Wednesday, December 8, 2010

TOLLLL 5 SIMHASTH ME VASULI


TOLLLL 5 SIMHASTH ME VASULI

Tuesday, December 7, 2010

TOLL 4 KAMAU SADAK-SUVIDHAVON KA SANKAT


TOLL 4 KAMAU SADAK-SUVIDHAVON KA SANKAT

TOLLL 3 INDORE-EDELABAD


TOLLL 3 INDORE-EDELABAD

TOLLL 2 IDA MR-10


TOLLL 2 IDA MR-10

TOLLL 1 IDA


IDA TOLL MR-10

TOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOLLLLLLLLLLLLLL


TOLL PLAZA

SBI VS SB INDORE

'इंडियाÓ के मारों को याद आया 'इंदौरÓ


-- स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के एसबीआई में विलय के बाद बढ़ी उपभोक्ताओं की फजीहत
-- इंदौर बैँक के मुकाबले सहुलियतें कम, सशुल्क सेवाएं कम कर रही उपभोक्ताओं की जेब हल्की

इंदौर, विनोद शर्मा।
स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के विलय के साथ बड़ी बैंक से जूड़कर ज्यादा सहूलियतों की उम्मीद लगाए बैठे उपभोक्ताओं के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अब तक 'ऊंची दुकान-फीके पकवानÓ ही साबित हुआ है। एसबीआई ने नई सुविधा-सहुलियतें तो नहीं दी। अलबत्ता, स्टेट बैंक ऑफ इंदौर की परम्परागत रियायतों की राह भी रोक दी। सेवाओं का शुल्क जो लेना शुरू किया तो सबसे बड़ी बैंक के साथ का सुख धरा रह गया और आखिरकार उपभोक्ताओं को इंदौर बैंक याद आ गई। यही हाल उन अधिकारियों का भी है जो ऊंचे ओहदे के कारण कभी कॉलर ऊंची करके चलते थे लेकिन आज एसबीआई के अधिकारियों का हुक्म बजाते नजर आते हैं।
देशभर में इंदौर का नाम रोशन रखने वाली स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के विलय के साथ जताई जाने वाली उपभोक्ताओं और स्टॉफ की फजीहत की आशंका आज कड़वी हकीकत के रूप में सामने आ रही है। बड़ी बैंक का फायदा बड़े उपभोक्ताओं को मिला हो या न मिला हो लेकिन छोटे और सामान्य उपभोक्ता आज परेशान हैं। उपभोक्ताओं की जुबानी और हाल-ए-हकीकत मानें तो विलय के तीन महीने बाद भी एसबीआई की स्टेशनरी शाखाओं तक नहीं पहुंची। शाखाएं और एटीएम तो बढ़े लेकिन उपभोक्ताओं की सहुलियत के लिहाज से एसबीआई उन्हें मेंटेन नहीं कर पाया। नतीजा कहीं केश जमा करने की व्यवस्था बदहाल है तो कहीं केश निकालने की। दूसरी शाखा में लेन-देन सशुल्क कर दिया सो अलग। फिर मुद्दा पासबुक बनाने का हो या नकद जमा कराने का। प्रक्रिया की पेचिदगियां बड़ी दिक्कत साबित हुई जिसके कारण लोन और चेक क्लीयरिंग में देर उपभोक्ताओं का सिरदर्द बढ़ा दिया है।
उधर, विलय से पहले तक खुली मुखालफत करने वाले इंदौर बैंक के अधिकारी-कर्मचारी अब एसबीआई के मातहत हैं। इसीलिए वे खुलकर तो नहीं बोलते लेकिन दबे स्वर में एसबीआई की नीतियों की हकीकत बयां करते नजर आते हैं। उनकी मानें तो एसबीआई ने इंदौर बैंक के स्टॉफ के साथ सौतेला व्यवहार शुरू कर दिया है। हमें एसबीआई स्टाफ के मुकाबले सहुलियतें कम दी जा रही है। उलटा हमारी सीनियरिटी घटा दी सो अलग।
एसबीआई से तो इंदौर बैंक ही ठीक था
अब तक नाम बड़े, दर्शन..। वाली स्थिति है। विलय से पहले सहुलियतों का जो सपना दिखाया जा रहा था वह झूठा साबित हुआ। कई सेवाओं और सामाजिक दायित्वों के मामले में इंदौर बैंक एसबीआई के मुकाबले बीसी ही साबित हुई है।
खलील अहमद निजामी, उपभोक्ता
स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का हेड ऑफिस इंदौर में स्थित है, जबकि भारतीय स्टेट बैंक ऑफ का सेंट्रल ऑफिस मुंबई में है। विलय के साथ इंदौर बैंक का प्रधान कार्यालय बंद होने का खामियाजा कॉर्पोरेट हॉउसेस और उद्यमी चुका रहे हैं। उनके काम वक्त पर नहीं होते।
रामगोपाल दीक्षित, उपभोक्ता
प्रोद्योगिकी के इस्तेमाल के मामले में स्टेट बैंक ऑफ इंदौर और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया दोनों करीब-करीब एक समान है थी। इंदौर बैंक वह सभी प्रौद्योगिकीकृत सुविधाएँ दे रहा था जो एसबीआई मुहैया करा रहा है। इससे आम ग्राहकों को कोई नई एडेड सर्विस नहीं मिली।
जगदीश गड़वाल, उपभोक्ता
शेयरधारकों की नजर से नुकसान
इंदौर बैंक के मध्यप्रदेश में निवासरत अंशधारक अब तक बैंक की इंदौर में होने वाली वार्षिक साधारण सभा में अपनी राय जाहिर करते थे। विलय के बाद उन्हें ये सुविधाएं नहीं मिल रही है। एसबीआई के शेयरधारकों की बैंठक तो केवल मुंबई, कोलकाता और अन्य महानगरों में ही आयोजित की जाती है। जहां जाना हर किसी के लिए संभव भी नहीं।
उपभोक्ताओं की दिक्कत
1- काम जिस गति से होता था अब नहीं हो रहा है। प्रक्रिया बढ़ी है।
2- लोन स्वीकृति जटिल होने से वक्त 'यादा लगने लगा।
3- चेक क्लीयरिंग में भी चार-चार दिन लगते हैं। लोग वक्त पर पैसों का लेन-देन नहीं कर पाते।
4- एक शाखा का उपभोक्ता यदि दूसरी शाखा से पास बुक प्रिंट कराता है तो अब दस रुपए देना पड़ते हैं जबकि पहले कोई शुल्क नहीं था।
5- दूसरी शाखा में नकद जमा कराने पर 25 रुपए का शुल्क देना पड़ता है जो स्टेट बैंक ऑफ इंदौर में नहीं लगता है।
6- बड़ी मात्रा में नकद जमा करने वाले उपभोक्ताओं को प्रति बंडल 25 रुपए का शुल्क चुकाना पड़ रहा है। इससे बड़े व्यापारी भी परेशान हैं।
7- करंट खाते के लिए न्यूनतम बैलेंस 5 हजार रुपए तय है जबकि पहले एक हजार रुपए था। इससे ग्रामीण क्षेत्र और छोटे उपभोक्ताओं को अब पांच हजार रुपए तक जमा रखना पड़ रहे हैं वह भी उस स्थिति में जब करंट खाते में ब्याज नहीं मिलता।
स्टाफ की नजर में मर्जर
1- मर्जर के तीन महीने बाद भी एसबीआई की स्टेशनरी शाखाओं तक नहीं पहुंची। इंदौर बैंक की स्टेशनरी से ही चल रहा है काम।
2- विलय के बाद काम बदला। नियम बदले। तरीके बदले लेकिन स्टाफ को प्रशिक्षण नहीं दिया। सिर्फ बोर्ड बदल दिया।
3- इंदौर बैंक का इंदौर में हेड ऑफिस था। अब हेड ऑफिस और जोनल ऑफिस भी बंद कर दिया।
4- इंदौर बैंक में एमडी स्तर के लोग बैठते थे जो हर स्तर के निर्णय के लिए सक्षम थे। विलय के बाद दारोमदार एसबीआई के सहायक महाप्रबंधक स्तर के अधिकारियों के कंधों पर आ गया जिनका अधिकार क्षेत्र कम है। उन्हें हर बड़े काम की मंजूरी के लिए फाइल भोपाल या मुंबई भेजना पड़ती है।
5- बड़ी बैंक से जूडऩे के बावजूद स्टाफ के आर्थिक लाभ बढऩे के बजाय कम हुए हैं। भत्ते और सुविधाएं जो इंदौर बैंक द्वारा स्थानीय स्तर पर दी जाती थी विलय के बाद बंद हो गई हैं।
6- विशेष क्षतिपूरक भत्ते और सीधी भर्ती के अधिकारियों को चार अतिरिक्त इंक्रीमेंट जैसी सहुलियतें एसबीआई ने इंदौर बैंक के लोगों को नहीं दी।
7- लोन लेने वाले स्टॉफ को इंदौर बैंक जो ब्याज दर में जो रियायत देती थी वह भी एसबीआई ने बंद कर दी। बैंक प्रबंधन कहता है पुराना खाता बंद करो। नए सिरे से लोन लो तब कहीं रियायत देंगे।
8- इंदौर बैंक के स्टॉफ की वरिष्ठता भी कम हुई है। आला प्रबंधन की तीन साल और वरिष्ठ श्रेणी की दो साल और कनिष्ठ श्रेणी के लोगों की सीनियरिटी एक साल कम कर दी।

धार रोड : न 'रोडÓ , न रोड की 'धारÓ

- कछुआ रफ्तार तो कैसे हो सुधार
छह महीने का दावा और सालभर बाद भी अधूरी रोड, छह महीने ओर लगेंगे
- पार्किंग से लेकर ट्रेंचिंग ग्राउंड तक बनी रोड

इंदौर, सिटी रिपोर्टर ।
छह महीनों की समयसीमा के साथ शुरू हुआ धार रोड की सूरत संवारने का काम सालभर बाद भी आधा-अधूरा है। कंपनी के मौजूदा रवैये और मैदानी हकीकत को देखते हुए यह कह पाना मुश्किल है कि आगामी छह महीनों में भी सड़क पूरी बन जाएगी। कंपनी की धीमी रफ्तार और नगर निगम के अधिकारियों की अनदेखी ने हादसों का हाई-वे साबित हो चुकी इस रोड पर दुर्घटनाओ की संभावनाएं दोगुनी कर दी है। वह भी उस स्थिति में जब निगम और पीडब्ल्यूडी के बीच जारी मालिकाना हक की कश्मकश के बीच सड़क को सिरपुर के आगे भी तीन किलोमीटर तक और बनाया जाना बाकी है।
मुद्दा है तकरीबन ढाई किलोमीटर लंबे धार रोड (गंगवाल बस स्टैंड से सिरपुर तालाब) का। नगर निगम चुनाव के परिणामों के बाद दिसंबर 2009 में महापौर डॉ.उमाशशि शर्मा ने इस सड़क का जो कायापलट शुरू किया था वह आज भी अंजाम तक नहीं पहुंचा। नगर निगम और कंपनी इसकी वजह बिजली-टेलीफोन लाइनों की शिफ्टिंग में हुई देर को कारण मानते हैं वहीं क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की मानें तो कंपनी द्वारा एक साथ कई सड़कों पर काम शुरू किए जाने के कारण देर हुई है। कंपनी की इस गलती का खामियाजा हादसों के रूप में लोगों को चुकाना पड़ रहा है। आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो सिरपुर तालाब से जिला अस्पताल के बीच ही साल में दो सौ से ज्यादा छोटे-मोटे हादसे हो ही जाते हैं।
डेढ़ साल से बदहाल है रोड की 'धारÓ
इंदौर की व्यस्ततम सड़कों में से एक और हादसों की होड़ के कारण हाई-रिस्क जोन साबित हो चुके इस रोड की धार खत्म हुए दो साल हो गए हैं। अक्टूबर 2008 से अक्टूबर 2009 तक पहले सीवरेज प्रोजेक्ट के कारण सड़क के एक हिस्से पर आवाजाही बंद रही और सालभर से सड़क की शक्ल सूधारने के नाम पर। सड़क की बदहाली को लेकर न निगम के अधिकारी गंभीर है और न ही क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नगर निगम ने इस रोड का काम पूरा किए बगैर मालवा मिल के सामने की उस रोड का काम शुरू कर दिया जिस पर निर्माणाधीन भंडारी क्रॉसिंग के कारण यातायात का दबाव पहले ही कम था। कंचनबाग से नाथ मंदिर और नाथ मंदिर से आरएनटी मार्ग के साथ हाईकोर्ट से होटल बलवास के बीच बनाई गई रोड क
छह महीने तो ओर लगेंगे
१. गंगवाल बस स्टैंड से जीएनटी तक 200 मीटर की दोनों पट्टियां पक्की है। बाकी दो सौ मीटर में एक हिस्सा बना है। रामकृष्णबाग पुलिया का काम भी होना है।
२. जीएनटी से जिला अस्पताल के बीच 700 मीटर के हिस्से में जिला अस्पताल वाली साइड में सड़क एक हिस्से में बनी है।
(दोनों हिस्सों में देरी की वजह 2008-09 में डाली गई सीवरेज लाइन को बताया जाता है। अधिकारी कहते हैं रुककर काम करेंगे नहीं तो सड़क बैठ जाएगी)
३. जिला अस्पताल से गंगानगर कलाली के बीच तीन सौ मीटर हिस्सा डामर का है जो उबडख़ाबड़ हो चुका है। दोनों तरफ के वाहन एक पट्टी पर ही चलते हैं।
४. कलाली से लेकर चंदननगर चौराहे के बीच सड़क सड़क कम, ट्रेंचिंग ग्राउंड 'यादा नजर आती है। तकरीबन 300 मीटर लंबा यह हिस्सा पूरी तरह कचरे और सीवरेज की गाद से गड़ा है। हालाकि बीच में नाले के पास सीमेंट का कुछ हिस्सा जरूर बना है। पुल की स्लैब डलना बाकी है।
५. चंदननगर चौराहा बदहाल है। अग्निहोत्रि पेट्रोल पंप के सामने और सिरुपर गांव की ओर टूकड़ों में रोड बनी है। सबसे 'यादा हादसे यहीं होते हैं।
देर की वजह बहानेबाजी
सीवरेज की लाइन डल चुकी है। लोगों ने स्वे'छा से निर्माण भी हटा लिए। बिजली कंपनी खंबों की शिफ्टिंग भी काफी हद तक कर चुकी है लेकिन निगम है कि बहाने पर बहाने बनाकर काम में देर कर रहा है। दो-तीन बार अधिकारियों को लताड़ भी चुके हैं लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा।
प्रिती अग्निहोत्रि, पार्षद
वार्ड-1
आश्वासन देकर अलविदा हो जाते हैं महापौर
निगम के अधिकारी मोटी चमड़ी के हो चुके हैं उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कोई कितना ही परेशान क्यों न होता रहे। दिसंबर में सालभर पूरे हो जाएंगे लेकिन सड़क आधी भी नहीं बनी। शिकवा-शिकायत करो तो महापौर-निगमायुक्त दौरे के साथ हवाई आश्वासन देकर अलविदा हो जाते हैं।
फातिमा खान, पार्षद
वार्ड-2
संसाधन नहीं थे तो दूसरी सड़क पर काम क्यों किया
जब कंपनी के पास एक साथ दो मौकों पर काम करने वाले संसाधनों की कमी थी तो उसने धार रोड को छोड़ दूसरी सड़क पर काम क्यों शुरू किया। मौजूदा हालात से लगता है सड़क छह महीने और नहीं बन पाएगी। अब इस दौरान लोग परेशान हो तो हो। किसे फर्क पड़ता है।
सुरजीतसिंह चड्ढा, पार्षद
वार्ड-66

पुलक सिटी : हाउसिंग बोर्ड ने बैठाई जांच


-मंत्री के निर्देश पर बनी एक सदस्यीय समिति
- सात दिन में करना होगी जांच

इंदौर, सिटी रिपोर्टर ।
आवास मंत्री के निर्देशानुसार पुलक सिटी के विवादित रास्ते की जांच मप्र हाउसिंग बोर्ड ने शुरू कर दी है। सात दिन की समयसीमा के साथ जांच की जिम्मेदारी कार्यपालन यंत्री को सौंपी गई है। सूत्रों की मानें तो जांच के लिए जिम्मेदार इंजीनियरों ने खसरावार दस्तावेज खंगालना भी शुरू कर दिए हैं।
पहले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और बाद में आवास मंत्री नरोत्तम मिश्रा द्वारा जारी कड़े पत्र के बाद हाउसिंग बोर्ड हरकत में आ गया है। मंत्री के आदेश को गंभीरता से लेते हुए मप्र हाउसिंग बोर्ड के उपायुक्त एच.डी. देशपांडे ने पुलक सिटी की जांच की जिम्मेदारी मंगलवार को कार्यपालन यंत्री आर.के.निगम को सौंप दी है। मौका निरीक्षण के साथ जांच करके रिपोर्ट पेश करने के लिए निगम को सात दिन का वक्त दिया है। हरहाल में रिपोर्ट सात दिन में पेश करना होगी।
उपायुक्त देशपांडे ने बताया आवास मंत्री के निर्देशानुसार हमें इस बात की जांच करना है कि कॉलोनी के रास्ते या उसे लेकर उठे विवाद का बोर्ड से कोई लेना-देना है या नहीं। रहा सवाल बोर्ड की भूमिका का तो इसकी पुष्टि सात दिन में आने वाली जांच रिपोर्ट में हो जाएगा। इससे पहले मैं किसी भी तरह की टिका-टिप्पणी नहीं कर सकता।
टीएंडसीपी : फाइल मिली
'पत्रिकाÓ के खुलासे के बाद टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से गायब पुलक सिटी की फाइल मंगलवार को मिल गई। शिकायतों के आधार पर टीएंडसीपी ने भी मंजूरी के दस्तावेज पलटना शुरू कर दिए हैं। गौरतलब है कि सोमवार की शाम तक फाइल के नाम पर सिर्फ कवर नोट लेकर बैठे टीएंडसीपी के अधिकारी फाइल के नाम पर यही कह रहे थे कि फाइल अवलोकन के लिए भोपाल गई है।
आईडीए: खसरावार जांच शुरू
इंदौर विकास प्राधिकरण के सूत्रों की मानें तो खसरावार खुलासे के बाद आवास एवं पर्यावरण मंत्री के निर्देशानुसार प्राधिकरण ने भी अपने स्तर पर जांच शुरू कर दी। गौरतलब है कि राऊ स्थित खसरा नं. 1065 को लेकर शिकायत हुई थी कि प्राधिकरण की प्रस्तावित स्कीम-165 का हिस्सा कहलाने वाली इस जमीन पर पुलक सिटी की अप्रोच रोड बनी है।

सालभर सीवरेज का संताप


-- राजकुमार ब्रिज से जूनी इंदौर अंडर ब्रिज के बीच डाली जाना है लाइन
-- यातायात के दबाव और बीएसएनएल की केबलों की अनदेखी
-- आठ महीनों में एक किलोमीटर लाइन डालने वालों को डालना है छह महीनों में दो किलोमीटर लंबी लाइन
-- महंगाई का बहाना बनाकर टाली जा रही है ट्रेंचलेस तकनीक


इंदौर, विनोद शर्मा ।
यातायात के दबाव और अंतररा'यीय संचार लाइनों की सुरक्षा के लिए बीएसएनएल द्वारा दी गई दरखास्त को अनदेखा करते हुए नगर निगम ने सीवरेज लाइन के लिए राजकुमार ब्रिज से लेकर जूनी इंदौर अंडर ब्रिज तक खुदाई की मंजूरी दे दी है। मंगलवार से काम शुरू करने वाली कंपनी और नगर निगम इसके लिए समयसीमा भले छह महीनों की मुकरर्र कर चुके हों लेकिन एबी रोड और राजमोहल्ला-अंतिम चौराहे जैसी सपाट सड़कों के कड़वे अनुभव बताते हैं कि यहां कमसकम सवा साल लोगों को परेशान होना पड़ेगा। इस तथ्य से जानकार भी सहमत है। उनकी मानें तो इस चट्टानी इलाके में खुदाई करके लाइन डालना आसान नहीं होगा। चट्टाने वक्त तो लेंगी ही।
भंडारी से जूनी इंदौर अंडर ब्रिज के बीच कुल तीन किलोमीटर लंबी लाइन डाली जाना थी। भंडारी से राजकुमार ब्रिज के बीच लाइन डल चुकी है। अब बारी है राजकुमार से जूनी इंदौर अंडर ब्रिज। इसकी लंबाई करीब दो किलोमीटर है। इसमें तीस फीट की गहराई पर कुल 600 पाइप डाले जाना है। आठ दिन पहले मिली नगर निगम की हरी झंडी के बाद पूर्व और मध्य क्षेत्र में सीवरेज प्रोजेक्ट को अंजाम दे रही नागार्जुन कंस्ट्रक्शन कंपनी (एनसीसी) मंगलवार से सड़क की खुदाई शुरू कर देगी। वह भी उस स्थिति में जब निर्माणाधीन भंडारी आरओबी के कारण सुनसान पड़े भंडारी- राजकुमार मार्ग पर एक किलोमीटर लंबी लाइन डालने में ही कंपनी ने आठ महीने लगा दिए। ऐसे में कंपनी राजकुमार से जूनी इंदौर के बीच दो किलोमीटर लाइन छह महीने में कैसे डाल देगी? इसका जवाब न निगम के पास है और न ही कंपनी के पास।
उधर, बीएसएनएल भी नगर निगम और कंपनी को पत्र लिखकर निगम को चेता चुका है कि नेहरू पार्क पुराना टर्मिनल है। यहां तीन सौ मीटर के दायरे में अंतररा'यीय केबलों के तार जूड़े हैं। यदि जरा-भी तोडफ़ोड़ हुई तो मप्र ही नहीं, आसपास के दूसरे रा'यों का नेटवर्क भी ठप हो जाएगा।
ऐसे करना होगा काम
पांच फीट से 'यादा डाया के इस पाइप को डालने के लिए आठ मीटर खुदाई करना होगी। इसमें चार मीटर तक मिट्टी और बाकी चार मीटर में चट्टाने हैं। ऐसे में खुदाई करके एक पाइप डालने में ही कंपनी को तीन दिन लग जाएंगे। यानी 600 पाइपों के लिए 1800 दिन। कंपनी एक साथ चार फ्रंट खोलती है तो भी काम 450 दिन में पूरा होगा। वह भी उस वक्त जब रोड पर यातायात पूरी तरह प्रतिबंधित रहे।
विकल्प और भी..
खातीवाला टैंक और लसूडिय़ा चौराहे की तरह यहां भी ट्रेंचलेस पद्धति से लाइन डाली जा सकती है। इस पद्धति में खुदाई जमीन के अंदर-अंदर होती है और ऊपर का यातायात भी प्रभावित नहीं होता। इस पद्धति को परम्परागत पद्धति के मुकाबले महंगी बताकर निम जिम्मेदारी कंपनी के कंधों पर ढोल रहा है।
क्यों है मुश्किल लाइन डालना
वल्लभन"र (राजकुमार ब्रिज) से रेसकोर्स रोड
लंबाई :- 450 मीटर
स्थिति :- एमजी रोड का विकल्प है रेसकोर्स रोड। राजकुमार आरओबी आने-जाने वालेे ट्रैफिक का दबाव 'यादा है।
वाहन संख्या :- एक मिनट में 40 से 50 वाहन।
रेसकोर्स रोड से शास्त्री ब्रिज
लंबाई :- 560 मीटर
स्थिति :- वीआईपी रोड का अहम हिस्सा जो राजकुमार को आरएनटी मार्ग से जोड़ता है। 300 मीटर के हिस्से में बीएसएसएल के अंतररा'यीय नेटवर्क के तार फैले हैं जिन्हें समेटपाना निगम के पास की बात नहीं।
वाहन संख्या :- एक मिनट में 50 वाहन।
शास्त्री ब्रिज से पटेल ब्रिज
लंबाई :- 550 मीटर
स्थिति :- रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड के साथ छोटी ग््वालटोली की व्यावसायिक गतिविधियों कारण यातायात 'यादा। रेलवे स्टेशन से पटेल ब्रिज के बीच पैर रखने की जगह भी नहीं मिलती दिन में। कई बार लगता है जाम।
वाहन संख्या :- एक मिनट में 70-80 वाहन।
पटेल ब्रिज से अंडर ब्रिज
लंबाई :- 350 मीटर
स्थिति :- बस स्टैंड और उसके आसपास की होटलों के कारण 'यादा है यातायात। पटेल ब्रिज से बस स्टैंड के पीछले हिस्से में पहुंचने के लिए करना होगी एस शेप की खुदाई जो आसान नहीं। अंडर पास के आसपास का इलाका है सबसे व्यस्ततम। छावनी से जूनी इंदौर को जोडऩे का दूसरा विकल्प नहीं।
वाहन संख्या :- एक मिनट में 70 से 90 वाहन।
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दिक्कत तो होगी लेकिन हमें वही करना है जो निगम कहेगा। निगम कहता है तो कंपनी ट्रेंचलेस के लिए भी तैयार है।
एस.पी.सिंह, प्रोजेक्ट ऑफिस एनसीसी

कठिन डगर पर 'कॉरिडोरÓ


-निगम के पास न वित्तीय प्रबंधन, न अतिक्रमणकर्ताओं से निपटने का जिगरा और न उन्हें विस्थापित करने की जमीन
- सीधी सपाट बीआरटीएस-फीडर रोड ने छुड़ाए पसीने

इंदौर, विनोद शर्मा।
महापौर के ऐतराज के बावजूद 90 करोड़ की मंजूरी देकर केंद्र ने रिवर साइड कॉरिडोर की नैया नगर निगम के हवाले कर दी। 284 करोड़ का प्रस्ताव देने वाले निगम को राज्य के 36 करोड़ के बाद 160 करोड़ अपना खजाने से खर्च करना होंगे वह भी उस स्थिति में जब पहले ही उसकी वित्तीय स्थिति डामाडोल है। सीवरेज प्रोजेक्ट और नर्मदा तृतीय चरण की स्वीकृत राशि और टेंडर के बीच भारी अंतर की भरपाई की मार झेल रहा निगम कॉरिडोर को किनारे लगा पाएगा ये कह पाना मुश्किल है। जानकार कहते हैं निगम पहले बाधक परिवारों की व्यवस्था करे। बाद में कॉरिडोर की। उधर, निगम प्रशासन तमाम दिक्कतों को नकार रहा है।
आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो केंद्र के 90 करोड़ और रा'य के 36 करोड़ के बाद योजना के लिए 284 करोड़ का आंकलन करने वाले निगम को 154 करोड़ रुपए जेब से लगाएगा। तमाम टैक्स और सरकारी अनुदानों के बाद सालाना 400 करोड़ का वास्तविक बजट बनाने वाली निगम के लिए रास्ता मौजूदा परिस्थितियों में मुश्किल है। क्योंकि सीवरेज 317 करोड़ की स्वीकृति अपना 30 प्रतिशत (95.1 करोड़) अंश मिलाने के बाद वर्कऑर्डर 442 करोड़ में गया। 30 प्रतिशत अंश मिलाने के बाद सीवरेज प्रोजेक्ट में 125, नमृदा तीसरे चरण में 75 करोड़, बीएसयूपी में 60 और यशवंतसागर में पांच करोड़ की भरपाई निगम की कमर तोड़ चुकी है।
वित्तीय प्रबंधन की बात छोड़ भी दें तो शहरवासी यह सोचकर परेशान हैं कि सीधे-सपाट बीआरटीएस कॉरिडोर और फीडर रोड को वक्त पर पूरा करने में नाकाम रहा प्रशासन आड़ी-तिरछी नदी पर कैसे पार पाएगा। तीन साल से 315 करोड़ की इस योजना को बनाकर बैठे निगम के पास न वोटबैंक बन चुके भागीरथपुरा-कुलकर्णी भट्टा-शेखरनगर के चार हजार लोगों को बेदखल करने का जिगरा है। न ही उन्हें विस्थापित करने के लिए जमीन।
संवारना होगी 19 ब्रिजों की सूरत
नहरभंडारा से चंद्रगुप्त प्रतिमा के बीच 14.50 किलोमीटर के टूकड़े में 19 ब्रिज बनाना होंगे। इनमें माणिकबाग, गुलजार कॉलोनी, गुरुनानक कॉलोनी, लालबाग, जयरामपुर, कड़ावघाट, म'छीबाजार, हरसिद्धि, चंद्रभागा, जवाहरमार्ग, किशनपुरा, रामबाग, लोखंडे, पोलोग्राउंड, कुलकर्णी भट्टा, भागीरथपुरा और गौरीनगर पुल शामिल हैं। कॉरिडोर के लिए इन पूलों की सूरत संवारने के साथ निगम को सैफीनगर क्रॉसिंग और लक्ष्मीनगर रेलवे अंडर ब्रिज का ध्यान भी रखना पड़ेगा।
अड़चनों की 'रिवरÓ
चंद्रगुप्त से गौरीनगर पुल :- 1.75 किलोमीटर लंबे दोनों छोर खाली।
गौरीनगर से भागीरथपुर :- 850 मीटर खाली। 1.4 किलोमीटर एक ओर से।
भागीरथपुरा से कुलकर्णी भट्टा:- 441 मीटर दोनों ओर से। 750 एक ओर से।
कुलकर्णी भट्टा से पोलोग्राउंड :- 600 मीटर दोनों ओर से। 230 मीटर में कोने पर कारखाना और होप मिल की दिवार।
पोलाग्राउंड से लोखंडे पुल:- 600 मीटर दोनों ओर। कुछ हिस्से में निर्माण।
लोखंड से रामबाग:- 600 मीटर में रामबाग की ओर निर्माण। दूसरी तरफ निगम का मटन मार्केट।
रामबाग से किशनपुरा:- 400 मीटर में पालिवाल धर्मशाला सहित निजी निर्माण तो दूसरी तरफ निगम का शिवाजी मार्केट।
किशनपुरा-जवाहरमार्ग :- 200 मीटर दोनों छोर से साफ। बाकी 200 मीटर में एक तरफ निर्माण।
जवाहरमार्ग से हरसिद्धि:- एक किलोमीटर में दोनों तरफ कबूतरखाना, नार्थ तोड़ा और शेखरनगर जैसी बस्तियां। कुछ हिस्से में रोड भी।
हरसिद्धि से म'छीबाजार- 400 मीटर में एक तरफ सड़क दूसरी तरफ मार्केट।
म'छीबाजार से कड़ावघाट :- 300 मीटर में दोनों ओर बस्ती। 90 मीटर खाली।
कड़ावघाट से जयरामपुर कॉलोनी :- 400 मीटर में कहीं-कहीं निर्माण।
जयरामपुर से लालबाग:- 700 मीटर में दोनों ओर क'चे-पक्के निर्माण।
लोकमान्य से सैफीनगर :- 550 मीटर में एक तरफ निर्माण।
माणिकबाग से नहरभंडारा :- 1.25 किलोमीटर में दोनों छोर खाली।
- : सिकुड़ गई नदी :-
लालबाग से लोकमान्यनगर :- 1 किलोमीटर सकरी है नदी। कुछ निर्माण भी।
सैफीनगर से माणिकबाग :- 800 मीटर में नदी आधी सकरी। आधी के एक हिस्से में निर्माण।
भागीरथपुरा :- पुल से गौरीनगर की ओर सौ मीटर में नदी सकरी।
-: ये भी बाधा :-
-- कड़ाव घाट का डेम
-- किशनपुरा पैदल पुल
-- शिवाजीमार्केट पैदल पुल
जमीनी हकीकत से दूर है प्रोजेक्ट
मैदानी हकीकत से कोसों दूर इस प्रोजेक्ट में इंदौर का कम, नेताओ-अधिकारियों का हित ज्यादा है। न रोड की फिजिब्लीटी जांची गई। न ही जमीन अधिग्रहण की रीति-नीति तैयार की। बाधक में बस्तियों के साथ पक्के निर्माण भी है इनका क्या होगा। इसकी रणनीति नहीं। सडक का मोबेलिटी प्लान भी तैयार नहीं किया गया जो यह बता सके कि इस सडक पर कहां का ट्रेफिक चलेगा।
अतुल सेठ, इंजीनियर
मुश्किल लग रहा है, है नहीं
निगम के वित्तीय मामलों से ताल्लुक रखने वाले जानकारों की मानें तो कॉरिडोर के लिए तीन साल की समयसीमा तय है लेकिन काम पूरा करने में चार-पांच साल लगेंगे। तक आय बढ़ाकर पैसा निकालना मुश्किल नहीं है। इससे पहले नमृदा तृतीय चरण के 75 में से 60 और यशवंत सागर के पांच में से दो करोड़ भी निगम दे चुका है।
किस्मत से मिली मदद
नदी के कारण प्रदूषण बढ़ा जिससे निपटने के लिए आज नहीं तो पांच साल बाद निगम को पैसा लगाना पड़ता। शुक्र है कि आज केंद्र-रा'य से 126 करोड़ की मदद तो मिल रही है। प्रोजेक्ट में कुछ कंपोनेंट ऐसे हैं जिन पर निगम पहले ही काम कर रहा है। जैसे 19 ब्रिज में से 4 निगम बना रहा है। एक किलोमीटर में नदी जहां सकरी है वहां बसें बायपास करेंगे। रहा सवाल तीन हजार बसाहट का तो निगम बेसिक सर्विस फॉर अर्बन पुवर के तहत दो चरणों गरीबों के लिए मकान बना ही रहा है। वहां शिफ्ट कर देंगे। इसके लिए 82 करोड़ की मंजूरी मिल चुकी है। वैसे भी नदी से 30 मीटर के दायरे में निर्माण मान्य नहीं है। एफएआर बढ़ाकर क्षेत्र को कमर्शियल कॉरिडोर के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
हितेंद्र मेहता, आर्किटेक्ट
नहीं आएगी बाधा, ये है मेरा वादा
ऐतराज के बाद हमने रिवाइज प्लान भेजा था। पहले प्रोजेक्ट 315 करोड़ का था। उसे पूरा करने जाते तो 400 करोड़ भी कम पड़ते। उधर, केंद्र 90 करोड़ रुपए देकर बैठ जाता। शुक्रवार को रिवाइज प्लान मंजूर हुआ। जिसकी लागत 205 करोड़ रुपए है। इसमें केंद्र और रा'य के अंशदान के बाद निगम को 45-50 करोड़ ही मिलाना पड़ेंगे। अतिक्रमण को लेकर बीआरटीएस और रिवर कॉरिडोर की तुलना नहीं की जा सकती। वहां लड़ाई स्वामित्व की जमीन की थी और यहां सरकारी जमीन पर कब्जा लेने की। इसीलिए मैं विश्वास दिलाता हूं कि प्रोजेक्ट में दिक्कत नहीं आएगी।
कृष्णमुरारी मोघे, महापौर

इंदौर-देवास फोरलेन ;- बदहाल सड़क पर टालम 'टोल



-- एनएचएआई ने शुरू की टोल की तैयारियां, सड़क सुधारने वाला कोई नहीं
- 49 किलोमीटर लंबा 325 करोड़ में बनेगा इंदौर-देवास सिक्सेलन

इंदौर.विनोद शर्मा ।
कहीं पेंचवर्क के पैबंद के बीच से झांकते गड्ढे तो कहीं गड्ढों की कतार नजर आती है। जिस हिस्से पर टोल वसूला जाता था वह पूरी तरह उधड़ चुका है। ये हाल है इंदौर-देवास फोरलेन के। निर्माण के दस बरस बाद तक दूसरी सड़कों के लिए आदर्श उदाहरण रही यह सड़क रिनुअल के दूसरे साल ही बदहाल है। वह भी उस वक्त जब फोरलेन को सिक्सलेन में तब्दील करने की तैयारियां करने वाला नेशनल हाई-वे अथॉरिटी ऑफ इंडिया नवंबर के अंतिम सप्ताह से यहां टोल वसूलने का ऐलान कर चुका है।
हम बात कर रहे हैं फोरलने के मांगलिया (सेंट्रल पॉइन्ट) से जवाहरनगर (देवास) के बीच 1997-99 के बीच बनाए गए 17 किलोमीटर लंबे हिस्से की। केंद्रीय मंजूरी के बाद लोक निर्माण विभाग की राष्ट्रीय राजमार्ग शाखा ने तकरीबन 10 करोड़ की लागत से इस हिस्से का नए सिरे से डामरीकरण 2008-09 में किया था। तीन साल की ग्यारंटी के साथ किया गया रिनुअल डेढ़ साल में ही जवाब दे गया। 2009 में सड़क एनएचएआई को सौंपने के बाद जिम्मेदार अब पल्ला झाड़ते नजर आते हैं। दूसरी तरफ एनएचएआई कहते हैं हमारा काम सिक्सलेन बनाना है। उधर, लोक निर्माण विभाग और एनएचएआई की आपसी टालमटौल के कारण लोग गड्ढों में हिचकौले खा रहे हैं।
उधर, लोगों की फजीहत को अनदेखा करके एनएचएआई ने इंदौर बायपास और इंदौर-देवास फोरलेन रोड पर टोल वसूलने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए सड़क के सिक्सलेनिंग का काम शुरू करने वाली डीएलएफ और गायत्री इन्फ्रास्ट्रक्चर ने मांगलिया के पास बेस बनाना शुरू कर दिया है। दरअसल, एनएचएआई ने इंदौर बायपास और देवास फोरलेन (कुल लंबाई 45 किलोमीटर) को छह लेन का बनाने का निर्णय लिया है। इसका काम शुरू हो चुका है। शर्तो के मुताबिक कांट्रेक्टर जिस दिन सिक्सलेनिंग का काम शुरू करेगा, उसी दिन से उसे रोड पर टैक्स वसूलने का अधिकार रहेगा।
पहले सड़क सुधारें बाद में टोल वसूले
नौकरी के सिलसिले में इंदौर आने-जाने वाले देवास निवासी भूपेंद्र सोनगरा ने बताया थोड़ी-बहुत रफू-रंगाई हो गई है। नहीं तो हालत यह थी कि आठ साल चकाचक सड़क पर चलने के बाद यहां आते-जाते भी शरम आती है। ऐसे में टोल शुरू करने से पहले एनएच को सड़क सुधारना चाहिए। शिप्रा निवासी अरविंद बंसल ने कहा नई रोड बनने में वक्त लगेगा। क्या तब तक लोग यूं ही हेरान-परेशान होते रहेंगे। सड़क सुधरती है तो निर्माण के वक्त यातायात बदहाल भी नहीं होगा। एमआईजी निवासी राजू अग्रवाल ने बताया नवरात्रि में बिजसन टेकरी की रोड दुरुस्त हो गई लेकिन इस सड़क पर चामुंडा देवी के दर्शनार्थी धकौले खाते रहे।
क्यों बदहाल हो गई रोड
1:- लोक निर्माण विभाग के अधिकारी कहते हैं रिनुअल में गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा?
जवाब में तकनीकी जानकार कहते हैं सामग्री की गुणवत्ता का ध्यान रखा होता तो ये दिन नहीं देखना पड़ते। गड्ढे तो ठिक है कई जगह रिनुअल बहकर पुरानी रोड उभर आई है। निर्माण के वक्त ढाल का भी ध्यान नहीं रखा।
2:- बड़ी वजह बजट की कमी रही। 10 करोड़ में 17 किलोमीटर फोरलेन के रिनुअल में गुणवत्ता कैसे आएगी?
जानकार कहते हैं यदि ऐसा था तो विभाग को राशि लौटाकर नए सिरे से प्रस्ताव बनाकर भेजना था। क्यों नहीं भेजा।
3:- भारी वाहनों का भी तो दबाव है?
रिनुअल से पहले भी भारी वाहन आते-जाते थे और आज भी। हाई-वे पर भारी वाहन नहीं चलेंगे तो क्या किसी कॉलोनी की सड़क पर नजर आएंगे।

पुलक सिटी के रास्ते पर 'फिनिक्स


- पीडि़तों ने दी आईजी ऑफिस में अर्जी
- कहा :- लाखों रुपया लेने के बाद भी पजेशन नहीं

इंदौर, सिटी रिपोर्टर ।
मप्र सरकार के साथ दो सौ करोड़ का हवाई एमओयू साइन करने वाली फिनिक्स डेवकॉन प्रा.लि.सवा सौ से 'यादा लोगों को चार साल से फ्लैट के नाम पर भटका रही है। कंपनी के कर्ताधर्ता निलेश अजमेरा हैं। वे और उनके साथियों ने 2006-07 में पीपल्याकुमार तालाब के पास फिनिक्स ग्रांट टाउनशिप का काम शुरू किया था जो आज तक जारी है। कंपनी की हीलाहवाली के खिलाफ लोग आवाज उठाते हैं तो कर्ताधर्ता ऑफिस के अते-पते के साथ अपना फोन तक बदलकर बैठ जाते हैं। बुधवार को लिखित शिकायत देते हुए यह बात फिनिक्स के पीडि़तों ने दी।
शिकायतकर्ताओं की मानें तो बॉम्बे हॉस्पिटल के बाद रिंग रोड पर निरंजनपुर की ओर पीपल्याकुमार से लगी जो निर्माणाधीन इमारतें नजर आती हैं वही फिनिक्स ग्रांट है। कंपनी का नाम बदलकर फिनिक्स लेजर एंड लाइफ स्टाइल प्रा.लि. करने के बाद फिनिक्स डेवकॉन के कर्ताधर्ता अब टाउनशीप काम नाम भी बदलने की तैयारियों में लगे हैं। साल-डेढ़ साल में पजेशन देना थी लेकिन पजेशन या पैसे लौटाने के नाम पर कंपनी के कर्ताधर्ता सांस तक नहीं लेते। टाउनशीप के नाम पर बैंकों के फर्जी पोस्टर लगा कर बताते हैं कि लोन सुविधा उपलब्ध है लेकिन अप्लाई करने पर बैंके लोन देती ही नहीं। फिनिक्स ग्रांट में कभी शरद डोसी-मोहन चुघ के नाम माल बेचा तो कभी कैलाश गर्ग के नाम पर। चार वर्षों में एक फ्लैट की डिलीवरी भी किसी को नहीं दी। बिल्डरों के पास जाते हैं तो बदतमीजी करके हमें भगा देते हैं। कहते हैं जितना पैसा दे रखा है लो और फ्लैट-प्लॉट सरेंडर करके चलते बनो। इसके लिए उन्होंने साइट पर भी संजय बंडी को बिठा रखा है। 50 से 60 लोग डर के मारे सरेंडर कर भी चुके हैं।
नक्शा ही बदल डाला
पीडि़तों ने बताया पहले नक्शे में आठ ब्लॉक 'एÓ, 'बीÓ, 'सीÓ, 'डीÓ, 'ईÓ, 'एफÓ, 'जीÓ और 'एचÓ बताए गए थे। तिकोनी डिजाइन में एक सिरे में ब्लॉक 'एÓ और 'बीÓ थे। दूसरे में 'जीÓ और 'एचÓ। तीसरी ओर 'सीÓ, 'डीÓ, 'ईÓ और 'एफÓ थे। 'एÓ से 'सीÓ और 'डीÓ के बीच लॉन टेनिस कोर्ट, स्वीमिंग पुल, बास्केटबॉल कोर्ट, बेडमिंटन कोर्ट का जिक्र था। बाद में सभी ब्लॉक को इधर-उधर करके तमाम कोर्ट गायब कर दिए गए। बगीचा बना दिया।
हजम कर गए सुविधाएं
फिनिक्स ग्रांड 52 सार्वजनिक सहुलियतों की फेहरिस्त दी थी। इसमें स्वीमिंग पूल, पार्क, जिम, सुपर मार्केट और क्लब हाउस जैसी सहूलियतें शामिल थीं। बाद में कंपनी कई सुविधाएं हजम कर गईं।
आधी कीमत कर चुके है वसूल
1100 और 1900 वर्गफीट के फ्लैट 1271 रुपए/वर्गफीट के हिसाब से बुक किए गए थे। इसके एवज में बिल्डर 3.60 लाख रुपए और दूसरे चरण में 2.50 रुपए दे चुके हैं। कंपनी का रवैया देखने के बाद बाकी किश्त रोक दी। पहले पजेशन फिर पैसा।
फिनिक्स ग्रांट:- एक नजर में
कुल पांच लाख वर्गफीट जमीन
--- टाउनशिप की बाउंड्रीवॉल के आधार पर जमीन तिकोनी है। तालाब के पास चौड़ाई 395 फीट से 'यादा है। रिंग रोड की ओर लंबाई 1350 फीट है जबकि पीपल्याकुमार की ओर तकरीबन 1200 फीट।
--- ब्लॉक- आठ 'एÓ, 'बीÓ, 'सीÓ, 'डीÓ, 'ईÓ, 'एफÓ, 'जीÓ और 'एचÓ ('डीÓ और 'एफÓ सहित बने चार ब्लॉक ही हैं।)
--- मास्टर प्लान के नियमानुसार किसी भी तालाब की पाल से साठ मीटर की दूरी तक निर्माण नहीं किया जा सकता। वहीं यहां एक ब्लॉक पीपल्याकुमार तालाब की पाल से बमुश्किल 30 फीट दूर है।
--- बेचे गए कुल फ्लैट- 154/ तकरीबन साठ से सरेंडर कराए।
--- कीमत- 1271 रुपए/वर्गफीट
--- कुल कीमत वसूली- 9 करोड़
--- पजेशन- किसी को नहीं।
--- कंपलीट फ्लैट- एक भी नहीं।
छह महीनों में पजेशन दे देंगे
लोगों ने फ्लैट बुक कराने के बाद किश्ते ही नहीं दी। इसीलिए वित्तीय प्रबंधन गड़बड़ाया और काम में देर हुई। काम जारी है। हमने अभी तक किसी की रजिस्ट्री नहीं की है। लोग जैसे ही पैसा देते हैं उन्हें रजिस्ट्री करके फ्लैट की पजेशन दे देंगे। महीने-दो महीने का वक्त और लगेगा। बाकी बातें झूठी है। रहा सवाल सहुलियतों का तो हमने वादा किया है तो सहुलियतें तो देना पड़ेगी।
रितेश उर्फ चंपू अजमेरा
जांच कराकर कार्रवाई करेंगे
मैं इंदौर से बाहर था इसलिए मुझे शिकायत की जानकारी नहीं है। ऑफिस में शिकायत दर्ज हो गई होगी। मैं कल देखता हूं क्या शिकायत है? कैसे निराकरण किया जा सकता है? अन्यथा जांच कराकर मुकदमा तो दर्ज करेंगे।
संजय राणा, आईजी

पुलक सिटी के रास्ते पर 'फिनिक्सÓ

- पीडि़तों ने दी आईजी ऑफिस में अर्जी
- कहा :- लाखों रुपया लेने के बाद भी पजेशन नहीं

इंदौर, सिटी रिपोर्टर ।
मप्र सरकार के साथ दो सौ करोड़ का हवाई एमओयू साइन करने वाली फिनिक्स डेवकॉन प्रा.लि.सवा सौ से 'यादा लोगों को चार साल से फ्लैट के नाम पर भटका रही है। कंपनी के कर्ताधर्ता निलेश अजमेरा हैं। वे और उनके साथियों ने 2006-07 में पीपल्याकुमार तालाब के पास फिनिक्स ग्रांट टाउनशिप का काम शुरू किया था जो आज तक जारी है। कंपनी की हीलाहवाली के खिलाफ लोग आवाज उठाते हैं तो कर्ताधर्ता ऑफिस के अते-पते के साथ अपना फोन तक बदलकर बैठ जाते हैं। बुधवार को लिखित शिकायत देते हुए यह बात फिनिक्स के पीडि़तों ने दी।

शिकायतकर्ताओं की मानें तो बॉम्बे हॉस्पिटल के बाद रिंग रोड पर निरंजनपुर की ओर पीपल्याकुमार से लगी जो निर्माणाधीन इमारतें नजर आती हैं वही फिनिक्स ग्रांट है। कंपनी का नाम बदलकर फिनिक्स लेजर एंड लाइफ स्टाइल प्रा.लि. करने के बाद फिनिक्स डेवकॉन के कर्ताधर्ता अब टाउनशीप काम नाम भी बदलने की तैयारियों में लगे हैं। साल-डेढ़ साल में पजेशन देना थी लेकिन पजेशन या पैसे लौटाने के नाम पर कंपनी के कर्ताधर्ता सांस तक नहीं लेते। टाउनशीप के नाम पर बैंकों के फर्जी पोस्टर लगा कर बताते हैं कि लोन सुविधा उपलब्ध है लेकिन अप्लाई करने पर बैंके लोन देती ही नहीं। फिनिक्स ग्रांट में कभी शरद डोसी-मोहन चुघ के नाम माल बेचा तो कभी कैलाश गर्ग के नाम पर। चार वर्षों में एक फ्लैट की डिलीवरी भी किसी को नहीं दी। बिल्डरों के पास जाते हैं तो बदतमीजी करके हमें भगा देते हैं। कहते हैं जितना पैसा दे रखा है लो और फ्लैट-प्लॉट सरेंडर करके चलते बनो। इसके लिए उन्होंने साइट पर भी संजय बंडी को बिठा रखा है। 50 से 60 लोग डर के मारे सरेंडर कर भी चुके हैं।
नक्शा ही बदल डाला
पीडि़तों ने बताया पहले नक्शे में आठ ब्लॉक 'एÓ, 'बीÓ, 'सीÓ, 'डीÓ, 'ईÓ, 'एफÓ, 'जीÓ और 'एचÓ बताए गए थे। तिकोनी डिजाइन में एक सिरे में ब्लॉक 'एÓ और 'बीÓ थे। दूसरे में 'जीÓ और 'एचÓ। तीसरी ओर 'सीÓ, 'डीÓ, 'ईÓ और 'एफÓ थे। 'एÓ से 'सीÓ और 'डीÓ के बीच लॉन टेनिस कोर्ट, स्वीमिंग पुल, बास्केटबॉल कोर्ट, बेडमिंटन कोर्ट का जिक्र था। बाद में सभी ब्लॉक को इधर-उधर करके तमाम कोर्ट गायब कर दिए गए। बगीचा बना दिया।
हजम कर गए सुविधाएं
फिनिक्स ग्रांड 52 सार्वजनिक सहुलियतों की फेहरिस्त दी थी। इसमें स्वीमिंग पूल, पार्क, जिम, सुपर मार्केट और क्लब हाउस जैसी सहूलियतें शामिल थीं। बाद में कंपनी कई सुविधाएं हजम कर गईं।
आधी कीमत कर चुके है वसूल
1100 और 1900 वर्गफीट के फ्लैट 1271 रुपए/वर्गफीट के हिसाब से बुक किए गए थे। इसके एवज में बिल्डर 3.60 लाख रुपए और दूसरे चरण में 2.50 रुपए दे चुके हैं। कंपनी का रवैया देखने के बाद बाकी किश्त रोक दी। पहले पजेशन फिर पैसा।
फिनिक्स ग्रांट:- एक नजर में
कुल पांच लाख वर्गफीट जमीन
--- टाउनशिप की बाउंड्रीवॉल के आधार पर जमीन तिकोनी है। तालाब के पास चौड़ाई 395 फीट से 'यादा है। रिंग रोड की ओर लंबाई 1350 फीट है जबकि पीपल्याकुमार की ओर तकरीबन 1200 फीट।
--- ब्लॉक- आठ 'एÓ, 'बीÓ, 'सीÓ, 'डीÓ, 'ईÓ, 'एफÓ, 'जीÓ और 'एचÓ ('डीÓ और 'एफÓ सहित बने चार ब्लॉक ही हैं।)
--- मास्टर प्लान के नियमानुसार किसी भी तालाब की पाल से साठ मीटर की दूरी तक निर्माण नहीं किया जा सकता। वहीं यहां एक ब्लॉक पीपल्याकुमार तालाब की पाल से बमुश्किल 30 फीट दूर है।
--- बेचे गए कुल फ्लैट- 154/ तकरीबन साठ से सरेंडर कराए।
--- कीमत- 1271 रुपए/वर्गफीट
--- कुल कीमत वसूली- 9 करोड़
--- पजेशन- किसी को नहीं।
--- कंपलीट फ्लैट- एक भी नहीं।
छह महीनों में पजेशन दे देंगे
लोगों ने फ्लैट बुक कराने के बाद किश्ते ही नहीं दी। इसीलिए वित्तीय प्रबंधन गड़बड़ाया और काम में देर हुई। काम जारी है। हमने अभी तक किसी की रजिस्ट्री नहीं की है। लोग जैसे ही पैसा देते हैं उन्हें रजिस्ट्री करके फ्लैट की पजेशन दे देंगे। महीने-दो महीने का वक्त और लगेगा। बाकी बातें झूठी है। रहा सवाल सहुलियतों का तो हमने वादा किया है तो सहुलियतें तो देना पड़ेगी।
रितेश उर्फ चंपू अजमेरा
जांच कराकर कार्रवाई करेंगे
मैं इंदौर से बाहर था इसलिए मुझे शिकायत की जानकारी नहीं है। ऑफिस में शिकायत दर्ज हो गई होगी। मैं कल देखता हूं क्या शिकायत है? कैसे निराकरण किया जा सकता है? अन्यथा जांच कराकर मुकदमा तो दर्ज करेंगे।
संजय राणा, आईजी

सरकारी सुस्ती की 'रिंगÓ में उलझी 'रोडÓ


-- भूमि पूजन के सवा दो साल बाद नहीं हुआ पश्चिमी रिंग रोड का श्रीगणेश
- लागत 54 से बढ़कर 81 करोड़ पहुंची
- मुद्दा चंदननगर से मोहताबाग के बीच दो किलोमीटर लंबे हिस्से का

इंदौर, सिटी रिपोर्टर ।
इंदौर को महानगर का सपना दिखाने वाली रा'य सरकार दो बरसों के लंबे इंतजार के बावजूद पश्चिमी रिंग रोड के निर्माण को हरी झंडी नहीं दे पाई। मंजूरी के इंतजार में लंबे समय से अटके पड़े पश्चिमी रिंग रोड के दो किमी हिस्से के लिए इंदौर विकास प्राधिकरण ने रा'य शासन को रिमाइंडर पर रिमाइंडर भेज रहा है। बावजूद इसके बात तो नहीं बनी। उलटा दो साल में प्रोजेक्ट की लागत 54 से बढ़कर जरूर 81 करोड़ हो गई। उधर, सरकारी सुस्ती का खामियाजा बदहाल यातायात के कारण आम नागरिकों को जान देकर चुकाना पड़ रहा है।
दर्जनों घोषणाएं, भूमि पूजन के बाद सवा दो साल का इंतजार और आखिर में हाथ लगी निराशा। ये हाल है रिंग रोड की उस रिंग की जो आज तक अधूरी है। विधानसभा चुनाव-2008 के ठिक दो महीने पहले सितंबर में लोक निर्माण मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और तत्कालीन प्राधिकरण अध्यक्ष मधु वर्मा ने लंबे-चौड़े वादों के साथ मोहताबाग के पास भूमि पूजन करते हुए जो शिलालेख लगाया था उसे ही लोग उखाड़ ले गए। सरकार की बेरूखी देख प्राधिकरण ने भी पैर खींचे और दिया हुआ वर्कऑर्डर निरस्त कर दिया। सड़क कब बनेगी? अब इसके जवाब में प्राधिकरण सरकार की तरफ इशारा करता है तो सरकार प्राधिकरण की तरफ। कुल मिलाकर सरकार-प्राधिकरण के दोराहे पर सड़क का मकसद चकरघिन्नी हो चुका है।
इस लेटलतीफी के चलते रोड निर्माण की अनुमानित लागत 27 करोड़ तक बढ़ गई। आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो 2008 में जो लागत 54 करोड़ आंकी गई थी वही आज 81 करोड़ के पार पहुंच चुकी है। हाल यह है कि उस वक्त सड़क के बाधक 850 मकानों को हटाने के लिए मुआवजा 15 करोड़ देना था आज मुआवजे की लागत भी बढ़कर 18 करोड़ के पार हो चुकी है।
क्या है लड़ाई
-- 2008 में सड़क की लागत 54 करोड़ थी। इसमें 10 करोड़ रुपए प्राधिकरण को अपनी ओर से देना थे जबकि बची राशि शासन को। दो बरसों में न सरकार ने राशि दी और न ही यह स्पष्ट किया कि उक्त अनुदान रोड के लिए है। या प्रभावितों को दिए जाने वाले मुआवजे के लिए। पूरा मामला शासन के आवास और पर्यावरण विभाग के इर्द-गिर्द घूम रहा है।
-- अब नया झगड़ा यह भी है कि उस वक्त 18.50 प्रतिशत की दर से प्राधिकरण को 10 करोड़ रुपए देना थे। चूंकि लागत बढ़ चुकी है ऐसे में यदि पुराने अनुपात के आधार पर बंटवारा किया जाता है तो प्राधिकरण को 15 करोड़ रुपए देना पड़ेंगे। देरी सरकार की ओर से हुई तो प्राधिकरण यह कीमत चुकाने के लिए तैयार होगा इसकी ग्यारंटी भी कम है।
क्यों जरूरी है
-- बिजलपुर क्रॉसिंग से लेकर चंदननगर तक पश्चिमी रिंग रोड तकरीबन पांच किलोमीटर लंबा बना है। चंदननगर तक हल्के-भारी वाहन गंगवाल की ओर आकर धार रोड का दबाव बढ़ा देते हैं। इस वजह से कई हादसे पहले भी हो चुके हैं।
-- दो किलोमीटर लंबे इस टुकड़े के न बनने से लोगों को चार किलोमीटर घुमकर मोहताबाग जाना पड़ता है। रास्ता बनता है तो पोलाग्रांउड और सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र आने-जाने वाले भारी वाहन गंगवाल-बड़ा गणपति क्षेत्र में दबाव बढ़ाए ही चंदननगर से एरोड्रम और एरोड्रम रोड से वीआईपी रूट होते हुए मरीमाता आ-जा सकेंगे।
बाधा क्या है
-- चंदननगर से मोहताबाग (एरोड्रम रोड) और मोहताबाग तक काम होना है। बीच में चंदननगर, नंदननगर, हुजुरगंज, गंगानगर, ग्रेटर तिरूपति और राजनगर के 850 निर्माण हटाए जाना है। इनके मुआवजे की लागत ने बढ़ाई दिक्कतें।
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मामला मंजूरी के लिए सरकार के पास विचाराधीन है। हम रिमाइंडर भेज रहे हैं। सरकार की मंजूरी मिलते ही काम शुरू कर देेंगे।
चंद्रमौली शुक्ला, सीईओ प्राधिकरण
मामला केबिनेट की मंजूरी के इंतजार में है। जो फैसला होगा उसके आधार पर निर्णय लेंगे।
जयंत मलैया, आवास एवं पर्यावरण मंत्री
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अगले वित्तवर्ष में शुरू कराएंगे काम
रिंग रोड की रिंग आज तक क्यों पूरी नहीं हुई?
- सरकार और प्राधिकरण के बीच का विवाद है।
पांच साल से प्राधिकरण से लेकर सरकार तक आपकी रही फिर आपने बतौर क्षेत्रीय विधायक क्या किया?
- मैंने तीन बार विधानसभा में मुद्दा उठाया। एक बार ध्यानाकर्षण भी लगाया।
नतीजा तो कुछ निकला ही नहीं?
- आवास एवं पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया ने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा था यदि प्राधिकरण पैसा नहीं लगाता तो हम अगले वित्त वर्ष में सड़क के लिए बजट प्रावधानित कर देंगे।
प्राधिकरण पर कभी जोर नहीं दिया?
- दिया लेकिन उसकी स्थिति खराब होने के कारण बात नहीं बनी।
प्राधिकरण के पास स्कीम-134, 140 और 136 के विकास के लिए पैसा था रिंग रोड के लिए नहीं?
- ये आईडीए को समझना चाहिए।
सड़क बनने के बाद यहां कौनसी स्कीम विकसीत होना है जो पैसा लगाए? आईडीए की सोच तो नहीं है?
- जनहित में फायदा-नुकसान नहीं देखा जाता। वैसे भी प्राधिकरण ने कई काम किए हैं।
कुल मिलाकर शहर आपसे और आपकी सरकार से क्या अपेक्षा रखे?
- अगले वित्त वर्ष में बजट मंजूर कराने के साथ काम शुरू कराकर रहेंगे।
सुदर्शन गुप्ता, क्षेत्रीय विधायक

राजधानी पहुंचा पुलक सिटी का 'रास्ताÓ

- मुख्यमंत्री सहित संबंधित मंत्रियों ने दिए जांच के निर्देश
इंदौर, सिटी रिपोर्टर ।
पुलक सिटी में अजमेरा बंधुओं द्वारा किए गए चमत्कार की शिकायत राजधानी तक पहुंच चुकी है। मुख्यमंत्री निवास तक शिकायत मिलने की सुग-बुगाहट लगते ही संबंधित विभाग के मंत्रियों ने भी जांच के आदेश दिए हैं। इधर, जिला प्रशासन में भी मंगलवार को पुलक सिटी की अप्रोच रोड चर्चाओं में रही।
कॉलोनी की अप्रोच रोड की वैधता को लेकर अनुराग इनानी ने शिकायत के साथ संबंधित विभागों के मंत्रियों और प्रमुख सचिवों को कानूनी नोटिस दिया था। मंगलवार को नोटिस का खुलासा होने के बाद कॉलोनी के कर्ताधर्ताओं के साथ मुनाफे के लालच में बल्क में कॉलोनी के प्लॉट-फ्लैट बिकवाने वाले दलालों के फोन दिनभर घन-घनाते रहे। सभी खरीदारों को अपने-अपने हिसाब से जवाब देते रहे। सूत्रों की मानें तो पूरी कॉलोनी के प्लॉट-फ्लैट बिक चुके हैं। उधर, शिकायत भोपाल में भी चर्चा में रही। मंगलवार को पुष्प रतन पैराडाइज में हुई तोडफ़ोड़ के बाद से अजमेरा बंधुओं के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे लोगों ने ताबड़तोड़ शिकायत की जानकारी मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी दे दी। इस संबंध में चौहान ने संबंधित विभागों को शिकायत के तथ्यों की जांच के निर्देश भी दिए हैं।
उधर, शिकायत मिलते ही राजस्व मंत्री करणसिंह वर्मा और आवास मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी सक्रीय हो गए जबकि आवास एवं पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया का कहना है कि उन्हें शिकायत अब तक मिली नहीं है। मिलती है तो तत्काल जांच कराकर आवश्यक भी करेंगे।
निशाने पर अफसर
सूत्रों की मानें तो जांच होती है तो निशाने पर कॉलोनी की डायवर्शन-डेवलपमेंट मंजूरी देने वाले अधिकारी होंगे। फिर आईडीए-नजूल-सीलिंग की एनओसी देखे बगैर कॉलोनी का ले-आउट को मंजूरी देने वाले टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के कर्ताधर्ता हों या बगैर मौका रिपोर्ट के डायवर्शन-डेवलपमेंट की मंजूरी देने वाले जिला प्रशासन के अधिकारी। कॉलोनी की अप्रोच रोड की वैधता के मामले में क्षेत्रीय पटवारी दिनेश पटेल ने बताया पुलक सिटी मुंडी की जमीन पर है जबकि कॉलोनी की अप्रोच रोड राऊ की जमीन पर। अब इसके लिए जमीन खरीदी या नहीं इसकी मुझे जानकारी नहीं है। यह भी सही है कि यहां प्राधिकरण की स्कीम प्रस्तावित है।
सरैया की भूमिका पर सवाल
नियमानुसार डायवर्शन-डेवलपमेंट की मंजूरी से पहले राजस्व निरीक्षक (आरआई) मौका मुआयना करके रिपोर्ट देता है कि मौके पर जमीन की स्थिति क्या है। निर्माण है या नहीं। यदि निर्माण है तो मंजूरी नहीं दी जा सकती लेकिन कॉलोनी की मौका रिपोर्ट के संबंध में आरआई रवि सरैया का कहना था कि उनकी रिपोर्ट की यहां जरूरत नहीं पड़ी। वे जो भी कारण गिनाएं लेकिन हकीकत यही है कि मौके पर जाते तो उन्हें वहां मंजूरी से पहले ही शुरू हो चुके निर्माण नजर आ जाते।

पुलक सिटी पर शिकायतों का साया


इंदौर, विनोद शर्मा ।
आवास एवं पर्यावरण मंत्री, आवास मंत्री और राजस्व मंत्री के साथ कलेक्टर सहित 11 लोगों को एक व्यक्ति ने डिमांड ऑफ जस्टिस का नोटिस दिया है। नोटिस राऊ में प्रस्तावित पुलक सिटी की एप्रोच रोड की वैधता और उसकी मंजूरी पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए दिया गया है। कॉलोनी बीते मंगलवार पुष्प रतन पैराडाइज में हुई तोडफ़ोड़ के बाद से विवादों में उलझे अजमेरा बंधुओ और उनके सहयोगियों की है। उन्होंने तमाम आरोपों को सिरे से नकारते हुए स्पष्ट कर दिया कि कॉलोनी और उसकी एप्रोच रोड सौ प्रतिशत वैध है।
नोटिस देकर न्याय की मांग 103 साकार टेरेस-न्यू पलासिया निवासी अनुराग पिता शानप्रकाश इनानी ने की है। नोटिस में इनानी ने स्पष्ट कर दिया कि पुलक सिटी को मुख्य मार्ग से जोडऩे वाली एप्रोच रोड पूरी तरह गैरकानूनी है। रोड ग्राम राऊ स्थित खसरा नं. 1058 (रकबा-2.371 हेक्टेयर), 1059 (रकबा-1.542 हेक्टेयर) और 1062 (रकबा-0.943 हेक्टेयर) से निकाली गई है। ये जमीन किसानों की है। सीलिंग से प्रभावित इस जमीन के मालिकाना हक को किसान और प्रशासन के साथ किसान और इनानी बंधुओं के बीच पहले से विवाद चल रहा है।
राजस्व रेकॉर्ड में सरकारी
पुलक सिटी और किसानों की जमीन के बीच 415 मीटर लंबी और 28 मीटर चौड़ी जमीन की चिंदी है। खसरा नं. 1061 (रकबा-0.741 हेक्टेयर) स्थित ये जमीन राजस्व रेकॉर्ड में सरकारी है। प्राधिकरण ने यहां स्कीम-165 का जिक्र कर रखा है। हमारी जमीन के बाद एक जमीन ओर है जहां एप्रोच रोड जाती है, यहां हाउसिंग बोर्ड की कॉलोनी प्रस्तावित है।
किस-किस को नोटिस
राजस्व मंत्री करणसिंह वर्मा, आवास एवं पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया, आवास मंत्री नरोत्तम मिश्रा, प्रमुख सचिव राजस्व, प्रमुख सचिव आवास, प्रमुख सचिव आवास एवं पर्यावरण, कलेक्टर इंदौर, सीईओ इंदौर विकास प्राधिकरण, चीफ इंजीनियर मप्र हाउसिंग बोर्ड और उप पंजीयक पंजीयन कार्यालय के साथ क्षेत्रीय विधायक।
चंपू का चमत्कार
अजमेरा बंधुओं द्वारा 22 अक्टूबर को दिए गए विज्ञापनों की मानें तो 19 अक्टूबर 2010 को जिला प्रशासन ने डायर्वशन (29/अ-2/10-11) मंजूरी दी। 20 अक्टूबर 2010 यानी अगले ही दिन जिला प्रशासन के अधिकारियों ने डेवलमेंट की मंजूरी (49/2010) भी दे दी। 21 अक्टूबर 2010 को अजमेरा बंधुओं ने अखबारों के लिए विज्ञापन भी जारी कर दिए जिसमें 12 मीटर चौड़ी निर्माणाधीन एप्रोच रोड के साथ निर्माणाधीन क्लब हाउस सहित दूसरे निर्माणाधीन कार्यों का फोटो सहित जिक्र भी कर दिया। जिला प्रशासन के अधिकारियों के सुस्त रवैये के बीच ये चमत्कार चंपू और उसकी चौकड़ी ही कर सकती थी।
सवाल जिनमें उलझे अजमेरा बंधु
- डायवर्शन के दूसरे दिन विज्ञापनों में जिन निर्माणाधीन कामों का जिक्र किया गया, उन्हें एक दिन में उस स्थिति में नहीं लाया जा सकता जितना फोटो में बताया गया था। यानी काम पहले शुरू हुआ, डायवर्शन और डेवलपमेंट की मंजूरी बाद में ली गई।
- यदि अजमेरा बंधु कहते हैं कि विज्ञापन में दिए गए फोटो पुलक सिटी के नहीं बल्कि दूसरी साइट के हैं तो ये लोगों के साथ धोखा किया गया।
- यदि वे कहते हैं कि शहर में चल रही क्रशर मशीनों और बड़ी मशीनरी का उपयोग करके उन्होंने एक दिन में इतना काम कर दिखाया तो वे उन कंपनियों का नाम बताएं या विकास की जल्दबाजी का कारण बताएं।
- वे खसरा नं. 1058, 1059 और 1062 की सीलिंग से प्रभावित जमीन भी नहीं खरीद सकते।

जिम्मेदारों का गैरजिम्मेदाराना कारनामा
- किसी भी कॉलोनी का ले-आउट मंजूर करने से पहले आईडीए-नजूल-हाउसिंग बोर्ड-सीलिंग जैसे विभागों की एनओसी देखी जाती है जो टीएंडसीपी के अधिकारियों ने नहीं देखी।
- आईडीए ने न एनओसी दी। न आपत्ति ली।
- डायवर्शन-डेवलपमेंट मंजूरी से पहले आरआई मौका रिपोर्ट देता है लेकिन पुलक सिटी की मौका रिपोर्ट में आरआई रवि सरैया पहले से शुरू हो चुका निर्माण हजम कर गए।
- यदि आरआई की रिपोर्ट में पहले से शुरू हो चुके निर्माण का जिक्र था तो एसडीएम मनोज पुष्प ने डायवर्शन-डेवलपमेंट मंजूरी कैसे दे दी?
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000000
मेरी मौका रिपोर्ट नहीं लगती। एसडीएम साहब का मामला था।
रवि सरैया, आरआई

कोर्ट में विचाराधीन मामला है तो सीलिंग की एनओसी नहीं दे सकते हैं।
अशोक खेड़े, बाबू-सीलिंग

न मुझे टाउनशिप का नाम याद है न मंजूरी या निर्माणाधीन कार्यों से संबंधित कुछ अन्य जानकारी।
मनोज पुष्प, एसडीएम

प्राधिकरण ने स्कीम-165 प्लान की है। जमीन अभी किसानों के पास है। यदि कोई जमीन सरकारी है तो उस पर निर्माण न हो, ये देखना जिला प्रशासन का काम है। वैसे हमने किसी को कोई एनओसी नहीं दी।
चंद्रमौली शुक्ला, सीईओ-प्राधिकरण

क्या कहते हैं जिम्मेदार
क्या है शिकायत?
जिस जमीन पर एप्रोच रोड बनी है वह कॉलोनी की नहीं बल्कि किसी अन्य की है।
किनकी है?
किसानों की।
आपने शिकायत क्यों की?
किसानों से मैंने अनुबंध कर रखा है।
एप्रोच रोड और किसकी जमीन से जाती है?
खसरा नं. 1061 से जो सरकारी जमीन है, जो प्राधिकरण की प्रस्तावित स्कीम का हिस्सा है।
अजमेरा बंधु कहते हैं आपके तथ्य झूठे हैं? जहां आप आईडीए की प्रस्तावित स्कीम बता रहे हैं वहां 30 मीटर चौड़ी रोड प्रस्तावित है?
मैंने कागज के टुकड़े पर शिकायत नहीं की, बल्कि लीगल नोटिस दिया है। मैं अपने तथ्यों के साथ कॉलोनाइजर को कोर्ट में चुनौती दूंगा। वहां मैं गलत हुआ तो कोर्ट मुझे दंड देगी। ये गलत हुए तो इन्हें।
अनुराग इनानी, शिकायतकर्ता

शिकायत भी फर्जी, शिकायतकर्ता भी
एप्रोच रोड प्राधिकरण और सीलिंग की जमीन पर है?
जिस किसान से पुलक सिटी की जमीन खरीदी। उसका इस जमीन से 70 बरस से आना-जाना था। 1986 से दस्तावेजों में भी सड़क ही है।
प्राधिकरण की स्कीम पर कैसे सड़क बना दी?
वहां प्राधिकरण की कोई स्कीम है ही नहीं। चिंदी असल में मुंडी और राऊ के बीच का कांकड़ है। मास्टर प्लान में यहां प्रस्तावित 30 मीटर चौड़ी रोड है।
ये रोड कहां से कहां तक जाती है?
रोड सिलीकॉन सिटी के पास से बायपास तक जाती है। मेरी कॉलोनी के मंजूर ले-आउट में इसका जिक्र भी है।
बाकी सीलिंग वाली जमीन?
जिन खसरों का जिक्र किया गया है वहां हमारी एप्रोच रोड जाती ही नहीं है। यह मनगढ़ंत कहानियां हैं।
डायवर्शन-डेवलपमेंट के दूसरे ही दिन कैसे बन गई सड़कें?
हमने विज्ञापन में प्रस्तावित लिखा था। निर्माणाधीन पिं्रट डिजाइनर की गलती। अभी तक कोई काम नहीं किया।
यानी आपकी फर्जी शिकायतें की जा रही है?
बिल्कुल, आप चाहो तो दस्तावेज भी देख लो। ऐसी शिकायतें पहले भी कई हो चुकी हैं।
कोई आपकी फर्जी शिकायत क्यों करेगा?
इनानी बंधु मुझे ब्लैकमेल करने आए थे, मैं सही हूं। उनकी बात नहीं सुनी। इसीलिए वे शिकायत कर रहे हैं।
रितेश अजमेरा, पुलक सिटी

Saturday, September 25, 2010

Thursday, September 23, 2010

ARTS AND COLLEGE

YESE JHOKE RIYE HE YE ANKHO ME DHUL

RODA BAN GAI ROAD 2

ये बीड़ी बड़ी दिलदार (कविता)



एक जगह बहुत भीड़ लगी थी

एक आदमी चिल्ला रहा था

कुछ बेचा जा रहा था

आवाज कुछ इस तरह आई

शरीर में स्फुर्ति न होने से परेशान हो भाई

थकान से टूटता है बदन

काम करने में नहीं लगता है मन

खुद से ही झुंझलाए हो

या किसी से लड़कर आए हो

तो हमारे पास है ये दवा

सभी परेशानियां कर देती है हवा

मैंने भीड़ को हटाया

सही जगह पर आया

मैंने कहा इतनी कीमती चीज

कहीं मंहगी तो नहीं है

वो बोला आपने भी ये क्या बात कही है

इतने सारे गुण सिर्फ दो रुपए में लीजिए

भाई साब दिलदार बीड़ी पीजिए

RODA HO GAI ROAD




THIS IS 1ST PAGE NEWS

Tuesday, September 21, 2010

वर्ष 2013 से 24 घंटे बिजली

40 हजार मेगावॉट उत्पादन के लिये 28 निजी कंपनियों से एमओयू

August 28, 2010



मध्यप्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 2013 से 24 घंटे बिजली देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। राज्य शासन ने इस लक्ष्य की पूर्ति के लिये करीब 40 हजार मेगावॉट ताप विद्युत उत्पादन के लिये लगभग 28 निजी कम्पनियों से करारनामे किये हैं। प्रदेश में बिजली उत्पादन प्रयासों को ठोस रूप देने तथा निजी क्षेत्र के निवेशकों को आकर्षित करने के लिये मध्यप्रदेश इन्वेस्टमेंट इन जनरेशन प्रोजेक्ट पालिसी 2010 भी बनाई गई है।

वर्ष 2013 तक 24 घंटे बिजली देने का लक्ष्य

निजी कंपनियों से 40 हजार मेगावॉट की ताप विद्युत परियोजनाओं के लिये एमओयू

निजी कंपनियों द्वारा कार्य प्रारंभ

1200 मेगावॉट की श्री सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना का कार्य शुरू

परियोजना पर इस वर्ष 292 करोड़ रुपये राशि का प्रावधान

निजी कंपनियों के माध्यम से प्रदेश की उत्पादन क्षमता बढ़ाये जाने के लिये किये गये प्रयासों में निजी क्षेत्र की कंपनियों मैसर्स बीना पॉवर सप्लाय कंपनी, बीना, मैसर्स एस्सार पॉवर, बैढन, जिला सिंगरौली, मैसर्स चितरंगी जिला सिंगरौली, मैसर्स जयप्रकाश पॉवर वेंचर्स, निगरी जिला सिंगरौली एवं मैसर्स बीएलए पॉवर जिला नरसिंहपुर द्वारा कार्य भी प्रारंभ कर दिया गया है।

मध्यप्रदेश पॉवर जनरेटिंग कम्पनी द्वारा 1200 मेगावॉट की श्री सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना का कार्य प्रारंभ हो गया है। इस परियोजना पर वर्तमान वित्तीय वर्ष में 292 करोड़ रुपये राशि के खर्चों का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार सतपुड़ा ताप विद्युतगृह सारणी में 500 मेगावॉट की विस्तार इकाईयों का कार्य भी शुरू हो गया है। एन.टी.पी.सी. की सीपत इकाई से मध्यप्रदेश को 242 मेगावॉट विद्युत प्राप्त होगी। इसी प्रकार एन.टी.पी.सी. की मौदा इकाई से 150 मेगावॉट का शेयर भी मध्यप्रदेश को प्राप्त होगा।

पश्चिम बंगाल स्थित दामोदर वैली कार्पोरेशन से 300 मेगावॉट विद्युत प्राप्ति के लिये अनुबंध किया गया है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयासों से महेश्वर जल विद्युत परियोजना का कार्य पुन: शुरू हो गया है। इससे आगामी दिसम्बर तक 400 मेगावॉट विद्युत प्राप्त होना संभावित है। विद्युत अधिनियम 2003 के अंतर्गत विद्युत प्राप्ति के लिये दीर्घावधि के अनुबंध किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं। इस संबंध में 1200 मेगावॉट का रिलायंस तथा 150 मेगावॉट का एस्सार से अनुबंध किये जाने के प्रयास भी जारी हैं। इसके साथ ही 1600 मेगावॉट विद्युत क्षमता की ताप विद्युत परियोजना की स्थापना खण्डवा जिले में करने के लिये मैसर्स बीएचईएल के साथ मध्यप्रदेश पॉवर जनरेटिंग कंपनी का संयुक्त उपक्रम अनुबंध हस्ताक्षरित किया गया है। नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन द्वारा 2640 मेगावॉट गाडरवारा जिला नरसिंहपुर में स्थापित करने के लिये गत माह नवम्बर में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए थे। इस ताप परियोजना से 80 प्रतिशत विद्युत मध्यप्रदेश राज्य को आवंटित करने के लिये भारत सरकार से आग्रह किया गया है।

नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन द्वारा खरगौन जिले में 1320 मेगावॉट की ताप विद्युत परियोजना स्थापित की जा रही है। परियोजना के लिये 1750 एकड़ भूमि एवं 55 क्यूसेक जल के संबंध में राज्य शासन द्वारा सैद्धांतिक सहमति भी प्रदान की गई है। साथ ही नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन द्वारा छतरपुर जिले में चार हजार मेगावॉट ताप विद्युत परियोजना हाथ में ली गई है। परियोजना के लिये 150 क्यूसेक जल एवं 2249.88 एकड़ भूमि की उपलब्धता के संबंध में राज्य शासन द्वारा सैद्धांतिक सहमति गत माह मार्च में दी गई है। इसके अलावा राज्य शासन द्वारा 1600 मेगावॉट क्षमता की चंदिया ताप विद्युत परियोजना, जिला कटनी में तथा बाणसागर परियोजना जिला शहडोल में 1600 मेगावॉट स्थापित करने के संबंध में प्रशासकीय अनुमोदन प्रदान किया गया है। एम.पी. पॉवर ट्रेडिंग कंपनी द्वारा 1320 मेगावॉट शहपुरा ताप विद्युत परियोजना का कोल लिंकेज/ब्लॉक का आवंटन प्राप्त न होने से एम.पी. पॉवर ट्रेडिंग कंपनी के संचालक मण्डल की बैठक में इस परियोजना को एन.टी.पी.सी./एन.एच.डी.सी. को सौंपने का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में आगामी कार्यवाही भी की जा रही है।
मध्यप्रदेश में शीघ्र ही एक नई जल विद्युत नीति
जल विद्युत विकास पर निवेशकों का सम्मेलन

Sep 10,2010

मध्यप्रदेश में शीघ्र ही एक नई जल विद्युत नीति बनाई जायेगी। इसकी घोषणा मध्यप्रदेश के अक्षय ऊर्जा मंत्री श्री अजय विश्नोई ने आज यहाँ मध्यप्रदेश में जल विद्युत विकास पर आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन में निवेशकों को मध्यप्रदेश में आमंत्रित करते हुए बतायी। यह सम्मेलन संयुक्त रूप से मध्यप्रदेश नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण और केन्द्रीय सिंचाई तथा उर्जा बोर्ड नई दिल्ली द्वारा आयोजित और भारत सरकार अक्षय उर्जा विभाग तथा उर्जा एजेन्सी इरेडा द्वारा आयोजित किया गया।

निवेशकों के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए मध्यप्रदेश के अक्षय उर्जा मंत्री श्री अजय विश्नोई ने कहा कि उर्जा के महत्व को ध्यान में रखते हुए राज्य शासन ने एक नए विभाग का गठन किया है जो सिर्फ अक्षय उर्जा को देखेगा। नई नीति के लिए निवेशकों से उनकी इस संबंध में राय मांगी जा रही है और उनसे इसके लिए सुझाव भी आमंत्रित किए गए हैं। श्री विश्नोई ने निवेशकों को आमंत्रित करते हुए राज्य सरकार द्वारा पूरे सहयोग का आश्वासन दिया। उन्होंने अक्षय उर्जा पर अपनी कटिबद्धता दोहराते हुए कहा कि अभी इसका दोहन किया जाना शेष है। उन्होंने बताया कि राज्य के पास विकसित अधोसंरचना है, अच्छी सड़कें और पर्याप्त मात्रा में उर्जा उपलब्ध है। राज्य में अभी 13 थर्मल पावर प्रोजेक्ट चल रहे हैं।

नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने नर्मदा घाटी में छोटी जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिये निजी क्षेत्र को आमंत्रित किया। इस सम्मेलन में भाग लेने वाली निजी कंपनियों को नर्मदा घाटी में उपलब्ध लघु जल विद्युत परियोजना निर्माण की संभावनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए उन्हे मध्यप्रदेश में आने के लिये प्रोत्साहित किया गया। इस आयोजन में अक्षय ऊर्जा विभाग के मंत्री श्री अजय विश्नोई और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष श्री ओ.पी.रावत भी उपस्थित थें।

श्री रावत ने अपने संबोधन में बताया कि नर्मदा घाटी में अब तक आंकलित 3201 मेगावाट जल विद्युत संभावनाओं में से नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने वृहद् जल विद्युत परियोजनाओं से अब तक 2471 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन की क्षमता निर्मित कर ली है, शेष संभावनायें लघु जल विद्युत परियोजनाओं के माध्यम से दोहन किया जाना है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने लघु जल विद्युत उत्पादन की संभावना तलाशने के लिये आई.आई.टी. रूड़की से नर्मदा घाटी का अध्ययन कराया है। इस अध्ययन में आई.आई.टी. रूड़की ने 182 ऐसे स्थल चयनित किये हैं जिन पर परियोजनाओं का निर्माण कर 25 मेगावाट क्षमता तक की जल विद्युत परियोजना निर्मित की जा सकती है। राज्य की लघु जल विद्युत विकास प्रोत्साहन नीति 2006 के अनुसार छोटी जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण निजी क्षेत्र के माध्यम से कराया जाना है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष, अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री ओ.पी.रावत ने बताया कि देश में छोटी जल विद्युत संभावनाओं के दोहन से 15 हजार मेगावाट जल विद्युत उत्पादन की संभावनायें है। इसमें से लगभग 400 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन की संभावनायें मध्यप्रदेश में मौजूद हैं। इनका दोहन किया जाना शेष है।

सम्मेलन में केन्द्र सरकार के अक्षय उर्जा विभाग के सचिव श्री दीपक गुप्ता, इरेडा के अध्यक्ष श्री देवाशीश मजूमदार और मध्यप्रदेश उर्जा विकास निगम के प्रबंध संचालक श्री नीरज मंडलोई सहित एन वी डी ए के उच्च अधिकारी उपस्थित थे। सम्मेलन में करीब 80 निवेशकों ने भाग लिया। एन वी डी ए ने दृश्य एवं श्रव्य माध्यम से निवेशकों को विभिन्न रियायतें और सहूलियतों के बारे में विस्तार से बताया और साथ ही अन्य तकनीकी जानकारियाँ दीं।
देवास से ग्वालियर सौ किमी की रफ्तार

शुक्रवार,27
अगस्त, 2010 को 01:20 तक के समाचार
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देवास से ग्वालियर तक एबी रोड के करीब 400 किमी के हिस्से को फोरलेन करने की तैयरियां अंतिम चरण में हैं। तकरीबन 2200 करोड़ के इस प्रोजेक्ट पर दिल्ली में मंत्रालय की बैठक भी हो चुकी है। फोरलेन की सुगबुगाहट के साथ ही एनएच के दोनों ओर की जमीन के अधिग्रहण को लेकर भी अटकलें लगाई जाने लगी हैं। जमीनों के मालिक फोरलेन निर्माण के दौरान कितनी भूमि अधिहग्रहण की जाएगी, इसका वे सही आंकलन नहीं कर पा रहे हैं। इससे ना तो लोग अपनी जमीन बेच पा रहे हैं वहीं खरीददार भी असमंजस की स्थिति मेंं है।

एक अधिकारी के मुताबिक फिलहाल हाईवे ३० मीटर चौड़ा है। इसे फोरलेन में तब्दील करने के लिए ३० मीटर जगह की और जरूरत होगी। यानी कुल २१० फीट चौड़ा फोरलेन बनाया जाएगा। इस प्रोजेक्ट के बाद जमीन की कीमत बढ़ेगी, लेकिन अधिग्रहित भूमि के बदले में कितना मुआवजा मिलेगा इसे लेकर किसान अभी से सजग हो चुके हैं।

फोरलेन के दौरान ग्वालियर शिवपुरी, गुना, ब्यावरा, पचोर, सारंगपुर, शाजापुर, मक्सी व देवास शहर से एक एक किमी दूर से फोरलेन के बीच विद्युत व्यवस्था की जाएगी। इससे गुजरने वाले वाहन चालकों को रात के सफर के दौरान सामने आ रहे वाहनों की लाइटें सीधे आंखों पर नहीं पड़ेगी। विशेष प्रकार की लगाई जाने वाली इन लाइटों की वजह से दुर्घटनाओं में भी कमी आएगी।

फिलहाल एबी रोड पर ५० से ६० किमी प्रति घंटा की रफ्तार से वाहन चलते हैं, लेकिन फोर लेन के बाद यह १०० किमी प्रति घंटा की गति से दौड़ेंगे। इसके बावजूद हादसों की तादाद वर्तमान के मुकाबले नगण्य रह जाएगी। जानकारों के मुताबिक आने-जाने वाले वाहनों के लिए अलग-अलग लेन होने की वजह से आमने-सामने की टक्कर होने की आशंका खत्म हो जाएगी। सबसे ज्यादा मौतें इसी तरह के हादसों में होती हैं। इसके अलावा दूरियां भी जल्द तय होंगी। ब्यावरा से इंदौर की दूरी करीब २०० किमी है, जिसे तय करने के लिए वाहन चालकों को साढ़े चार घंटे का समय लग जाता है। जो बाद में महज सवा दो घंटे का सफर हो जाएगा। इस हाईवे पर बढ़ते ट्रैफिक से कई स्थानों पर जाम लग जाता है। निर्माण से हजारों वाहन चालकों की मुश्किलें कम हो सकेंगी।

Monday, September 20, 2010

GANDHI NAGAR SOSAITY

SARKARI JAMIN PAR SHIV KE SAMAJ KA KABJA



VINOD SHARMA

NEMAWAR ROAD KI DASHA


बिजली मीटर बने शोपीस
विनोद शर्मा

इंदौर । एनर्जी ऑडिट के नाम पर लगाए गए मीटर शोपीस की तरह ट्रांसफार्मरों की शोभा बढ़ाने से ज्यादा काम नहीं आ रहे हैं। एकलेरेटेड पॉवर डेवलपमेंट एंड रिफॉर्म प्रोग्राम (एपीडीआरपी) के तहत लगाए गए सैकड़ों मीटर बंद पड़े हैं।

बंद मीटरों से बेखबर शतप्रतिशत मॉनिटरिंग का दावा करके कंपनी बिजली कंपनी के साथ उपभोक्ताओं की आंखों में भी धूल झोंक रही है। कंपनी की मनमानी से बिजली कंपनी प्रबंधन भी वाकिफ है। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय नेता से ताल्लुक रखने वाली इस कंपनी की मनमानियों पर लगाम कसने की हिम्मत जुटाने वाला कोई नहीं।
एपीडीआरपी के तहत मप्र की तीनों वितरण कंपनियों (पूर्व, पश्चिम और मध्य क्षेत्र) के तकरीबन 25 हजार ट्रांसफार्मरों पर मीटर लगना थे। इनमें 15 हजार मीटर ओमनी एगेट सिस्टम प्रा.लि. को लगाना थे।

बिजली के जानकारों की मानें तो एपीडीआरपी की समयसीमा खत्म हो चुकी है लेकिन कंपनी 65 प्रतिशत से ज्यादा काम नहीं कर पाई। लगाए गए 15 प्रतिशत मीटर बंद हैं। ट्रांसफार्मरों की मॉनिटरिंग करके बिजली की आपूर्ति और खपत का आंकलन हो इसके लिए ये मीटर लगाए गए थे। अब यदि 15 प्रतिशत मीटर बंद है तो कंपनी शतप्रतिशत मॉनिटरिंग का दावा कैसे कर सकती है? इसका संतोषजनक जवाब देने वाला कोई नहीं।

इसलिए मेहरबान

ओमनी एगेट सिस्टम प्रा.लि. मुलत: चैन्नई की कंपनी है। कंपनी को भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पारिवारिक संपत्ति बताया जाता है। मप्रपक्षेविविकं के अधिकारियों की मानें तो कंपनी हमेशा राजनीतिक दबाव बनाकर काम कराती है। रोक चुके हैं 70 लाख का पेमेंट
कंपनी द्वारा लगाए कई मीटर बंद है।

ऎसे मप्रपक्षेविविकं के अधिकारी भी मानते हैं कि कंपनी का काम सिर्फ मीटर लगाना नहीं था। बल्कि मीटर लगाकर उनकी मॉनिटरिंग करना और ऑब्जरवेशन रिपोर्ट देना था। अब तक कंपनी ने मीटर लगाने और मॉनिटरिंग करने दोनों ही क्षेत्र में निराश किया है। इसके लिए कंपनी को नोटिस देकर 70 लाख का पेमेंट भी रोका जा चुका है।

मॉडेम का बहाना

मनमानी को नकारने वाली कंपनी का रिलायंस से विवाद हुआ। बकाया भुगतान न होने पर रिलायंस ने कंपनी को दी सिमें बंद कर दी थी। अब कंपनी कहती है मॉडेम में खराबी से मॉनिटरिंग में दिक्कत आ रही है।

असेम्बल किए मीटर

अनुबंध के अनुसार कंपनी ब्रांडेड मीटर लगाने के बजाय यहां-वहां से सामान जुटाकर असेम्बल किए हुए मीटर लगा रही है। कारण टैक्स चोरी। इसका खुलासा 18 फरवरी 2010 को कंपनी के क्षेत्रीय कार्यालय पर हुई छापामार कार्रवाई में भी हो चुका है।

अभी तो एक्सपेरिमेंटल स्टेज है

अभी मामला एक्सपेरिमेंटल स्टेज पर है। मॉडम के माध्यम से डाटा कलेक्शन करने का काम चल रहा है। कंपनी द्वारा लगाए गए मीटरों का भौतिक सत्यापन हमारा मैदानी अमला कर रहा है। कहीं 30 प्रतिशत तो कहीं 70 प्रतिशत तक हुआ है। काम अभी जारी है।
संजय शुक्ला, सीएमडी मप्रमक्षेविविकं

ABHINANDAN NAGAR

इंदौर से 400 करोड़ का हवाला



मुंबई से लौटकर विनोद शर्मा

इंदौर । इंदौर के एक रियल एस्टेट समूह सैटेलाइट से जुड़े कुछ लोगों के खिलाफ हवाला का बड़ा मामला पकड़ में आया है। विदेश से रकम के अवैध लेनदेन का यह आंकड़ा शुरूआती जांच में ही करीब 400 करोड़ रूपए का बताया जा रहा है। मुंबई से प्रवर्तन निदेशालय ने फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत सैटेलाइट के कर्ताधर्ताओं समेत इंदौर के 13 लोगों को इस मामले में नोटिस थमाए हैं। शहर में कई कॉलोनियां काटने वाले सैटेलाइट समूह के कर्ताधर्ता इंदौर के अजमेरा बंधु व अन्य हैं।

छापे में मिले थे सुराग
नवंबर 2009 में आयकर विभाग ने सैटेलाइट, चिराग रियल एस्टेट, मयूरी हिना हर्बल और फिनिक्स ग्रुप के इंदौर-उज्जैन व मुंबई स्थित ठिकानों पर छापा मारा था। इसी में हवाला के सुराग मिले।सैटेलाइट समूह का मुख्यालय मुंबई में है। इसके बाद मुंबई स्थित प्रवर्तन निदेशालय के अफसरों ने छानबीन की और फेमा के तहत जांच शुरू की। पहले चरण में सैटेलाइट गु्रप और उसकी सहयोगी कंपनियों से ताल्लुक रखने वाले 13 लोगों को नोटिस जारी हुए हैं।

घेरे में कई बड़े नाम
आरोपियों में सैटेलाइट समूह के कर्ताधर्ता रितेश अजमेरा उर्फ चंपू, उसका भाई निलेश अजमेरा, दीपक जैन (दिलीप सिसौदिया), हैप्पी धवन, अरूण डागरिया, चिराग शाह, वीरेंद्र चौधरी, विनोद गुप्ता, मोहन चुघ, अतुल सुराना के अलावा जमीन के बड़े खिलाड़ी शरद डोसी व अन्य हैं। एक बड़ा नाम मुंबई के ब्रजेश शाह का भी है।

इंदौर में चार टाउनशिप
अजमेरा बंधुओं और उनके सहयोगियों ने 23 फर्म बना रखी है। इनमें वे अलग-अलग डायरेक्टर हैं। इन्हीं कंपनियों में से एक है सैटेलाइट ग्रुप। इंदौर में इसकी चार टाउनशिप है। सैटेलाइट जंक्शन (पंचवटी), सैटेलाइट टाउनशिप (बिजलपुर क्षेत्र), सैटेलाइट हिल्स (बायपास) और सैटेलाइट सिटी (खंडवा रोड)। गु्रप का कारोबार 20 शहरों में फैला है।
भोपाल में कई एकड़ जमीन नकद खरीदे जाने के बाद से आयकर विभाग की निगाह इस समूह पर थी।
आयकर विभाग ने छापे में 25 करोड़ की प्रॉपर्टी के दस्तावेज, 20 लाख रूपए नकद और 80 लाख के जेवर बरामद किए थे। 13 खाते सील किए गए थे। इसके बाद ग्रुप ने 25 करोड़ रूपए सरेंडर किए।

मंदी ने ध्वस्त किए सारे मंसूबे
हवाला के इस पूरे कांड की कड़ी दुबई से जुड़ी है। अजमेरा बंधु और उनके सहयोगी दुबई में कॉलोनी काटना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने दिसंबर 2007 से जनवरी 2008 के बीच डेढ़ से दोगुना रूपए लौटाने का प्रस्ताव देकर इंदौर के नामी-गिरामी लोगों से करोड़ों रूपए जुटाए।

रूपया देने वालों में पीडीपीएल के डायरेक्टर विनोद गुप्ता सहित कई लोग शामिल हैं। पैसा इकटा होते ही अजमेरा बंधुओं ने दुबई में जमीन खरीदी और आधा पैसा चुका दिया। आधे के भुगतान के लिए चेक दिए गए। सौदे के बाद जब मंदी के कारण जमीन की कीमत में 80 फीसदी तक की गिरावट आई तो इनकी योजना ध्वस्त हो गई।

चेक बाउंस काभी आरोपी है चंपू अजमेरा
वादे के मुताबिक तय समय में जब अजमेरा बंधुओं ने पैसा नहीं दिया तो लेनदारों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया। दबाव से तंग बंधुओं ने आनन-फानन में उन्हें चेक थमा दिए जो बाद में बाउंस हो गए। नाराज लेनदारों ने अजमेरा बंधुओं के खिलाफ धारा 138 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया। 70 फीसदी रकम निकालने वाले कुछ लेनदार ऎसे भी हैं जो वसूली के लिए अजमेरा पर पिस्तौल तान चुके हैं।

पैसा देकर पछता रहे विनोद गुप्ता ने भी अजमेरा बंधुओं के खिलाफ मुकदमा ठोंक रखा है। "पत्रिका" को गुप्ता ने बताया, जनवरी 2008 को चेक से 2.5 करोड़ रूपए रितेश-निलेश को दिए थे। उन्होंने दो महीने में पैसा लौटाने को कहा, लेकिन आज तक नहीं लौटाया। पैसा सामान्य कर्ज के रूप में दिया था। पैसे का उन्होंने क्या किया? इसकी मुझे जानकारी नहीं है।

कहां से आई इतनी रकम?
हवाला कारोबार की रकम चार सौ करोड़ रूपए बताई जा रही है। ऎसे में सवाल यह है कि एक दशक पहले तक मेहंदी का कारोबार करने वाले अजमेरा बंधुओं की अरबों रूपए की हैसियत कैसे हो गई? ऎसे ही सवालों के जवाब तलाशने के लिए प्रवर्तन निदेशालय कडियां तलाश रहा है। किस-किसने उन्हें पैसा उपलब्ध कराया? और क्यों? उनका निजी हित क्या था?
मुसीबत के हाईवे


विनोद शर्मा


इंदौर। एक फीट से गहरे गड्ढों का जख्म...। डामर के इंतजार में बिखरती गिट्टी-चूरी...। यह व्यथा है इंदौर को धार-झाबुआ-रतलाम, मंदसौर, नीमच ही नहीं, गुजरात-राजस्थान से जोड़ने वाले एनएच-59 (इंदौर-लेबड़) की। एक तरफ औद्योगिक क्षेत्रों का हवाला देकर सरकार निवेशकों को पीले चावल दे रही है, वहीं इन्हें जोड़ने वाली यह रोड खत्म हो चुकी है।

तीन दिन पहले यहां लगे जाम का कारण तलाशने पहुंचे तो हकीकत यही नजर आई। लोगों ने बताया पांच किमी पार करने में एक घंटा भी कम पड़ता है। दुर्दशा दूर करने की बात करते ही अधिकारी इंदौर-अहमदाबाद रोड की निर्माणाधीन योजना का हवाला देने बैठ जाते हैं। ऎसे में सवाल यह उठता है कि क्या नई सड़क नहीं बनेगी, तब तक लोग यूं ही परेशान होते रहेंगे।

दिया एक और विकल्प
एनएच-59 के निर्माणाधीन विस्तार और दो दिन पहले लगे जाम से सबक लेते हुए अब एबी रोड जाने वाली गाडियों को नागदा से स्टेट हाइवे (एसएच)-31 (नागदा, धार-मांडव रोड होते हुए गुजरी) पर छोड़ा जा रहा है। ट्रक ड्राइवर मो. सईद और शहजाद खान ने बताया इस रूट से एबी रोड पहुंचने के लिए 40 किलोमीटर से ज्यादा का अतिरिक्त सफर तय करना होगा। रूट वैसे तो पुराना है लेकिन इसकी दुर्दशा ने ही लोगों को नागदा, लेबड़, घाटा बिल्लौद, पीथमपुर होते हुए एनएच-3 पहुंचने का ये नया रास्ता दिखाया था।

उनकी दिक्कत, इनका धंधा
- गाडियों की दुर्दशा ने बढ़ाए क्षेत्र में गैरेज।
- पंक्चर गाडियों की संख्या के साथ पंक्चर जोड़ने वाले भी बढ़े।
- जेक भी मिलते हैं भाड़े पर।
- लेबड़ और घाटा बिल्लौद में के्रन भी मिलती है तैयार।

कहां खराब
घाटा बिल्लौद से लेबड़ पांच किमी पूरी तरह उखड़ा। नेशनल स्टील्स के सामने सड़क उखड़कर नाला बन गई। दिनभर पानी बहता है।
चंबल पर बना पुल उखड़ने लगा।
घाटा बिल्लौद माता मंदिर के सामने एक-डेढ़ फीट गहरे गड्ढे।

भारी यातायात
पीथमपुर, स्पेशल इकोनॉमिक जोन (सेज) और नए-नवेले इंदौर-खलघाट रोड के कारण घाटा बिल्लौद से एक घंटे में 700 से ज्यादा वाहन गुजरते हैं। इनमें 50 फीसदी भारी वाहन हैं। पीथमपुर-महू रोड की हालत धार रोड से बेहतर होने से 60 प्रश यातायात पीथमपुर फाटा से पीथमपुर मुड़ जाता है। बाकी 40 प्रतिशत इंदौर की ओर।

नई सड़क बनने तक ऎसे ही होंगे परेशान?
एनएच-59 (इंदौर-लेबड़)
आखिरी बार बनी : 2007-08 में
लागत : 8 करोड़ रूपए।
16 हजार से ज्यादा वाहन रोज
इंदौर से चलती हैं 200 बसें।
15 हजार से ज्यादा यात्री

इंदौर-भोपाल : 185 किलोमीटर का सफर 3 से साढ़े तीन घंटे।
इंदौर-लेबड़ : 40 किलोमीटर और सफर दो घंटे का?

इन्हें जोड़ता है रोड
एनएच-59 : धार, झाबुआ, अहमदाबाद
एनएच-79 : नागदा, नीमच, मंदसौर, कोटा
एसएच-31 : नागदा, धार, गुजरी
सौ करोड़ में संवरेगा इंदौर-बैतूल मार्ग




इंदौर। हादसों का हाईवे बन चुके इंदौर-बैतूल रोड (एनएच-59 "ए") पर 2013 तक खंडवा रोड की तरह गाडियां दौड़ती नजर आएंगी। पूरी तरह उधड़ चुके इस रोड की दशा सुधारने के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी (एनएचएआई) ने करीब सौ करोड़ की तीन योजनाओं पर काम शुरू कर दिया है। पहले चरण में 35 करोड़ के टेंडर निकालने के बाद एनएचएआई ने इंदौर-डबल चौकी मार्ग के लिए 35 करोड़ और रपटों को पुल में तब्दील करने के लिए करीब 30 करोड़ की योजनाओं का खाका बनाना शुरू कर दिया है।

दस साल पहले नेशनल हाईवे का दर्जा पाने एनएच-59"ए" को लेकर एनएचएआई अब गंभीर है। वह अब तक 288 किमी लंबी इस सड़क के 37 किलोमीटर लंबे हिस्से में टू-लेन निर्माण के लिए 35 करोड़ के टेंडर निकाल चुका है। निर्माण किलोमीटर 42 (चापड़ा) से 77 (कलवार) के बीच 35 किमी और किलोमीटर 124 से 126 के बीच 2 किमी पर होना है।

इससे पहले कलवार से कन्नौद किमी 77 से 123 तक दो-लेन रोड बनाई जा चुकी है, हालांकि उसकी हालत अभी से बिगड़ने लगी है। अब बारी है इंदौर से डबल चौकी (किमी 0 से 30 किमी) रोड की। इसका सर्वे हो चुका है। प्रस्ताव बनाया जा रहा है। लागत 35 करोड़ आंकी जा रही है। अधिकारियों की मानें तो केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री कमलनाथ की मंशानुरूप मंत्रालय से अनुमोदित हुई इस रोड के निर्माण की तमाम कवायदें दिल्ली से चल रही हैं। सर्वे से लेकर वर्कऑर्डर तक सभी वहीं के अधिकारियों की निगरानी में होगा।

टोल-फ्री होगी सड़क
सड़क की लागत 90-95 लाख रूपए प्रति किमी आएगी। उधर, केंद्रीय सड़क-परिवहन मंत्रालय की गाइडलाइन के अनुसार उन सड़कों पर टोल नहीं लगेगा, जिनकी लागत एक करोड़ रूपए प्रति किलोमीटर से कम हैं। हालांकि मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस रोड के निर्माण की गुणवत्ता टोल वाली सड़कों से उन्नीसी नहीं होगी।

इसलिए जरूरी है निर्माण
- 1200 करोड़ की लागत से इंदौर-अहमदाबाद मार्ग के साथ यह रोड बनती है तो यह तीन राज्यों (गुजरात, मप्र और महाराष्ट्र) को जोड़ेगी।
- बैतूल, होशंगाबाद और इटारसी से आने वाले वाहनों को भोपाल होकर इंदौर नहीं आना पड़ेगा। उनका 150 किमी से ज्यादा चक्कर बचेगा।
- इंदौर से आष्टा-कन्नौद होते हुए नेमावर जाकर 40 किमी लंबा चक्कर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
- रोड बनने के बाद इंदौर आसपास के हर शहर से दोलेन और चारलेन से जुड़ेगा। सिंगल ट्रैक खत्म होगी।

रपटें होंगी खत्म, बनेंगे पुल
खातेगांव में हुए बागदी बस हादसे और एक दशक में सड़क पर हुए ऎसे अन्य हादसों से सबक लेते हुए एनएचएआई ने तमाम रपटों को पुल में तब्दील करने का मन भी बनाया है। दुधिया नाला, शिप्रा नदी, कालापाठा नाला, सतखालिया, उमरिया खाल, कालीसिंध नदी, करनावत नाला और बागदी नदी सहित रोड पर दर्जनभर से ज्यादा नदी-नालों पर मौजूदा रपटें तोड़कर ऊंचे-व्यवस्थित पुल बनाए जाना है। बागदी बस हादसे के बाद "पत्रिका" ने नेमावर रोड की रपटों और उनकी दुर्दशाओं के साथ वहां हुए हादसों की तस्वीर बयां की थी। पुल बनाने की तैयारियां उसके बाद ही शुरू हुई।

विनोद शर्मा

Tuesday, August 31, 2010


आईसीसी होगी ब्लैक लिस्टेड
विनोद शर्माSaturday, January 31, 2009 09:08 [IST]



इंदौर. कई बार चेतावनी व नोटिस दिए जाने के बावजूद काम में कोताही बरतने वाली इंडियन कंस्ट्रक्शन कंपनी (आईसीसी) को निगम प्रशासन यशवंतसागर जलावर्धन योजना से बेदखल करते हुए ब्लैक लिस्टेड करने का मन बना चुका है।

संभवत: सात दिन में कार्रवाई को अंजाम देकर निगम रिस्क एंड कास्ट पद्धति पर नए सिरे से टेंडर भी बुला लेगा। बहरहाल आयुक्त से लेकर निगम के विधि सलाहकार तक कार्रवाई की सिफारिश कर चुके हैं। इंतजार है तो सिर्फ महापौर और महापौर परिषद के सदस्यों की मंजूरी का।

तेज गति से काम करने के लिए राज्य व केंद्र सरकार की प्रशंसा पा चुकी यशवंत सागर जलावर्धन योजना पर लेटलतीफी का ग्रहण अगस्त से लगना शुरू हो गया था। काम अप्रैल 2009 तक पूरा होना था लेकिन कंपनी की हीलाहवाली के चलते काफी पिछड़ गया। ठोस कार्रवाई के बजाय निगम कारण बताओ नोटिस ही थमाता रहा। कंपनी ने गति बढ़ाना तो दूर, नोटिस के जवाब तक नहीं दिए। अंतत: निगमायुक्त सी.बी. सिंह ने महापौर को पत्र लिखकर स्पष्ट कर दिया कि योजना की आवश्यकता और मौजूदा गति को देखते हुए कंपनी को ब्लैक लिस्टेड करके रिस्क एंड कास्ट पद्धति से दोबारा टेंडर बुलाए जाना चाहिए।

कंपनी ने बढ़ाई गति
एक तरफ निगम कार्रवाई के लिए कमर कस चुका है तो दूसरी ओर कंपनी ने कार्रवाई की भनक लगते ही प्रोजेक्ट पर काम तेज कर दिया है। हालात यह है कि 60 क्यूबिक मीटर कांक्रीट करने वाली कंपनी अब 200 क्यूबिक मीटर कांक्रीट रोज कर रही है।

फैसला इसलिए
प्रोजेक्ट पर अप्रैल 2007 से काम शुरू हुआ और अप्रैल 2009 तक पूरा होना था।
अभी तक कंपनी बमुश्किल 20 प्रतिशत ही काम कर पाई।
मौजूदा गति के मान से काम पूरा करने के लिए 5 साल भी कम पड़ेंगे।


बात अनुबंध की
कंपनी ब्लैक लिस्टेड होती है तो निगम नुकसान की भरपाई के लिए योजना की कुल लागत के एक प्रतिशत भाग की प्रतिदिन के हिसाब से अर्थदंड की वसूली कर सकता है। 29.64 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में यह आंकड़ा 29 लाख रुपए प्रतिदिन होगा।

बाकी काम के लिए बुलाए गए टेंडर में तय राशि से अधिक राशि का प्रस्ताव आता है तो उस अतिरिक्त राशि की वसूली भी कंपनी से होगी। इसे रिस्क एंड कॉस्ट पद्धति कहते हैं।

वसूली के लिए निगम कंपनी की मशीनरी सहित अन्य सामग्रियों की कुर्की भी कर सकता है। कंपनी छह महीने के लिए दूसरी कंपनी को जिम्मेदारी सौंप रही थी जो नियम विरुद्ध है।

दो लाख रोज का नुकसान


अप्रैल 09 में परियोजना पूरी होने के बाद निगम अगस्त-सितंबर से आपूर्ति शुरू कर देता पर काम पूरा होने में एक साल और लगेगा। यानी योजना का लाभ अगस्त-सितंबर 2010 के बाद ही शहर को मिलेगा। यशवंत सागर से मिलने वाले अतिरिक्त पानी की पूर्ति नगर निगम को नर्मदा से ही करना होगी। यशवंत सागर के पानी की लागत करीब 9 रुपए प्रति हजार लीटर है जबकि नर्मदा का पानी 18 रुपए प्रति हजार लीटर पड़ता है।

कंपनी रो-रोकर काम कर रही है। ब्लक लिस्टेड करके काम खत्म करेंगे, दूसरा विकल्प भी नहीं। इसकी तैयारियां भी तकरीबन पूरी हो चुकी हैं।
- सी.बी.सिंह, आयुक्त

कंपनी समय पर काम नहीं करेगी तो उसका अंजाम वही होगा जो फीडर रोड-1 के काम में कोताही बरतने वाली प्रतिभा कंस्ट्रक्शन का हुआ। हालांकि निर्णय 3 फरवरी को यशवंत सागर पर होने वाली बैठक के बाद होगा।
-देवकृष्ण सांखला, प्रभारी, जलकार्य

Friday, July 23, 2010

udod niti


तो मुंह नहीं ताकेंगे उद्योग
इंदौर। प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र जल्द ही सड़क, पानी, सफाई और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए स्थानीय निकायों पर आश्रित नहीं रहेंगे। क्षेत्रों में जरूरत के मुताबिक बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए गुजरात की तरह मप्र सरकार "इंडस्ट्रियल कॉरिडोर एक्ट" या "इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एक्ट" लागू करेगी। एक्ट लागू होने के बाद क्षेत्रों के बुनियादी विकास की जिम्मेदारी औद्योगिक केंद्र विकास निगम जैसी उद्योग हितैषी संस्थाओं की रहेगी।

प्रदेश की उद्योग नीति 30 जून तक लागू होनी है। मैसादा तैयार है। कैबिनेट ने अनुशंसा कर दी। इंतजार है तो सिर्फ नीति की विधिवत मंजूरी का। एक्ट लागू होते ही औद्योगिक क्षेत्रों के विकास का रोडमेप तैयार होगा। रोडमैप बीओटी और पब्लिक प्रायवेट पार्टनर्शिप (पीपीपी) पद्धति पर आधारित होगा। इसमें सड़कों का निर्माण एवं चौड़ीकरण, बाग-बगीचों का निर्माण-रखरखाव, स्ट्रीट लाइट, पेयजल, कचरा प्रबंधन और ऊर्जा बचत जैसी योजनाओं पर काम होगा।

इसलिए जरूरत पड़ी एक्ट की
2003-04 में स्वीकृत उद्योग नीति में औद्योगिक उपनगर बनाने की बात हुई थी। उपनगर व्यवस्था में स्थानीय निकायों की तरह औद्योगिक क्षेत्रों में प्रतिनिधि निर्वाचित होते। क्षेत्र की आवश्यकतानुसार काम करते और टैक्स लेते। लेकिन नगरीय प्रशासन ने उद्योग मंत्रालय के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। ऎसे में बुनियादी सुविधाओं के अकाल के कारण दम तोड़ते औद्योगिक क्षेत्रों को बचाने के लिए इन उपायों पर विचार किया गया। ताकि उद्योगों को सुविधाएं मिल सकें।

विनोद शर्मा

200 करोड़ का फटका

इंदौर । स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में विलय ने इनकम टैक्स के खजाने को भी तगड़ा झटका दिया है। झटका भी छोटा नहीं, सीधे 200 करोड़ रूपए सालाना है। अब तक इसका मुख्यालय इंदौर में होने से स्थानीय आयकर कार्यालय में यह मोटी रकम जमा होती थी, जो विलय के बाद मुंबई में जमा होगी। सालाना 50 हजार करोड़ से अधिक कारोबार करने वाली यह बैंक अब तक इंदौर की सबसे बड़ी करदाता रही है।

दूसरी ओर प्रदेश सरकार को आयकर के मिलने वाले करीब 60 करोड़ रूपए से हाथ धोना पड़ेगा। बहरहाल, विलय ने आयकर अधिकारियों की चिंता बढ़ा दी है।2008-09 की मंदी से 2009-10 में बमुश्किल उबरे आयकर इंदौर के सामने वर्ष 2010-11 में दो नई चुनौतियां हैं।

एक सबसे बड़े करदाता और दूसरी इस करदाता से मिलने वाले 200 करोड़ की भरपाई की। जानकारों की मानें तो विलय के बाद इंदौर बैंक का संचालन एसबीआई करेगी। एसबीआई का मुख्यालय मुंबई में है। ऎसी स्थिति में इंदौर बैंक से मिलने वाली रकम भी एसबीआई अपने खाते से मुंबई में जमा करेगी।

वह भी उस वक्त जब मौजूदा वित्तीय वर्ष में इंदौर रीजन का आयकर लक्ष्य करीब 1400 करोड़ से बढ़ाकर करीब 1600 करोड़ किया जाना प्रस्तावित है। आयकर के कई जिम्मेदार अधिकारी इतनी बड़ी रकम की भरपाई को लेकर हाथ खड़े कर चुके हैं। वहीं कुछ ने इसके लिए करदाताओं का सूक्ष्म सर्वे कराए जाने का प्रस्ताव भी आला अधिकारियों को देना शुरू कर दिया है।

...इसलिए व्याकुलता

इंदौर रीजन में इंदौर-उज्जैन संभाग के 14 जिले हैं। इनसे मिलने वाला राजस्व बीते वर्ष 1405 करोड़ था। ऎसे में बैंक दो जिलों के बराबर कर देती थी।
इंदौर, देवास व पीथमपुर में टाटा, रैनबैक्सी, फोर्स जैसी कंपनियां हैं। इनका कारोबार हजारों करोड़ में है, पर सबके मुख्यालय दूसरे राज्यों में होने से इंदौर को कुछ नहीं मिलता।

नुकसान तो मप्र का

आयकर को यही फर्क पडेगा कि इंदौर को मिलने वाला कर मुंबई में जमा होगा। नुकसान मप्र को है, क्योंकि बैंक 200 करोड़ का राजस्व चुकाती तो केंद्र को उसका 30 प्रश हिस्सा मप्र को लौटाना पड़ता था। यह राशि 60 करोड़ होती थी। सत्यनारायण गोयल, सीए

विनोद शर्मा

चलते रहेंगे चायना मोबाइल?
विनोद शर्माSaturday, April 04, 2009 06:42 [IST]


इंदौर। बगैर इंटरनेशनल मोबाइल इक्यूपमेंट आईडेंटिटी (आईएमईआई) नंबर वाले चायना मोबाइल बंद करने के दूरसंचार विभाग के आदेश के बाद भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। एक ओर मोबाइल डीलरों द्वारा स्पाइडर कार्ड के जरिए आईएमईआई नंबर उपलब्ध कराया जा रहा है, वहीं दूरसंचार विभाग और ट्राई का कहना है उन्होंने कार्ड को लेकर कोई अधिसूचना जारी नहीं की है।

देश में करीब ढाई करोड़ चाइना मोबाइल उपभोक्ताओं है और विभाग के आदेश के बाद मोबाइलों की बिक्री में 75 फीसदी तक की गिरावट आई सो अलग। आदेश जारी हुए चार दिन हो चुके हैं लेकिन किसी के मोबाइल बंद होने की सूचना नहीं मिली। मोबाइल ऑपरेटर कंपनियों के इस रवैये ने उपभोक्ताओं को संशय में डाल दिया है वहीं ट्राई का कहना है कि आदेश दूरसंचार विभाग का है।

देश की सुरक्षा का हवाला देते हुए दूर संचार विभाग 1 अप्रैल से ऑपरेटर कंपनियों को देशभर में बगैर आईएमईआई नंबर के चायना मोबाइलों को फ्रीज करने के आदेश दे चुका है। इंदौर में ऐसे मोबाइलों की संख्या तकरीबन एक लाख से भी ज्यादा है। हालांकि 3 अप्रैल की रात तक किसी भी शहर के चायना मोबाइलों पर ऐसी कार्रवाई कंपनियों ने नहीं की। दूरसंचार विभाग और कंपनियों के बीच हर वो उपभोक्ता परेशान हैं जिन्होंने कम कीमत में महंगे मोबाइल सी सुविधाओं का लुत्फ उठाने के लिए चायना मोबाइल खरीदा था।

क्या है स्पाइडर कार्ड: इंदौर के लिए कार्ड की बुकिंग करवाने वाले मोबाइल विक्रेता राहुल लालवानी और मोनू तनवानी ने बताया स्पाइडर कार्ड एक आवेदन के साथ सामान्य रिचार्ज वेल्यू वाउचर की तरह होता है। कार्ड पर लगी काली पट्टी को स्क्रेच करने पर एक नंबर सामने आता है। यही आपका आईएमईआई नंबर है। इसकी पुष्टि वेबसाइट (www.trackimei.com) पर भी की जा सकती है। पुष्टि करते वक्त जैसे ही आप कार्ड पर लिखा नंबर आईएमईआई सर्च ऑप्शन में टाइप करके सर्च करेंगे वैसे ही डिटेल आपकी स्क्रीन पर होगी। यहां आपका मोबाइल मॉडल स्पाइडर कार्ड और ब्रांड स्पाइडर के नाम से रजिस्टर्ड होगा। इसमें सॉफ्टवेअर वर्जन, डिवाइस टाइप और बेंड डिटेल्स के साथ मोबाइल के चोरी होने संबंधित थाने में दर्ज कराई गई रिपोर्ट की जानकारी भी उपलब्ध होगी। कार्ड आपको फोटो पहचान-पत्र के साथ आवेदन भरने के बाद ही दिया जाएगा। कार्ड सोमवार से इंदौर में भी मिलेंगे।

ऐसे नहीं बंटता आईएमईआई: नाम न छापने की शर्त पर ट्राई के वरिष्ठ अधिकारी ने स्पष्ट कर दिया कि आईएमईआई नंबर यूं किसी कार्ड पर नहीं बांटा जाता। नंबर हेंडसेट के अंदर ही होता है। ट्राय ने ऐसे किसी भी कार्ड को बाजार में लांच करने की स्वीकृति नहीं दी। वहीं हमारा मोबाइलों को बंद करने वाले आदेश से भी कोई वास्ता नहीं। यह दूरसंचार विभाग और ऑपरेटर कंपनियों के बीच का मामला है।

क्या है आईएमईआई: दुनियाभर की मोबाइल उत्पादक कंपनियों को मॉडल के हिसाब से यूके के ब्रिटिश अप्रुवल बोर्ड ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन (बीएबीटी) में रजिस्ट्रेशन करवाकर आईएमईआई नंबर की सीरिज आवंटित करवाना पड़ती है।

फायदा क्या- आईएमईआई नंबर युक्त हैंडसेट की हर कॉलिंग के साथ उसके नंबर और उपभोक्ता की लोकेशन की जानकारी ऑपरेटर कंपनियों को मिलती है। कोई भी सिम डालो, नंबर वहीं होगा। नंबर के आधार पर चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई जाए तो चोरों को पकड़ना आसान होता है।

इन मोबाइलों में आता है नंबर

मोबाइल विक्रेता बलराम अड़ियानी ने बताया निकटेल और सिग्माटेल चायना मोबाइलों के ऐसे ब्रांड हैं जो बीएबीटी से रजिस्टर्ड हैं। इन मोबाइलों में आईएमईआई नंबर होता है। बाजार में बिकने वाले बाकी ब्रांड के मोबाइलों में नंबर नहीं होता।

सौ रुपए में आईएमईआई नंबर

कंपनियां चायना मोबाइल बंद नहीं कर पाई इससे पहले ही ग्रेमार्केट और चायना मोबाइल डीलरों ने स्पाइडर कार्ड के रूप में बीच का रास्ता निकाल लिया। मात्र सौ रुपए में आईएमईआई नंबर उपलब्ध कराया जा रहा है। सनसिटी इलेक्ट्रॉनिक दिल्ली के मुकेश अरोरा (चायना मोबाइलों के बड़े आयातक) ने बताया हिंदुस्तानभर में करोड़ों मोबाइल बिक चुके हैं जिन्हें मनमाने ढंग से बंद नहीं किया जा सकता। आईएमईआई की दिक्कत दूर करने के लिए कोवलून टेक्नोलॉजिस, नई दिल्ली ने यूके की उस ऐजेंसी में रजिस्ट्रेशन करवाया है जो मोबाइल निर्माता कंपनियों को आईएमईआई नंबर जारी करती है।

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आयकर पर मंदी की मार
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विश्वव्यापी मंदी का असर अब वित्त वर्ष की समाप्ति के साथ ही आयकर विभाग पर भी नजर आने लगा है। बीते वर्षो में अंतिम मौके पर लक्ष्य बढ़ाकर रिकॉर्ड वसूली करने वाला विभाग इस बार लक्ष्य में 500 करोड़ की कटौती करने के बाद भी वसूली के मामले में 15 फीसदी दूर है। हालात ये हैं कि अब तो आयकर विभाग के आला अधिकारी भी लक्ष्य प्राप्ति की संभावनाओं को नकारने लगे हैं। उनका कहना है कि अंतर ज्यादा है जिसे तमाम कोशिशों के बावजूद पाटा नहीं जा सकता।
वर्ष 2006-07 और 2007-08 में जमा हुए कॉपरेरेट टैक्स और इनकम टैक्स के आंकड़ों को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2008-09 के लिए मप्र-छत्तीसगढ़ को 6,972 करोड़ आयकर वसूली का लक्ष्य दिया था। हालांकि अगस्त-सितंबर 2008 से बाजार पर छाई मंदी ने सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
मंदी और वसूली में कमी की संभावनाओं को देखते हुए सरकार को लक्ष्य में 500 करोड़ की कटौती करना पड़ी। बावजूद इसके 25 मार्च तक 6,472 करोड़ के रिवाइज लक्ष्य के विरुद्ध 5,504 करोड़ रुपए ही जमा हो पाए। अंतर सीधे 968 करोड़ का। उधर, इस अंतर ने इंदौर, भोपाल और ग्वालियर के उन आयकर अधिकारियों के माथे पर पसीना ला दिया है जो लक्ष्य में 8 फीसदी की छूट मिलने के बाद राहत की सांस ले रहे थे। हालांकि उनका स्पष्ट कहना है कि हजार करोड़ के अंतर को पांच दिन में पाटा नहीं जा सकता।
ये दिन भी देखे
आयकर विभाग बीते वर्षो तक वसूली के मामले में बेहतर रहा। 2006-07 में विभाग को अंतिम तिमाही में लक्ष्य 4,575 से बढ़ाकर 4,863 करोड़ करना पड़ा। इन आंकड़ों से मजबूती मिलते ही 2007-08 में 5035 करोड़ का लक्ष्य रखना पड़ा। हालांकि इस बार भी बाजार की बेहतरी के चलते 403 करोड़ की बढ़ोतरी करके लक्ष्य 5,438 करोड़ रुपए तय करना पड़ा।
बावजूद इसके तकरीबन शत प्रतिशत वसूली हुई। इस वित्त वर्ष में 927 करोड़ के लक्ष्य के आगे 987 करोड़ की वसूली करके इंदौर ने रिकॉर्ड बनाया जबकि इस बार 2008-09 में हालात उलटे हैं। इस बार 1,165 में से करीब 900 करोड़ की ही वसूली हो पाई। अधिकारियों के अनुसार वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के बाद मंदी शुरू हुई। शुरुआत से होती तो यह आंकड़ा 750 से 800 करोड़ के बीच ही रह जाता।
कभी कॉपरेरेट, कभी इनकम टैक्स पर जोर
विभाग ने 6,972 करोड़ के लक्ष्य में कॉपरेरेट टैक्स 2,323 और इनकम टैक्स 4,649 तय किया था। हालांकि मंदी की मार से कंपनियों की हालत देखते हुए संशोधन के बाद स्थिति उलटी हो गई। अब कॉपरेरेट टैक्स 3,691 करोड़ है वहीं इनकम टैक्स का आंकड़ा 2,781 करोड़ रह गया।
विश्वव्यापी मंदी के कारण बिगड़ी बाजार की स्थिति को देखते हुए लक्ष्य कम किया था। बीते साल 25 मार्च तक 92 फीसदी वसूली हो चुकी थी, वहीं इस बार मामला 85 फीसदी तक पहुंचा है। वसूली के इन आंकड़ों और ग्राफ को देखते हुए अभी यह कह पाना मुश्किल है कि रिवाइज लक्ष्य तक भी पहुंचेंगे या नहीं। कोशिशें जारी हैं।
- एस.पी. सिंह, चीफ कमिश्नर, आयकर- इंदौर और भोपाल