वर बनी। उनका कैंप बड़नगर रोड पर है। जहां हजारों की तादाद में नेपाली भक्त व साथी सन्यासी रह रहे हैं। कैंप में योग व ध्यान शिविर के साथ सवा करोड़ लक्ष्मी-गायत्री मंत्र यज्ञ, रचनात्मक-आध्यात्मिक कार्य होते हैं।  हेमानंद गिरि के नेपाल में तीन आश्रमों के साथ ही अयोध्या में आश्रम हैं। 
इन्हें बनाया महामंडलेश्वर 
स्वामी महेंद्रानंद गिरी, स्वामी हरेरामानंद गिरी, स्वामी गणेशानंद गिरी, स्वामी मुक्तानंद गिरी, स्वामी सहजानंद गिरी, स्वामी विनोद गिरी, स्वामी नवल गिरी और नेपाल से आर्इं हेमानंद गिरी मां। 
इससे पहले तीन वैष्णव संत भी बने महामंडलेश्वर
अपै्रल के अंतिम सप्ताह में अभा निवार्णी अणि अखाड़ा के दो संतों हरिदासजी महाराज, श्रीमहावीर बालाजी नगर खालसा बस्सी राजस्थान एवं लखनदास महाराज मुरैना टेकरी खालसा वृंदावन को महामंडलेश्वर बनाया गया।
इसी तरह 7 मई को पंचायती अखाड़ा निरंजनी में स्वामी ज्योतिर्मयानंद गिरि महाराज का 15वें महामंडलेश्वर के रूप में  पट्टाभिषेक हुआ। 
यह कुर्बानियां देकर चुनते हैं रास्ता
कुंभ मेले में 13 अखाड़ों के अलग-अलग महामंडलेश्वर होते है। एक सतत प्रक्रिया एवं व्यवस्था के माध्यम से उनका चुनाव किया जाता ह। अखाड़े का महामंडलेश्वर बनना कोई आसान काम नहीं है. उसके लिए उस शख़्स को वैराग्य से मोह, धन के लालच से दूरी, मन की शांति का अहसास और सांसरिक सुविधाओं की कुबार्नी देनी पड़ती है. तभी जा कर उसे महामंडलेश्वर की उपाधि से नवाजा जाता है। 
कैसे बनते हैं महामंडलेश्वर
सनातन धर्म पर किसी भी तरह का संकट का सामना करने के लिए दशनामी संन्यासियों ने महामंडलेश्वर का पद बनाया था। इस पद के लिए कुछ योग्यताएं तय की गई हैं। महामंडलेश्वर ऐसे व्यक्ति को ही बनाया जा सकता है जो, साधु चरित्र और शास्त्रीय पांडित्य दोनों लिए समान रूप से विख्यात हो। 
ेऐसे लोगों को पहले परमहंस कहा जाता था. 18वीं शताब्दी से उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाने लगी. बाद में महामंडलेश्वर की पदवी धारण करने वाले सर्वश्रेष्ठ आचार्य को आचार्य महामंडलेश्वर कहा जाने लगा. आचार्य महामंडलेश्वर किसी भी अखाड़े का सबसे उंचा ओहदा होता है. इसलिए अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर और रमता पंच दोनों के चादर ओढाने के बाद ही कोई संन्यासी महामंडलेश्वर बनता है.

No comments:

Post a Comment