Wednesday, May 11, 2016

एक यज्ञशाला जहां देव नहीं, दिखते हैं प्राणदानी

उज्जैन से विनोद शर्मा । 
108 फीट की सात मंजिला ऐसी यज्ञशाला जहां देवी-देवताओं की प्रतिमाएं और चित्र  नहीं है।  खांकी और सैन्य वर्दी में मुछों पर ताव देते नजर आ रहे चित्र हैं भी तो उन मर्दानों के जो देश के खातिर अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं। तिरंगे और भारत मात्रा के चित्र से सुशोभित शिखर वाली इस यज्ञशाला में शहीदों के सौ से अधिक चित्र लगे हैं। 
यह कैंप है बालक योगेश्वर का जिन्हें फौजी बाबा कहते हैं। भूखीमाता मेन रोड पर इस कैंप की दीवार से लेकर यज्ञशाला के चौतरफा शहीदों के फोटो हैं। फिर बात 26/11 में शहीद हुए हेमंत करकरे, संदीप उन्नीकृष्णन, आलोक कामटे, विजय सालसकर की हो या फिर सरहद पर शहीद हुए मेजर अजयसिंह जसरोटिया, केपटन विक्रम बत्रा, अनुसुइया प्रसाद हो। हर एक के चमकते चेहरे ने इस यज्ञशाला को सिंहस्थ की बाकी 1000 यज्ञशालाओं से अलग और विशेष बना दिया है। यहां शहीद अरूण चिट्टी, तुकाराम गोपाल अम्बोले, जयवंत पाटिल, शशांक शिंदे, अम्बादास पंवार, बापूसाहेब दुरुगराड़े, बालासाहेब भौसले, राहुल एस शिंदे, योगेश पाटील, विजय सिंह चंद, मदन लाल, गजेंद्र सिंह की तस्वीरें भी हैं। 
उन्होंने प्राणों की आहुति दी, हम मंत्रों की देंगे
दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक मेले में उन जवानों को भी याद किया जाएगा जिन्होंने कारगिल युद्ध और मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले के दौरान देश की आन-बान और शान के लिए अपनी शहादत दी थी। झंडे सहित 123 फीट ऊंची इस यज्ञशाला में 100 हवन कुंड बनाए गए हैं। यज्ञ के लिए वाराणसी से पंडितों की टीम बुलाई गई है। बद्रीनाथ धाम के बालक योगेश्वर दास ने वर्ष 2005 में पहली बार शहीदों के परिवारों के लिए यज्ञ किया था। जम्मू में हुए इस महायज्ञ में कारगिल युद्ध के शहीदों के घर वाले शामिल भी हुए थे।
पूरा खर्च उठाते हैं महाराज 
2010 में हरिद्वार में हुए कुम्भ मेले में हुए महायज्ञ में भी शहीदों के परिवारों को एकत्रित किया गया था। प्रयाग कुंभ में शहीदों के परिजनों को पहली बार न सिर्फ आमंत्रित किया गया था बल्कि उनके आने-जाने और रहने का खर्च तक उठाया गया। ठीक वैसे ही उज्जैन में भी व्यवस्था की जा रही है। यहां 400 परिवार शामिल होंगे। कुछ परिवार आ भी चुके हैं। 
एक परिवार बन चुका है 
सबसे बड़ा दान प्राणदान है जो सिर्फ एक सैनिक ही कर सकता है इसीलिए देशवासियों के मन में उनके लिए श्रृद्धा जरूरी है। जब में जम्मू में यज्ञ कर रहा था तब मुझसे मिलने  मेजर अजयसिंह जसरोटिया के माता-पिता आए जो बाद में काफी भावुक हो गए। उनकी भावुकता ने मुझे शहीदों के लिए भी धर्म के क्षेत्र में कुछ करने की प्रेरणा दी। इसके बाद से सिलसिला जारी है। अब तक 25 यज्ञ कर चुके हैं। इन यज्ञ से मुझे जो फायदा मिला वह यह कि मेरा परिवार बढ़ गया। आज तकरीबन हजार शहीदों के परिवार मुझसे परिवार की तरह जुड़Þे हैं। एक-दूसरे के सुखदूख में भागीदार हैं। 

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