Thursday, April 15, 2010

धनलक्ष्मी भी अवैध


इंदौर। सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की जिस जमीन के कारण उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला पर 100 करोड़ के हेरफेर के आरोप लग रहे हैं, उस पर बनी इमारत भी अवैध है। धनलक्ष्मी अपार्टमेंट विजयवर्गीय, मेंदोला के सहआरोपी विजय कोठारी और मनीष संघवी की धनलक्ष्मी केमिकल ने बनवाया है।

औद्योगिक उपयोग की जमीन पर बगैर टीएंडसीपी मंजूरी के निगम से नक्शा मंजूर कराकर निर्माण होने के कारण परदेशीपुरा चौराहे स्थित यह इमारत अवैध की श्रेणी में है। कोठारी और संघवी की कंपनी को यह जमीन उद्योग के लिए निगम से लीज पर मिली थी।

इसे बाद में नंदानगर सहकारी साख संस्था के अध्यक्ष रमेश मेंदोला को 1.38 करोड़ रूपए में बेच दिया गया। मामले में तत्कालीन मेयर विजयवर्गीय, मेंदोला, कोठारी एवं संघवी के खिलाफ लोकायुक्त जांच शुरू हो चुकी है।

चार बिल्डिंगों की मिली थी मंजूरी
तत्कालीन निगम इंजीनियर नित्यानंद जोशी और जीएम अवाशिया ने धनलक्ष्मी केमिकल्स के नक्शों को मंजूरी दी थी। अब दोनों रिटायर हो चुके हैं। मंजूरी चार अपार्टमेंट की थी। इसमें से एक 1991 में बन चुका था और दूसरे का काम जारी था।

क्यों अवैध है बिल्डिंग?
- निगम ने जमीन औद्योगिक उपयोग के लिए लीज पर दी थी। भू-उपयोग परिवर्तन के लिए निगम की मंजूरी ली जाना थी, जो नहीं ली गई।
- निगम के लीज दस्तावेजों में आज भी जमीन का भू-उपयोग औद्योगिक है।
- निगम की मंजूरी मिलने के बाद टीएंडसीपी को आवेदन किया जाना था। इसके बगैर सरकार की मंजूरी के भू-उपयोग परिवर्तन नहीं कर सकता।

रहते हैं 23 परिवार
अपार्टमेंट में कैलाश गांधी, सचिन जैन, धनपाल मेहता, रमेशचंद्र मेहता, रसीला बेन, जीवनलाल शाह, प्रेमसिंह पारिख समेत 23 परिवार रहते हैं। रहवासियों का कहना है हमने धनलक्ष्मी केमिकल्स से फ्लैट खरीदे हैं, जिसकी रजिस्ट्रियां हमारे पास है। नक्शों में गड़बड़ थी तो निगम को उस वक्त कार्रवाई करना थी, जब अवैध इमारत बन रही थी।

ढहाने गए थे अफसर
गैरकानूनी मंजूरी की जानकारी मिलते ही तत्कालीन निगम प्रशासक एसएस उप्पल ने 1991 में ही नगरीय प्रशासन प्रमुख सचिव को जानकारी देकर इसे जमींदोज करने की अनुमति मांगी। अनुमति मिलते ही रिमूवल दस्ते के साथ उप्पल भी मौके पर पहुंचे, लेकिन अचानक कार्रवाई टल गई। इस घटनाक्रम के बाद ही बाकी तीन बिल्डिंगें नहीं बन सकीं।

"सौ करोड़" की फाइल खुली
सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की सौ करोड़ रू. कीमत वाली जमीन की गड़बड़ी के मामले में लोकायुक्त अफसर थोड़ी हरकत में दिख रहे हैं। बुधवार को आंबेडकर जयंती की छुट्टी के बावजूद अफसर जांच करते रहे। तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय, रमेश मेंदोला, धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार विजय कोठारी और मनीष संघवी की भूमिका की जांच की जा रही है। इसमें तत्कालीन निगमायुक्त व एमआईसी सदस्य भी घेरे में हैं।

मंगलवार को राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने कोर्ट में कहा था कि नगरीय प्रशासन प्रमुख सचिव से जानकारी नहीं मिलने के कारण जांच नहीं हो सकी। इस पर कोर्ट ने लोकायुक्त को जांच सौंपी थी। मंगलवार को ही लोकायुक्त पीपी नावेलकर ने जांच शुरू करने के निर्देश भी दिए थे।

उधर, जांच शुरू होते ही घोटाले से जुड़े लोगों में खलबली मची हुई है। धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज द्वारा रमेश मेंदोला की नंदानगर साख सहकारी संस्था को 3 एकड़ लीज की जमीन 1.38 करोड़ रू. में बेचने और इसकी अनुमति देने वाली एमआईसी में सदस्य कौन-कौन थे? इसे लेकर अब तत्कालीन सदस्यों में भी खलबली है।

Tuesday, April 13, 2010

शीशे की गिरफ्त


शीशा यानी हुक्के का नया धंधा इंदौर में खुल्लम-खुल्ला चल रहा है। स्कूली बच्चे इस जहर की चपेट में है। संभवत: हफ्ता तय हो जाने के कारण पुलिस-प्रशासन अश्लीलता के अड्डों के तौर पर फल-फूल रहे इन शीशा लाउंज पर मेहराबानी बनाए हुए हैं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज की एक ताजा स्टडी में भी इस नशे को समाज व युवाओं के लिए भयंकर खतरा बताया है। अनाधिकृत तौर पर शहर में 144 शीशा लाउंज चल रहे हैं।
अश्लीलता के अवैध अड्डे
अमेरिका, यूएई, दुबई और फ्रांस जैसे देशों में प्रतिबंधित हो चुके शीशा यानी हुक्का इंदौर में भयंकर तरह से चलन में आ चुका है। यह हुक्का आलीशान ठिकानों पर बगैर लाइसेंस खुलेआम परोसा जा रहा है। हुक्का निशाना स्कूली छात्र-छात्राएं हैं, जो स्कूल से तड़ी मारकर न सिर्फ ïधुएं के छल्ले उड़ा रहे हैं, बल्कि अश्लील हरकतों में भी रम जाते हैं। चांदी काटने का इस धंधे से पुलिस-प्रशासन बेखबर है। आबकारी विभाग व नगरनिगम ने भी नशे के इन ठिकानों को लाइसेंस जारी नहीं किया है।

मोटा मुनाफा
शीशा के एक फ्लेवर पेक की कीमत 25 से 65 रुपए होती है। इससे कम से कम पांच हुक्के तैयार होते हैं और हर एक की कीमत 200 से 700 रुपए तक होती है। साफ है लाउंज मालिक एक फ्लेवर पैकेट से ही एक से साढ़े तीन हजार रुपए की कमाई करते हैं।

विदेशों में बेन
विदेशों में इस नशे को बेन किया गया है। वहां एंटी ड्रग्स कानून के तहत कार्रवाई की जाती है। वैसे तो भारत में तंबाकू नियंत्रण के लिए कई कानून बन चुके हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं होती।

तंबाकूयुक्त है शीशा

मैलेशिश (शीरा) के साथ टेबोनल या मसाल या जर्क के साथ गर्म होने पर शीशा तैयार होता है। टेबोनल, जर्क और मसाल निकोटीन व तंबाकुयुक्त पदार्थ हैं।


सीन 1
बाहों में बाहें डालकर हुक्केबाजी

बॉम्बे हॉस्पिटल के सामने होटल मंगल रिजेंसी का प्योरिटी शीशा लाउंज। सीढिय़ों पर ही तीन लड़कियां खड़ी थीं। अंदर पहुंचे तो पूरा अंधेरा था। बड़ी स्क्रीन पर अश्लील गाने चल रहे हैं। सामने दो लड़के हुक्का गुडग़ुड़ा रहे थे। दाईं ओर के कमरेनुमा केबिन में एक युगल था। दूसरे केबिन में तीन लड़कियां और दो लड़के थे। सभी बाहों में बाहें डालकर हुक्का खींच रहे थे। लांच कर्मचारी उन्हें कभी नाश्ते की प्लेट देता तो कभी उनके हुक्के में कोयला डालता। यहां शीशा पीना अनिवार्य है। किसी कारण से आप शीशा नहीं पीते तो एक घंटे में कम से कम दो सौ रुपए की बिलिंग जरूरी है। शीशा पीने से इन्कार किया तो उन्होंने नाश्ता दे दिया। नाश्ते का बिल डेढ़ सौ रुपए था, लेकिन जोड़ा गया 200 रुपए।

सीन 2
बंदूकधारी गार्ड तैनात

मंगल सिटी का द शीशा लïाउंज। दरवाजे पर बंदूकधारी सुरक्षाकर्मी। अंदर शीशा लगाते दो कर्मचारी। सामने के सोफे पर तीन लड़के बैठे थे। उनके बगल वाले केबिन में दो लड़कियां और एक लड़का बैठे थे। चौकड़ी टी-शर्ट वाली लड़की को छोड़कर दोनों आमने-सामने बैठकर लंबे कश के साथ हुक्के का धुआं उड़ा रहे थे। बीच-बीच में लड़का चौकड़ी वाली लड़की के मुंह पर धुआं उड़ा रहा था। सामने वाली लड़की आदतन नशेडिय़ों की तरह धुएं के छल्ले बना रही थी। तीनों दो घंटे तक हुक्का गुडग़ुड़ाते रहे। लड़का-लड़की के बीच इस दौरान अंतरंग प्रेमी-प्रेमिका की तरह की हरकतें भी होती हैं।

सीन 3
नाम कैफे, कॉफी नहीं मिलती

बीसीएम हाईट्स में ब्लू रॉक्स कैफे लाउंज। अंदर पहुंचे तो देखा बीच में तीन लड़के हवा में धुआं छोड़ रहा है। लांज का नाम कैफे है, परंतु यहां कॉफी नहीं मिलती। नाश्ते का पूछा तो बोले जनाब यहां सिर्फ शीशा चलता है। शीशा ही पीना पड़ा। इसी दौरान कुछ और लड़के-लडि़कयां आए। इनके साथ स्कूल बैग भी थे।

सीन 4
कम नहीं पड़ी लड़की

आनंद बाजार स्थित फ्यूम्स शीशा में शुक्रवार रात 9.10 बजे कोने वाले केबिन में एक लड़की अपने ब्वाय फ्रेंड के साथ थी। पूरे हाल में धुआं हो रहा था। लड़की लड़के को फोर्स कर रही थी कि खींचो ना। लड़की भी लंबे कश मार रही थी।

सीन 5
सुलग रहे थे कोयले

आनंद बाजार में बाउंस लाउंज में अंदर पहुंचते ही चार-पांच लड़कें धूआं उड़ाते नजर आ रहे थे। आसपास के कैबिन खाली थे। लॉन्ज कर्मचारी लड़कों के हुक्के में कभी फ्लेवर डाल रहा था तो कभी कोयला।


सामान्य लाइसेंस से धंधा

युवाओं को आकर्षित करने वाले शीशे का धंधा नगर निगम के सामान्य गुमाश्ता लाइसेंस के आधार पर चल रहा है। शासन और प्रशासन के पास न तो इस धंधे के संबंध में ïकोई गाइड लाइन तय है और न ही इसकी निगरानी का इंतजाम।


लड़कियों को भांग-शराब का चस्का
लाउंज में आने वाली लड़कियों को रोज मिंट, कच्ची केरी, आरपीएम (रॉयल पान मसाला), स्ट्रॉबेरी फ्लेवर ज्यादा पसंद आते हैं। कुछ रम, विस्की और डबल एप्पल फ्लेवर भी पसंद करती हैं। कई बार बेस में पानी की जगह शराब और शीशा फ्लेवर में भांग की गोलियां डलवाती हैं।

दो दर्जन से ज्यादा फ्लेवर

नाश, वनीला, नारियल, गुलाब, जैसमीन, शहद, आम, स्ट्रॉबेरी, तरबूज, पुदीना, मिंट, चेरी, नारंगी, रसभरी, सेब, एप्रीकोट, चॉकलेट, मुलेठी, कॉफी, अंगुर, पीच, कोला, बबलगम, पाइनापल, बनारसी पान, पान सालसा, पान रसना, पान मघई, कोला, रूहाबजा, अनार, जेस्मीन, नींबू और सेक्सी सुपारी जैसे दो दर्जन से अधिक फ्लेवर का हुक्का लाउंज पर मिलता है।


हम नहीं देते लाइसेंस

हमने इंदौर में एक भी शीशा लॉन्ज का लाइसेंस जारी नहीं किया है। हो सकता है नगर निगम ने किए हों।

विनोद रघुवंशी, आबकारी अधिकारी

शीशा लाउंज को नगरनिगम की ओर से कोई विशेष लाइसेंस जारी नहीं किया है।

एमपीएस अरोरा, मार्केट अधिकारी, नगरनिगम
इनके लाइसेंस की स्थिति देखना पड़ेगी। सूची तैयार करवाकर कार्रवाई शुरू करेंगे।

डी. श्रीनिवास राव, एसएसपी, इंदौर
शीशा लाउंज के कानूनी पहलूओं का राज्य स्तर पर अध्ययन किया जा रहा है। शीघ्र ही इनके विरूद्ध कार्रवाई करने की व्यापक रणनीति बनाई जाएगी।

डॉ. बीएम श्रीवास्तव, स्टेट नोडल अधिकारी, तंबाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ
विनोद
प्रमुख शीशा लाउंज
एबी रोड : स्पाइडर (एलआईजी), लॉ-कैफे (उत्तमभोग के बगल में), द शीशा लॉन्ज (मंगल सिटी)
बॉम्बे हॉस्पिटल के पास : बॉट्म्स स्वीप (ऑर्बिट मॉल) ब्ल्यू रॉक्स कैफे (बीसीएम), प्योरिटी शीशा (मंगल रिजेंसी), ग्योरिटी बार एंड शीशा (मंगल रिजेंसी), न्यू स्पाइडर (रॉयल प्लेटिनम)
वेलोसिटी टॉकिज : ऑन द रॉक्स
आनंद बाजार : फ्लूम्स शीशा और बाउंस कैफे
एमजी रोड : मिस्टर बिन्स, फ्लेवर्स, जूम कैफे
रसोमा चौराहा : ऑलिव गार्डन
खंडवा रोड : रिच गार्डन, क्लोरोफिल

मेंदोला को सौ करोड़ की भूमि



इंदौर। सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की जिस तीन एकड़ जमीन में लोकायुक्त जांच के आदेश हुए हैं, उसकी कीमत 100 करोड़ है। धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज ने यह जमीन रमेश मेंदोला की नंदानगर साख सहकारी संस्था को महज 1.38 करोड़ रूपए में बेचा था। इस सौदे में तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय पर महापौर परिषद (एमआईसी) के रास्ते मदद का आरोप है।

धनलक्ष्मी के भागीदार विजय नगीन कोठारी और मनीष रमणीकभाई संघवी थे, जिन्होंने पहले सरकार से 2400 रूपए साल की लीज पर जमीन ली और बाद में मेंदोला से सौदा किया। इसी कारण से चारों के खिलाफ कोर्ट ने लोकायुक्त जांच के आदेश दिए हैं। यह बात पूर्व मंत्री व परिवादी सुरेश सेठ ने शनिवार को मीडिया से कही। उनके एडवोकेट राजेंद्र शर्मा ने पुष्टि के लिए दस्तावेज भी उपलब्ध करवाए, जिससे कई तथ्य उजागर होते हैं।

गड़बड़ी की कड़ी दर कड़ी
कड़ी 1
13 नवंबर 1980 को आवास एवं पर्यावरण मंत्री रहते हुए सुरेश सेठ ने सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की शासन की लीज की आठ में से तीन एकड़ जमीन धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज को 30 साल के उपयोग के लिए 2400 रूपए वार्षिक लीज पर दी।

कड़ी 2
तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की परिषद बनते ही 10 हजार वर्गफीट जमीन पर धनलक्ष्मी केमिकल ने मल्टी तान दी।

कड़ी 3
6 अक्टूबर 2004 को एमआईसी ने जमीन को रमेश मेंदोला की नंदानगर साख सहकारी संस्था को बेचने की अनुमति दी।

कड़ी 4
जुलाई 2007 में नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के उपसचिव नरेश पाल ने निगमायुक्त को कई बिंदुओं पर आपत्तियां जताते हुए नंदानगर संस्था को जमीन देने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।

अब उठ रहे ये पांच सवाल*
सरकार ने जमीन हस्तांतरण की अनुमति नहीं दी, इसलिए अभी संस्था का कब्जा कानूनी नहीं है। क्या सरकार अतिक्रमण हटाएगी?
* क्या लोकायुक्त तय समय 6 जुलाई 10 तक रिपोर्ट पेश कर पाएगी?
* निगमायुक्त समेत जिस-जिस अफसर ने मामले को दबाए रखा, क्या उनके खिलाफ सरकार कोई त्वरित कार्रवाई करेगी?
* धनलक्ष्मी संचालकों से क्या वसूली की कार्रवाई होगी?
* कॉलेज समेत समस्त आठ एकड़ जमीन की लीज 13 नवंबर 2010 को समाप्त होगी। क्या सरकार इसके बाद इसे अपने हाथ में लेगी?

घपला क्यों?
लीज की जमीन को कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी को बेच नहीं सकती। अत: एमआईसी की मंजूरी और धनलक्ष्मी केमिकल द्वारा सौदा किया जाना अवैध था।

कैलाश सेे मांगा इस्तीफा"
मुख्यमंत्री बताएं सिंहस्थ, पेंशन, इंदौर नवरतन बाग भूमि घोटाले सहित अन्य मामलों में कदाचरण मामला सिद्ध होने के बाद भी विजयवर्गीय को संरक्षण क्यों दिया जा रहा है। उनसे इस्तीफा लेना चाहिए।"
- केके मिश्रा, प्रवक्ता, प्रदेश कांग्रेस

भाजपा ने कहा जांच होने दो
"मामला न्यायालय का है। जल्द ही दूध का दूध-पानी का पानी हो जाएगा। संगठन स्तर पर इस मामले में कोई बात नहीं हुई। इसलिए अभी इस पर कुछ नहीं कह सकते।"
- नरेंद्र सिंह तोमर, प्रदेश अध्यक्ष भाजपा

"मेरे महापौर पद के कार्यकाल में सिर्फ नामांतरण की कार्रवाई हुई है। निर्णय निगम परिषद का था। मुझ पर और भी आरोप लगे हैं। कोर्ट ने जांच का आदेश दिया है। अब जांच हो जाने दीजिए। इसके बाद ही कुछ कह सकेंगे। "
- कैलाश विजयवर्गीय, उद्योग मंत्री

उक्त सौदे पर सहमति कांग्रेस के शासनकाल में ही पक्ष-विपक्ष के समक्ष दी गई। इसके लिए निगम ने बाकायदा अनुमति दी जिसके प्रमाण हैं। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से भी अनुमति ली गई।
- रमेश मेंदोला, विधायक

कैलाश ही नहीं, कमिश्नर भी घेरे में



इंदौर। सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की लीज की करोड़ों की भूमि की गड़बड़ी में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, विधायक रमेश मेंदोला व धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार विजय कोठारी और मनीष संघवी के खिलाफ मामले का भंडाफोड़ होने के बाद 2002 से अब तक रहे निगम कमिश्नर भी संदेह के घेरे में आ गए हैं। इतनी बड़ी गड़बड़ी हुई, शिकायतें भी हुई, लेकिन वे आंखें मूंदे रहे। कानूनविदों के मुताबिक, इस दौरान पदस्थ रहे कमिश्नर भी बच नहीं सकते।

कोर्ट ने लोकायुक्त को आदेश दिया है कि 90 दिन (6 जुलाई तक) में जांच प्रतिवेदन पेश करें और संबंधितों के दोषी पाए जाने पर धोखाधड़ी की धाराओं में केस दर्ज करें। इसके चलते फाइलें खंगालना शुरू हो गया है। परिवादी व पूर्व मंत्री सुरेश सेठ का दावा है कि उनके बताए महत्वपूर्ण पांच सूबतों की जांच से मामले का पटाक्षेप हो जाएगा।

सेठ का दावा : इन पांच बिंदुओं की जांच हो तो सुलझे मामला
संस्था अध्यक्ष रमेश मेंदोला ने लीज की जमीन की निगम व टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से अनुमति की बात कही है। सेठ व एक्सपर्टो का मत है कि लीज की जमीन बेची-खरीदी ही नहीं जा सकती। ऎसे में तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की परिषद ने अनुमति कैसे दी?

जब 2004 में उप सचिव ने गंभीर खामियां पाकर जमीन को धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज द्वारा नंदानगर संस्था (मेंदोला) को बेचने की अनुमति नहीं देकर शून्य घोषित किया, तो कमिश्नर क्या करते रहे?

जमीन 2002 में 1.38 करोड़ रू. बेची गई। तब सेठ ने लगभग हर कमिश्नरको शिकायत की, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। इस दौरान रहे कमिश्नर नीतेश व्यास, सीबी सिंह, आकाश त्रिपाठी, पी. नरहरि, विनोद शर्मा, नीरज मंडलोई और फिर अब सीबी सिंह की भूमिका पर सवाल उठे हैं। सेठ ने तो हाल ही में सीबी सिंह से फिर शिकायत की थी। लीज की भूमि का उपयोग कैसे बदला?

जब उक्त जमीन पर सहकार के आधार पर स्कूल-कॉलेज निर्माण की महत्वाकांक्षा थी, तो योजनाओं का प्रस्ताव सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया, जबकि यह हजारों छात्र-छात्राओं से जुड़ा मामला था।

मेयर इन काउंसिल के पत्र (22 सितंबर 04) में मेंदोला के नाम तीन एकड़ भूमि का नामांतरण स्वीकार एवं आगामी 30 वर्ष यानी 13 नवंबर 2010 के बाद 30 वर्ष के लिए नाममात्र लीज पर मंजूर हुआ, लेकिन इसमें राज्य सरकार की तो स्वीकृति थी ही नहीं।

कस रहा शिकंजा



इंदौर। सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की करीब 100 करोड़ की तीन एकड़ जमीन के मामले में विशेष न्यायाधीश ने राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) को जांच से जुड़ी जानकारी की रिपोर्ट तत्काल पेश करने के आदेश दिए हैं। जानकारी मांगने से ब्यूरो में खलबली है। अफसर फाइलें खंगालने में लगे हैं। मंगलवार को रिपोर्ट पेश होगी।

इस बीच लोकायुक्त ने आवेदन कोर्ट में पेश किया, जिसमें लिखा कि मामले की जांच पहले ईओडब्ल्यू ने की थी तो उससे स्थिति स्पष्ट कर ली जाए कि कार्रवाई हुई, लंबित है या मामला खारिज हो गया। इस पर विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने सुनवाई की। ईओडब्ल्यू के विशेष लोक अभियोजक अश्लेष शर्मा ने बताया कोर्ट ने एसपी महेंद्रसिंह सिकरवार को पत्र लिखकर जानकारी मांगी है।

अगर ब्यूरो ने कार्रवाई की है या लंबित है अथवा जैसी भी स्थिति है, उसे लेकर तत्काल रिपोर्ट पेश करें। रिपोर्ट मंगलवार को पेश की जाएगी। गौरतलब है पिछले दिनों कोर्ट ने उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय, विधायक रमेश मेंदोला, मे. धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार विजय कोठारी और मनीष संघवी के खिलाफ लोकायुक्त को जांच कर रिपोर्ट 90 दिन में पेश करने का कहा था। यह भी हवाला दिया गया था कि दोष साबित होता है तो धोखाधड़ी की विभिन्न धाराओं में केस भी दर्ज करें।

अवर सचिव ने भी ली थी आपत्ति
अवर सचिव ने 14 सितंबर 2009 को निगमायुक्त को पत्र लिखकर स्पष्ट कहा था कि लीज की भूमि को धनलक्ष्मी केमिकल को आवंटित करने के बारे में शासन की अनुमति और निगम के बीच हुए अनुबंध में यह शर्त नहीं थी कि धनलक्ष्मी इंडस्ट्रीज लीज पर आवंटित भूमि या उसके अधिकारों का विक्रय करने को स्वतंत्र रहेगी।

यदि धनलक्ष्मी लीज को आगे जारी नहीं रखना चाहती थी तो उसे नियमानुसार निगम को वापस करना चाहिए था। अवर सचिव ने एक पत्र में निगमायुक्त को यह भी लिखा था कि उक्त जमीन निगम को सौंपे बिना नंदानगर साख सहकारी संस्था को बिना टेंडर बुलाए कैसे बेच दी गई?

जांच की हकीकत
आखिर ईओडब्ल्यू में कब शिकायत की गई थी? क्या इसमें जांच शुरू हुई? क्या दबाव के चलते मामला दबा दिया गया? ऎसे कई सवाल अब भी अनसुलझे हैं। जानकारी के मुताबिक 27 फरवरी 2009 को मामले में परिवादी सुरेश सेठ ने शिकायत सिर्फ ईओडब्ल्यू की इंदौर विंग को ही नहीं, बल्कि आईजी (भोपाल) को भी की थी यानी एक साल से ज्यादा समय हो गया, लेकिन ब्यूरो में मामला ठंडे बस्ते में रहा।

तारीख-पर-तारीख

शिकायतों की फेहरिस्त
*17 मई 07 को आवास एवं पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया को।
*1 मई 08 को निगमायुक्त नीरज मंडलोई को।
*6 अक्टूबर 08 को फिर निगमायुक्त नीरज मंडलोई को।
*12 फरवरी 09 को निगमायुक्त सीबी सिंह को।
*2 मार्च 2009 को इन्हें डिमांड ऑफ जस्टिस का नोटिस

1. मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन
2. गृह सचिव
3. पुलिस महानिदेशक
4. आईजी (ईओडब्ल्यू, भोपाल)
5. डीआईजी, 6. आईजी
7. एसपी
8. कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी
9. एसपी, ईओडब्ल्यू, इंदौर


17 जून 09 को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से शिकायत।
शिकायतों की फेहरिस्त पर सुनवाई न होने पर मार्च 2010 में कोर्ट की शरण। कोर्ट से लोकायुक्त को कैलाश विजयवर्गीय, रमेश मेंदोला, विजय कोठारी और मनीष संघवी की भूमिका को लेकर जांच के आदेश।

नगर निगम भी हरकत में, सौंपेगा सरकार को रिपोर्ट, खंगाली फाइलें
करोड़ों के घपले में नगर निगम विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपेगा। इसमें निगम जमीन को लेकर अब तक अलग-अलग कार्रवाई और मौजूदा स्थिति का ब्योरा होगा।

यह काम लीज शाखा और विधि विभाग के अफसरों को सौंपा गया है, जिन्होंने करीब 100-100 पेज की दो बड़ी फाइलें ढूंढ़ निकाली हैं। इसमें 1940 में हिम्मतलाल एंड संस को दी गई लीज से लेकर 2002 में धनलक्ष्मी और नंदानगर साख संस्था के बीच करार के दस्तावेज हैं।

निगम की चिंता लोकायुक्त जांच को लेकर भी है जिसमें अफसरों से पूछताछ के आसार हैं। कमिश्नर के अलावा 1980 में मास्टर प्लान के बाद पहला अनुबंध करने वाले सिटी इंजीनियर से 2002 तक पदस्थ इंजीनियरों से भी जांच एजेंसी जानकारी मांग सकती है।

रिपोर्ट इसलिए भी लंबी-चौड़ी बनाई जा रही है ताकि वक्त आने पर जवाब पेश किया जा सके। रिपोर्ट सरकार के पास भेजने के बाद वहां से भी कोई निर्णय हो सकता है, क्योंकि मामला कबीना मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला से जुड़ा है।

नंदानगर संस्था ने लिखी थी चिट्ठी
मार्च में नंदानगर साख संस्था ने निगम को चिट्ठी लिखकर पूछा था कि उनके व धनलक्ष्मी केमिकल के बीच जमीन हस्तांतरण के मामले में क्या हुआ है। इस पर निगम ने जवाब दिया था कि मामला सरकार के स्तर पर विचाराधीन है।

- कोर्ट के आदेश पर देख रहे हैं कि हमारी भूमिका क्या होगी। रिपोर्ट भी तैयार कर रहे हैं जो सरकार को भेजी जाएगी। इसमें जमीन से जुड़ा हर बिंदु शामिल रहेगा। विधि विशेषज्ञों से भी सलाह ली जा रही है। फिलहाल हस्तांतरण का मामला सरकार के पास लंबित है।
-सीबी सिंह, कमिश्नर

चिंता नहीं मिल रहे कागजों की
बताते हैं अफसरों की चिंता कुछ चिट्ठी व अनुबंध पत्रों को लेकर है, जो फाइलों में नहीं मिल रहे। लिहाजा, फिलहाल उपलब्ध दस्तावेजों पर ही रिपोर्ट बनाई जा रही है। रिपोर्ट में निगम लीज अनुबंध को लेकर 1940, 1977, 1980, 2002 में हुए अलग-अलग मामलों का ब्योरा देगा। यह भी बताया जाएगा कि जमीन का हस्तांतरण दो-तीन मर्तबा हो चुका है और हर बार अनुबंध के मुताबिक ही कार्रवाई की गई।

इस्तीफा दें विजयवर्गीय



भोपाल। कांग्रेस ने इंदौर के मिल क्षेत्र मेंकरोड़ों रूपए के जमीन घोटाले के मामले में राज्य के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से इस्तीफे की मांग की है। इंदौर की जिला अदालत ने पूर्व मंत्री सुरेश सेठ की याचिका पर विजयवर्गीय, भाजपा विधायक रमेश मेंदोला और तीन अन्य के खिलाफ लोकायुक्त को जांच कर तीन महीने में रिपोर्ट देने के आदेश दिए हैं।

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने शनिवार को बयान जारी कर सवाल उठाया कि मुख्यमंत्री यह बताएं कि सिंहस्थ घोटाले, पेंशन घोटाले, इंदौर के नवरतन बाग भूमि घोटाले सहित कई आर्थिक मामलों में कदाचरण का मामला सिद्ध होने के बाद भी विजयवर्गीय को निरंतर संरक्षण क्यों दिया जा रहा है। जबकि उनके विरूद्घ लोकायुक्त एवं इओडब्ल्यू में भी प्रकरण दर्ज हैं। उन्होंने कहा कि विजयवर्गीय से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा ले लेना चाहिए।

"निगम परिषद का था निर्णय"
लोकायुक्त जांच के कोर्ट के आदेश पर उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने शनिवार को यहां कहा कि इस प्रकरण में उनके महापौर पद के कार्यकाल में सिर्फ नामान्तरण की कार्रवाई हुई है। यह निर्णय निगम परिषद का था। जांच के बाद सब स्पष्ट हो जाएगा। विजयवर्गीय ने कहा कि उन पर और भी आरोप लगे हैं। कोर्ट ने जांच का आदेश दिया है। जांच हो जाने दीजिए। इसके बाद ही कुछ कह सकेंगे। वे राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के बुलावे पर संगठन से जुड़े मसलों पर चर्चा के लिए पार्टी मुख्यालय पहुंचे थे।

न्यायालय ने जांच के आदेश दिए हैं। जल्द ही दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। संगठन स्तर पर इस मामले में कोई बात नहीं हुई है।
-नरेन्द्र सिंह तोमर, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष

निजी हाथों में सुगनीदेवी कॉलेज!


इंदौर। सुगनी देवी कॉलेज पर एक बार फिर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी कॉलेज को सालाना पैसा देने के साथ हर तरह की जिम्मेदारी से हाथ खींचने की तैयारी में है। कार्य परिषद की अगली बैठक में भी इस पर विचार-विमर्श किया जाएगा। चर्चा कॉलेज को निजी हाथों में सौंपे जाने की है।

पिछले आठ साल से कॉलेज का संचालन यूनिवर्सिटी द्वारा किया जा रहा है। इसके लिए हर साल लगभग 14 लाख रूपए यूनिवर्सिटी और इतनी ही राशि शासन द्वारा दी जाती है। कुछ पैसा सेल्फ फायनेंस कोर्सेüस से आने वाली फीस से आता है। शुरू से ही घाटे का सौदा मानकर यूनिवर्सिटी ने इसमें रूचि नहीं ली। परिणामस्वरूप आठ साल में भी कॉलेज खुद का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं है। साल में दी जाने वाली मोटी रकम अब यूनिवर्सिटी को अखरने लगी है। हालत यह है कि आधा जनवरी खत्म होने के बाद भी फैकल्टी के वेतन की राशि जारी नहीं की गई। यूनिवर्सिटी प्रशासन इस मामले पर बोलने को तैयार नहीं है। हालांकि दबी जुबान से यह जरूर कहा जा रहा है कि आखिर कॉलेज को पैसा कब तक दें?

भाजपा नेता की निगाह

इस बीच मिल क्षेत्र के कद्दावर भाजपा नेता इसे लेने में रूचि दिखा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार पार्टी में गहरी पैठ रखने वाले भाजपा नेता के दो समर्थक पिछले दिनों कुलपति डॉ. अजीतसिंह सेहरावत से भी इस मामले को लेकर मिल चुके हंै। यदि कोई बड़ा रोड़ा नहीं आता है तो यह कॉलेज जल्द ही निजी हाथों में चला जाएगा। 2010 में ही जमीन की लीज का नवीनीकरण किया जाना है। इसी दौरान स्थानांतरण की कार्रवाई भी संभावित है।

बढ़ेगा आर्थिक बोझ
शासन से अनुदान होने के कारण यहां फीस ज्यादा नहीं है। निजी हाथों में कॉलेज जाने के बाद प्रबंधन मनमानी फीस वसूलेगा, जिससे गरीब विद्यार्थियों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा।

ये है इतिहास
कपड़ा मिलों के मजदूरों की बेटियों को उच्च शिक्षा देने के लिए हुकमचंद मिल के कैलाश अग्रवाल ने कॉलेज खोलने का सपना देखा। निगम से 99 साल की लीज पर जमीन लेकर 1982 में कॉलेज स्थापित किया गया। मिल के बंद होने पर अग्रवाल ने इसे चलाने से मना कर दिया। शासन को भी इस संबंध में अवगत कराया गया। 2003 में देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी ने छात्राओं के भविष्य को ध्यान में रखकर इसे गोद ले लिया। शासन को साक्षी मानते हुए यूनिवर्सिटी और अग्रवाल ग्रुप के ओंकार चेरेटी ट्रस्ट के बीच एक एमओयू साइन हुआ। शासन ने भी अनुदान राशि देने की घोषणा कर दी।

- कार्य परिष्ाद की अगली बैठक में सुगनी देवी को दिए जाने वाली राशि पर चर्चा की जाएगी। पैसा देने की भी हमारी अपनी सीमा है। इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता।
डॉ. अजीतसिंह सेहरावत, कुलपति

Monday, April 12, 2010

अफसर-रसूखदार बने हिस्सेदार


इंदौर। पुलिस प्रशासन जिन भू-माफियाओं के खिलाफ अब शिकंजा कस रहा है, कभी उनकी ही दागी गृह निर्माण संस्थाओं से महकमे के कई अघिकारियों ने जमीनें खरीदी थीं। सीलिंग से प्रभावित आधी से अधिक इन जमीनों के खरीदारों में आधा दर्जन से अधिक पुलिस अघिकारी और रसूखदार लोग शामिल हैं। इस खुलासे से यह संकेत तो मिलता ही है कि जमीन के नाम पर ठगी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई सालों क्यों अटकी रही।

सीलिंग प्रभावित जमीन भी बेची
मजदूर पंचायत गृह निर्माण सहकारी संस्था की हालत भी ऎसी ही है। खसरा नं. 152 (रकबा 1.7 हेक्टेयर यानी 1.82 लाख वर्गफीट) जमीन सीलिंग प्रभावित होने के बाद भी संस्था के नाम है। वहीं खसरा नं. 167 को चार हिस्सों में बांटकर 5000 से 20,000 वर्गफीट तक प्लॉटों की गैर सदस्यों के नाम रजिस्ट्री कर दी गई। इसमें 167/1/1 (रकबा 0.185 हेक्टेयर यानी 19,913 वर्गफीट) जमीन भूपेंद्र सिंह पिता धर्मेद्रसिंह के नाम है। इंदौर में आरआई रहे भूपेंद्र दूसरे जिले में डीएसपी हैं। शेष पेज

केस 1
साढ़े पांच एकड़ 13 हिस्सों में बेची
खजराना स्थित देवी अहिल्या श्रमिक कामगार गृह निर्माण सहकारी संस्था ने वैसे तो डेढ़ सौ एकड़ से अधिक जमीन बेची है, पर सर्वे नंबर 136 (रकबा 5.57 एकड़) का मामला खास है। इसे 13 हिस्सों में बेचा गया। इनमें खसरा नं. 136/3/1/मिन-3 (रकबा 0.335 हेक्टेयर यानी 36000 वर्गफीट से ज्यादा) बलदेवसिंह ठाकुर की पत्नी यशोदा, बेटों कुं. महेंद्र सिंह और कु. शैलेंद्र सिंह के नाम है। राजस्व विभाग में ठाकुर का पता फुडरा गांव, आष्टा तहसील, जिला सीहोर दर्ज है। यह उनका पुश्तैनी पता है। इंदौर में टीआई रहे ठाकुर अभी देवास में सीएसपी हैं। उनका मौजूदा पता इंदौर की स्कीम-74 का है।

केस 2
दो दिन पहले गए काम रूकवाने
दूसरा नाम है सिद्दिका पति शब्बीर खान का। उनके नाम खसरा 136/3/1/मिन-1 की 22,469 वर्गफीट जमीन है। सिद्दिका श्रीनगर कॉलोनी निवासी रिटायर्ड डीएसपी सिराज खान की बेटी हैं। दो दिन पहले खान अपने प्लॉट के पास एक महिला द्वारा जारी निर्माण रूकवाने खजराना थाने भी गए थे। थाना प्रभारी बीएस परिहार ने इसकी पुष्टि की। मामला एसडीएम के सामने है। दोनों जमीनें सीलिंग से प्रभावित हैं।

"मेरा किसी जमीन से कोई लेना-देना नहीं है। मैंने कभी कोई जमीन नहीं खरीदी।"
- सिराज खान, पूर्व डीएसपी


क्यों अवैध हैं जमीनों के ये सौदे*
सहकारिता नियमों के तहत इंदौर विकास प्राघिकरण द्वारा रहवासी क्षेत्र में 2000 वर्गफीट तक की सीमा तय है। हालांकि संस्थाओं के लिए सीमा तय नहीं है। पर सभी प्लॉट तकरीबन समान आकार के होना चाहिए। सामान्यत: संस्था 1500 वर्गफीट से ज्यादा के प्लॉट नहीं देती।
* जमीनें सीलिंग से प्रभावित हैं। इन्हें प्रशासनिक अनुमति के बगैर नहीं बेचा जा सकता। सौदों में अनुमति नहीं ली गई और खरीदने वाले संस्थाओं के सदस्य भी नहीं हैं।

बड़े-बड़े खरीदार
देवी अहिल्या गृह निर्माण सहकारी संस्था
*खसरा नं. 136/1/2 (0.094 हेक्टेयर) अशोक रामलाल पिता जोखूलाल सोनी। नंदानगर गली नं. 2
*खसरा नं. 136/3/1 मिन-2 (0.042 हेक्टेयर)- उदयसिंह पिता नानासिंह, उमादेवी पति उदयसिंह, शैलेंद्रसिंह पिता उदयसिंह, लोकेंद्र सिंह पिता उदयसिंह, वीरेंद्रसिंह पिता उदयसिंह। निवासी रतलाम कोठी
*खसरा नं. 136/4/2 (0.084 हेक्टेयर)- ठाकुर बृजमोहनसिंह पिता हिम्मतसिंह गौरिया। पता खमरीया
*खसरा नं. 136/3/4 (0.84 हेक्टेयर)- भारत पिता श्रीकृष्ण पाठक। निवासी स्कीम-54
*खसरा नं. 136/3/3 (0.126 हेक्टेयर)- न्यू पलासिया निवासी अजय पिता झावेरीलाल ब्रrोचा
*खसरा नं. 136/3/2 (0.042 हेक्टेयर)- नीता पति अजय ब्रrोचा
*खसरा नं. 136/3/5 (0.046 हेक्टेयर)- विजयसिंह पिता आरपी सिंह। निवासी लाल मस्जिद चौराहा मालीपुरा उज्जैन

सदस्यों का हक मारने वाले सजा के पात्र"
सदस्यों के हक पर भांजी मारने वाला हर व्यक्ति सजा का हकदार है। फिर वह पुलिस अघिकारी ही क्यों न हो। इससे कार्रवाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता।"
- संजय राणा, आईजी

क्या कहते हैं जमीन खरीदने वाले"
जमीन खरीदी की बातें झूठी हैं। जिसने जमीन खरीदी वह जाने।"
- आरएस यादव, सीएसपी

बच्चों ने खरीदी होगी। मुझे जानकारी नहीं।"
- बलदेवसिंह ठाकुर, सीएसपी

"देवी अहिल्या संस्था से खरीदी थी। सीलिंग से मुक्त है। संस्था के सदस्य थे। सदस्य कौन था और सदस्यता क्रमांक क्या है, पता नहीं।"
- शैलेंद्र सिंह पिता उदय सिंह

43 दिन में 8000 नौकरियां..


विनोद शर्माMonday, February 16, 2009 02:30 [IST]

इंदौर. मंदी के दौर से गुजर रहे प्रदेशवासियों के लिए मार्च तक साढ़े सात हजार से अधिक नई नौकरियां राहत साबित होंगी। इसके लिए मप्र औद्योगिक केंद्र विकास निगम ने 1800 करोड़ से अधिक के निवेश वाली 56 औद्योगिक इकाइयों को आकार देकर उत्पादन शुरू करवाने का लक्ष्य रखा है। इनमें 20 इकाइयां अकेले इंदौर या उसके आसपास स्थापित हो रही हैं। कुल 7793 में से 71 फीसदी यानी 5545 नौकरियां इंदौरवासियों को मिलेंगी।

खरगोन के नीमरानी में 25 करोड़ में ग्रेन मिलिंग कंपनी ने रोलर फ्लोर मिल और धार के गंगानगर में 25 करोड़ में प्लेटिनम सीमेंट प्रा.लि. द्वारा स्थापित होने वाले सीमेंट प्लांट अलग है। यहां डेढ़ सौ से अधिक बेरोजगारों को नौकरी के अवसर मिलेंगे।

उद्योग मंत्रालय और मप्र औद्योगिक केंद्र विकास निगम ने सौ दिवसीय कार्ययोजना के लिए ऐसी 56 औद्योगिक इकाइयों की सूची तैयार की है जिनमें मार्च अंत तक उत्पादन शुरू होना है। इनमें 1842 करोड़ का निवेश हो रहा है। इन इकाइयों से 7793 लोगों को नई नौकरियां मिलेंगी।

संभाग स्तर पर तैयार यह सूची इकाइयों द्वारा दी गई समयावधि के आधार पर तैयार की गई है। सूची के हिसाब से सभी इकाइयां नियुक्तियां करके 31 मार्च तक उत्पादन शुरू कर देंगी। मप्र ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट फेसिलेशन कॉपरेरेशन लि. के जीएम सतीश पेंढारकर ने बताया इकाइयों में 10 बड़ी और बाकी लघु और मध्यम इकाइयां हैं। इंदौर में 20 इकाइयों से 5545 लोगों को रोजगार मिलेगा। दो इकाइयों ने उत्पादन शुरू करके उसकी टेस्टिंग शुरू कर दी है। इसी तरह भोपाल में 16 में से करीब 9 इकाइयों में उत्पादन शुरू हो चुका है।

इंदौर: निवेश में सबसे आगे
औद्योगिक विकास और निवेश के मामले में इंदौर ने भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर और रीवा को कोसों पीछे छोड़ दिया है। इंदौर में 31 मार्च तक कुल 1064 करोड़ का निवेश प्रस्तावित है। रीवा में इकाइयां भले तीन प्रस्तावित हों लेकिन 552 करोड़ के निवेश के साथ वह दूसरे क्रम पर है। तीसरे क्रम पर ग्वालियर (112.69 करोड़ ) और चौथे पर जबलपुर (74.82 करोड़) हैं। प्रदेश की राजधानी भोपाल पांचवे क्रम पर है। यहां 38.75 करोड़ में 16 इकाइयां प्रस्तावित हैं।

इकाइयां और भी. .



सिप्ला लि. मुंबई (258 करोड़)- 950 नौकरियां
लूपिन फॉर्मास्यूटिकल्स(175 करोड़)- 300 नौकरियां
प्रतिभा सिंटेक्स लि.(30 करोड़)- 1410 नौकरियां
जय कॉर्प लि.(52 करोड़)-900 नौकरियां
कममिंस टबरे (159.60 करोड़)- 300 नौकरियां
न्यू टेक पाइप लि. (115.98 करोड़)- 180 नौकरियां

30 लाख उद्योगों में 10 दावेदार भी नहीं



इंदौर। राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार पाना भले गौरव की बात हो लेकिन मप्र के उद्योगपतियों की इसमें जरा भी रूचि नहीं। कुछ जटिल प्रक्रिया तो कुछ समय की कमी की आड़ लेकर अवार्ड से दूर हैं। 50 जिले, 30 लाख से अघिक औद्योगिक इकाइयां और आवेदन सिर्फ नौ। वह भी नौ श्रेणी के लिए। यानी हर श्रेणी के लिए सिर्फ एक दावेदार। यह हाल है मप्र में केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय द्वारा दिए जाने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार में दावेदारी का।

अधिकारियों ने खोजे दावेदार
केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय ने राष्ट्रीय पुरस्कार 2008-09 के लिए राज्यवार आवेदन बुलाए थे। पहले तय 30 अपै्रल की समय सीमा में एक भी आवेदन नहीं मिला। समय सीमा बढ़ाने के बावजूद एक-दो लोगों ने रूचि ली। आखिर मंत्रालय ने अधिकारियों को दावेदारों की खोज में जुटा दिया है। इसके लिए हर अधिकारी को 15 दिन में 10-10 दावेदारों का लक्ष्य दिया गया है। तमाम कोशिशों के बाद 16 जून को नौ आवेदकों की सूची केंद्र को सौंपी गई।

250 से ज्यादा को दावेदारी का हक
एमएसएमई के अधिकारियों की मानें तो प्रदेश में 250 से अधिक इंडस्ट्रीज ऎसी हैं जो अवार्ड के लिए दावेदारी कर सकती हैं। इनमें निर्यातक इकाइयों के साथ श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स भी शामिल हैं।

किसको क्या पुरस्कार

श्रेष्ठ इंटरप्राइजेस
सुक्ष्म-लघु
पहला-1 लाख रूपए
दूसरा- 75 हजार रूपए
तीसरा- 50 हजार रूपए

मध्यम उद्योग
पहला-1 लाख रूपए
दूसरा- 75 हजार रूपए

विशेष पुरस्कार-
श्रेष्ठ महिला उद्यमी 1 लाख रूपए
श्रेष्ठ एससी/एसटी उद्यमी 1 लाख रूपए
श्रेष्ठ रिसर्च एंड डेवलपमेंट वर्क

सुक्ष्म-लघु उद्योग
पहला-1 लाख रूपए
दूसरा- 75 हजार रूपए

मध्यम उद्योग

पहला-1 लाख रूपए
दूसरा- 75 हजार रूपए

गुणवत्ता
सुक्ष्म-लघु उद्योग
चयनित उत्पाद की गुणवत्ता- 1 लाख रूपए

उद्योग तो बहुत हैं5 लाख सूक्ष्म इकाइयां
25 लाख लघु इकाइयां
800 मध्यम इकाइयां

मातृ इकाइयां98 केंद्र के उपक्रम
05 मंत्रालयीन उपक्रम
261 सरकारी उपक्रम
61 निजी क्षेत्र

जटिल प्रक्रिया बनी कारण
पुरस्कार से परहेज के लिए उद्योग जगत मंत्रालय को दोषी मानता है। एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्रीज मप्र के अध्यक्ष अशोक जायसवाल और सांवेर रोड औद्योगिक संगठन अध्यक्ष हरि अग्रवाल के मुताबिक, प्रक्रिया जटिल और लंबी है। जानकारियों की पूर्ति भी आसान नहीं। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी ने बताया- मंत्रालय और विभाग का सूचना तंत्र कमजोर है।

कोई गंभीर है ही नहीं
एमएसएमई विकास विभाग के राष्ट्रीय अवार्ड प्रभारी आरडी बोसमेन ने कहा उद्योगपति गंभीर नहीं हैं। 700 कंपनियों को पत्र लिखने, संगठनों और जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्रों से संपर्क के बाद नौ आवेदन आए।

हकदार कौन? फैसला 28 को

किस श्रेणी के अवार्ड का हकदार कौन है इसका फैसला दिल्ली में 28 अगस्त को होगा। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील उद्योगपतियों को सम्मानित करेंगी। यह अवार्ड औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए दिया जाता है।

दुकान एक और सैकड़ों का सिरदर्द





विनोद शर्माThursday, April 09, 2009 01:05 [IST]


इंदौर. शराब दुकानों की बढ़ती परेशानी भारी विरोध के बाद भी कम होती नहीं दिखती। राजस्व बढ़ाने के लिए सरकार ने दुकानें तो बढ़ा दीं लेकिन उसके कारण जनता को होने वाली परेशानी उसे नहीं दिखती। इन्हें हटाने के लिए हर तरफ विरोध हो रहा है। भास्कर ने स्कैन की जनता की परेशानी-

मिश्रनगर स्थित मीराश्री अपार्टमेंट में एक व्यक्ति ने लोन लेकर गिफ्ट आइटम्स की दुकान डाली थी। दुकान से लगे अंग्रेजी शराब के ठिकाने के कारण उनकी दुकान पर ग्राहक आने से कतराते थे। कमाई तो दूर, उनके लिए दुकान का खर्च निकालना ही मुश्किल हो चुका था। परेशान होकर उन्हें दुकान बंद करना पड़ी। अब वे एक निजी संस्था में नौकरी कर परिवार का पेट पाल रहे हैं।

ऐसे एक-दो नहीं कई उदाहरण हैं। अपना खजाना भरने के लिए सरकार ने जिन शराब दुकानों को अनुमति दी वे आज आसपास के रहवासियों के साथ दुकानदारों के लिए परेशानी बन गई हैं। कोई शराबियों के हुड़दंग और गाली-गलौज से परेशान है तो कुछ शराबियों के बीच आए दिन होने वाले झगड़ों की गवाही देने से। लोग शिकायतें करते हैं लेकिन सुनवाई नहीं होती। इन्हें मिलने वाले राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण के कारण लोग खुलकर विरोध नहीं कर पाते। इस मामले में सरकार की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक ओर तो वह शैक्षणिक, धार्मिक और सार्वजनिक स्थानों से पान की दुकानों तक को सौ मीटर दूर रखने की बात करती है वहीं शहर में कई शराब दुकानें ऐसे स्थानों पर हैं और देखने वाला कोई नहीं।

‘रहवासी क्षेत्रों को बनाएंगे शराबमुक्त’
इंदौर. शराब दुकानों के खिलाफ शहर में चल रहे अभियान में कांग्रेस प्रत्याशी सत्यनारायण पटेल आगे आए हैं। उन्होंने संकल्प लिया है कि वे जीते तो लोकसभा में पहल करेंगे ताकि रहवासी क्षेत्रों को शराबमुक्त बनाया जा सके।

शहर कांग्रेस प्रवक्ता अभय दुबे ने संवाददाताओं को बताया श्री पटेल ने जनता से वादा किया है कि वे लोकसभा पहुंचकर सबसे पहली आवाज इंदौर के रहवासी क्षेत्रों को शराबमुक्त बनाने के लिए उठाएंगे। श्री पटेल संसद में पहुंचकर राष्ट्रीय शराब नीति बनाने की जोरदार मांग भी पार्टी के अन्य सांसदों को विश्वास में लेकर उठाएंगे।

कांग्रेस : क्षेत्र-5 के कार्यकर्ता सम्मेलन में भी शराब की गूंज
विधानसभा क्षेत्र-5 में कांग्रेस का कार्यकर्ता सम्मेलन पार्टी उम्मीदवार सत्यनारायण पटेल, शोभा ओझा, रामेश्वर पटेल आदि की उपस्थिति में हुआ। इसमें कई कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर चुनाव में जुट जाने का आह्वान किया गया। इस दौरान कांग्रेस नेताओं ने शहर में शराब विरोधी मुहिम छेड़े जाने की बात भी कही।

कांग्रेस उम्मीदवार द्वारा शराब के खिलाफ अभियान छेड़े जाने का ऐलान करने क बाद भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर शराब व्यावसासियों को संरक्षण देने का आरोप जड़ा है। नगर अध्यक्ष सुदर्शन गुप्ता, उमेश शर्मा, सूरज कैरो, मुकेशसिंह राजावत आदि ने कहा कि शहर में सांवेर रोड से खंडवा रोड तक शराब के ज्यादातर कारोबारी कांग्रेसी हैं। प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने ही 1996 में अहाते में शराब बेचने की अनुमति दी थी। उन्होंने कहा कांग्रेसी भाजपा के खिलाफ झूठा प्रचार कर रहे हैं।

शराब दुकान : रोज की परेशानी, सुनने वाला कोई नहीं



दुकान के ठीक सामने 15 मीटर की दूरी पर शासकीय उन्नत माध्यमिक विद्यालय और सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य सामुदायिक भवन है। सामुदायिक भवन में आंगनवाड़ी के साथ महिलाओं और बच्चों के लिए टीकाकरण केंद्र भी है। दुकान के एक ओर मकान हैं तो दूसरी ओर दुकानें।

हीरानगर निवासी विशाल जोशी और रविदासनगर निवासी शंकर कुशवाह ने बताया शुरुआती दौर में विरोध हुआ था लेकिन सुनवाई न होने के बाद लोगों ने माहौल में जीना सीख लिया।

वाइन शॉप (छोटा बांगड़दा)
वेअर हाउस से लगी देशी शराब दुकान से छोटा बांगड़दा मेनरोड पर दो सौ मीटर की दूरी पर वाइन शॉप का निर्माण चल रहा है। वाइन शॉप कृष्णा मैरिज गार्डन के ठीक सामने है। अहाता भी बन रहा है।

छोटा बांगड़दा रोड निवासी अनिता जैन ने बताया देशी शराब दुकान के कारण पहले ही शाम के वक्त वीआईपी रोड तक पहुंचना मुश्किल था, वाइन शॉप खुलने से महिलाओं के लिए दिक्कतें और बढ़ जाएंगी। यहीं के विमल जांगिड़ ने बताया शराब विक्रेताओं की रसूखदारी के कारण उनके खिलाफ बोलकर कोई पचड़े में नहीं पड़ना चाहता। हालांकि परेशान सभी हैं।

लाल भवन वाइन शॉप (जिंसी चौराहा)
यह वाइन शॉप करीब दस साल से जिंसी चौराहा स्थित लाल भवन में चल रही है। दुकान सौ मीटर के दायरे में तीन तरफ से धर्मालयों से घिरी है। एक तरफ सफेद मसजिद है तो दूसरी ओर काली मसजिद और शनि मंदिर जबकि सामने माता का मंदिर है। पास में बैंक और दवाखाना भी है।

आसपास के लोगों ने बताया दुकान पहले लाल भवन के सामने स्थित साईंकृपा भवन में थी। वहां मनोहर गुरु के नेतृत्व में लोगों ने तोड़फोड़ करके दुकान बंद करवा दी थी। राजनीतिक पकड़ के कारण कुछ दिनों तक बंद रहने के बाद दुकान दस साल से लाल भवन में चल रही है। श्री गुरु की मृत्यु के बाद अब विरोध करने की किसी में हिम्मत नहीं।

वाइन शॉप (राजमोहल्ला चौराहा)
चौराहे पर लगी शहीद भगतसिंह की प्रतिमा के ठीक पीछे है दुकान। खालसा स्कूल, कॉलेज और वैष्णव स्कूल के साथ पेट्रोल पंप की दूरी दुकान से करीब 30 मीटर है। पास में ही महेशनगर जैसी पॉश कॉलोनी का मेनगेट है जहां दिनभर लोगों की आवाजाही रहती है।

महेशनगर निवासी मिश्रीलाल नीमा ने बताया अहाते की पार्किग मेनरोड पर होती है जिससे शाम के बाद बार-बार जाम लगता है। तेली बाखल के निहाल अग्रवाल का कहना है सुनवाई हो तो शिकायत करें। यहां शिकायत पर सरकारी अधिकारी आते हैं, जेब गर्म करके लौट जाते हैं।

वाइन शॉप (महू नाका)
शहर के प्रमुख चौराहों में से एक महू नाका चौराहे पर लगी इस वाइन शॉप के ठीक के पीछे शासकीय मालव कन्या स्कूल और जिला शिक्षाधिकारी का ऑफिस है। तीस मीटर की दूरी पर तरण पुष्कर है वहीं बीस मीटर की दूरी पर महाराणा प्रताप की प्रतिमा।

उषानगर निवासी राजू अग्रवाल और स्वास्तिकनगर निवासी यूनुस खान ने बताया सरकार जहां पान की दुकानों को भी स्कूल से सौ मीटर दूर रखने के आदेश जारी करती है वहीं कन्या स्कूल के सामने चल रही शराब दुकान उसी परिसर में बैठने वाली जिला शिक्षाधिकारी को नजर नहीं आ रही है।

वाइन शॉप (मिश्रनगर)
अन्नपूर्णा मंदिर से राजेंद्रनगर की ओर बढ़ते ही करीब तीन सौ मीटर की दूरी पर है दुकान। एक तरफ मीरा बाजार है, दूसरी ओर मीराश्री अपार्टमेंट व मनी आर्केट। सामने प्रोग्रेसिव स्कूल की सीमा लगी है। सौ मीटर में दो मंदिर हैं।

मीराश्री अपार्टमेंट, मनी आर्केड के साथ मीरा बाजार के दुकानदारों का कहना है शराब दुकान से दूसरी तीस दुकानदारों की हालत खराब है। आने-जाने वालों पर कमेंट और विरोध पर मारपीट करते हैं। एक साथी ने दुकान से लगी गिफ्ट शॉप बंद करके नौकरी कर ली।

अंग्रेजी शराब दुकान (महाराजा स्कूल- जेल रोड)
महाराजा स्कूल की बाउंड्री से लगे मार्केट में भांग की दुकान के पास देशी शराब की दुकान थी। अब यह इसी मार्केट में उसी स्थान के पास शिफ्ट हो गई जहां चिमनबाग मैदान में आने-जाने का रास्ता है। पास में नूतन स्कूल है, सामने मराठी समाज का सामुदायिक भवन गणोश मंडल।

स्नेहलतागंज निवासी लक्ष्मीनारायण शर्मा ने बताया चिमनबाग मैदान में दिनभर खिलाड़ियों (स्कूली बच्चों) से ज्यादा शराबी बोतल खोलकर बैठे नजर आते हैं। नूतन स्कूल के विद्यार्थी पंकज जैन ने बताया सुबह मैदान में शराब की फूटी बोतलें नजर आती हैं।

मंदिरों का मार्ग कहे जाने वाले भंडारी मिल-परदेशीपुरा रोड पर काली मंदिर से सौ मीटर की दूरी पर है दुकान। दुकान सरजूबाई पारमार्थिक नेत्र चिकित्सालय और पालीवाल धर्मशाला से लगी हुई है।

शीलनाथ कैंप निवासी राजकुमार सिंह ने बताया एक तरफ मंदिर में आरती होती है और दूसरी ओर रहवासियों को शराबियों की गाली-गलौज सुनना पड़ती है।

फर्जी संस्थाएं काट रही हैं कॉलोनियां


विनोद शर्मा.
इंदौर. शहर में ऐसी भी कुछ हाउसिंग सोसायटियां हैं जो बगैर पंजीयन के आधे-अधूरे अनुबंधों के साथ कॉलोनियां काट रही हैं। इससे बेखबर सहकारिता विभाग की मानें तो सोसायटियों से उसका दूर तक वास्ता नहीं है। कार्रवाई के लिए पुलिस-प्रशासन स्वतंत्र है।

इन तथ्यों का खुलासा उस समय हुआ जब नगर निगम के कॉलोनी सेल उपायुक्त ने आलोकनगर को अवैध बताकर 22 जु़लाई को संयोगितागंज थाने पर रिपोर्ट दर्ज कराई। मूसाखेड़ी क्षेत्र के पार्षद दिलीप कौशल की शिकायत पर दर्ज कराई गई रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया था कि कॉलोनी अवैध है। कॉलोनी काटने वाली संस्था के.एन. गृहनिर्माण सहकारी संस्था का सहकारिता विभाग से कोई वास्ता नहीं है।


patrika ने मामले की पड़ताल की तो पता चला के.एन. गृह निर्माण संस्था ही नहीं बल्कि ऐसी चार संस्थाएं हाउसिंग सोसायटी के नाम पर अवैध कॉलोनियां काट रही हैं। इनमें डायमंड गृहनिर्माण सहकारी संस्था, हरिओम गृहनिर्माण सहकारी संस्था और हरिओम पन्नानगर शामिल हैं।


सहकारिता विभाग की मानें तो के.एन. गृहनिर्माण, हरिओम गृहनिर्माण और हरिओम पन्नानगर पंजीकृत नहीं हैं। डायमंड गृहनिर्माण सहकारी संस्था पंजीकृत थी लेकिन पांच वर्ष पहले उसका पंजीयन निरस्त किया जा चुका है। बहरहाल संस्था में परिसमापक नियुक्त हैं। परिसमापक जी.डी. परिहार ने बताया मैं चौथा परिसमापक हूं। संस्था आज भी मृत है।




फर्जी स्टाम्प और फर्जी नोटरी
जिन स्टाम्प्स पर संस्थाओं द्वारा नोटरी की गई उस पर सिर्फ संस्था का नाम है। सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने बताया मयूरनगर क्षेत्र की प्रमुख विवादित कॉलोनी है। इसकी जांच के दौरान कॉलोनाइजर के पास से प्रिंटिंग मशीन, फर्जी स्टाम्प और स्टाम्प वेंडरों की सील बरामद हुई थी। प्रथम दृष्टया ये स्टाम्प भी फर्जी नजर आ रहे हैं।

मुश्ताक के खिलाफ 420 का मुकदमा दर्ज
गुलजार कॉलोनी की रजिया पति हुमाह शेख की शिकायत पर संयोगितागंज पुलिस ने 30 जुलाई की रात 11.40 बजे कॉलोनाइजर मुश्ताक के खिलाफ 420 का मुकदमा दर्ज किया। फरियादी ने उन पर पैसा लेकर भी प्लॉट न देने का आरोप लगाया था।

जमीन के जालसाज नहीं आ रहे बाज



इंदौर। जमीन के दर्द को लेकर दो महीने से जारी जन-अभियान और उसे मिले पुलिस-प्रशासनिक समर्थन के बाद भी जमीन के जालसाजों के हौसले बुलंद हैं। हालत यह है कि इसी दौरान खजराना में तीन अवैध कॉलोनियां काट दी गई। शिकायत मिलने के बाद मौके पर पहुंचा निगम का दस्ता बगैर कार्रवाई यह कहकर लौट आया कि अभी निर्माण नहीं हुआ है, सिर्फ रंगोली डली है। हालांकि यहां प्लॉटों की बिक्री जारी है।

तीन कॉलोनी, 400 से ज्यादा प्लॉट : खजराना में पहले ही 150 से ज्यादा अवैध कॉलोनियां हैं। निगम न इनका नियमितिकरण कर पाया और न ही नई अवैध कॉलोनियों पर अंकुश लगा पाया। इसका नतीजा है कि यहां अवैध कॉलोनियां कटती जा रही है। बीते दिनों शहंशाह सूरी नगर के पीछे दो कॉलोनी काटी गई। तीसरी कमाल कम्यूनिटी हॉल के पास। तीनों में 400 से ज्यादा प्लॉट हैं। कॉलोनाइजर रंगोली डालकर प्लॉट बेच रहे हैं। किसी ने पूरी कीमत तो किसी ने बुकिंग राशि अदा कर प्लॉट अपने नाम भी करा लिए हैं।

अब पुलिस का काम
"पंचनामा बनाकर कॉलोनाइजरों की नामजद शिकायत थाने पर की थी। हम शिकायत कर सकते हैं। मुकदमा दर्ज करना पुलिस का काम है।"
- राकेश शर्मा, भवन अधिकारी-साकेतनगर जोन

जानकारी नहीं मिली
"कॉलोनियों के बारे में मुझे न कोई शिकायत मिली और न ही जोन से कोई रिपोर्ट। गुरूवार को मौका दिखवाकर कार्रवाई करेंगे।"
- लता अग्रवाल, उपायुक्त कॉलोनी सेल

चार महीने में दें प्लॉट
इंदौर। जमीन के दर्द से दु:खी परिहार परिवार को 17 साल बाद अपना हक मिला तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उपभोक्ता फोरम ने परस्पर कॉलोनी, वीआईपी में ही प्लॉट देने के साथ महात्मा गांधी गृह निर्माण संस्था को चार महीने में रजिस्ट्री कराने के भी आदेश दिए हैं। संस्था के सदस्य छावनी निवासी मनीष परिहार ने परस्पर कॉलोनी वीआईपी में 25 नवंबर 1991 को 28,500 रूपए देकर 1500 वर्गफीट का प्लॉट आरक्षित कराया था। इसके 1,74,726 रूपए जमा कराने के बाद भी संस्था ने प्लॉट आवंटित नहीं किया।

डिफाल्टर बता दिया था : संस्था का तर्क था कि परिवादी डिफाल्टर सदस्य है। उसने समय पर राशि जमा नहीं कराई, इसके चलते उसकी वरीयता व प्लॉट की पात्रता खत्म हो चुकी है। बाद में इसकी विवेचना के दौरान संस्था ने तर्क दिया कि परिवादी आवश्यक विकास व्यय व ब्याज जमा कराने को तैयार है तो वह प्लॉट देने को राजी है। फोरम ने आदेश दिया कि संस्था इंदौर विकास प्राधिकरण के लॉ ऑफिसर से विचार-विमर्श करे। परिवादी से बकाया विकास शुल्क लेकर परस्पर कॉलोनी, वीआईपी में प्लॉट की रजिस्ट्री कराई जाए। यह प्रकिया चार महीने में पूरी हो जाना चाहिए। फोरम ने परिहार को हुए मानसिक कष्ट के लिए पांच हजार तथा परिवाद व्यय के एक हजार रूपए भी चुकाने का आदेश दिया।

विनोद शर्मा

Friday, April 9, 2010

धुएं में उड़ गई योजना



विनोद शर्मा Wednesday, April 08, 2009 02:19 [IST]

इंदौर.


सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देने के तीन साल बाद भी कचरा प्रबंधन और बूचड़खानों के आधुनिकीकरण में नगर निगम नाकाम ही है। इसके कारण ट्रेंचिंग ग्राउंड से लगे उन क्षेत्रों के बाशिंदों के लिए चिंता बढ़ गई है जिनके यहां कचरा निपटान के अभाव में हवा के साथ ही पानी भी प्रदूषित होने लगा है।

इस संबंध में फोटो के साथ मैदानी रिपोर्ट तैयार करके मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड निगम को बीते सप्ताह नोटिस भी थमा चुका है। बोर्ड का कहना है नियमानुसार कचरे के निपटान की व्यवस्था और इसके लिए प्रस्तावित योजनाओं पर जल्द काम शुरू हो।

शहरी क्षेत्रों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वर्ष 2000 में कुछ मापदंड तय किए थे। इनके अनुसार हर शहर में नगरीय निकाय को कचरे के ठोस प्रबंधन के साथ उसके उपचार की व्यवस्था करना थी। मापदंडों को लागू हुए नौ साल हो चुके हैं लेकिन शहर में एक भी बिंदु का पालन नहीं हो पाया। कोर्ट और बोर्ड के नोटिस पर 2006 में महापौर डॉ. उमाशशि शर्मा और तत्कालीन निगमायुक्त विनोद शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था।

इस बात को तीन साल हो चुके हैं लेकिन निगम हलफनामे को मैदानी शक्ल नहीं दे पाया। गैरकानूनी रूप से ट्रेंचिंग ग्राउंड पर फैला कचरा भूजल और जलता हुआ कचरा वायु को प्रदूषित कर रहा है। फरवरी में बोर्ड द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार कचरा जलने से तकरीबन दो वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में वायु प्रदूषण तो बढ़ा ही देवगुराड़िया, सनावदिया, दूधिया सहित आसपास के गांवों के बोरिंगों का पानी भी प्रदूषित होने लगा है।

बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी ए.ए. मिश्रा ने इस संबंध में बताया निगम हलफनाम के अनुसार एक भी काम नहीं कर पाया। इसको लेकर मुख्यालय से निगम को सालाना रिमाइंडर और नोटिस जारी होते हैं। योजनाओं के प्रस्तुतिकरण के लिए निगम के संबंधित अधिकारियों को मुख्यालय में दो सप्ताह पहले तलब भी किया गया लेकिन कोई गया ही नहीं। रिपोर्ट की कॉपी मुख्यालय के साथ निगम प्रशासन को भी भेज चुके हैं।

ये था नगर निगम के हलफनामे में

हलफनामे में स्पष्ट था कि 2000 से 2006 के बीच किन्हीं कारणों से निगम कचरा प्रबंधन और अत्याधुनिक बूचड़खाने पर काम नहीं कर पाया। इस संबंध में मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी कई मर्तबा नोटिस दे चुका है। साइट क्लीयर है। हम कोर्ट को विश्वास दिलाते हैं कि दिसंबर 2007 तक इंदौर में प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित कर वहां कचरे से खाद बनाना शुरू कर देंगे। अवैध बूचड़खानों पर अंकुश के लिए अत्याधुनिक बूचड़खाना भी बनाएंगे। इसके लिए 15 एकड़ जमीन भी चिह्न्ति की जा चुकी है।

सुप्रीम कोर्ट बोर्ड के मापदंड

कचरा प्रबंधन

* घर-घर से कचरा इकट्ठा करना निगम की जिम्मेदारी।
* संग्रहण स्थलों को दुरुस्त करना।
* गीले और सूखे कचरे को अलग करना।
* कचरे की रिसाइकिलिंग।
* कचरे से खाद, कोयला, गैस या बिजली बनाना।
* प्रदूषण नियंत्रण के लिए सेनेट्री लैंडफील की व्यवस्था करना।

ये है हकीकत
* कुछ इलाकों में ही घरों से इकट्ठा होता है कचरा।
* संग्रहण स्थल बदहाल। पक्के बनाने की योजना बीच में ही बंद।
* प्रथककरण, रिसाइकिलिंग और प्रोसेसिंग की कोई व्यवस्था नहीं।
* ट्रेंचिंग ग्राउंड पर खुले में फैलाते हैं कचरा।
* कचरा गाड़ियों की हालत खस्ता।

बूचड़खाने

* आधुनिकीकरण करना होगा।
* दूषित जल के उपचार की व्यवस्था।
* अन्य अनावश्यक सामग्रियों के निपटान की व्यवस्था भी की जाए।
* अवैध बूचड़खानों पर अंकुश।

हो यह रहा है
विरोध के कारण बूचड़खाने के लिए निगम जमीन चिह्न्ति नहीं कर पाया। ट्रेंचिंग ग्राउंड पर बनना था पर विरोध के बाद वक्फ बोर्ड की जमीनों पर फैसला होना है। धड़ल्ले से चल रहे हैं अवैध बूचड़खाने।

नियंत्रण अघिकारियों ने ही तोड़े नियम

इंदौर। गृह निर्माण संस्थाओं द्वारा की गई जमीन की अफरा-तफरी और धांधलियां उजागर होने के बाद पीडित सदस्यों को प्रशासन के प्रयासों से न्याय की उम्मीद तो जागी, पर एक प्रश्न भी सबके मन में उठ रहा है कि वर्षो से जारी इन धांधलियों के खिलाफ सहकारिता विभाग ने क्या किया? इसका जवाब विभाग की कागजी कार्रवाई को देखकर ही मिल जाता है। सहकारिता अधिनियम की विभिन्न धाराओं में संस्थाओं पर हुई कार्रवाई का फायदा धांधलीबाज कर्ताधर्ताओं को ही प्राप्त हुआ। कहने को तो सहकारिता विभाग ने सैकड़ों संस्थाओं पर नियंत्रण अधिकारी नियुक्त किए, पर इन्होंने कार्रवाई करने के बजाए धांधलियों पर पर्दा डाला और दोषी संचालकों को संरक्षण दिया।

पड़ताल में चौंकाने वाली जानकारी
"पत्रिका" पड़ताल में खुलासा हुआ कि वर्ष 2009 तक कुल 176 संस्थाओं पर नियंत्रण अधिकारी नियुक्त किए गए। इन अधिकारियों ने पीडित सदस्यों के हित में काम करना तो दूर की गई कार्रवाई की जानकारी से अपने ही महकमे को दूर रखा। कायदे से इन नियंत्रण अधिकारियों को तीन महीने में संस्था के चुनाव करवाना थे। नहीं करवाने पर संस्था की रिपोर्ट आला अफसरों और शासन को भेजना थी। अधिकारियों का यही व्यवहार गृह निर्माण संस्थाओं में हुई धांधलियों की शुरूआत मानी जा सकती है। सदस्यों की शिकायतों के बाद भी नियंत्रण अधिकारी वर्षो से संस्थाओं में जमे हैं।

मिलीभगत से तय होते रिसीवर
संस्थाओं पर नियंत्रण अधिकारी नियुक्त करना और करवाना दो प्रमुख खेल सहकारिता विभाग में होते हैं। जिन संस्थाओं को प्रमुख रूप से दर्शाया गया है उनमें मिलीभगत के साथ नियंत्रण अधिकारियों की नियुक्ति होना सामने आया है। विभाग के जानकारों के मुताबिक असिमित धांधलियों को
करने वाले संस्थाओं के कर्ताधर्ता कार्रवाई से बचने के लिए यह खेल खेलते हैं। इनमें से काफी संस्थाओं के तो अनुबंध प्राधिकरण के साथ है और उन्हें भूखंड भी मिलने वाले हैं। सदस्यों को बरगलाने के लिए भी सारा षड्यंत्र रचा गया।

इन धाराओं में हुई कार्रवाई
सहकारिता विभाग ने 176 संस्थाओं पर धारा 49(8) के तहत कार्रवाई करते हुए अपने अधिकारियों को नियंत्रण अधिकारी नियुक्त कर दिया। नियमानुसार इन अधिकारियों को तीन माह में निर्वाचन प्रक्रिया पूरी कर बोर्ड का गठन करना था। कुल 176 संस्थाओं में 27 ऎसी हंै जिनमे वर्ष 2002 से 06 के मध्य नियंत्रण अधिकारी बनाए गए। 30 संस्थाओं में वर्ष 2007 में तथा शेष संस्थाओं में 2008 और 09 में नियंत्रण अधिकारी नियुक्त किए गए। इसी प्रकार धारा 53(1), 53(2) और धारा 53 (10) के अंतर्गत 24 गृह निर्माण संस्थाओं पर प्रभारी नियुक्त हैं।

विकास जैन को जमानत
इंदौर। विकास अपार्टमेंट संस्था मामले में कोर्ट ने आरोपी विकास जैन को जमानत दे दी। गौरतलब है कि उस पर करोड़ों रूपए की जमीन सस्ते दामों में खरीदने का आरोप है। बुधवार को उसके वकील की ओर से जमानत के लिए अर्जी लगाई गई। इस पर कोर्ट ने उसे एक लाख रूपए नकद जमा करने व 50 हजार रूपए की जमानत व इतने ही मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया।

संस्थाएं और प्रभारी अधिकारी
आकाश गृह निर्माण— जीडी परिहार
श्रीरामकृपा— आरएस शर्मा
दीप्ति — आनंद खत्री
प्रेस्टीज— केवी विजयवर्गीय
सिद्धि विनायक— डीके शर्मा
पद्माशीष— एचएस तिवारी
शिखर— अश्विनी राणे
शेल्टर— बीएस भंवर
साक्षी— पवन अग्रवाल
उमेश नगर— संतोष जोशी
आनंदबाग— रमेश पेंढारकर
अतिशा— विनोद वर्मा
बिहार— केके जमरे
बीशानगर— विनोद रावल
भंवरराज— आरके गुप्ता
राहुल— आनंद खत्री
श्री महादुर्गा— पीसी सोलंकी
श्री कुशल— केवी विजयवर्गीय
शिवानी— एसएल वास्केल
सांईशरण— आरसी सेन
शुभाशीष— एसएल वास्केल
कारसदेव— डीके शर्मा
पयोधी— संतोष जोशी
गजानंद — प्रमोद तोमर
व्यंकटेश नगर— एचएस तिवारी
श्री तपन— एसएल वास्केल
अनमोल— आईडी सराफ
तृष्णा— आरबी कनकने
लीलादेवी — केवी विजयवर्गीय
लक्ष्मणनगर— संतोष जोशी

निगम की ‘हां’ के इंतजार में बिलावली

विनोद शर्मा Tuesday, May 05, 2009 01:26 [IST]

इंदौर. इंदौर के सूखे कंठ को राहत देने की क्षमता रखने वाले बिलावली तालाब की सेहत सुधारने में नगर निगम की बिलकुल रुचि नहीं दिखती। यदि ऐसा होता तो तालाब के चौड़ीकरण, गहरीकरण और सौंदर्यीकरण के लिए इंदौर विकास प्राधिकरण की 15 करोड़ की योजना चार साल तक स्वीकृति के लिए यूं ही धूल नहीं खाती रहती। अब हालांकि नगर निगम प्राधिकरण के साथ मिलकर काम करने की मंशा जता रहा है, लेकिन उसकी अनदेखी के चलते पानी की जो किल्लत शहर ने झेली है उसकी भरपाई कैसे हो पाएगी।
अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे बिलावली तालाब के संरक्षण के लिए प्राधिकरण ने 2004-05 में विस्तृत योजना तैयार की थी। उस वक्त निगम ने उसके प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि तालाब निगम के हैं और उनकी देखभाल के लिए वह सक्षम है। इसके बाद निगम ने योजना बनाकर उसे अंजाम देना तो दूर तालाब और चैनल की नियमित सफाई करना भी बंद कर दिया। दिनों-दिन बढ़ती तालाबों की बदहाली व गहराते जलसंकट को देखते हुए प्राधिकरण ने नए सिरे से योजना बनाना शुरू कर दिया है।

इस संबंध में प्राधिकरण अध्यक्ष मधु वर्मा ने बताया हमारे पास 15 करोड़ की योजना तैयार है। योजना के तहत बड़ा बिलावली-छोटा बिलावली- मुंडी-राऊ तालाब की आगम क्षेत्र के साथ जलसंग्रहण क्षेत्र को व्यवस्थित करेंगे। स्वीकृति की उम्मीद के साथ योजना दोबारा नगर निगम को सौंपेंगें।

क्यों जरूरी है योजना

बायपास बनने के बाद बड़ा बिलावली तालाब में पानी की आव पहले ही कम हो चुकी थी। दो-तीन वर्षो में ग्रामीणों ने उस राऊ-निहालपुर और बिलावली चैनल को भी नहीं बख्शा जो राऊ की पहाड़ियां का बरसाती पानी तालाब तक पहुंचाती थी। सफाई की कमी और अतिक्रमण ने चैनल की उपयोगिता के साथ तालाब के जलस्तर को भी समेटकर रख दिया। छह साल पहले महापौर कैलाश विजयवर्गीय ने राऊ से बिलावली पैदल यात्रा करके गाद और चैनल के अवरोध दूर करने का आश्वासन दिया था। निगम ने वर्षो से चैनल की सफाई नहीं की और न ही अतिक्रमण हटाए।

कैसी है चैनल


तालाबों के चैनल में कुल छह तालाब और अंत में नहरभंडारा (खान नदी) आती है। राऊ की पहाड़ियों का पानी नाले के माध्यम से राऊ के छोटे तालाब में जमा होता है। यहां से एबी रोड पार करते हुए निहालपुर स्थित मुंडी तालाब पहुंचता है। मुंडी भरने के बाद पानी बड़ा बिलावली और वहां से ओवरफ्लो होकर छोटे बिलावली में जाता है। इसके पाद पानी पीपल्यापाला में जमा होता है और वहां से नहरभंडारा (खान नदी) में जाता है। खंडवा रोड के दूसरी ओर स्थित लिंबोदी तालाब भी इस चैनल का एक हिस्सा है। जहां रालामंडल की पहाड़ियों का पानी जमा होता है और ओवरफ्लो होकर बड़े बिलावली तालाब में पहुंचता है।

15 इंच बरसात में लबालब होगा पीपल्यापाला


- दो दिशाओं में डल रही दो किलोमीटर लंबी लाइनों से तालाब पहुंचेगा बरसाती पानी

- 50 लाख खर्च होंगे

इंदौर में अल्पवर्षा का दौर आगे भी यूं ही जारी रहता है तो भी पीपल्यापाला तालाब शहरवासियों को लबालब भरा ही नजर आएगा। इसके लिए इंदौर विकास प्राधिकरण आसपास की कॉलोनियों-बस्तियों में व्यर्थ बहने वाले बरसाती पानी को सहेजकर तालाब तक पहुंचाएगा। योजना के तहत दो दिशाओं में तकरीबन दो किलोमीटर लंबी पाइप लाइन बिछाई जा रही है।

उम्र का सैकड़ा पर कर चुके पीपल्यापाला तालाब को रीजनल पार्क की शक्ल देने के साथ ही प्राधिकरण ने उसका हलक बारहों महीने गिला रखने की कवायद भी शुरू कर दी है। इसके लिए पहले तालाब को पूरा भरा जाएगा और बाद में इंटरनल चैनल बनेगी जिससे पानी तालाब से निकलकर गार्डन होते हुए दोबारा तालाब पहुंचेगा।

कैसे भरेगा तालाब

प्राधिकरण अध्यक्ष श्री वर्मा और सीईओ प्रमोद गुप्ता के अनुसार रिंग रोड (पीपल्याराव) स्थित प्रतिक्षा ढाबे और जीतनगर सहित आसपास की दूसरी बस्तियों को तालाब तक जोड़ने के लिए तकरीबन एक किलोमीटर लंबी लाइन डाली जा रही है। लाइन बरसात के दौरान उस पानी को तालाब तक पहुंचाएगी जो अभी रिंग रोड और बस्तियों से नालों में बह जाता है।

दूसरी लाइन मां विहार कॉलोनी से एमआर-3 और आसपास की बस्तियों को तालाब से जोड़ने के लिए डाली जा रही है। इसकी लंबाई 900 मीटर है। मां विहार तक बस्तियां और ढालू जमीन है। यहां का जो बरसाती पानी अब तक नहरभंडारे के नाले में जाता था अब उसे तालाब पहुंचाया जाएगा।

तैयार है तस्वीर बदलने की रूपरेखा

क्या-क्या होगा

* राऊ-बिलावली और बिलावली-पीपल्यापाला चैनल को गाद निकालकर दोगुना तक चौड़ा करेंगे।
* राऊ तालाब के साथ मुंडी तालाब को गहरा करके उनकी मजबूती बढ़ाएंगे।
* बड़े बिलावली की मोरी को व्यवस्थित करेंगे।
* छोटा बिलावली तालाब की दरकती पाल भी ठीक करेंगे।
* सौंदर्यीकरण के लिए पाल के आसपास पौधारोपण भी प्रस्तावित है।

हमने कभी मना नहीं किया

प्राधिकरण की योजना अच्छी है और वह काम करने के लिए स्वतंत्र है। हमने शहरहित से जुड़ी प्राधिकरण की किसी भी योजना को नामंजूर नहीं किया। इसका बड़ा उदाहरण है शहरी क्षेत्र में उनके द्वारा बनाई जाने वाली सड़कें।
-डॉ. उमाशशि शर्मा, महापौर

साथ काम करने के लिए तैयार हैं
प्राधिकरण की पहली योजना मेरे प्राधिकरण सीईओ रहते ही तैयार की गई थी। अब यदि तालाबों के विकास संबंधित कोई योजना प्राधिकरण से मिलती है तो हम उनके साथ काम करने के लिए तैयार हैं। हमें इस संबंध में कोई ऐतराज नहीं।
-सी.बी.सिंह, निगमायुक्त

ये होंगी अगली दस

इंदौर। जमीन की जालसाजी के खिलाफ जारी प्रशासनिक जांच में गृह निर्माण सहकारी संस्थाओं की संख्या 25 से बढ़कर 35 होगी। संभागायुक्त के निर्देश पर सहकारिता विभाग शिकायतों की संख्या के आधार पर संस्थाओं की सूची तैयार कर रहा है।

इधर, जुलाई में पुलिस को मिली शिकायतों के आधार पर "पत्रिका" ने दागी संस्थाओं की संभावित सूची तैयार कर दी। इसमें एक ही जमीन पर दो-तीन बार कॉलोनी काटने वाली संतोषी और सदस्यों के बजाय अध्यक्ष के परिजन को प्लॉट देने वाली राजस्व ग्राम गृह निर्माण सहकारी संस्था शामिल हैं।

कहा था बाद में दर्ज होगी
शनिवार को समीक्षा बैठक में संभागायुक्त बीपी सिंह और आईजी संजय राणा ने सूची विस्तार के निर्देश दिए थे। इधर, पत्रिका ने आईजी की पहल पर जुलाई में दर्ज शिकायतों को खंगाल कर ऎसी संस्थाओं की सूची तैयार की, जिनके खिलाफ यह कहकर पहले चरण में शिकायतें दर्ज नहीं की गई थीं कि इनकी शिकायतें बाद में सुनी जाएंगी। इसके बाद सैकड़ों लोगों को निराश लौटना पड़ा। बहरहाल, अब लोगों को नई उम्मीद दी। संभावित सूची में दर्जनभर से अघिक संस्थाएं हैं।

संस्थाएं और कारनामे
ग्रीनलैंड गृह निर्माण संस्था : पूर्वी रिंग रोड पर गुलाबबाग कॉलोनी काटी थी। गुलाबबाग रहवासी संघ की मानें तो संस्था के संचालक एक हॉस्पिटल के कर्ताधर्ता मुनाफ भाई हैं। संचालक मंडल ने सड़क, सेप्टिक टैंक, स्कूल और पार्क के लिए आरक्षित जमीनों पर प्लॉट बेचे। शुल्क लिया, विकास नहीं किया। जांच ईओडब्ल्यू कर रहा है।

सुखलिया ग्राम गृह निर्माण संस्था: श्यामनगर, श्यामनगर एनेक्स सहित सुखलिया क्षेत्र में तीन-चार कॉलोनियां काटीं। संचालक मंडल के खिलाफ रजिस्ट्री के बावजूद प्लॉट का कब्जा न देने और सार्वजनिक उपयोग की जमीन बेचने की शिकायत।

मप्र वाणिज्यकर अल्पआय चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी गृह निर्माण सहकारी संस्था : संस्था की खजराना स्थित पांच एकड़ जमीन पर मुश्ताक व उसके साथियों का कब्जा है। दस्तावेज भी आयकर छापे में बरामद हुए थे। संस्था के प्लॉट 200 थे, लेकिन सदस्य 2000। सबको प्लॉट का इंतजार है। अध्यक्ष कैप्टन सोबरनसिंह है।

संतोषी माता गृह निर्माण सहकारी संस्था : पंचवटी कॉलोनी के पीछे जहां इंद्रप्रस्थ कॉलोनी काटी, वहीं दूसरी भी काट दी। प्लॉट और विकास शुल्क के नाम पर दो से सवा दो लाख रूपए लिए, लेकिन प्लॉट नहीं दिया। कर्ताधर्ताओं का सीधा संबंध दागी देवी अहिल्या और नवभारत संस्था के संचालकों से।
मां सरस्वती गृह निर्माण सहकारी संस्था : अध्यक्ष शिवनारायण अग्रवाल देवी अहिल्या के फरार संचालकों में से एक। बगीचे की जमीन पर इमारत खड़ी कर दी। नाले पर प्लॉट काटे। जमीन भी बेच दी।

राजस्व गृह निर्माण सहकारी संस्था :
अध्यक्ष संजय अग्रवाल। संस्था ने बसंत विहार कॉलोनी काटी और चाचा रमेश अग्रवाल की मदद से सदस्यों के बजाय बहन-भाइयों सहित परिजन को प्लॉट दे डाले। ईओडब्ल्यू को भी शिकायत हो चुकी है।

फोटोग्राफर गृह निर्माण सहकारी संस्था
अध्यक्ष महेश भाटिया। संचालक मंडल पर मिलीभगत से जमीन छोड़ने और फर्जी दस्तखत से पूंजी खर्च करने का आरोप। अध्यक्ष ने षड्यंत्रपूर्वक सदस्य बनाए। इनमें 380, उषानगर के संतोष दुबे और उसके परिजन के नाम हैं। दुबे की जमीन विवाद में हत्या हो चुकी है।

लक्ष्मी गृह निर्माण सहकारी संस्था
खजराना क्षेत्र में जमीन खरीदी थी। सदस्यों को प्लॉट नहीं मिले और किसी भूमाफिया ने अवैध कॉलोनी काट दी। सदस्य प्लॉट के लिए परेशान। संस्था का कर्ताधर्ता एक कांग्रेस नेता।

अन्य संस्थाएं
शासकीय कर्मचारी गृह निर्माण सहकारी संस्था स्वास्तिकनगर कॉलोनी काटने वाली संस्था के कर्ताधर्ता श्याम जोशी और समर्थक हैं।

वेदमाता
निरंजनपुर क्षेत्र में कॉलोनी काटी थी, लेकिन सदस्यों को प्लॉट नहीं मिले। संचालक मंडल भंग हो चुका है। बहरहाल, परिसमापन की कार्रवाई चल रही है। प्रभारी अघिकारी मोनिका सिंह हैं।

कलेक्टर कर्मचारी
दो महीने पहले ही चुनाव हुए। इसके खिलाफ भी कई शिकायतें हैं।करतार गृह निर्माण सहकारी संस्थासहकारिता विभाग और पुलिस प्रशासन को आए दिन इसकी शिकायतें मिलती हैं।

"इनमें कुछ संस्थाएं ऎसी हैं, जिनके खिलाफ वास्तव में हमें भी ज्यादा शिकायतें मिली हैं। हालांकि शिकायतों की समीक्षा के बाद ही कह पाएंगे कि किसके खिलाफ कितनी शिकायतें मिलीं और क्या कार्रवाई की जा सकती है।"
- महेंद्र दीक्षित, उपायुक्त, सहकारिता

एक क्लिक पर हाजिर जमीन की जानकारी

इंदौर. ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन की खरीदी और बिक्री के दौरान अब कोई भी धोखाधड़ी नहीं कर सकेगा। एक क्लिक करते ही खसरा नंबर और भू-उपयोग के साथ जमीन की जानकारी कम्प्यूटर स्क्रीन पर होगी। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ने पहले चरण में शहर सीमा से लगे 90 गांवों को ऑनलाइन करना शुरू कर दिया है। जिला प्रशासन के सहयोग से 25 गांवों की जानकारियां एकत्र की जा चुकी हैं।

पहले चरण में शहर सीमा से लगे उन 90 गांवों की जानकारी जुटाई जा रही है जो मास्टर प्लान-2021 का हिस्सा हैं। इसमें सांवेर रोड तरफ भौंरासला, कुम्हैड़ी, बरदरी, रेवती, जाख्या, भांग्या, भानगढ़, शक्कर खेड़ी और नेमावर रोड तरफ देवगुराड़िया, बिचौली, सनावदिया और दुधिया सहित 25 गांवों का मसौदा तकरीबन तैयार है। इसमें मिल्कियत व क्षेत्रफल सहित जमीन का सर्वे नंबर, खसरा नंबर और उसके भू-उपयोग संबंधी सभी जानकारियां होंगी। जमीन को लेकर राजस्व विभाग में चल रहे विवाद भी इसमें शामिल हैं। गांव की प्रस्तावित सड़कें और उनकी सेंट्रल लाइन भी मसौदे में शामिल होगी।

ऑनलाइन व्यवस्था की कमान पूरी तरह विभाग के संयुक्त संचालक विजय सावलकर ने संभाल रखी है। उन्होंने बताया लोगों को जमीन संबंधी धोखाधड़ी से बचाने के लिए व्यवस्था पर काम कर रहे हैं। मौका मुआयना कर, गूगल अर्थ और राजस्व विभाग के सहयोग से जानकारियां इकट्ठा कर रहे हैं। तीस फीसदी जानकारियां एकत्र हैं बाकी काम भी दो-तीन महीने में पूरा हो जाएगा।

सड़कें होंगी गांव से बाहर

प्रस्तावित सड़कें बनाने के लिए अब ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षो पुराने मकान तोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। टीएंडसीपी के अधिकारियों की मानें तो नई सड़कों को गांव के बाहर से निकालने की तैयारी चल रही है। इस संबंध में एमपीटीएंडसीपी संचालक से भी सहमति ली जाएगी।

हरे-भरे होंगे तालाब और नाले

टीएंडसीपी तालाब और नालों के संरक्षण पर खासा जोर दे रहा है। प्लान के अनुसार तालाबों के आसपास की तीस मीटर जमीन ग्रीन एरिया होगी। वहीं नालों के दोनों ओर नौ-नौ मीटर का क्षेत्र हराभरा होगा। श्री सावलकर ने बताया हमारी कोशिश है कि अब कोई भी तालाब या नाला भू-माफियाओं की भेंट न चढ़े।

कैसे जुटाएंगे जानकारी

इंटरनेट पर टीएंडसीपी की साइट खोलना होगी। इसमें होम पेज पर ही रिकॉर्ड सर्च का ऑप्शन है। इसमें गांव का नाम या खसरा नंबर डालकर जमीन की जानकारी निकाली जा सकेगी। अभी तक शुल्क देकर सूचना के अधिकार में जानकारी जुटाना पड़ती थी। विभाग के चक्कर काटना पड़ते थे सो अलग। साइट पर जानकारी नि:शुल्क मिलेगी।

जमीन जीमने में सुदर्शन भी शामिल


इंदौर। जमीन से जुड़े मामलों में क्षेत्र क्रमांक एक के विधायक सुदर्शन गुप्ता के नाम का खुलासा हुआ है। गुप्ता और उनका परिवार मां सरस्वती गृह निर्माण सहकारी संस्था का 2006 में सदस्य बना, जबकि तुलसी नगर के प्लॉट उनके नाम 2005 में ही हो चुके थे। प्लॉट भी एक-दो नहीं, क्रम से पूरे चार। डेढ़ हजार रूपए प्रति वर्गफीट के हिसाब से इनकी कीमत करीब 90 लाख रूपए आंकी जा रही है। संस्था के अध्यक्ष शिवनारायण अग्रवाल हैं। अग्रवाल देवी अहिल्या गृह निर्माण सहकारी संस्था के 22 फरार संचालकों में से एक हैं।

15 हजार वाले को प्लॉट, 52 हजार वाले डिफाल्टर
गुप्ता परिवार को दिया गया हर प्लॉट 1500 वर्गफीट का है। परिवार ने विकास शुल्क के साथ हर प्लॉट के 15 हजार रूपए चुकाए। रजिस्ट्री भी हो गई। वहीं गुप्ता परिवार से पहले सदस्य बने शरद जैन से 37500, वीरेंद्रसिंह से 28500, राधा यादव से 31500, दिगंबर जैन यंग ग्रुप से 52500 और सुमित कैलाश नाहर से 50 हजार रूपए लेने के बाद भी संस्था ने डिफाल्टर घोषित कर दिया गया।

किसके नाम कौन-सा प्लॉट
सुदर्शन गुप्ता
पिता- इंदरमल गुप्ता
पता- 4/5, महेशनगर
सदस्यता- 18 मई 2006
जमा राशि-विकास शुल्क- 15 हजार
आवंटित प्लॉट नं. 153/अव
रजिस्ट्री/तारीख- 4371/2 मार्च 2005

शकुंतला गुप्ता (गुप्ता की पत्नी)
पिता- वल्लभदास गुप्ता
पता- 4/5, महेशनगर
सदस्यता ली- 18 मई 2006
जमा राशि-विकास शुल्क- 15 हजार
आवंटित प्लॉट नं. 156/अव
रजिस्ट्री- 4296/26 फर. 2005

इसलिए सौदे में गड़बड़ी
* किसी संस्था में परिवार का एक ही व्यक्ति प्लॉट ले सकता है। यहां अपने, पत्नी व मां के नाम कई हैं।
* पत्नी की पहचान छुपाई। पति के बजाय ससुर का नाम लगाया।
* स्वयं के आगे पिता का नाम इंदरमल गुप्ता, वहीं मां के नाम के आगे इंद्रदेव आर्य।

सुदर्शन से सवाल-जवाब
-- आपने संस्था से कोई प्लॉट खरीदा था?
हां, 15-20 साल पहले। हाथोहाथ बेच दिया।
-- कहां खरीदा था?
याद नहीं।
-- सरस्वती संस्था में खरीदा था?
किसकी है यह संस्था?
-- अग्रवाल बंधुओं की?
नहीं, मैंने तो रि-सेल में खरीदी।
-- रजिस्ट्री 2005 में हुई, सदस्य 2006 में बने?
रि-सेल में खरीदा। 2005 में रजिस्ट्री कराई, फिर नाम ट्रांसफर कराया और सदस्यता ली।
-- कितने प्लॉट लिए थे?
बस एक।
-- दस्तावेजों में पत्नी के नाम पर भी प्लॉट है?
उन्होंने भी रिसेल में लिया होगा।
-- किससे खरीदे प्लॉट?
पूरे दस्तावेज थे। ओरिजनल जिससे खरीदा उसे दे दिए। फोटोकॉपी संस्था को दे दी।
-- आपकी माताजी के नाम पर भी प्लॉट हैं?
हां, तो हम अलग रहते हैं और माता-पिता अलग। वे तो ले सकते हैं।
-- सभी प्लॉट बेच दिए?
हां। पैसों की जरूरत पड़ी तो बेच दिए।
-- किसे बेचे।
किसी माहेश्वरी को।
-- नियमानुसार संस्था से खरीदा प्लॉट दस साल से पहले नहीं बेचा जा सकता।
मैंने संस्था से नहीं खरीदा था।
-- संस्था के खाते में प्लॉट पेटे 15-15 हजार रूपए जमा हैं?
वह नामांतरण के लिए दिए थे।
सुदर्शन गुप्ता, विधायक

अफसरों ने बांटी सरकारी जमीन

इंदौर। जमीन की जालसाजी में कर्मचारी राज्य बीमा निगम के कुछ अफसरों ने भू-माफियाओं को भी पीछे छोड़ दिया। इंदौर के नंदानगर क्षेत्र में एमआर-9 और एमआर-10 के बीच सरकार से 109 एकड़ जमीन निगम को सशर्त दी थी, लेकिन अफसरों ने 22 एकड़ से ज्यादा जमीन एक रूपए वर्गफीट लीज पर दो गृह निर्माण संस्थाओं के नाम कर डाली। लगभग तीस करोड़ रूपए बाजार भाव की जमीन की लिखा-पढ़ी भी पांच-पांच रूपए के स्टॉम्प पर है। संस्था अध्यक्षों के साथ निगम के तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक वीरेंद्र नागर का नाम दर्ज हैं।

दोनों संस्थाएं निगम के अघिकारियों-कर्मचारियों की हैं, जिन्होंने गैर सदस्यों को भी प्लॉट दे रजिस्ट्रियां करा दीं। शिकायत पर जिला पंजीयक ने लीज शर्तो का उल्लंघन मान रजिस्ट्री निरस्त कराने के लिए कोर्ट की सलाह दी। नंदानगर से लगी भमौरी दुबे की 109 एकड़ जमीन कर्मचारी राज्य बीमा निगम (कराबीनि) इंदौर को प्रदेश सरकार ने 5 अक्टूबर 1962 को 90 साल की लीज पर दी थी।

जमीन श्रमिकों के कल्याण, चिकित्सा सेवाएं, निगम दफ्तर व कर्मचारी आवास में काम आना चाहिए, लेकिन अफसरों ने जमीन का लगभग चौथाई हिस्सा तीन लीज डीड से कराबीनि योजना कर्मचारी और कराबीनि कर्मचारी गृह निर्माण सहकारी संस्था को सौंप दिया। न प्रदेश सरकार की मंजूरी ली, न संस्थाओं ने ही जमीनों की रजिस्ट्री कराई। संस्थाओं ने इस जमीन पर सत्यम विहार और सुयश विहार कॉलोनी विकसित की। एडवोकेट मुकेश देवल के मुताबिक जमीन निगम की मिल्कियत नहीं, नामांतरित की गई है। ऎसे में निगम को स्टाफ के लिए सरकारी आवास ही बनाना थे, लेकिन जमीन संस्थाओं को सौंप दी। कानूनन जमीन लीज पर लेने वाला उसे किसी और को दोबारा लीज पर नहीं दे सकता।

नजूल ने भी थमाए नोटिस
शिकायत मिलने पर 6 मई 2009 को नजूल अघिकारी ने निगम के डायरेक्टर और दोनों संस्थाध्यक्षों को कारण बताओ नोटिस देकर तीन दिन में जानकारी मांगी थी। 21 जुलाई 2009 को दूसरा नोटिस भी दिया और पूछा निगम ने जमीन को फ्रीहोल्ड संपत्ति कैसे मान लिया?

कोर्ट की शरण लें
इसकी शिकायत किसी किशोर कुमार ने जिला पंजीयक को की तो 6 जनवरी 2010 को कोर्ट की शरण लेने की सलाह दी गई। साथ में स्पष्ट किया एक साल से ज्यादा के लिए दिए पट्टे के दस्तावेज की रजिस्ट्री कानूनन अनिवार्य है। विक्रेता अचल संपत्ति का इस्तेमाल शर्तो के आधार पर ही करेगा।

लीज उल्लंघन का मामला
मामला लीज के उल्लंघन का है। पंजीकृत दस्तावेज निरस्त करने का अधिकार रजिस्ट्रार कार्यालय को नहीं है, इसलिए शिकायतकर्ता को कोर्ट में अपील करने की सलाह दी गई।
- डॉ. श्रीकांत पांडे, जिला पंजीयक

जो भी हुआ, बहुत पुराना है। तत्कालीन अधिकारियों ने कानून देखकर ही यह काम किया होगा। मुझे जहां तक जानकारी है मुख्यालय से अनुमति लेने के बाद ही जमीन लीज पर दी है। कुछ गलत हुआ है तो प्रशासन की जांच में खुलासा हो जाएगा। ऎसा हुआ तो हम भी दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे। जरूरत पर पेनल्टी भी लगाएंगे। लीज डीड दिल्ली मुख्यालय में है। क्या शर्तेü थी यह दस्तावेज देखने के बाद ही बता पाएंगे।
- एके मुखोपाध्याय, क्षेत्रीय निदेशक, कराबीनि

खेत किसी का कॉलोनी किसी और की

इंदौर। कुम्हेड़ी ग्राम निवासी लक्ष्मीनारायण व्यास की एमआर-10 रोड से लगे प्रकाशनगर के पास आठ बीघा जमीन है जहां गेंहू की फसल लहलहा रही है। सप्ताहभर से लोग खेत पर जाते हैं और फसल कब निकलेगी यह पूछकर लौट जाते हैं। लोगों की आवाजाही देख वे दंग रह गए। तहकीकात की तो पता चला भूमाफिया उनके खेत को कॉलोनी बताकर प्लॉट बेच चुके हैं और खरीदारों को कब्जे के लिए फसल निकलने का इंतजार है। श्री व्यास पहले तो घबरा गए लेकिन दस्तावेज दिखाने के बाद वकील से मिले आश्वासन के बाद उन्होंने मामले की शिकायत पुलिस कंट्रोल रूम पर भी की। हालांकि कार्रवाई कुछ नहीं हुई।
सिर्फ श्री व्यास ही नहीं, आधा दर्जन से अधिक ऐसे किसान हैं जिनकी करोड़ों की जमीनों का किसी ने बाले-बाले ही सौदा कर दिया लेकिन उन्हें भनक तक नहीं लगी। पता भी लगा तो उस वक्त जब प्लॉट खरीदने वाले खेत पर कब्जा लेने पहुंच गए। बैठे-बठाए बेवजह की परेशानी ऐसे गले पड़ी कि कभी वकीलों के तो कभी अधिकारियों के चक्कर काटना पड़ रहे हैं। श्री व्यास ने बताया खेत पर लोगों की आवाजाही दो-तीन महीने से जारी थी लेकिन न कभी मैंने उनसे बात की न ही कभी उन्होंने मुझसे। जमीन के पुश्तैनी दस्तावेज हैं इसलिए कभी पूछताछ की आवश्यकता नहीं पड़ी। लोग कब्जा लेने आए तो पता चला जमीन का सौदा हो चुका है। मामले की शिकायत हीरानगर थाने के साथ एसपी ऑफिस पर भी कर दी है। दूसरा मामला भांगिया ग्राम पंचायत और उसके सरकारी कांकड़ से लगी जमीनों का है। इंद्रपाल सिंह यादव, अशोक यादव और भीमसिंह पिता मानसिंह (कॉलोनाइजर) ने कांकड़ के साथ कॉलोनी बताकर इस जमीन को भी बेच दिया। असल में यह जमीन भांगिया निवासी राजेंद्र दुबे की है जबकि 12 बीघा लंबे-चौड़े कांकड़ की कुछ जमीन सेवाभूमि के रूप में चौकीदार और कुछ भांगिया निवासी बौंदरजी मंडोलिया और नाथूलाल को पट्टे पर उपयोग के लिए प्रशासन ने दी थी। कॉलोनाइजर और उसके समर्थकों का कहना है कि जमीन उन्होंने पांच लाख रुपए में खरीदी थी। दूसरी ओर श्री दुबे का कहना है मुंह उठाकर किसी की जमीन को अपनी बता देने से वह अपनी नहीं होती। जमीन का किसी के साथ कोई सौदा नहीं हुआ। कॉलोनाइजर ने प्लॉट के नाम पर लोगों को ठगा है। सौदे की बात सिरे से खारिज करते हुए बौंदरजी के बेटे हीरालाल मंडोलिया ने बताया जमीन पट्टे की है और उसे बेचकर हमें जेल नहीं जाना। प्रशासन कभी भी पट्टा निरस्त करके कब्जा ले सकता है। जमा पूंजी से बने मेरे नए मकान को देखकर हर कोई कॉलोनाइजर की बात पर भरोसा कर रहा है।
जमीन सरकारी, सौदा हुआ है
ठ्ठ जाख्या-भांगिया के सरपंच प्रेमसिंह चौहान का कहना है 12 बीघा जमीन सरकारी कांकड़ है। चौकीदार का तो नहीं पता लेकिन मंडोलिया परिवार ने जमीन बेची इसकी शिकायत मुझे भी मिली थी जिसकी जानकारी पटवारी को देकर कार्रवाई की मांग कर चुका हूं। ठ्ठ रेवती-बरदरी ग्राम के सरपंच पति आनंदीलाल शर्मा ने बताया भूमाफियाओं की निगाहें थी लेकिन वक्त रहते शिकायत करके उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।

एसडीएम ने मौका देखकर गिरफ्तारी के निर्देश दिए थे
जमीन प्राधिकरण को सौंपी

कुम्हेड़ी सरपंच राजेश चौकसे ने बताया अवैधानिक रूप से काटी जा रही कॉलोनी की शिकायत तीन महीने पहले की थी। तत्कालीन एसडीएम सुनील दुबे ने मौका मुआयना किया और कॉलोनाइजरों की गिरफ्तारी के आदेश भी जारी किए थे। हालांकि बार-बार याद दिलाने के बाद भी कार्रवाई नहीं हो पाई। प्रकाशनगर और उससे लगी खुली जमीन पंचायत तहसील के अनुमोदन के बाद इंदौर विकास प्राधिकरण को सौंप चुकी है। प्राधिकरण यहां स्कीम-139 से हटाए जाने वाले परिवारों को यहां बसाएगा। यहां 52 लाख की सड़क का भूमि पूजन भी हो चुका है।

तहसील को रिपोर्ट सौंप दी थी
क्षेत्र में अवैध कॉलोनियों से अनजान नहीं हूं। कुछ दिन पहले ही तहसीलदार को रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया था कि भौरासला के सर्वे नं. 170 और भांगिया के सर्वे नं. 1/1 में इंद्रपाल सिंह यादव, अशोक यादव और भीमसिंह पिता मानसिंह ने अवैध रूप से कॉलोनी काटी है। बाद में तहसील कोर्ट से इन्हें नोटिस भी जारी हुए थे। नोटिस का क्या हुआ मुझे जानकारी नहीं।
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योगेंद्र श्रीवास्तव, पटवारी