उद्योगपतियों की मांग पर उज्जैन होगा मुख्यालय, नहीं तय करना होगा 300 से 600 किलोमीटर का सफर
इंदौर. विनोद शर्मा ।
उज्जैन और देवास सहित आसपास के तमाम उद्योगों के लिए अच्छी खबर यह है कि कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट का मुख्यालय ग्वालियर से अब उज्जैन हो चुका है। इससे न सिर्फ डिपार्टमेंट की वर्किंग एफिसिएंसी बढ़ेगी बल्कि उज्जैन संभाग के तमाम जिलों में स्थापित उद्योगों को अपनी बात रखने के लिए ग्वालियर नहीं जाना पड़ेगा। बल्कि ग्वालियर वालों को उज्जैन आना होगा। मप्र में यह पहला मौका भी होगा जब दो कमिश्नरेट के बीच की दूरी बमुश्किल 50 किलोमीटर ही होगी।
सेंट्रल बोर्ड आॅफ एक्साइज एंड कस्टम (सीबीईसी) ने कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स की केडर री-स्ट्रक्चरिंग करते हुए उज्जैन और ग्वालियर संभाग के लिए ग्वालियर में अलग कमिश्नर की व्यवस्था कर दी थी। इससे पहले दोनों संभाग इंदौर कमिश्नरेट का हिस्सा था। री-स्ट्रक्चरिंग में इंदौर को प्रिंसिपल कमिश्नर का दर्जा दिया। हालांकि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में ग्वालियर कमिश्नर दो साल से इंदौर माणिकबाग मुख्यालय में बैठकर ही काम निपटाते रहे। इस बीच ग्वालियर कमिश्नर के मुख्यालय को लेकर खींचतान चलती रही। इस बीच बोर्ड ने इशारा कर दिया कि ग्वालियर कमिश्नर का मुख्यालय उज्जैन ही होगा। दो-तीन दिन से कमिश्नर वी.पी.शुक्ला ने उज्जैन में बैठना भी शुरू कर दिया है।
तो सामने आया उज्जैन...
केडर री-स्ट्रक्चरिंग के बाद ग्वालियर को मिले कमिश्नर से संभाग के उद्योगों को तो राहत मिली लेकिन इंदौर मुख्यालय के नजदीक रहे उज्जैन संभाग के नौ जिलों के उद्योगों की ग्वालियर जाने के नाम से ही जमीन हिल गई। वह भी तब जब देवास में टाटा और रेनबेक्सी जैसी बड़ी कंपनियां हैं। इसीलिए औद्योगिक संगठनों ने मांग की कि कमिश्नर के बैठने की व्यवस्था ग्वालियर में नहीं, उज्जैन में हो। मामला कोर्ट तक पहुंचा। निर्णय के इंतजार में कमिश्नर को इंदौर बैठना पड़ा। इसी बीच तय हुआ कि इंदौर और ग्वालियर के बीच उज्जैन डिविजन ही है जहां कमिश्नर बैठ सकते हैं।
तो विकसित भी हो जाएगा मुख्यालय
री-स्ट्रक्चरिंग में ग्वालियर को कमिश्नर तो मिला लेकिन सिर्फ नाम का। ग्वालियर कमिश्नर इंदौर से ही काम निपटाते रहे। इस चक्कर में अब तक न मुख्यालय बन पाया, न ही डिपार्टमेंटल वेबसाइट। न ही कमिश्नरेट के दायरे का कन्फ्यूजन दूर हुआ। अलग मुख्यालय बनने से विस्तार की संभावनाएं भी बनेगी।
क्यों जरूरी था उज्जैन...
सिर्फ उज्जैन एकेवीएन के अंतर्गत ही उज्जैन का ताजपुर, देवास का औद्योगिक क्षेत्र 2-3, सिरसोदा, नेमावर, शाजापुर का मक्सी, मंदसौर का आईआईडीसी और एफपीपी, रतलाम का करमड़ी औद्योगिक क्षेत्र आता है। यहां ग्वालियर संभाग से ज्यादा और बड़ी कंपनियां हैं।
विभागीय स्ट्रक्चरिंग के हिसाब से ग्वालियर डिविजन में रेंज-1 व 2 ग्वालियर, रेंज-1 व 2 मालनपुर, रेंज बनमोर, गुना और डबरा हैं। मतलब सात रेंज। जबकि उज्जैन डिविजन में रेंज-उज्जैन, रेंज-1, 2, 3 व 4 देवास हैं। रतलाम डिविजन में रेंज-1 व 2, रेंज-1 व 2 नागदा और मंदसौर हैं। मतलब 10 रेंज यानी ग्वालियर डिविजन से ज्यादा मजबूत है उज्जैन-रतलाम।
उज्जैन संभाग में शाजापुर-आगर और देवास आते हैं जिनकी ग्वालियर से दूरी 350 से 450 किलोमीटर है। वहीं नीमच-मंदसौर और रतलाम भी संभाग का हिस्सा हैं जिनसे ग्वालियर की दूरी 426 से 578 किलोमीटर है।
इंदौर. विनोद शर्मा ।
उज्जैन और देवास सहित आसपास के तमाम उद्योगों के लिए अच्छी खबर यह है कि कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट का मुख्यालय ग्वालियर से अब उज्जैन हो चुका है। इससे न सिर्फ डिपार्टमेंट की वर्किंग एफिसिएंसी बढ़ेगी बल्कि उज्जैन संभाग के तमाम जिलों में स्थापित उद्योगों को अपनी बात रखने के लिए ग्वालियर नहीं जाना पड़ेगा। बल्कि ग्वालियर वालों को उज्जैन आना होगा। मप्र में यह पहला मौका भी होगा जब दो कमिश्नरेट के बीच की दूरी बमुश्किल 50 किलोमीटर ही होगी।
सेंट्रल बोर्ड आॅफ एक्साइज एंड कस्टम (सीबीईसी) ने कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स की केडर री-स्ट्रक्चरिंग करते हुए उज्जैन और ग्वालियर संभाग के लिए ग्वालियर में अलग कमिश्नर की व्यवस्था कर दी थी। इससे पहले दोनों संभाग इंदौर कमिश्नरेट का हिस्सा था। री-स्ट्रक्चरिंग में इंदौर को प्रिंसिपल कमिश्नर का दर्जा दिया। हालांकि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में ग्वालियर कमिश्नर दो साल से इंदौर माणिकबाग मुख्यालय में बैठकर ही काम निपटाते रहे। इस बीच ग्वालियर कमिश्नर के मुख्यालय को लेकर खींचतान चलती रही। इस बीच बोर्ड ने इशारा कर दिया कि ग्वालियर कमिश्नर का मुख्यालय उज्जैन ही होगा। दो-तीन दिन से कमिश्नर वी.पी.शुक्ला ने उज्जैन में बैठना भी शुरू कर दिया है।
तो सामने आया उज्जैन...
केडर री-स्ट्रक्चरिंग के बाद ग्वालियर को मिले कमिश्नर से संभाग के उद्योगों को तो राहत मिली लेकिन इंदौर मुख्यालय के नजदीक रहे उज्जैन संभाग के नौ जिलों के उद्योगों की ग्वालियर जाने के नाम से ही जमीन हिल गई। वह भी तब जब देवास में टाटा और रेनबेक्सी जैसी बड़ी कंपनियां हैं। इसीलिए औद्योगिक संगठनों ने मांग की कि कमिश्नर के बैठने की व्यवस्था ग्वालियर में नहीं, उज्जैन में हो। मामला कोर्ट तक पहुंचा। निर्णय के इंतजार में कमिश्नर को इंदौर बैठना पड़ा। इसी बीच तय हुआ कि इंदौर और ग्वालियर के बीच उज्जैन डिविजन ही है जहां कमिश्नर बैठ सकते हैं।
तो विकसित भी हो जाएगा मुख्यालय
री-स्ट्रक्चरिंग में ग्वालियर को कमिश्नर तो मिला लेकिन सिर्फ नाम का। ग्वालियर कमिश्नर इंदौर से ही काम निपटाते रहे। इस चक्कर में अब तक न मुख्यालय बन पाया, न ही डिपार्टमेंटल वेबसाइट। न ही कमिश्नरेट के दायरे का कन्फ्यूजन दूर हुआ। अलग मुख्यालय बनने से विस्तार की संभावनाएं भी बनेगी।
क्यों जरूरी था उज्जैन...
सिर्फ उज्जैन एकेवीएन के अंतर्गत ही उज्जैन का ताजपुर, देवास का औद्योगिक क्षेत्र 2-3, सिरसोदा, नेमावर, शाजापुर का मक्सी, मंदसौर का आईआईडीसी और एफपीपी, रतलाम का करमड़ी औद्योगिक क्षेत्र आता है। यहां ग्वालियर संभाग से ज्यादा और बड़ी कंपनियां हैं।
विभागीय स्ट्रक्चरिंग के हिसाब से ग्वालियर डिविजन में रेंज-1 व 2 ग्वालियर, रेंज-1 व 2 मालनपुर, रेंज बनमोर, गुना और डबरा हैं। मतलब सात रेंज। जबकि उज्जैन डिविजन में रेंज-उज्जैन, रेंज-1, 2, 3 व 4 देवास हैं। रतलाम डिविजन में रेंज-1 व 2, रेंज-1 व 2 नागदा और मंदसौर हैं। मतलब 10 रेंज यानी ग्वालियर डिविजन से ज्यादा मजबूत है उज्जैन-रतलाम।
उज्जैन संभाग में शाजापुर-आगर और देवास आते हैं जिनकी ग्वालियर से दूरी 350 से 450 किलोमीटर है। वहीं नीमच-मंदसौर और रतलाम भी संभाग का हिस्सा हैं जिनसे ग्वालियर की दूरी 426 से 578 किलोमीटर है।
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