होटल और रेस्टोरेंट कारोबारियों को राहत
इंदौर. विनोद शर्मा ।
वेटर व अन्य होटल कर्मचारियों के लिए ग्राहक टिप देते हैं। होटल प्रबंधन यदि इस राशि को इकट्ठा करके बाद में कर्मचारियों में वितरित करता है तो इस राशि को इनकम टैक्स एक्ट 1961 की किसी भी धारा के तहत सैलेरी नहीं माना जा सकता है। न ही इस राशि के वितरण के दौरान प्रबंधन को टीडीएस काटने की जरूरत है। कमिश्नर इनकम टैक्स (टीडीएस) और आईटीसी लिमिटेड के बीच 2011 ’२ विवादित मामले (सीविल अपील 4435-37/2016) की सुनवाई के दौरान यह बात सुप्रीमकोर्ट ने कही है।
यदि कोई असेसी होटल या रेस्टोरेंट का मालिक, संचालक और प्रबंधक है तो इनकम टैक्स उसके यहां सर्वे या सर्च की कार्रवाई करके कर्मचारियों के बेहाफ पर ग्राहकों से मिलने वाली टिप के वितरण पर न टीडीएस मांग सकता है। न ही किसी असेसी को डिफाल्टर कह सकता है। बावजूद इसके असेसमेंट आॅफिसर(एओ) ने 29 मार्च 2007 को आईटीसी के खिलाफ जारी असेसमेंट आॅर्डर में टिप को सैलेरी का हिस्सा ही माना। कहा कि इस पर इनकम टैक्स एक्ट की धारा 192 के तहत टीडीएस काटकर जमा कराना असेसी की जिम्मेदारी है। ऐसी स्थिति में असेसी को धारा 201(1) के तहत डिफॉल्टर माना जाएगा। इसीलिए असेसी को धारा 201(1ए) के तहत 2003-04 से लेकर 2005-06 के बीच यह राशि ब्याज सहित चुकाने को कहा गया। कमिश्नर (अपील) ने 28 नवंबर 2008 को असेसी को डिफॉल्टर मानने से मना कर दिया। आयकर अपीलीय न्यायाधीकरण (आईटीएटी) ने भी राजस्व की अपील खारिज कर दी।
हाईकोर्ट ने कहा था सैलेरी है टिप
हाईकोर्ट ने 11 मई 2011 को आयकर का साथ दिया। कहा कि टिप की रकम एम्प्लॉय को वेतन या मजदूरी के अलावा मिलने वाला लाभ है जो आयकर की धारा 15(बी), 17(1) और 17(3)(2) के तहत आता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि ग्राहक से नकद राशि के रूप में सीधे कर्मचारी को मिलने वाली राशि धारा 192 से बाहर होगी। यदि किसी ग्राहक ने बिल के साथ क्रेडिट कार्ड से केश काउंटर पर टिप का भुगतान किया है और बाद में मैनेजमेंट कर्मचारियों को बांटता है या फिर उनकी सैलेरी में जोड़कर देता है तब वह टिप सैलेरी कहलाती है। इस पर टीडीएस कटना चाहिए था, नहीं कटा इसीलिए ब्याजसहित वसूली हो। इस फैसले को असेसी ने सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी।
अंतत: मिली राहत
सुप्रीमकोर्ट के फैसले ने न सिर्फ होटल बल्कि बेंक्वे हॉल और रेस्टोरेंट मालिकों को भी राहत दी है। माननीय न्यायालय ने पांच अलग-अलग प्रकरणों में हुए फैसले का हवाला दिया। फिर हाईकोर्ट के फैसले को बदला। कहा कि टिप ग्राहक और एम्प्लॉय के बीच हुए व्यवहार का मामला है। यहां नियोक्ता की भूमिका इन दोनों के बीच सिर्फ सेतू की ही है। नियोक्ता जो टिप मिलती है उसका एम्प्लॉय में बराबर वितरण कर देता है। इसीलिए उससे टीडीएस क्लेम किया जा सकता है। न ही इंट्रेस्ट।
No comments:
Post a Comment