Monday, December 28, 2015

शुक्ला की ‘कृपा’ से कट रही है कश्यप की कॉलोनी

- सख्ती के बाद भी सरकारी जमीन पर कब्जे
- 3 से 4 लाख में बेचे जा रहे हैं प्लॉट
इंदौर. विनोद शर्मा ।
खजराना, असरावद बुजुर्ग और बाणगंगा क्षेत्र में कलेक्टर की सख्ती के बावजूद छोटा बांगड़दा की सरकारी जमीन पर अवैध कॉलोनी कट रही है। सूरजबली नगर और सूर्यदेव नगर के नाम से जिस जमीन पर कॉलोनी काटी जा रही है उसका एक हिस्सा सरकारी है जबकि दूसरे हिस्से पर कांग्रेस नेता कृपाशंकर शुक्ला और कुख्यात भू-माफिया रामसुमिनर पिता मुरली कश्यप के नाम का बोर्ड लगा है। सूर्यदेवनगर में कश्यम के नाम की तख्तियां टंगी है जबकि सूरजबलीनगर को शुक्लाजी की कॉलोनी बताकर प्लॉट बेचे जा रहे हैं। वह भी उस स्थिति में जब
मामला ग्राम छोटा बांगड़दा की सर्वे नं. 336 और 337 की तकरीबन पांच एकड़ जमीन का है। 336 सरकारी जमीन है जबकि 337 कृपाशंकर पिता महावीरप्रसाद शुक्ला और उनके भाई मनोहरप्रसाद  व सत्यनारायण शुक्ला के नाम दर्ज है। इन जमीनों पर 20-20 फीट चौड़ी रोड डालकर कॉलोनी काटी जा रही है। कॉलोनी दो हिस्सों में कट रही है। एक हिस्से का नाम सूर्यदेवनगर है। दूसरा सूरजबलीनगर। सूर्यदेवनगर में सड़क के साथ मकान और बाबा रामदेव के मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है जिस पर रामसुमिरन कश्यम का बोर्ड लगा है। सूरजबलीनगर में कुछ मकान पुराने बने हैं जबकि अब नए सिरे से प्लॉट बेचे जा रहे हैं।
सूरजबलीनगर पंडितजी की, सूर्यदेवनगर कश्यप की
सर्वे नं. 337 शुक्ला परिवार की जमीन है। यहां सूरजबलीनगर के नाम से कुछ मकान पुराने बने हैं। इस अवैध कॉलोनी का जिक्र राजस्व दस्तावेजों में भी है। बड़ी बात यह है कि शुक्ला द्वारा काटी गई इस कॉलोनी के सभी पुराने प्लॉट मास्टर प्लान 2021 में 100 फीट चौड़ी रोड और बीते दिनों इंदौर विकास प्राधिकरण द्वारा प्रस्तावित की गई 45 मीटर चौड़ी एमआर-5 में बाधक के रूप में चिह्नित किए जा चुके हैं। मौके पर प्लॉट बेच रहे कश्यप के कारिंदे भी सीमांकन दिखाते हुए कहते हैं यह सब मकान टूट जाएंगे, आपका प्लॉट फ्रंट में आ जाएगा। अभी कीमत 3 लाख है बाद में 20 लाख कीमत होगी। कारिंदों ने बताया कि सर्वे नंबर 336 की जमीन पर कट रहा  सूर्यदेवनगर कश्यप की कॉलोनी है। उसकी नोटरी कश्यपजी ही करेंगे जबकि सूरजबलीनगर शुक्लाजी और कश्यप दोनों की मालिकी की है।
लेख पैलेस भी कश्यप की...
छोटा बांगड़दा में रामसुमिरन पिता मुरली कश्यप और उनके दो भाई राजाराम और रामस्वरूप के नाम से सर्वे नं. 315/1/2 की 0.405 हेक्टेयर जमीन है जिस पर कश्यप परिवार पहले ही लेख पैलेस नाम की अवैध कॉलोनी काट चुका है। जमीन शहरी सीलिंग से भी प्रभावित है।
ऐसे बिक रहे हैं प्लॉट..
रिपोर्टर : प्लॉट बताओगे भैया...
कारिंदा : आपको किसने भेजा।
मैं तो ईधर ही रहता हूं किराए से?
- कितना बड़ा चाहिए।
800 से 1000 वर्गफीट?
मेरे पास 600 फीट के प्लॉट हैं। 15 बाय 40 के।(प्लॉट दिखाते हुए ये 600 फीट हैं।)
इनका फेस किधर रहेगा।
- (सीमांकन के बाद आईडीए द्वारा लगाए गए सीमा पत्थर दिखाते हुए) रोड किनारे की पूरी पट्टी टूटेगी। आप फ्रंट पर आ जाओगे।
कॉलोनी का नाम क्या रखा?
- उधर, सूर्यदेवनगर, इधर, रोड किनारे सूरजबलीनगर।
दो कॉलोनी ?
कुछ एडजस्टमेंट है। (इशारे से जमीन दिखाते हुए) यह सूरजबलीनगर है कृपाशंकर शुक्लाजी और कश्यपजी का। सूर्यदेवनगर कश्यप की है।
एक प्लॉट कितने का?
- रामनगर में 1.5 लाख के प्लॉट हैं। रोड भी ठंग की नहीं है। हम 20 फीट की रोड दे रहे हैं। इसीलिए 3.5 लाख रुपए। रोड किनारे 4 लाख। बाकी जो बैठक में टूट जाए।
टाइम कितना दो गे?
3-4 महीने।
नौटरी या रजिस्ट्री?
नौटरी है।
जैसे खजराना में टूटी यहां तो नहीं टूटेगी?
- नहीं, वहां सरकारी जमीन पर कॉलोनी थी। यहां पंडितजी और कश्यपजी की निजी जमीन है।
सोनू कश्यप,
 रामसुमिरन कश्यप का बेटा
कश्यप चोर काट रहा है कॉलोनी। मेरा कोई लेना-देना नहीं है। मैंने स्वयं अधिकारियों से शिकायत की और कार्रवाई की मांग की है। मैं नहीं चाहता गरीबों का नुकसान हो। जमीन रावला की है। मेरा मालिकी को लेकर उससे विवाद चल रहा है।
पं.कृपाशंकर शुक्ला
कांग्रेस नेता
कॉलोनी नॉलेज में। बीते दिनों रिमुवल की कार्रवाई भी की है। इसके बाद भी प्लॉट बिक रहे हैं और मकान बन रहे हैं तो फिर कार्रवाई करेंगे।
मुनीश शिकरवार
अपर तहसीलदार

12 महीने में निकली 1200 करोड़ की काली कमाई

टअ 19, 2012   इ खबरटुडे
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भोपाल,19मई (इ खबरटुडे)।मध्य प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों और कारोबारियों की तिजोरी से अकूत संपदा निकल रही है। पिछले एक साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो 1200 करोड़ से अधिक की संपत्ति उजागर हुई है। यानी हर माह सौ करोड़ रुपए भ्रष्टों की जेब से निकले हैं। आयकर, लोकायुक्त सहित अन्य एजेंसियों द्वारा डाले गए छापों में यह रकम उजागर हुई है। आयकर व लोकायुक्त अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यदि उन्हें और अधिकार दे दिए जाएं तो वे उस चल-अचल संपत्ति को भी पकड़ सकते हैं जो भ्रष्ट तरीके से अर्जित की गई है अथवा जिसमें कालेधन का निवेश किया गया है।आयकर इन्वेस्टिगेशन विंग

इंदौर, भोपाल, जबलपुर व ग्वालियर में की गई 17 छापामार कार्रवाइयों में इन्वेस्टिगेशन विंग ने 482 करोड़ रुपए सरेंडर कराए हैं। इस दौरान केटी ग्रुप, बंसल ग्रुप, सुरेश चंद बंसल ग्रुप, सागर ग्रुप, सिगनेट ग्रुप, मोखा बिल्डर-डॉ. जामदार, अंबिका साल्वेक्स आदि समूहों पर कार्रवाई हुई। नगद व अन्य चल संपत्तियां 45 करोड़ की जप्त की गईं।

आयकर विभाग

मध्यप्रदेश में 182 सर्वे किए गए। भोपाल में 87 व इंदौर में 95 सर्वे में क्रमश: 56 करोड़़ व 323 करोड़ रुपए सरेंडर हुए। ये सर्वे व्यापारियों, संस्थाओं और बिजनेस समूहों पर किए गए।

लोकायुक्त
वर्ष 2011 से 8 मई 2012 तक लोकायुक्त ने 161 लोगों को रंगेहाथ रिश्वत लेते पकड़ा। इनसे 95 लाख रुपए बरामद हुए। इसके अलावा 64 छापे मारे गए। इसमें 500 करोड़ रुपए की अनुपातहीन संपत्ति का पता लगा। बाजार मूल्य से यह राशि दो से तीन गुना होगी।
केंद्रीय सेवा कर
पिछले एक साल में इस विभाग ने तीन करोड़ से अधिक सर्विस टैक्स की राशि वसूली। साथ ही 400 से अधिक ऐसे लोगों को पकड़ा है जो सर्विस टैक्स जनता से तो वसूल रहे थे लेकिन विभाग में जमा नहीं करा रहे थे। इतनी राशि से ये हो सकता है
: प्रदेश में गांवों व कस्बों तक 7 मीटर चौड़ाई की 3000 किमी सड़क बनाई जा सकती है (या)
: फुटपाथों पर रहने वाले अथवा गरीबों के लिए 1.20 लाख घर बन सकते हैं (या)
: प्रायमरी शिक्षा के लिए आठ हजार भवन बनाए जा सकते हैं (या)
: सर्वसुविधायुक्त व अत्याधुनिक पांच हॉस्पिटल बन सकते हैं (या)

लोकायुक्त की गिरफ्त में रोज आ रहा एक भ्रष्ट

भोपाल। प्रदेश में रोजाना एक भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी लोकायुक्त की गिरफ्त में आ रहा है। मौजूदा साल में लोकायुक्त की विशेष स्थापना पुलिस ने 400 से ज्यादा लोगों को रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर चुका है। इनसे 50 लाख रुपए नकद बरामद किए गए हैं, जबकि आय से अधिक संपत्ति के 23 मामलों में 37 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति उजागर हुई है। नौ दिन बाद समाप्त होने वाले साल में लोकायुक्त संगठन ने भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों को रंगे हाथों पकड?े के मामले में अपना पिछला रिकार्ड तोड़ा है।

पिछले साल 390 ट्रेप (रंगे हाथों रिश्वत लेने के) केस बने थे, जबकि इस साल ये संख्या 400 पहुंच चुकी है। बरामद राशि भी 38 लाख से बढकर 50 लाख पहुंच चुकी है। अधिकारियों का मानना है कि जिस तरह एक दिन में एक से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं उसे देखते हुए प्रकरणों की संख्या 425 के आसपास पहुंच जाएगी। छापे की संख्या जरूर बीते साल के 38 से घटकर 23 रह गई है। इसमें करीब 37 करोड़ की संपत्ति प्रथम दृष्टया अनुपातहीन उजागर हुई है। इस बार पद के दुरुपयोग के मामले तेजी से बढ़े हैें। संगठन ने 179 नए प्रकरण दर्ज कर जांच शुरू की है।
रिश्वत लेने में पटवारी आगे- लोकायुक्त पुलिस का सालभर का रिकार्ड देखने से साफ है कि रिश्वत लेने के मामले में पटवारी सबसे आगे हैं। इनके खिलाफ ही प्रदेश में सर्वाधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इसके बाद पंचायत सचिव का नंबर आता है। संगठन अधिकारियों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाधिक काम इन्हीं दोनों से पड़ता है।

इंदौर अव्वल

रिश्वत के मामले सर्वाधिक इंदौर संभाग में सामने आए हैं। यहां अभी तक 89 प्रकरण दर्ज किए गए हैं, जबकि भोपाल में 52, ग्वालियर 41 और जबलपुर में 46 अधिकारी-कर्मचारी रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़ाए हैं।



शिकायतें बढ़ी हैं
विशेष स्थापना पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक अशोक अवस्थी का कहना है कि संगठन के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा है। शासकीय कार्यालयों के बाहर रिश्वत मांगने या लेते देखने पर सूचना देने के पोस्टर चस्पा करना भी फायदेमंद रहा है। एक साल में शिकायतों की संख्या काफी बढ़ गई है। शिकायत की पुष्टि होने के बाद कार्रवाई की जा रही हैं। यही कारण है कि अधिकांश मामलों में दोषियों को अदालत से सजा मिल रही है।



भ्रष्ट अफसरों की सोशल मीडिया पर खुली पोल
पिछले तीन माह में सोशल मीडिया पर भी कई भ्रष्ट अफसरों की पोल खुल चुकी है। प्रमुख सचिव, विभाग प्रमुख से लेकर कलेक्टर तक पर मैदानी अफसरों से डिमांड करने के आरोप लग चुके हैं। हालत ये है कि सरकार में छह अपर मुख्य सचिव में से तीन सोशल मीडिया से सामने आए भ्रष्टाचार की जांच कर रहे हैं। ताजा मामला पीडब्ल्यूडी के एसडीओ अरूण मिश्रा ने कार्यपालन यंत्री रमाकांत तिवारी पर प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल के लिए वसूली करने का आॅडियो वायरल होने का है। इसकी जांच लोकायुक्त पुलिस रीवा कर रही है।



इसके पूर्व आदिम जाति कल्याण आयुक्त जेएन मालपानी का आॅडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे खुलेआम मैदानी अफसर से अकेले खाने पर बदहजमी की बात कह रहे थे। प्रकरण की जांच अपर मुख्य सचिव राधेश्याम जुलानिया कर रहे हैं। उन्होंने अभी रिपोर्ट नहीं सौंपी है। इसी तरह आईएफएस अफसर अजीत श्रीवास्तव का भी आॅडियो वायरल हुआ था। इसमें वे वन विभाग के ठेकेदार से 55 लाख रुपए की मांग कर रहे थे।



इस मामले में अपर मुख्य सचिव बीपी सिंह जांच कर रहे हैं। इसके पहले वन विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपकर खांडेकर दतिया कलेक्टर प्रकाश जांगरे के खिलाफ रिपोर्ट दे चुके हैं। हालांकि, उन्होंने भ्रष्टाचार की जांच नहीं करते हुए कार्यपालन यंत्री से की गई अभद्रता के लिए कलेक्टर को दोषी ठहराया है। इस आॅडियो में कलेक्टर संबंधित कार्यपालन यंत्री से अपने बाथरूम के लिए सोप हैंगिंग लगाने की बात कर रहे थे।

छोटे शहर, बड़ी कार्रवाई

मध्य प्रदेश प्रदेश में आयकर विभाग की छोटे शहर में छापे की बड़ी कार्रवाई का सिलसिला जारी है. अब आयकर विभाग की टीम ने सेंधवा में छह व्यापारियों के ठिकानों पर छापे की कार्रवाई की है. इस कार्रवाई में बड़ी कर चोरी का खुलासा होने की उम्मीद है.
जानकारी के मुताबिक, बड़वानी जिले में सेंधवा, पलसुद और बलवाड़ी में आयकर विभाग की टीम ने मंगलवार सुबह छापे की कार्रवाई की. सेंधवा में 4 स्थानों और पलसुद और बलवाड़ी में एक-एक स्थान पर आयकर विभाग की कार्रवाई जारी हैं.
आयकर विभाग की इस कार्रवाई में कपड़ा, सराफा, अनाज और रेडीमेड कारोबारी निशाने पर है. विभाग की इस कार्रवाई से पूरे अंचल में हडकंप मच गया है. माना जा रहा है कि यह कार्रवाई अगले दो से तीन दिन तक जारी रह सकती है.
छापे की इस कार्रवाई में इंदौर के अलावा खंडवा, बुरहानपुर और खरगोन के अधिकारी शामिल है.प्रदेश में पिछले कुछ समय से आयकर विभाग ने छोटे शहरों को टारगेट करते हुए यहां हो रही कर चोरी को पकड़ने की कार्रवाई शुरू की है. इसके पहले विदिशा और होशंगाबाद जिले में भी इसी तरह की कार्रवाई हो चुकी है.

आयकर भरने वालों की संख्या में इजाफा, 27 लाख नए टैक्सपेयर

नई दिल्ली। मोदी सरकार के प्रयास रंग लाते दिख रहे हैं। देश में इनकम टैक्स भरने वालों की संख्या बढ़ गई है। करीब 27 लाख नए टैक्सपेयर टैक्स के दायरे में आए हैं। आयकर विभाग ने चालू वित्त वर्ष में एक करोड़ नए लोगों को आयकर के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा है।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सबसे ज्यादा नए टैक्सपेयर पश्चिमी राज्यों मसलन गुजरात, गोवा और महाराष्ट्र में जोड़े गए हैं। सूत्रों ने बताया कि 27 लाख से ज्यादा नए लोगों की पहचान की गई है और उन्हें टैक्स दायरे में लाया गया है। इन नए लोगों और इकाइयों को विभाग साल के मध्य में शुरू किए गए अभियान के बाद कर दायरे में आया है।
सूत्रों ने स्वीकार किया है कि इस लक्ष्य को हासिल करना काफी कठिन है। आयकर विभाग के फील्ड कार्यालयों ने वित्त मंत्रालय को सूचित किया है कि तय समय में 60 से 70 प्रतिशत लक्ष्य हासिल हो पाएगा।

वर्ष 2015 में आयकर विभाग ने कर चोरों पर कसी नकेल

नयी  दिल्ली : वर्ष 2015 में आयकर विभाग का ज्यादातर समय विदेशी निवेशकों और घरेलू करदाताओं के साथ वाद विवाद में बीता. हालांकि, वर्ष के दौरान समस्या का समाधान ढूंढने के प्रयास भी तेज हुए. नये साल (वर्ष 2016) के दौरान विभाग ने भारी भरकम आयकर कानून को सरल बनाने और कर वसूली के वैर-भाव मुक्त प्रभावी प्रणाली तैयार करने का लक्ष्य रखा है. सरकार आसान कर कानून के साथ अपना कर राजस्व ज्यादा से ज्यादा करने की कोशिश कर रही है.
हालांकि, राजस्व लक्ष्य पाने के लिए कर विभाग बड़ी कंपनियों से अतिरिक्त अग्रिम कर की मांग करने या कर रिफंड रोकने का रास्ता नहीं अपनाना चाहता है. विभाग ने कर विवादों को सुलझाने की दिशा में कई पहल की हैं, विदेशी निवेशकों से जुडे ज्यादातर कर विवादों को 2015 में सुलझा लिया गया. हालांकि, राजनीतिक खींचतान के कारण महत्वाकांक्षी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक पारित नहीं हो पाया. कालाधन वापस लाने के भाजपा के मुख्य चुनावी वादे को पूरा करने की कोशिश वर्ष के दौरान की गयी लेकिन आरंभिक प्रतिक्रिया इतनी अच्छी नहीं रही.


कालेधन के बारे में जितनी बड़ी राशि का दावा किया जा रहा था उसके मुकाबले कालाधन जो अब तक सामने आया है वह उम्मीदों के अनुरूप नहीं है. पिछली सरकार से विरासत में मिले कर विवादों का अभी भी हल नहीं हो पाया है. विशेष तौर पर वोडाफोन और केयर्न एनर्जी जैसी बड़ी विदेशी कंपनियों पर पिछली तारीख से कलाधान जैसे मुद्दे अभी भी चल रहे हैं, हालांकि लंबे समय से चल रहे इन मुद्दों को सुलझाने की कोशिश की गयी है. सरकार ने वोडाफोन के साथ 20,000 रुपये करोड रुपये के कर विवाद के मामले में समझौते की प्रक्रिया शुरू की है, जबकि केयर्न ने 10,247 करोड रुपए के कर विवाद में सरकार को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में घसीटा है, ताकि मामले में मध्यस्थता हासिल की जा सके. दोनों मामले लंबे समय तक चलेंगे.

कर विभाग ने अपनी ओर से विवादों को कम करने की दिशा में जो बेहतर पहल की उनमें 50,000 से कम के कर रिफंड राशि तुरंत जारी करने और कम कर राशि की अपील वापस लेना शामिल है. अर्थव्यवस्था उम्मीद से कमतर वृद्धि दर्ज कर रही है, ऐसे में कर संग्रह लक्ष्य से चूक जाने की आशंका है. सरकार इस कमी की भरपाई, पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढाकर करने का प्रयास कर रही है. प्रधानमंत्री के महत्वाकांक्षी स्वच्छ भारत अभियान के वित्तपोषण के लिए करयोग्य सेवाओं पर 0.5 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लागू किया गया.
राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने कहा ह्यह्यहमें अप्रत्यक्ष कर संग्रह लक्ष्य पाने का पूरा भरोसा है और हमें उम्मीद है कि प्रत्यक्ष कर लक्ष्य के नजदीक पहुंचने के भी हरसंभव प्रयास किये जायेंगे. लेकिन हम मौजूदा वर्ष में कुछ बड़ी कंपनियों से अनिवार्य तौर पर अतिरिक्त अग्रिम कर भुगतान के निर्देश या रिफंड रोककर लक्ष्य पूरा नहीं करना चाहेंगे.' अधिया ने नये साल के बारे में कहा कि कर विभाग का जोर बिना वैर-भाव और बिना जोर-जबरदस्ती के प्रभावी कर संग्रह व्यवस्था को अमल में लाना है. अधिया ने कहा ह्यह्यये पहलें करदाताओं को कुछ निश्चिंतता तथा संतोष प्रदान करेंगी और इससे कानूनी विवाद कम होंगे. वर्ष 2016 में हमारी कोशिश होगी आयकर कानून को आसान बनाने और रीयल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (आरईआईटी) और वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) के कराधान संबंधी अन्य मुद्दों का समाधान किया जा सके.'

वर्ष 2015 के दौरान कर विभाग के समक्ष जो बडा मुद्दा आया वह विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों-विदेशी संस्थागत निवेशकों के पूंजीगत लाभ पर एक अप्रैल 2015 से पहले की अवधि के लिए न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) लगाने का रहा. इसको लेकर काफी विवाद हुआ और शेयर बाजार में इसका बड़ा असर दिखा.

विदेशी निवेशक पिछली अवधि के लिए पूंजीगत लाभ पर कर को लेकर काफी नाराज दिखे और उन्होंने पूंजी बाजार बाजार से धन निकासी की धमकी दी. लेकिन सरकार ने समस्या को सुलझाने के लिए विधि आयोग के अध्यक्ष एपी शाह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया. समिति ने विदेशी संस्थागत निवेशकों और पोर्टफोलियो निवेशकों की एक अप्रैल 2015 से पहले की पूंजीगत आय पर मैट नहीं लगाने का सुझाव दिया.

वर्ष के दौरान काला धन वापस लाने की कोशिशें भी तेज हुईं. विदेशों में रखे कालेधन को लाने के लिए एक नया कानून बना. इसमें विदेशों में कालाधन रखने वालों के खिलाफ सख्ती बरतते हुए 10 साल तक की सजा और 120 प्रतिशत कर तथा जुमार्ने का प्रावधान किया गया. विदेशों में कालाधन रखने वालों को खुद को पाकसाफ करने के लिए 90 दिन की अनुपालन अवधि दी गयी लेकिन इस अनुपालन अवधि में केवल 4,160 करोड रुपये का ही खुलाशा किया गया जिससे 2,500 करोड़ रुपये कर और जुमार्ने के रूप में प्राप्त हुए.
 अप्रत्यक्ष करों के मामले में सरकार को जीएसटी पारित होने की उम्मीद थी लेकिन संसद के शीतकालीन सत्र में भी यह राज्यसभा में पारित नहीं हो सका. माना जा रहा है कि जीएसटी के अमल में आने से जीडीपी में डेढ से दो प्रतिशत वृद्धि होगी. अप्रैल से नवंबर के दौरान अप्रत्यक्ष कर संग्रह 34.3 प्रतिशत बढकर 4.38 लाख करोड़ रुपये हो गया. इस तरह यह पूरे वित्त वर्ष के लिए अनुमानित 6.46 लाख करोड़ रुपये के स्तर का 68 प्रतिशत है. प्रत्यक्ष कर वसूली 3.69 लाख करोड़ रुपये रही जो कि बजट में तय 7.97 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य का 46.26 प्रतिशत है.

टारगेट पूरा करने के लिए होगी सख्?ती, टैक्?स न देने वाली कंपनियों पर आयकर अधिकारियों की होगी विशेष नजर


  तीसरी तिमाही में कॉरपोरेट जगत की बड़ी कंपनियों ने टैक्?स भुगतान में विलंब किया है। ऐसे में आयकर अधिकारियों ने अब लक्ष्य को हासिल करने के लिए बकाया टैक्?स को वसूलने तथा नए सिरे से सर्वे करने का फैसला किया है। आयकर के प्रधान मुख्य आयुक्त तथा मुंबई क्षेत्र के प्रमुख डीएस सक्सेना ने शुक्रवार को बताया कि कुल कर संग्रहण पिछले साल से बेहतर रहा है, लेकिन कुछ कंपनियों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। ऐसे में हमारी उम्मीद अंतिम तिमाही में 12,000 करोड़ रुपए के बकाये की वसूली पर टिकी है। सक्सेना ने कहा कि हम सर्वे की संख्या बढ़ाने तथा 2,560 अरब रुपए के लक्ष्य को हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं।
सीबीडीटी ने मुंबई क्षेत्र के लिए 2,560 अरब रुपए का लक्ष्य तय किया है। यह सबसे बड़ा क्षेत्र है, जो कुल कर राजस्व में एक-तिहाई से अधिक का योगदान करता है। चालू वित्त वर्ष के लिए प्रत्यक्ष कर संग्रहण का सालाना लक्ष्य 7,980 अरब रुपए है। यह पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 16 फीसदी अधिक है। आयकर अधिकारियों के अनुसार कई कंपनियों ने तीसरी तिमाही में कर भुगतान में चूक की है, हालांकि कुल संग्रहण संतोषजनक रहा है।
मुंबई क्षेत्र से 22 दिसंबर तक शुद्ध कर संग्रहण 1,59,372 करोड़ रुपए रहा है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष के 1,38,956 करोड़ रुपए से 14.6 फीसदी अधिक है। इसमें कॉरपोरेट कर का हिस्सा 1,08,209 करोड़ रुपए रहा है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के 91,363 करोड़ रुपए से 18.4 फीसदी अधिक है। इसके बावजूद कॉरपोरेट कर संग्रहण तीसरी तिमाही में चिंता का विषय रहा है, क्योंकि इसके भुगतान के लिए अब एक सप्ताह का समय ही बचा है। इस्पात एवं सीमेंट कंपनियों से तीसरी तिमाही में कर संग्रहण में भारी गिरावट आई है।

कृपा-कश्यप की कॉलोनी :::: अधिकारी आए, कब्जा देखा और निकल लिए...

इंदौर. विनोद शर्मा ।
छोटा बांगड़दा की शासकीय और कांग्रेस नेता कृपाशंकर शुक्ला की जमीन पर कट रहे सूर्यदेवनगर और सूरजबलीनगर का सोमवार को अधिकारी सर्वे करने पहुंचे। निगाहें दौड़ाई और यथास्थिति पतली गली पकड़कर निकल गए। लेक पैलेस, श्रृद्धाश्री और सुंदरनगर जैसी कॉलोनियां काटने वाले कश्यप ने अधिकारियों को साधना भी शुरू कर दिया है।
दबंग दुनिया ने सोमवार के अंक में ‘कृपा-कश्यप की कॉलोनी’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में कृपाशंकर शुक्ला और रामसुमिरन कश्यम की अवैध कॉलोनियों का खुलासा किया था। खुलासे के बाद जहां कॉलोनी में हड़कंप मची रही। वहीं दोपहर में प्रशासन के कुछ अधिकारी भी जमीन देखने पहुंचे। अधिकारियों को देखते ही शुक्ला और कश्यप के कारिंदे मुंह छिपाकर निकल लिए। हालांकि इस दौरान कुछ मकानों में निर्माण जारी रहा। अधिकारियों ने निगाहें दौड़ाई और चले गए। उन्होंने न कॉलोनी का नाम पूछा। न काटने वालों का। न मकान बनाने वालों का।
श्रृद्धाश्री के प्लॉट एडजस्ट कर रहे हैं...
कश्यप ने 15-20 साल पहले सुंदरनगर कॉलोनी काटी थी। आठ महीने पहले नंदबाग के पास श्रृद्धाश्री कॉलोनी काटी। प्रशासन ने सख्ती दिखाकर कॉलोनी तोड़ दी। इस कॉलोनी के प्लॉटधारकों को सूरजबली और सूर्यदेवनगर में प्लॉट दे रहे हैं। वहां ढ़ाई-ढ़ाई लाख में प्लॉट बेचे थे। भाजपा विधायक और कांग्रेस नेता ही नहीं दोनों दलों के अन्य लोग भी कश्यप से जुड़े हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री के साथ भी कश्यप मंच साझा कर चुका है।
पंडितजी अपना हिस्सा बेच चुके...
सूरजबलीनगर सर्वे नं. 337 पर है जो कृपाशंकर शुक्ला की जमीन पर है। वे अवैध कॉलोनी काटकर प्लॉटों की गैरकानूनी रजिस्ट्री कर चुके हैं। 336 की जमीन को लेकर रावला से उनका 30 साल पुराना विवाद है हालांकि जमीन अब सरकारी है। इस जमीन पर कश्यप ने कॉलोनी काटी। दोनों की हिस्सेदारी का प्रतिशत तय है। इसी खसरे की जमीन पर जफर ने श्रीरामनगर कॉलोनी काट रखी है जो प्रशासन के देखते-देखते 100 प्रतिशत बस चुकी है।
प्लॉट से दोगुनी नौटरी...
कश्यप इतना बड़ा कलाकार है कि एक प्लॉट की दो-दो नौटरी कर देता है। विवाद होने पर कभी प्लॉट की साइज छोटी कर देगा तो कभी प्लॉट ही बदल देगा। चक्रा चलाने की जिम्मेदारी श्रीराम जाट की है। बताया जा रहा है कि अभी चार बिघा जमीन पर 2 हजार से अधिक प्लॉट काटने की प्लानिंग है। विवाद न सुलझने पर महेंद्र ठाकुर और मुकेश यादव को आगे कर दिया जाता है जो डरा-धमकाकर या पिटाई करके मामला सुलझाते हैं।


असरावद की सरकारी जमीन पर कटी कॉलोनी को बचाने के लिए

राजौरिया ने थामा कांग्रेस नेता का हाथ
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
असरावद खुर्द की सरकारी जमीन पर कटी अवैध कॉलोनी के खिलाफ प्रशासन की जांच शुरू होते ही पप्पू राजौरिया और उनकी चौकड़ी ने राजनीतिक आकाओं का दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया है। इस कड़ी में उनकी भोपाल तक आवाज बुलंद करने की ताकत रखने वाले क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता से बात हुई जो उन्हें प्रशासन के शिकंजे से मुक्त कराने में मदद करने के लिए तैयार हैं। कुछ अफसरों से उन्होंने बैठक भी करवा दी है।
प्रशासन की जांच में दो हिस्सों में कुल 170 मकानों की सूची बनाई गई है जिनका निर्माण बिना किसी अनुमति पर हुआ है। मकानों की सूची के साथ अब प्रशासन के हाथ इस बात के भी दस्तावेजी सबुत हाथ लग चुके हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्लॉट पूर्व सरपंच पिंकी राजौरिया के कार्यकाल के दौरान उनके पति पप्पू राजौरिया और देवर दिनेश राजौरिया, विनोद मोरे, अमरचंद, सिकंदर, संदीप ने बेचे हैं। 100 रुपए के स्टॉम्प पर सरकारी जमीन के सौदे किए गए हैं। इसीलिए राजौरिया और उसके गुंडे सीमांकन के दौरान राजस्व टीम के साथ घुमते रहे ताकि वे लोगों को डरा सकें और अफसरों को दस्तावेजी प्रमाण न मिले। बैठक की बात हो जाए।
मोरोद पर थी नजर...
पप्पू राजौरिया ने अपनी पत्नी की सरपंची जाते देख अपने खास अय्यार और अधिकारियों को सेट कर सरकारी जमीनों में खेल करने वाले विनोद मोरे को मोरोद के लिए आगे कर दिया। कुछ समय पहले संपन्न हुए पंचायत चुनाव में मोरे की पत्नी रेखा मोरे चुनाव लड़ी लेकिन मोरोद की जनता ने संगीता बिलोनिया पर भरौसा जताया। हालांकि राजौरिया-मोरे की जोड़ी ने मतदाता सूची में फेरबदल तक किया और बिलोनिया परिवार सहित गांव के सौ से अधिक लोगों के नाम बालेबाले उड़ा दिए। अपने समर्थकों के नाम जोड़ दिए ताकि वे चुनाव जीत जाएं। मामले का खुलासा होने के बाद एसडीएम संतोष टैगोर ने फर्जी नाम हटाए और असली नाम जोड़े।
किसी तरह की कोई अनुमति नहीं
पंचायत स्टाफ ने बताया कि जितने भी निर्माण सामने आए हैं उनमें से एक के पास भी पंचायत की अनुमति नहीं मिली है। 15 बाय 30 और15 बाय 40 के ये प्लॉट नौटरी पर सरकार की आंखों में धूल झौंकते हुए बेचे गए हैं। हालांकि कोशिश की जा रही तारीखों में पंचायत के दस्तावेज बनाने की।

भू-माफियाओं को साथ लेकर हो रही है जांच

असरावद खुर्द की अवैध कॉलोनी...
- बिना अनुमति के 170 निर्माण आए सामने 
इंदौर. चीफ रिपोर्टर । 
असरावद खुर्द की सरकारी जमीन पर कटती अवैध कॉलोनी देखकर भी अनदेखा करते रहे राजस्व अधिकारी अब कब्जेदारों की निगरानी में ही जांच कर रहे हैं। ऐसी जांच से जहां क्षेत्रवासी नाराज है वहीं राजस्व अधिकारियों का कहना है कि हम अपना काम कर रहे हैं। कोई साथ में खड़ा है तो हम उसे भगा नहीं सकते। प्रारंभिक जांच के दौरान ही 170 मकानों की सूची सामने आई है, इसमें से किसी के पास भी पंचायत की अनुमति नहीं है।
क्षेत्र की सरकारी जमीनों पर पूर्व सरपंच पिंकी राजौरिया के पति पप्पू राजौरिया, विनोद मोरे, अमरचंद, दिनेश राजौरिया और महेश भिमाजी ने अवैध कॉलोनी काट दी है इसका खुलासा दबंग दुनिया लगातार कर रहा है। इसके बाद कलेक्टर पी.नरहरि ने जांच कर सख्त कार्रवाई के आदेश दिए थे। आदेश के बाद जाच जारी है। बुधवार को जरीब डालकर नपती की गई। नपती के दौरान पूरे वक्त पप्पू राजौरिया आरआई और पटवारी के साथ रहा। उसने कहने पर उन लोगों ने राजस्व अधिकारियों को दस्तावेज तक नहीं दिए जिनकी नौटरी राजौरिया बंधुओं और उनके शागिर्दों ने की थी।
दस्तावेज जुटाए
गुरुवार को राजस्व अधिकारी घर-घर पहुंचे और कब्जेदारों से कब्जे की प्रमाणिकता संबंधित दस्तावेज जुटाए। कुछ लोगों ने दिए। कई ने देने से मना कर दिया। बताया जा रहा है कि दो हिस्सों में कुल 170 मकानों की सूची बनाई गई है। इनमें एक में 125 मकान या निर्माण हैं जबकि दूसरे में 45 निर्माण। कुछ पर ताला लगा है। कुछ निर्माणाधीन है।
किसी तरह की कोई अनुमति नहीं
पंचायत स्टाफ ने बताया कि जितने भी निर्माण सामने आए हैं उनमें से एक के पास भी पंचायत की अनुमति नहीं मिली है। 15 बाय 30 और15 बाय 40 के ये प्लॉट नौटरी पर सरकार की आंखों में धूल झौंकते हुए बेचे गए हैं। हालांकि कोशिश की जा रही तारीखों में पंचायत के दस्तावेज बनाने की।

asarawad जांच बंद, काम जारी

असरावद खुर्द की सरकारी जमीन पर कॉलोनी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
असरावद खुर्द की सरकारी जमीन पर काटी गई कॉलोनी का खुलासा होने के बाद जहां कलेक्टर पी.नरहरि ने जांच के आदेश दे दिए है वहीं जांच दल के सामने ही कॉलोनियों में निर्माण जारी है। रोकने वाला कोई नहीं। बहरहाल, जांच को शुरू होते ही बंद करवाने के लिए पूर्व सरपंच पिंकी राजौरिया और उनके सहयोगियों ने पूरी ताकत लगा दी है।
दबंग दुनिया ने सरकारी जमीन पर बसी अवैध कॉलोनियों का खुलासा किया था। इसके बाद कलेक्टर पी.नरहरि ने जांच के आदेश दिए थे। एसडीएम श्रृंगार श्रीवास्तव से लेकर पटवारी तक जमीन का दौरा कर चुके हैं। मैदानी अमला वहां बसे लोगों से दस्तावेजी साक्ष्य भी जुटा रहा है हालाकि यह काम बीते चार दिन से बंद है। उधर, सरकारी सख्ती के बावजूद सर्वे नं. 37/1/1, 37/1/3, 37/2, 171/1, 171/1/1, 171/1/2, 171/1/3, 171/1/4, 172/1 की जमीन पर कटी कॉलोनियों में काम जारी है। कोई मकान बना रहा है तो कोई दुकान। इन कॉलोनियों में दिनेश राजौरिया, महेश भिमाजी, अमरचंद बुंदेला ने नौटरी की है।
जांच पर शंका होने लगी है...
राजौरिया और उसके सहयोगियों की दादागिरी के कारण खुलकर बोल नहीं पा रहे लोगों का कहना है कि जिस दिन से कलेक्टर ने जांच के आदेश दिए है उसी दिन से कब्जेदार दिनभर कलेक्टोरेट में डटे रहते हैं। पैसों के बल पर पटवारी और आरआई को प्रभावित कर रहे हैं ताकि वे गलत रिपोर्ट दें। विगत चार दिन से जांच भी बंद है। ऐसे में शंका इस बात की है कि मैदानी अमला झूठी रिपोर्ट देकर कलेक्टर को गुमराह न करे।
काम रुकवाना चाहिए था...
सरपंच भौजराज चौधरी ने बताया कि जब जांच जारी है और सरकारी जमीन पर बने मकान साफ दिख रहे हैं तो जांचकर्ताओं को नए काम रुकवाना थे ताकि गरीबों का ज्यादा नुकसान न हो। जांच भी जहां होना चाहिए थी वहां नहीं हो रही है। नई कॉलोनियां छोड़ 50 साल पुराने कब्जों की नपती की जा रही है ताकि कार्रवाई न हो।

लेक्टर की सख्ती से बिगड़ी कब्जेदारों की सेटिंग

मैदानी अमले को आसानी से खरीदने का भर रहे हैं दम, कलेक्टर की कड़ाई ने उड़ा रखी है नींद
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
असरावद खुर्द की सरकारी जमीन पर कटी कॉलोनी के खुलासे और जांच शुरू होने के बाद से ही भू-माफियाओं ने अधिकारियों को सादने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। हालांकि इस कड़ी में उनकी राह का बड़ा रौड़ा स्वयं कलेक्टर पी.नरहरि हैं। इस बात को भू-माफिया भी हर जगह स्वीकारते हुए कहते हैं कि बाकी तो सध जाएंगे, इन्हें कैसे मनाएं। हालांकि भू-माफियाओं के तमाम दावों के विपरीत क्षेत्र में सरकारी जमीन की जांच लगातार दूसरे दिन भी हुई।
दबंग दुनिया के खुलासे और कलेक्टर पी.नरहरि के निदे्रश पर सरकारी जमीन पर कटी कॉलोनी की जांच बुधवार को लगातार दूसरे दिन भी हुई। हालांकि कब्जेदारों के हाथों मिठाई खा चुके मैदानी अमला जांच के नाम पर सिर्फ 25-30 मकानों में ही पूछताछ करता रहा। इनमें से कुछ मकान तो वही हैं जिनमें मंगलवार को भी दस्तक दी गई थी। उधर, शिकायतकर्ताओं की उम्मीदें सिर्फ कलेक्टर पर टिकी हैं। उनका साफ कहना है कि मैदानी अमले को साधने के लिए कब्जेदार हर कीमत चुकाने को तैयार है। ऐसी स्थिति में सिर्फ कलेक्टर ही हैं जो निष्पक्ष रूप से सरकारी खसरे का सीमांकन कराकर जमीन पर बसे कब्जों की कहानी उजागर करा सकते हैं। बाकी अफसरों से उम्मीद कम है।
कलेक्टोरेट में ही डटे हैं कब्जेदार
एक तरफ कलेक्टर ने कॉलोनी की जांच के आदेश दिए हैं वहीं दो दिन से कॉलोनी काटने वाले दिनेश राजौरिया, पूर्व सरपंच पति पप्पू राजौरिया और उनके खासमखास व सहयोगी विनोद मोरे पूरे वक्त कलेक्टर में ही मंडराते रहे। मंगलवार को जनसुनवाई के दौरान गांव के कुछ लोग कलेक्टर से मिलने पहुंचे तो उन्हें बाहर के बाहर ही भगा दिया गया। ग्रामीणों ने इसकी सूचना एसडीएम को भी दी।
अफसरों को साधकर नपवाता है सरकारी जमीन
खंडवा रोड से ही लगी कैलोद कर्ताल और असरावद खुर्द की सरकारी जमीनों पर कब्जे कराने में अनुराधा कॉलोनी, तेजाजीनगर चौराहा निवासी विनोद मोरे माहिर है। कलेक्टोरेट के सामने ही आॅफिस खोलकर बैठे मोरे के पास सेवानिवृत्त और निष्काशित अधिकारियों की फौज है जो पटवारी, राजस्व अधिकारियों और एसडीएम से मिलकर जमीनों के दस्तावेजों में खेल कराती है। पुरानी तारीखों में पट्टे बनवाने अरै नामांतरण करवाने से लेकर औद्योगिक उपयोग के लिए सरकारी जमीन का फर्जी आवंटन कराने तक के काम कराते हैं। इस काम में रिकार्ड शाखा से लेकर पंजीयन विभाग तक के बाबू भी 10-20 हजार के मासिक पैकेज पर इनका साथ दे रहे हैं।  मोरोद और असरावद में ही कई फर्जी पट्टे करवाए हैं काम इतना पुख्ता किया जाता है कि अच्छे-अच्छे गच्चा खा जाएं।
गुंडों की मदद भी ले रहे हैं...
अपने खिलाफ खुले सरकारी मोर्चे से परेशान राजौरिया बंधु और मोरे ने अब गुंडों की मदद ले रहे हैं। उनका पूरा जोर है शिकायतकर्ता और उनकी मदद करने वालों को सबक सीखाना। इसके लिए वे किसी भी निचले स्तर पर जाने के लिए तैयार हैं।
कलेक्टर से मांग...
क्षेत्रवासियों की मांग है कि सर्वे नं. 19/2, 19/3, 37/1/1, 37/1/3, 37/2, 171/1, 171/1/1, 171/1/2, 171/1/3, 171/1/4, 172/1 की जमीनें राजस्व रिकार्ड में किसके नाम है? कितनी जमीनें किसे लीज पर कितने साल के लिए दी गई? बाकी जमीनों पर मकान कैसे और किसकी अनुमति से बने? इसका मैदानी सर्वे कराने पर ही कब्जेदारों के झूठे किस्सों की कलई खुल जाएगी।
जोड़ कलेक्टर वाली न्यूज का
मैं यह सब काम नहीं करता हूं। आप ही करते होंगे। मुझे पता है रिपोर्टर खबरें दिखाकर क्या करते हैं। उनकी भागीदारी में कई अवैध कॉलोनियां कटी है।
विनोद मोरे


असरावद की अवैध कॉलोनी पर सरकार सख्त

एक्शन शुरू : मंगलवार को मौके पर पहुंची प्रशासन की टीम, जुटाई कब्जों की जानकारी
इंदौर. चीफ रिपोर्टर । 
दर्जनों शिकायतों और चार-चार जांच रिपोर्ट के बावजूद असरावद की सरकारी जमीन पर बेखौफ कटी कॉलोनियों के खिलाफ कलेक्टर पी.नरहरि ने कड़ाई से छानबीन शुरू कर दी है। इस कड़ी में मंगलवार को राजस्व अधिकारियों की टीम मौके पर पहुंची और वहां बसे लोगों के दस्तावेज खंगाले।
‘सरकारी जमीन पर कॉलोनी काटकर बेच दिए छह करोड़ के प्लॉट’ शीर्षक से दबंग दुनिया ने सोमवार के अंक में समाचार प्रकाशित किया था जिसने असरावद खुर्द में सरकारी जमीन पर कब्जे का खुलासा किया था। सोमवार को ही कलेक्टर ने फाइल निकालने के दस्तावेज दे दिए थे। मंगलवार को उनके निर्देश पर एसडीएम श्रृंगार श्रीवास्तव  तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और पटवारी सहित मौके पर पहुंचे। वहां सरकारी जमीन पर तने मकानों ने अधिकारियों को चौंका दिया। अफसरों ने पहले पटवारी और आरआई को जमकर फटकारा और बाद में उन लोगों से नौटरी या अन्य दस्तावेज ऐसे दस्तावेज मांगे जिनके आधार पर वे मकान बनाकर रह रहे हैं।
जांच तो पहले भी हो गई, अब सिर्फ एक्शन...
कलेक्टर ने जब फाइलें बुलाई तो उन्हें यह भी पता चला है कि इस पूरे मामले की विस्तृत जांच 2013-14 में नायब तहसीलदार राजेश सिंह ने की थी। जांच रिपोर्ट में उन्होंने कब्जे की पूरी कहानी बयां कर दी थी। दिक्कत यह है कि इस रिपोर्ट के साथ ही कुछ अन्य अहम दस्तावेज बाद में गायब कर दिए गए हैं। कलेक्टर ने ऐसे तमाम दस्तावेजों को ढूंढकर पेश करने को कहा है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि जब पहले जांच हो चुकी है तो बार-बार जांच क्यों करें, रिपोर्ट के आधार पर सीधे कार्रवाई शुरू करेंगे।
15 हेक्टेयर जमीन पर है कब्जा
शिकायतकर्ताओं ने बताया कि असरावद खुर्द की 15 हेक्टेयर जमीन पर अवैध कॉलोनी काटी गई। इस कॉलोनी में टुकड़े-टुकड़ों में तकरीबन सौ मकान बने हुए हैं। ज्यादातर कब्जे 2010 से 2015 में किए गए। इस दौरान क्षेत्र की सरपंच पिंकी पति पप्पू राजौरिया थी। सरकारी जमीन पर नौटरी करके उनके देवर दिनेश राजौरिया और उनके समधी महेश भिमाजी ने प्लॉट बेचे।
जहां तलाश जारी, वहीं  सरकारी जमीनें लगा दी ठिकानें
जिला प्रशासन बड़े स्तर पर सरकारी जमीनें तलाश रहा है। इन जमीनों का इस्तेमाल अलग-अलग सार्वजनिक उपयोग के लिए किया जाना है। दूसरी तरफ पटवारी और आरआई के माध्यम से भू-माफिया इन्हीं सरकारी जमीनों को ठिकानें लगा रहे हैं। खंडवा रोड पर उमरीखेड़ा तक जहां प्लॉट 800 रुपए वर्गफीट में बेचे जा रहे हैं वहीं असरावद की जिस जमीन को कॉलोनी काटकर ठिकाने लगाने का प्रयास किया गया है उसकी बाजार कीमत सिर्फ 400 रुपए वर्गफीट के लिहाज से ही 64.55 करोड़ रुपए है।

asarawad सरकारी जमीन पर कॉलोनी काटकर दादा बन गए कब्जेदार

- एक तरफ कलेक्टर ने खुलवाई असरावद खुर्द के कब्जे की फाइल, दूसरी तरफ शिकायतकर्ताओं को धमकाते रहे कब्जेदार
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
शिकायतों को ठंडे बस्ते में डालकर भू-माफियाओं क साथ देने वाले अफसरों के कारण ही खंडवा रोड के गांवों (असरावद खुर्द, मिर्जापुर, मोरोद नेहरू) में सरकारी जमीनें सिकुड़ती जा रही है। फिर पटवारी-आरआई से लेकर बड़े अधिकारी हों या फिर तेजाजीनगर थाने का मैदानी अमला। हर कोई कब्जेदारों के साथ है। यही वजह है कि जमीन कब्जाकर कॉलोनियां काटने वालों के हौंसले बुलंद है और चोरी के साथ सीनाजोरी में भी पीछे नहीं है।
असरावद खुर्द में सरकारी जमीन पर कटी कॉलोनी का खुलासा दबंग दुनिया ने सोमवार को ‘अवैध कॉलोनी काटकर बेच डाले छह करोड़ के प्लॉट’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। इस खुलासे के बाद जहां मैदानी अमला हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा वहीं पूरे मामले पर स्वयं कलेक्टर पी.नरहरि ने संज्ञान लिया और छानबीन शुरू करवाई। उधर, गांव की पूर्व सरपंच पिंकी राजौरिया के पति और सर्वे नं. 37 की जमीन पर अवैध कॉलोनी काटने वाले दिनेश राजौरिया के भाई पप्पू राजौरिया दिनभर शिकायतकर्ता से लेकर खबर लिखने वाले रिपोर्टर को जान से मारने की धमकी दी।
अफसर कहते हैं तुम अपनी सरपंची संभालो,..
गांव की सरकारी जमीनों पर हो रहे बेधड़क कब्जों का विरोध राजौरिया के प्रतिद्वदी और मौजूदा सरपंच भोजराज चौधरी ने भी किया लेकिन उनकी शिकायतों को तरजीह तक नहीं दी। स्वयं चौधरी ने दबंग दुनिया को बताया कि अवैध कॉलोनी को लेकर वे हर स्तर पर शिकायत कर चुके हैं लेकिन अब तक किसी ने कार्रवाई नहीं की। तेजाजीनगर थाने पर शिकायत की तो पुलिस अधिकारियों ने जवाब दिया तुम अपनी सरपंची करो। क्यों फटे में टांग अड़ाते हो। यह काम पटवारी और आरआई पर छोड़ दो।
शिकायत की जरूरत क्यों? मैदानी अमले का क्या काम...
-- यहां बड़ा सवाल यह है कि सरकार से सरकार की ही जमीन पर हो रहे कब्जे के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए शिकायत की जरूरत क्यों पड़ रही है? पटवारी और आरआई की नौकरी किस बात की है?
-- यदि शिकायत है और उसके साथ प्रमाण नहीं है तो प्रमाण जुटाने की जिम्मेदारी पटवारी और आरआई की हो। राजस्व रिकार्ड में जमीन सरकारी है। उसका क्षेत्रफल दर्ज है जिसके आधार पर सीमांकन कराएं, स्वत: कब्जे सामने आ जाएंगे।
-- गुगल अर्थ पर वर्ष 2001 तक की सेटेलाइट इमेज देखी जा सकती है जिसका इस्तेमाल यह जानने के लिए किया जा सकता है कि आखिर जमीन पर कब और कैसे कब्जे हुए।
-- जिन लोगों को नौटरी पर प्लॉट बेचे हैं उनसे पूछा जा सकता है कि नौटरी किसने की। नौटरी की कॉपी पर नौटरी करने वाले का नाम होगा तो उस आदमी का नाम भी सार्वजनिक होगा जिसने प्लॉट बेचे। नौटरी किसी और से करवा दी।
जिससे जो बनता है कर ले...
जिसको देखो आरोप लगाता रहता है किसी के पास कोई सबूत नहीं है। न शिकायतकर्ता मेरा कुछ बिगाड़ पाएंगे। न ही उनकी मदद करने वाले। ऐसे लोगों से निपटना मुझे आता है। दुनिया छोटी है, कभी कुछ भी हो सकता है।
पप्पू राजौरिया, पूर्व सरपंच पति
(यह बात राजौरिया ने 9826800574, 9753417487, 9425776062 नंबर से फोन करके धमकी भरे अंदाज में यह बात कही है। उसने शिकायतकर्ता और उसका साथ देने वाले को जान से मारने की धमकी भी दी।)
फाइल और मौका देखता हूं..
मुझे पूरा प्रकरण पता नहीं है। मैं फाइल और मौका स्थिति दोनों देखता हूं। सरकारी जमीन पर कब्जा बर्दाश्त नहीं होगा।
श्रृंगार श्रीवास्तव, एसडीएम
हर हाल में हटेगा कब्जा
दबंग दुनिया के खुलासे के बाद से ही मामले में मैंने संज्ञान ले लिया है। जानकारी मांगी है। जमीन हर हाल में कब्जा मुक्त होगी। यदि कब्जेदार धमकियां दे रहा है तो वह उसके खिलाफ हमारा पक्ष और मजबूत ही कर रहा है।
पी.नरहरि, कलेक्टर

asarawad अवैध कॉलोनी काटकर बेच डाले छह करोड़ के प्लॉट

जांच में ही अटक कर रही गई कार्रवाई
इंदौर. चीफ रिपोर्टर।
सीलिंग और नजूल की जमीन पर कटी कॉलोनी के खिलाफ जिला प्रशासन सख्त अभियान चला रहा है वहीं मैदानी अफसरों की निगरानी में असरावद खुर्द के पूर्व सरपंच, उसके भाई और उसके समधी ने सरकारी जमीन पर कॉॅलोनी काट दी। कॉलोनी भी छोटी-मोटी नहीं, बल्कि 200-250 प्लॉटों की। एक-एक प्लॉट 3 से 5 लाख में बेचकर सरकारी जमीन से भू-माफिया 6 करोड़ कमा गए और इसका बड़ा हिस्से अफसरों को भी बांटा, यही वजह है कि बार-बार जांच के बावजूद आज तक इन पर कार्रवाई हुई ही नहीं।
मामला खंडवा रोड स्थित असरावद खुर्द का है। इस गांव में सर्वे नं. 19/2, 19/3, 37/1/1, 37/1/3, 37/2, 171/1, 171/1/1, 171/1/2, 171/1/3, 171/1/4, 172/1 की जमीनें सरकारी हैं। इनका भू-उपयोग राजस्व रिकार्ड में चरनोई और गांवठान दर्ज है। खंडवा रोड से गांव के बीच पॉवर हाउस के पास अलग-अलग हिस्सों में कॉलोनी कट गई है। 7 एकड़ में नगर निगम इंदौर की गवला कॉलोनी है। 2 एकड़ जमीन खली फेक्टरी के पास है। फेक्टरी के पास तेजाजीनगर की ओर कॉलोनी है जिसे टपाल घाटी कहते हैं जो कि नगर निगम सीमा में आ गई। फेक्टरी के पीछे और नगर निगम की गवला कॉलोनी के पास सर्वे नं. 37/1/1, 37/1/3 और 37/2 की जमीन पर 2010-2015 के बीच पप्पू पिता अमृतलाल राजौरिया, उनके भाई दिनेश राजौरिया और समधी महेश भिमाजी ने कॉलोनी काट दी। इन पांच वर्षों में असरावद खुर्द की सरपंच पिंकी राजौरिया रही जो कि पप्पू राजौरिया की पत्नी है।
पहले शिकायतें ठंडे बस्ते में थी, अब जांच भी...
क्षेत्र के लोगों ने राजौरियां बंधुओं द्वारा की जा रही सरकारी जमीन की बंदरबाट की शिकायतें पटवारी से लेकर कलेक्टर तक को की। पहले तो दर्जनों शिकायतें रद्दी की टोकरी में डाल दी गई। लगातार शिकायतों के बाद आखिरकार कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने जांच के आदेश दिए। पहले तहसीलदार अजीत श्रीवास्तव ने जांच की। जांच में शिकायत की पुष्टि हुई। बावजूद इसके कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद एसडीएम अनुपमा निनामा, तहसीलदार राजकुमार हलधर और नायब तहसीलदार राजेश सिंह ने भी जांच की। तेजाजीनगर पुलिस को कार्रवाई के लिए लिखा भी गया लेकिन कार्रवाई हुई ही नहीं।
कॉलोनी में तीन-चार बार जा चुके हैं हलधर
तहसीलदार राजकुमार हलधर जांच के नाम पर तीन-चार बार कॉलोनी के चक्कर काट चुके हैं। इस दौरान उनकी मुलाकात कॉलोनाइजर पप्पू राजौरिया और उसके भाई दिनेश से भी हो चुकी है। क्षेत्रवासियों का आरोप है कि हर बार हलधर राजौरिया से कॉलोनी बचाने की ‘फीस’ ले जाते हैं, इसीलिए कॉलोनाइजरों के खिलाफ आज तक उन्होंने कार्रवाई में गंभीरता नहीं दिखाई। सिर्फ कागजी खानापूर्ति ही की।
50-50 के दो स्टॉम्प पर लाखों के खेल
राजौरिया और महेश भिमाजी ने चार पन्नों के दस्तावेज पर प्लॉटों के सौदे किए। इसमें दो स्टॉम्प है 50-50 रुपए के। बड़ा खेल यह है कि इन नोटरियों में खसरे का जिक्र नहीं है। 600-600 वर्गफीट के प्लॉट बेचे गए हैं। किसी को प्लॉट 1.5 लाख में बैचे तो किसी को

(पप्पू राजौरिया के मोबाइल पर संपर्क किया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। )

बक्से में पूरी हो गई उपकरणों की उम्र

खरीदी का मनमाना खेल, तांक पर रोगी कल्याण
इंदौर. विनोद शर्मा।
कायाकल्प के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च करने वाले एमवायएच प्रशासन की मरीजों को लेकर सोच कितनी सतही है इसका अंदाजा अस्पताल परिसर में इस्तेमाल के इंतजार में कबाड़ हो रहे उपकरणों से लगाया जा सकता है। फिर मुद्दा एक्सरे डिपार्टमेंट में पेटीपेक पड़ी कम्प्यूटराइज्ड डिजिटल रेडियोग्राफी (सीडीआर) मशीन का हो या फिर बक्से में ही गारंटी पीरियड पूरे कर चुके वेंटिलेटर का। अतिआवश्यक सेवाओं के नाम पर लाखों रुपया पानी की तरह बहाकर इन उपकरणों की खरीदी की गई थी।
दवा और उपकरणों की खरीदी को लेकर सरकार जितनी पारदर्शिता की बात करती है हकीकत उसकी उतनी ही उलटी है। यहां तो कमीशन के लालच में जबरिया मांग बताकर उपकरण खरीदे जाते हैं। यह बात अलग है कि उनका इस्तेमाल अर्से तक हो या न हो। इस्तेमाल के इंतजार में ही अस्पताल परिसर में दर्जनों उपकरण सड़ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो एक्स-रे विभाग में सीडीआर मशीन सालभर पहले खरीदी गई थी। आज तक बक्से से बाहर नहीं आई। मशीन की खरीदी डिजिटल रेडियोग्राफी के लिए की गई थी। हालांकि एमवाय के पास इस मशीन को चलाने के लिए प्रशिक्षित आॅपरेटर तक नहीं है।
तो फिर खरीदी क्यों..
केज्युअल्टी में जो ट्रामा सेंटर है वहां दर्जनभर से अधिक बॉक्सेस रखे हुए हैं। इन बॉक्स में वेंटिलेटर मशीने हैं। इन मशीनों की खरीदी करीब सवा साल पहले हुई थी। बड़ी बात यह है कि इन मशीनों पर कंपनी ने एक साल की गारंटी दी थी और तीन साल की वारंटी। गारंटी बक्से में ही खत्म हो चुकी है। वारंटी का भी कुछ समय बीत चुका है। ये मशीनें कब खुलेगी और कब इस्तेमाल होगी? इसका जवाब अभी किसी के पास नहीं है। एक वेंटिलेटर मशीन की कीमत 14 लाख है। यदि 12 मशीनें भी हैं तो उनकी खरीदी 1.68 करोड़ में हुई है।
आधी मशीनें बंद...
सूत्रों की मानें तो एक्स-रे डिपार्टमेंट में 7 सीडीआर मशीने हैं जिनमें से चलती सिर्फ 3 ही हैं। चार इस्तेमाल ही नहीं होती। इनमें से कुछ खराब भी है। इसी तरह बड़ी तादाद में खरीदे गए पल्स आॅक्सीमीटर भी बर्बाद पड़े हैं। कंपनी ने ब्रांड के नाम पर चायनीज उपकरण सप्लाई कर दिए ताकि जल्दी खराब हो और जल्दी आॅर्डर मिले।
ऐसे होती है उपकरणों की खरीदी में सेटिंग...
-- दलाल अस्पतालों के सतत संपर्क में रहते हैं। डॉक्टरों को लालच देकर उपकरणों व दवाइयों की जरूरत पैदा करते हैं।
-- चूंकि खरीदी ई टेंडर से होती है। यहां गड़बड़ की संभावना कम रहती है। लिहाजा कंपनी के प्रतिनिधि और दलाल टेंडर जारी होने से पहले ही अस्पतालों से संपर्क कर लेते हैं।
-- यहां वे अपनी कंपनी के उत्पाद के जो स्पेसिफिकेशन हैं उन्हीं स्पेसिफिकेशन को टेंडर की शर्तों में अनिर्वायता के साथ शामिल करवा देते हैं। जैसे यदि कोई कंपनी सोनोग्राफी के 14 र्इंची मॉनिटर बनाती है, बाकी कंपनियां 12 र्इंची बनाती है या फिर 16 र्इंची। ऐसे में कंपनी स्पेसिफिकेशन की शर्त में डलवा देती है कि मॉनिटर 14 र्इंची ही खरीदा जाएगा।
- जब विज्ञप्ती जारी होती है तो 12 और 16 र्इंची मॉनिटर वाली कंपनियां शर्तों के लिहाज से बाहर हो जाती है और मनमाने कोटेशन के बावजूद आॅर्डर मिलता है 14 र्इंची मॉनिटर बनाने वाली कंपनी को।
ऊपर से होती है सेटिंग...
स्पेसिफिकेशन के मापदंड वहीं सेट करते हैं जो टेंडर की शर्तें तय करते हैं। जिनके आदेश से टेंडर जारी होते हैं। जिन्हें खरीदी की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।


इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
टार्गेट रहता है जो कि नॉमिनल है। महीने में दो-चार सेंपल का रहता है।
 फेल तो होता ही नहीं है।   चार-पांच साल में एकाध ही फेल होता है।  पुराने केस में सुनवाई चलती रहती है। पांच साल हो गए हैं नए लोगों को हैं। पीडीपीएल  रिपोर्ट  प्रोस्यूकशन  फिर दंड  त्रिवेदी था। पीडीपीएल का मामला है। पीडीपीएल में ही कंसलटेंसी कर रही है।  ड्रग इंस्पेक्टर हैं।
ड्रग की लैब है भोपाल में। कोलकाता में विशेष जाता है। सेंट्रल ड्रग लेब है।  एमवायएच में सेंपल लेने में कभी अजय गोयल का नंबर हो तो  9755112121 गोयल अशोक गोयल है।  मंथनी रिपोर्ट  दिसंबर में बनेगी। ड्रग कंट्रोलर  आॅनलाइन ही नहीं है। 

चलताऊ दवाओं के भरौसे स्वास्थ्य की चिंता

इंदौर. विनोद शर्मा । 
बड़वानी आॅपरेशन में 40 लोगों की आंखों की रोशनी गई। सरकार ने आनन-फानन में 17 दवाओं की बिक्री प्रतिबंधित कर दी। गुरुवार तक मेडिकल संचालकों तक प्रतिबंध की सूचना पहुंची ही नहीं। यह बात अलग है कि जिन 11 कंपनियों की दवाएं प्रतिबंधित हुई उनमें से 80 फीसदी की दवाएं इंदौर के मेडिकल्स पर उपलब्ध है ही नहीं। मेडिकल्स संचालकों का कहना है कि कंपनियां लोकल है और ये सिर्फ सरकारी सप्लाई के लिए ही दवाएं बनाती है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि सड़क-बिल्डिंग से लेकर हर निर्माण तक क्वालिटी एश्योरेंस की बात करने वाली सरकार मोतियाबिंद जैसे सेंसेटिव आॅपरेशन लोकल दवाओं के भरौसे कैसे कर सकती है।
दवाओं की बिक्री पर लगे सरकारी प्रतिबंध की पड़ताल करने पहुंची दबंग दुनिया टीम ने 25 मेडिकल स्टोर पर विजिट की। एक-दो स्टोर छोड़ बाकी जगह 80 फीसदी कंपनियों की दवा नहीं मिली।   मेडिकल संचालकों ने रोचक खुलासा किया। बताया लोकल कंपनियों की दवा न डॉक्टर लिखते हैं, न डिमांड  रहती है। इन्हें भारीभरकम कमीशन से अफसरों का पेट भरके सरकारी सप्लाई के रास्ते ही खपाया जाता है। वहां इस्तेमाल से पहले न तो इन दवाओं की गुणवत्ता देखी जाती है न इस्तेमाल के बाद के साइड इफेक्ट सोचे जाते हैं। इसीलिए मोतियाबिंद, नसबंदी या टीटी आॅपरेशन के सरकारी अभियान में आए दिन गड़बड़ सामने आ रही है।
एक मुश्त दे दिया 11.80 करोड़ का ठेका
इंदौर की बैरल ड्रग लिमिटेड कंपनी को मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विस प्रोक्योरमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एमपीपीएचएससीएल) कंपनी के बीच 23 जनवरी 2015 मे 11 करोड 80 लाख की आई ड्रॉप खरीदी का एकमुश्त आॅडर मिला था। इससे कंपनी का टर्नओवर 60 से 65 प्रतिशत तक बढ़ गया। 1.20 करोड़ बॉटल से बढ़कर क्षमता 2 करोड़ बॉटल हो गई। कंपनी आईवी फ्ल्यूड्स और इंजेक्टेबल प्रोडक्ट बनाती है। जिन दवाओं को प्रतिबंधित किया है उनमें बैरल की तीन दवाएं हैं। 0.9 सोडियम क्लोराइज इंजेक्शन (एसआईबी5यू175 और 5185यू183), कम्पाउंड सोडियम लेक्टेड इंजेक्शन। दवा की सरकारी खरीदी प्रतिबंधित कर दी गई है।
बातें समझी जा सकती हैं, बोली नहीं
लोकल कंपनियों की दवा खरीदी के मामले में स्वास्थ्य विभाग में ही जिम्मेदार पद पर पदस्थ एक अधिकारी ने आॅफ द रिकार्ड दवा खरीदी में कमीशनबाजी की बात स्वीकारी। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार जहां हर मामले में क्वालिटी प्रोडक्ट और क्वालिटी कंट्रोल की  बात करती है वहीं हैल्थ में कमीशनबाजों की कम्प्रोमाइज लोगों के जीवन से खिलवाड़ है। यदि पर्याप्त बजट है तो सही दवा दो। यदि बजट नहीं है तो आॅपरेशन के टार्गेट कम कर दो ताकि व्यक्ति को क्वालिटी ट्रिटमेंट मिले।
कोई लैब ही नहीं है...
स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्रों की मानें तो निजी कंपनियों से खरीदी जा रही दवाओं की इस्तेमाल से पहले गुणवत्ता जांचने के लिए मप्र सरकार के पास कोई लैबोरेटरी नहीं है। कंपनियां दवाई को लेकर जो क्वालिटी रिपोर्ट देती है उसे ही मानना पड़ता है फिर उसकी हकीकत चाहे जो हो। बताया जा रहा है दवा कंपनियों के साथ भोपाल स्तर पर सेटिंग होती है। यहां पर्चेस के लिए अलग डिपार्टमेंट है। ड्रग कंट्रोलर आॅफिस, आयुक्त आॅफिस से लेकर मंत्रालय तक के लोग इन्वॉल्व रहते हैं।
एमवाय की दवाओं की क्वालिटी भी दाव पर...
एमवाय में ही 6-7 करोड़ रुपए/सालाना की दवाई खरीदी जाती है। इसमें 20 प्रतिशत दवाओं के इस्तेमाल को लेकर आपत्ति आती है। ज्यादातर सर्जिकल आइटम रहते हैं। रबर ग्लब्स, आॅपरेशन इक्यूपमेंट्स। बिटाडिन सौल्यूशन, इंजेक्शन सिफाटॉक्सीन, अमिकासिन, सिप्रासिन टेजोबेक्टम जैसी दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं।
लोकल और अन्य दवाओं में अंतर...
एक ही फॉर्मुले की लोकल और ब्रांडेड दवाओं की बात करें तो ब्रांडेड दवा की एक गोली जो असर करती है उतना असर लोकल तीन गोली नहीं कर पाती। लोकल गोलियों की प्रोटेंसी कम होती है। इसीलिए ईलाज के दौरान डॉक्टर इनका इस्तेमाल कम करते हैं। क्योंकि हर डॉक्टर चाहता है मरीज जल्द ठिक हो।
डॉ. जितेंद्र मालवीय,   स्कीम-78
लोकल दवा और ब्रांडेड दवाओं की कीमत में अंतर रहता है। कुछ दवाएं या सोल्यूशन ऐसे हैं जिनकी दवाओं की कीमत सीमय तय है। उससे ज्यादा में नहीं बिकती। इनमें सर्जिकल इक्यूपमेंट और सोल्यूशन भी शामिल हैं। ऐसे में आॅपरेशन के दौरान गुणवत्ता से समझौता नहीं करना चाहिए।
रितेश शर्मा, मेडिकल संचालक
जब केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक पैसा दे रही है तो आॅपरेशन के दौरान उच्च कोटी की दवाएं इस्तेमाल होना चाहिए। वह गुणवत्ता के साथ। क्यों कमजोर ईलाज करके लोगों को राइट टू विजन से वंचित किया जा रहा है। न्यूनतम दर पर टेंडर कंस्ट्रक्शन तक ठिक है, ईलाज में नहीं।
डॉ.आनंद राय, आरटीआई कार्यकर्ता

खजराना में दो तालाब चोरी, एक गायब

भू-माफियाओं को मिला ‘सरकार’ का साथ, सड़ती रही शिकायतें 
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नए तालाब बनाना तो दूर उसके बारे में सोचने में भी नाकाम रहे प्रशासनिक अमले की मिलीभगत से खजराना के तीन तालाब चोरी हो चुके हैं। जो चौथा तालाब बचा है वह आज तालाब कम सेप्टिक टैंक ज्यादा नजर आता है। आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो खजराना में तालाब की 10 एकड़ से ज्यादा जमीन थी जबकि बची बमुश्किल पांच-साढ़े पांच एकड़ जमीन। सजग क्षेत्रवासियों की सतत शिकायतों के बावजूद चोरी हुए तालाबों पर कॉलोनियां कट चुकी है।
जल स्रोतों के संरक्षण को लेकर रंग-बिरंगे प्रजेंटेशन देने वाली ‘सरकार’ की तालाबों के प्रति चिंता सतही है। इसका बड़ा उदाहरण है खजराना। राजस्व रिकार्ड और क्षेत्रवासियों की मानें तो क्षेत्र में किसी वक्त चार तालाब हुआ करते थे। आज अस्तित्व में सिर्फ एक ही तालाब है, वह भी मटमेला। बाकी तीन तालाबों का अस्तित्व दस्तावेजों में ही दफन होकर रह गया। क्षेत्र के जानकार और सरकारी जमीनों पर कब्जे के खिलाफ अर्से तक कानूनी लड़ाई लड़ते रहे नासिर मेवाड़वाला ने तालाबों की जमीन बचाने के लिए भी कोशिश की। कई शिकायतें की लेकिन अधिकारियों ने वक्त रहते ध्यान ही नहीं दिया।
कहां गया तालाब...
-- सर्वे नं. 435/1/1 की जमीन में से तकरीबन पांच एकड़ जमीन के हिस््से (खजराना थाने से लगा हुआ) पर भी कभी एक तालाब हुआ करता था। बाद में प्रशासन ने यह जमीन मप्र वाणिज्यिक कर अल्प आय गृह निर्माण सहकारी संस्था को दे दी। बीते साल वापस ले लिया। हालांकि जमीन राजस्व रिकार्ड में अब भी संस्था के ही नाम है। इस बात की पुष्टि संस्था के अध्यक्ष शोभरन सिंह भी करते हैं। उनका कहना है कि मुलत: तालाब था या नहीं यह तो नहीं पता लेकिन यहां तलाई की तरह पानी जरूर भरा रहता था।
-- सर्वे नं. 425 की 0.344 जमीन पर तालाब और सर्वे नं. 432 की 0.219 हेक्टेयर पाल की जमीन पर कॉलोनी कट चुकी है। भू-माफियाओं ने अवैध रूप से प्लॉट बेचे और मकान बनवा दिए।
-- इसी तरह सर्वे नं. 251 की 0.421 हेक्टेयर जमीन पर भी कॉलोनी कट चुकी है।
-- ये कॉलोनियां विगत 15 वर्षों में कटी है। इससे पहले तालाब और तलई की जमीन को लोगों ने बराबर करके खेती शुरू कर दी थी। बाद में कॉलोनियां कटी। यहां 300 से लेकर 700 रुपए वर्गफीट तक में 50-100 रुपए के स्टॉम्प पर प्लॉट बेचे गए।
 उम्मीद जागी है...
खजराना में सीलिंग की जमीन पर कटी कॉलोनी के खिलाफ हुई सरकारी तोड़फोड़ ने क्षेत्र के तालाब चिंतकों में उम्मीद जगा दी है। अब लोगों को लगने लगा है कि यदि वे महकमे में बैठे सख्ती पसंद अफसरों की शरण लें तो तालाब कब्जे मुक्त हो जाएंगे। यदि ऐसा होता है तो क्षेत्र को और भी तालाब मिलेंगे जो पेयजल के काम भले न आए लेकिन जलपुनर्भरण का काम जरूर लिया जा सकता है।
प्रशासन ने ध्यान ही नहीं दिया...
कभी चार तालाब थे। एक की जमीन संस्था को सरकार ने ही दे दी जबकि दो पर कब्जे करके भू-माफियाओं ने कॉलोनियां का डाली। हमने संघर्ष समिति बनाई। कई शिकायतें की लेकिन उन शिकायतों पर अमल करने के बजाय अधिकारी आंख बंद करके बैठ गए। अब जब सरकार सीलिंग की जमीन बचाना चाहती है तो हम भी कोशिश करेंगे, उम्मीद है कार्रवाई होगी।
नासिर मेवाड़वाला, क्षेत्रवासी
 खसरा नं. रकबा (हेक्टेयर) उपयोग
432 0.219 ताल की पार
425 0.344 तालाब
251 0.421 तालाब (पोखर)
4351/1/1 5 एकड़ ......
जमीन जहां तालाब है...
902 3.137 तालाब
(7 एकड़ 32743 वर्गफीट जमीन है कुल इस तालाब की। इसमें से अभी तालाब बमुश्किल 5-साढेÞ पाच एकड़ जमीन बची है। बाकी पर लोगों ने कब्जे कर लिया। या सरकार ने सड़क निकाल दी।)    

इंदौर-खलघाट रोड पर बढ़ते हादसों और चोरी से पुलिस परेशान, लिखा एनएचएआई को पत्र

रोशन कर दो भेरूघाट
इंदौर. विनोद शर्मा।
इंदौर-खलघाट रोड पर रात के दौरान बढ़े सड़क हादसों ने क्षेत्रीय पुलिस से लेकर नेशनल हाईवे अथॉरिटी आॅफ इंडिया (एनएचएआई) की नींद उड़ा दी है। हालात यह है कि इंदौर और धार पुलिस ने एनएचएआई को पर्याप्त रोशनी के लिए पत्र लिखा है वहीं पुलिस के पत्र पर एनएचएआई ने सड़क बनाने वाली कंपनी ओरियंटल पाथवेज (इंदौर) प्रा.लि. को कड़ा पत्र लिखकर सुरक्षा के मुकम्मल इंतजाम जुटाने की हिदायत दे दी है। यह भी स्पष्ट कर दिया कि इंतजाम नहीं तो हादसों की सीधी जिम्मेदारी कंपनी की होगी।
आए दिन हो रहे सड़क हादसों और चोरी-लूट की वारदातों से परेशान मानपुर थाना प्रभारी कमलेश शर्मा ने 11 सितंबर 2015 को इंदौर डीआईजी, रीजनल आॅफिसर एनएचएआई, प्रोजेक्ट आॅफिसर एनएचएआई को पत्र (2800/2015) लिखा था। पत्र में थाना प्रभारी ने लिखा कि एनएच-3 के भेरूघाट पर मोड़ और सड़क के दोनों ओर जंगल होने के कारण सड़क हादसे और चोरी की घटना बढ़ी है। जन-धन हानि की क्षति होती रहती है। इसीलिए एनएचएआई यहां पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था उपलब्ध कराएं। पत्र 3 अक्टूबर 2015 को एनएचएआई तक पहुंचा। 15 अक्टूबर 2015 को एनएचएआई  ने सड़क बनाने वाली कंपनी ओरियंटल पाथवेज (इंदौर) प्रा.लि. को कड़ा पत्र (एनएचएआई/पीआईयू/आईएनडी/एनएच-3/आईके/2015/1738) को पत्र लिखकर जनहित में प्रकाश व्यवस्था के निर्देश दिए।
अन्यथा कंपनी होगी दोषी...
एनएचएआई ने अपने पत्र में लिखा और मानपुर पुलिस के प्रकाश व्यवस्था संबंधित पत्र की जानकारी दी। यह भी कहा कि अनुबंध के अनुसार सुरक्षा के जो इंतजामात जुटाए जाना चाहिए वे जुटाए जाएं। इसके अलावा प्रकाश व्यवस्था भी की जाए। अन्यथा अब यदि कोई भी हादसा या दुर्घटना होती है तो इसकी सीधी जिम्मेदारी कंपनी की होगी।
न सिर्फ सड़क हादसे, बल्कि चोरी भी...
मानपुर पुलिस ने बताया कि ढाल घाट से भेरू मंदिर के बीच तकरीबन दो किलोमीटर लंबा हिस्सा ऐसा है जहां न सिर्फ नियमिति सड़क हादसे होते हैं बल्कि सड़क पर रांपी गाड़कर चोर पहले गाड़ियां पंक्चर करते हैं और बाद में लूटपाट, चोरी-चकारी। चूंकी सड़क के दोनों तरफ जंगल है इसीलिए घटनाओं को अंजाम देकर रात में अंधेरे का लाभ लेकर चोर भाग निकलते हैं।  घाट पर रात 10.30 बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक दो पुलिस जवानों का पॉइन्ट नियुक्त किया जाता है। इसके अलावा 2 जवान गश्त पर रहते हैं। रात को पुलिस फोर्स भी बढ़ाना पड़ता है। टीआई भी रातभर गश्त पर रहते हें।
138 एक्सीडेंट हुए हैं पूरी सड़क पर
एनएचएआई की रिपोर्ट के अनुसार 2014 में ही कुल 138 सड़क दुर्घटनाएं हुई। इनमें 38 एक्सीडेंट इसी मौके के और रात के हैं। इसके अलावा आए चोरी की वारदातें अलग होती है।

वेंटिलेटर पर मालवा संवारने का सपना

डीएमआईसी : 35 हजार करोड़ के करार को 5 साल से ‘जमीन’ का इंतजार
- अधिग्रहण कानून, किसानों के विरोध और कंसलटेंट की कामचोरी से अटकी महत्वकांक्षी परियोजना
इंदौर. विनोद शर्मा ।
महत्वकांक्षी दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (डीएमआईसी) परियोजना पांच साल के लंबे इंतजार और 35 हजार करोड़ के करार के बावजूद आज वेंटिलेटर पर है। जमीन अधिग्रहण कानून, जमीन देने से किसानों के इंकार और मप्र के इंडस्ट्रियल लैंडबिल के प्रति सरकार की सुस्ती के साथ ही कंसलटेंसी कंपनी का काम से परहेज भी इसका बड़ा कारण है।
डीएमआईसी 2009-10 में मंजूर हुआ था। इस परियोजना के पहले चरण तहत चार अर्ली बर्ड प्रोजेक्ट का काम होना था। अक्टूबर 2010 में खजुराहों में संपन्न ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में डीएमआईसी और उद्योग विभाग के बीच मेमोरेंडम आॅफ अंडरस्टेंडिंग (एमओयू) साइन हुआ था। 5 साल 2 महीने हो चुके हैं लेकिन अब तक डीएमआईसी का अस्तित्व दस्तावेजों से बाहर नहीं आ पाया। लंबे इंतजार के बाद अब स्थिति यह है कि एकेवीएन इंदौर से लेकर उद्योग मंत्री तक यह बताने में अक्षम है कि अट्रेक्टिव प्रजेंटेशन और फाइलों में डीएमआईसी का जैसा स्वरूप अब तक दिखाया जाता रहा है उसे जमीनी जामा कब तक मिलेगा।
चक्रव्यूह में चकरघिन्नी हो चुका डीएमआईसी
- इंदौर एअरपोर्ट से पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के बीच प्रस्तावित इकोनॉमिक कॉरिडोर की जमीन का अधिग्रहण किसानों के विरोध के कारण अटका हुआ है। कई किसान कोर्ट पहुंच चुके हैं। मामले विचाराधीन हैं। उज्जैन में 448 हेक्टेयर जमीन पर प्रस्तावित नॉलेज सिटी और 223 हेक्टेयर में प्रस्तावित बेटमा क्लस्टर और 178 में प्रस्तावित लॉजिस्टिक हब की स्थिति भी यही है।
- 2013 में केंद्र ने कड़ा जमीन अधिग्रहण कानून जारी कर दिया था जिसके तहत किसानों को जमीन की गाइडलाइन से चार गुना ज्यादा कीमत चुकाना है। अभी कानून विचाराधीन है लेकिन किसान चार गुना मुआवजा चाहते हैं।
- इंदौर विकास प्राधिकरण की तरह राज्य सरकार औद्योगिक उपयोग की जमीन अधिग्रहण करने के लिए जो कानून ला रही है वह भी लंबे समय से केबिनेट/विधानसभा की मंजूरी के इंतजार में अटका है।
कंसलटेंट काम करने को तैयार ही नहीं...
डीएमआईसी को जापान सरकार की मदद से क्रियान्वित किया जाना है। डीएमआईसी, दिल्ली की शर्तों के अनुसार प्रोजेक्ट को कंसलटेंट के माध्यम से डिजाइन व क्वालिटी कंट्रोल करवाना है। प्रोजेक्ट प्लानिंग की जिम्मेदारी  मेसर्स लिया एसोसिएट्स को दी थी। कंपनी ने माही पानी परियोजना की प्लानिंग तैयार की जो पूरी तरह हवाई थी। एकेवीएन को इस प्लानिंग में कई बदलाव करना पड़े। इसके बाद कंपनी ने काम में रुचि नहीं ली।
पीएमओ भी जता चुका है असंतोष...
30 सितंबर 2015 को डिपार्टमेंट आॅफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) ने देशभर में प्रस्तावित डीएमआईसी प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग रिपोर्ट बनाकर प्रधान मंत्री कार्यालय को सौंपी। इस रिपोर्ट में मप्र में डीएमआईसी की वास्तविकता पर पीएम नरेंद्र मोदी भी असंतोष व्यक्त कर चुके हैं।
टेंडर में कंपनियों की रुचि नहीं...
30 सितंबर 2015 को पीएमओ भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार विक्रम उद्योगपुरी के लिए जो टेंडर निकाले गए थे उनमें कंपनियों ने रुचि नहीं ली। 5 फरवरी 2015 और 8 मई 2015 को टेंडर निकालना पड़े। 8 सितंबर 2015 को इस प्रोजेक्ट को स्टेट लेवल एन्वायरमेंट असेसमेंट अथॉरिटी (एमपीएसईआईएए) इन्वायरमेंट क्लीयरेंस के लिए आवेदन स्वीकार कर चुका है। जल्द ही ईसी मिल जाएगी। 

मप्र के सवा तीन लाख उद्योग होंगे फैक्टरी एक्ट से बाहर

- केंद्र सरकार ने तैयार किया नया लघु कारखाना कानून
- 40 से कम मजदूरों वाली कंपनियां आएंगी दायरे में 
इंदौर. विनोद शर्मा । 
जिन कारखानों में मजदूरों की संख्या 1 से 40 है वे फैक्टरी एक्ट-1948 से मुक्त होंगे। इनके लिए केंद्र सरकार लघु कारखाना विधेयक ला रही है। 16 कानूनों की खासियतों का सम्मिलित करके बनाए जा रहे इस विधेयक में लघु कारखानों के लिए छह श्रम कानूनों के दायरे से कुछ छूट पर जोर है। मप्र में लघू उद्योगों की संख्या 318632 हैं जिनमें मजदूरों की संख्या 1 से 40 है।  इनमें तकरीबन 20 हजार से अधिक उद्योग इंदौर जिले में है।
लघु कारखाना विधेयक तैयार है। जल्द ही संसद में इसे रखा जाना है। कारखाने और श्रमिकों के हितों की चिंता के साथ विधेयक की सिफारिशें तैयार करने वाले डायरेक्टर जनरल फैक्टरी एडवाइस सर्विस एंड लेबर इंस्टिट्यूट (डीजीफासली) के एक अधिकारी ने बताया कि प्रस्तावित विधेयक के तहत  जिन कारखानों में 40 मजदूर तक काम करते हैं वे फैक्ट्री एक्ट, औद्योगिक विवाद अधिनियम, ईएसआई अधिनियम और मातृत्व लाभ जैसे अन्य 16 श्रम कानूनों की पकड़ से बाहर होंगे। देश में अभी जितने भी कारखाने हैं उनमें 65 फीसदी ऐसे हैं जिनमें मजदूरों की संख्या 40 या उससे कम है जो अब फेक्टरी एक्ट के मुताबिक श्रम कानूनों के दायरे में नहीं आयेंगे।
फायदे मजदूर के...
- छंटनी या कारखाना बंद करने की स्थिति में 45 दिन के वेतन के मुआवजे का प्रावधान है जबकि औद्योगिक विवाद कानून, 1947 के तहत अभी केवल 15 दिन के वेतन के बराबर मुआवजे का प्रावधान है।
लघु कारखानों में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के मजदूरी के समय पर भुगतान एवं वैधानिक कटौतीयों का प्रावधान है।
- शिकायत निपटान समिति (जीआरसी) का प्रस्ताव है। जिसमें नियोक्ता तथा कर्मचारियों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह समिति 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले सभी छोटे कारखाने में गठित की जाएगी।
इन कानून से मिलेगी आजादी
कारखान कानून, 1948, औद्योगिक विवाद कानून, 1947, औद्योगिकी रोजगार (स्थायी आदेश) कानून, 1946, न्यूनतम श्रमिक कानून, 1948, मजदूरी भुगतान कानून, 1936 तथा दुकान एवं प्रतिष्ठान कानूनों के जरूरी तत्व विधेयक में शामिल किये गये हैं। 

डीटीएम से लिया डीआईसी ने जमीन का कब्जा

इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
उद्योग के लिए लीज पर मिली सरकारी जमीन को किराए पर देकर 3.5 लाख रुपए महीना कमाने वाली डीटीएम ग्लोबल से जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र (डीआईसी) ने गुरुवार को जमीन का कब्जा ले लिया। डीआईसी ने पूरा परिसर सील कर दिया और शासन  को कब्जा रिपोर्ट भी भेज दी। अब शासन को तय करना है कि इस जमीन का क्या और कैसे उपयोग करना है।
मप्र स्टेट इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन (एमपीएसआईसी)   की जमीन का डीटीएम द्वारा किए जा रहे दुरुपयोग और डीआईसी द्वारा की गई जमीन का कब्जा लेने की तैयारी का खुलासा दबंग दुनिया ने गुरुवार के अंक में सबसे पहले किया था। इसके बाद गुुरुवार सुबह 11.30 बजे एसडीएम संतोष टेगौर और जीएम डीआईसी आत्माराम सोनी के निर्देशन में डीआईसी की टीम कब्जा लेने पहुंची। मौके पर पहुंचते ही टीम ने सबसे पहले किराएदारों का सामान परिसर से बाहर रखवाया। बाद में सुपुर्दनामा/पंचनामा तैयार करके परिसर सील कर दिया।
बिजली काटी.....
डीटीएम के नाम पर जो बिजली कनेक्शन था उससे सभी शेड को बिजली बांट दी गई थी। डीआईसी द्वारा बार-बाल लिखे गए पत्र के बाद गुरुवार को बिजली कंपनी के कर्मचारी भी मौके पर पहुंचे और बिजली कनेक्शन काट दिया। अधिकारियों ने बताया कि बिजली सबलेट करना अपराध है।
कब्जा रिपोर्ट सरकार को भेजेंगे..
डीआईसी ने जिस जमीन का कब्जा लिया उसका क्षेत्रफल 166834 वर्गफीट है। यह जमीन डीआईसी आॅफिस वाली रोड पर ही है। इसीलिए यहां बाजार कीमत तकरीबन 2000 रुपए/वर्गफीट बताई जा रही है। इस मान से जमीन 33.36 करोड़ से ज्यादा है। बहरहाल, उद्योग आयुक्त के आदेश पर डीआईसी ने कब्जा ले लिया है अब डीआईसी कब्जे की रिपोर्ट भोपाल भेजेगी।
यह था मामला..
स्वयं अपनी कंपनी चलाने वाले एसआईसी ने अनुबंध के तहत जमीन डीटीएम को दी थी। अनुबंध 2007 में खत्म हुआ। 2012 से डीआईसी ने कब्जा लेने की कार्रवाई शुरू कर दी। एसआईसी-डीटीएम के बीच हिस्सेदारी का मामला हाईकोर्ट-आर्बिटेशन में है।

डीटीएम से 25 करोड़ की जमीन का कब्जा लेगा डीआईसी

- 3.380 एकड़ जमीन पर लाखों का किराया वसूल रही है कागजी कंपनी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
दस्तावेजों में ही चल रही डीटीएम ग्लोबल को बेदखल करके जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र (डीआईसी) गुरुवार को पोलोग्राउंड की 3.830 एकड़ जमीन का कब्जा लेगा। इस जमीन की कीमत 25 करोड़ है। मप्र स्टेट इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन (एमपीएसआईसी) के साथ अनुबंध निरस्त होने और डीआईसी द्वारा लीज निरस्त किए जाने के बाद भी इस जमीन और जमीन पर बने शेड किराए पर देकर कंपनी लाखों रुपए महीना किराया वसूल रही है।
मप्र स्टेट इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन (एमपीएसआईसी)  उद्योग से संबंधित अहम विभाग था जो अपने स्तर पर कारखानों का संचालन करता था। इसी एमपीएसआईसी की पोलोग्राउंड में 3.830 एकड़ जमीन थी जहां सात शेड बने हैं। एक अनुबंध के तहत एमपीएसआईसी ने शेड सहित जमीन डीटीएम के डायरेक्टर मनीष जाजू को दे दी जो कि द धार टेक्सटाइल्स के भी डायरेक्टर हैं। डीटीएम सिर्फ कागजों में ही रही। कुछ समय बाद एमपीएसआईसी का अस्तित्व समाप्त हो गया। उसकी सारी संपत्ति जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र को हस्तांतरित हो गई।
2007 में खत्म हो गई थी लीज...
2007 में जमीन की लीज खत्म हो गई। मुद्दा आया कि जमीन डीआईसी ले ले और जितना पैसा जाजू ने लगाया है उतना वह ले ले। जाजू की रकम थी करीब 30 लाख रुपए। हक की लड़ाई हाईकोर्ट और बाद में आर्बिटेशन पहुंची। इन सबसे दूर राज्य सरकार के निर्देश पर डीआईसी ने 2012 में अनुबंध निरस्त करके कब्जा लेने की तैयारी शुरू कर दी।
डीटीएम का बिजली शेड में...
कब्जा लेने गए तब पता चला डीटीएम ने सातों शेड तो किराए पर दे ही दिए हैं, कुछ नए शेड भी बनाकर किराए पर दे डाले। किसी ने गोदाम खोला तो किसी ने ट्रांसपोर्ट। जिनका कुल किराया लाखों रुपए महीना है। इतना ही नहीं डीटीएम के नाम पर जो बिजली कनेक्शन था उससे सभी शेड को बिजली बांट दी गई। डीआईसी इस संबंध में मप्र पश्चिम क्षेत्र बिजली वितरण कंपनी को भी पत्र लिखकर बिजली काटने के लिए कह चुकी है। हालांकि अब तक बिजली कटी नहीं।
25 करोड़ की है जमीन
पोलोग्राउंड वार्ड-57 में आता है। यहां प्लॉट की गाइडलाइन 700 रु/वर्गफीट है जबकि शेड की गाइडलाइन 1800 रु/वर्गफीट है। औसत 1500 रुपए भी गाइडलाइन मानी जाए तो 3.830 एकड़ (166834 वर्गफीट) जमीन की कीमत 25 करोड़ से ज्यादा है। जमीन पर गुुरूवार सुबह 10 बजे डीआईसी व जिला प्रशासन की टीम कब्जा लेगी।
एसआईसी खुद चलाता था अपनी कंपनियां..
एसआईसी अपने जमाने में खुद कंपनियां चलाता था। पोलोग्राउंड और राऊ में भी एसआईसी की कॉलोनियां है। इसके अलावा एसआईसी की महिदपुर में शकर फेक्टरी भी है। अब इन सभी संपत्तियों का स्वामित्व डीआईसी के पास है।
धार टेक्सटाइल्स में है डायरेक्टर
15 जून 1984 को पंजीबद्ध हुई द धार टेक्सटाइल्स मिल्स लिमिटेड में मनीष जाजू 31 अगस्त 1990 से डायरेक्टर हैं। उनके अलावा उनके भाई पंकज जाजू, विजय बाकलीवाल, पंकज सिंघल और सुनील चौधरी भी डायरेक्टर हैं। 

सहुलियतों से लैस होगा एनएच-59

- एम्बुलेंस, क्रेन, वॉशरूम के साथ ही मेडिकल एड पोस्ट भी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
लेटलतीफी का इतिहास गढ़ चुके इंदौर-अहमदाबाद मार्ग (एनएच-59) नए साल में जनसुविधाओं से लैस होगा। सबकुछ ठिक रहा तो 2016 खत्म होने से पहले इस हाईवे एम्बुलैंस, क्रेन, मेडिकल एड पोस्ट और ट्रेफिक एड पोस्ट के साथ ही तकरीबन एक लाख पौधे भी लगाए जाएंगे। इसके अलावा सड़क में आ रहे 31 हजार पेड़ों का टांसप्लांटेशन भी किया जाएगा।
डिजाइन बिल्ट फाइनेंस आॅपरेट एंड ट्रांसफर (डीबीएफओटी) सिस्टम के तहत इंदौर-गुजरात सीमा के बीच 161.5 किलोमीटर (9.500 से किलोमीटर 171 तक) लंबे फोरलेन करीब छह साल से बन रहा है। सरकारी अनदेखी और कंपनी की ढिलाई के कारण अर्से तक काम बंद रहने के बाद बीते कुछ दिनों से निर्माण में तेजी आई है। उम्मीद जताई जा रही है कि 2016 अंत तक सड़क फिनिशिंग टच ले लेगी। अब नेशनल हाईवे अथॉरिटी आॅफ इंडिया (एनएचएआई) ने अनुबंध के आधार पर कंपनी से सड़क पर सहुलियतें विकसित करने को कह दिया है। इस संबंध में अक्टूबर 2014 से आधा दर्जन पत्र लिखे जा चुके हैं।
क्या-क्या सुविधाएं विकसित होगी
बस बे, बस शेल्टर, इंट्री एक्जिट रेम्प, बड़े जंक्शन, माइनर जंक्शन, हाईवे लाइटिंग, रोड फर्नीचर, मेटल क्रश बेरियर, कॉन्क्रिट क्रेश बेरियर, एम.एस.रैलिंग, फुटपाथ, पौधारोपण, हाईवे पेट्रोल, एम्बुलेंस, के्रेन, टोल प्लाजा, ईसीबी, ट्रेफिक एड पोस्ट, मेडिकल एड पोस्ट और वॉशरूम।
लगना है1 लाख पौधे, लगे 32 हजार
आईवीआरसीएल और एनएचएआई के बीच हुए अनुबंध के अनुसार एनएच-59 पर 660/किलोमीटर पौधे लगाए जाना है। रोड बन रही है 161.5 किलोमीटर। यानी कुल पौधे लगाना होंगे 106590 पौधे लगना है सड़क के दोनों तरफ । दो पौधों के बीच 1.5 मीटर की दूरी होगी। 18 नवंबर 2015 तक 78.1 किलोमीटर लंबे हिस्से में 32150 पौधे लगाए जा चुके हैं। पौधारोपण का यह काम अनुबंध के हिसाब से फरवरी 2013 तक पूरा करना था लेकिन दिसंबर 2012 से मई 2014 तक काम बंद रहने के कारण पौधारोपण नहीं हो पाया। काम शुरू जून 2015 से। इस पूरे मामले को लेकर फरवरी 2014 में एनएचएआई कंपनी को ब्लैक लिस्टेड करने की चेतावनी भी दे चुका है। ट्री ट्रांसप्लांटेशन पर तकरीबन 3.1 करोड़ रुपए खर्च होंगे।
31 हजार पेड़ ट्रांसप्लांट होगा...
31 हजार पेड़ ऐसे चिह्नित किए गए हैं जो सड़क के बीचोबीच आ रहे हैं। इन पेड़ों को सड़क किनारे ट्रांसप्लांट किया जाना है कतारबद्ध। पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने के लिए अगली बरसात (31 अगस्त 2016) तक का वक्त दिया गया है। हालांकि अब तक ट्रांसप्लांटेशन शुरू नहीं हुआ है।
अभी यह है स्थिति...
सुविधा कुल कंपलिट बनना है
बस बे 53 2 51
बस स्टॉप 23 0 23
मेजर जंक्शन 33 0 33
माइनर जंक्शन 76 0 76
लाइटिंग 33 0 33
वॉश रूम 2 0 2
मेडिकल एड पोस्ट 2 0 2
ट्रेफिक एड पोस्ट 2 0 2
टोल प्लाजा 2 0 2
एम्बुलेंस 2 0 2
क्रेन 2 0 2

मुकाता के तालाबों पर किसानों का कब्जा

सांवेर तहसील के गांव में फेल कलेक्टर का कब्जा मुक्त सरकारी जमीन अभियान
इंदौर. विनोद शर्मा ।
शहर में नजूल और सीलिंग की जमीनें कब्जा मुक्त कराने के लिए कलेक्टर जितना जोर दे रहे हैं वहीं स्थानीय अधिकारियों की अनदेखी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कब्जे बढ़ रहे हैं। इसका बड़ा उदाहरण सांवेर से लगा गांव मुकाता है। यहां तालाब की जमीन पर लगातार किसानों का कब्जा बढ़ता जा रहा है। इसका खुलासा दो पक्षों की आपसी शिकवा-शिकायत के बाद हुआ। बहरहाल, सांवेर तहसील में बैठे अधिकारियों ने जांच शुरू कर दी है।
देपालपुर रोड पर सांवेर से महज ढ़ाई किलोमीटर दूर मुकाता राजस्व रिकार्ड में जल संसाधन के मामले में संपन्न है। रिकार्ड के अनुसार यहां कुल 114 एकड़ जमीन पर दो तालाब हैं। इनमें एक तालाब 28 एकड़ का है जबकि दूसरा 84 एकड़ का। इन दोनों तालाबों में किसान कब्जा करके खेती कर रहे हैं। कुछ किसानों ने मिट्टी का भराव करके जमीन को तालाब की जद से दूर करने के प्रयास भी किए हैं। जितनी जमीन पर कब्जा हुआ है उसकी बाजार कीमत करीब दस करोड़ है।
34 एकड़ जमीन पर कब्जा...
- 84 एकड़ का जो तालाब है उसमें 50 एकड़ जमीन ही जंगली झाड़ियों के कारण बची हुई है बाकी 34 एकड़ जमीन पर मुकाता में ही रहने वाले यादव परिवार ने खेती शुरू कर दी है।
- तालाब में तीन तरफ पाल है। पिछले हिस्से में एक नाली है जो सीमांंकन की तरह नजर आता है। इस नाली और तालाब के बीच खेती हो रही है। तालाब की लंबाई 800 मीटर है। इस 800 मीटर की लंबाई में आधा दर्जन से अधिक किसान खेती कर रहे हैं।
- यहां खेती करने वाले किसान रामरतन पिता लक्ष्मण ने कब्जा स्वीकारा लेकिन कहा कि कब्जा बहुत ही छोटे हिस्से पर है जबकि राजस्व रिकार्ड में खसरा नं. 334/1 की 1.064 हेक्टेयर जमीन उनके नाम दर्ज है। ये जमीन सांवेर की ओर तालाब की पाल के पार है। जबकि उनकी खेती नाली और तालाब के बीच जमीन पर है करीब दो-पांच एकड़ में।
- तालाब से लगी है इनकी जमीन। सर्वे नं. 336 और 375/1 (हरिसिंह पिता रामसिंह), 373 (धर्मपालसिंह और उनके भाई शिवनारायण), 372/1 (गोपाल पिता शिवनारायण), 372/1 (महेश बद्रीलाल), 370/2 (गंगाराम पिता लक्ष्मण) 370/3 (बद्रीचंद पिता आत्माराम), 370/1 (नारायण), 369/2(नगजीराम), 369/1 (मनोहर), 340/2 (मंजूला बाई), 340(मादू, महेशराव)। इनमें से भी कुछ ने तालाब की जमीन पर खेती शुरू कर दी है जबकि कुछ ने इनकी और तालाब की जमीन के बीच खेती शुरू कर दी।
- इसमें सर्वे नं. 232/1, 232/2 और 341/1 और 341/2 के बीच बड़ी जमीन पर कब्जा है।
5 एकड़ में कब्जा...
28 एकड़ का दूसरा तालाब है जो कांकड़ से लगा है। इस तालाब में बड़े तालाब के मुकाबले कब्जे कम है। यहां सर्वे नं. 327 और 328 के पास ही कब्जा है। तकरीबन पांच एकड़ जमीन पर अवैधानिक खेती हो रही है। सरकार की अनदेखी के कारण कब्जा बढ़ रहा है।
तालाब के बीच की सरकारी जमीन पर भी कब्जा
बड़े तालाब दो खसरे (337 और 339) की जमीन पर है। इनके बीच सर्वे नं. 338 की 0.227 हेक्टेयर और सर्वे नं. 371 की 0.413 हेक्टेयर जमीन है जो सरकारी है। सर्वे नं. 371 जो तालाब से सर्वे नं. कांकड़ (सर्वे नं. 395) तक रास्ते की तरह जाती है। इस पर भी किसानों ने कब्जा करके खेती शुरू कर दी।
ऐसे उजागर हुई कहानी...
इन तालाबों में मछली पालन का ठेका जिला प्रशासन ने एक स्व सहायता समूह को दे रखा है। लगातार कब्जे और तालाब के पानी के अवैधानिक दोहन से मछली पालन मुश्किल हो गया। इसीलिए स्वसहायता समूह ने एसडीएम आॅफिस में शिकायत की।
दूसरी और मुकातावासियों का कहना है कि स्वसहायता समूह ने मछली पालन का ठेका लिया था लेकिन बाद में तालाब का पानी बेचना शुरू कर दिया। जिसकी जमीन सिंचित नहीं है वे किसान पानी खरीदते थे। सरकारी जांच में जब इसका खुलासा हुआ तो स्व सहायता समूह ने कब्जे की कहानी गढ़ना शुरू कर दी।
नजूल और सरकारी जमीन
खसरा नं. रकबा भू-उपयोग
321 1.315 बाँध
322 11.392 तालाब
337 14.682 तालाब
339 19.999 तालाब

तीन लेन का फ्लाइओवर तैयार, यातायात शुरू

इंदौर-देवास सिक्सलेन
इंदौर.चीफ रिपोर्टर।
अर्से तक काम रूके रहने के बाद आखिरकार इंदौर-देवास सिक्सलेन का दूसरा फ्लाइओवर तैयार हो गया। मांगल्या जंक्शन पर तैयार हुआ यह फ्लाईओवर तीन लेन है और इसका इस्तेमाल इंदौर से देवास की ओर जाने वाले वाहन की करेंगे।
तकरीबन सवा तीन सौ करोड़ के इस प्रोजेक्ट पर पेडेस्ट्रियन अंडर पास (पीयूपी) और व्हीकल अंडर पास (वीयूपी) सहित चार फ्लाय ओवर बनना है। राऊ जंक्शन, खंडवा रोड, नेमावर रोड और मांगलिया जंक्शन। नेमावर रोड के बाद यह दूसरा फ्लाइओवर है जिस पर वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई है। बाकी तीनों फ्लाइओवर सिक्सेलन है। मांगलिया ही तीन लेन है। इसकी चौड़ाई करीब 15 मीटर है।
ऐसा है मांगलिया फ्लायओवर...
- नई टोलप्लाजा के पास बना है फ्लाइओवर।
- इंदौर से जिसे देवास जाना है वही फ्लायओवर से होकर गुजर सकेगा। देवास से इंदौर आने वाले लोग सेम लेवल में आएंगे। यानी उनके लिए ब्रिज पास ही तीन लेन रोड बनेगी। अब तक दो लेन ही रोड है। तीसरी को जमीन का इंतजार है।
ऐसा हो जाएगा मांगलिया जंक्शन
देवास से मांगलिया-देवास नाका की ओर जाने वाले वाहन राइट टर्न लेकर फ्लाय ओवर के नीचे से जाएंगे। उनकी सहुलियत के लिए जंक्शन से टोल प्लाजा तक सड़क पुराना एबी रोड भी सिक्सलेन बनाया जा रहा है। इस सिक्सेलन का बड़ा हिस्सा मांगलिया से देवास जाने वाले भी करेेंगे।
क्यों बनेगा 3 लेन...
- इंदौर-देवास के बीच मांगलिया बड़ा जंक्शन है जो पुराने एबी रोड को मांगलिया और देवासनाका से लेकर नई लोहामंडी तक जोड़ता है क्योंकि सिटी में भारी वाहनों की आवाजाही बंद है।
- वैसे भी अभी देवास से जितने ट्रक इंदौर आते हैं उनमें से ज्यादातर मांगलिया की ओर मुड़ जाते हैं।
- क्रॉसिंग बड़ा था और आईडीटीएल को इसे ब्रेकलेस बनाना था इसीलिए तीन लेन ऊपर से निकालकर, तीन लेन नीचे लाए ताकि फ्लायओवर के नीचे से लोग आराम से निकले। 

जो बेटे 120 रुपए नहीं दे पाए, वे देंगे पिता को 4 बीघा जमीन

- सांवेर जनसुनवाई में अफसरों ने दिलाया परेशान पिता को हक
- 30-30 रुपए महीना मांगा था जो नहीं मिला, तब पहुंचे जनसुनवाई 
इंदौर. विनोद शर्मा । 
आमतौर पर जायदाद के लिए बच्चे माता-पिता के खिलाफ कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते नजर आते हैं वहीं लालाखेड़ा (सांवेर) के भेरूलाल पिता गणपत अपने बच्चों की नाइंसाफी से परेशान है। चार बेटों से कुल 120 रुपए महीना मांगने के बाद भी भेरूलाल को झिड़कियां ही मिली लेकिन जब उन्होंने प्रशासन की मदद ली तो बेटों को अपने हिस्से से एक-एक बिघा जमीन पिता के नाम करने की सहमति देना पड़ी। बहरहाल, अधिकारियों ने जमीन के नामांतरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
मंगलवार को सांवेर एसडीएम अनिल बनवारिया के सामने अजब केस आया। बच्चों की बेरूखी से परेशान लालाखेड़ी निवासी भेरूलाल ने अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया कि उनके चार बेटे और दो बेटियां हैं। उन्होंने बताया लालाखेड़ा की सर्वे नं. 132/2, 179/1/2, 179/2 और 180 की तकरीबन साढेÞ 15 एकड़ जमीन मेरी पत्नी जानी बाई के नाम थी। पत्नी की मौत के बाद 23 दिसंबर 2013 को हुए नामांतरण आदेश (क्रमांक-7) से जमीन मृतक के बेटों चुन्नीलाल, रणछोड, मिश्रीलाल, हीरालाल और बेटियों राजुबाई व चतरबाई के नाम चढ़ गई। मैं रणछोड़ के साथ रहने लगा। बाकी बच्चों ने बात बंद कर दी। इस बीच उनके बेटों ने जमीन इन्दौर जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक मर्या शाखा सांवेर के पास गिरवी रख दी। मुझे कुछ नहीं मिला।
30-30 रुपए महीना नहीं दे पाए...
भेरूलाल ने बताया कि न जमीन मिली, न ही खर्च। मैंने चारों बच्चों से कहा कि मुझे तो सिर्फ 30-30 रुपए महीना ही दे दिया करो, मैं 120 रुपए महीने में काम चला लूंगा। मेरा कोई अनावश्यक खर्च भी नहीं है। सामान्य जरूरत रहती है। सभी ने यह कहते हुए पैसा देने से मना कर दिया कि अब आपका कोई हक नहीं बनता।
अब चार बिघा जमीन मिलेगी...
एसडीएम बनवारिया और तहसीलदार हुड्डा ने तत्काल भेरूलाल के बेटों को बुलवाया। थोड़ी चेतावनी और थोड़ी समझाइश के अंदाज में उन्होंने कह दिया अपने हिस्से से एक-एक बिघा जमीन तो आपको पिता को देना ही पड़ेगी। वरना ये कानूनी कार्रवाई के लिए स्वतंत्र हैं। इस पर चारों बेटों ने एक-एक बीघा जमीन पिता को देने की सहमति भी दे दी। इतना ही नहीं ईलाज के लिए पिता को पैसे भी दिए।
दो-तीन दिन में नामांतरण कर देंगे...
चारों बेटों ने भेरूलाल को जमीन देने की सहमति दे दी है। नामांतरण की प्रक्रिया भी हमने शुरू कर दी है। उम्मीद है सप्ताह अंत तक भेरूलाल को जमीन मिल जाएगी। हमारी कोशिश यही रहती है कि जनसुनवाई में आने वाले हर पीड़ित की समस्या हल हो।
अनिल बनवारिया, एसडीएम

चिखली के ‘झगड़े’ पर टिकी पुलिस की निगाह

एडवोकेट योगेंद्र गर्ग हत्याकांड 
190 एकड़ जमीन को लेकर दस्तक और बशारत खां परिवार के बीच है विवाद
इंदौर. विनोद शर्मा । 
पिछले दिनों महू में हुई एडवोकेट योगेंद्र गर्ग की हत्या के मामले में पुलिस ने उन तमाम जमीन के केसों की जो फाइलें खंगालना शुरू की है उनमें एक फाइल चिखली की बेशकीमती जमीन की भी है। उक्त जमीन को लेकर जूना रिसाला के एक परिवार और इंदौर के ही एक पार्षद के परिवार के बीच विवाद चल रहा है। पुलिस जांच में यह बिंदु प्रमुख है। पुलिस इसे लेकर अब इंदौर और सिमरोल में सूत्र तलाश रही है।
मामला चिखली का है। यहां जूना रिसाला इंदौर के मोहम्मद बशारत खां उर्फ ठेकेदार और उनके परिवार की तकरबीन 400 एकड़ से अधिक जमीन थी। इसमें से तकरीबन 250 एकड़ जमीन अब भी इस परिवार के पास है। इसी गांव में तकरीबन 190 एकड़ जमीन इंदौर के शेख मोहम्मद सलीम, शेख मोहम्मद युनुस, शेख मोहम्मद असलम और उनके परिवार के नाम दर्ज है। यह कांग्रेस पार्षद अनवर दस्तक का परिवार है। इसमें से ज्यादातर जमीनें इस परिवार ने मोहम्मद बशारत खां के परिवार ‘जो आपसी विवाद के बाद बिखर गए थे लेकिनन बाद में एक हो गए’, से 2008-09 से 2012-13 के बीच खरीदी है। बाद में बशारत खां के परिवार ने सौदे को ठगी बताया। पूरा परिवार एक हो गया। सौदों पर आपत्ति आई। कोर्ट केस शुरू हुए। बशारत खां परिवार ने केस लड़ने की जिम्मेदारी दी महू के योगेश गर्ग को।
सीलिंग प्रभावित जमीनें भी खरीदी है...
बशारत खां परिवार का आरोप है कि दस्तक परिवार ने जितनी जमीनें खरीदी हैं उनमें कई ऐसी भी हैं जिनका कि सीलिंग को लेकर प्रशासन के साथ विवाद चल रहा है। कुछ जमीनें सरकारी भी है। इसी तरह माचला में भी सरकारी पट्टे की जमीनें खरीदी है।
दबाव प्रभाव बनाया, काम नहीं आया...
सूत्रों की मानें तो केस को लेकर मो.सलीम व उनके परिवार की गर्ग से कई बार बात हुई। कभी नरम, कभी गरम। हालांकि बातचीत या दबाव प्रभाव काम नहीं आया। गर्ग खां परिवार के लिए निष्ठा से लगे रहे। इसकी पुष्टि गर्ग के साथियों ने भी की। उनकी मानें तो गर्ग अक्सर इस प्रकरण में दबाव का जिक्र किया करते थे।
केस भी दर्ज कराया...
दोनों पक्षों के बीच विवाद की स्थिति इतनी ज्यादा हो गई कि मो.सलीम ने मो.बशारत खां और उनके परिवार के खिलाफ सिमरोल थाने में चोरी की रिपोर्ट तक दर्ज कराई थी। रिपोर्ट (अपराध क्रमांक 134) आईपीसी की धारा 379 के तहत 15 अपै्रल 2015 को दर्ज कराई गई थी। रिपोर्ट शेख मोहम्मद युनुस और शेख मोहम्मद सलीम ने साहिद, सादिक साजिद और मोइन उर्फ जुगनू पिता बशारत खां के खिलाफ लिखाई थी। जांच जारी है। हालांकि पुलिस को आरोप की पुष्टि करते कोई प्रमाण नहीं मिले हैं।
पुलिस की निगाहें क्यों..
2008 में जब यह जमीनें खरीदी-बेची जा रही थी तब चिखली गांव में जमीन का भाव 20-30 रुपए वर्गफीट था। चूंकि सिमरोल में आईआईटी बन रहा है और आईआईटी का पिछला हिस्सा चिखली गांव से लगा है। आईआईटी की आमद के समाचार के साथ ही न सिर्फ चिखली बल्कि घोसीखेड़ा, पठान पीपल्या व आसपास के गांव में जमीन की कीमतें 400-800 रुपए वर्गफीट तक पहुंच गई है। कई कॉलोनाइजरों ने कॉलोनी काट दी। चिखली में ही आधा दर्जन कॉलोनियां और फार्म हाउस आकार ले रहे हैं। ऐसे में जमीन को लेकर जंग जायज है वह भी तब जब जमीन 190 एकड़ हो।
यह है बशारत खां का परिवार
मो.बशारतखां पिता करामतखां, इशहाकबी बेवा मो.शराफत खां,  मो.सलामत खां, मो.रियासत खां,  मो. शौकत खां, शहादत खां नरगिस बी, आलियाबी पिता मो.शराफत खां, शमाजहां बेवा मो.शराफत, मो.हुसैन खा, मो.आसिफ,  मो.आरिफ,  नाजराबी पिता मो.शराफत खां, शाबराबी उर्फ रानीबी बेवा मो.शराफत खां, मो.मुश्ताक खां मो. इनायत खां मुमताज बी पिता मो. शराफत खां, मुस्सबीर पिता सरफराज एहमद, मोहम्मद मोइन, मोहम्मद जुगनु।
जांच कर रहे हैं...
गर्ग जमीन के जो केस लड़ रहे थे उन हर एक मामले पर पुलिस जांच कर रही है। चिखली की जमीन को लेकर भी जो विवाद है उसकी जांच कर रहे हैं।
अरविंद तिवारी, एडिशनल एसपी
जमीन को लेकर विवाद जारी है। केस एडवोकेट योगेंद्र गर्ग ही लड़ रहे थे। हमारे खिलाफ सिमरोल थाने में केस भी दर्ज कराया हुआ है। गर्ग की हत्या के मामले में हमारे केस को भी जांच के दायरे में रखा गया है तो अच्छा है।

(लगातार कोशिश की लेकिन मो.युनुस और मो.सलीम से बात नहीं हो पाई। पार्षद अनवर दस्तक को भी फोन लगाया लेकिन लगा नहीं।)

बिना विकास अनुमति तनने लगी प्राइम एक्सोटिका

प्रेमश्री देवकॉन को एसडीएम सांवेर ने थमाया नोटिस, ले-आउट निरस्त होगा !
इंदौर. विनोद शर्मा ।
बायपास से लगे सुल्लाखेड़ी में बिना विकास अनुमति के प्रेमश्री समूह की टाउनशीप प्राइम एक्सोटिका आकार ले रही है। मुण्डलाबाग की सरकरी जमीन पर कब्जा किया सो अलग। इस खुलासे के बाद एसडीएम सांवेर अनिल बनवारिया ने प्राइम एक्सोटिका के निर्माण पर रोक लगा दी है, हालांकि रोक के बावजूद मौके पर काम जारी है।
जितनी ऊंची टाउनशिप, उनकी जमीनी हकीकत उतनी ही जर्जर। इसका बड़ा उदाहरण है सुल्लाखेड़ी में जी.डी.गोयनका स्कूल के सामने बन रही प्राइम एक्सोटिका टाउनशीप। सुविधाओं के सब्जबाग के साथ बन रहे प्रेमश्री समूह के इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट की एसडीएम बनवारिया के औचक निरीक्षण के दौरान सारी हकीकत सामने आ गई। बीते दिनों बनवारिया ने कारण बताओ नोटिस देते हुए टाउनशिप का काम रोकने के निर्देश दिए हैं।
सरकारी जमीन भी जीम गए...
जांच रिपोर्ट के अनुसार सुल्लाखेड़ी से लगे ग्राम मुण्डलाबाग की सर्वे नं. 1 की 3.318 हेक्टेर जमीन के 20 बाय 1000 फीट हिस्से पर प्रेमश्री देवकॉन प्रा.लि. तर्फे डायरेक्टर राजकुमार पिता प्रेमचंद जैन निवासी मेट्रो टॉवर इंदर ने अपनी निजी जमीन पर आने-जाने का रास्ता बना दिया। इस संबंध में प्रकरण भी दर्ज हुआ। दंड वसूलकर कब्जा भी हटाया गया।
अभिन्यास में पूर्व से पश्चिम दिशा  की ओर जाने वाले 30 मीटर चौड़े पहुंचमार्ग के लिए ग्राम मुण्डलाबाग की सर्वे नं. 1 की जमीन को कांकड़ बताया गया। इसी आधार पर नक्शा पास हुआ। जबकि जिसे काकड़ बताया असल में वह जमीन ग्राम कोटवार के लिए निर्धारित सेवा भूमि है। इसीलिए स्वीकृत नक्शे की दोबारा जांच के लिए 29 सितंबर 2015 को टीएंडसीपी डिपार्टमेंट को भी एसडीएम कार्यालय की ओर से पत्र लिखा गया है।
बना अनुमति कैसे शुरू कर दिया काम...
प्रेम श्री देवकॉन तर्फे राजकुमार जैन व अन्य ने 22 दिसंबर 2011 को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (टीएंडसीपी) से आवासीय प्रयोजन के साथ भू-अभिन्यास स्वीकृत (प. 8826/नग्रानि/2011) कराया था। इसके बाद जमीन का डायवर्शन भी हुआ लेकिन कॉलोनाइजर ने विकास अनुमति मिले बिना ही मौके पर काम शुरू कर दिया। अभी भी अनुमति प्राप्त नहीं हुई है जबकि मौके पर 25 प्रतिशत से अधिक काम हो चुका है।
ऐसे मिलती है विकास अनुमति...
-- पंचायती राज अधिनियम के तहत गांवों में कॉलोनी विकास को लेकर नए नियम बनने के बाद इंदौर जिले में कॉलोनी विकास के लिए कमेटी बनाई गई है जिसकी अध्यक्षता कलेक्टर करते हैं।
-- गांव में कॉलोनी काटने के लिए कॉलोनाइजर को निर्धारित प्रारूप में आवेदन करना होगा। कमेटी में शामिल एसडीओ राजस्व, पीडब्ल्यूडी, पीएचई आदि विभागों के अधिकारी स्थल निरीक्षण करेंगे। इसके बाद इन अधिकारियों की कमेटी कलेक्टर को रिपोर्ट पेश करेगी।
-- कॉलोनाइजर प्रेजेंटेशन देगा कि कॉलोनी में किस स्तर की सड़क, बिजली, पानी और सीवेज की लाइन होगी। रिपोर्ट और प्रेजेंटेशन देखने के बाद तय करेंगे कि कॉलोनी को विकास अनुमति दी जाए या नहीं। यदि कोई कमी या खामी रही तो कमेटी कॉलोनाइजर को बताएगी। इन्हें दूर करने के लिए उसे एक सप्ताह का समय और दिया जाएगा। प्लान से संतुष्ट होने के बाद ही कलेक्टर विकास अनुमति जारी करेंगे।  
ले-आउट निरस्त करना ही उचित है...
22 दिसंबर 2011 को झूठी जानकारी देकर जो ले-आउट मंजूर कराया गया था उसकी वैधता 21 दिसंबर 2012 तक की थी। बिना विकास अनुमति के काम भी शुरू कर दिया गया। इसीलिए कॉलोनी का ले-आउट निरस्त करना ही उचित होगा। इस संबंध में कलेक्टर को भी पत्र लिखा है।
अनिल बनवारिया, एसडीएम
सांवेर

जीएसटी के फेर में उलझा केंद्रीय बजट

जीएसटी लागू होगा या करों की नई दर, असमंजस बरकरार
इंदौर. विनोद शर्मा ।
विंटर सेशन में गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) सहित इकोनॉमिक रिफार्म से जुडेÞ कई बिलों के अटकने से सरकार 28 फरवरी को पेश होने वाले बजट को लेकर असमंजस में है। 1 अपै्रल को बजट पेश करे या इनकम टैक्स, कस्टम, सेंट्रल एक्साइज व सर्विस टैक्स की दरें कम-ज्यादा करे। बहरहाल, दरों की घट-बढ़ को लेकर कयासबाजी शुरू हो गई है। माना जा रहा है जीएसटी में देरी का खामियाजा एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स की दरों में बढ़ोत्तरी के रूप मे चुकाना होगा।
केंद्रीय बजट को लेकर कर सलाहकार, सीए और विशेषज्ञ ज्यादा सोच नहीं रहे हैं। वे मानकर बैठे हैं कि जीएसटी बिल लागू होगा। हालांकि अब तक बिल को संसद से स्वीकृति नहीं मिली है।  दूसरी तरफ बजट 2016-17 को फाइनल टच देना है। एक्साइज एक्सपर्ट आर.डी.जोशी ने बताया कि अभी एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स में बढ़ोत्तरी की संभावना कम है। जितने भी कयास लगाए जा रहे हैं कोरे हैं। सरकार 28 फरवरी को बजट पेश करेगी। कोशिश रहेगी कि तब तक जीएसटी भी क्लीयर हो जाए। क्लीयर हो जाता है तो 31 मार्च तक बजट 2015-16 के प्रावधान लागू रहेंगे। यदि जीएसटी नहीं आता है तो नए बजट के प्रावधान उस तारीख तक प्रभावी रहेंगे जिस तारीख से जीएसटी लागू किया जाएगा। उम्मीद है कि बजट सत्र में जीएसटी मंजूर हो जाएगा।
जीएसटी में समाहित हो जाएंगे टैक्स...
जीएसटी यदि लागू होता है तो उसमें एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स के साथ ही सेल टैक्स भी शामिल हो जाएगा। टैक्स की दर एक हो जाएगी। सेंट्रल जीएसटी और स्टेट जीएसटी का लाभ आम आदमी से लेकर कारोबारियों तक को मिलेगा।
सरकार की कमाई में छूट की संभावना कम..
बताया जा रहा है कि सरकार का पूरा जोर आय बढ़ाने पर रहेगा। ऐसे में कर या ड्यूटी में छूट की संभावना कम रहेगी। इसीलिए इनकम टैक्स की स्लैब 5 लाख तक करने की मांग इस बार भी पूरी नहीं होगी। स्लैब बढ़ी भी तो 3 से ऊपर नहीं जाएगी। उलटा, जो चीजें छूट के दायरे में आती हैं उन्हें दायरे में लाया जा सकता है।
एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स पर जोर...
कयास लगाऐ जा रहे हैं कि एक्साइज ड्यूटी से छूट प्राप्त उत्पादों की संख्या घटाई जाएगी।  डिब्बा बंद दूध, प्रीमियम चाय-कॉफी, बिस्कुट जैसी चीजों पर ड्यूटी लग सकती है। शुरू में एक्साइज की दर 2-4 फीसदी रह सकती है। अभी 300 उत्पादों को छूट प्राप्त है। इन उत्पादों की संख्या घटाकर 100 तक लाने पर विचार चल रहा है हालांकि 200 उत्पादों पर एक साथ ड्यूटी लगाकर सरकार जनविरोध का सामना नहीं करना चाहेगी।
2015-16 के बजट में सर्विस टैक्स की दर 12.45 से बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दी गई थी। बाद में इसमें 0.5 प्रतिशत का स्वच्छता उपकर भी जोड़ दिया। अभी कुल 14.50 प्रतिशत टैक्स लग रहा है जिसे 2016-17 के बजट में सरकार बढ़ाकर 16 प्रतिशत कर सकती है। ऐसा हुआ तो हर आइटम महंगा हो जाएगा। सुब्रह्मण्यन कमिटी ने 16.9-18.9 फीसदी स्टैंडर्ड रेट की सिफारिश की है।

निगम को निचौड़ने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं?

स्वास्थ्य समिति प्रभारी राठौर ने लिखा निगमायुक्त को कड़ा पत्र
स्कीम-31 के प्लॉट नं. 22 पर दी गई 65.09 लाख की माफी ने फिर पकड़ा तूल
इंदौर. विनोद शर्मा ।
लापरवाही पर मस्टरकर्मियों को निलंबित करने वाले नगर निगम आयुक्त को पत्र लिखकर स्वास्थ्य समिति प्रभारी राजेंद्र राठौर ने निगम के अधिवक्ता और आधा दर्जन अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है। इन्होंने तमाम आपत्तियों के बावजूद स्कीम-31 के प्लॉट नं. 22 पर प्रीमियम आॅन एफएआर के पेटे मिलने वाले 65 लाख रुपए माफ कर दिए थे। बाद में राठौर की पहल पर मामला पकड़ में आया और राशि जमा कराई गई हालांकि अब तक प्लॉट की बिल्डिंग पर्मिशन रद्द है।
राठौर ने 21 दिसंबर को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने कहा है कि 65 लाख रुपए का पीएफएआर माफ करने के मामले में जब मैंने शिकायत की थी तब अपर आयुक्त मनोज पुष्प ने जांच की थी। जांच में उन्होंने इस बात की पुष्टि कर दी थी कि निगम के अधिवक्ता जाहिद हसन खान ने बिल्डर के पक्ष में अभिमत देकर निगम को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया है। जबकि इसी स्कीम 31 के प्लॉट नं. 27 का नक्शा पास करने से पहले पीएफएआर की बड़ी राशि वसूली गई। जांच रिपोर्ट में आरोपों की पुष्टि के बावजूद आज दिन तक न अभिभाषक के खिलाफ कार्रवाई की गई। न ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ। चूंकि आप सख्ती और अनुशासन पसंद है लिहाजा आप से कार्रवाई की उम्मीद करते हैं। ताकि आगे से निगम को नुकसान पहुंचाने वालों को सबक मिले।
65,09 लाख कर दिए थे माफ...
मामला सपना संगीता रोड स्थित स्कीम-31 रेसिडेंशियल और सेमी कमर्शियल है। यहां प्लॉट नं. 22 पर बिल्डिंग के लिए लक्ष्मण दास पिता उदाराम भाटिया एवं अन्य ने आवेदन किया था। स्वीकृति के क्रम में दो फीस मेमो जारी हुए। बिल्डिंग पर्मिशन के 3,89,826 रुपए और कर्मकार कल्याण शुल्क पेटे 2,25,600 रुपए जमा कराए गए। यहां जनवरी 2008 में स्वीकृत हुए मास्टर प्लान-2021 के अनुसार कमर्शियल प्लॉट पर बिल्डिंग पर्मिशन के दौरान अनिवार्य किया गया प्रीमियम आॅन एफएआर नहीं वसूला गया जो 65,09,000 रुपए जोड़ा गया था।
एक वकील ने कहा जमा करो, दूसरे ने कहा माफ...
नक्शा लगने के बाद निगम ने पीएफएआर के लिए 65 लाख का फीस मेमो भी जारी किया। भवन निमार्ता ने आपत्ति ली, कहा शुल्क नहीं चुकाऊंगा। निगम ने विधिक राय ली। अधिवक्ता नवीन नवलखा ने राशि जमा करवाने की राय दी। वहीं अधिकारियों ने बिल्डर को फायदा देने के मकसद से बाद में जाहिद खान की राय ली। खान ने पीएफएआर न लेने की अनुसंशा कर दी।
दो साल बाद जमा कराई राशि
मुख्यालय के भवन अधिकारी (बीेओ) विनोद नागर ने भी लिख दिया शुल्क लेना होगा।  भवन निमार्ता ने लोकायुक्त में नागर की शिकायत की। वहां जांच शुरू हुई, इधर भवन निमार्ता ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई। नागर को व्यक्तिगत रूप से पार्टी बनाया गया। कोर्ट ने सिटी इंजीनियर भवन अनुज्ञा हरभजनसिंह ने को सुनवाई के निर्देश दिए। सिंह ने जनवरी 2014 में फीस जमा कराने का आदेश दिया। आखिर में राशि जमा कराई गई। उधर, नगर निगम ने बिल्डिंग पर्मिशन रद्द कर दी। इस संबंध में बिल्डर को हाईकोर्ट से आज तक राहत नहीं मिली है।
नहीं तो निगम को 100 करोड़ का नुकसान होता....
प्लॉट नं. 22 के लिए 2012 में आवेदन किया गया था जबकि पीएफएआर लागू हुआ था जनवरी 2008 से। यदि पकड़ में नहीं आता तो प्लॉट नं. 22 से तो 65.09 लाख मिलते ही नहीं बल्कि माफी पर आपत्ति लेने वाले प्लॉट नं. 27 के बिल्डर को भी वसूला गया पीएफएआर लौटाना पड़ता जो भी लाखों में था। इन दो उदाहरणों से जनवरी 2008 से 2012 के बीच जितनी बिल्डिंगों से पीएफएआर वसूला गया था उन्हें भी रास्ता मिल जाता निगम के खिलाफ मोर्चा खोलने का। इसीलिए निगम के लिए घर भेदी साबित हो रहे ऐसे अभिभाषक और अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाना चाहिए।
राजेंद्र राठौर, प्रभारी
स्वास्थ्य समिति 

एक्शन प्लान बचाएगा बाघों की जान

- जंगलों में घास एरिया बढ़ेगा, कैमरे लगेंगे
- इंदौर-देवास में आधा दर्जन से अधिक है बाघ
इंदौर. विनोद शर्मा ।
इंदौर और देवास के जंगलों में भूख-प्यास से बाघों की मौत नहीं होगी। इसके लिए वन विभाग ने एक्शन प्लान तैयार किया है जिसे वन मंत्रालय की मंजूरी भी मिल चुकी है। एक्शन प्लान के तहत जगह-जगह पेयजल स्रोत विकसित किए जाएंगे। घास एरिया बढ़ाया जाएगा ताकि शाकाहारी व वन्य प्राणियों की संख्या बढ़े। इतना ही नहीं जंगल और बाघों की निगरानी और सुरक्षा के मद्देनजर कैमरें लगाए जाएंगे।
2014 की एक आॅडिट रिपोर्ट के अनुसा मप्र में 2010 तक बाघों की संख्या 262 थी। इसमें इंदौर-देवास रेंज में 7 बाघों की गिनती की गई। इनका ज्यादातर मुवमेंट इंदौर, देवास और सिहोर के जंगलों में रहता है। बीच में कैमरा ट्रेप में बाघ के बच्चे भी दिखे। ऐसे में संख्या बढ़ने का अनुमान है। उदयनगर में हुई बाघ की मौत के बाद विभाग ने बाकी बाघों की सुरक्षा को लेकर कमर कस ली है। सिर्फ वन विभाग ने ही तकरीबन 25 लाख रुपए की बाघ संरक्षण योजना भेजी थी जिसे मंत्रालय ने मंजूर कर दिया है।
यह है कार्ययोजना...
- जगह-जगह जलस्रोत विकसित होंगे। तलई बनेगी। ऐसी व्यवस्था होगी कि गर्मी में भी बाघ व अन्य प्राणियों को पानी मिले। अभी पेयजल स्रोतों का अभाव है। गर्मी में ज्यादा दिक्कत।
- रहवास सुधार कर रहे हैं। इसमें घास एरिया बढ़ाया जाएगा ताकि शाकाहरी प्राणियों की संख्या बढ़े। इन्हीं प्राणियों का बाघ शिकार करेंगे। अभी हिरण व अन्य प्राणी काफी कम हो चुके हैं।
- 25-30 कैमरा ट्रेप लगाएंगे। इनमें बाघ के मुवमेंट के साथ ही जंगल में लोगों के अवैधानिक प्रवेश पर भी निगाह रखी जाएगी।
- वन विभाग के अमले को वाहन और संचार साधन उपलब्ध कराए जा रहे है। ताकि गश्त आसान हो। पीओपी से बाघ के पग मार्क लेना सिखाएंगे।
- ग्रामीण क्षेत्रों में वन विभाग के अधिकारियों के मोबाइल नंबर व कंट्रोल रूम नंबर चस्पाए जा रह हैं। लोगों को समझाइश दी जाएगी ताकि वे जंगल में प्रवेश करने वाली अनाधिकृत गाड़ियों की सूचना दे सकें।
दो-चार दिन में काम शुरू कर देंगे
बाघों की सुरक्षा के मद्देनजर एहतियात के तौर पर जितने भी प्रयास किए जा सकते हैं, कर रहे हैं। एक एक्शन प्लान भी बनाया है जिसे  जिसे मंजूरी मिल चुकी है। दो-चार दिन में मैदानी काम शुरू कर रहे हैं। इसके परिणाम सकारात्मक होंगे।
पी.सी.दुबे, सीसीएफ
उज्जैन
मूलभूत सुविधाएं जुटाना जरूरी
उदयपुर में बाघ का पोस्टमार्टम करने के दौरान मैंने जो आॅबजर्व किया है उसके अनुसार जंगल में बाघों के लिए मूलभूत सुविधाएं जुटाना जरूरी है। हिरण व वन्य प्राणी कम हुए हैं इनका विस्तार जरूरी है वरना भूख के मारे बाघ बस्तियों में प्रवेश करेंगे।
डॉ.उत्तम यादव, प्रभारी
चिड़ियाघर, इंदौर
न फोटो न स्थान की सूचना...
इंदौर-देवास-सिहोर वाइल्डलाइफ जोन है। उदयपुर में एक की मौत के बाद भी करीब छह बाघ है यहां। बच्चे अलग। इनकी लोकेशन गोपनीय रखी जाती है। सख्त हिदायत कोई फोटो खींचकर वॉट्स एप न करे ताकि बाघों पर शिकार के संकट की संभावना कम रहे। गांव में बाघ के प्रवेश से हुई हानियों के 35 मामलों में 20 लाख से अधिक मुआवजा भी दिया है।  एक बाघ 15 से 100 किलोमीटर के बीच भ्रमण करता है। उसका औसत एरिया 10 वर्गकिलोमीटर है।

बाघों की सुरक्षा को लेकर सरकार सख्त है। इसीलिए जो प्रस्ताव मिलता है उसकी समीक्षा करके मंजूरी देने में देर नहीं की जाती है। जल्द ही मैदान में काम दिखेगा।
डॉ.गौरीशंकर शेजवार, वन मंत्री










अवैध कॉलोनी काटकर बेच डाले छह करोड़ के प्लॉट

जांच में ही अटक कर रही गई कार्रवाई
इंदौर. चीफ रिपोर्टर।
सीलिंग और नजूल की जमीन पर कटी कॉलोनी के खिलाफ जिला प्रशासन सख्त अभियान चला रहा है वहीं मैदानी अफसरों की निगरानी में असरावद खुर्द के पूर्व सरपंच, उसके भाई और उसके समधी ने सरकारी जमीन पर कॉॅलोनी काट दी। कॉलोनी भी छोटी-मोटी नहीं, बल्कि 200-250 प्लॉटों की। एक-एक प्लॉट 3 से 5 लाख में बेचकर सरकारी जमीन से भू-माफिया 6 करोड़ कमा गए और इसका बड़ा हिस्से अफसरों को भी बांटा, यही वजह है कि बार-बार जांच के बावजूद आज तक इन पर कार्रवाई हुई ही नहीं।
मामला खंडवा रोड स्थित असरावद खुर्द का है। इस गांव में सर्वे नं. 19/2, 19/3, 37/1/1, 37/1/3, 37/2, 171/1, 171/1/1, 171/1/2, 171/1/3, 171/1/4, 172/1 की जमीनें सरकारी हैं। इनका भू-उपयोग राजस्व रिकार्ड में चरनोई और गांवठान दर्ज है। खंडवा रोड से गांव के बीच पॉवर हाउस के पास अलग-अलग हिस्सों में कॉलोनी कट गई है। 7 एकड़ में नगर निगम इंदौर की गवला कॉलोनी है। 2 एकड़ जमीन खली फेक्टरी के पास है। फेक्टरी के पास तेजाजीनगर की ओर कॉलोनी है जिसे टपाल घाटी कहते हैं जो कि नगर निगम सीमा में आ गई। फेक्टरी के पीछे और नगर निगम की गवला कॉलोनी के पास सर्वे नं. 37/1/1, 37/1/3 और 37/2 की जमीन पर 2010-2015 के बीच पप्पू पिता अमृतलाल राजौरिया, उनके भाई दिनेश राजौरिया और समधी महेश भिमाजी ने कॉलोनी काट दी। इन पांच वर्षों में असरावद खुर्द की सरपंच पिंकी राजौरिया रही जो कि पप्पू राजौरिया की पत्नी है।
पहले शिकायतें ठंडे बस्ते में थी, अब जांच भी...
क्षेत्र के लोगों ने राजौरियां बंधुओं द्वारा की जा रही सरकारी जमीन की बंदरबाट की शिकायतें पटवारी से लेकर कलेक्टर तक को की। पहले तो दर्जनों शिकायतें रद्दी की टोकरी में डाल दी गई। लगातार शिकायतों के बाद आखिरकार कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने जांच के आदेश दिए। पहले तहसीलदार अजीत श्रीवास्तव ने जांच की। जांच में शिकायत की पुष्टि हुई। बावजूद इसके कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद एसडीएम अनुपमा निनामा, तहसीलदार राजकुमार हलधर और नायब तहसीलदार राजेश सिंह ने भी जांच की। तेजाजीनगर पुलिस को कार्रवाई के लिए लिखा भी गया लेकिन कार्रवाई हुई ही नहीं।
कॉलोनी में तीन-चार बार जा चुके हैं हलधर
तहसीलदार राजकुमार हलधर जांच के नाम पर तीन-चार बार कॉलोनी के चक्कर काट चुके हैं। इस दौरान उनकी मुलाकात कॉलोनाइजर पप्पू राजौरिया और उसके भाई दिनेश से भी हो चुकी है। क्षेत्रवासियों का आरोप है कि हर बार हलधर राजौरिया से कॉलोनी बचाने की ‘फीस’ ले जाते हैं, इसीलिए कॉलोनाइजरों के खिलाफ आज तक उन्होंने कार्रवाई में गंभीरता नहीं दिखाई। सिर्फ कागजी खानापूर्ति ही की।
50-50 के दो स्टॉम्प पर लाखों के खेल
राजौरिया और महेश भिमाजी ने चार पन्नों के दस्तावेज पर प्लॉटों के सौदे किए। इसमें दो स्टॉम्प है 50-50 रुपए के। बड़ा खेल यह है कि इन नोटरियों में खसरे का जिक्र नहीं है। 600-600 वर्गफीट के प्लॉट बेचे गए हैं। किसी को प्लॉट 1.5 लाख में बैचे तो किसी को

(पप्पू राजौरिया के मोबाइल पर संपर्क किया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। )

बक्से में पूरी हो गई उपकरणों की उम्र

खरीदी का मनमाना खेल, तांक पर रोगी कल्याण
इंदौर. विनोद शर्मा।
कायाकल्प के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च करने वाले एमवायएच प्रशासन की मरीजों को लेकर सोच कितनी सतही है इसका अंदाजा अस्पताल परिसर में इस्तेमाल के इंतजार में कबाड़ हो रहे उपकरणों से लगाया जा सकता है। फिर मुद्दा एक्सरे डिपार्टमेंट में पेटीपेक पड़ी कम्प्यूटराइज्ड डिजिटल रेडियोग्राफी (सीडीआर) मशीन का हो या फिर बक्से में ही गारंटी पीरियड पूरे कर चुके वेंटिलेटर का। अतिआवश्यक सेवाओं के नाम पर लाखों रुपया पानी की तरह बहाकर इन उपकरणों की खरीदी की गई थी।
दवा और उपकरणों की खरीदी को लेकर सरकार जितनी पारदर्शिता की बात करती है हकीकत उसकी उतनी ही उलटी है। यहां तो कमीशन के लालच में जबरिया मांग बताकर उपकरण खरीदे जाते हैं। यह बात अलग है कि उनका इस्तेमाल अर्से तक हो या न हो। इस्तेमाल के इंतजार में ही अस्पताल परिसर में दर्जनों उपकरण सड़ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो एक्स-रे विभाग में सीडीआर मशीन सालभर पहले खरीदी गई थी। आज तक बक्से से बाहर नहीं आई। मशीन की खरीदी डिजिटल रेडियोग्राफी के लिए की गई थी। हालांकि एमवाय के पास इस मशीन को चलाने के लिए प्रशिक्षित आॅपरेटर तक नहीं है।
तो फिर खरीदी क्यों..
केज्युअल्टी में जो ट्रामा सेंटर है वहां दर्जनभर से अधिक बॉक्सेस रखे हुए हैं। इन बॉक्स में वेंटिलेटर मशीने हैं। इन मशीनों की खरीदी करीब सवा साल पहले हुई थी। बड़ी बात यह है कि इन मशीनों पर कंपनी ने एक साल की गारंटी दी थी और तीन साल की वारंटी। गारंटी बक्से में ही खत्म हो चुकी है। वारंटी का भी कुछ समय बीत चुका है। ये मशीनें कब खुलेगी और कब इस्तेमाल होगी? इसका जवाब अभी किसी के पास नहीं है। एक वेंटिलेटर मशीन की कीमत 14 लाख है। यदि 12 मशीनें भी हैं तो उनकी खरीदी 1.68 करोड़ में हुई है।
आधी मशीनें बंद...
सूत्रों की मानें तो एक्स-रे डिपार्टमेंट में 7 सीडीआर मशीने हैं जिनमें से चलती सिर्फ 3 ही हैं। चार इस्तेमाल ही नहीं होती। इनमें से कुछ खराब भी है। इसी तरह बड़ी तादाद में खरीदे गए पल्स आॅक्सीमीटर भी बर्बाद पड़े हैं। कंपनी ने ब्रांड के नाम पर चायनीज उपकरण सप्लाई कर दिए ताकि जल्दी खराब हो और जल्दी आॅर्डर मिले।
ऐसे होती है उपकरणों की खरीदी में सेटिंग...
-- दलाल अस्पतालों के सतत संपर्क में रहते हैं। डॉक्टरों को लालच देकर उपकरणों व दवाइयों की जरूरत पैदा करते हैं।
-- चूंकि खरीदी ई टेंडर से होती है। यहां गड़बड़ की संभावना कम रहती है। लिहाजा कंपनी के प्रतिनिधि और दलाल टेंडर जारी होने से पहले ही अस्पतालों से संपर्क कर लेते हैं।
-- यहां वे अपनी कंपनी के उत्पाद के जो स्पेसिफिकेशन हैं उन्हीं स्पेसिफिकेशन को टेंडर की शर्तों में अनिर्वायता के साथ शामिल करवा देते हैं। जैसे यदि कोई कंपनी सोनोग्राफी के 14 र्इंची मॉनिटर बनाती है, बाकी कंपनियां 12 र्इंची बनाती है या फिर 16 र्इंची। ऐसे में कंपनी स्पेसिफिकेशन की शर्त में डलवा देती है कि मॉनिटर 14 र्इंची ही खरीदा जाएगा।
- जब विज्ञप्ती जारी होती है तो 12 और 16 र्इंची मॉनिटर वाली कंपनियां शर्तों के लिहाज से बाहर हो जाती है और मनमाने कोटेशन के बावजूद आॅर्डर मिलता है 14 र्इंची मॉनिटर बनाने वाली कंपनी को।
ऊपर से होती है सेटिंग...
स्पेसिफिकेशन के मापदंड वहीं सेट करते हैं जो टेंडर की शर्तें तय करते हैं। जिनके आदेश से टेंडर जारी होते हैं। जिन्हें खरीदी की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।


इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
टार्गेट रहता है जो कि नॉमिनल है। महीने में दो-चार सेंपल का रहता है।
 फेल तो होता ही नहीं है।   चार-पांच साल में एकाध ही फेल होता है।  पुराने केस में सुनवाई चलती रहती है। पांच साल हो गए हैं नए लोगों को हैं। पीडीपीएल  रिपोर्ट  प्रोस्यूकशन  फिर दंड  त्रिवेदी था। पीडीपीएल का मामला है। पीडीपीएल में ही कंसलटेंसी कर रही है।  ड्रग इंस्पेक्टर हैं।
ड्रग की लैब है भोपाल में। कोलकाता में विशेष जाता है। सेंट्रल ड्रग लेब है।  एमवायएच में सेंपल लेने में कभी अजय गोयल का नंबर हो तो  9755112121 गोयल अशोक गोयल है।  मंथनी रिपोर्ट  दिसंबर में बनेगी। ड्रग कंट्रोलर  आॅनलाइन ही नहीं है। 

लोकायुक्त के निशाने पर आयकर अफसर

- भ्रष्टाचार की शिकायतें बढ़ी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
सर्च और सर्वे से बड़े-बड़े कारोबारियों की नींद उड़ाने वाले आयकर विभाग के कुछ अफसर लोकायुक्त के निशाने पर है। बताया जा रहा है कि भ्रष्टाचार की लगातार शिकायतों ने आयकर में लोकायुक्त अधिकारियों की आवाजाही बढ़ा दी है। एक तरफ जहां लोकायुक्त अफसर इसकी पुष्टि नहीं कर रहे हैं वहीं आयकर की बैठकों में बड़े अधिकारी लोकायुक्त का हवाला देकर मैदानी अमले को ईमानदारी का पाठ पढ़ा रहे हैं।
आयकर में बीते कुछ दिनों से लोकायुक्त एसपी अरूण मिश्रा की आवाजाही बढ़ी है। उनकी आवाजाही की बड़ी वजह आयकर अधिकारियों के खिलाफ मिल रही शिकायतों को बताया जा रहा है। इन शिकायतों की चर्चा आयकर के गलियारों में भी है। बताया जा रहा है कि बीते दिनों एक मीटिंग हुई थी जिसमें एक आला अधिकारी ने शिकायतों को लेकर अधिकारियों व कर्मचारियों को आड़े हाथ लिया। उन्होंने यहां तक कहा कि आप जो कर रहे हो उस पर लोकायुक्त व सीबीआई की नजर है। गौरतलब है कि चार-पांच साल पहले लोकायुक्त आयकर अधिकारी आर.के.कोष्ठा के खिलाफ भी छापेमार कार्रवाई कर चुकी है।
मंत्रालय तक है परेशान...
आयकर व अन्य राजस्व विभागों में भ्रष्टाचार को लेकर वित्त मंत्रालय गंभीर है। बीते दिनों वित्त मंत्रालय के राजस्व सचिव सुमित बोस ने इस संबंध में कुछ सुझाव और भ्रष्ट आॅफिसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई  की चेतावनी भी दी है। वे कह चुके हैं कि आयकर, उत्पाद व कस्टम विभाग के विजिलेंस विंग का मुख्य उत्तरदायित्व है कि वह भ्रष्ट आॅफिसरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करें।
लोकायुक्त कर सकता है कार्रवाई
चूंकि आयकर, सेंट्रल एक्साइज जैसे विभाग केंद्र सरकार का हिस्सा है, इनसे राज्य सरकार को कोई वास्ता नहीं। सामान्यत: इन विभागों में भ्रष्टाचार की शिकायतों पर कार्रवाई सीबीआई करती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या लोकायुक्त केंद्रीय कर्मचारियों पर कार्रवाई कर सकता है? स्वयं लोकायुक्त एस.पी. अरूण मिश्रा ने इस संबंध में बताया कि मप्र की भूमि पर जो भी भ्रष्टाचार करता है उस पर लोकायुक्त कार्रवाई कर सकता है। फिर वह राज्य कर्मचारी हो या केंद्रीय कर्मचारी। ऐसे मामलों में कार्रवाई से लेकर चालानी कार्रवाई तक लोकायुक्त करता है।
इन कामों के बदले लगते हैं पैसे..
- कर मुल्यांकन यदि ज्यादा है तो उसे कम करना
- इनकम टैक्स चुकाने के बाद जल्द रिफंड
- असेसमेंट रिपोर्ट देने के लिए।
- आईटीआर और बैंक रिपोर्ट के आधार पर सर्वे की कार्रवाई की चेतावनी देना और वसूली करना।
- पेन जल्द ट्रांसफर कराना।
(सर्वे और सर्च की चेतावनी बड़ी रकम दिलाती है)
सामने आकर शिकायत नहीं कर सकते...
सूत्रों की मानें तो पहले मुख्य आयकर आयुक्त को भी शिकायत की जाती थी । ज्यादा से ज्यादा सबूत मांगे जाते थे। कार्रवाई की संभावना कम और नाम उजागर होने की संभावना ज्यादा रहती है। नाम उजागर होने की स्थिति में कारोबारियों या व्यापारियों का काम करना मुश्किल हो जाता है। जबरिया परेशान किया जाता है। इसीलिए आॅफिस स्तर पर शिकायतें कम हो गई। अब सीवीसी, सीबीआई और  लोकायुक्त के पास पहुंचने वाले मामले बढ़ गए।
ये मामले आए सामने...
- मार्च 2012 में पेन ट्रांसफर के लिए 20 लाख रुपए की रिश्वत का मामला सामने आया था। सीबीआई ने कार्रवाई की।
- 2011 में सीबीआई अदालत ने भोपाल में पदस्थ रहे आयकर अधिकारी बीएस बांठिया को चार साल के कारावास और 33 लाख रुपये जुमार्ने की सजा सुनाई थी।
- 2012 में सीबीआई कोर्ट ने भोपाल में पदस्थ रहे एक असिस्टेंट इनकम टैक्स कमिश्नर सुरेश सोनी को तीन साल कैद की सजा सुनाई है। सोनी 1993 से 1999 तक भोपाल-इटारसी में पदस्थ रह चुके हैं। 1999 में उनके घर छापा पड़ा था।
रूटिन में जाता हूं ऐसे ही...
क्या आयकर अफसरों की शिकायतें मिली है।
नहीं, शिकायत सामने नहीं आई।
आयकर में आपकी आवाजाही बढ़ी है?
मैं तो यूं ही रूटी में आता-जाता हूं।
मीटिंग में लोकायुक्त का हवाला देकर चेताया जाता है?
इस संबंध में मैं क्या कह सकता हूं। अच्छा है अगर ऐसा है भी तो।
क्या आयकर पर लोकायुक्त कार्रवाई कर सकत है?
क्यों नहीं, पहले भी कर चुके हैं।
अरूण मिश्रा, एसपी
लोकायुक्तरू