उज्जैन से विनोद शर्मा ।
श्री शंभू पंच दशनाम आह्वान अखाड़े के 500 से अधिक साधुओं ने 7 मई को खुनी नागा के रूप में दीक्षा ली। खुद का पिंडदान करके दीक्षा लेकर भगवा धारण करने वालों में एक इंदौर की बेटी भी है। जिन्हें अब तक छोटू के रूप में जाना जाता रहा है लेकिन अब उनके गुरू महामंडलेश्वर बाल योगी ने नया नाम दिया है सीमानंद गिरी।
उज्जैन में दीक्षा लेने वाले सन्यासियों को खूनी नागा कहा जाता है। आह्वान अखाड़े के ध्वज तले अखाड़े के तमाम संत-महंत और पदवीधारियों की मौजूदगी में शनिवार को दीक्षा समारोह हुआ था। इसमे 45 वर्षीय सीमानंद गिरी ने भी दीक्षा ली। वे मुलत: इंदौर के विजयनगर से हैं और बचपन अंबेडकरनगर में बीता है। उनका भरापूरा परिवार है हालांकि दीक्षा के बाद अब वे अखाड़े को ही अपना परिवार मानती हैं। उनकी मानें तो मैं दीक्षा के दौरान स्वयं का पिंडदान (अंतिम संस्कार) कर चुकी हूं। इसीलिए बीती जिंदगी से अब मतलब नहीं है। अब महामंडलेश्वर बाल योगी ही मेरे गुरू और अखाड़े के उप सभापति श्री महंत शिवेश गिरीजी पिता हैं।
बचपन से आध्यत्म ही था मंजिल
दबंग दुनिया से खास बातचीत में सीमानंद ने बताया कि गुरुजी से मुलाकात भले 2015 की दिवाली को हुई हो लेकिन आध्यात्म में रुचि शुरू से रही। एलआईजी स्थित हनुमान मंदिर में पूजा की। काली पूजन करती रही। ईश्वर की कृपा रही कि अचानक सन्यास का मन हुआ और शनिवार को नागा साधु के रूप में दीक्षा भी मिल गई।
सन्यास के लिए परेशान होना जरूरी नहीं है
परिवार से परेशान होकर तो सन्यास नहीं लिया? इसके जवाब में सीमानंद ने हंसते हुए कहा कि जरूरी नहीं है कि सिर्फ परिवार या स्वयं से तंग आ चुका व्यक्ति ही सन्यास लें। यह तो एक धून हैं जो कभी भी लग सकती है। बस ईश्वर में आस्था होना चाहिए। उज्जैन के महाराज भृतहरी भी राजपाट छोड़कर सन्यासी हो गए थे।
श्री शंभू पंच दशनाम आह्वान अखाड़े के 500 से अधिक साधुओं ने 7 मई को खुनी नागा के रूप में दीक्षा ली। खुद का पिंडदान करके दीक्षा लेकर भगवा धारण करने वालों में एक इंदौर की बेटी भी है। जिन्हें अब तक छोटू के रूप में जाना जाता रहा है लेकिन अब उनके गुरू महामंडलेश्वर बाल योगी ने नया नाम दिया है सीमानंद गिरी।
उज्जैन में दीक्षा लेने वाले सन्यासियों को खूनी नागा कहा जाता है। आह्वान अखाड़े के ध्वज तले अखाड़े के तमाम संत-महंत और पदवीधारियों की मौजूदगी में शनिवार को दीक्षा समारोह हुआ था। इसमे 45 वर्षीय सीमानंद गिरी ने भी दीक्षा ली। वे मुलत: इंदौर के विजयनगर से हैं और बचपन अंबेडकरनगर में बीता है। उनका भरापूरा परिवार है हालांकि दीक्षा के बाद अब वे अखाड़े को ही अपना परिवार मानती हैं। उनकी मानें तो मैं दीक्षा के दौरान स्वयं का पिंडदान (अंतिम संस्कार) कर चुकी हूं। इसीलिए बीती जिंदगी से अब मतलब नहीं है। अब महामंडलेश्वर बाल योगी ही मेरे गुरू और अखाड़े के उप सभापति श्री महंत शिवेश गिरीजी पिता हैं।
बचपन से आध्यत्म ही था मंजिल
दबंग दुनिया से खास बातचीत में सीमानंद ने बताया कि गुरुजी से मुलाकात भले 2015 की दिवाली को हुई हो लेकिन आध्यात्म में रुचि शुरू से रही। एलआईजी स्थित हनुमान मंदिर में पूजा की। काली पूजन करती रही। ईश्वर की कृपा रही कि अचानक सन्यास का मन हुआ और शनिवार को नागा साधु के रूप में दीक्षा भी मिल गई।
सन्यास के लिए परेशान होना जरूरी नहीं है
परिवार से परेशान होकर तो सन्यास नहीं लिया? इसके जवाब में सीमानंद ने हंसते हुए कहा कि जरूरी नहीं है कि सिर्फ परिवार या स्वयं से तंग आ चुका व्यक्ति ही सन्यास लें। यह तो एक धून हैं जो कभी भी लग सकती है। बस ईश्वर में आस्था होना चाहिए। उज्जैन के महाराज भृतहरी भी राजपाट छोड़कर सन्यासी हो गए थे।
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