- दो साल पहले जुटाए सुरक्षा उपकरण फायर आॅफिसर ने पहली नजर में नकारे, फिर दोबारा कराया काम
- अन्यथा मंदिर प्रशासन की लापरवाही लेती कई की जान
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मंदिरों में होती आ रही आगजनी की घटनाओं से सबक लेते हुए सिंहस्थ 2016 की तैयारियों के तहत महाकाल मंदिर परिसर में फायर फाइटिंग की व्यवस्था की गई थी जो बहुत ही हल्के स्तर की थी। न मानक का मेल था, न ही क्वालिटी का। सिंहस्थ शुरू होने से ठीक पहले भोपाल से भेजे गए फायर सेफ्टी आॅफिसर ने इसकी पोल खोल दी। उनकी रिपोर्ट के आधार पर 22 अपै्रल को हुए पहले शाही स्नान से चंद घंटे पहले पुरानी लाइन उखाड़कर गुपचुप तरीके से नई फायर लाइन डाल दी गई।
सिंहस्थ 2016 के नाम पर उज्जैन में बड़े पैमाने पर हेराफेरा हुई है जिसका ताजा और बड़ा उदाहरण उस महाकाल मंदिर का फायर फाइटिंग सिस्टम है जहां कुंभ के दौरान दर्शन के लिए करोड़ों लोगों की आवाजाही रही। 2009 में मंदिर परिसर में हुई आगजनी की घटना के बाद 2013-14 में सिंहस्थ की तैयारियों के तहत भोपाल की एक कंपनी ने मंदिर में हाइड्रेंट बेस्ड फायर फाइटिंग इक्यूपमेंट लगाया। दो साल तक इक्यूपमेंट यूं ही लगे रहे। किसी ने कुछ चेक नहीं किया। भुगतान जरूर कर दिया। इसी बीच 10 अपै्रल को केरल के पुत्तिंगल देवी मंदिर परिसर में आतिशबाजी के दौरान लगी भीषण आग से 110 लोगों की मौत होने और 350 से ज्यादा के घायल होने के बाद मप्र सरकार चेती। सिंहस्थ में ऐसी कोई घटना न हो? इसी सोच के साथ पुलिस हेडक्वार्टर (भोपाल) से डीएसपी अनिल यादव को विशेष फायर सेफ्टी आॅफिसर बनाकर उज्जैन पहुंचाया गया। यादव और नगर निगम, उज्जैन के इंजीनियर नागेंद्र सिंह भदौरिया ने मातहतों के साथ दौरा किया और पहली ही नजर में सिस्टम को खारिज कर दिया। इसके बाद मंदिर प्रशासन चेता और ताबड़तोड़ नए सिरे से काम कराया।
क्यों नकारा...
होना चाहिए था- हाईड्रेंट सिस्टम के लिए माइल्ड स्टील (एमएस) या गेलवेनाज्ड आयरन (जीआइ) पाइप डाली जाना चाहिए। ताकि लाइन ्रपे्रशर में जवाब न दे।
हुआ यह - अनप्लास्टिक्ज्ड पॉलीविनिलक्लोराइड (यूपीवीसी) की पाइप लाइन डाल दी।
होना चाहिए था- नार्म्स के हिसाब से पाइप का डाया 100 एमएम (4 इंच) होना चाहिए। ताकि आपात स्थिति में कम वक्त में ज्यादा पानी मिले।
हुआ यह- हाइड्रेंट के लिए 63 एमएम (2.5 इंच) डाया की लाइन डाली गई जिसकी वजह से प्रेशर बहुत कम था जबकि परिसर व मंदिर की ऊंचाई ज्यादा है।
होना चाहिए था- हाइड्रेंट व पंपिंग आॅटोमेटिक हो। ताकि आपात स्थिति में हाइडेÑंट यूज करते ही पंपिंग आॅटोमेटिक शुरू हो जाए।
हुआ यह- कुंड में 5 एचपी की मोटर डाली गई लेकिन सिस्टम मेन्युअल था। आग लगने की परिस्थिति में हाइड्रेंट इस्तेमाल करने से पहले एक आदमी को पंप चालू करने भेजना पड़ता।
ताबड़तोड़ हुआ बदलाव
16 अपै्रल को यादव और उनकी टीम ने इक्यूमेंट की नेगेटिव रिपोर्ट दी और उन्हें खारिज कर दिया। 17 अपै्रल को ताबड़तोड़ मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में फायर फाइटिंग के क्षेत्र में काम करने वाली इंदौर की एक कंपनी को बुलाकर नए सिरे से काम की जिम्मेदारी दी गई। काम शुरू हुआ 18 अपै्रल से खत्म हुआ 24 अपै्रल को जबकि महाकुंभ के पहले शाही स्नान की धूम 21 अपै्रल से ही शुरू हो गई थी। 22 अपै्रल को 2 लाख लोगों ने महाकाल दर्शन किए थे। कंपनी ने 400 फीट लाइन डाली और 40 से अधिक फायर एस्टिंग्यूशर भी लगाए।
क्यों जरूरी है सुरक्षा
सिंहस्थ 2016 के दौरान करोड़ों लोग महाकाल मंदिर पहुंचे। यूं भी यहां दिनभर में हजारों श्रृद्धालू दर्शन करते ही हैं। विपरीत परिस्थिति में बड़ी जनहानि की संभावना बनी रहती है। मंदिर के आसपास 100 मीटर तक निर्माण है इसीलिए फायर ब्रिगेड भी नहीं पहुंच सकती। एक मात्र उपाय हाइड्रेंट सिस्टम है। अब भी यहां हाइड्रेंट की संख्या पर्याप्त नहीं है। मंदिर प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है।
फिर कैसे हुई गड़बड़...
मंदिर प्रबंध समिति में प्रशासनिक अधिकारी हैं जिनका मूल काम ही मंदिर की गतिविधयों पर नजर रखना है। उनकी देखरेख के बावजूद कोई कंपनी हलका काम कैसे कर सकती है? यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है। उलटा, संभावना यही जताई जा रही है कि अधिकारियों ने कमीशन लेकर हलका काम करवाया और बिना लाइन टेस्ट किए ही भुगतान भी कर दिया।
1111
काम किस सरकारी एजेंसी के माध्यम से कराया गया है और कैसे हुआ था? इसके साथ ही कैसे नए सिरे से काम कराया गया? इस पूरे मामले की जांच करवाता हूं। इसके बाद ही कुछ कह पाऊंगा।
कवींद्र कियावत, कलेक्टर
उज्जैन
- अन्यथा मंदिर प्रशासन की लापरवाही लेती कई की जान
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मंदिरों में होती आ रही आगजनी की घटनाओं से सबक लेते हुए सिंहस्थ 2016 की तैयारियों के तहत महाकाल मंदिर परिसर में फायर फाइटिंग की व्यवस्था की गई थी जो बहुत ही हल्के स्तर की थी। न मानक का मेल था, न ही क्वालिटी का। सिंहस्थ शुरू होने से ठीक पहले भोपाल से भेजे गए फायर सेफ्टी आॅफिसर ने इसकी पोल खोल दी। उनकी रिपोर्ट के आधार पर 22 अपै्रल को हुए पहले शाही स्नान से चंद घंटे पहले पुरानी लाइन उखाड़कर गुपचुप तरीके से नई फायर लाइन डाल दी गई।
सिंहस्थ 2016 के नाम पर उज्जैन में बड़े पैमाने पर हेराफेरा हुई है जिसका ताजा और बड़ा उदाहरण उस महाकाल मंदिर का फायर फाइटिंग सिस्टम है जहां कुंभ के दौरान दर्शन के लिए करोड़ों लोगों की आवाजाही रही। 2009 में मंदिर परिसर में हुई आगजनी की घटना के बाद 2013-14 में सिंहस्थ की तैयारियों के तहत भोपाल की एक कंपनी ने मंदिर में हाइड्रेंट बेस्ड फायर फाइटिंग इक्यूपमेंट लगाया। दो साल तक इक्यूपमेंट यूं ही लगे रहे। किसी ने कुछ चेक नहीं किया। भुगतान जरूर कर दिया। इसी बीच 10 अपै्रल को केरल के पुत्तिंगल देवी मंदिर परिसर में आतिशबाजी के दौरान लगी भीषण आग से 110 लोगों की मौत होने और 350 से ज्यादा के घायल होने के बाद मप्र सरकार चेती। सिंहस्थ में ऐसी कोई घटना न हो? इसी सोच के साथ पुलिस हेडक्वार्टर (भोपाल) से डीएसपी अनिल यादव को विशेष फायर सेफ्टी आॅफिसर बनाकर उज्जैन पहुंचाया गया। यादव और नगर निगम, उज्जैन के इंजीनियर नागेंद्र सिंह भदौरिया ने मातहतों के साथ दौरा किया और पहली ही नजर में सिस्टम को खारिज कर दिया। इसके बाद मंदिर प्रशासन चेता और ताबड़तोड़ नए सिरे से काम कराया।
क्यों नकारा...
होना चाहिए था- हाईड्रेंट सिस्टम के लिए माइल्ड स्टील (एमएस) या गेलवेनाज्ड आयरन (जीआइ) पाइप डाली जाना चाहिए। ताकि लाइन ्रपे्रशर में जवाब न दे।
हुआ यह - अनप्लास्टिक्ज्ड पॉलीविनिलक्लोराइड (यूपीवीसी) की पाइप लाइन डाल दी।
होना चाहिए था- नार्म्स के हिसाब से पाइप का डाया 100 एमएम (4 इंच) होना चाहिए। ताकि आपात स्थिति में कम वक्त में ज्यादा पानी मिले।
हुआ यह- हाइड्रेंट के लिए 63 एमएम (2.5 इंच) डाया की लाइन डाली गई जिसकी वजह से प्रेशर बहुत कम था जबकि परिसर व मंदिर की ऊंचाई ज्यादा है।
होना चाहिए था- हाइड्रेंट व पंपिंग आॅटोमेटिक हो। ताकि आपात स्थिति में हाइडेÑंट यूज करते ही पंपिंग आॅटोमेटिक शुरू हो जाए।
हुआ यह- कुंड में 5 एचपी की मोटर डाली गई लेकिन सिस्टम मेन्युअल था। आग लगने की परिस्थिति में हाइड्रेंट इस्तेमाल करने से पहले एक आदमी को पंप चालू करने भेजना पड़ता।
ताबड़तोड़ हुआ बदलाव
16 अपै्रल को यादव और उनकी टीम ने इक्यूमेंट की नेगेटिव रिपोर्ट दी और उन्हें खारिज कर दिया। 17 अपै्रल को ताबड़तोड़ मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में फायर फाइटिंग के क्षेत्र में काम करने वाली इंदौर की एक कंपनी को बुलाकर नए सिरे से काम की जिम्मेदारी दी गई। काम शुरू हुआ 18 अपै्रल से खत्म हुआ 24 अपै्रल को जबकि महाकुंभ के पहले शाही स्नान की धूम 21 अपै्रल से ही शुरू हो गई थी। 22 अपै्रल को 2 लाख लोगों ने महाकाल दर्शन किए थे। कंपनी ने 400 फीट लाइन डाली और 40 से अधिक फायर एस्टिंग्यूशर भी लगाए।
क्यों जरूरी है सुरक्षा
सिंहस्थ 2016 के दौरान करोड़ों लोग महाकाल मंदिर पहुंचे। यूं भी यहां दिनभर में हजारों श्रृद्धालू दर्शन करते ही हैं। विपरीत परिस्थिति में बड़ी जनहानि की संभावना बनी रहती है। मंदिर के आसपास 100 मीटर तक निर्माण है इसीलिए फायर ब्रिगेड भी नहीं पहुंच सकती। एक मात्र उपाय हाइड्रेंट सिस्टम है। अब भी यहां हाइड्रेंट की संख्या पर्याप्त नहीं है। मंदिर प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है।
फिर कैसे हुई गड़बड़...
मंदिर प्रबंध समिति में प्रशासनिक अधिकारी हैं जिनका मूल काम ही मंदिर की गतिविधयों पर नजर रखना है। उनकी देखरेख के बावजूद कोई कंपनी हलका काम कैसे कर सकती है? यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है। उलटा, संभावना यही जताई जा रही है कि अधिकारियों ने कमीशन लेकर हलका काम करवाया और बिना लाइन टेस्ट किए ही भुगतान भी कर दिया।
1111
काम किस सरकारी एजेंसी के माध्यम से कराया गया है और कैसे हुआ था? इसके साथ ही कैसे नए सिरे से काम कराया गया? इस पूरे मामले की जांच करवाता हूं। इसके बाद ही कुछ कह पाऊंगा।
कवींद्र कियावत, कलेक्टर
उज्जैन
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