Tuesday, June 28, 2016

कार्यपालन यंत्री सहित 32 के स्टाफ में से 25 गायब

पीएचई में जबरदस्त मनमानी,  आखिर लोगों को कैसे मिले पानी
एसडीएम का औचक निरीक्षण, लगी अनुपस्थिति
मीटिंग और फील्ड के नाम पर मौज मार रहे हैं जिम्मेदार
इंदौर. विनोद शर्मा ।
साहब कहां है..? मीटिंग में है..। नंबर दो मैं बात करता हूं..? हैलो संतोष श्रीवास्तव जी, कहां हैं आप...? मैं आॅफिस ही आ रहा हूं, आप कौन..?  मैं एसडीएम रवीश श्रीवास्तव  हूं और कलेक्टर के आदेश पर आपके आॅफिस में औचक निरीक्षण कर रहे हैं? जी, जी.. मैं फील्ड में था इसीलिए लेट हो गया। आप सहित आपका 90 फीसदी स्टाफ अब तक गायब है? मैं आकर देखता हूं।
यह नजारा था मुसाखेड़ी स्थित पीएचई आॅफिस का। जहां दोपहर सुबह 12.30 बजे एसडीएम श्रीवास्तव और उनकी टीम जांच के लिए पहुंची तो पता चला कि 32 लोगों के स्टाफ में से आॅफिस में थे सिर्फ 7 ही। इनमें दो बाबू थे। बाकी चपरासी। गायब थे 25 लोग जिनमें कार्यपालन यंत्री संतोष श्रीवास्तव, उनके अजीज उपयंत्री एम.के.नाइक और टेक्नीशियन पुरणसिंह बेस भी शामिल थे। एसडीएम ने सभी की अनुपस्थिति लगा दी और रिपोर्ट बनाकर कलेक्टर को दे दी।
फिर गायब हो गए श्रीवास्तव
एसडीएम के जाने के कुछ ही देर बाद श्रीवास्तव फिर अपने कैबिन में ताला जड़कर चले गए। पूछा तो जवाब मिला कि मीटिंग में गए हैं लेकिन मीटिंग कहां है? इसका स्टाफ को पता नहीं था।
यहां हर दिन यही स्थिति
अधिकारियों को मूसाखेड़ी परिसर से मिली सूचना के अुनसार एक तरफ शहर की पेयजल व्यवस्था नर्मदा परियोजना के अधिकारी संजीव श्रीवास्तव संभाल रहे हैं तो दूसरी तरफ गांवों की कमान संतोष श्रीवास्तव के पास है। दोनों ही रिश्तेदार हैं और दोनों की यहां मनमानी चलती है। फील्ड या बैठकों का हवाला देकर दोनों ही अक्सर यहां से गायब रहते हैं। उनका वरदहस्त प्राप्त उनका स्टाफ भी उन्हीं के नक्शे कदम पर है।
क्यों महत्वपूर्ण है विभाग
पीएचई दो हिस्सों में बटा है। पीएचई शहर (नर्मदा परियोजना) और पीएचई ग्रामीण। दोनों के कार्यपालन यंत्रियों का आॅफिस मुसाखेड़ी में। यहीं से शहर से लेकर दूर-दराज के गांवों तक को पानी देने की रणनीति बनती है। बिगड़ती है। बड़ी आशा के साथ लोग यहां पानी की मांग या पानी आपूर्ति में हो रही समस्या को हल करवाने आते हैं। अफसरों की गैरहाजरी लोगों को निराश और परेशान करती है।
मैं मीटिंग में था
दोपहर में आॅफिस की चेकिंग हुई  थी उस दौरान मैं था नहीं। एसई आॅफिस में मीटिंग चल रही थी वहां बैठा था। स्टाफ की जानकारी मुझे नहीं थी लेकिन हम टाइट करेंगे।
संतोष श्रीवास्तव, कार्यपालन यंत्री
कोई मीटिंग ली ही नहीं
आज मैंने कोई ऐसी मीटिंग नहीं ली जिसमें श्रीवास्तव की मौजूदगी रही हो। अनुपस्थिति वाले मामले में मैं जानकारी लेता हूं। आवश्यकतानुसार कार्रवाई करेंगे।
वी.एस.सोलंकी, सुप्रीटेंडेंट इंजीनियर
मुझे कहा कि रास्ते में हूं
दबिश के वक्त कार्यपालन यंत्री मौके पर नहीं थे। पूछने पर यही कहा था कि वे रास्ते में है। बाकी 90 फीसदी स्टाफ गायब था। रिपोर्ट कलेक्टर को भेज दी है।
रवीश श्रीवास्तव, एसडीएम

बुलंदियों पर इंदौर का हवाला कारोबार

जहां दो आॅफिस सील किए थे वहीं अब चार पर हुई कार्रवाई
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मई 2015 में जिस श्रीवर्धन कॉम्पलेक्स में दो हवाला कंपनियों के आॅफिस सील किए गए थे उसी कॉम्पलेक्स में गुरुवार को चार ठिकानों पर हुई इनकम टैक्स की छापेमार कार्रवाई इंदौर में बढ़ते हवाला कारोबार का कद भी बता रही है। हालांकि वक्त के साथ हवाले के तौर-तरीकों के साथ ही हवाला के माध्यम से रकम भेजने वाले भी बदल गए हैं। आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो इंदौर में हर दिन 5 करोड़ से ज्यादा रकम हवाले के माध्यम से राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जाती है। शहर का कपड़ा, सराफा और इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ ही किराना कारोबार तक हवाले  के लेनदेन से ही चल रहा है।
2004 से 2016 के बीच आयकर विभाग और अन्य  एजेंसियों की छापामार कार्रवाई में जितने भी मामले सामने आए हैं उनकी जांच में पता चला है कि मप्र में हर रोज औसतन 300 करोड़ का हवाला कारोबार होता है, लेकिन जांच एजेंसियां इसकी जड़ में अब तक नहीं पहुंच सकी हैं। गुजरात व राजस्थान में आंगड़िया सर्विस रुपए लाती ले जाती है वहीं महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से लेन-देन के लिए शहर में दर्जनों अर्बन को-आॅपरेटिव बैंकें संचालित हैं। इन बैंकों के खिलाफ भी आयकर ने एक के बाद एक छापेमार कार्रवाई की और अरबों का बेनामी लेन-देन उजागर किया।
क्यों पहुंच से दूर है जड़
-- जितने आॅफिस पकड़े जाते हैं उनमें सिर्फ एक रजिस्टर ही मिलता है जिसमें अनाप-शनाप नामों की इंट्री होती है। अघोषित रकम पकड़े जाने के बाद क्लैम करने नहीं आते लोग।
-- को-आॅपरेटिव बैंकों में भी एक दुकान के खाते कर्मचारियों के नाम पर खोल दिए जाते हैं उनके भी पते फर्जी होते हैं।
-- कड़ी सजा के प्रावधान नहीं है। आॅफिस पर दबिश दी तो दूसरा आॅफिस खोलकर बैठ गए।
-- पूरा खेल कोडिंग से होता है इसीलिए पकड़ आसान नहीं होती। जो मौके पर पकड़ा गया वही चोर कहलाता है।
दो साल में दो हजार करोड़ का खुलासा
नर्मदा हॉस्पिटल, मनोहर डेयरी, मोयरा समूह, के.टी. कंस्ट्रक्शन, सहित कई उद्योगपतियों के यहां की गई कार्रवाई में आयकर विभाग को हवाला कनेक्शन के दस्तावेज मिले हैं। 2014 से 2016 के बीच  गुरुशरण अर्बन क्रेडिट को-आॅपरेटिव, कान्हां क्रेडिट को-आॅपरेटिव, वर्धमान क्रेडिट को-आॅपरेटिव, राजेंद्र सूरी को-आॅपरेटिव बैंक, बुलडाना क्रेडिट को-आॅपरेटिव सोसायटी, श्री रेणुकामाता अर्बन के्रडिट को-आॅपरेटिव सोसायटी पर हुई दबिश के दौरान 2000 करोड़ से अधिक के हवाला कारोबार के खुलासे ने इंदौर को बड़ा गढ़ बना दिया है। इनसे महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ कनेक्शन भी सामने आए हैं। इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर जैसे शहरों में ही नहीं लगभग हर छोटे-बड़े शहर में हवाला कारोबारी हैं। ये कारोबारी चंद मिनटों में करोड़ों रुपए दुबई से दिल्ली और अमेरिका तक ट्रांसफर कर देते हैं।
सराफा भी बड़ा गढ़
गुजरात और राजस्थान में सोने पर इंट्री टैक्स की छूट है जबकि मप्र में 2 प्रतिशत टैक्स लगता है। इसीलिए इंदौर में बैठे सोने के बड़े कारोबारियों ने गुजरात-राजस्थान में भी अपना अड्डा खोल लिया है। वहीं से सोना यहां आता-जाता है और रकम का लेन-देन हवाले से होता है। 21 मार्च 2016 को भी जूनी इंदौर पुलिस ने आरटीओ रोड निवासी नमोस उर्फ नीमेश तलरेजा को 50 लाख 50 हजार 210 रुपयों के साथ गिरफ्तार किया था। नीमेश माणिक बाग निवासी जितेंद्र ललवानी का कर्मचारी था। ललवानी ने उसे रुपए सराफा में एक पार्टी तक पहुंचाने को कहा था।
इन कारोबारों में बड़ा लेन-देन
रेडीमेड कारोबार, किराना कारोबार, ड्राइफ्रुट कारोबार, इलेक्ट्रॉनिक गुड्स (मोबाइल ऐसेसरिज, चायनामेड आइटम, सीरिज, बल्ब, लैंप) के कारोबार में भी टैक्स के साथ ही टैक्सेशन एजेंसियों की संख्ती होने के कारण गुपचुप कारोबार और चोरी छिपा लेनदेन होता है।
कोड की कुख्यात दुनिया
काजू-बादाम : हवाला कारोबार से जुड़े नीमेश के मोबाइल की तलाशी में पैसों का काजू-बादाम के रूप में परिभाषित करते हुए मौके पर पहुंचाने की बात कही गई थी। रुपयों की जगह व्यापारी बोलचाल में काजू-बादाम नाम का उपयोग करते हैं। इस कोडवर्ड को वही लोग समझ पाते हैं, जो हवाला कारोबार करते हैं।
चॉकलेट का डिब्बा :  के्रडिट को-आॅपरेटिव बैंक की पासबुक को चॉकलेट का डिब्बा कहते हैं जबकि डिमांड ड्राफ्ट (डीडी) को केडबरी का नाम दिया गया है।
गांधी क्या बोला : एक नोट के दो टुकड़े करके एक पास में रखा जाता है दूसरा पार्टी को दे देते हैं। जब डिलीवरी लेने या देने जाती है तो पार्टी से नोट का नंबर पूछते वक्त कहा जाता है गांधी क्या बोला।

मां पिताम्बरा संस्था में मनमनी

मनमाने तरीके से तनी मल्टी और बंगले
जिन लोगों को मुख्यमंत्री से प्लॉट आवंटित कराए थे वे आज है ही नहीं संस्था में
इंदौर. विनोद शर्मा ।
हाउसिंग सोसाइटियों के नाम पर जमीन की हेराफेरी करने वालों के खिलाफ सरकारी अभियान ठंडा क्या पड़ा, संस्थाओं में ‘रामराज’ आ गया। स्कीम-133 से मुक्त हुई मां पिताम्बरा गृह निर्माण सहकारी संस्था इसका बड़ा उदाहरण है जहां संचालकों की मनमानी जी+4 की काउंटी प्लानेट बल्डिंग के रूप में आकार ले चुकी है। इतना ही नहीं अन्य प्लॉटों को भी जोड़कर डुप्लैक्स और बंगले बनाए जा रहे हैं।
मां पिताम्बरा संस्था की कॉलोनी काउंटी पार्क ग्राम पीपल्याकुमार के सर्वे नं. 240/1, 240/2, 241, 247, 248/1/1 ख, 248/2 ख और 248/1/3 ख की 5 एकड़ से अधिक जमीन पर विकसित हो रही है। महालक्ष्मीनगर स्थित एमआर-5 से लगी इस कॉलोनी के गेट के पास चार मंजिला काउंटी प्लानेट बिल्डिंग बनी है जहां लोगों को अब तक 3000 से 3500 रुपए वर्गफीट की दर से 2-3 बीएचके के फ्लैट बेचे जा रहे हैं। मल्टी में पेंट हाउस सहित कई निर्माण अवैध है। इसी मल्टी से लगा प्लॉट नं. 2 है जहां जी+2 बिल्डिंग है जिसे लैक्सो सॉल्यूशन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा अंदर भी दो-दो प्लॉटों को जोड़कर डुप्लैक्स और बंगले बनाए जा रहे हैं।
कैसे बन गई मल्टी
2011 में अप्रुव हुआ था कॉलोनी का ले-आउट : 25 मई 2010 को रवींद्र नाट्य गृह में संपन्न हुए एक कार्यक्रम के दौरान सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने संस्थाओं के पीड़ित सदस्यों को न्याय दिलाते हुए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के हाथों प्लॉट वितरित करवाए थे। इनमें ललित माखनलाल गौर, राजेश गुप्ता, दीपक अग्रवाल, कस्तुरीबाई और पल्लवी माखनलाल वर्मा जैसे मां पिताम्बरा संस्था के सदस्य भी शामिल थे। 2 अगस्त 2011 को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट ने संस्था की कॉलोनी का ले-आउट मंजूर (5569/एसपी29/2010/नग्रानि/2011) मंजूर किया। इससे पहले 15 फरवरी 2010 को नक्शा अनुमोदित (1019) किया गया था। नक्शे के अनुसार कॉलोनी में 52 प्लॉट है।
खंडेलवाल पर मेहरबानी क्यों-- प्लॉट नं. 7 (एरिया 9472 वर्गफीट) के बाद दूसरा सबसे बड़ा प्लॉट नं. 1 था जिसका एरिया 688 वर्गमीटर (7405 वर्गफीट) जबकि मौके पर बिल्डिंग बनी है 7451 वर्गफीट पर। शिकायतकर्ताओं की मानें तो मल्टी धर्मेंद्र खंडेलवाल की है। 2007-08 और 2008-09 की सदस्यता सूची (क्रमश: 27 और 51 सदस्य) में धर्मेंद्र का नाम नहीं था। खंडेलवाल 2010-11 की सूची में शामिल किए गए। संस्था ने 22.37 लाख में धर्मेंद्र को 7451 वर्गफीट का प्लॉट 4 नवंबर 2011 को बेचा था। तमाम शिकायतों के बावजूद विभाग यह जांच नहीं कर पाया कि एक ही सदस्य को इतना बड़ा प्लॉट कैसे मिला और मल्टी की पर्मिशन कैसे मिल गई?
सदस्यता क्रमांक में भी हेरफेर...
2010-11 की आॅडिट रिपोर्ट में भी संस्था के सदस्यों की संख्या 51 ही रही लेकिन इसमें 22 जानकीनगर एनेक्स निवासी धर्मेंद्र खंडेलवाल की सदस्यता क्रमांक 44 था जिसे बाद में बदलकर 81 कर दिया गया।
गड़बड़ियां और भी...
-- नक्शे में 21856 वर्गफीट का गार्डन था और उससे लगा था सर्विस एरिया जो 2203 वर्गफीट से अधिक जमीन पर विकसित होना था जिसमें सेफ्टी टैंक और ओवरहेड टैंक बनना था लेकिन बना गार्डन ।
-- बना है प्लॉट नं. 1, 2 और सात नंबर। इनमें प्लॉट नं. 3, 4, 5 और 6 की कुल जमीन 17720 वर्गफीट होना चाहिए लेकिन मौके पर है 12500 वर्गफीट ही जमीन। यानी 5 हजार वर्गफीट जमीन गायब जो प्लॉट नं. 7 पर बने बंगले में शामिल हो चुकी है।
यह रहे हैं संचालक...
राजस्व रिकार्ड में संस्था की जमीन मां पिताम्बरा संस्था तर्फे अध्यक्ष महेंद्रसिंह पिता हरपाल सिंह निवासी स््कीम-54 आशीर्वाद विला के नाम दर्ज है। टीसीपी का नक्शा भी इसी नाम से स्वीकृत है। उस वक्त उपाध्यक्ष थे ओमप्रकाश गौतम। बाद में रमेशकुमार नामदेव अध्यक्ष बने।
यह है नक्शे की जुबानी...
टोटल लैंड एरिया : 23710 वर्गमीटर
30 मीटर चौड़ी रोड : 3148 वर्गमीटर
नेट पलानिंग एरिया : 20562 वर्गमीटर
प्लॉट एरिया : 15039.26 वर्गमीटर
ओपन एरिया : 2057 वर्गमीटर
रोड एरिया : 3265.74 वर्गमीटर
सेफ्टी टैंक : 200 वर्गमीटर

एमआर-4 के नाम पर मिट्टी खोदकर भर रहे हैं बिल्डर का गड्ढा

फरार जाट बंधुओं के ठाठ
- दबंगाई दिखाने के लिए 3 जून को भवरासला तालाब में चलाई थी गोलियां
इंदौर. विनोद शर्मा ।
तालाब की मिट्टी की जबरिया खुदाई के लिए गोली चलाने के मामले में बाणगंगा पुलिस ने दुधिया के जिन जाट बंधुओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी दो दिन से इन्हीं भाइयों के नेतृत्व में तालाब की खुदाई जारी है जबकि पुलिस के रिकार्ड में ये फरार हैं। एफआई आर के साथ जाट बंधुओं के जो चार डम्पर जब्त किए गए थे पुलिस से ‘मुक्ति’ मिलते ही उन्हें भी ‘एमआर-4 के लिए’ लिखकर मिट्टी ढुलाई पर लगाया जा चुका है ताकि रोकटोक न हो।
मामला भवरासला तालाब का है इस तालाब में दुधिया निवासी शक्ति जाट और पप्पी जाट मिट्टी खोद रहे हैं। 24 घंटे खुदाई जारी है। इस दौरान 150 ट्रक से अधिक मिट्टी रोज खोदी जा रही है। मिट्टी से भांग्या रोड स्थित ग्राम भवरासला की सर्वे नं. 169/1 और 169/2 की जमीन ‘जो कि डायटोनिक डेवलपर्स प्रा.लि. वाले अमित पिता मोतीलाल टोंगिया की है’, पर मॉल निर्माण के लिए 2010-11 में दो लाख वर्गफीट जमीन पर खोदे गए गड्ढे को भरा जा रहा है। खास बात यह है कि मिट्टी ढुलाई के लिए जिन डम्परों का इस्तेमाल किया जा रहा है उन पर एडीएम की अनुमति  की पर्ची भी चस्पी है जिस पर लिखा है एमआर-4 के लिए।
3 को कैस दर्ज, 6 से खुदाई शुरू
बाणगंगा पुलिस ने 3 जून को सुंदरनगर निवासी अमरसिंह पिता तुलसीराज सिंह की शिकायत पर शक्ति जाट, पप्पी जाट और उनके सुपरवाइजर रामगोपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। अमरसिंह की शिकायत के अनुसार मित्र के खेत में उपजाऊ मिट्टी डालने के लिए जलकार्य समिति प्रभारी बलराम वर्मा से खनन की मौखिक अनुमति ली थी। खुदाई करने आए तो यहां जाट बंधु पहले से ही खुदाई कर रहे थे। रामगोपाल और शक्ति ने हमें देखते ही गालीगलौज शुरू कर दी। कहा कि हमसे पूछे बिना एक डम्पर मिट्टी खोदकर नहीं ले जा सकता। समझाने के बाद दोनों चले गए। कुछ देर बाद पप्पी के साथ आए और पप्पी ने देशी कट्टा निकाला और फायरिंग शुरू कर दी। 3-4 गोलियां चली।
पुलिस मेहरबान तो सब काम आसान
पुलिस ने तीनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उनके चार डम्पर (एमपी09एचजी6328, एमपी09एचजी 1371, आरजे01जीए7092 और एमपी09एचएच0316) भी जब्त किए थे जो 5 जून की रात तक थाने के बाहर ही खड़े थे। 6 जून से शक्ति बंधुओं ने इन्हीं गाड़ियों के साथ खुदाई शुरू कर दी। उसी दिन से अमरसिंह ने खुदाई बंद कर दी।   थाना स्टाफ कहता है केस खत्म हो चुका है। गिरफ्तारी और जब्ती करके सबको छोड़ दिया है। वहीं पहले ही दिन तब से ही पुलिस की भूमिका पर अंगुली उठ रही है जब गोलीबारी की घटना को दबाने के लिए पुलिस ने पूरी मेहतन की। पहले दो दिन तक मौके पर पीसीआर वेन खड़ी करके आसपास के लोगों पर कुछ न बोलने के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया गया, गोली की गिनती को लेकर कहानियां गढ़ी और फिर यहां तक कह दिया कि गोली चली ही नहीं।
दोनों को अनुमति दी थी
अनुमति दोनों को दी थी लेकिन गोलीकांड की जानकारी मुझे नहीं है। न ही जबरिया खुदाई की जानकारी है। मैं इस संबंध में जांच करवाता हूं, आवश्यकतानुसार कार्रवाई करेंगे।
बलराम वर्मा, प्रभारी
जलकार्य
मालिक फरार है, मजदूर खोद रहे हैं मिट्टी
जाट बंधुओं के पास खनन की अनुमति थी जो उन्होंने दिखाई है जबकि अमरसिंह के पास अनुमति नहीं है। इसी बात पर झगड़ा हुआ था। फायरिंग हुई। तीनों फरार हैं, बुधवार को भी अग्रिम जमानत खारिज हो गई। डम्पर पकड़े थे जो कोर्ट से छूटे हैं। खुदाई मजदूर कर रहे होंगे। मिट्टी क्या और कैसे खोद  रहे हैं यह खनीज विभाग देखे।
विनोद दीक्षित, टीआई

रिलायंस पर आयकर का शिकंजा

700 करोड़ का हवाला
- 2014 में महू की पाथ पर हुई सर्च के दौरान हुआ था खुलासा
इंदौर. विनोद शर्मा ।
प्रकाश एस्फाल्ट एंड टोल हाइवेज (पाथ) के खिलाफ हुई छापेमार कार्रवाई में सामने आए 700 करोड़ के हवाले की कहानी को आगे बढ़ाते हुए इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग, इंदौर ने रिलायंस समूह से जुड़े हिसाब की जानकारी मुंबई भेज दी है। उधर, मुंबई के अधिकारियों ने रिलायंस और उसकी सहयोगी कंपनी रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (आरइन्फ्रा) के खातों की जांच भी शुरू कर दी है।
पाथ और रिलायंस की जुगलबंदी से हुए बड़े हवाले की तह तक जांच करके विंग ने रिपोर्ट पहले ही भोपाल और दिल्ली में बैठे अधिकारियों को भेज दी थी। चूंकि आर.इन्फ्रा का पंजीकृत पता धीरूभाई अम्बानी नॉलेज सिटी नवी मुंबई है इसीलिए पाथ और आर इन्फ्रा के बीच हुए हिसाब-किताब की जानकारी मुंबई आॅफिस पहुंचा दी गई है ताकि वहां आर-इन्फ्रा के आईटीआर से उसका मिलान किया जा सके। असेसमेंट किया जा सके। बताया जा रहा है मुंबई के अधिकारियों ने भी छानबीन शुरू कर दी है। इधर, पाथ की रिपोर्ट सेंट्रल जोन के पास है जो जल्द ही असेसमेंट शुरू करेगा।
धीरूभाई के जन्म से 4 साल पहले ही बन गई थी आर-इन्फ्रा
मिनिस्ट्री आॅफ कॉर्पोरेट अफेयर्स (एमसीए) पर कंपनी की जो जानकारी उपलब्ध है वह चौकाने वाली है। एमसीए के अनुसार कंपनी 1 अक्टूबर 1929 को पंजीबद्ध हुई थी जबकि 1958 में 15000 रुपए की पंूजी के साथ रिलायंस वाणिज्यिक निगम की शुरूआत करने वाले धीरूभाई अंबानी का जन्म ही 28 दिसंबर 1933 को हुआ था। ऐसे में धीरूभाई अंबानी के जन्म से 4 साल पहले कंपनी कैसे बन गई जबकि उनके पिता हिराचंद गोर्धनभाई अंबानी शिक्षक थे। कंपनी में सात डायरेक्टर हैं और सबसे पुराने डायरेक्टर अनिल अंबानी ही हैं जो जनवरी 2003 में डायरेक्टर बने थे। एमसीए में उनका पूरा नाम भी गलत है अनिल पिता धीरजलाल अंबानी। यही नाम रिलायंस समूह की 14 कंपनियों में भी डायरेक्टर के रूप में शामिल है।
जांच में खुला था 700 करोड़ का हवाला
महू की पाथ और अग्रोहा इन्फ्रास्ट्रक्चर के खिलाफ इन्वेस्टिगेशन विंग ने 27 अगस्त 2014 में छापेमार कार्रवाई की थी।  1 सितंबर को दोनों कंपनियों ने संयुक्त रूप से 75 करोड़ की अघोषित आय स्वीकारी। इसके बाद   2015 की शुरूआत में विंग ने रिपोर्ट तैयार करके भोपाल-दिल्ली भेजी। इस रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2009 में आर-इन्फ्रा को मिले 53 किलोमीटर लंबे एनएच-11 (जयपुर-रींगस रोड) के ठेके का काम पाथ ने पूरा किया। मुंबई निवासी नरेश मांगीलाल दवे और सैफुद्दीन अब्बासभाई कपाड़िया की कंपनी गीत एक्जिम प्रा.लि. को पाथ ने मई और जून 2010 में अलग-अलग किश्त में 80 करोड़ का भुगतान किया जो तत्काल दुबई तक पहुंचा।
कैसे हुआ खुलासा...
पाथ के छापे में जयपुर-रींगस रोड की फाइल मिली। इसी फाइल में आर इन्फ्रा और गीत एक्जिम की डिटेल मिली। चूंकि पैसा पाथ से गीत के पास गया था इसीलिए आयकर की टीम ने गीत के ठिकानों पर भी सर्वे की कार्रवाई की थी जिसकी जानकारी गोपनीय रखी गई। सर्वे में पता चला गीत डमी कंपनी है। उसका ऐसा कोई अस्त्वि नहीं है जैसा कि पाथ ने बताया था। सर्वे के दौरान गीत के दोनों ही संचालकों ने कहा कि वे न पाथ को जानते हैं, न ही आर इन्फ्रा को। उन्होंने कमीश्न के लालच में अपना बैंक अकाउंट मुंबई के ही कुछ लोगों को इस्तेमाल के लिए दे दिया था। इसके बाद आईएनजी वैश्य बैंक पर शिकंजा कसके आयकर ने छानबीन शुरू कर दी। परिणाम स्वरूप गीत जैसी 20 कंपनियां सामने आई जिनके डेड अकाउंट इस्तेमाल करके भारतीय पैसा दुबई भेजा रहा है। इस मामले में आयकर आईएनजी वैश्य बैंक की जंजीरवाला चौराहा शाखा के अधिकारियों के बयान भी रिकार्ड कर चुकी है। । आयकर के अधिकारी स्वयं हैरान है कि एक जगह से दूसरी जगह चला पैसा, 24 से 48 घंटों में कैसे अलग-अलग कंपनियों के रास्ते विदेश पहुंच सकता है। इस पूरे मामले में आईएनजी वैश्य बैंक, की मुंबई शाखा की भूमिका भी संदिग्ध है।


फुल कराड़िया में बनेगा नर्मदा-गंभीर ‘संगम’

-विधायक ने एनवीडीए को दिखाई आठ एकड़ जमीन
- उज्जैनी से बड़ा पर्यटन केंद्र बनेगा
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना के तहत उज्जैनी में जैसा संगम स्थल बना है उससे दो गुना बड़ा संगम स्थल बनेगा देपालपुर तहसील के फुलकराड़िया गांव में। नर्मदा-मालवा गंभीर परियोजना के तहत प्रस्तावित इस संगम के लिए आठ एकड़ से अधिक जमीन चिह्नित की जा चुकी है। संभवत: जून या जुलाई के पहले सप्ताह में इसी संगम स्थली पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान नर्मदा-मालवा गंभीर की नींव रखेंगे।
उज्जैनी का संगम एक तीर्थ के रूप में विकसित  हो चुका है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) उज्जैनी की तरह ही नर्मदा-गंभीर लिंक को भी धार्मिक व पर्यटन की दृष्टि से यादगार बनाना चाहता है। इसीलिए एनवीडीए ने एक और संगम का खांका खींचना शुरू कर दिया है। इसके लिए देपालपुर विधायक मनोज पटेल ‘गंभीर नदी का बड़ा हिस्सा जिनके विधानसभा क्षेत्र में आता है’, ने नगर निगम के यशवंतसागर पंपिंग स्टेशन के पास आठ एकड़ जमीन भी दिखाई है। एनवीडीए की कोशिश भी यही है कि यहां जो संगम स्थल बने कमसकम वह उज्जैनी से ज्यादा भव्य व बड़ा हो।
धार्मिक महत्व बड़ी चुनौती
उज्जैनी में मां शिप्रा का उद्गम है इसीलिए वहां संगम को  धार्मिक महत्व भी मिला लेकिन गंभीर संगम को कैसे धार्मिक पहचान मिले? यह एनवीडीए के लिए बड़ी चुनौती है।
एतिहासिक दर्जा मिले लेकिन वहां भी विवाद
गंभीर नदी से ही लगा है बड़ी कलमेर गांव जहां एक पुराना कुंड है जिसे अहिल्या कुंड कहते हैं। एनवीडीए इसका भी सर्वे कर चुका है। यहां संगम स्थल बनाकर कुंड को पहचान देने की योजना भी जमीन को लेकर कोर्ट में विचाराधीन प्रकरण के कारण अटक गई।
किसी बड़े नेता का इंतजार
विधायक पटेल जमीन का प्रस्ताव मुख्यमंत्री को भी दे चुके हैं। यह भी तय हो चुका है कि शिलान्यास फुल कराड़िया में होगा लेकिन मुख्यमंत्री की सभा देपालपुर में होगी। उधर, नर्मदा-शिप्रा लिक के शिलान्यास से लेकर उद्घाटन तक में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी को लाने में सफल रहे मुख्यमंत्री को उन्हीं की तरह के राष्ट्रीय नेता का इंतजार है जिनके हाथों संगम का शिलान्यास कराया जा सके।
बड़ा संगम स्थल बनेगा...
पंपिंग स्टेशन से कुछ ही दूरी पर है फुल कराड़िया की वह जमीन जो संगम स्थल के लिए चिह्नित की है। आठ-दस एकड़ जमीन है जहां उज्जैनी से दोगुना बड़ा संगम स्थल बनेगा जो निकट भविष्य में पर्यटन की दृष्टि से इंदौर की पहचान भी साबित होगा।
मनोज पटेल, विधायक

शालीमार की ‘स्वयं’ में मनमानी

जिस जमीन को खुला छोड़ना था वहां टॉवर तान दिए
नदी को नाला बताती रही कंपनी, 30 मीटर दूरी का नियम : 8 मीटर दूर किया निर्माण
इंदौर. विनोद शर्मा ।
पहले शालीमार टाउनशिप और बाद में प्रीमियम टॉवर की वैधानिकता को लेकर विवादों में रहे मीरचंदानी समूह की शालीमार स्वयं भी सवालों के घेरे में है। विवाद का मुद्दा है मास्टर प्लान में दर्ज नदी और किसी भी निर्माण के बीच की उस दूरी का जिसका ‘स्वयं’ में आधा-अधूरा पालन हुआ है। आरोप यह है कि टाउनशीप के छह मंजिला दो ब्लॉक नदी की जमीन से 7-8 मीटर ही दूर है जबकि दूरी कमसकम 30 मीटर होना चाहिए।
‘स्वयं’ ग्राम कबीटखेड़ी के सर्वे नं. 4/1, 4/3, 4/4, 5/2, 6/1, 6/2, 6/2, 6/3, 9/2, 9/3, 9/4, 10/4, 10/5, 10/6, 10/7, 10/8, 10/9, 11/1, 11/2 एवं 11/3 पर बन रही है। जमीन कोरल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. तर्फे डायरेक्टर विजय मीरचंदानी के नाम दर्ज है। कंपनी का पता 505-506 शालीमार मोर्या पार्क न्यु लिंक रोड अंधेरी मुम्बई दर्ज है। कंपनी की टाउनशीप से ही लगी है खान नदी जिसका सर्वे नं. 12/1 और 12/2 है। कुछ ब्लॉक्स का निर्माण मास्टर प्लान के प्रावधानों का पालन करते हुए नदी की जमीन से 30 मीटर दूर किया गया है जबकि कुछ ब्लॉक्स में बिल्डर ने जमीन खाली नहीं छोड़ी।
यह है मास्टर प्लान का नियम...
ग्रीन बेल्ट का बड़ा हिस्सा है नदी, नाले और जलाशयों के किनारे की जमीन। बड़े जलाशय के हाइएस्ट फ्लड लेवल (एचएफएल) से 60 मीटर की दूरी तक और छोटे जलाशय के एचएफएल से 30 मीटर दूरी तक किसी भी तरह का निर्माण प्रतिबंधित रहेगा। विकास योजना के अुनसार नदी के दोनों किनारों पर उच्चतम जलस्तर से कमसकम 30 मीटर तक खुला क्षेत्र रहेगा।
हुआ यह है - ‘स्वयं’ में नदी के किनारे (सर्वे नं. 9/2, 9/3, 9/4, 11/1, 11/2, 11/3) अभी 24 टॉवर बन रहे हैं।  इनमें से सर्वे नं. 9/3 और 9/4 पर जो टॉवर बन रहे हैं उनकी नदी की जमीन (12/1 और 12/2) से दूरी 26 से 30 मीटर है। सर्वे नं. 9/2 पर जो टॉवर बन रहे हैं उनकी नदी की जमीन से दूरी 5 से 12 मीटर ही है।
कैसे की गड़बड़
-- राजस्व दस्तावेजों के अनुसार नदी की जमीन और कोरल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. तर्फे डायरेक्टर विजय मीरचंदानी की जमीन के बीच कोई जमीन नहीं है। इस मान से कंपनी को अपनी जमीन की सीमा से 30 मीटर तक निर्माण नहीं करना था। हालांकि नदी किनारे मिट्टी का भराव करके लोगों द्वारा की जा रही खेती सेटेलाइट मेप से नदी और स्वयं की जमीन के बीच नई जमीन की तरह नजर आती है। इसी नई जमीन की आड़ में कंपनी ने अपनी जमीन बचाई और टॉवर बना दिए।
-- टाउनशीप के किनारे नदी का स्वरूप दरांते जैसा है। 7 अक्टूबर 2008 को स्वीकृत ले-आउट (5256/एडीएम/नग्रानि/08) में स्वयं के सर्वे नं. 9/2 तक  नदी को दर्शाया गया है जबकि 20 अपै्रल 2011 को संसोधन के साथ स्वीकृत हुए दूसरे ले-आउट (2478/एसपी-227/2010/नग्रानि/2011) में नदी सर्वे नं. 9/3 के सामने तक ही सिटम गई। इसीलिए उसमें 9/2  पर नदी से लगी वाली जमीन के नियमों का पालन नहीं किया गया।
60 मीटर तक निर्माण प्रतिबंधित
2008 और 2011 में स्वीकृत हुए दोनों ही नक्शे में मीरचंदानी समूह ने उस कान्ह नदी को नाले के रूप में ही दशार्या है जिसके शुद्धिकरण की चिंता ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान तक को चिंता में डाल रखा है।
बावजूद इसके 7 अक्टूबर 2008 को जो नक्शा स्वीकृत किया गया था उस पर लाल स्याही के पैन से लिखा हुआ है विद्यमान नदी से 60 मीटर की दूरी तक कोई निर्माण मान्य नहीं होगा जबकि दूसरे नक्शे में इसका कोई जिक्र नहीं था। पहले नक्शे में टाउनशीप से लगी जमीन को नाले और नाले के किनारे के रूप में परिभाषित किया गया था लेकिन दूसरे नक्शे में नाले का जिक्र तो है लेकिन किनारे गायब हैं।
गड़बड़ और भी...
कुल जमीन : 26 एकड़ से अधिक
बिल्टअप एरिया : 93363 वर्गमीटर
कब-कब हुए नक्शे पास :
7 अक्टूबर 2008- 5256/एडीएम/नग्रानि/08, विजय मीरचंदानी
20 अपै्रल 2011-2478/एसपी-227/2010/नग्रानि/2011, विजय मीरचंदानी
26 जुलाई 2013-6277/आरएसपी-27/12/नग्रानि/2013, सचिन उपाध्याय
हाइट : 18 मीटर (जी+6 मंजिल)
फ्लैट : 1, 2 और 3 बीएचके
मौजूदा कीमत : 2300 रुपए वर्गफीट
पार्किंग : पेड (एक लाख रुपए/कार)
अन्य चार्ज : प्राइम लोकेशन चार्ज (पीएलसी), सर्विस टैक्स, बिजली, पानी, क्लब, मेंटेनेंस, क्लब मेम्बरशीप।
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नदी के मौजूदा बहाव से नहीं राजस्व रिकार्ड में नदी की जो जमीन है उससे 30 मीटर की परिधि में किसी भी तरह का निर्माण नहीं हो सकता है।
जयवंत होलकर, सेवानिवृत्त्त प्लानर
टीएंडसीपी

आवासीय प्लॉट पर तान दिया मार्केट

सज्जन वर्मा के संबंधी का कारनामा
इंदौर. विनोद शर्मा ।
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और पूर्व सांसद सज्जनसिंह वर्मा के घर से विवादों का साया दूर हुआ भी नहीं था कि बेटी के ससूराल से अवैध निर्माण की शिकायतें आने लगी है। दामाद के बड़े भाई और तथाकथित सरकारी इलेक्ट्रीकल ठेकेदार मनीष बाशानी ने प्रोफेसर कॉलोनी में तमाम सरकारी कायदों को तांक पर रखकर जी+2 बिल्डिंग तान दी। आवासीय प्लॉट पर बनी इस बिल्डिंग को मार्केट की शक्ल दी जाना है।
विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के लिए विकसित की गई प्रोफेसर कॉलोनी का प्लॉट नं. 317 रीना पति मनीष बाशानी का है। पूर्व सांसद सज्जनसिंह वर्मा के भाई अजयसिंह वर्मा के दामाद हिमांशु बाशानी का बड़ा भाई है मनीष। नगर निगम के रिकार्ड के अनुसार 1200 वर्गफीट क्षेत्रफल के इस प्लॉट पर बाशानी और राजेश राणा संयुक्त रूप से यहां बी+जी+2 मार्केट बना रहे हैं। इस मार्केट में ग्राउंड फ्लोर पर दुकानें बनाई जा रही है जबकि पहली और दूसरी मंजिल पर आॅफिसेस बनाए जाना है। नगर निगम आयुक्त को की गई शिकायत और नगर निगम के संपत्तिकर खाते के अनुसार आवासीय भू-उपयोग के इस प्लॉट पर राजनीतिक संरक्षण के चलते अवैध मार्केट बनाया जा रहा है।
ऐसा स्वरूप है मार्केट का
अग्रवाल स्वीट्स के पास बन रहे इस मार्केट में बेसमेंट में सीढ़िया दी गई है जो कि दूसरी मंजिल तक जाती है। पार्किंग के लिए रैंप भी है। ग्राउंड फ्लोर पर 1500 वर्गफीट से ज्यादा का हॉल छोड़ा गया है। हॉल ऐसे बनाया गया है कि यदि हॉल पूरा न बिके या किराए पर जाए तो ऐसी स्थिति में पार्टीशन करके तीन दुकानें निकाली जा सकती है। पहली और दूसरी मंजिल पर रोड साइड तीन-तीन आॅफिस हैं। बीच में आने-जाने के लिए 5-7 फीट का रास्ता है। सामने दो-दो आॅफिस अलग हैं। एक कोने में सीढियां, लिफ्ट स्पेस और कॉमन बाथरूम भी है। मौजूदा कीमत तकरीबन 15000 रुपए वर्गफीट तय की गई है। पजेशन जल्द से जल्द देने का वादा।
एमओएस भी हजम...
जो मार्केट बन रहा है उसमें अवैधानिक रूप से बालकनी को रोड साइड बढाÞकर फ्रंट एमओएस कवर कर लिया है। बालकनी दूसरे मकानों की बालकनी से ज्यादा दूर से नजर आती है। वहीं बाकी तीन तरफ दीवार से दीवार सटाकर निर्माण करके आसपास का एमओएस भी हजम कर गए।
कागज पर एरिया कम, मैदान में ज्यादा
संपत्ति कर के खाते (पिन-40667069800113) के अनुसार प्लॉट पर मकान जी+1 बना है। ग्राउंड फ्लोर 1200 वर्गफीट है जबकि पहली मंजिल 1000 वर्गफीट की। वहीं बात यदि मैदानी हकीकत की करें तो प्लॉट की लंबाई 50 फीट है जबकि चौड़ाई 40 फीट। यानी कुल प्लॉट एरिया हुआ  2000 वर्गफीट।
एक्सपायर कान्ॅट्रेक्टर है मनीष
मनीष 1991 से सरकार के बिजली व सीविल के कांन्ट्रेक्ट लेता है लेकिन बीते दिनों  उसकी कान्ट्रेक्टरशीप (कान्ट्रेक्टर आईडी 027352011, श्रेणी सी) एक्सपायर हो गई। उसकी फर्म का पता है 301 ए श्रीजी टॉवद 383-384 खातीवाला टैंक।
संपर्क नहीं हो पाया...
दबंग दुनिया ने मार्केट के संबंध में मनीष बाशानी से उनके मोबाइल पर कई बार संपर्क किया लेकिन बार-बार प्रयास के बावजूद उनसे संपर्क नहीं हो पाया। हालांकि मार्केट के संबंध में ग्राहक बनकर दबंग टीम ने बाशानी के पार्टनर राजेश राणा से बात की तो उन्होंने मार्केट के स्वरूप के साथ ही मौजूदा कीमत की जानकारी भी दी। वैधानिकता के संबंध में उनका कहना है कि सबकुछ मंजूरी के हिसाब से है। 

मनज्योति संस्था का संचालक था सज्जन का बेटा पवन

- नगर निगम कर्मचारी सहकारी संस्था ने 2010 में ही कर दिया था संस्था से अनुबंध
- 2008 से 2013 तक रहा संचालक मंडल में
इंदौर. विनोद शर्मा ।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सपना देखते आ रहे पूर्व सांसद सज्जनसिंह वर्मा की तरह ही उनका बेटा भी सहकारिता के क्षेत्र में हाथ काले करके बैठा है। इसका बड़ा उदाहरण है स्कीम-59 स्थित प्लॉट नं. 173 है। इंदौर नगर पालिका निगम कर्मचारी सहकारी संस्था ने 2010 में जब इस प्लॉट का सौदा मनज्योति गृह निर्माण सहकारी संस्था को किया था तब मनज्योति के संचालकों में वर्मा का बेटा मुकेश ‘पवन’ भी शामिल था।
2015 में हुई एक शिकायत के अनुसार इंदौर नगर पालिका निगम कर्मचारी सहकारी संस्था का स्कीम-59 (अमितेषनगर) में 1279.72 वर्गमीटर (13774.79 वर्गफीट) प्लॉट था जिसे संस्था ने 1 करोड़ 40 लाख 76 हजार 920 रुपए में मनज्योति संस्था को बेच दिया। जबकि उस वक्त प्लॉट की गाइडलाइन वेल्यू 5 करोड़ से अधिक थी। जांच के बाद शिकायत सही पाई गई।  12 जून 2014 को मनज्योति के पक्ष में हुई रजिस्ट्री के अनुसार सौदे का अनुबंध एक लाख रुपए के बयाने के साथ 11 मई 2010 को ही हो चुका था। उस वक्त मनज्योति के संचालक मंडल में मुकेश ‘पवन’ पिता सज्जनसिंह वर्मा भी शामिल थे। इस संचालक मंडल का चुनाव 2008 में हुआ था और इसका कार्यकाल 2013 तक रहा।  
वर्मा की जैबी संस्था है मनज्योति
आकाश गृह निर्माण सहकारी संस्था में अपने खासमखास मनोहर धवन के साथ अपने परिवार के नाम आधा दर्जन प्लॉट लेने वाले वर्मा की मनज्योति जैबी संस्था है। सौदे के वक्त इस संस्था के अध्यक्ष 169 क्रांति कृपलानी नगर निवासी सुरेश हीरानंद गुरनानी रहे हैं जो कि वर्मा की टीम की हिस्सा हैं।
मनज्योति ने भी तोड़ा नियम
जांच में नगर निगम संस्था के अध्यक्ष महेश राही और मनज्योति संस्था के अध्यक्ष सुरेश गुरनानी दोनों को ही दोषी ठहराया गया है। इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के साथ ही संस्था को हुए नुकसान की राशि वसूलने सहित अन्य कार्रवाई के लिए लिखा गया है।
मनज्योति के संचालकों को राहत क्यों?
-- बीते दिनों सहकारिता उपायुक्त ने संस्थाध्यक्ष महेश पिता शंकरलाल राही को सहकारिता अधिनियम की धारा 53 बी/ख के तहत निष्कासित करने का आदेश भी जारी किया। महेश छह साल तक संस्था का चुनाव नहीं लड़ सकते। जबकि 2010 में जब अनुबंध हुआ था तब संस्थाध्यक्ष रामलाल यादव थे। उनके खिलाफ भी कार्रवाई नहीं हुई।
-- राजनीतिक रसूखदारी के चलते विभाग ने मनज्योति के संचालकों पर कार्रवाई नहीं की। उन्हें दोषी जरूर माना। दोनों ही संस्थाओं के बीच हुए सौदे का खुलासा करने वाले नगर निगम संस्था के पूर्व क्लर्क कम प्रबंधक कैदार यादव को उपायुक्त सहकारिता पुलिस बुलाकार बंद करवाने की धमकी देते हैं।
-- मनज्योति के अध्यक्ष का नाम रजिस्ट्री पर सुरेश पिता हीरानंद गुरनानी है जबकि सहकारिता विभाग के रिकार्ड में 2008 से 2013 के बीच सुरेश जेठानंद अध्यक्ष रहे हैं। 81 क्रांति कृपलानी नगर निवासी इस सुरेश का सदस्यता क्रमांक 17 है  जो कि 01-07-94 को दी गई थी।
यह था मनज्योति का संचालक मंडल
(पंजीयन क्रमांक : डीआर/आईडीआर/575/डीआई/12/07/1994)
अध्यक्ष : सुरेश गुरनानी
उपाध्यक्ष : मुकेश जमुनादास
संचालक : मुकेश ‘पवन’ सज्जनसिंह वर्मा, देवा बृजलाल, संजय घनश्याम, प्रदीप गुरनानी, रीना कमल कुमार और कमल सुराना।

न वक्त पर मरम्मत, न अनुबंध का पालन

पीएचई में मनमानी की शिकायत सीएम को
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
इंदौर जिले के हैंडपंप्स के संधारण के लिए जो ठेका दिया गया है उसमें भारी मनमानी है। अनुबंध के विपरीत आधे हैंडपंप्स पर मार्किंग की नहीं की गई है। संधारण के जबरिया बिल लगाकर सरकारी खजाने में सेंधमारी की जा रही है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सदस्य नियुक्त हुए सज्जनसिंह भिल्लारे ने यह शिकायत मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में की है।
भिल्लारे की शिकायत के अनुसार जिन कंपनियों ने ठेका लिया है उनके पास पर्याप्त संख्या में तकनीकी स्टाफ ही नहीं है। न ही वे हैंडपंप से निकले पुराने पाटर््स को जमा करा रहे हैं। इतना ही नहीं प्रचार-प्रसार के लिए लगाए जाने वाले फ्लैक््स और बैनर भी पंचायतों व गांव के प्रमुख स्थानों पर नहीं लगाए गए हैं जिन पर टेक्नीकल टीम के नंबर रहते हैं।
बार-बार लिखने के बावजूद नहीं हो रहे रिलिव
शिकायत के अनुसार विभाग में दुर्गेश पवार हैंडपंप टेक्नीशियन के रूप में पदस्थ हैं जो कि मुलत: बुरहानपुर खंड के कर्मचारी हैं। बुरहानपुर के अधिकारी 30 सितंबर 2015, 24 सितंबर 2015,  30 सितंबर 2015 और 15 दिसंबर 2015 को पत्र लिखकर दुर्गेश को कार्यमुक्त करने का आग्रह कर चुके हैं। उसे रिलिव नहीं किया गया। उलटा, महू ट्रांसफर कर दिया जहां दुर्गेश ने अर्से तक ज्वाइन ही नहीं किया। दुर्गेश विभाग के हैंडपंप टेक्नीशियन पुरनसिंह बेस और सांवेर उपयंत्री एम.के.नाइक के नजदीकी हैं।

दबंग दुनिया....
पता चला कि कर निर्धारण अधिकारी ने व्यवसायी की करयोग्य राशि का कम निर्धारण किया जबकि उनके खातों, विक्रय सूची और दूसरे सबूतों के अनुसार टैक्स ज्यादा बनता था।

वाणिज्यिक कर को 213 करोड़ का फटका

सीएजी ने उजागर की व्यापारियों और अधिकारियों की जुगलंबदी
- असेसमेंट के 43438 में से सिर्फ 402 प्रकरणों की जांच में मिली गड़बड़
इंदौर. विनोद शर्मा ।
आर्थिक तंगी की आड़ में जरूरत की हर चीज पर वैट और इंट्री टैक्स का भार बढ़ाने वाले वाणिज्यिक कर विभाग को अधिकारियों, दलालों और कर चोर व्यापारियों के कोकस ने एक ही साल में 213 करोड़ की चपत लगाई है। इसका खुलासा कंट्रोलर एंड आॅडिटर जनरल आॅफ इंडिया (सीएजी) की हालिया रिपोर्ट में हुआ है। गलत टैक्स असेसमेंट, आरोपित की गई गलत टैक्स रेट और गैरकानूनी रूप से दी गई छूट सहित कई तरह के वैट एक्ट के उल्लंघन सीएजी की जांच के दौरान सामने आए हैं।
सीएजी ने वैट एक्ट और टैक्स असेसमेंट व कलेक्शन सिस्टम की जांच अक्टूबर 2014 से जून 2015 के बीच की थी। जांच के दौरान कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए। यह भी सामने आया कि अधिकारियों ने कैसे  अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए सरकारी खजाने में सेंध लगाई और करदाताओं को राहत दी। बतौर उदाहरण  इंदौर सहित प्रदेश के तीस कार्यालयों के 9063 में से 160 असेसमेंट प्रकरणों की जांच की गई। इन 1.75 प्रतिशत प्रकरणों की जांच में ही 499.41 करोड रुपए असेसमेंट में शामिल नहीं किए गए। जिस पर 41.84 करोड़ की पेनल्टी सहित 82.08 करोड़ का टैक्स वसूला जा सकता था।
तो तीन हजार करोड़ से ज्यादा की चोरी आएगी सामने...
213 करोड़ की गड़बड़ असेसमेंट के 43438 में से 402 (0.92 प्रतिशत) प्रकरणों की जांच के दौरान ही सामने आई है। यानी हर प्रकरण में औसत 52,98,507 रुपए की गड़बड़। अब 30 प्रतिशत प्रकरण शंका की नजर से देखे जा रहे हैं। इसी औसत से  मामले सामने आते हैं तो सेंधमारी का आंकड़ा 3257.85 करोड़ के पार जाता है।
यह भी गड़बड़...
24 कार्यालयों के 5044 में से 51 प्रकरणों की नमूना जांच में पता चला कि कर निर्धारण अधिकारी ने 143.54 करोड की बिक्री पर कम दर से टैक्स लगाया।  इससे 26.8 करोड़ की पेनल्टी सहित 38.57 करोड़ रुपए डिपार्टमेंट को नहीं मिले।
17 कार्यालयों के 5469  में से 27 प्रकरणों की जांच में सामने आया कि अधिकारियों ने असेसमेंट के दौरान कुल विक्रय राशि में से टैक्स की रकम  घटा दी जबकि टैक्स राशि कुल विक्रय में शामिल ही नहीं थी। इससे 32.22 करोड़ कम टैक्स मिला।
टैक्स फ्री बताकर बेच दिए टैक्सेबल प्रोडक्ट
जिन वस्तुओं पर टैक्स लगता है व्यापारियों ने उन्हें कर मुक्त बताकर बेच दिया। सात कार्यालयों के 4068 में से 9 प्रकरणों की जांच में 1.26 करोड़ की पेनल्टी सहित 1.82 करोड़ की गड़बड़ सामने आई।
दी मनमानी छूट
31 कार्यालयों के 13840 में से 79 प्रकरणों की जांच में गलत छूट देकर सरकार को इंट्री टैक्स पेटे मिलने वाले 10.37 करोड़ की क्षति पहुंचाने का खुलासा हुआ है। यहां जिन उत्पादों पर इंट्री टैक्स की छूट नहीं दी जाना थी, वहां भी छूट दी गई।
15 कार्यालयों के 99 में सात प्रकरणों की जांच के अनुसार सेंट्रल सेल टैक्स (सीएसटी) ट्रांजिट सेल पर 229.21 करोड़ की गलत छूट दी और सरकार को 9.87 करोड़ का नुकसान पहुंचाया।
गड़बड़ फार्म भी नहीं देखे
‘सी’ और ‘एफ’ फार्म के बिना या गड़बड़ ‘सी’ और ‘एफ’ से 267.72 करोड़ की इंटरस्टेट सेल का असेसमेंट करके टैक्स लिया। 17 कार्यालयों के 1629  में से 29 प्रकरणों की जांच में ही 1.22 करोड़ की पेनल्टी सहित 11.86 करोड़ की सेंधमारी की गई।
सोयाबीन और कपास की बिक्री पर कर निर्धारण करते समय, एक माह से अधिक के ट्रांजेक्शन पर टीडीएस सर्टिफिकेट स्वीकार कर लिए। 13 कार्यालयों के 4,226 में से 40 मामलों में ही 4.45 करोड़ का अनियमित टीडीएस समायोजन सामने आया है।

पीएचई की अजब पेयजल निगरानी, हैंडपंप की शिकायत करना आसान नहीं

 पानी के लिए ग्रामीणों को बनना पड़ेगा स्मार्ट
इंदौर. विनोद शर्मा ।
आप गांव में रहते हैं तो अब आपका बंडी-गमछा सिर पर गमछा लपेटकर ‘हऊ दादा कर लांगा’ की आदत छोड़ना पड़ेगी। वक्त और टेक्नोलॉजी के हिसाब से बदलना पड़ेगा। स्मार्ट बनना पड़ेगा। एंड्राइड मोबाइल चलाने की आदत डालना पड़ेगी। तब कहीं जाकर आपको पानी मिलेगा। क्योंकि ग्रामीण पेयजल निगरानी प्रणाली के तहत लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने कुछ ऐसी ऐसी ही व्यवस्था की है जहां कोई स्मार्ट ग्रामीण ही खराब हैंडपंप की शिकायत कर सकता है। शायद यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में खराब हैंडपंप की संख्या लगातार बढ़ रही है।
17 अपै्रल 2016 को योजना समिति की बैठक के दौरान पीएचई की समीक्षा करते हुये मंत्री कुसुमसिंह महदेले   ने अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कंट्रोल रूम बनाने के निर्देश दिए थे। मकसद था गांव के हैंडपंप बंद होने की स्थिति में ग्रामीण आसानी से शिकायत करे। उनकी शिकायतों का कम से कम वक्त में निराकरण हो। अधिकारियों ने कंट्रोल रूम बनाने के बजाय मोबाइल नम्बर 9200067890 और एन्ड्रायड मोबाइल के लिए ‘एमपी जल’ एप जारी कर दिया। हैंडपंप की गांव वार मार्किंग कर दी गई तो नंबर बताते ही गांव और स्थान की जानकारी मिल जाए। फिर भी ढाई महीनों से एप तो दूर नंबर ही ग्रामीणों के लिए सिरदर्द बना हुआ है।
मजाक नहीं तो क्या है?
जैसे ही मोबाइल नंबर 9200067890 पर फोन करते हैं। आवाज आती है...ग्रामीण पेयजल निगरानी प्रणाली में पीएचई आपका स्वागत करता है। हैंडपंप से संंबंधित शिकायत के लिए 1, तकनीकी टीम से संबंधित शिकायत के लिए 2 और अधिकारियों से संबंधित शिकायत के लिए 3 दबाएं।
ग्रामीण 1 दबाते हैं..। जवाब आता- अपना हैंडपंप कोड डायल करें।
(आधे हैंडपंप पर ही मार्किंग है, इसकी शिकायत पीएचई के सदस्य सज्जनसिंह भिल्लारे बीते दिनों मुख्यमंत्री को भी कर चुक हैं।)
हैंडपप पर कोड स्पष्ट नहीं है। दो तरह के नंबर है। चार डिजिट का नंबर जैसे 8022..। दूसरा नंबर है 10 डिजिट का जैसे 0904068023...जिसे ज्यादातर ग्रामीण किसी इंजीनियर या टेक्नीशियन का मोबाइल नंबर ही समझकर डायल करते रहते हैं जो कभी नहीं लगता।
इनमें से कौनसा नंबर डायल करना है हैंडपंप पर कहीं नहीं लिखा है। 8022 डायल करो तो जवाब मिलता है कोड गलत है...।
कोड डायल कर दो तो शिकायत का प्रकार पूछते हुए आठ आॅप्शन बताए जाते हैं। हैंडल खराब है तो 1, चेन खराब है तो 2, हेड खराब है तो 3, सिलेंडर खराब है तो 4, लाइन गिर गई है तो 5, लाइन बदलना है तो 6, पाइप बदलना है तो 7 और खराब पानी  आ रहा है तो 8 दबाएं।
(मतलब यह कि ग्रामीण पहले हैंडपंप खोले और समझे कि आखिर हुआ क्या है। फिर मोबाइल या एप पर शिकायत करने का सोचे)
आड़ो नंबर बतऊं कि उब्बो...
सांवेर तहसील के कांकरिया बोरदिया गांव में हैंडपंप खराब है। ग्रामीण कैलाश परमार ने परेशान होकर शिकायत के लिए पंचायत से नंबर लेकर डायल कर दिया। कम्प्यूटराइज्ड वॉइस कॉल सेंटर के निर्देशानुसार नंबर डायल किए लेकिन मामला हैंडपंप कोड पर अटक गया और फोन कट गया। पंचायत में पूछने पर पता चला कोड हैंडपंप पर लिखे हैं। फिर नंबर लगाया। कॉल सेंटर ने जैसे ही हैंडपंप कोड पूछा तो उन्होंने हैंडपंप पर दो तरह से लिखे हुए नंबर देखकर कहा कि ‘‘कां को नंबर बतऊं आड़ो कि उब्बो...’’। उन्होंने जितने नंबर लिखे थे सब दबा दिए लेकिन जवाब वही मिला कोड गलत है। फिर सोचा चार डिजिट वाला कोड होगा। दबाया तो उसे भी गलत बताया। फिर 10 डिजिट के नंबर दबाए तब फोन तो लगा लेकिन आठ आॅपशन सुनते ही उन्होंने यह कहते हुए फोन रख दिया कि ‘‘रेन दे बई, हम इज मेकेनिक के बुलई ने सुदरई लांगा।’’

कार्रवाई के बजाय शिकायतें दबाकर बैठा निगम

ओल्ड पलासिया और मुंडला नायता में अवैध निर्माण पर मेहरबान अधिकारी
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
पार्षदों की भूमिका पर अंगुली उठाने वाले नगर निगम के अधिकारी अवैध निर्माण की शिकायतों को भी लगातार नजरअंदाज करते आ रहे हैं। दबाव में यदि कार्रवाई करते भी हैं तो ऐसी कि बिल्डर को ज्यादा नुकसान न हो। इसके दो बड़े उदाहरण हैं। एक 3/3 न्यू पलासिया पर अपर आयुक्त देवेंद्र सिंह के सख्त आदेश के बावजूद तन चुका मकान। तो दूसरी तरफ मास्टर प्लान-2021 में प्रस्तावित 45 मीटर चौड़ी रोड की जमीन पर मुंडला नायता में तना अवैध मार्केट है।
3/3 ओल्ड पलासिया पर सुनील यादव व अन्य की बिल्डिंग हैं जो शुरू से अवैध निर्माण के कारण विवादो में हैं। 15 जून 2015 को जोन-10 के भवन अधिकारी  ने निर्माण को अवैध बताया था। अनुमति के दस्तावेज मांगे थे जो बिल्डर नहीं दिखा पाया। रिमुवल के लिए 1 अगस्त 2015 कस दिन मुकरर्र हुआ। पुलिस बल मांगा। कार्रवाई नहीं हुई। 26 और 30 सितबर को भी यही हुआ। सुनील यादव और राजाराम यादव को नोटिस दिया। 3 अक्टूबर 2015 को चौथी तारीख तय हुई। उधर, निर्माण और उसकी शिकायतें समानांतर जारी रही। अफसरों का कहना था कि 26 जून 2015 को रिमुवल लगाई थी लेकिन बिल्डर ने स्वयं तोड़ने का आश्वासन दे दिया था।
अपर आयुक्त का आदेश भी हवा में
शिकायत मिलने के बाद अपर आयुक्त देवेंद्र सिंह ने 8 फरवरी 2016 को बीओ महेश शर्मा और बीआई सुमित अस्थाना को कार्रवाई करके सप्ताहभर में सूचित करने को कहा था। फिर भी कार्रवाई नहीं हुई।
मार्केट को पहुंचा दिया कोर्ट...
मुंडला नायता की सर्वे नं.  269/मिन-2 की जमीन पर मार्केट बन रहा है जो कि नए आरटीओ के ठीक सामने है। राजस्व रिकार्ड में 0.560 हेक्टेयर यह जमीन शासकीय है और इसका भू-उपयोग सड़क के रूप में दर्शाया गया है। इस जमीन पर राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण के चलते मुंडला नायता निवासी युसुफ पिता हुस्ना नायता और गम्मू पिता हुस्ना नायता बड़ा मार्केट बना रहे हैं। मार्केट 100 बाय 15 फीट लंबा बन रहा है। इसकी शिकायत ओमप्रकाश पिता गब्बुलाल ने की थी। आधा दर्जन से अधिक शिकायतों के बाद मार्केट पर मई के पहले सप्ताह में रिमुवल की कार्रवाई की लेकिन ऐसी कि बिल्डर को ज्यादा नुकसान न हो। कार्रवाई बिल्डिंग आॅफिसर असित खरे और बीआई विनोद अग्रवाल ने की थी। कार्रवाई पर जब सवाल उठे तो इनका कहना था कि बिल्डर ने स्वयं तोड़ने को कहा है। इसके लिए तीन दिन दे दिए हैं लेकिन इस बात को अब सवा महीना हो चुका है। अब यही अधिकारी कहते हैं कि निर्माणकर्ता कोर्ट पहुंच चुका है। अब मामला चूंकि कोर्ट में विचाराधीन है इसीलिए कार्रवाई नहीं हो सकती है।

नाले और बगीचे की जमीन पर काटे प्लॉट

चंपू की फिनिक्स टाउन में गड़बड़झाला
मिट्टी डालकर भराव करते डम्पर रहवासियों ने पुलिस की मदद से खदेड़े
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नदी, तालाब और नालों के संरक्षण के लिए जहां मास्टर प्लान 2021 से लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) तक के प्रावधान सख्त है वहीं कैलोदहाला की फिनिक्स टाउन कॉलोनी में मिट्टी डालकर नाला बंद करके प्लॉट काटे जा रहे हैं। रविवार की रात क्षेत्रीय रहवासियों ने मिट्टी खाली करते डम्परों को पकड़ा। विधायक व कलेक्टर की दखल के बाद लसूड़िया पुलिस मौके पर पहुंची और डम्पर चालकों को खदेड़ा।
लसूड़िया क्षेत्र के गंदे और बरसाती पानी को खान नदी तक पहुंचाने वाला नाला (खसरा नं. 264) कॉलोनी से गुजरता है। इसका जिक्र राजस्व रिकॉर्ड में है। फिनिक्स देवकॉन प्रा.लि. ने यहां फिनिक्स टाउन नाम की जब कॉलोनी काटी तो नाले को कवर करके उस पर गार्डन विकसित करना बता दिया था। इसका जिक्र टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से तीन चरणों में स्वीकृत हुए कॉलोनी के ले-आउट में भी है। चूंकि बगीचा था इसीलिए रहवासियों ने भी आपत्ति नहीं ली लेकिन बीते सालभर से मिट्टी डालकर नाला बंद करने की कोशिश की जा रही है। काफी दिन की निगरानी के बाद फिनिक्स वेलफेयर सोसायटी के रूप में पंजीबद्ध हुए कॉलोनी के रहवासी संघ ने रविवार की रात मिट्टी खाली करते डम्परों को पकड़ा। थाने पर शिकायत की लेकिन पुलिस काफी देर तक नहीं पहुंची। विधायक राजेश सोनकर और कलेक्टर पी.नरहरि को मामले की सूचना दी तब कहीं जाकर पुलिस पहुंची और डम्पर व उन्हें छुड़ाने पहुंचे लोगों को खदेड़ा।
यह थे डम्पर
एमपी09एचएच0827 : मंगेश यादव
एमपी09एचजी9062 : मनीष यादव
एमपी09सीपी3247 : विनोद बिलोदिया (छुड़ाने पहुंचे)
कॉलोनाइजर बाहर, कारिंदों को सौंपी कब्जे की जिम्मेदारी
जमीन फिनिक्स डेवकॉन प्रा.लि. तर्फे  चिराग शाह पिता विपिन शाह के नाम दर्ज है। इस कॉलोनी के सर्वेसर्वा रितेश उर्फ चंपू अजमेरा भी रहे हैं। अब दस्तावेजों में डायरेक्टर मनीष पंवार, रजत बोहरा हैं। मौके पर काम जितेंद्र पंवार और खलील खान देख रहे हैं जिनके खिलाफ 2 जून 2015 को ही फिनिक्स निवासी अश्विन मिश्रा की शिकायत पर लसूड़िया पुलिस ने धारा 294/506 के तहत केस (505) दर्ज किया था।
अभी तो मिट्टी डालने दो साहब
रहवासियों की शिकायत पर पुलिस पहुंची तो डम्पर वालों ने कहा कि जो मिट्टी भरी है उसे तो खाली कर लेने दो। इस पर पुलिसकर्मियों ने उन्हें फटकारते हुए कहा कि तुम निकल लो वरना अंदर कर देंगे।
नाले पर ही काट रहे हैं प्लॉट
20 जून को इसकी शिकायत कलेक्टोरेट में भी की गई। फिनिक्स वेलफेयर सोसायटी ने बताया मास्टर प्लान से स्वीकृत मेप में नाला दिख रहा है लेकिन उसके किनारे की जमीन पर 11 बगीचे अंकित किए गए हैं। मौके पर ऐसा नहीं है। यहां नाला रेलवे पुल से सिर्फ 140 मीटर दूर तक ही नजर आता है इसके बाद पाइप डालकर बंद कर दिया। 450 मीटर तक पाइप में ही है नाला। ऊपर बगीचा बनना था लेकिन नहीं बना। इसके आगे नाला खुला दिखता है लेकिन उसके किनारे मिट्टी डालकर पहले चौड़ाई कम की गई। बाद में पूरा बंद करने का प्रयास शुरू कर दिया। नाला जैसे-जैसे बंद होता जा रहा है वहां प्लॉट काटकर कब्जे दिए जा रहे हैं।
नक्शे में दो दर्जन, मैदान में 2-4 ही गार्डन
2300 प्लॉटों की इस कॉलोनी के स्वीकृत ले-आउट में दो दर्जन से अधिक बगीचे और ओपन स्पेस है लेकिन कॉलोनाइजर और उसके कारिंदों की मनमानी के कारण यहां मैदान में दो-चार बगीचे ही नजर आते हैं। बाकी पर कब्जा करके वहां प्लॉटिंग की जा चुकी है या फिर प्लॉटिंग की जाना है। नाले से सटाकर ही कुछ मकान बन भी चुके हैं जिन पर कार्रवाई विचाराधीन है।
कलेक्टर सख्त, अधिनस्थ मस्त
चूंकि हमें बगीचे बताकर प्लॉट बेचे थे। बगीचे रहवासियों की पूंजी है इसीलिए हम नाले और बगीचे पर कब्जे की कथा कलेक्टर पी.नरहरी से लेकर मुख्यमंत्री तक को बता चुके हैं। कलेक्टर ने अधिनस्थों को सात दिन में सीमांकन कराकर कब्जे हटाने के निर्देश दिए थे लेकिन अधिनस्थ काम के तनाव में भूल गए कहकर फोन काट देते हैं।
राजीव प्रकाश अग्रवाल, अध्यक्ष
फिनिक्स टाउन वेलफेयर सोसायटी
सरकारी जमीन को लेकर भी चिंतित नहीं अफसर
हमारा कामकाज छोड़कर हम कॉलोनी में कब्जाई जा रही सरकारी जमीन को लेकर अभियान छेड़े बैठे हैं। सभी से बुराई अलग हो गई। कॉलोनाइजर के कारिंदे जान से मारने की धौंस देते हैं। कोशिश करते हैं जिसकी शिकायत हम फरवरी में करवा भी चुके हैं। फिर भी न पुलिस कोई कार्रवाई करती है। न ही वे अधिकारी जिनकी जिम्मेदारी सरकारी जमीन पर कब्जा रोकना है।
मुकेश चौकसे, सचिव


पंजीयक ने कर दी 150 फर्जी प्लॉटों की रजिस्ट्री

फिनिक्स के रहवासी शिकायत करते रहे और
इंदौर.  विनोद शर्मा ।
नाले की जमीन कब्जाने वाली जिस फिनिक्स डेवकॉन प्रा.लि. के कर्ताधर्ताओं के खिलाफ क्राइम ब्रांच की टीम ने जांच शुरू कर दी है वे 2300 प्लॉट की कॉलोनी में 2450 से ज्यादा प्लॉट बेच चुके हैं। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से तीन चरणों में स्वीकृत ले-आउट में यह प्लॉट गायब हैं। वहीं फिनिक्स वेलफेयर सोसायटी की लिखित आपत्ति के बावजूद जिला पंजीयक कार्यालय के अधिकारियों ने अपनी फीस लेकर 150 से अधिक फर्जी प्लॉटों की रजिस्ट्री कर दी।
30 अक्टूबर 2010 को कैलोद हाला की 41.575 हेक्टेयर जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट से कॉलोनी के तीन अलग-अलग नक्शे मंजूर हुए थे। तीनों नक्शों में कुल विकसित प्लॉटों की संख्या 2303 थी लेकिन आज मौके पर 2450 से अधिक प्लॉट कट चुके हैं। जिसका उदाहरण रामविलास राजपुत का प्लॉट नं. 2332, आनंद सिंह राजपूत का प्लॉट नं. 2333 और शांति सिसोदिया का प्लॉट नं. 2334 हैं।
सार्वजनिक उपयोग की जमीन का सौदा
कॉलोनी और खान नदी के बीच स्वीकृत ले-आउट में पार्क, एमिनिटिज, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी), ओवर हेड टैंक (ओएचटी), ट्रांसफार्मर, वेस्ट डिस्पोजल एरिया और स्कूल के लिए जमीन आरक्षित की गई थी। जमीन काफी बड़ी है। तीनों नक्शों में यह जमीन थोड़ी बहुत नहीं बल्कि 5. 833 हेक्टेयर थी। इसके अलावा 8844.37 वर्गमीटर इन्फॉर्मल सेक्टर के लिए आरक्षित जमीन अलग। इन सभी सार्वजनिक उपयोग की जमीनों का जिम्मेदारों ने सौदा प्लॉट के रूप में कर दिया।
लाखों की चपत...
कॉलोनी में प्लॉट की मौजूदा कीमत औसत 800 रुपए वर्गफीट है। एक प्लॉट औसत 1000 वर्गफीट का है। 150 प्लॉट ज्यादा बेचे गए मतलब 150000 वर्गफीट जमीन बेच दी गई। 800 रुपए वर्गफीट के हिसाब से कुल कीमत हुई 12 करोड़ रुपए। जबकि सड़क को छोड़ सार्वजनिक जमीन थी 723058 वर्गफीट। मतलब यदि सरकार अब भी नहीं चेती तो बाकी जमीन बेचकर कॉलोनाइजर करोड़ों रुपए और कमा जाएंगे।
ऐसे मंजूर हुए थे ले-आउट
1- पहला प्रमोद कुमार, हीरालाल केसरी, सत्यनारायण, हरप्रीत, घनश्याम व अन्य की 11.782
2- रमाबाई, विक्रम सिंह, मेहताब सिंह, फुलसिंह, सेवाराम, हेजा बाई व अन्य की 12.158 हेक्टेयर
3- रमाबाई, लीलाधर, सुभाष, रामेश्वर, अमरसिंह, मेहरबानसिंह, लक्ष्माण सिंह, अनूप सिंह, अमरीक सिंह की  17.626 हेक्टेयर जमीन।
(तीनों 10 अक्टूबर 2010 को मंजूर हुए। तीनों नक्शों में डेवलपर का नाम सेटेलाइट इन्फ्रा एंड रीयल एस्टेट तर्फे डायरेक्टर चिराग पिता विपिन शाह का नाम दर्ज है।)
लिखित शिकायत के बाद भी रजिस्ट्री
टीएनसी से अधिक प्लॉट की रजिस्ट्री हमारी आपत्ति के बाद भी जिला पंजीयक कार्यालय ने कर दी। अब भी वक्त है प्रशासन जागे और कार्रवाई करे। देर हो जाएगी तो बिल्डर जेब भरकर निकल जाएंगे और कार्रवाई होगी उन लोगों पर जिन्होंने जीवनभर की पूंजी लगाकर प्लॉट खरीदा। मकान बनाया।
राजीव प्रकाश अग्रवाल, अध्यक्ष
फिनिक्स वेलफेयर सोसायटी

सैलेरी नहीं है ग्राहकों द्वारा दी गई टिप-सुप्रीमकोर्ट


होटल और रेस्टोरेंट कारोबारियों को राहत
इंदौर. विनोद शर्मा ।
वेटर व अन्य होटल कर्मचारियों के लिए ग्राहक टिप देते हैं। होटल प्रबंधन यदि इस राशि को इकट्ठा करके बाद में कर्मचारियों में वितरित करता है तो इस राशि को इनकम टैक्स एक्ट 1961 की किसी भी धारा के तहत सैलेरी नहीं माना जा सकता है। न ही इस राशि के वितरण के दौरान प्रबंधन को टीडीएस काटने की जरूरत है। कमिश्नर इनकम टैक्स (टीडीएस) और आईटीसी लिमिटेड के बीच 2011 ’२ विवादित मामले (सीविल अपील 4435-37/2016) की सुनवाई के दौरान यह बात सुप्रीमकोर्ट ने कही है।
यदि कोई असेसी होटल या रेस्टोरेंट का मालिक, संचालक और प्रबंधक है तो इनकम टैक्स उसके यहां सर्वे या सर्च की कार्रवाई करके कर्मचारियों के बेहाफ पर ग्राहकों से मिलने वाली टिप के वितरण पर न टीडीएस मांग सकता है। न ही किसी असेसी को डिफाल्टर कह सकता है। बावजूद इसके असेसमेंट आॅफिसर(एओ) ने 29 मार्च 2007 को आईटीसी के खिलाफ जारी असेसमेंट आॅर्डर में टिप को सैलेरी का हिस्सा ही माना। कहा कि इस पर इनकम टैक्स एक्ट की धारा 192 के तहत टीडीएस काटकर जमा कराना असेसी की जिम्मेदारी है। ऐसी स्थिति में असेसी को धारा 201(1) के तहत डिफॉल्टर माना जाएगा। इसीलिए असेसी को धारा 201(1ए) के तहत 2003-04 से लेकर 2005-06 के बीच यह राशि ब्याज सहित चुकाने को कहा गया। कमिश्नर (अपील) ने 28 नवंबर 2008 को असेसी को डिफॉल्टर मानने से मना कर दिया। आयकर अपीलीय न्यायाधीकरण (आईटीएटी) ने भी राजस्व की अपील खारिज कर दी।
हाईकोर्ट ने कहा था सैलेरी है टिप
हाईकोर्ट ने 11 मई 2011 को आयकर का साथ दिया। कहा कि टिप की रकम एम्प्लॉय को वेतन या मजदूरी के अलावा मिलने वाला लाभ है जो आयकर की धारा 15(बी), 17(1) और 17(3)(2) के तहत आता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि ग्राहक से नकद राशि के रूप में सीधे कर्मचारी को मिलने वाली राशि धारा 192 से बाहर होगी। यदि किसी ग्राहक ने बिल के साथ क्रेडिट कार्ड से केश काउंटर पर टिप का भुगतान किया है और बाद में मैनेजमेंट कर्मचारियों को बांटता है या फिर उनकी सैलेरी में जोड़कर देता है तब वह टिप सैलेरी कहलाती है। इस पर टीडीएस कटना चाहिए था, नहीं कटा इसीलिए ब्याजसहित वसूली हो। इस फैसले को असेसी ने सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी।
अंतत: मिली राहत
सुप्रीमकोर्ट के फैसले ने न सिर्फ होटल बल्कि बेंक्वे हॉल और रेस्टोरेंट मालिकों को भी राहत दी है। माननीय न्यायालय ने पांच अलग-अलग प्रकरणों में हुए फैसले का हवाला दिया। फिर हाईकोर्ट के फैसले को बदला। कहा कि टिप ग्राहक और एम्प्लॉय के बीच हुए व्यवहार का मामला है। यहां नियोक्ता की भूमिका इन दोनों के बीच सिर्फ सेतू की ही है। नियोक्ता जो टिप मिलती है उसका एम्प्लॉय में बराबर वितरण कर देता है। इसीलिए उससे टीडीएस क्लेम किया जा सकता है। न ही इंट्रेस्ट। 

तालाब ने ‘कोर्ट’ को दिखा दी ताकत

चार र्इंच पानी में डूबो दी विवादित जमीन, बताई अपनी जद
इंदौर. विनोद शर्मा ।
अब तक हुई चार इंच बारीश ने शहरवासियों को सूरज के तल्ख तेवर से राहत दी है वहीं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे पीपल्याहाना तालाब की ताकत भी बढ़ा दी है। लोकसभा अध्यक्ष से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता सड़क से लेकर कोर्ट तक में लड़ाई लड़ रहे हैं। बात नहीं बनी। वहीं कागजी किस्से कहानियों को पीछे छोड़ सिर्फ चार इंच पानी के दम पर अपनी जद दिखाते हुए तालाब ने कोर्ट के निर्माण की वैधानिकता को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
राजस्व दस्तावेजों में पीपल्याहाना तालाब पीपल्याहाना गांव की सर्वे नं. 525 की  3.674 हेक्टेयर जमीन पर है। कोर्ट का निर्माण 526/1/1 और 526/1/2 पर हो रहा है। रिकार्ड के आधार पर पीडब्ल्यूडी को स्टेट लेवल एक्सपर्ट अप्राइजल कमेटी (एसईएसी) ने 20 शर्तों के साथ 11.161 हेक्टेयर जमीन पर कुल 144492 वर्गमीटर निर्माण की अनुमति दी थी। 18 मार्च 2016 को एनजीटी अपने आर्डर में भी शर्तों का जिक्र कर चुका है। इन शर्तों और तमाम आंदोलनों का दरकिनार करके भी देखें तो बुधवार की शाम तक सूखे नजर आ रहे तालाब ने गुरुवार की शाम को निर्माण और निर्माण के हिमाइतियों को अपनी ताकत और जमीन दिखा दी।
कैसे हो अब निर्माण...
एसईएसी के निर्देश और एनजीटी के आदेश के मुताबिक प्रोजेक्ट प्लानर (पीपी) को तालाब के फुल टैंक लेवल (एफटीएल) से 30 मीटर दूर तक ग्रीन बेल्ट छोड़ना होगा। किसी तरह का निर्माण नहीं कर सकता।
इंदौर विकास योजना 2021 की कंडिका 6.15.3 अनुसार बड़े तालाबों से हाई फ्लड लेवल (एचएफएल) से 60 मीटर और छोटे तालाब से 30 मीटर की दूरी तक किसी भी तरह का निर्माण नहीं हो सकता।
तेजी से बढ़ रहा है पानी...
बुधवार शाम हुई बरसात ने तालाब और तालाब से लगी उस जमीन को भी पानी से लबालब कर दिया है जहां जिला कोर्ट बनना है। गुरुवार की शाम भी अच्छी बरसात हुई जिससे आसपास के क्षेत्र का बरसाती पानी तेजी से तालाब का जलस्तर बढ़ा रहा है। अब एक तरफ क्षेत्रवासी एक साथ चार इंच बरसात के लिए दुआ कर रहे हैं तो दूसरी तरफ कंपनी प्रबंधन मिलीमीटर बरसात के नाम से भी कांपने लगी है।
तो काम बंद होना तय...
गुरुवार शाम तक मौसम की कुल 4 इंच बरसात हुई है जबकि बीते वर्षों के औसत से 40 से 45 इंच बरसात अभी बाकी है। यही पीडब्ल्यूडी और निर्माणकर्ता दिलीप बिल्डकॉन की बड़ी चिंता है। क्योंकि यदि एक बार काम बंद हुआ तो छह महीने से पहले शुरू होना नहीं है। इसमें चार महीने तो बरसात के हैं और दो महीने लेवल कम होने के।
खुले आसमान में बंद, बरसात होते ही काम शुरू
गुरुवार की शाम 4 बजे तक बाउंड्रीवाल का काम सुस्त था। कोई मशीन नहीं लगी थी। सभी की चिंता पानी के बढ़ते लेवल की थी। इसी बीच अचानक तेज बरसात शुरू हो गई जो 5.30 बजे तक जारी रही। बरसात थमते ही निर्माणकर्ता कंपनी ने पहले गिट्टी चूरी डालकर बाउंड्रीवाल तक पहुंचने के लिए अस्थाई सड़क बनाई और फिर मिक्सर, डम्पर और पोकलेन लगा दी ताकि जल्द से जल्द बाउंड्रीवाल  को पानी के लेवल से ऊंचा कर दिया जाए।

होना थी फेंसिंग, बनने लगी 525 मीटर लंबी वॉल

पानी के बाद प्रस्तावित जिला कोर्ट की वैधानिकता का पेंच
30 मीटर दूर होना था निर्माण, बीच तालाब में जारी काम
इंदौर. विनोद शर्मा ।
पीपल्याहाना तालाब से लगी विवादित जमीन के जलमग्न होने के बाद अब निर्माणाधीन जिला कोर्ट की वैधानिकता पर सवाल उठने लगे है। बीच तालाब में बाड और फेंसिंग के नाम पर 17220 वर्गफीट लंबी-चौड़ी रिटेनिंग वॉल बनाई जा रही है जबकि मास्टर प्लान 2021, मप्र स्टेट इन्वायरमेंट इम्पेक्टस असेसमेंट अथॉरिटी (एमपीएसईआईएए) से लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) तक तालाब की जमीन से 30 मीटर दूर तक किसी तरह के निर्माण की इजाजत नहीं देते।
स्टेट एक्सपर्ट अप्राइजल कमेटी (एसईएसी) ने 20 फरवरी 2016 को पीपल्याहाना तालाब से लगी जमीन पर जिला कोर्ट निर्माण को इन्वायरमेंट क्लीयरेंस (ईसी) दी थी। 11.161 हेक्टेयर जमीन पर कुल 144492 वर्गमीटर निर्माण की सशर्त अनुमति दी थी। 18 मार्च 2016 को एक आदेश में एनजीटी ने 20 शर्तों का स्पष्ट उल्लेख किया और उन्हीं शर्तों के पालन के साथ निर्माण को स्वीकारा। पहली शर्त थी कि तालाब के फुल टैंक लेवल (एफटीएल) से 30 मीटर की दूरी तक निर्माण नहीं हो सकता। ग्रीन बेल्ट विकसित करना होगा जबकि मौके पर जिस जगह निर्माण हो रहा है वह बीते कई वर्षों से एफटीएल का हिस्सा रही है। इसकी पुष्टि गुगल अर्थ से निकाली गई सेटेलाइट इमेज भी करती है।
लगाना थी बाड़ और बना दी रिटेनिंग वॉल
एसईएसी और एनजीटी की शर्तों के अनुसार निर्माण ऐजेंसी पश्चिम की ओर (तालाब की तरफ) सुरक्षा की दृष्टि से फेंसिंग कर बांध क्षेत्र में विकास कर सकती है। यहां न 525 मीटर (1722 फीट) लंबी और 10 फीट चौड़ी रिटेनिंग वॉल का जिक्र है और न ही विकास का मतलब रिटेनिंग वॉल के रूप में परिभाषित है। विकास का मतलब बांध क्षेत्र में पेड़ लगाना, ग्रीनरी विकसित करना है।
बोरिंग भी कर लिए...
शर्तों के अनुसार पानी की जरूरत नगर निगम के माध्यम से पूरी होगी। उत्खनन करके भू-जल का दोहन नहीं होगा जबकि अब तक निर्माण एजेंसी और कंपनी दो बोरिंग करवा चुकी है। नगर निगम के रिकॉर्ड के अनुसार अब तक निर्माणाधीन कोर्ट के लिए पानी नहीं दिया गया है।
अब तालाब का पानी गंदा करेगा
गुरूवार तक तालाब खाली था। निर्माण जब शुरू हुआ था तब भी तालाब सूखा था। अब एक तरफ जहां बरसात के साथ तालाब में पानी का स्तर बढ़ रहा है वहीं रिटेनिंग वॉल के निर्माण के कारण पानी दुषित भी हो रहा है। इसकी दो वजह है। पहली मटेरियल मिक्सर का गंदा पानी। दूसरा तरी में इस्तेमाल होने वाला पानी।
शर्तें जो बचाएगी तालाब
1- टाउन एंड कंट्री प्लानिंग द्वारा 11 फरवरी 2016 को दी गई अनुमति के अनुसार किसी भी तरह का निर्माण तालाब के हाई फ्लड लेवल(एचएफएल) से 30 मीटर की दूरी तक नहीं होगा।
2-निर्माण और संचालन के दौरान जीरो वेस्ट वॉटर डिस्चार्ज की व्यवस्था करना होगी। इतना ही नहीं किसी भी सूरत में ट्रीट किया हुआ पानी भी तालाब में नहीं छोड़ा जाएगा।
3-नगर निगम की सीवरेज लाइन से सीवर सिस्टम मिलाना होगा। किसी भी सूरत में गंदा पानी तालाब में नहीं छोड़ा जाएगा। नियमित रूप से पानी की गुणवत्ता की जांच होगी।
4-निर्माण एजेंसी को तालाब में एरेशन सिस्टम विकसित करना होगा ताकि पानी में आॅक्सीजन की मात्रा और पानी की गुणवत्ता न सिर्फ बनी रहे बल्कि सुधरे भी।
5-निर्माण एजेंसी को तालाब की मरम्मत और संरक्षण का काम पूरे तरीके से सुनिश्चित करना होगा और इसे लागू करने के लिए बजट में पर्याप्त प्रावधान करने होंगे। इसके साथ ही वर्षा जल पुनर्भरण भी सुनिश्चित करना होंगे। जिन खाइयों से पानी की आवक है उनके तल को कच्चा रखना है ताकि  पानी की निर्बाध आवक बनी रहे।
6-मौजूदा कॉलोनियों की मौजूदा सीवरेज व्यवस्था दक्षीण तरफ नहीं की गई है जिससे सीवेज उस नाले में बह रहा है जो सीधे तालाब से जुड़ा है। नगर निगम मेन लाइन में इस सीवेज की निकासी सनिश्चित करे।
7-प्रस्तावित भवन तालाब के केचमेंट एरिया में आ रहा है इसीलिए निर्माण एजेंसी पानी के बहाव को आसान बनाने के लिए स्कीम 140 की ओर से तालाब तक पानी पहुंचाने वाले चैनल को अपनी संपत्ति में से निकालना होगा। निर्बाध प्रवाह के लिए अंडरग्राउंड ग्रीट चेम्बर बनाए जिसमें मलबा न मिले।
8-तालाब और आसपास के क्षेत्र के साथ ही आसपास के वातावरण (पेड़-पौधे और जीव-जंतु) में छेड़छाड़ न हो।

तो मिट सकती है छह हजार लोगों की भूख

होटल व रेस्टोरेंट से हर दिन बर्बाद हो रहा है 15 टन भोजन
इंदौर. विनोद शर्मा ।
एक तरफ कई लोगों को एक वक्त का खाना नसीब नहीं हो रहा है वहीं इंदौर के होटल और रेस्टारेंट से ही हर दिन 15 टन खाना जाया हो रहा है। जिला प्रशासन द्वारा होटलों पर लगातार की जा रही कार्रवाई के दौरान यह बात सामने आई है। मन को दुखाने वाला यह आंकड़ा विडम्बनापूर्ण स्थिति को मानवतापूर्ण भावना के साथ तत्काल समाधान की जरूरत जता रहा है क्योंकि इस खाने का सदउपयोग 6000 जरूरतमंदों की भूख मिटा सकता है। बहरहाल, इंदौर के एक रेस्टारेंट कारोबारी ने ही भोजन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कराने के लिए सुप्रीमकोर्ट में जनहित याचिका लगाने की तैयारी शुरू कर दी है।
होटल, रेस्टोरेंट, ढाबे और पब के खिलाफ सरकारी अभियान सालभर से जारी है। कार्रवाई के दौरान यहां संचालित गैरकानूनी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है वहीं सामाजिक सरोकार रखते हुए अधिकारी यह भी जांचते रहे कि ऐसा कितना खाना वेस्ट हो रहा है जो होटल, रेस्टोरेंट, ढाबे या पब में ग्राहकों की प्लेट में नहीं जाता, सर्विंग बॉउल में ही रह जाता है। जिसे झूठन भी नहीं कह सकते। बावजूद इसके इस खाने को फेंक दिया जाता है। बीच में कुछ सामाजिक संस्थाओं ने भोजन संग्रहित करके जरूरतमंदों तक पहुंचाया भी लेकिन मीडिया की सुर्खियां मिलते ही अभियान बंद हो गए। बाद में होटलों के असहयोग की आड़ ले ली गई। ऐसे में जरूरत है प्रशासन की अगुवाई में भोजन संग्रहण की।
कैसे मिटेगी हजारों की भूख...
इंदौर शहर में होटल, रेस्टारेंट, पब, ढाबे तकरीबन 300 से ज्यादा हैं। इनमें से 150 ऐसे हैं जो देर रात तक ग्राहकों से गुलजार रहते हैं। सरकारी अनुमान के अनुसार दिनभर में औसत 5 किलोग्राम खाना भी सर्विंग बाउल में बचता है तो हर दिन का औसत 1500 किलोग्राम पहुंच जाता है। एक सामान्य व्यक्ति की डाइट 250 ग्राम है। इस हिसाब से 1500 किलोग्राम खाने का यदि सही उपयोग हो तो इससे उन 6000 जरूरत लोगों की भूख मिटाई जा सकती है जिन्हें एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता। 40 रुपए प्लेट से ही आंकलन करें  रोज 2.5 लाख और सालाना 8.76 करोड़ का खाना खराब हो रहा है।
अब शादी-पार्टियों का भी सर्वे होगा
होटल और रेस्टोरेंट से फिकने वाले खाने की बड़ी मात्रा सामने आने के बाद अब शादी, जन्मदिन की पार्टी, कॉर्पोरेट पार्टी और भंडारों में बचने वाले भोजन के आंकड़े का अनुमान भी लगाया जाने लगा है। एक अनुमान के अनुसार शादी के सीजन में बचने वाले भोजन की क्वांटिटी 30 टन से ज्यादा है।
क्यों बचता है भोजन
1- बड़ी तादाद में होटल-रेस्टारेंट ने हाफ प्लेट सिस्टम बंद कर दिया है। ऐसे में व्यक्ति को भूख भले हाफ प्लेट की हो लेकिन उसे दाल, चावल व सब्जी फूल प्लेट ही बुलाना पड़ेंगे।
2- बड़ी व चर्चित होटल-रेस्टारेंट में खाना महंगा रखकर क्वांटिटी ज्यादा रखी जाती है। जरूरत पूरी होने के बाद भी खाना बचता है।
3- शादी-पार्टियों में बनने वाले भोजन की वैराइटियां इतनी बढ़ गई है कि मैनकोर्स का 70 फीसदी भोजन भी लोग नहीं खा पाते। कई ऐसे तरह के पकवान होते हैं कि उन्हें एक दिन बाद भी नहीं खाया जा सकता है।
4- कुछ नए की चाह में नए पकवान व्यक्ति बुला तो लेता है लेकिन कई बार स्वाद समझ नहीं आता।
राष्ट्रीय संपत्ति घोषित हो भोजन
रेस्टारेंट की चेन संचालित करने वाले प्रकाश राठौर ‘पप्पू’ ने भोजन की बर्बादी के खिलाफ कमर कसी है। उन्होंने कुपोषित बच्चों के बारे में छपने वाले समाचारों के साथ ही होटल-रेस्टारेंट से बचने वाले भोजन के आंकड़ों का सर्वे करके जनहित याचिका की तैयारी की है। सुप्रीमकोर्ट में लगने वाली इस याचिका के माध्यम से भोजन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कराने की मांग की जाना है ताकि भोजन का दुरुपयोग कम से कम हो। इस सप्ताह केस फाइल हो जाएगा। राठौर का कहना है कि कीमत के साथ भोजन की क्वांटिटी कम रखी जाए तो ज्यादा खाना नहीं बचेगा। लोग जरूरत के हिसाब से खाएंगे। शादी-पार्टियों में विकल्प कम या फिर मेनकोर्स कम हो। दोनों बराबर होंगे तो 70 प्रतिशत भोजन बचना ही है।

15 करोड़ का विकास शुल्क लिया और कर गए हजम

चम्पू चौकड़ी का कारनामा
हर प्लॉट पेटे वसूले 62 हजार, न बिजली दी, न पानी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
2450 प्लॉट की कॉलोनी और ट्रांसफार्मर सिर्फ एक...। 250 से अधिक मकान बन चुके हैं। कोई 100 मीटर लंबी केबल टांगकर बिजली ले रहा है तो किसी को एक से डेढ़ किलोमीटर दूर तक केबल टांगना पड़ी है। यह हकीकत है मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा शिलन्यासित हुई फिनिक्स टाउन की जहां कागजों पर सुविधाओं  का सब्जबाग दिखाकर चंपू चौकड़ी विकास शुल्क पेटे 15 करोड़ रुपए वसूलकर हजम कर चुकी है।
अक्टूबर 2007 में हुई इन्वेस्टर्स समिट के दौरान फिनिक्स देवकॉन से एमओयू करने के बाद मुख्यमंत्री ने कॉलोनी का शिलान्यास किया था।  सुविधाओं के वादे के साथ बड़े-बड़े ब्रोशर दिखाकर लोगों को प्लॉट बेचे गए। आठ साल हो चुके हैं लेकिन कॉलोनी में अब तक न पेयजल के पते हैं। न सीवरेज के। न ही बिजली के। पूरी कॉलोनी में सिर्फ एक ट्रांसफार्मर और हाइटेंशन (एचटी) के खम्बों पर झूलते तार ही नजर आते हैं जिन में उलझकर कई मवैशी जान गवां चुके हैं। हवा के साथ बिजली की आवाजाही लगी रहती है। तारों के जंजाल के बीच अपने तार पहचानकर दुरुस्त करना बिना इलेक्ट्रीशियन की मदद के संभव नहीं है।
62000 रुपए/घर वसूला गया विकास शुल्क
जमीन की कीमत के साथ कॉलोनी के विकास शुल्क भी लिया गया है। 1000 वर्गफीट के प्लॉट पर 50 हजार और 1500 वर्गफीट के प्लॉट पर 75 हजार रुपए। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से स्वीकृत ले-आउट के अनुसार यहां 2303 प्लॉट थे जबकि बिल्डर ने बेचे हैं 2450 प्लॉट। यदि औसत 62000 रुपए/घर के हिसाब से भी वसूली हुई तो इसका मतलब यह है कि कुल 15.19 करोड़ रुपए वसूले गए।
टेम्प्रेरी कनेक्शन से ही कट गए चार साल
तकरीबन दो हजार तारों से जूझता जो एक ट्रांसफार्मर कॉलोनी में नजर आता है उस पर भी बिजली कंपनी ने टेम्प्रेरी कनेक्शन ही दिया था। कनेक्शन की वैधता सिर्फ एक साल होती है। जरूरत पड़ने पर इसकी अवधि बढ़वाई जा सकती है। यहां चार साल हो गए हैं इसी टेम्प्रेरी कनेक्शन से। मजे की बात यह है कि अब तक किसी ने समयसीमा बढ़ाने का आवदेन भी नहीं दिया है।
दो करोड़ में स्थाई होगा कनेक्शन
अस्थाई कनेक्शन को स्थाई कराने के लिए क्षेत्रवासियों ने बिजली कंपनी से भी संपर्क किया लेकिन अधिकारियों ने यह कहते हुए मना कर दिया कि कॉलोनी बड़ी है और ग्रीन बनाना पड़ेगा जिस पर दो करोड़ रुपए खर्च होंगे। कॉलोनाइजर यह पैसा चुका दे और कनेक्शन ले ले। खम्बे भी लगाना होंगे। उधर, 15.19 करोड़ वसूलकर बैठी चम्पू चौकड़ी दो रुपए खर्च करने को तैयार नहीं है। अब प्लॉटहोल्डर 2 करोड़ लाएं भी तो कहां से। वह भी तब जब विकास शुल्क पहले ही दिया जा चुका हो।
यह है सुविधाओं की कहानी
पानी :: चूंकि कॉलोनी में कॉलोनाइजर की तरफ से पानी की व्यवस्था नहीं है इसीलिए प्लॉट पर पहले बोरिंग होता है फिर मकान बनता है। बिना बिजली के बोरिंग भी नहीं चलते। एक टंकी बनी तो थी लेकिन कभी इस्तेमाल में आई ही नहीं।
गार्डन :: कॉलोनी में दो दर्जन गार्डन विकसित होना थे, एक भी गार्डन नहीं बना। क्षेत्रवासियों के प्रयास से कुछ बगीचे बचे हैं।
स्कूल :: पिछले हिस्से में टीएंडसीपी के ले-आउट के अनुसार स्कूल बनना था लेकिन नहीं बना।
सीवरेज :: 2450 प्लॉटों की इस कॉलोनी में आधा फीट डाया के पाइप की सीवरेज लाइन और डेढ़ फीट गहरे चेम्बर किसी मजाक से कम नहीं है।
सड़क :: बड़ा नाला पाइप में दबाकर मेन रोड बनाई गई है इसीलिए दो इंच बरसात में पानी ओवर फ्लो होकर पूरी सड़क पर डेढ़-दो फीट तक भर जाता है। सिर्फ एक सड़क होने के कारण लोग घर में कैद होकर रह जाते हैं।
(न सीवरेज ट्रीटमेँट प्लांट बना। न ट्रांसफर स्टेशन बना। न क्लब हाउस।)

Thursday, June 2, 2016

नौ साल, छह राज्य और पायलेट बाबा के 8000 पीड़ित

- पुलिस जांच में ही उलझी
इंदौर. विनोद शर्मा ।
अलीगढ़ (उप्र) में रूद्र कम्प्यूटर एज्यूकेशन संस्था है जो ग्रामीण बच्चों को मुफ्त कम्प्यूटर शिक्षा देती है। संस्था ने 2009 में आइकावा कम्प्यूटर एज्यूकेशन सोसायटी की फ्रेंचाइजी ली। इगलास में केंद्र खोला और 1 रुपए की फीस पर शिक्षा देने लगे। टीचर को तनख्वाह संस्था देती थी। रूद्र का काम देख एक सज्जन ने भी फ्रेंचाइजी लेना चाही। रूद्र ने नियमानुसार आइकावा के नाम 50 हजार की डीडी बनवाई और बरेली  आॅफिस में जमा करवा दी। कुछ दिन बाद संस्था बंद हो गई। रूद्र के पैसे तो डूबे ही जिसके पैसे जमा करवाए वह भी तकादा लगाने लगा।
न सिर्फ रूद्र के संचालक बल्कि बिहार, उप्र, उड़िसा, झारखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में तकरीबन 8000 लोग ऐसे हैं जिन्हें नौ साल से अपनी जमा रकम और दोषियों को सजा मिलने का इंतजार है। किसी ने एक सेंटर की एवज में राशि जमा की हुई तो किसी ने दो या तीन के लिए। 2009 से लेकर 2016 के बीच लगातार शिकायतों का दौर जारी है हालांकि अब तक न आइकावा इंटरनेशनल एज्यूकेशन सोसायटी के खिलाफ पुलिस ने सख्त कार्रवाई की। न ही सोसायटी के अध्यक्ष योगीराज पायलेट बाबा  और उपाध्यक्ष योगमाता केकओ आइकावा के खिलाफ। यही वजह है कि दोनों इन राज्यों में जाने से बचते हैं।
आईकावा और यूकेब ने मिलाया था हाथ
उप्र के दो प्रमुख एनजीओ (आइकावा इंटरनेशनल एज्यूकेशन और यूकेब लिटरेसी मिशन) न हाथ मिलाया और रूरल और सेमी अर्बन एरिया में आईटी प्रोग्राम शुरू किए। इसे आइकावा की फ्रेंचाइजर्स के लिए शुभ संकेत बताया गया।
2008 से शंका का केंद्र था संस्थान
अलीगढ़ के योगेंद्र सिंह ने 10 नवंबर 2008 को शंका व्यक्त की। रूद्र संस्था से पूछा था कि क्या संस्था का आईटी प्रोग्राम यूं ही चलता रहेगा। सवाल 2-3 महीने से उनके सेंटर को आइकावा से मिलने वाली रॉयल्टी न मिलने के कारण पूछा गया था। आइकावा के चेक भी बाउंस होने लगे थे।
12 नवंबर को संजय सिंह ने जवाब देते हुए लिखा कि आइकावा का आईटी प्रोग्राम लगातार जारी रहेगा। चेयरमैन हिमांशु राय ने पूर्ववत प्रोग्राम चलाए रखने की जानकारी दी।
124 फ्रेंचाइजी की सूची जारी हुई
13 नवंबर 2008 को आईकावा ने 124 लोगों की सूची जारी की जिन्होंने फ्रेंचाइजी में रुचि जताई थी। चंदौली, धानपुर के सरफराज अहमद, कानपुर से गणेश दीक्षित, ललितपुर के पंचमसिंह पटेल,  आजमगढ़ से नीतू सिंह, बदायू से अंतरसिंह यादव, कौशाम्बी से शमिम हैदर रिजवी, पिलीभीत से तौलेराम गंगवार, वाराणासी से अजय कुमार,  जौनपुर से शेषनारायण मिश्रा, हमीरपुर से प्रतीपाल सिंह जैसे नाम शामिल हैं।
यह है चोरों की जमानत...
संस्था.. आइकावा इंटरनेशनल एज्यूकेशनल
पता - हल्दवानी नैनीताल
अध्यक्ष : महायोगी पायलेट बाबा
उपाध्यक्ष : योगमाता केकओ आइकावा
चेयरमैन : हिमांशु राय
एमडी : ईशरत खान
डायरेक्टर डेवलमेंट : इरफान खान
डायरेक्टर फाइनेंस : विजय प्रकाश यादव
चीफ मैनेजर : क्यू.ए.रिजवी
कौनसा सेंटर कौन संभालता है..
जी.डी.शाक्य(आगरा), इजहार हुसैन(बरैली), धर्मेंद्र सिंह भदौरिया (कानपुर), केके मिश्रा(गौरखपुर), शाकिब अब्बास (वाराणासी), बिपिन मिश्रा (बिहार-झारखंड-राजस्थान), सुधीर श्रीवास्तव (बिहार, झारखंड, उड़िसा), एस.दास गुप्ता (डीओ-उड़िसा) और पवन सिंह (डीओ-बिहार), इकबाल अहमद (डीओ पटना)
ऐसे करता था सिस्टम काम...
- स्वरोजगार के नाम पर युवाओं को प्रेरित किया गया।
- सब्जाबाग यह दिखाया कि फ्रेंचाइजी मिलने के बाद आप एज्युकेशन देते रहो, टीचर की फीस संस्था दे देगी।
- फ्रेंचाइजी के लिए 50 हजार की डीडी बनवाकर संस्था में जमा करना पड़ता था जिसे सुरक्षा निधि कहते थे।
- इसके बाद ही फ्रेंचाइजी लेने वाले बच्चों को एडमिशन दे सकते हैं।
गुंडागर्दी पर उतर आए
महायोगी पायलेट बाबा ने धोखाधड़ी के खुलासों के बाद सन्यास को किनारे रखकर गुंडागर्दी शुरू कर दी। उन्होंने दबंग दुनिया की टीम को भी जमकर धमकाया। इस बात की शिकायत कलेक्टर कवीद्र कियावत और डीआईजी राकेश गुप्ता से की गई है।

45 मीटर चौड़ी प्रस्तावित रोड बना डाला मार्केट

निगम के अफसरों ने दिया अभयदान, तोड़ने के नाम पर निभाई औपचारिकता
इंदौर. विनोद शर्मा ।
नए आरटीओ भवन में अधिकारी बैठे भी नहीं कि नायता मुंडला गांव में भू-माफियाओं ने टाउन एंड कंट्री प्लानिंग और नगर निगम की मंजूरी के बिना ही मार्केट बनाना शुरू कर दिया। अवैध निर्माण की शिकायत पर  पर नगर निगम के मैदानी अमले ने वहीं हथौड़े चलाए जहां बड़ी कार्रवाई से बचने के लिए भू-माफिया चलवाना चाहते थे। यही वजह है कि मास्टर प्लान 2021 की प्रस्तावित 45 मीटर चौड़ी सड़क पर यह निर्माणाधीन मार्केट जस का तस खड़ा है।
मार्केट मुंडला नायता की सर्वे नं.  269/मिन-2 की जमीन पर बन रहा है जो कि नए आरटीओ के ठीक सामने है। राजस्व रिकार्ड में 0.560 हेक्टेयर यह जमीन शासकीय है और इसका भू-उपयोग सड़क के रूप में दर्शाया गया है। इस जमीन पर राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण के चलते मुंडला नायता निवासी युसुफ पिता हुस्ना नायता और गम्मू पिता हुस्ना नायता बड़ा मार्केट बना रहे हैं। मार्केट 100 बाय 15 फीट लंबा बन रहा है। इसकी शिकायत ओमप्रकाश पिता गब्बुलाल ने की थी।
इसे नहीं दूसरे को तोड़ा
18 अपै्रल 2016 को ओमप्रकाश द्वारा की गई शिकायत के अनुसार उनकी शिकायतों को लगातार नजरअंदाज किया गया। जिला प्रशासन और नगर निगम ने संयुक्त कार्रवई करके आरटीओ की सड़क के लिए गरीबों के झौपड़े तोड़ दिए लेकिन सामने का मार्केट नजर नहीं आया। इस संबंध में उन्होंने नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह को भी शिकायत की।
सांप भी मर गया, लाठी भी नहीं टूटी
शिकायतों के कारण क्षेत्रीय बिल्डिंग आॅफिसर और बिल्डिंग इंस्पेक्टर्स दबाव में थे। इसीलिए उन्होंने रिमुवल की कार्रवाई की। इस कार्रवाई को ऐसे अंजाम दिया गया ताकि भू-माफिया का ज्यादा नुकसान न हो।
ऐसे तोड़ा...
- मार्केट 26 बीम कॉलम पर खड़ा है। इनमें से एक सिरे के सिर्फ दो कॉलम तोड़े गए। इससे 10 बाय 15 का एक हिस्सा ऐसे झूक गया जैसे कोई डिजाइन हो। बाकी मार्केट यथावत खड़ा है।
- इसी तरह मार्केट से लगकर हो रह दूसरे निर्माण पर कार्रवाई की गई जो कि प्लींथ लेवल तक ही था। यहां भी मार्केट पूरा सेफ है।
तीन दिन का मांगा था समय, 8 दिन बीत गए
निगम के मैदानी अमले ने सफाई देते हुए कहा कि हमने तो तोड़ना शुरू कर दिया था लेकिन निर्माणकर्ता समूह में आ गए थे। उन्होंने पहले हंगामेबाजी की और बाद में अवैध निर्माण को स्वयं तीन दिन में तोड़ लेने का आश्वसन दिया था। इस बात को भी आठ दिन से ज्यादा हो चुके हैं। अब तक अफसरों ने झांककर भी नहीं देखा।
क्या कहते हैं अफसर
क्यों नहीं तोड़ा...।
सात दिन का समय दिया था ताकि वह तोड़ ले।
सात नहीं तीन दिन का समय दिया था?
हां, तीन दिन का। जमीन का विवाद था।
निगम को जमीन देखना थी या निर्माण की अनुमति?
हां, निर्माण अवैध है।
आरोप है कि आपने बचाया है निर्माण?
नहीं, हम तोड़ेंगे।
कब, आठ दिन से ज्यादा तो हो गए?
एक-दो दिन में रिमुवल लगवाते हैं।
असित खरे, बिल्डिंग आॅफिसर

पार्टी ने उजागर किए बदनाम बिल्डरों के चेहरे

- विवादों से है जिनका गहरा नाता
भोपाल. विनोद शर्मा ।
कान्हा फन सिटी पार्क की रेव पार्टी में बार बालाओं के साथ रंग-रलियां मनाते हुए भोपाल के जिन धन्नासेठों को पुलिस ने पकड़ा है उनमें कई बदनाम बिल्डर भी शामिल हैं। फिर वह गृह निर्माण सहकारी की जमीन पर गैरवाजिब तरीके से टाउनशीप खड़ी करके गैर सदस्यों को प्लॉट-फ्लैट बेचने वाले नितिन अग्रवाल हों या फिर स्वयं को भरौसे का दूसरा नाम कहने वाली क्रेडाई की भोपाल इकाई के अध्यक्ष वासिक हुसैन खान। बदनामों की सूची में एक और बड़ा नाम है एलएनसीटी समूह के सर्वेसर्वा अनुपम चौकसे का जिनका दामन भी व्यापमं से दागदार है।
सोमवार देर रात उजागर हुई रेव पार्टी अपने किस्म की पहली पार्टी नहीं थी। बल्कि मुंबई से रशियन लड़कियां या डांसर बुलाकर भोपाल में अक्सर ऐसी पार्टी होती रहती है। यह बात अलग है कि आयोजन गोपनीय रखा जाता है। सिर्फ उन्हीं को सूचना रहती है जिन्हें आयोजकों द्वारा सुचिबद्ध करके सूचना दी जाती है। इस पार्टी की मेजबानी ज्यादातर बिल्डर या उनके माध्यम से होता है। जबकि मेहमान होते हैं नेता और ब्यूृरोक्रेट्स जिन्हें साधकर प्रोजेक्ट आसानी से मंजूर कराए जा सकें। बहरहाल, एक तरफ पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगालना शुरू कर दिए हैं जिनसे विशेष मेहमानों के चेहरे भी सार्वजनिक हो सकते हैं।
अफसर संकट में
पुलिस द्वारा सीसीटीवी फुटेज खंगाले जाने की बाद से सरकारी महकमों से जुड़े वे तमाम लोग परेशान हैं जो उस दिन रेव पार्टी का आनंद लेते रहे और छापा पड़ने से पहले ही निकल गए। इनमें नगर निगम भोपाल, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के अधिकारी, जिला प्रशासन के अधिकारी, पुलिस प्रशासन के अधिकारियों के साथ न्यायिक क्षेत्र से जुड़े कई चेहरे भी शामिल थे।
बदनाम बिल्डरों ने बढ़ाया दबाव
अपने रसूख के दम पर इन बदनाम बिल्डरों ने पुलिस पर दबाव बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। उनकी कोशिश यही रही कि पहले तो केस रफादफा हो जाए या उनके नाम हटा दिए जाएं। या मीडिया के सामने उनके नाम सार्वजनिक न किए जाए। इसके लिए उन्होंने कभी नेताओं के फोन लगवाए तो कभी अफसरों के।
धु्रवनारायण सिंह से नजदीकी या भागीदारी?
बदनाम बिल्डरों की फेहरिस्त में बड़ा नाम है वासिक हुसैन खान। यूं तो यह कॉन्फीडरेशन आॅफ रीयल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया (क्रेडाई) के भोपाल चेप्टर के डायरेक्टर व अध्यक्ष हैं। इसके अलावा किसी एक लिमिटेड फर्म में डायरेक्टर नहीं है। क्योंकि इनका सारा कामकाज पार्टनर्शीप पर टिका है। यह बात अलग है कि अपने भागीदारों मनीष वर्मा व मोटवानी के खिलाफ लगाए गए धोखाधड़ी के मामले में भी यह कोर्ट के पूछे जाने के बावजूद अपने पार्टनर के नाम सार्वजनिक नहीं कर पाए। या यूं कहें कि सार्वजनिक नहीं किए। पूर्व विधायक, वरिष्ठ भाजपा नेता और शहला मसूद हत्याकांड से सुर्खियों में आए धु्रवनारायण सिंह से नजदीकी इसकी बड़ी वजह है। सूत्रों की मानें तो वासिक उन्हीं जमीनों पर काम करता है जो सिंह या सिंह से जुड़े लोगों की हो। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि दोनों भागीदार हैं।
सर्वधर्म की जमीन गैरसदस्यों को बेच दी
वासिक की तरत रीयल एस्टेट से ही जुड़ा है नितिन अग्रवाल का नाम जो कि स्वदेश बिल्डर्स एंड डेवलपर्स के डायरेक्टर हैं। अग्रवाल ने कोलार में स्थित अध्यक्ष रियाज खान से सर्वधर्म गृह निर्माण सहकारी संस्था की 22.72 एकड़ जमीन खरीदी और टाउनशिप का काम शुरू कर दिया। मामले की शिकायत के बाद ईओडब्ल्यू ने 27 नवंबर 2014 को 30 लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया था। 8 जनवरी को  कोलार नगर पालिका के तत्कालीन सीएमओ राजेश श्रीवास्तव, तत्कालीन सब इंजीनियर विनोद त्रिपाठी, बिल्डर नितिन अग्रवाल पी. राजू के घर पर और स्वदेश बिल्डर्स एंड डेवलपर्स के दफ्तर पर की छापे की कार्रवाई की और महत्वपूर्ण फाइलें जब्त की। स्वदेश ने सर्वधर्म की जमीन पर 11 साल पहले विकसित करके बेच दी। आठ एकड़ पर तो बिल्डिंग बनाकर दी गई है। कुल 300 से अधिक फ्लैट और मकान बनाकर बेचे जबकि संस्था के वास्तविक सदस्य भूखंड पाने से वंचित रह गए। ये आज भी प्लाट के लिए भटक रहे हैं और सोसायटी की जमीन पर कालोनी तानकर बिल्डर प्नितिन अग्रवाल और पी.राजू ने पांच सौ करोड़ रुपए के आसामी बन गए। हालांकि केस दर्ज होने के बाद दोनों फरार भी रहे।
डीमेट घोटाले में लिप्तता से सुर्खियों में अनुपम
डीमेट फजीर्वाड़े में एलएन मेडिकल कॉलेज व जेके हॉस्पिटल के डायरेक्टर होने के साथ डीमेट के सचिव रहे अनुपम पिता जयनारायण चौकसे 19 अक्टूबर 2013 को गिरफ्तार हो चुके हैं। कोलार थाने में कुल डीमेट के तीन मामले दर्ज हुए थे। पुलिस की गिरफ्त में आए सुरेंद्र सिंह चौहान, रणवीर आनंद, आदित्य रवि ने करीब पद्रंह छात्रों को एलएन मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिलवाया था। न सिर्फ इन आरोपियों बल्कि चौकसे के व्यापमं घोटाले के मुख्य आरोपी डॉ. जगदीश सगर से भी अच्छे ताल्लुक बताए जाते हैं।
फिल्म प्रोड्यूसर नहीं अनुपम के फाइनेंसर है धर्मेंद्र
रेव पार्टी में पकड़ाए जिस धर्मेंद्र गुप्ता ने स्वयं को पुलिस के सामने फिल्म प्रोड्यूसर बताया है असल में वे अनुपम चौकसे के जे.के.हॉस्पिटल और एन मेडिकल कॉलेज में एक्जीक्यूटिव डायरेटर हैं। इसके साथ ही वे 1973 में मप्र सरकार के साथ पंजीबद्ध हुए एनजीओ स्कूल आॅफ ब्रोडकॉस्टिंग एंड कम्यूनिकेशन के भी एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं जिसका कार्यक्षेत्र अब मुंबई है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता महाविद्यालय से संबद्धता प्राप्त इस संस्था में पत्रकारिता सिखाई जाती है। इससे पहले वे श्री बालाजी इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्वास्तिक ग्रांड के पदाधिकारी रहे हैं। मुलत: ग्वालियर से है जहां का डॉ. सगर भी निवासी है। गुप्ता का काम है मुंबई से अनुपम के लिए वित्तीय व्यवस्था जुटाना। अब पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि फिर उन्हें धर्मेंद्र ने फिल्म प्रोड्यूसर किस बिनाह पर बताया। कौनसी फिल्में वह प्रोड्यूस कर चुका है। 

आज उज्जैन में महामंडेलश्वर बनेंगे इंदौर के महंत रामगोपालदास जी

उज्जैन से विनोद शर्मा ।
बचपन से ही ईश्वर को कॉलेज, भक्ति को शिक्षा और सेवा को ही दीक्षा मानते आए इंदौर के महंत रामगोपाल दास जी गुरुवार को गुुरुवर बनने जा रहे हैं। अखिल भारतीय पंच श्री रामानन्दीय दिगम्बर अनी अखाडा के ध्वज तले तकरीबन दो हजार संत-महंतों की मौजूदगी में पट्टाभिषेक करके उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाएगी। श्री रामगोपालदास जी  इंदौर के खातीपुरा (रीवर साइड रोड) स्थित श्री राम मंदिर के महंत हैं।
वृंदावन में शिक्षा-दीक्षा करके सन्यासी बने रामगोपालजी दस साल पहले पंचकुइया में स्थित लक्ष्मणदासजी महाराज के पास पहुंचे थे तब उन्होंने सोचा भी नहीं था सिंहस्थ 2016 उन्हें बड़ी सौगात दे जाएगा। पहाड़ी बाबा खालसा के पीठाध्यक्ष श्री राजेंद्र दास जी ने सेवा और समर्पण देखते हुए अपने शिष्य रामगोपालजी का नाम महामंडलेश्वर की उपाधि के लिए आगे बढ़ाया। बैशाख शुक्ल प्रदोष (त्रयोदषी) मंगलवार के पुन्य पुनीत अवसर पर पंच श्री रामानन्दीय दिगम्बर अनी अखाड़ा के चरणपादुकाजी  व श्री हनुमान जी के निशानों के सानिध्य में अंकपात चौराहा स्थित दिगम्बर अखाड़े में उनका पट्टाभिषेक होगा। गौरतलब है कि दो साल पहले राम मंदिर की जमीन को कब्जामुक्त कराने के लिए महंत जी ने काफी संघर्ष भी किया था।
गौ रक्षा को समर्पित रहेगा जीवन
23वर्ष की उम्र में सन्यास ले चुके श्री रामगोपाल जी ने बताया कि मैं अपने गुरू राजेंद्रदास जी की तरह अपना जीवन भी गौ रक्षा को समर्पित करूंगा। संत, समाज और गौ सेवा ही सर्वोपरी होगी।
बड़ी संख्या में संत रहेंगे मौजूद
 चित्रकूटस्थ श्रीतुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरू रामानन्दाचार्य श्री रामभद्राचार्य जी महाराज,श्री अग्रदेवाचार्य पीठाधीश्वर श्रीराघवाचार्य जी महाराज रैवासाधाम, श्री मलूकपीठाधीश्वर जगद्गुरु द्वाराचार्य श्री राजेन्द्रदेवाचार्य जी महाराज श्री आद्यवाराह पीठाधीश्वर श्री श्री रामप्रवेशदास जी महाराज श्री सूखानन्द पीठाधिश्वर जगदगुरु जी महाराज, इंदौर से लक्ष्मणदास महाराज, महामंडलेश्वर कम्प्यूटर बाबा सहित 2000 संत होंगे माजूद।
झनकारेश्वरदास बने जगदगुरू पीपा पीठाधीश्वर
अखाड़े में इसी खालसे के श्री मंगलपीठाधीश्वर टीलागाद्याचार्य श्री महंत श्री श्री १०८ श्री माधवाचार्य जी महाराज की अध्यक्षता में श्री झन्कारेश्वर दास (श्री त्यागी जी महाराज) को द्वाराचार्य जगद्गुरू पीपा पीठाधीश्वर बनाया गया। चांदी के सिंहासन पर पट्टाभिषिक्त कर छड़ी, छत्र, चंवर से अंलकृत  किया गया।
  

महाकाल मंदिर में फायर फाइटिंग घोटाला

- दो साल पहले जुटाए सुरक्षा उपकरण फायर आॅफिसर ने पहली नजर में नकारे, फिर दोबारा कराया काम
- अन्यथा मंदिर प्रशासन की लापरवाही लेती कई की जान
इंदौर. विनोद शर्मा ।
मंदिरों में होती आ रही आगजनी की घटनाओं से सबक लेते हुए सिंहस्थ 2016 की तैयारियों के तहत महाकाल मंदिर परिसर में फायर फाइटिंग की व्यवस्था की गई थी जो बहुत ही हल्के स्तर की थी। न मानक का मेल  था, न ही क्वालिटी का। सिंहस्थ शुरू होने से ठीक पहले भोपाल से भेजे गए फायर सेफ्टी आॅफिसर ने इसकी पोल खोल दी। उनकी रिपोर्ट के आधार पर 22 अपै्रल को हुए पहले शाही स्नान से चंद घंटे पहले पुरानी लाइन उखाड़कर गुपचुप तरीके से नई फायर लाइन डाल दी गई।
सिंहस्थ 2016 के नाम पर उज्जैन में बड़े पैमाने पर हेराफेरा हुई है जिसका ताजा और बड़ा उदाहरण उस महाकाल मंदिर का फायर फाइटिंग सिस्टम है जहां कुंभ के दौरान दर्शन के लिए करोड़ों लोगों की आवाजाही रही। 2009 में मंदिर परिसर में हुई आगजनी की घटना के बाद 2013-14 में सिंहस्थ की तैयारियों के तहत भोपाल की एक कंपनी ने मंदिर में हाइड्रेंट बेस्ड फायर फाइटिंग इक्यूपमेंट लगाया। दो साल तक इक्यूपमेंट यूं ही लगे रहे। किसी ने कुछ चेक नहीं किया। भुगतान जरूर कर दिया। इसी बीच 10 अपै्रल को केरल के पुत्तिंगल देवी मंदिर परिसर में आतिशबाजी के दौरान लगी भीषण आग से 110 लोगों की मौत होने और 350 से ज्यादा के घायल होने के बाद मप्र सरकार चेती। सिंहस्थ में ऐसी कोई घटना न हो? इसी सोच के साथ पुलिस हेडक्वार्टर (भोपाल) से डीएसपी अनिल यादव को विशेष फायर सेफ्टी आॅफिसर बनाकर उज्जैन पहुंचाया गया। यादव और नगर निगम, उज्जैन के इंजीनियर नागेंद्र सिंह भदौरिया ने मातहतों के साथ दौरा किया और पहली ही नजर में सिस्टम को खारिज कर दिया। इसके बाद मंदिर प्रशासन चेता और ताबड़तोड़ नए सिरे से काम कराया।
क्यों नकारा...
होना चाहिए था- हाईड्रेंट सिस्टम के लिए माइल्ड स्टील (एमएस) या गेलवेनाज्ड आयरन (जीआइ) पाइप डाली जाना चाहिए। ताकि लाइन ्रपे्रशर में जवाब न दे।
हुआ यह - अनप्लास्टिक्ज्ड पॉलीविनिलक्लोराइड (यूपीवीसी) की पाइप लाइन डाल दी।
होना चाहिए था-  नार्म्स के हिसाब से पाइप का डाया 100 एमएम (4 इंच) होना चाहिए। ताकि आपात स्थिति में कम वक्त में ज्यादा पानी मिले।
हुआ यह- हाइड्रेंट के लिए 63 एमएम (2.5 इंच) डाया की लाइन डाली गई जिसकी वजह से प्रेशर बहुत कम था जबकि परिसर व मंदिर की ऊंचाई ज्यादा है।
होना चाहिए था- हाइड्रेंट व पंपिंग आॅटोमेटिक हो। ताकि आपात स्थिति में हाइडेÑंट यूज  करते ही पंपिंग आॅटोमेटिक शुरू हो जाए।
हुआ यह- कुंड में 5 एचपी की मोटर डाली गई लेकिन सिस्टम मेन्युअल था। आग लगने की परिस्थिति में हाइड्रेंट इस्तेमाल करने से पहले एक आदमी को पंप चालू करने भेजना पड़ता।
ताबड़तोड़ हुआ बदलाव
16 अपै्रल को यादव और उनकी टीम ने इक्यूमेंट की नेगेटिव रिपोर्ट दी और उन्हें खारिज कर दिया। 17 अपै्रल को ताबड़तोड़ मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में फायर फाइटिंग के क्षेत्र में काम करने वाली इंदौर की एक कंपनी को बुलाकर नए सिरे से काम की जिम्मेदारी दी गई। काम शुरू हुआ 18 अपै्रल से खत्म हुआ 24 अपै्रल को जबकि महाकुंभ के पहले शाही स्नान की धूम 21 अपै्रल से ही शुरू हो गई थी। 22 अपै्रल को 2 लाख लोगों ने महाकाल दर्शन किए थे। कंपनी ने 400 फीट लाइन डाली और 40 से अधिक फायर एस्टिंग्यूशर भी लगाए।
क्यों जरूरी है सुरक्षा
सिंहस्थ 2016 के दौरान करोड़ों लोग महाकाल मंदिर पहुंचे। यूं भी यहां दिनभर में हजारों श्रृद्धालू दर्शन करते ही हैं। विपरीत परिस्थिति में बड़ी जनहानि की संभावना बनी रहती है। मंदिर के आसपास 100 मीटर तक निर्माण है इसीलिए फायर ब्रिगेड भी नहीं पहुंच सकती। एक मात्र उपाय हाइड्रेंट सिस्टम है। अब भी यहां हाइड्रेंट की संख्या पर्याप्त नहीं है। मंदिर प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है।
फिर कैसे हुई गड़बड़...
मंदिर प्रबंध समिति में प्रशासनिक अधिकारी हैं जिनका मूल काम ही मंदिर की गतिविधयों पर नजर रखना है। उनकी देखरेख के बावजूद कोई कंपनी हलका काम कैसे कर सकती है? यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है। उलटा, संभावना यही जताई जा रही है कि अधिकारियों ने कमीशन लेकर हलका काम करवाया और बिना लाइन टेस्ट किए ही भुगतान भी कर दिया।
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काम किस सरकारी एजेंसी के माध्यम से कराया गया है और कैसे हुआ था? इसके साथ ही कैसे नए सिरे से काम कराया गया? इस पूरे मामले की जांच करवाता हूं। इसके बाद ही कुछ कह पाऊंगा।
कवींद्र कियावत, कलेक्टर
उज्जैन

कुरियर की आड़ में हवाला करने वाले पांच आंगड़ियों पर आयकर का छापा

- दवा बाजार और श्रीवर्धन कॉम्पलेक्स में दबिश, डेढ़ करोड़ सीज, दर्जनभर से पूछताछ
इंदौर. चीफ रिपोर्टर ।
कुरियर के नाम पर इंदौर और गुजरात के बीच हवाले का कारोबार करने वाले पांच प्रतिष्ठानों के खिलाफ इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग ने छापेमार कार्रवाई की और करीब डेढ़ करोड़ रुपए बरामद किए। देर रात तक चली कार्रवाई के दौरान कई ऐसे लोग भी विंग के हाथ लगे जो अपना पैसा जमा करने आए थे या फिर लेने आए थे। इनसे भी पूछताछ की गई लेकिन कोई भी रकम का हिसाब नहीं दे पाया।
गोपनीय सूचना के आधार पर विंग ने आरएनटी मार्ग स्थित श्रीवर्धन कॉम्पलेक्स की चार और दवा बाजार की एक दुकान पर दबिश दी। श्रीवर्धन कॉम्पलेक्स में जहां राजीव कांतिलाल कुरियर कंपनी (पता- यूजी 11), एम. माधवलाल कंपनी (यूजी-22) राजेश जैन (सी-3) और आर. फाइनेंस एंड कुरियर कंपनी (यूजी-3) पर दबिश दी गई। यहां तीन प्रमाइसेस में रकम के साथ लोग भी पकड़े गए। वहीं सी-3 वाले राजेश जैन फरार हो गए। वहीं दवा बाजार में जिस प्रमाइसेस पर रेड हुई वह राजीव गुप्ता ‘मामा’ का है। इन पांचों जगह से डेढ़ करोड़ रुपए बरामद हुए हैं।
कड़ी पूछताछ
चूंकि कार्रवाई शाम 5 बजे हुई और देर रात तक चलती रही। इसीलिए जब तक लोगों को पता नहीं चला लोग अपना पैसा लेने और देने आते रहे। उन्हें विंग के अधिकारियों ने वहीं धर लिया और कड़ी पूछताछ की। किसी ने कहा खाना देने आए हैं तो किसी ने कहा कि प्यास लगी थी पानी पीने आ गया।
कुख्यात है श्रीवर्धन कॉम्पलेक्स
जिस श्रीवर्धन कॉम्पलेक्स में कार्रवाई हुई है वह हवाला कारोबार के लिए कुख्यात हो चुका है। 6 मई 2015 को धार पुलिस ने जेतपुरा से 47.50 लाख रुपए की हवाला रकम के साथ मेहसाणा निवासी अमृत पटेल और पाटण निवासी पिंकल पटेल को गिरफ्तार किया था। ये आंगड़िये अहमदाबाद की पटेल मणिलाल मगनलाल एंड संस आंगड़िया सर्विस के पास जा रहे थे जिनका क्षेत्रीय कार्यालय भी श्रीवर्धन कॉम्पलेक्स की दूसरी मंजिल पर था। दूसरी कंपनी पटेल दिनेशकुमार दशरथलाल जी का भी आॅफिस यहीं है। दोनों जगह नोटिस चस्पाए गए।
ऐसा है कैश कूरियर का कारोबार
- इंदौर में एक रजिस्टर के साथ आॅफिस खोला। जहां इंट्री होती है।
- नोट के नंबर से होता है केश ट्रांजेक्शन- जैसे किसी का पैसा इंदौर से अहमदाबाद पहुंचाना है तो रकम इंदौर में जमा होगी, ग्राहक को एक नोट का नंबर दे दिया जाता है। जो उस आदमी तक पहुंचाया जाता है जो अहमदाबाद में पैसे लेगा। जब वह अहमदाबाद आॅफिस में जाकर नोट नंबर बताएगा तो उसे टेली करके वहां बैठे लोग उसे पैसा दे देंगे।
- 80 फीसदी कारोबार ऐसे ही होता है। अहमदाबाद आॅफिस में जितना पैसा है उससे ज्यादा पहुंचाने का आॅर्डर मिलने पर ही आदमी के हाथों पैसा भेजा जाता है। वह भी सिर्फ अंतर राशि।
- इस राशि को जैकेट में ले जाते हैं। ले जाते वक्त बीच में बसें बदल-बदल कर जाते हैं ताकि पुलिस की निगाह न पड़े।
- जैसे बुकिंग यदि एक लाख रुपए की हुई है तो उसकी पर्ची ग्राहक को सिर्फ 1000 रुपए लिखकर ही दी जाती है। यानी बाकी 99 फीसदी गोलमाल।