मंगलनाथ पर गुरू-शिष्य की चर्चित जोड़ी
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
सिंहस्थ 2016 में एक से बढ़कर एक साधु-संत आए हैं। इनमें इंदौर के महू से आए गुरू और चेले की जोड़ी भी श्रृद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। सेना से रिटायर होने के बाद सन्यास लेकर जहां गुरू फौजी बाबा कहलाये वहीं गुरू के आदेश पर 23 साल से अन्य त्यागकर उनके शिष्य रामगोपालदास फलाहारी बाबा कहलाए।
आश्रम में मिल्ट्री कानून और हाथ में बंदूक
मुलत: महू से ताल्लुक रखने वाले फौजी बाबा की मां कृष्ण भक्त थी जो बच्चे की तरह ठाकुरजी की देखभाल करती थी। उन्हीं से आध्यात्मिक प्रेम संस्कार में मिला। 1956 में उन्होंने घर छोड़ सन्यास का रास्ता पकड़ लिया था। हालांकि परिवार ने ढूंढ लिया। 1960 में भारतीय सेना में भर्ती हो गए। 1961 में घर वालों ने शादी करवा दी ताकि फिर सन्यास का विचार त्याग दे। फौज में रहते 1962 और 1965 की जंग लड़ी। 1992 में रिटायर हुए। जैसे ही रिटायर हुए घर छोड़ सन्यासी हो गए। देवरा बाबा ‘जो पैर से आशीर्वाद देते थे’, से दीक्षा ली और जामली में स्थान बनाया। हालांकि सन्यासी होने के बाद भी न सेना के अनुशासन छूटे। न ही बंदूक। उनके आश्रम में मिल्ट्री लॉ ही लागू है जहां गलती के बाद माफी नहीं, सजा ही मिलती है।
फौजी बाबा ने मौजूदा वाणिज्यिक कर आयुक्त राघवेंद्र सिंह के इंदौर कलेक्टर रहते राइफल के लाइसेंस लिए आवेदन किया था। सिंह ने कहा कि आप तो सन्यासी हो, आपको इसकी क्या जरूरत। इस पर बाबा ने कहा था कि जब परशुराम परशु रख सकते हैं तो मैं बंदूक क्यों नहीं। हालांकि बंदूक लेने के साल-डेढ़ साल बाद उनका एक्सीडेंट हो गया जिसमें उन्हें एक हाथ गंवाना पड़ा। फिर भी वे बंदूक प्रेम बरकरार है वे जहां जाते हैं उनकी बंदूक साथ रहती है। वे कहते हैं कि जब शस्त्र हाथ में हो तो तेढ़े से तेढ़ा आदमी भी सीधी बात करता है। अन्यथा लोग कमजोर समझता है और सन्यास वैसे भी मजबूत करता है, कमजोर नहीं।
26 हजार पेंश आती है, पूरा परिवार है
फौजी बाबा के दो बेटे और एक बेटी है। एक बेटा वॉर कॉलेज महू में है। नाती-पोते से भरपूर है बाबा का परिवार। बाबा के आश्रम का खर्च सेना से मिलने वाली उनकी अपनी पेंशन (26 हजार) से चल जाता है।
गुरू ने कहा मेरा भंडारा हो तभी खाना, तभी से फलाहारी
एक बार फौजी बाबा के दिल्ली स्थित आश्रम में आटा कम था। एक ही व्यक्ति की रोटी बन सकती थी। इसीलिए फौजी बाबा की रोटी बना दी। परौसी तो उन्होंने अपने साथ भोजन करने को कहा। चूंकि भोजन नहीं था इसीलिए मना कर दिया। गुरूजी जिद पर अड़े रहे। बाद में सालभर पहले ही आश्रम का सदस्य बने रामगोपालदास ने कहा आटा खत्म होने की जानकारी दी। गुरुजी ने थाली दूर कर दी और गुस्से में कह दिया कि अब जब मेरा भंडारा होगा तभी तुम लोग भोजन करना। तभी से रामगोपाल दासजी ने भोजन त्याग दिया। 23 साल हो चुके हैं उन्हें सिर्फ फलाहार करते हुए। इसीलिए उनका नाम ही फलाहारी बाबा पड़ गया।
फलाहारी बाबा ने कहा कि गुरू की आज्ञा सिरोधार्य है। ईश्वर करे वह दिन कभी न आए जब उनके नाम का भंडारा (उनके निधन के बाद दिया जाने वाला भोज) हो। गुरू के प्रेम और ईश्वर की अनुकंपा ही है जो हम अपने संकल्प पर अडिग हैं। हालांकि गुरूजी ने बाद में कहा भी कि तुम भोजन कर सकते हो लेकिन कभी मन माना ही नहीं। साधु रोटी खाने के लिए नहीं बना, गुरू सेवा के लिए बना हूं। हमारे सत्कर्म से संसार को ही लाभ मिल जाए। हमें मिले न मिले।
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
सिंहस्थ 2016 में एक से बढ़कर एक साधु-संत आए हैं। इनमें इंदौर के महू से आए गुरू और चेले की जोड़ी भी श्रृद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। सेना से रिटायर होने के बाद सन्यास लेकर जहां गुरू फौजी बाबा कहलाये वहीं गुरू के आदेश पर 23 साल से अन्य त्यागकर उनके शिष्य रामगोपालदास फलाहारी बाबा कहलाए।
आश्रम में मिल्ट्री कानून और हाथ में बंदूक
मुलत: महू से ताल्लुक रखने वाले फौजी बाबा की मां कृष्ण भक्त थी जो बच्चे की तरह ठाकुरजी की देखभाल करती थी। उन्हीं से आध्यात्मिक प्रेम संस्कार में मिला। 1956 में उन्होंने घर छोड़ सन्यास का रास्ता पकड़ लिया था। हालांकि परिवार ने ढूंढ लिया। 1960 में भारतीय सेना में भर्ती हो गए। 1961 में घर वालों ने शादी करवा दी ताकि फिर सन्यास का विचार त्याग दे। फौज में रहते 1962 और 1965 की जंग लड़ी। 1992 में रिटायर हुए। जैसे ही रिटायर हुए घर छोड़ सन्यासी हो गए। देवरा बाबा ‘जो पैर से आशीर्वाद देते थे’, से दीक्षा ली और जामली में स्थान बनाया। हालांकि सन्यासी होने के बाद भी न सेना के अनुशासन छूटे। न ही बंदूक। उनके आश्रम में मिल्ट्री लॉ ही लागू है जहां गलती के बाद माफी नहीं, सजा ही मिलती है।
फौजी बाबा ने मौजूदा वाणिज्यिक कर आयुक्त राघवेंद्र सिंह के इंदौर कलेक्टर रहते राइफल के लाइसेंस लिए आवेदन किया था। सिंह ने कहा कि आप तो सन्यासी हो, आपको इसकी क्या जरूरत। इस पर बाबा ने कहा था कि जब परशुराम परशु रख सकते हैं तो मैं बंदूक क्यों नहीं। हालांकि बंदूक लेने के साल-डेढ़ साल बाद उनका एक्सीडेंट हो गया जिसमें उन्हें एक हाथ गंवाना पड़ा। फिर भी वे बंदूक प्रेम बरकरार है वे जहां जाते हैं उनकी बंदूक साथ रहती है। वे कहते हैं कि जब शस्त्र हाथ में हो तो तेढ़े से तेढ़ा आदमी भी सीधी बात करता है। अन्यथा लोग कमजोर समझता है और सन्यास वैसे भी मजबूत करता है, कमजोर नहीं।
26 हजार पेंश आती है, पूरा परिवार है
फौजी बाबा के दो बेटे और एक बेटी है। एक बेटा वॉर कॉलेज महू में है। नाती-पोते से भरपूर है बाबा का परिवार। बाबा के आश्रम का खर्च सेना से मिलने वाली उनकी अपनी पेंशन (26 हजार) से चल जाता है।
गुरू ने कहा मेरा भंडारा हो तभी खाना, तभी से फलाहारी
एक बार फौजी बाबा के दिल्ली स्थित आश्रम में आटा कम था। एक ही व्यक्ति की रोटी बन सकती थी। इसीलिए फौजी बाबा की रोटी बना दी। परौसी तो उन्होंने अपने साथ भोजन करने को कहा। चूंकि भोजन नहीं था इसीलिए मना कर दिया। गुरूजी जिद पर अड़े रहे। बाद में सालभर पहले ही आश्रम का सदस्य बने रामगोपालदास ने कहा आटा खत्म होने की जानकारी दी। गुरुजी ने थाली दूर कर दी और गुस्से में कह दिया कि अब जब मेरा भंडारा होगा तभी तुम लोग भोजन करना। तभी से रामगोपाल दासजी ने भोजन त्याग दिया। 23 साल हो चुके हैं उन्हें सिर्फ फलाहार करते हुए। इसीलिए उनका नाम ही फलाहारी बाबा पड़ गया।
फलाहारी बाबा ने कहा कि गुरू की आज्ञा सिरोधार्य है। ईश्वर करे वह दिन कभी न आए जब उनके नाम का भंडारा (उनके निधन के बाद दिया जाने वाला भोज) हो। गुरू के प्रेम और ईश्वर की अनुकंपा ही है जो हम अपने संकल्प पर अडिग हैं। हालांकि गुरूजी ने बाद में कहा भी कि तुम भोजन कर सकते हो लेकिन कभी मन माना ही नहीं। साधु रोटी खाने के लिए नहीं बना, गुरू सेवा के लिए बना हूं। हमारे सत्कर्म से संसार को ही लाभ मिल जाए। हमें मिले न मिले।
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