Thursday, May 12, 2016

आठवां सिंहस्थ करने आए रामदास मौनी बाबा

114 वर्ष की उम्र, 92 साल से सन्यासी, अब तक 40 से अधिक कुंभ-अर्धकुंभ-सिंहस्थ में किया स्नान
- 1982 तक लगातार की पद यात्रा
उज्जैन से विनोद शर्मा ।
आज के दौर में जहां आदमी की औसत आयू 60 वर्ष मानी जाती है और 60 वर्ष की उम्र में ही व्यक्ति हारा हुआ नजरर आने लगता है। वहीं मंगलनाथ पुल के पास महात्यागी खालसा में वृंदावन से रामदास मौनी बाबा पधारे हैं जिनकी उम्र है 114 साल। बाबा न सिर्फ सिंहस्थ में शिप्रा स्नान करेंगे बल्कि यहां राम नाम का जाप करेंगे और लोगों को करवाएंगे।
बाबा के भक्तों के अनुसार बाबा का जन्म 1902 में आजमगढ़ जनपद के जमीरपुर गांव में हुआ था। 1924 में (22 वर्ष की उम्र) में उन्होंने घर-परिवार छोड़कर सन्यास का रास्ता अपना लिया था। अर्से तक जंगल में तपस्या की। पूरे देश में दिगम्बर यात्रा की। मौन रहे। इसीलिए मौनी बाबा कहलाए। तकरीबन 92 साल में सात सिंहस्थ और दो दर्जन से अधिक कुंभ-अर्धकुंभ करने वाले मौनी बाबा सिंहस्थ 2016 को लेकर भी उत्साहित है। वे तीन दिन पहले मंगलनाथ पहुंचे। यहां वे बाबा टाटम्बरी आश्रम के सामने स्थित महात्यागी खालसा पहुंचे। 1008 महामंडलेश्वर श्री सिताराम दास महाराज महात्यागी यहां के प्रमुख और मौनी बाबा के अजीज हैं।
सीताराम-सीताराम भज प्यारे..
बाबा सुबह-सुबह उठकर स्नान-ध्यान करके बैठ जाते हैं गादी पर जहां वे ध्यान मुद्रा में बैठते हैं और सीताराम-सीताराम जपते रहते हैं। उनके भक्त भी सामने बैठकर रामनाम जपते हैं। दोपहर 1 बजे तक भजन करते हैं। दो-ढाई घंटे आराम करके फिर भजन शुरू कर देते हैं जो शाम-देर रात तक चलते हैं। आहार के नाम पर स्थिति शुन्य है वे 24 घंटे में आधी कटौरी दूध पानी चम्मच से पीते हैं।
गजब का साहस
गुरूजी की त्वचा पूरी तरह मुर्झा सी गई है। सीना लटक चुका है। भौंहों के बाल सफेद और लंबे होकर आंखों के सामने तक आने लगे हैं। फिर भी न तो उनकी दिनचर्या में कभी बदलाव आया। बाबा बोलते हैें, शिषयों को  पहचानते हैं। ज्यादातर साधनारत रहते हैं। वे देखने में दूसरे संतों की तरह नजर नहीं आते। न भगवा कपड़ों से ढकें हैं न ही लंबी जटाए हैं लेकिन अभी दो दर्जन से अधिक जटाधारी साधु उनकी सेवा में लगे हैं। वे जो दान मिलता है, संतों में बांट देते हैं। इसीलिए उनके पास न कोई मंदिर है। न कोई मठ। वे वाराणसी के चौकघाट पर बने एक पुराने मंदिर में रहते हैं। दिल्ली के जंतर-मंतर पर जहां उन्होंने काफी अर्से तक तपस्या की, वहां उनके भ्रमण के दौरान किसी ने कब्जा कर लिया था।
पूर्णिमा स्नान के लिए काशी से ईलाहबाद तक पैदल
बाबा 1934 से 1951 के बीच लगातार माघ मेले में पूर्णिमा स्नान करने काशी से ईलाहबाद पैदल पहुंचे हैं। बाबा ने बताया काशी में सन्यास लेकर 1932 में चौकघाट में कुटिया बनाई। 1934 से त्रिवेणी तट पर आना शुरू किया। कल्पवास नहीं करता हूं। बस पूर्णमा का इंतजार करहता है। 1982 तक बाबा पैदल यात्रा ही करते थे। फिर उम्र ज्यादा होने के कारण उनके शिषयों ने उन्हें गाड़ी से लाना-ले जाना शुरू कर दिया। 

दिल्ली से देहरादुन हुआ ट्रांसफर, पकड़ा हरिद्वारा का रास्ता, लिया सन्यास

पर्यटन अधिकारी रह चुके है नौ भाषाओं के ज्ञानी नागा साधू त्रिलोकेश्वर भारती
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
20 बाय 15 का शामियाना...। दो पलंग जोड़कर गद्दा बिछाए बैठे सन्यासी..। जो भक्त गुजरात से आते हैं उनसे गुजराती में बातचीत...। उड़िसा से आए सेवक को उड़िया में फटकार...। विदेशियों से अग्रेजी में बातचीत...। हम बात कर रहे हैं श्री शंभू पंच दशनाम जूना अखाड़े के नागा सन्यासी त्रिलोकेश्वर भारती की जो एक-दो-तीन नहीं बल्कि हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उड़िया, कन्नड़, असमिया, बंगाली, गुजराती, जर्मन सहित नौ भाषाओं में खासी पकड़ रखते हैं। हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और गुजराती में अब वे प्रवचन दे रहे हैं। 
त्रिलोकेश्वर भारती सन्यास लेने से पहले दिल्ली में प्राध्यापक रहे  और फिर इंडियन टुरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (आईटीडीसी) में टुरिज्म आॅफिसर के रूप में सेवा दी। तकरीबन दो साल नौकरी की। दिल्ली से उनका ट्रांसफर देहरादुन हुआ जो उन्हें समझ नहीं आया। इसीलिए बचपन से ब्रह्मचर्य का पालन करते आये त्रिलोचन मिश्र ने सन्यास ले लिया। गुलबर्गा (कर्नाटक) के राईमलाई गांव ‘जो ब्राह्मण बाहुल्य और हर घर में स्थापित हवनकुंड के लिए जाना जाता है’, में जन्में त्रिलोकेश्वर जी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा जगन्नाथपुरी में हुई। डीएबी स्कूल-कॉलेज से पढ़ाई हुई। लखनऊ से बीसीए और बॉटनी में पीजी किया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से इकोलॉजी में एमफिल किया। इस दौरान ढ़ाई साल दिल्ली में प्राध्यापक रहे। एमफिल के बाद भारतीय पर्यटन निगम में पर्यटन अधिकारी के रूप में तीन साल नौकरी की।
मैं दिल्ली पदस्थ और वहां से कहीं जाना नहीं चाहता था। इसी बीच मेरा ट्रांसफर दिल्ली से देहरादुन हुआ। चूंकि मैं नाराज था इसीलिए हरिद्वार गया और जूना अखाड़े का ध्वज थाम लिया। सन्यासी जीवन शुरू कर दिया। आज असम, बंगाल और गुजरात में मठ हैं। 
ऐसे बदलता गया नाम... 
कर्नाटक में रहते नाम था त्रिलोचन राईमलाई। जगन्नाथपुरी में दीक्षा के लिए गये तो नाती-जाती के जोड़-बिजोड़ से नाम हो गया त्रिलोचन मिश्र। इसी से पढ़ाई-नौकरी की। सन्यास के बाद नाम हुआ मानस चेतन्य ब्रह्मचारी। असम में आसाम बंगीय सारस्वत मठ में श्री महंत स्वामी ज्योतिर्मानंद सरस्वती के सानिध्य में ब्रह्मचर्य दीक्षा संपन्न हुई। नया नाम मिला त्रिलोकेश्वर भारती। सन्यास में नाम नहीं होता। योगपट होता है जैसे जूना अखाड़े में सरस्वती, गिरी, भारती जो कि नाम के आगे लगता है इसीलिए महंत भारती त्रिलोकेश्वर भी कहते हैं। फिर नागा दीक्षा हुई। 
अखाड़े के काम सरलता से कर पाते हैं 
शिक्षा व भाषाई ज्ञान से सन्यासी जीवन में क्या लाभ मिला? इस संबंध में उनका कहना है कि सन्यास में शिक्षा काम नहीं आती हां इसका फायदा अखाड़े के काम को सुलभ और सुचारू रूप से करने में जरूर मदद मिलती है। अखाड़े में कारोबारी व स्थानापति की भूमिका भी निभा चुका हूं। 

मंदिर की जमीनी जंग ने महंत को बनाया ‘सुप्रीमकोर्ट’

दत्त अखाड़े में चौकाता है नागा साधु का अनौखा नाम
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
कम्प्यूटर, पायलेट, गोल्डनगिरी, एन्वायरमेंट जैसे चित्र-विचित्र नाम वाले बाबाओं के बीच सिंहस्थ 2016 के लिए दत्त अखाड़ा क्षेत्र में एक सन्यासी और है जिनकी पहचान है सुप्रीमकोर्ट बाबा के रूप में।  तराना के तिलभांडेश्वरमहादेव मंदिर की कृषि भूमि को कब्जामुक्त कराने के लिए लड़ी गई न्यायालयीन लड़ाई ने महंत प्रकाशानांद भारती को सुप्रीमकोर्ट बाबा बना दिया। श्री शंभू पंच दशनाम जूना अखाड़े के इस फुर्तीले नागा साधु ने कब्जेदारों को तहसील कोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक चुनौती दी। हर जंग जीती भी। सुप्रीमकोर्ट में केस जीतने के बाद भी सरकार 10 वर्षों में मंदिर से कब्जे नहीं हटा पाई जिसे लेकर बाबा को आज भी मलाल है। हालांकि जंग सतत जारी है। 
    दत्त अखाड़ा क्षेत्र की चार मढ़ी में 20 बाय 10 के तकरीबन दो दर्जन तंबू हैं। इन्हीं में से एक है प्रकाशानंद भारती का तंबू। जहां हल्दी-कुकुम से सजी दर्जनों तेड़ी-मेड़ी लकड़ियों के साथ तंबू की दीवार और वहीं खड़ी कार पर लिखा सेक्शन (नं.32) और कोर्ट नंबर-7 के साथ सुप्रीम कोर्ट नागा बाबा नाम हर आते-जाते व्यक्ति को चौका रहा है। इस नाम के पीछे की कहानी को समझने के लिए दबंग दुनिया ने 1987 में मंदिर के प्रमुख पुजारी बने इन महंत से बात की। भगवान को उनकी जमीन दिलाने के लिए उनके गुरू देवानंद गिरी ने 80 साल पहले जिस जंग का आगाज किया था उसे महंतजी ने तराना के तहसीलदार से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक जारी रखा। इस लड़ाई में पुलिस और प्रशासन की यातनाएं सह चुके प्रकाशानंद का हौंसला आज भी मजबूत है उन्होंने प्रशासन को चेता दिया है कि यदि मंदिर की जमीन खाली नहीं कराई गई तो वे सिंहस्थ बाद समाधि ले लेंगे। हालांकि अब उनकी इस लड़ाई में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी और जूना अखाड़े के प्रमुख हरिगिरी महाराज भी हैं। अखाड़ा परिषद ने इस संबंध में मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक से गुहार लगा दी है। 
पुजारी भी स्वयं और वकील भी
जमीन का मामला इतना उलझा हुआ है कि अब कोई वकील भी उनकी पेरवी नहीं करता। हालांकि चूंकि मंदिर की जमीन सरकारी होती है इसीलिए सरकारी वकील जरूर लगे हुए हैं। बावजूद  इसके कब्जेदारों पर कार्रवाई को लेकर सरकार का रवैया सुस्त है। इसीलिए 14 नवंबर 2005 में सुप्रीमकोर्ट से केस जीतने के बावजूद अब तक उन्हें कब्जा नहीं दिलाया गया। उलटा, 20-25 लाख रुपए लेकर फाइल मुंह बंद रखने की सलाह देते रहे। इसीलिए स्वयं महंत ने अपने केस की पेरवी की। इसीलिए उन्हें जज भी नाम से जानते हैं। 
हमले और पुलिस यातनाएं तक सही
1662 में मंदिर का जीर्णोद्धार इंदौर की लोकमाता अहिल्या ने कराया था। होलकर रियासत ने 1927 में देवानंद भारती को 16.348 हेक्टेयर जमीन पूजा अर्चना के लिए दी थी। इस जमीन पर करीब 10 परिवारों का कब्जा है। इसीलिए जमीन को लेकर लड़ाई सिर्फ कानूनी नहीं रही। यहां हथियार भी चले हैं जिसमें महंत प्रकाशानंद के सिर पर गंभीर चोट आई। हाथ-पैर में भी घाव लगे। कब्जेदारों की शिकायत पर पुलिस ने केस दर्ज करके बाबा को जेल तक पहुंचा दिया लेकिन बाबा के चमत्कारों ने जेलर तक की नींद उड़ा दी। 
लेते हैं समाधि 
सिंहस्थ में भी अपनी कानूनी लड़ाई के सभी दस्तावेजों के साथ पहुंचे प्रकाशानंद ने अपने शिविर में 11 फीट गहरा और तीन फीट चौड़ा गड्ढा खुदवा रखा है। उस पर चौकोर ढक्कन है जिसमें बीच में यज्ञ कुंडी बनी है जो हमेशा जलती रहती है। बाबा गड्डे में जाकर समाधि लगाकर बैठ जाते हैं और ऊपर से ढक्कन लगवा लेते हैं। इसी ढक्कन की कुंडी पर उनके शिष्य यज्ञ करते रहते हैं। कभी तीन घंटे की बैठक तो कभी आठ घंटे की बैठक। 
सरकार जमीन अपनी निगरानी में रखे लेकिन कब्जे में ले तो सही
बाबा ने कहा कि चूंकि मेरे गुरू इस जमीन लड़ाई लड़ते आए हैं इसीलिए मैंने भी इसे आगे बढ़ाया है। कई महंत मंदिर की जमीनें बेच चुके हैं इसीलिए हो सकता है सरकार को मुझ पर भी संदेह हो। इसीलिए मैं तो यही कहता हूं कि मंदिर की जमीन मंदिर के पास रहे भले उसकी निगरानी प्रशासक के रूप में स्वयं कलेक्टर करते रहें। 
प्रकाशानंद भारती, ‘सुप्रीमकोर्ट बाबा’

नेपाल की हेमानंद गिरी उज्जैन में बनी महामंडलेश्वर

बुधवार को जूना अखाड़े के आठ श्रीमहंतों का हुआ पट्टाभिषेक महामंडलेश्वर
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
आठ सन्यासी एक जजमान की तरह पूजा वेदी पर बैठे...। चांदी का दंड और छतरी लेकर सेवक खड़े रहे..। पहले छोर कर्म (मुंडन) संस्कार करवाया...। फिर विधि स्नान पंचगव्य...। सात तरह की मिट्टी और अष्ठ औषधि से स्नान कराया..। विद्वान ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के साथ रुद्र अष्टाध्यायी (अभिषेक) किया...। फिर आचार्य महामंडलेश्वर और पंचों ने शाल ओढ़ाकर जूना अखाड़े के आठ श्री महंतों का  पट्टाभिषेक किया। इनमें जूना अखाड़े के नेपाल मंडल की श्री महंत साध्वी हेमानंद गिरी भी महामंडलेश्वर बनी जिन्होंने छह वर्ष की उम्र में ही सन्यास ले लिया था। 
    दातार अखाड़े में शाम 6 से 7.30 बजे के बीच पट्टाभिषेक संपन्न हुआ। इसके साथ ही अखाड़े के मुख्य संरक्षक हरिगिरि महाराज की शिष्य साध्वी हेमानंदगिरि भी महामंडलेश्वर बनी। उनका कैंप बड़नगर रोड पर है। जहां हजारों की तादाद में नेपाली भक्त व साथी सन्यासी रह रहे हैं। कैंप में योग व ध्यान शिविर के साथ सवा करोड़ लक्ष्मी-गायत्री मंत्र यज्ञ, रचनात्मक-आध्यात्मिक कार्य होते हैं।  हेमानंद गिरि के नेपाल में तीन आश्रमों के साथ ही अयोध्या में आश्रम हैं। 
इन्हें बनाया महामंडलेश्वर 
स्वामी महेंद्रानंद गिरी, स्वामी हरेरामानंद गिरी, स्वामी गणेशानंद गिरी, स्वामी मुक्तानंद गिरी, स्वामी सहजानंद गिरी, स्वामी विनोद गिरी, स्वामी नवल गिरी और नेपाल से आर्इं हेमानंद गिरी मां। 
इससे पहले तीन वैष्णव संत भी बने महामंडलेश्वर
अपै्रल के अंतिम सप्ताह में अभा निवार्णी अणि अखाड़ा के दो संतों हरिदासजी महाराज, श्रीमहावीर बालाजी नगर खालसा बस्सी राजस्थान एवं लखनदास महाराज मुरैना टेकरी खालसा वृंदावन को महामंडलेश्वर बनाया गया।
इसी तरह 7 मई को पंचायती अखाड़ा निरंजनी में स्वामी ज्योतिर्मयानंद गिरि महाराज का 15वें महामंडलेश्वर के रूप में  पट्टाभिषेक हुआ। 
यह कुर्बानियां देकर चुनते हैं रास्ता
कुंभ मेले में 13 अखाड़ों के अलग-अलग महामंडलेश्वर होते है। एक सतत प्रक्रिया एवं व्यवस्था के माध्यम से उनका चुनाव किया जाता ह। अखाड़े का महामंडलेश्वर बनना कोई आसान काम नहीं है. उसके लिए उस शख़्स को वैराग्य से मोह, धन के लालच से दूरी, मन की शांति का अहसास और सांसरिक सुविधाओं की कुबार्नी देनी पड़ती है. तभी जा कर उसे महामंडलेश्वर की उपाधि से नवाजा जाता है। 
कैसे बनते हैं महामंडलेश्वर
सनातन धर्म पर किसी भी तरह का संकट का सामना करने के लिए दशनामी संन्यासियों ने महामंडलेश्वर का पद बनाया था। इस पद के लिए कुछ योग्यताएं तय की गई हैं। महामंडलेश्वर ऐसे व्यक्ति को ही बनाया जा सकता है जो, साधु चरित्र और शास्त्रीय पांडित्य दोनों लिए समान रूप से विख्यात हो। 
ेऐसे लोगों को पहले परमहंस कहा जाता था. 18वीं शताब्दी से उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाने लगी. बाद में महामंडलेश्वर की पदवी धारण करने वाले सर्वश्रेष्ठ आचार्य को आचार्य महामंडलेश्वर कहा जाने लगा. आचार्य महामंडलेश्वर किसी भी अखाड़े का सबसे उंचा ओहदा होता है. इसलिए अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर और रमता पंच दोनों के चादर ओढाने के बाद ही कोई संन्यासी महामंडलेश्वर बनता है.

indore ki beti bani khuni naga sadhu

उज्जैन से विनोद शर्मा ।           
श्री शंभू पंच दशनाम आह्वान अखाड़े के 500 से अधिक साधुओं ने 7 मई को खुनी नागा के रूप में दीक्षा ली। खुद का पिंडदान करके दीक्षा लेकर भगवा धारण करने वालों में एक इंदौर की बेटी भी है। जिन्हें अब तक छोटू के रूप में जाना जाता रहा है लेकिन अब उनके गुरू महामंडलेश्वर बाल योगी ने नया नाम दिया है सीमानंद गिरी। 
    उज्जैन में दीक्षा लेने वाले सन्यासियों को खूनी नागा कहा जाता है। आह्वान अखाड़े के ध्वज तले अखाड़े के तमाम संत-महंत और पदवीधारियों की मौजूदगी में शनिवार को दीक्षा समारोह हुआ था। इसमे 45 वर्षीय सीमानंद गिरी ने भी दीक्षा ली। वे मुलत: इंदौर के विजयनगर से हैं और बचपन अंबेडकरनगर में बीता है। उनका भरापूरा परिवार है हालांकि दीक्षा के बाद अब वे अखाड़े को ही अपना परिवार मानती हैं। उनकी मानें तो मैं दीक्षा के दौरान स्वयं का पिंडदान (अंतिम संस्कार) कर चुकी हूं। इसीलिए बीती जिंदगी  से अब मतलब नहीं है।  अब महामंडलेश्वर बाल योगी ही मेरे गुरू और अखाड़े के उप सभापति  श्री महंत शिवेश गिरीजी पिता हैं। 
बचपन से आध्यत्म ही था मंजिल
दबंग दुनिया से खास बातचीत में सीमानंद ने बताया कि गुरुजी से मुलाकात भले 2015 की दिवाली को हुई हो लेकिन आध्यात्म में रुचि शुरू से रही। एलआईजी स्थित हनुमान मंदिर में पूजा की। काली पूजन करती रही। ईश्वर की कृपा रही कि अचानक सन्यास का मन हुआ और शनिवार को नागा साधु के रूप में दीक्षा भी मिल गई। 
सन्यास के लिए परेशान होना जरूरी नहीं है 
परिवार से परेशान होकर तो सन्यास नहीं लिया? इसके जवाब में सीमानंद ने हंसते हुए कहा कि जरूरी नहीं है कि सिर्फ परिवार या स्वयं से तंग आ चुका व्यक्ति ही सन्यास लें। यह तो एक धून हैं जो कभी भी लग सकती है। बस ईश्वर में आस्था होना चाहिए। उज्जैन के महाराज भृतहरी भी राजपाट छोड़कर सन्यासी हो गए थे। 

सेवा के जज्बे ने सन्यासियों को बनाया सेवादार

आधा दर्जन घाट पर तैनात है 150 वॉलेंटियर
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
पीली डेÑेस में खड़े पुलिस और होमगार्ड के जवानों की तरह दो दर्जन से अधिक भगवा वेष धारी साधु-सन्यासी रामघाट पर मुश्तैद खड़े थे। हरे और पीले रंग की टी-शर्ट पहले उनके साथ उनके वॉलेंटियर भी थे जो नदी में नहाने वाले हर व्यक्ति पर निगाह रखे  हुए थे। जैसे ही कोई नियम उल्लंघन करता तत्काल सीटी बजा देते। न सिर्फ रामघाट बल्कि सभी प्रमुख घाटों पर यह व्यवस्था की है कोलकाता के भारत सेवाश्रम संघ ने। ताकि कोई नदी में डूबे न। 
    दूसरे शाही स्नान पर भी संघ के सिपाहसालारों की मुश्तैदी नजर आई। संघ ने दत्त अखाड़ा जोन और महाकाल जोन के अंतर्गत आने वाले तकरीबन आधा दर्जन घाटों पर 150 सन्यासी और वॉलेंटियर घाटों पर तैनात किए हैं जिनका काम है नहाने वाले श्रृद्धालुओं का ध्यान रखना  और उन्हें डूबने से बचाना। 20 अपै्रल 2016 को संघ को सेवा की अनुमति दी है होमगार्ड के डिस्ट्रिक्ट कमाडेंट सुमत जैन ने। संघ भूखी माता रोड स्थित अपने प्रकल्प में 10 बेड का अस्पताल और अन्न क्षेत्र भी संचालित कर रहा है जहां बड़ी तादाद में लोग लाभ ले रहे हैं। 
फस्ट एड बॉक्स टीम भी मैदान में 
संघ सेवा को समर्पित है। नारायण की सेवा यहां हर प्रकल्प में हो रही है। हम नर की सेवा से आनंदित हैं। सेवा सिर्फ सरकारी जिम्मेदारी नहीं है बल्कि सिंहस्थ के लिए सफलता के लिए हम सबको इसमें सहयोग देना चाहिए। संघ ने तैराकी दल और अस्थाई अस्पताल के साथ दर्जनभर से अधिक फर्स्ट एड टीम भी नियुक्त की है। 
सौरभानंद गिरी , भारत सेवाश्रम संघ
आर्किटेक्ट और मॉडल मेकर बजा रहे हैं सिटी
संघ में एक से बढ़कर एक सेवादार हैं। सबकी प्रोफाइल मजबूत है। ऐसे ही एक हैं अशीम भौमिक जो कि मुलत: कोलकाता के ही हैं। वे आर्किटेक्ट और मॉडल मैकर होने के साथ ही ड्रामे की एक संस्था भी चलाते हैं। टीवी सीरियल में एक्टिंग भी करते हैं। वे 20 अप्रैल से यहां है। उन्होंने बताया कि उन्हें सेवा में बड़ा मजा आता है। वे शाही स्नान या पर्व स्नान की ज्यादा समझ नहीं रखते। हां, स्वामीजी ने काम बताया नहीं कि उन्हे करते देर नहीं लगती। उनका कहना है कि जब सेवा करते हैं तो घर जाकर सुकुन मिलता है। 
किस घाट पर कितने लोग...
दत्त अखाड़ा घाट         50 
कर्कराज मंदिर घाट         20 
नृसिंह घाट             20
रामघाट                 20 
भूखी माता घाट             20
गुरूनानक घाट             20

मौसम विभाग के चेताए नहीं चेता उज्जैन

राम भरौसे ही रहे संत और शासन, श्रृद्धालू परेशान

दबंग एनालेसिस विनोद शर्मा । 
गुरूवार को हुई बेमौसम बरसात ने साधुओं से लेकर मप्र के मुखिया शिवराजसिंह चौहान को पसीने ला दिए थे बावजूद इसके न प्रशासन ने कोई सीख ली। न ही सरकार ने। यही वजह है कि दूसरे शाही स्नान के अवसर पर सोमवार दोपहर हुई बेमौसम बरसात ने एक बार फिर गुरुवार की तबाही ताजा कर दी। वही रामघाट पर चेम्बर फूटा और लाखों श्रृद्धालुओं के स्नान से पहले ही डेÑनेज का गंदा पानी शिप्रा को मेली कर गया। खेत की जमीन पर विकसित किए गए मेला क्षेत्र की अंदरूनी कच्ची सड़कें कीचड़ में तब्दील हुई और लोगों का एक बार फिर पैदल चलना भी दूभर हो गया। 
    गुरुवार की बरसात से हुई नुकसानी का सर्वे भी पूरा नहीं हुआ था कि सोमवार दोपहर हवाओं के साथ हुई बरसात ने श्रृद्धालुओं की भीड़ से जमे दूसरे शाही स्नान के रंग पर पलीता फेर दिया। तेज बारिश ने पूरे मेला क्षेत्र को कीचड़ में तब्दील कर दिया। आंधी के चलते कई जगहों पर पंडाल गिरे। इसके कारण दूसरे शाही स्नान में भी लोगों को दिक्कतें हुईं। उज्जैन में मौसम विभाग ने बारिश और आंधी के चेतावनी पहले ही दे रखी है। मौसम विभाग भोपाल ने कहा था कि दूसरे शाही स्नान के दौरान 50 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से तेज हवाएं चलेंगी।  आंधी और बारिश के दौरान साधु-संतों और भक्तों पंडाल से बाहर रहने के निर्देश दिए थे। इस चेतावनी से न शासन-प्रशासन चेता नजर आया। न ही साधु-संत। सब राम भरौसे रहे। साधु-संत काले बादल देखकर तेज मंत्रोंच्चार से इंद्रदेव को डराने का प्रयास करते रहे वहीं प्रशासनिक अमला भी यही मान चुका था कि अब बरसात नहीं होगी। इसीलिए अंदरूनी सड़कों पर चूरी बिछाने का काम अब तक पूरा नहीं हुआ। न ही सेटेलाइट टाउन ‘जिन्हें पार्किंग व बस स्टैंड बनाया गया है’, वहां भी वाहनों को कीचड़ से बचाने के कोई इंतजाम नहीं दिखे। हालांकि कलेक्टर कवींद्र कियावत ने सभी जोनल, सेक्टर मजिस्ट्रेट को किसी भी हालात से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा है।
45 मिनट की बरसात में हुआ 150 करोड़ नुकसान
उज्जैन में गुरुवार शाम अचानक हुई तेज बारिश और आंधी में एक साधु और तीन महिलाओं समेत 8 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 90 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। बारिश और तुफान से तकरीबन 60 पांडाल पूरी तरह ध्वस्त हो गए थे। वहीं 700 से अधिक पांडालों में आंशिक नुकसान हुआ था। खाद्य सामग्री के साथ इस नुकसानी का अनुमान 150 करोड़ के रूप में लगाया जा रहा है। गुरुवार को आंशिक रूप से प्रभावित हुए कई पांडाल सोमवार को तितर-बितर नजर आए। वह भी उस स्थिति में जब कई पांडालों में गुरुवार को हुए नुकसान से निपटा जा रहा है। कई पांडाल ऐसे हैं जो अब भी झूके हुए हैं। गिरे हुए हैं। 
रोने लगे हैं दुकानदार 
अच्छी कमाई या मुनाफे की आस में इंदौर, उज्जैन और देवास सहित मप्र के अन्य शहरों व अन्य प्रदेशों के लोगों ने दुकानें लगाई है। इन दुकानदारों को पहले शाही स्नान पर श्रृद्धालुओं की कमी ने रूलाया। जैसे-तैसे गाड़ी ट्रेक पर आई। लागत निकलने लगी ही थी कि गुरुवार की बरसात ने सामान खराब कर दिया। सबसे ज्यादा नुकसान होटल और कपड़ों की दुकानों पर हुआ। रविवार को दूसरे शाही स्नान के लिए उमड़ी भीड़ ने उम्मीद की नई किरण जगाई जो भी बादलों को बर्दाश्त नहीं हुई। सोमवार की बरसात ने फिर उनके मंसूबों और कारोबार पर पानी फेर दिया। 
फिर वही मंजर क्यों? 
1- पहले सिंहस्थ में पानी नहीं गिरा इसीलिए सिंहस्थ 2016 की सफलता की कामना भी खेतों के भरौसे कर दी। अंदर तकरीबन 80 किलोमीटर से अधिक लंबी सड़के हैं लेकिन इन सड़कों पर मुरम-गिट्टी चूरी तक नहीं बिछाई गई। इसका खामियाजा गुरुवार को लोगों ने चुकाया। ताबड़तोड़ शुक्रवार को चुराई बुलाई गई लेकिन वहां डाली जहां गड्डा था। पूरी रोड पर नहीं बिछाई गई। इसीलिए सोमवार को भी कीचड़ हुआ और लोग परेशान हुए। 
2 - वर्षों से उज्जैन का सीवर सिस्टम नदी किनारे हैं। सिंहस्थ तो दूर शिप्रा की सेहत का ध्यान रखकर भी इस सिस्टम को मजबूत नहीं किया गया। इसीलिए गुरुवार को 45 मिनट में आधे इंच बरसात में चेम्बर उबल पड़े। सोमवार को भी यही हुआ। गुरुवार से सोमवार के बीच भी इन चेम्बरों की सफाई नहीं हो पाई। 
3- पांडालों की मजबूती पर साधुओं के साथ सरकार ने सख्ती से काम नहीं किया। इसीलिए गुरुवार को जो पांडाल तेड़े-मेड़े हुए थे उनमें से कई सोमवार को आड़े हुए। वह भी उस स्थिति में जब चिंतामन रोड और मंगलनाथ क्षेत्र में आधा दर्जन से अधिक पांडाल गिरने के बाद संत सामान तक समेट चुके हैं। यानी बरसात आती रहेगी और संत सामान समेटकर निकलते रहेंगे लेकिन शासन कुछ नहीं करेगा। 
4- गुरुवार की बरसात के बाद भी 100 किलोमीटर सड़कों का सारा दारोमदार 25 किलोमीटर लंबी सड़कों पर आ गया था और चौतरफा जाम लगा। सोमवार तक सरकार वैकल्पिक व्यवस्था नहीं कर पाई ताकि जम न लगे। या कम लगे। जो वैकल्पिक मार्ग हैं भी तो उनकी ब्रांडिंग नहीं की गई।

पौन घंटे की बरसात ने बिगाड़ी सिंहस्थ की सूरत

दो दर्जन से ज्यादा पांडाल गिरे, कई में पानी भरा, उलीचते रहे लोग
मेला क्षेत्र के कीचड़ ने मेला कर दिया उज्जैन 
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
पहले तेज धुप, फिर काली घटाएं, तेज हवा, मोबाइल पर इंदौर में बरसते पानी के समाचार ने चेहरा उतारा ही था कि अचानक शुरू हुई तेज बारिश ने सिंहस्थ की शान-ओ-शौकत को धोकर रख दिया। तकरीबन पौन घंटे तक हुई बेमौसम बरसात ने पूरे मेला क्षेत्र की सूरत बिगाड़ दी। 24 घंटे खुली रहने वाली दुकानें बंद हो गई। कई बड़े पांडाल ध्वस्त हो गए। कीचड़ का रुप अख्तियार कर चुकी कच्ची सड़कों ने वाहनों और श्रृद्धालुओं की अपार भीड़ के साथ पक्की सड़कों को जाम कर दिया। 
    सिंहस्थ की तैयारियों के साथ ही साधु-संत और श्रृद्धालुओं द्वारा कच्ची सड़कों पर मुरम-चूरी की जरूरत जताई जा रही थी जिसे बादलों को अपनी बपौती समझते आए अफसर सिरे से नकारते रहे। अफसरों की ‘समझदारी’ का खामियाजा गुरुवार को साधुओं-संतों से लेकर श्रृद्धालुओं तक को चुकाना पड़ा जो पौन घंटे की बरसात में ही अपने पांडालों में कैद होकर रह गए। मुलत: खेतों को अधिग्रहित करके विकसित किए गए मेला क्षेत्र में इतना कीचड़ हो गया कि दोपहिया-चार पहिया वाहन तो दूर लोगों का पैदल चलना भी मुश्किल हो चुका था। 
देखते ही देखते बदल गई सिंहस्थ की सूरत
्रुइंदौर में हो रही बरसात की खबरें जब वॉट्सएप पर चल रही थी तब तक उज्जैन में सिर्फ बादल ही छाये नजर आए थे। चूंकि बादल लगातार छाये रहे हैं इसीलिए लोगों ने तनाव नहीं लिया। शाम 4.18 बजे अचानक बुंदाबांदी शुरू हुई। जो लोग वाहनों के साथ मेला क्षेत्र की कच्ची सड़कों पर थे उन्होंने मुख्य मार्गों की ओर रूख करना शुरू कर दिया। 4.23 बजे तक बड़ी बुंदों के साथ जैसे ही बरसात शुरू हुई श्रृद्धालुओं से आबाद सड़कें सूनी हो गई। जिसे जहां जगह मिली वहां छिपकर बैठ गया। कोई होटल, कथा पांडाल या दुकानों में पहुंचा तो कई ने साधु संतों की ब्रांडिंग के लिए लगे बैनरों को ही छाता बना लिया। दुकानें बंद हो गई। 
पांडालों में उमड़ी भीड़ 
करोड़ों की लागत से बने पांडाल अब तक श्रृद्धालुओं की भीड़ से महरूम थे लेकिन उनकी इस कमी को भी बादलों ने पूरा कर दिया। चूंकि बड़े पांडालों में बारिस से बचाव की व्यवस्था थी इसीलिए बादलों से बचने के लिए उनसे अच्छी जगह नहीं थी। हालांकि भीड़ भी रोड किनारे के पांडालों में ही नजर आई। इसके ठिक विपरित अंदर जो पांडाल थे वहां जाकर छिपे लोग बाद में कीचड़ से परेशान होते रहे। 
बिना धक्के के बाहर नहीं आई गाड़ियां 
मेला क्षेत्रों में प्लॉटों के साथ कच्ची रोड थी जो सिर्फ खेतों में पानी का छिड़काव करके तैयार की गई थी वह बारिश में पूरी तरह उखड़ गई।  ये सड़कें मुख्य मार्गों से नीचे है। इसीलिए पहले तो लोगों को मुख्य मार्ग तक गाड़ियां लाने में पसीने आ गए फिर मुख्यमार्ग पर चढ़ाने में। कीचड़ भरने के कारण कई गाड़ियां नहीं चड़ी जिन्हें लोगों ने धक्का देकर सड़क से लगाया। 
उड़े दो दर्जन से अधिक पांडाल 
उजड़खेड़ा सेक्टर-1 में यथार्थ गीता कैंप, मुल्ला पूरा में हरिहर चंद आश्रम के कैंप और सदावल रोड पर महामंडलेश्वर धर्मेंद्रगिरी सहित तकरीबन दो दर्जन कैंप के पांडाल उड़े। इसीलि  श्रृद्धालुओं के साथ ही वहां निवासरत साधु-संत भी परेशान होते रहे।
महंगे पांडाल भी पानी से लबरेज 
सिंहस्थ में सबसे बड़ा पांडाल स्वामी अवधेशानंद के प्रभू प्रेमी संघ का है तकरीबन 20 एकड़ जमीन पर। यहां किले रूप में पांडाल और चार दीवारी बनाई गई थी। सिंहस्थ शुरू होने से पहले हवा के तेज झौकों ने दीवार ध्वस्त कर दी थी वहीं गुरुवार की बरसात ने पांडाल के मुख्य द्वार के पास घुटने तक पानी भर गया। लोग कभी कपड़ों को संभालकर निकलते तो कभी माथे पर रखे सामान को। करीब-करीब यही स्थिति हर तीसरे बड़े पांडाल की रही। लोग पानी उलीचते नजर आए। 
पुलिस को पसीने ला दिए भीड़ ने 
श्रृद्धालुओं व वाहनों की भीड़ ने पुलिस को पसीने ला दिए। मेला क्षेत्र और उसकी कच्ची सड़कों की लंबाई 100 किलोमीटर से ज्यादा है लेकिन बारिश के कारण सारा तनाव डामर-कांक्रीट की 25 किलोमीटर लंबी सड़कों पर ही आ गया। कीचड़ के कारण सड़क घेर कर चल रहे श्रृद्धालुओं के कारण पहले ही सड़क आधी हो चुकी थी। इसीलिए जब सारी भीड़ सड़कों पर आई तो यातायात व्यवस्था ठप हो गई। वाहनों के साथ पैदल चलने वाले रेंगते रहे। 
लाल हो गई सड़क 
मेला क्षेत्र की कई सड़कें नई है। इनमें से आधी के दोनों ओर मुरम डली है। जहां मुरम डली है वे सड़कें वाहनों और श्रृद्धालुओं के पैर के साथ चिपके कीचड़ से पूरी लाल हो गई। वहीं जहां मुरम नहीं थी वे सड़कें कीचड़ ने फिसलन बढ़ा दी।

45 मिनट की बरसात, 150 करोड़ का नुकसान

दूसरे दिन हुआ सरकारी सर्वे, संतों ने लिखवाई नुकसानी
उज्जैन से विनोद शर्मा। 
प्लॉट नं. 340/1-2...। श्री महंत मणिरामदास जी महाराज...। सनकादिक तपोवन...। पांडाल और गेट की क्षति 12 लाख रुपए...। पांडाल में पानी भरने से खराब अनाज-कपड़े और रसद की कीमत 30 लाख...। कुल नुकसानी 42 लाख...। प्लॉट नं. 340/3...। महंत संतोषदास जी मुनी...। पांडाल और गेट से हुआ 20 लाख का नुकसान...। 30 लाख का अनाज, रसद और कपड़े  30 लाख के खराब। यह जानकारी दर्ज है शुक्रवार को हुए नुकसानी सर्वे की रिपोर्ट में जो कि गुरुवार की बेमौसम बरसात के प्रभाव को जांचने के मकसद से तैयार की गई है। प्रारंभिक सर्वे के आधार पर सामने आए नुकसानी के आंकड़ों के आधार पर 45 मिनट की बरसात से 100 से 150 करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है। 
    सबसे ज्यादा नुकसान हुआ मंगलनाथ जोन में  494 प्लॉट हैं और तकरीबन 400 से अधिक प्लॉटों पर पांडाल और गेट गिरने के साथ ही पानी भरने से वहां रखे कपड़े, रसद, अनाज व बिस्तर भी खराब हो गए। साधु-संतों के विरोध के बाद एक-एक अधिकारी को 5-5 प्लॉट के सर्वे की जिम्मेदारी दी गई। शाम तक सर्वे रिपोर्ट तैयार हुई। जिस दत्त अखाड़ा जोन में सबसे ज्यादा 2352 प्लॉट है वहां नुकसानी ज्यादा नहीं हुई। यहां दुकानदारों का नुकसान ज्यादा हुआ। संत कीचड़ से ज्यादा परेशान हुए। कालभैरव जोन में तकरीबन 2 करोड़ के नुकसान का आंकलन किया गया। वहीं त्रिवेणी में भी नुकसानी करीब-करीब इतनी ही रही। 
आंकड़े हकीकत से दूर तो नहीं 
रिपोर्ट में साधु-संतों द्वारा बताए गए नुकसानी के आंकड़े लिखे गए हैं। इसीलिए यह भी माना जा रहा है कि साधु-संतों ने नुकसानी का आंकलन अनुमान के अनुसार किया है तो कि वास्तविक नुकसानी से ज्यादा है। 
जितने बड़े पांडाल, नुकसान भी उतना ही ज्यादा
नुकसान सबसे ज्यादा बड़े पांडालों में हुआ। फिर करोड़ों की लागत से बनाए गए रावतपुरा सरकार का तिरूपति बालाजी मंदिर हो या फिर ताश के पत्तों की तरह पूरी तरह बिखर चुका भगवान श्री नारायण खालसे का पांडाल हो। इस्कॉन, मंदाकिनी देवी, 108 कनक बिहारी खालसा, सदगुरु श्री रणछोड़दास खालसा, निम्बार्क धनंजयदास कठिया बाबा खालसा सहित मंगलनाथ जोन में ही 60 से अधिक पांडाल प्रभावित हुए हैं जो कि बड़े थे। इनमें से 40 पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं। 360 में आंशिक नुकसान का आंकलन किया गया है। 
बड़ी तादाद में राशन खराब हो गया है 
बड़े पांडालों में बड़े अन्न क्षेत्र भी संचालित थे। यहां स्थाई सदस्यों के लिए शासन से मिले राशन के साथ ही वह राशन भी बड़ी संख्या में था जो पांडालपति स्वयं अपने मुकाम से लाए थे। जम्मू से आए श्रीश्री 1008 महंत संतोषदासजी महाराज ‘मौनी बाबा’ के पांडाल में व्यवस्था संभाल रहे रामेश्वर दासजी ने बताया कि हम तो सीधे आटा लेकर आए थे। तकरीबन 100 क्विंटल आटा व अन्य सामान खराब हुआ है। उन्होंने रसद की नुकसानी तकरीबन 30 लाख रुपए बताई। काल भैरव जोन में 75 लाख की खाद्य सामग्री के नुकसान का आंकलन किया गया है। 
चौतरफा चिपककर बचाई गुरुजी की कुटिया
मंगलनाथ जोन में जब तेज हवा से पांडाल गिरा उस वक्त तकरीबन 500 से अधिक साधु-संत मौजूद थे। पांडाल यकायक ध्वस्त हो गया। इधर, घास-फुस से बनी गुरुजी की कुटिया भी उड़ रही थी जिसमें भगवान स्थापित हैं तभी श्रृद्धालुओं ने बिना किसी परवाह किए बिना कुटिया से चिपक गए। चौतरफा श्रृद्धालु तेज हवा और पानी के थपेड़े सहते रहे लेकिन उन्होंने कुटिया नहीं छोड़ी। इसीलिए कुटिया बची भी। शुक्रवार को सभी के भोजन की व्यवस्था पड़ोस के खालसे में की गई। 
कीचड़ ने टेंट से बाहर कर दिया
कई कैंप ऐसे हैं जहां कीचड़ के कारण टेंट तक पहुंचना मुश्किल हो चुका था। साधु संतों के साथ ही वे लोग भी परेशान होते रहे जो यहां आकर ठहरे थे। 
नुकसान यह भी...
1- कपड़ों की दुकानों में कपड़े खराब हुए...। 
2- होटलों में रसद खराब हुई। 
3- जूते-चप्पल खराब। 
4- हैंडीक्रॉफ्ट आइटम भिगे, पेपर वर्क खराब। 
5-कुटिया और टेंट गिरे। 
7-तंबुओं में जो बिछात थी वह पूरी तरह कीचड़ में चिपक गई। 
8- टेंट के कपड़े फटे, उड़े, टीनशेड उड़े। 
(इस नुकसानी का आंकलन 50 करोड़ से अधिक के रूप में किया गया है। )
कहां कितने प्रभावित 
जोन             आंशिक        भारी 
मंगलनाथ जोन         360        40
दत्त अखाड़ा जोन        10        2
काल भैरव         229        2
महाकाल जोन         220        10
त्रिवेणी जोन         20        1
टेंट का नुकसान ज्यादा, खाने का कम
मंगलनाथ जोन में 360 टेंट में आंशिक और 40 कैंप में भारी नुकसान हुआ है। खाने की सामग्री का नुकसान ज्यादा नहीं है। क्योंकि सरकार से मिली ज्यादातर सामग्री तो लोग खपा चुके थे। हालांकि सर्वे अभी जारी है। साधु-संतों द्वारा जो नुकसानी बताई जा रही है उसकी भी समीक्षा होगी। 
नरेंद्र सूर्यवंशी, अपर कलेक्टर
दो करोड़ का नुकसान 
काल भैरव जो में भारी नुकसान नहीं हुआ। प्रारंभिक आंकलन के अनुसार 1.34 करोड़ के तो पांडाल-गेट में क्षति हुई है तकरीबन 75 लाख की खाद्य सामग्री खराब हुई है। 
गोपाल डाड, अपर कलेक्टर
त्रिवेणी जोन में नुकसान नाममात्र का। एक-दो पांडाल में ही थोड़ा ज्यादा था। 
डी.के.नागेंंद्र, अपर कलेक्टर

फौजी रंग-ढंग के गुरू और चेला 23 साल से फलाहारी

मंगलनाथ पर गुरू-शिष्य की चर्चित जोड़ी

उज्जैन से विनोद शर्मा । 
सिंहस्थ 2016 में एक से बढ़कर एक साधु-संत आए हैं। इनमें इंदौर के महू से आए गुरू और चेले की जोड़ी भी श्रृद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। सेना से रिटायर होने के बाद सन्यास लेकर जहां गुरू फौजी बाबा कहलाये वहीं गुरू के आदेश पर 23 साल से अन्य त्यागकर उनके शिष्य  रामगोपालदास फलाहारी बाबा कहलाए। 
आश्रम में मिल्ट्री कानून और हाथ में बंदूक
मुलत: महू से ताल्लुक रखने वाले फौजी बाबा की मां कृष्ण भक्त थी जो बच्चे की तरह ठाकुरजी की देखभाल करती थी। उन्हीं से आध्यात्मिक प्रेम संस्कार में मिला। 1956 में उन्होंने घर छोड़ सन्यास का रास्ता पकड़ लिया था। हालांकि परिवार ने ढूंढ लिया। 1960 में भारतीय सेना में भर्ती हो गए। 1961 में घर वालों ने शादी करवा दी ताकि फिर सन्यास का विचार त्याग दे। फौज में रहते 1962 और 1965 की जंग लड़ी। 1992 में रिटायर हुए। जैसे ही रिटायर हुए घर छोड़ सन्यासी हो गए। देवरा बाबा ‘जो पैर से आशीर्वाद देते थे’, से दीक्षा ली और जामली में स्थान बनाया। हालांकि सन्यासी होने के बाद भी न सेना के अनुशासन छूटे। न ही बंदूक। उनके आश्रम में मिल्ट्री लॉ ही लागू है जहां गलती के बाद माफी नहीं, सजा ही मिलती है। 
    फौजी बाबा ने मौजूदा वाणिज्यिक कर आयुक्त राघवेंद्र सिंह के इंदौर कलेक्टर रहते राइफल के लाइसेंस लिए आवेदन किया था। सिंह ने कहा कि आप तो सन्यासी हो, आपको इसकी क्या जरूरत। इस पर बाबा ने कहा था कि जब परशुराम परशु रख सकते हैं तो मैं बंदूक क्यों नहीं। हालांकि बंदूक लेने के साल-डेढ़ साल बाद उनका एक्सीडेंट हो गया जिसमें उन्हें एक हाथ गंवाना पड़ा। फिर भी वे बंदूक प्रेम बरकरार है वे जहां जाते हैं उनकी बंदूक साथ रहती है। वे कहते हैं कि जब शस्त्र हाथ में हो तो तेढ़े से तेढ़ा आदमी भी सीधी बात करता है। अन्यथा लोग कमजोर समझता है और सन्यास वैसे भी मजबूत करता है, कमजोर नहीं। 
26 हजार पेंश आती है, पूरा परिवार है 
फौजी बाबा के दो बेटे और एक बेटी है। एक बेटा वॉर कॉलेज महू में है। नाती-पोते से भरपूर है बाबा का परिवार। बाबा के आश्रम का खर्च सेना से मिलने वाली उनकी अपनी पेंशन (26 हजार) से चल जाता है। 
गुरू ने कहा मेरा भंडारा हो तभी खाना, तभी से फलाहारी
एक बार फौजी बाबा के दिल्ली स्थित आश्रम में आटा कम था। एक ही व्यक्ति की रोटी बन सकती थी। इसीलिए फौजी बाबा की रोटी बना दी। परौसी तो उन्होंने अपने साथ भोजन करने को कहा। चूंकि भोजन नहीं था इसीलिए मना कर दिया। गुरूजी जिद पर अड़े रहे। बाद में सालभर पहले ही आश्रम का सदस्य बने रामगोपालदास ने कहा आटा खत्म होने की जानकारी दी। गुरुजी ने थाली दूर कर दी और गुस्से में कह दिया कि अब जब मेरा भंडारा होगा तभी तुम लोग भोजन करना। तभी से रामगोपाल दासजी ने भोजन त्याग दिया। 23 साल हो चुके हैं उन्हें सिर्फ फलाहार करते हुए। इसीलिए उनका नाम ही फलाहारी बाबा पड़ गया। 
    फलाहारी बाबा ने कहा कि गुरू की आज्ञा सिरोधार्य है। ईश्वर करे वह दिन कभी न आए जब उनके नाम का भंडारा (उनके निधन के बाद दिया जाने वाला भोज) हो। गुरू के प्रेम और ईश्वर की अनुकंपा ही है जो हम अपने संकल्प पर अडिग हैं। हालांकि गुरूजी ने बाद में कहा भी कि तुम भोजन कर सकते हो लेकिन कभी मन माना ही नहीं। साधु रोटी खाने के लिए नहीं बना, गुरू सेवा के लिए बना हूं। हमारे सत्कर्म से संसार को ही लाभ मिल जाए। हमें मिले न मिले।

गुरूभाई को हुई सोराइसिस, दवा खोज वेद बन गए महामंडलेश्वर

अब तक 10 हजार लोगों का कर चुके हैं ईलाज 
 उज्जैन से विनोद शर्मा ।  
अपने गुरू भाई को सोराइसिस से तड़पता देख दुनियाभर के हकीमों और आयुर्वेदाचार्यों की किताबें पढ़ डाली। दवा खोजी और ईलाज कर दिया। गुरू भाई के स्वस्थ्य होने के बाद न दवा रूकी, न ही इस दवा को खोजने वाले सहस्त्रधारा देहरादून से आए महामंडलेश्वर महेशानंद गिरी का हाथ रूका। स्वामीजी सोराइसिस के 10 हजार से अधिक  गंभीर रोगियों को अब तक ठीक कर चुके हैं जबकि 5 हजार लोगों का ईलाज जारी है। 
सदावल मार्ग पर बाइसा के आश्रम के ठीक सामने सोमेश्वर धाम। यहां मुख्य द्वार पर सोराइसिस पीड़ितों के फोटो लगे हैं। एक तरफ भागवत कथा चल रही है तो दूसरी तरफ एक कक्ष में महामंडेलश्वर महेशानंद जी पीड़ितों को देखते नजर आते हैं। स्वामी जी ने बताया कि हमारे बड़े गुरुभाई थे जो कि अब ब्रह्मलीन हो गए। शिक्षा-दीक्षा के बाद मैंने शास्त्री की आयुर्वेद से। आश्रम पद्धति से आचार्य किया। उसके बाद तपस्या करने चला गया। लौटा तब तक उन्हें सोराइसिस हो चुका था। बहुत पीड़ित थे। उनकी पीड़ा ने ही मुझे सोराइसिस की भयावहता से परिचित करा दिया। युनानी वेद लुकमान हकीम की उर्दु किताबों को अनुवाद करवाकर पढ़ा। पतंजली, धनवंतरी और च्यवन ऋृषि की किताबें पढ़ी। आयुर्वेद के नुस्के पढ़े। इसके बाद बीमारी का निदान मिला। 
सोराइसिस साधना और पीड़ित हो गए भगवान
गुरुभाई ठीक हो गए। इसके बाद से ही मैंने इस बीमारी से लड़ाई को ही साधना और पीड़ितों को ही भगवान माना है। मैं उनकी सेवा करता हूं वे ठीक होते हैं तो लगता है कि ईश्वर प्रसन्न हो गए। ज्ञान की गंगा सभी पांडालों में बह रही है। हमारे यहां भी कथा जारी है लेकिन मैं अपना ज्यादातर वक्त पीड़ितों की सेवा के लिए ही देता हूं।  दिव्यांग, गरीब, अनाथ, असाय, साधू, संत और फकीर को नि:शुल्क दवा दी जाती है। यूं एक महीने के डोज की कीमत 3 हजार रुपए है। सिंहस्थ में सभी के लिए निशुल्क है। 
यहां पानी गंदा और लोगों की व्यस्तता ज्यादा
अब तक वे 250 से अधिक मरीज देख चुके हैं। पीड़ितों की संख्या देख वे भी हैरान हैं। उन्होंने 25-50 का ही अनुमान लगाया था। उनकी मानें तो प्रकल््प 20 अपै्रल से शुरू हुआ है। अब तक इतने पीड़ित। प्रकल्प 25 मई तक रहेगा। तब तक इनकी संख्या 500 तक जा सकती है। वे दो टूक शब्दों में कहते हैं कि पीड़ितों की इस संख्या से साफ है कि यहां पानी की गुणवत्ता गड़बड़ है। यह बीमारी ज्यादातर दुषित जल, केमिकल युक्त फल-सब्जियों के इस्तेमाल और नियम समय के विपरीत भोजन करने से होती है। 
मां के गर्भ से मिल जाती है बीमारी 
पीड़ित को रोग मां के गर्भ से मिल सकता है। गर्भ के दौरान पाचन क्रिया या हाजमा खराब होने की स्थिति में  महिलाओं को खटाई भाती है या फिर मिट्टी। गांव में महिलाएं बीड़ी तक पीती हैं। जिससे उनके पेट में पित्त उत्पन्न हो जाता है जिसका असर भ्रूण पर पड़ता है। जो जन्म के बाद आगे चलकर चर्म रोग और बाद में सोरायसिस से पीड़ित हो जाता है। 
क्या है सोराइसिस
सोरायसिस एक प्रकार का चर्म रोग है जो पित्त से उत्पन्न होता है। वैसे तो चर्म रोग 64 प्रकार के होते हैं लेकिन इनमें सोरायसिस का मुख्य लक्षण चर्म रोगियों को शरीर पर हल्के दाने तथा उसमें सतत खुजली चलना होता है। खुजली से परेशान व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेता है। 
सबसे बड़ा है परहेज व सावधानी
रोटी : गेहूं की रोटी, अंकुरित चने, दलिया, मिस्सी रोटी ही लें। 
सब्जी : गाजर, मटर, पत््तेदार सब्जियां, आलू, लौकी, तुराई, व बंद गोबी। 
दाल : सिर्फ मुंग की दाल। 
तड़का : देश घी या रिफाइंड आॅइल। हरी मिर्च, प्याज, हल््दी, नमक, जीरा
फल : सेब, चिकू, पपीता, अमरूद ही। 
चाय: गाय का दूध शुद्ध फिल्टर पानी भैंस के दूध में चाय की हल्की पत्ती। 
मीठा : मिठा खंड, चीनी बूरा, पेठे

हवा में उड़े सिंहस्थ के शौचालय

आधे-अधूरे सुविधाघर बने श्रृद्धालुओं की मुसीबत
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
हवा के तेज झौकों ने जहां सिंहस्थ 2016 के लिए उज्जैन में बने साधु-संतों के अस्थाई पांडाल हिला दिए है वहीं खुले में शौच रोकने के मकसद से बनाए गए शौचालयों को भी तास की तरह बिखेरना शुरू कर दिया है। नागदा बायपास पर मालवा व्यापार मेले की जमीन पर तेज हवा से बिखरे पड़े शौचालय इसका बड़ा उदाहरण है। शौचालयों की इस बदहाली ने उनकी गुणवत्ता को लेकर सरकार और निर्माण कंपनी सुलभ इंटरनेशनल को कठघरे में खड़ा कर दिया है। 
     22 अप्रैल से शुरू हुए महामेले में समाज के हर तबके के लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ना है। इसके मद्देनजर सरकार ने शहर और मेला क्षेत्र में करीब 34,000 शौचालय, लगभग 10,000 मूत्रालय और तकरीबन 15,000 स्नानघर भी बनाये हैं। इनकी गुणवत्ता पर शुरू से सवाल उठ रहे हैं। इन सवालों की पुष्टि की मालवा व्यापार मेले की जमीन पर बने सुविधाघरों ने। इन सुविधाघरों का काम आखिर में शुरू हुआ था। अभी इस्तेमाल भी शुरू नहीं हुआ था कि दो दिन पहले हवा के तेज झौकों में आधा हिस्सा ताश की तरह बह गया। बिखरा भी ऐसा कि एंगल-शीट के साथ युरोपियन कमोट भी उड़कर बिखर गए। बची तो सिर्फ देशी शीट। 
हमने काम नहीं किया
सुलभ इंटरनेशनल ने ठेका लिया था लेकिन काम दूसरे ठेकेदारों को सबलेट भी कर दिया। रविवार को भी सुविधाघर को नए सिरे से खड़े करने के प्रयास नहीं किए गए। पास में पाइप डालने का काम जरूर हो रहा था। काम करने वाली कंपनी सांवरिया कंस्ट्रक्शन के गजेंद्र ने बताया कि सुविघाघर हमने नहीं बनाए। 
ऐसे कैसे सुविधाघर
- यूरोपियन शीट का पूरा सेट होता है जिसमें वॉटर टेंक और ढक्कन तक शामिल है। वहीं जितने सुविधाघर बने हैं उनमें जो शीट लगी है वह आधी-अधूरी है। यहां सिर्फ शीट है। न वॉटर टैंक है। न ही ढक्कन। आधी-अधूरी शीट के साथ प्रशासन ने कंपनी ने शौचालय कैसे हस्तांतरित कर ली। ऐसे एक-दो नहीं कई आश्रम है। ख्यात कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर, बैतूल के बालाजी मंदिर, पहाड़ी बाबा खालसा के राजेद्रदासजी सहित कई संतों के आश्रम इस सूची में शामिल है।  
- जहां देशी शीट लगी है वह भी टूटी फुटी है। प्लेटफार्म उखड़ रहे हैं। शीट भी ऊंची-निची है। 
- सुविधाघरों में चार दिवारी के रूप में जो शीट लगाई गई उसे ठीक से फीट तक नहीं किया गया। बतौर उदाहरण शीट में जहां 10 नट-बोल्ट लगना है वहीं लग रहे हैं 5-6 ही। इसीलिए हवा के साथ हिलकर शीट टूट रही है। 
- आधे से अधिक सुविधाघरों की बोर्ड शीट पहले ही टूट चुकी है। कई के दरवाजे इस्तेमाल से पहले ही उखड़ चुके हैं जिन्हें दोबारा कसा तक नहीं गया। लोग खुले दरवाजें के साथ इनका इस्तेमाल करने को मजबूर है। 
- बायपास और चिंतामण सेक्टर सहित कुछ जगह ऐसी है जहां सुविधाघर बोर्ड शीट से नहीं बने। यहां लकड़ी की प्लाई से चार दिवारी खड़ी गई जो पानी लगने से फुलने लगी है। 
सुविधाघर चालू ही नहीं हुए 
जितने सुविधाघर बनाए गए हैं उनमें से 25 प्रतिशत को अब भी इस्तेमाल किए जाने का इंतजार है। आधों में पानी की टंकी नहीं है। आधों में टंकी है तो कनेक्शन नहीं हुए हैं। कई जगह पानी की सप्लाई तक नहीं हो रही है। इनमें सदावल मार्ग (नित्यानंद आश्रम के पास आसपास), बायपास, खिलचीपुर और त्रिवेणी जोन स्थित सुविधाघर शामिल है।

सन्यासियों का समाजशास्त्र

समाज में बदलाव की जिदउज्जैन से विनोद शर्मा ।
सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ सरकार और सिर्फ सामाजिक संगठन ही जनचेतना नहीं फैला रहे हैं, सांसारिक जीवन त्याग चुके साधु-सन्यासी भी इस दिशा में अपनी सकारात्मक सोच का प्रसार कर रहे हैं। कोई बेटी बचाने का संदेश दे रहा है तो कोई पेड़-पर्यावरण बचाने का। किसी ने नदियों को बचाने का बिड़ा उठाया है तो कोई गौ वध के खिलाफ अभियान छेड़े हुए है। अपनी कथाओं और यज्ञों के माध्यम से भी वे अपने इस समाजशास्त्र को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। 
गौ रक्षा : पाली 1.75 लाख गायें
पहाड़ी बाबा खालसा और श्री लक्ष्मी नृसिंह खालसे के देवाचार्य राजेंद्र दास महाराज पांच गौशालाएं संचालित करते हैं और उनमें 1.75 लाख गायें पल रही है। महाराज अपनी कथाओं के साथ ही मिलने आने वाले हर व्यक्ति को गौ रक्षा के लिए प्रेरित करते नजर आते हैं। 
बेटी है तो कल है
महानिवार्णी अखाड़े के महामंडलेश्वर और शनिधाम के पीठाधीश्वर दाती महाराज बेटियों को बचाने की दिशा में वर्षों से काम कर रहे  हैं। उज्जैन में उनके हर पोस्टर पर  बेटी बचाओ का संदेश है। अब वे उज्जैन में बेसहारा और निर्धन बेटियों के लिए बालगृह की शुरूआत करेंगे। शनिधाम गोशाला भी बनाएंगे। 
नदी से लेकर पर्यावरण तक की परवाह
परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष, गंगा एक्शन परिवार के प्रणेता एवं ग्लोबल इण्टरफेथ वाश एलायंस (जीवा) के सह-संस्थापक अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती उज्जैन में पेड़ और पर्यावरण बचाने के साथ शिप्रा नदी के पुनर्प्रवाह के लिए भी अभियान चला रहे हैं। उनके प्रकल्प में कथा नहीं बल्कि अलग-अलग 30 महाकुंभ हो रहे हैं। जिनमें शिक्षा के व्यावसायिकरण, श्रम सेवा, वनवासी सेवा सहित अलग-अलग मुद्दे शामिल हैं। 
शहीदों का स्मरण 
जम्मू से आए बाबा बालक योगेश्वर का प्रकल्प सबसे अनौखा है यहां सात कुंडीय 108 फीट ऊंची यज्ञशाला है। इस प्रकल्प में जीवनदाई देवताओं के फोटो-मुर्ति कम और देश पर प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों की तस्वीरें ज्यादा हैं। यहां इन्हीं की पूजा होती है। इन्हीं की स्मृति और शांति के लिए आहुति दी जाती है। 
पर्यावरण की शुद्धि-बेटी बचाओ 
बेटियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ श्री शंभू पंच दशनाम आवाहन अखाड़े के उर्द्धबाहू महंत भोलागिरि बापू 40 साल से अपने हाथ को ऊंचा किए हुए हैं। उनका साफ कहना है कि बेटियों और शांति और सुरक्षा के साथ ही समानता का वातावरण भी मिलना चाहिए। पर्यावरण शुद्धि के लिए वे  पांच हजार किलो द्रव्यों से तैयार की गई 121 फीट की अगरबत्ती भी जला रहे हैं।  
चिंता साधकों की सेहत की
सिंहस्थ में संतों के कैंप कथाओं और यज्ञ मंत्रों से गुंज रहे हैं वहीं हरिद्वार के महामंडलेश्वर प्रखरजी महाराज के प्रकल्प में कथापांडाल नहीं बना है 70 बेड का सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल जो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है। यहां 25 विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम नि:शुल्क सेवा दे रही है। यहां अन्नक्षेत्र भी चल रहा है। लू से बचाने के लिए श्रृद्धालुओं को केरी का पना भी पिलाया जा रहा है। 
पेड़ बचाओ, कल बचाओ 
गले में सोने की मालाएं और करोड़ों की पादुका से चर्चाओं में आए अरूण गिरी महाराज ‘अवधूत बाबा’ पर्यावण के संरक्षण के लिए 1008 कुंडी यज्ञ कर रहे हैं जिसमें 3000 टिन घी इस्तेमाल होगा। वे सवा लाख पौधे लगाने के लिए भी संकल्पित हैं। इसीलिए उन्हें लोग अब पर्यावरण बाबा भी कहने लगे हैं। 
सेवा ही सर्वोपरी 
स्वामी प्रणवनांद महाराज का भारत सेवा आश्रम संघ सेवा को सर्वापरी मानता है। इसीलिए उन्होंने सिंहस्थ 2016 में यात्रियों और साधु संतों की सेवा के लिए अपने करीब 250 स्वयंसेवक  और साधुओं की टीम उतारी है।  इनमें 100 तैराक और जीवनरक्षक भी हैं जो शिप्रा के घाटों पर स्नानार्थियों की सुरक्षा के लिए तैनात है। नि:शुल्क दवा दी जा रही है। अन्न क्षेत्र चलाया जा रहा है। 10 बेड का हॉस्पिटल भी बनाया है। 

Wednesday, May 11, 2016

महू के विजय ने उज्जैन में ड्रम काटकर बना दिए कुलर

कुलर की ऊंची कीमत से परेशान संतों को दी सस्ती हवा 
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
सिंहस्थ 2016 ने अब तक जहां संतों को साधना और श्रृद्धालुओं को शांति दी है वहीं महू को युवा जुगाडू वैज्ञानिक दिया है। वैज्ञानिक का नाम है विजय चौधरी जिसने पानी का ड्रम काटकर उसे न सिर्फ कुलर बना दिया बल्कि महंगे कुलर खरीद पाने में अक्षम फौजी बाबा कैंप को हवा से ठंडा भी कर दिया। इसीलिए आश्रम के संतों ने इस कुलर को ही विजय कुलर नाम दे दिया है। 
मंगलनाथ से उन्हेल रोड के बीच एक रोड है जहां फौजी बाबा का आश्रम बना है। इस आश्रम में नीले रंग के ड्रम हैं जो कुलर की तरह भन्नाट ठंडी हवा दे रहे हैं। इन्हें बनाया है 16 साल के विजय ने जो अपने पिता के साथ दो साल से बिजली रिपेयरिंग और टेंट फिटिंग का काम कर रहा है। आश्रम में विजय के हाथ से बने ऐसे एक-दो या दस कुलर नहीं है बल्कि 40 कुलर हैं जो करंट फैलने या पानी के लीकेज की संभावनाओं से दूर ठंडी हवा दे रहे हैं। 
कैसे किया इजाद
विजय ने बताया कि वह दो महीने पहले घर में बैठा था। घर का कुलर चल नहीं रहा था। पास में छोटी मोटर और पंखी रखी थी। मैंने 10 लीटर का ड्रम काटा। उसमें मोटर व पंखा फीट किया। जरूरत की कुछ चीजें और लगाई। बिजली कनेक्शन किया तो वह चल पड़ा। शाम को पापा व अन्य मित्रों को दिखाया। 
एक दम मिला 40 कुलर का आर्डर
फौजी बाबा आश्रम में टेंट भी चौधरी परिवार ने ही लगाया है। बाबा ने 40 कुलर की जरूरत जताई थी हालांकि बाजार में कुलर की कीमत ज्यादा थी, उतना उनका बजट नहीं था। विजय का कुलर ‘जो वह महू से बनाकर लाया था’, देखकर गुरूजी ने कहा कि ऐसे ही कुलर बना दो। फिर क्या था, विजय को सब काम से मुक्त करके सिर्फ कुलर बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। तीन-चार दिन की मेहनत से उसने 40 कुलर तैयार कर दिए। कुलर पूरी तरह तैयार हुए भी नहीं थे कि सामने लगे खड़ेश्वरी आश्रम और इंदौर के कम्प्यूटर बाबा आश्रम से भी 50-50 कुलर की डिमांड आई। विजय ने बताया कि बना हुआ एक कुलर 1500-1600 रुपए का पड़ा है जबकि उसकी साइज फुल है। 
कुलर महंगे थे बाजार में इसीलिए विजय कुलर बनवाया 
बच्चा छोटा कुलर घर से लेकर आया था। हम मच्छर से परेशान थे और यह कुलर की हवा ले रहे थे। एक दिन मैंने इनसे कहा कि नए कुलर न खरीद पाएं लेकिन ऐसे कुलर तो बना दो। फिर गुरूजी आए उन्होंने 50 कुलर की डिमांड बता दी। इसके बाद विजय ने कुलर बनाना शुरू कर दिया।
उमादास त्यागी, किश्तवाड़ 

सिंहस्थ के लिए उज्जैन पहुंचे देशभर में से भिखारी

5 करोड़ से अधिक लोग और 10 करोड़ से अधिक दान का आंकलन खींचलाया उज्जैन
उज्जैन से विनोद शर्मा। 
सिंहस्थ 2016 उम्मीद और उत्साह का महापर्व है। साधु-संतों को शिप्रा स्नान से अमृत मिलने की उम्मीद है तो श्रृद्धालुओं को दुर्लभ साधुओं के आशीर्वाद की। इसी तरह उम्मीदों का पिटारा लेकर देशभर के भिखारी भी सिंहस्थ पहुंच रहे हैं। कोई दिल्ली से है, कोई बिहार या यूपी से। सब अपना आइडेंटिफिकेशन भी साथ लाए हैं ताकि सुरक्षा व्यवस्था के मामले में उनकी पहचान बाधा न बने। 
सिंहस्थ को लेकर शासन-प्रशासन बीते महीनों में दो-तीन बार उज्जैन की सड़कों से भिखारियों को खदेड़ चुका है। बावजूद इसके सिंहस्थ मेला क्षेत्र में भिखारियों की बाढ़ आ गई है। इन दिनों रामघाट पर ही 200 से अधिक भिखारी जमा है। इनमें ज्यादातर दिल्ली, राजस्थान, उप्र, बिहार, उड़िसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र से ट्रेन, बस या किसी न किसी की मदद लेकर उज्जैन पहुंचे हैं। आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो ऐसे 2000 से अधिक लोग अब तक आ चुके हैं। सिंहस्थ शुरू होने के साथ और सिंहस्थ के दौरान भी तकरीबन इतने ही लोग और भी बाहर से आना है। 
अभी 700 रुपए तक मिलने लगे हैं
सात दिन पहले दिल्ली से अपने साथियों के साथ आई शांति कुमारी ने बताया कि आठ लोगों का समूह आया है। आधे रामघाट पर है। आधे दूसरे घाट पर। सिंहस्थ शुरू हुआ नहीं है और अभी 500 से 700 रुपए रोज दान मिल रहा है। भरे सिंहस्थ में यह बढ़कर 800 से 1200 रूपए हो जाएगा। दिल्ली में रहते भी तो रोज के 150 से 200 रुपए ही कमाते। यहां खाने की व्यवस्था भी अलग है। 
काफी दिन से बन गई थी प्लानिंग
दिल्ली से आए विकलांग विश्वनाथ ठाकुर और बिहार से आए हेमंत पशवार ने बताया कि फकीर लोग हैं। दान से ही जीवन चल रहा है। इसीलिए सोचा सिंहस्थ में स्नान भी हो जाएगा और थोड़ी अतिरिक्त कमाई भी। इसीलिए काफी दिन से समूह बना लिया था। यहां भी समूह में ही आए हैं। आधार कार्ड और वोटर आईडी के साथ ही सीविल सर्जन द्वारा दिया गया मेडिकल सर्टिफिकेट भी साथ हैं। 
राजस्थान से आए हैं 200 लोग 
थावरा, उदयपुर से आए मुरारी सेन ने बताया कि राजस्थान से अलग-अलग वक्त में अब तक 200 से अधिक लोग यहां भिक्षावृति के लिए आ चुके हैं। लोग पैसा तो देते ही हैं खाने की सामग्री और पहनने के लिए कपड़े भी दे देते हैं। 
दान का गणित
सरकारी अनुमान के अनुसार सिंहस्थ के दौरान 30 दिन में 5 करोड़ से अधिक लोग उज्जैन पहुंचेंगे। इनमें से 40 फीसदी भी दान देते हैं तो दानदाताओं की संख्या होती है 2 करोड़। ये 2 करोड़ लोग औसत 5 रुपया भी एक भिखारी को देते हैं तो महीनेभर में कुल दान हुआ करीब 10 करोड़।  यदि सिंहस्थ में 5 हजार भिखारी हैं या रहते हैं तो इसका मतलब है कि उन्हें 30 दिन में 20 हजार तो मिलना ही है। अब इसमें जिसकी जितनी अच्छी लोकेशन, उसे मिलेगा उतना अच्छा पैसा। मूल स्थानों पर बैठने वाले 40 से 50 हजार रुपए तक घर ले जाएंगे। 

महाकुंभ अच्छे से संपन्न हो इसलिए की महाश्मशान में पूजा

जलती चिता, ...और ‘मिर्ची यज्ञ’
चक्रतीर्थ महाश्मशान से विनोद शर्मा ।
शिप्रा के तट पर स्थित चक्रतीर्थ महाश्मशान में बुधवार रात नौ बजे जहां छह चिताएं जल रही थीं, वहीं तैयारी चल रही थी तांत्रिक यज्ञ की। मां बगुलामुखी के लिए पीले फूल और भगवान भैरव के लिए लाल गुलाब का त्रिकोण बनाया गया। त्रिकोण के बीच कुंकुम से श्रीयंत्र बनाया गया। फिर लकड़ी और कंडे जमाए गए। रात 10 बजे लाल मिर्च-महुए, पीली सरसों, गूगल, लौंग, नमक, नीबू, सरसों के तेल की आहुति के साथ यज्ञ शुरू हुआ। मंत्रों के साथ आहुतियां रात 11.25 बजे तक चलती रहीं। सिंहस्थ पर मंडराए चांडाल योग और श्रद्धालुओं की बलाएं दूर करने के मकसद से यह यज्ञ किया गया। खास बात यह थी कि मिर्ची जलती रही, लेकिन उसकी धांस ने किसी को परेशान नहीं किया। 
    यज्ञ की तैयारियां रात 8 बजे से शुरू हो गई थीं। 9 बजे तक श्रीयंत्र-त्रिकोण बन गए थे। नींबू, लौंग और सिंदुर से पहले त्रिकोण का बंधन किया गया। माथे पर काली पगड़ी, काले कपड़े, गले में रुद्राक्ष-मुंड मालाएं और हाथ में भैरव दंड लिए गुरु अचलनाथ और आंध्रप्रदेश से आए शिव बाबा जिस सिंदूर से बंधन किया था, उसी से तिलक लगा रहे थे। वहीं महाकाल तिलकधारी बाबा उड़द के आटे, इत्र, ब्रांडेड शराब, गंगा जल और लौंग से पुतला (मानव तत्व के रूप में) बना रहे थे ताकि सभी की बला पुतले पर उतारी जा सके। इसके बाद अचलनाथजी ने एक चिता से जलती लकड़ी उठाई और अग्नि प्रवाहित की। फिर पीली सरसों उठाई और मंत्रों के साथ उसे चारों दिशाओं में फेंका गया। इधर, तिलकधारीजी कभी स्वयं चीलम पीते, कभी अपने भैरव दंड को शराब पिलाते, कभी सिगरेट।
अब शुरू हुई आहुतियां
रात 10.10 बजे आहुतियों का दौर शुरू हुआ। लकड़ी पर भैरव दंड रखा गया। फिर उठाया, शराब पिलाई। आहुतियां शुरू हुर्इं। तिलकधारी और शिव बाबा मिर्ची की आहुति देते रहे। अचलनाथजी ने राल-नमक-महुए और लौंग की आहुति दी। तिलकधारीजी भैरवदंड को सिगरेट और शराब पिलाते रहे मिर्ची के साथ शराब-नीबू की आहुति भी देते रहे। साथ-साथ शराब-सिगरेट भी पीते रहे। कभी धीरे-धीरे मंत्र बोलते हुए भैरव दंड घुमाते। कभी जोर-जोर से मिर्ची डालते। सरसों के तेल की सात बोतलें (एक-एक किलोग्राम) थीं, उनसे भी आहुति दी गई।
इंजीनियरिंग छोड़ शवसाधना कर रही
इंजीनियरिंग छोड़कर शवसाधना सीखने आई रश्मि (योगिनी कालीनाथ) ‘जो आंध्रप्रदेश की हैं’, भी त्रिकोण के तिकोने पर बैठी थीं। अचलनाथजी ने उन्हें भी मिर्ची का बोरा थमा दिया और जितनी आहुति दे सकती हों, उतनी दो यह कहते हुए उन्हें अग्निकुंड के पास खड़ा कर दिया। इसके बाद आसपास खड़े लोगों को भी आहुति डालने दी गई। जोर-जोर से मिर्ची और नमक के साथ सरसों के तेल की आहुतियों का दौर चलता रहा, जो रात 11.10 बजे संपन्न हुआ। पूर्णाहुति शराब और सरसों के तेल के साथ नीबू से दी गई।
चिता में मिर्ची-नमक की आहुति
यज्ञ में आहुति देने के साथ ही तीनों साधु एक जलती चिता के पास पहुंचे। पहले तिलकधारीजी ने डंड घुमाकर मिर्ची और शराब की आहुति दी। फिर शिव बाबा ने। इसके बाद अचलनाथजी ने नमक की आहुति दी। 
दिन में सलाइन चढ़ी, रात को आहुति देने पहुंच गए
राजस्थान के बारां जिले से भी सिंहस्थ के लिए रमन गिरी अघोरी आए हुए हैं, जो हर्निया की बीमारी से ग्रस्त हैं। दिन में अस्पताल में भर्ती थे, जहां उन्हें बोतलें चड़ रही थीं। इसी दौरान उन्होंने यज्ञ का सुना और रात को आहुति देने पहुंच गए। उनके हाथ में पट्टी तक बंधी हुई थी। उन्होंने नीबू और सरसों के तेल की आहुति दी। 
...ताकि नजर उतरे सिंहस्थ की
40 दिन से नंगे पैर साधना कर रहे हैं। हर दिन 11 किलोग्राम मिर्ची की आहुति देंगे। 30 दिन तक नियमित यज्ञ चलेगा। कुल तीन क्विंटल मिर्ची और 210 किलोग्राम सरसों के तेल की आहुति दी जाएगी। बाकी तत्व अलग हैं। कुल मिलाकर मकसद एक ही है सिंहस्थ सुखद हो। 
महाकाल तिलकधारी

भक्तों से मिलने उज्जैन पहुंच गए भव्य भगवान

वैष्णोदेवी, अमरनाथ और बालाजी के साथ बालाजीपुरम तक के अस्थाई मंदिरों ने बढ़ाई सिंहस्थ की शोभा 
उज्जैन से विनोद शर्मा । 
देश ही नहीं दुनिया की जनता सिंहस्थ 2016 के लिए उज्जैन में आ पहुंची है तो फिर देवी-देवता क्यों पीछे रहते! वे भी अपने भक्तों को दर्शन देने उज्जैन आ पहुंचे! फिर जम्मू-कश्मीर से आई वैष्णोदेवी हो या फिर कैलाश मानसरोवर से आए बाबा अमरनाथ। उज्जैन पहुंचने वाले देवी-देवताओं में तिरूपति बालाजी और स्वामीनारायण जी भी पीछे नहीं रहे। वे भी अपने भव्य मंदिरों के साथ मेला क्षेत्रों में लोगों को दर्शन दे रहे हैं। सिंहस्थ में साधु-संतों के भव्य पांडालों के साथ ही मेला क्षेत्र के अस्थाई मंदिरों ने न सिर्फ मेला क्षेत्रों की शोभा बढ़ाई है बल्कि जो लोग दूर-दराज मंदिर नहीं जा पाते वे इन्हीं प्रतिकृतियों में ही प्रभू दर्शन पा रहे हैं। 
वैष्णोदेवी मंदिर, जम्मू : अंकपात चौराहे पर सांदिपनी आश्रम के सामने मंदाकिनी माता का आश्रम है जहां 65 फीट ऊंचा भव्य वैष्णो देवी मंदिर बना है। मुख्य द्वार से लेकर मंदिर की गुफा तक लोगों को भा रही है। मंदिर से जुड़े सूत्रों ने बताया कि दिनभर में 50 हजार से अधिक लोग दर्शन करते हैं। 
अमरनाथ मंदिर, जम्मू : ऋृणमुक्तेश्वर मंदिर के पास अंकपात रोड पर बाबा अमरनाथ का मंदिर बना है। इस मंदिर में 121 फीट बर्फीली गुफा है। तकरीबन 30 किलोग्राम वजनी शिवलिंग है। अंदर वैसा ही नजारा है जैसा कि अमरनाथ में होता है। समुद्रमंथन की झांकी भी है हालांकि देखने की फीस 50 रुपए है। 
महाकाल मंदिर, उज्जैन : अमरनाथ मंदिर के पास ही महाकाल मंदिर भी है जो कि 20 किलोग्राम चांदी से बना है। महाकाल दरबार की लागत ही 48 लाख रुपए है। इस मंदिर को उदयपुर के धीरज पानेरी ने बनाया है। 
तिरूपति बालाजी मंदिर, तिरूमला : मंगलनाथ जोन में तकरीबन सात एकड़ जमीन पर रावतपुरा सरकार का आश्रम है। इस आश्रम में तिरुमाला पर्वत (दक्षीण भारत) पर स्थित भगवान तिरुपति बालाजी के मंदिर की भव्य प्रतिकृति बनाई गई है। मुख्य द्वारा जितना सुंदर है उतना ही मनोरम है लाल रोशनी से जगमगाता मंदिर का वातानुकुलित हॉल। यहां रूकमणी बालाजी की प्रतीमा भी है जिनके दर्शन के लिए रोज हजारों की भीड़ लगती है। 
स्वामीनारायण मंदिर, वड़तल : भूखीमाता रोड पर किन्नर अखाड़े के पास आचार्य राकेशप्रसादजी महाराज का आश्रम है। वड़तल (गुजरात) में बने भगवान स्वामीनारायण मंदिर की प्रतिकृति बन रही है। 90 फीसदी काम हो चुका है। इस मंदिर को वड़तलधाम भी कहा जाता है। यहां भगवान स्वामीनारायण की प्रतिमा भी वैसी ही है जैसी की मूल मंदिर में है। मंदिर को जूनागढ़ के कलाकारों ने बनाया है। 
अन्नपूर्णा मंदिर, इंदौर : बड़नगर रोड पर अन्नपूर्णा आश्रम इंदौर का भी आश्रम है। यहां भी यज्ञ और कथा के साथ साधकों के ठहरने की व्यवस्था है। इस पांडाल का आकर्षण गेट है जो ठीक वैसा ही बना है जैसा कि इंदौर में अन्नपूर्णा मंदिर का गेट है। 
राजबाड़ा, इंदौर : मंगलनाथ-उन्हेल रोड पर महामंडलेश्वर कम्प्यूटर बाबा का आश्रम है। इस आश्रम में बाबा ने इंदौर के राजबाड़े की प्रतिकृति का द्वार बनवाया है। उनका कहना है कि मैं जिस शहर से हूं उस शहर की चमक-दमक भी मेरे साथ ही रहना चाहिए। 
बालाजीपुरम, बैतूल : महाकाल मंदिर के पास जो रूद्रसागर है उसमें विक्रमादित्य मंदिर से लगी जमीन पर बैतूल के प्रसिद्ध बालाजीपुरम मंदिर की प्रतिकृति बनाई गई है। इस सुनहरे मंदिर में भगवान बालाजी की प्रतिमा है। बाहर गरूड़ है जिनके कान में लोग अपनी मनोकामना कहते नजर आते हैं। अंदर विश्व प्रसिद्द 65 किलो वजनी महामर्कत मणि स्फटिक शिवलिंग भी है।